हिन्दुस्तान के जुगाड़ियों के पास ऐसी-ऐसी तकनीकी होती है जिसके बल पर इनके लिए कुछ भी कर पाना मुश्किल नहीं होता। इसी तकनीकी को आम भाषा में जु...
हिन्दुस्तान के जुगाड़ियों के पास ऐसी-ऐसी तकनीकी होती है जिसके बल पर इनके लिए कुछ भी कर पाना मुश्किल नहीं होता। इसी तकनीकी को आम भाषा में जुगाड़ कहा जाता है। अमेरिका व ब्रिटेन जैसे देश चाहे जितनी तरक्की क्यों न कर लें, लेकिन उनके लिए इस तकनीकि के तह तक जा पाना सूर्य पर पहुँचने जैसा दिवास्वप्न ही रह जाएगा। बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को भी इस मसले पर सांप सूंघ जाता है।
छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा काम भी इस तकनीकि से आसानी से हो जाता हैं। अधिकांश हिदुस्तानी जब किसी काम के लिए निकलते हैं तो सबसे पहले इसी तकनीकि के बारे में सोच-बिचार करते हैं। पता करते हैं, पूछते हैं कि भाई ! क्या कोई जुगाड़ है ? जुगाड़ होता तो ठीक था। ऐसे ही पूछते, सोचते और बिचारते कोई न कोई जुगाड़ निकाल लेते हैं। और सफल होते हैं।
इस तकनीकि का प्रयोग आम से लेकर नाम वाले तक करते हैं। इसके बल पर लोग नाम से लेकर दाम तक कमाते हैं। सब्जी वाले इस तकनीकि से बासी सब्जी को ताजी सब्जी में बदल देते हैं। कितनी ही पुरानी आलू क्यों न हो, ऐसा पटको कि छिलके छूटने लगें। फिर नम मिट्टी में एक-दो बार पटकने से नई आलू तैयार हो जाती है। इस तकनीकी से पत्ते वाली गोभी कभी पुरानी नहीं होती। ऊपर से एक-एक पत्ते निकालते जाओ फिर एक हफ्ते बाद बेचो चाहे दो हफ्ते। कोई फर्क नहीं। तोरई, लौकी आदि ऐसे तोड़िये कि उनमें डंठल लगा रहे। बाद में उसे थोड़ा-थोड़ा तोड़ते रहिये। इस टेकनीक से चार दिन बाद भी यही लगता है कि अभी तोड़ कर लाया है।
हिंदुस्तान में बीएससी फेल एमएससी वालों को पढ़ाते हैं। एक बार ऐसे ही एक शिक्षक से पूछा गया कि जब आप खुद ही बीएससी फेल हैं तो एमएससी वालों को कैसे पढ़ाते हैं ? वे बोले आपको एमएससी की पड़ी है, हम पीएचडी वालों को भी पढ़ा देते हैं। क्या कोई कंडीडेट है ? हो तो बताइये। पूछने वाले को आश्चर्यचकित देखकर उन्होंने बताया कि संतो और सद्ग्रन्थों ने कहा है कि ‘तप’ से कुछ भी दुर्लभ नहीं है। वैसे ही मेरा मानना है कि जुगाड़ से भी कुछ भी दुर्लभ नहीं है। खासकर हिंदुस्तान में। जहाँ सभी मुख्य मार्ग को छोड़कर उपमार्ग यानी बाईपास से ही चलना चाहते हैं।
हिन्दुस्तानी ड्रायवर जहाँ चार आदमी की जगह होती है। वहाँ पाँच बिठाते है। कुछ तो बीच में छोटा स्टूल रख देते हैं और आगे-पीछे करके यानी पीठ जोड़कर दो सवारी और बैठा लेते हैं। यही नहीं अगल-बगल लटकाते हैं। तथा खुद आधा बैठकर और आधा लटककर जुगाड़ से गाड़ी चलाते हैं। बहुत से ड्रायवर उस तकनीकि के लिए आँख विछाए बैठे हैं जिसके चलते आधा बैठने की भी जरूरत नहीं रहेगी, उस जगह पर एक सवारी और बैठ सकेगी। ड्रायवर स्टेरिंग के सहारे पूरा बाहर लटके रहेंगे, बिल्कुल चमगादड की तरह, और गाड़ी चलती जायेगी।
परीक्षा में पेपर खराब हो जाने पर भी विद्यार्थी पास होने के लिए जुगाड़ के चक्कर में पड़े रहते हैं। जब तक परीक्षाफल न आ जाए चक्कर चलता रहता है। सफल हो गए तो ठीक नहीं तो न निराश होने की जरूरत न पढ़ने की जरूरत। जुगाड़ से डिग्री-सर्टिफिकेट जो बन जाते हैं।
हिंदुस्तान में जुगाड़ इतना व्यापक हो गया है कि लोग कुछ करने और न करने के पहले जुगाड़ के बारे में सोचते हैं। नौकरी के लिए विज्ञापन आते ही, परीक्षा प्रणाली, पाठ्यक्रम, परीक्षा आदि के बारे में सोचने के पहले विद्यार्थी पहले जुगाड़ के बारे में ही सोचते हैं। उन्हें विश्वास होता है कि जिसका जुगाड़ होगा, उसी का होगा बाकी तो दिखावा है।
नेता लोग पहले चुनाव में खड़े होने का जुगाड़ करते हैं और फिर चुनाव जीतने का। कई तो इस जुगाड़ में रहते हैं कि मतदाता मत न दे तो भी कैसे चुनाव जीता जाय ? चुनाव जीतने के बाद सरकार बनाने का जुगाड़ करते हैं। आजकल बिना जुगाड़ के सरकारें बनती ही कहाँ हैं ? सरकार बन जाय तो सरकार चलाने का जुगाड़ करते हैं। बिना जुगाड़ के सरकारें चलती भी तो नहीं।
एक नेता से पूछा गया कि सरकार में रहते हुए आपने क्या किया ? अपना योगदान बताइये। नेता बोला यह सरकार मेरे ही जुगाड़ यानी योगदान से ही चल रही है, नहीं तो अब तक मुँह के बल एकाएक वैसे ही गिरी होती जैसे बरसात में ठेके पर बनी हुई बड़ी सरकारी बिल्डिंग गिरती है। आप ही सोचिए कम से कम देश में सरकार है और चल रही है। भले ही घिसटते हुए चल रही है यानी पंगु है और इसलिए कुछ कर पाने का कोई सवाल तो पैदा ही नहीं होता।
आगे बढ़ने वालों को जुगाड़ से पीछे कर दिया जाता है। ज्यादा दौड़ने वाले को कम दौड़ने वाले लत्ती मार कर गिरा कर पीछे कर देते हैं। जुगाड़ी जुगाड़ से तोड़ते हैं, जोड़ते हैं, मोड़ते हैं, मरोड़ते हैं, ऐंठते हैं और तो और एटीएम मशीन तक उखाड़ ले जाते हैं।
निरोगी को रोगी बना देते हैं और रोगी को निरोगी। योगी को भोगी और भोगी को योगी बना देते हैं। सिंह को सियार और सियार को सिंह बना देते हैं। आजकल सियार भी सियार बनकर रहना नहीं चाहता बल्कि सिंह बनना चाहता है। जो सियारासन पर भी बैठने के योग्य नहीं वे भी जुगाड़ से सिंहासन पर बिराजते हैं।
आसन प्राप्त करना आसान नहीं होता। फिर भी ऐन-केन प्रकारेण जुगाड़ से काग, कागासन को छोड़कर हंसासन पर बिराजता है।
आजकल लोग तरह-तरह के आसन सीख भी रहे हैं। फिर भी दिन प्रति दिन अनुशासन की कमी होती जा रही है। क्या बिडम्बना है कि शासन और उच्चासन आदि भी जुगाड़ से मिल जाते हैं ? कुछ लोग डंके की चोट पर कहते हैं कि हिंदुस्तान में जुगाड़ से क्या नहीं हो सकता ?
आजकल लोग घर भी जुगाड़ से चलाते हैं। कई लोग जुगाड़ लगाकर दूसरे का घर उजाड़ते भी हैं। आजकल कई पति-पत्नी भी जुगाड़ से ही पति-पत्नी बने रहते हैं अन्यथा तलाक होते देर नहीं लगती। जुगाड़ लगाकर लोग शादी-ब्याह भी कर लेते और करा देते हैं। जुगाड़ लगाकर कई नवयुवक प्यार करने और कराने में सफल हो जाते हैं। जुगाड़ से हिंदुस्तानी दूध बना लेते हैं। घी बना लेते हैं। क्या नहीं कर लेते ?
कहाँ तक बताएँ ? हिंदुस्तान में कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जो जुगाड़ से अछूता हो। कोई ऐसा हिन्दुस्तानी नहीं है जो अपने जीवन में कभी जुगाड़ की सोच में न पड़ा हो। कुछ विद्वानों का मत है कि प्रत्येक हिन्दुस्तानी जुगाड़ी होता है। दीगर है कुछ कम तो कुछ अधिक होते हैं। कुछ असफल तो कुछ सफल होते हैं। सफलता और असफलता तो जुगाड़ की गहराई पर निर्भर होती है। कुछ भी हो सच्चा यानी गहरा जुगाड़ जल्दी असफल नहीं होता।
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डॉ. एस. के. पाण्डेय,
समशापुर(उ.प्र.)।
URL: http://sites.google.com/site/skpvinyavali/
BLOG: http://www.sriramprabhukripa.blogspot.com/
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(चित्र - अमरेन्द्र फतुहा, पटना की कलाकृति - aryanartist@gmail.com )
बेहतरीन है जुगाड....
जवाब देंहटाएंजुगाड वैभव यात्रा ..... आइये स्वागत कीजिए
http://deepakmystical.blogspot.com/2011/10/blog-post_21.html
सही है ..
जवाब देंहटाएंहिंदुस्तान में जुगाड जिंदाबाद !!
bhut achi h
जवाब देंहटाएंJugadi aur Jugad pr ek acha vyang WAh!!! kah kahna...
जवाब देंहटाएंR.K. Bhardwaj
rkantbhardwaj@gmail.com