वर्ष 2010 के लिए ‘पं0 हरिप्रसाद पाठक पुरस्कार' जिस पुस्तक को दिया जा रहा है उसका नाम है - दोस्ती का रंग, जो एक बाल कहानी संग्रह है।...
वर्ष 2010 के लिए ‘पं0 हरिप्रसाद पाठक पुरस्कार' जिस पुस्तक को दिया जा रहा है उसका नाम है - दोस्ती का रंग, जो एक बाल कहानी संग्रह है। इसके लेखक हैं - श्री गोविन्द शर्मा। ये राजस्थान में हनुमानगढ़ जिले के संगरिया में निवास करते हैं। भारत का यह रेगिस्तानी प्रदेश, राजा और रजवाड़ों तथा ऊँटों के लिए जाना जाता था। लेकिन अब श्री गोविन्द शर्मा जैसे बाल साहित्यकारों की धरती के रूप में भी जाना जाने लगा है। यह अतिशयोक्ति नहीं है।
उपस्थित विद्वतजनों, बाल साहित्य पढ़ना, जितना ज्यादा सरल होता है, इसका लिखना, उतना ही अधिक कठिन होता है। बाल साहित्य लिखते समय साहित्यकार को स्वयं बालक बनना पड़ता है, तभी वह बालगीत, शिशु गीत अथवा बाल कहानियाँ लिख पाता है।
आधुनिक परिवेश में बच्चों का रुझान पुस्तकों से हटकर टी0वी0 और कम्प्यूटरों पर कार्टून देखना और वीडियो गेम खेलने की दिशा में दिनों दिन बढ़ रहा है। खाली समय में वे क्रिकेट का बल्ला थामे किसी पार्क में, खुले मैदान में या गलियों में खेलने निकल पड़ते हैं। बल्ले को हाथ में लेकर वे कपिल देव या सचिन तेंदुलकर बनने के सपने देखते रहते हैं। किन्तु हमारे देश के बाल साहित्यकार इससे न हताश हैं और न निराश हैं। वे अपनी रचना धर्मिता में निरन्तर संलग्न हैं और समाज को उत्कृष्ट बाल साहित्य दे रहे हैं। उम्मीद है कि एक दिन बच्चे कार्टूनों व वीडियो गेमों से ऊबकर पुस्तकों की ओर आकर्षित होंगे।
आज के पुरस्कृत बाल साहित्यकार श्री गोविन्द शर्मा भी एक ऐसे साहित्यकार हैं जो बाल साहित्य की पुस्तकें नन्हे बालकों के लिए निरन्तर लिख रहे हैं। इन्हें भारत सरकार के प्रकाशन विभाग का प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘भारतेन्दु पुरस्कार' प्राप्त हो चुका है। इनकी ‘चालाक चूहे और मूर्ख बिल्लियाँ'नामक पुस्तक पर, श्रीमती शकुन्तला सिरोठिया पुरस्कार भी मिल चुका है। इनके अतिरिक्त, अनेक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आज ब्रजभूमि, मथुरा में भी इनकी पुस्तक के लिए, इन्हें पुरस्कृत किया जा रहा है। इस सम्मान समारोह में मथुरा जनपद के उपस्थित साहित्यकारों की ओर से मैं आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ और बधाई देता हूँ।
बाल कहानी संग्रह - ‘दोस्ती का रंग', एक सौ दो पृष्ठीय बाल कहानी संग्रह है, जिसमें 25 बाल कहानियाँ संग्रहीत हैं। इन कहानियों में मनोरंजन के साथ-साथ जंगल के जानवरों व मानवों के माध्यम से सामाजिक बुराइयों और बच्चों की बुरी आदतों को दूर करने तथा पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए साहित्यकार ने ऐसा ताना-बाना बुनकर बच्चों के समक्ष रखा गया कि बच्चे इन कहानियों को पढ़ कर उनका अनुशरण करने में देर नहीं लगायेंगे। क्योंकि ये कहानियाँ जीवन को पाने और जीवन को जीने का सही रास्ता बताती हैं।
समाज में ठगों की ठगियायी की अनेकों किस्से-कहानियाँ सुनने मिलती रही हैं। लेकिन ठगी से बचने का उपाय कोई नहीं सुझाता है। परन्तु श्री गोविन्द शर्मा ने एक किसान के माध्यम से, ठग को पकड़वाने का साहसिक कार्य कराकर बच्चों को प्रोत्साहित करने और ठगी जैसी सामाजिक बुराई को नष्ट करने के लिए रचनात्मक शिक्षा देने का कार्य किया है। ‘दो गुना धन' नामक कहानी में साधु वेशधारी ठग, एक भोले किसान को अपना शिकार बनाने का प्रयत्न करता है। लेकिन किसान ने थोड़ी बुद्धि से काम लिया। उसने ठग को पकड़ावा भी और खुद का भारी नुकसान होने से बचाया भी।
सभी जानते हैं कि धन दोगुना कराने के चक्कर में आज भी लोग मूर्ख बन कर अपना धना गँवा रहे हैं। लेकिन ‘दोगुना धन' नामक कहानी को पढ़कर बच्चे ही नहीं बड़े भी ठगी का शिकार होने से बच सकते हैं।
‘तीन से तेरह' और घमंड की सजा' नामक कहानियाँ, पर्यावरण की शिक्षा देती हैं। ‘तीन से तेरह' कहानी एक पुरानी हवेली की कहानी है जो खण्डहर के रूप में विद्यमान है। उसके अहाते में तीन पुराने पेड़ खड़े हैं, जिन पर मुहल्ले के बच्चे चढ़ते-उतरते हैं और उनके नीचे खेलते-कूदते हैं। जब उन्हें इस बात का पता चलता है कि इस खण्डहर की जगह पर एक आलीशन मॉल बनेगा और इन तीनों पेड़ों को काट दिया जाएगा तो बच्चों का कोमल मन बेचैन हो उठता है। वे अत्यन्त निराश होने लगते हैं, लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता और सूझबूझ ने ऐसा होने नहीं दिया। बच्चों ने उन पेड़ों को तो कटने से बचाया ही अपितु और अधिक पेड़ रोपने के लिए ठेकेदार को वाध्य भी कर दिया।
‘घमंड की सजा' नामक कहानी में एक छोटी चिड़िया और घमंडी हाथी की दास्तान है। यह कहानी भी पर्यावरण के प्रति बच्चों में जगरूकता बढ़ाने में सफल सिद्ध होगी। कुछ पंक्तियाँ देखें - ‘‘चिड़िया की बच्ची तुम ज्यादा चीं-चीं करती हो। मैं भी अपनी ताकत दिखाऊँगा।''
इतना कहकर हाथी ने एक पेड़ के तने पर अपनी सूँड लपेटी और उसे उखाड़ने लगा। पेड़ पर बने पक्षियों के घोंसले टूट-टूट कर नीचे गिरने लगे। पक्षियों की चीखें सुनाई देने लगीं। हाथी ने यहीं बस नहीं की। पेड़ को अपनी पीठ पर टिकाया और यहाँ-वहाँ घूमने लगा। चिड़िया ने दुःख के मारे अपनी आँखें बन्द करलीं। लेकिन एक आदमी की आँखें, हाथी की ताकत देख कर हैरान हुईं। और इसके बाद ..........आदमी ने हाथी से पेड़ उखड़वाने और बजन ढोने का काम लेना शुरू कर दिया। सभी जानते हैं कि हाथी अपने घमंड की सजा आज तक भुगत रहा है।
बन्धुओ, इस संग्रह की सभी कहानियाँ प्रेरणादायक, शिक्षाप्रद और मनोरंजक तो हैं ही, इन्होंने पात्रों के नाम चुनने में भी बड़ा करिश्मा किया है। कहानी को एक बार पढ़ लेने से ही, बच्चों को पात्रों के नाम आसानी से याद हो जायेंगे। जैसे - खर और बूजा। चा और कू । तर और बूज। टोरी और कटोरी...... इत्यादि पात्रों के नाम रखे हैं। प्रत्येक कहानी के साथ सुन्दर चित्रों का होना भी बच्चों के कोमल मन को गुदगुदायेगा। पुस्तक 102 पृष्ठीय और सजिल्द होने के कारण पुस्तक का मूल्य बढ़ाने की प्रकाशक की मजबूरी रही होगी, परन्तु 125.00 रुपए का मूल्य बच्चों के लिहाज से ज्यादा ही लग रहा है। कहानियों की भाषा सरल और बोधगम्य है। उर्दू और अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों का बखूबी प्रयोग किया गया है। कवर पेज बहुत ही आकर्षक है। ‘तीन के तेरह' और ‘फन्ने खाँ' नामक कहानियाँ थोड़ी लम्बी जरूर हो गई हैं, परन्तु शिक्षाप्रद हैं।
वास्तव में यह बाल कहानी संग्रह पुरस्कार पाने की कसौटी पर खरा उतरा है। इसके लेखक श्री गोविन्द शर्मा को उपस्थित सभी साहित्यकारों की ओर से मैं, पुरस्कार पाने की पुनः हार्दिक बधाई देता हूँ और भविष्य में और बाल साहित्य लेखन करने की शुभकामनायें प्रेषित करता हूँ।
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समीक्षक - सन्तोष कुमार सिंह,
(कवि एवं बाल साहित्यकार)
बी 45, मोतीकुंज एक्सटेन्शन, मथुरा।
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