दीवाली पर लाठियों की भेंट उत्तर प्रदेश , बिहार और राजस्थान के प्रवासी मजदूर महाराष्ट्र , गुजरात और पंजाब में तो केवल धक्के खा रहे हैं। ल...
दीवाली पर लाठियों की भेंट
उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान के प्रवासी मजदूर
महाराष्ट्र, गुजरात और पंजाब में तो केवल धक्के खा रहे हैं। लेकिन देश के
दिल दिल्ली में तो लाठियाँ भी खा रहे हैं।
दिवाली के पावन पर्व पर देश की रेलवे का अपने देशी मजदूरों के
लिए ऐसे नायाब गिफ्ट का इंतजाम देखकर ‘गिरगिट‘ स्टेशन से
सीधे घर वापस आकर बोला, ‘भाईजी! तुम्हीं जाओ गांव मैं तो दिल्ली
में ही पड़ा रहूँगा।‘ यह कहते-कहते उसने अपने पिछवाड़े के श्याह निशानों की झाँकी
दिखा दी। मुझे लगा कि इन निशानों को सेंकने के लिए इसका वापस आ जाना वाजिब ही है।
गिरगिट के दुःख-दर्द सुनकर मैं स्टेशन पहुँचा तो वहाँ क्या
देखता हूँ कि ढाई-ढाई सौ लोगों की लंबी कतारें और उस पर भी जोरों की धक्कामुक्की।
ऐसे में मुझे काशी विश्वनाथ सहित सभी बड़े-बड़े मंदिरों की लंबी-लंबी कतारें याद आ
गईं। कभी-कभार की भगदड़ और उसमें जाने वाली सैकड़ों जानें हमारी आँखों में तैरने
लगीं। मुझे लगा, अगर यही दशा रही तो वह दिन दूर नहीं जब यहाँ भी पुलिस की मार
से डरी जनता भगदड़ का शिकार होगी।
रेलवे विभाग बड़ा सहिष्णु विभाग है। कितनी भी जानें जाएँ पर वह
अपनी छाती पर पत्थर रखकर सारे दुःख सह लेता है। मैं तो यही मानता हूँ कि हमारा
रेलवे डिपार्टमेन्ट धन्य है जो हर साल करोड़ों की क्षतिपूर्ति देकर भी अपनी ट्रेनें
बराबर दौड़ा रहा है।
हमारा देश जेम्स वाट का सम्मान करता है, इसीलिए उनके
बनाए कोयले के इंजनों को मॉडिफाई करके अब भी चला रहा है। इतना ही नहीं वह अंग्रेजों
का सम्मान करने के लिए उनकी गाड़ी पटरियों पर ही रेलगाड़ियाँ दौड़ा रहा है।
लोग रेलवे को दोष देते हैं कि वह न तो गाड़ियाँ बढ़ा रहा है न ही
गाड़ियों की बारंबारता लेकिन वे अपने जनसंख्या वृ़द्धि के कार्यक्रम पर बिल्कुल
विचार नहीं करते। यहाँ तक कि इन टेªनों में एक पूर्व रेल मंत्री भी अपने
नौ-नौ और दस-दस बच्चों की फुलवारी लेकर चलते पाए गए हैं। इस दिवाली में यदि वे भी
लाइन में खड़े होते तो आर.पी.एफ. वाले उनका भी अगवाड़ा पिछवाड़ा गरम कर देते। पुलिस
और उसकी लाठी दोनों की आँखें नहीं होतीं। उनके सिर्फ और सिर्फ कान होते हैं। जैसे
ही आदेश मिलता है वे पिल पड़ते हैं। उन्हें मारने में बड़ा मजा आता है, फिर
चाहे सामने बच्चा हो, जर्जर बूढ़ा या अबला नारी। बिहार और उत्तर प्रदेश के पुलिस बल
के पराक्रम के किस्से हम आए दिन सुनते ही रहते हैं। हो न हो उन्हीं से प्ररित होकर
रेलवे पुलिस अपना पराक्रम दिखा रही हो।
घर लौटकर गिरगिट को जनरल डिब्बे में यात्रा करने की सलाह क्या
दे दी, वह आग-बबूला हो उठा। बोला कि मुझे अभी अपनी जिं़दगी भार नहीं
लगती है। अभी दस-बीस साल और जीना है। जनरल डिब्बे के यात्रियों को बहादुरी के
पुरस्कार देने चाहिए।
उसके अनुसार हिंदुस्तान में नियमित रूप में जनरल में चलने वाला
यह प्राणी राजस्थान के बीहड़ रेगिस्तान से लेकर ध्रुवों तक पर आसानी से जी सकता है,
क्योंकि
उसे दो-दो, तीन-तीन दिन तक ही ठौर
पर और कभी-कभी एक ही पैर पर खड़े होकर बिना कुछ खाए-पिए यात्रा करने का सघन अभ्यास
हो जाता है।
डिब्बों के ऊपरी डंडों से बँधी लुंगियों में चमगादड़ से झूला
झूलते। नींद में बेबस किसी की नाक सिर भिड़ाकर उसे आहत करते और फिर गिड़गिड़ाते लोगों
को देखकर दया ही आती है क्रोध नहीं। इस दृष्टि से शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए
भी इन यात्रियों में से किसी को नामित किया जा सकता है।
यहाँ कभी-कभी गृहयुद्ध की स्थितियाँ बनते भी देर नहीं लगती। यह
गृहयुद्ध बढ़ते-बढ़ते कई डिब्बों तक फैलकर विश्वयुद्ध का भी रूप ले सकता है। जिस
रेलवे का ऐसा विराट स्वरूप हो, उसमें ऐसी छिट-पुट घटनाएँ तो उसके
इतिहास में स्थान भी नहीं पाएँगी।
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स्वागत सात अरबवें का
प्रिंट से लेकर इलेक्ट्रानिक मीडिया तक सात अरबवें बच्चे के
जन्म को लेकर हाय-तोबा मची हुई है। पहले यह बधाई नवाबों के शहर लखनऊ को मिलने वाली
थी फिर किसी और ने लपक ली। अभी कुछ पक्का नहीं कहा जा सकता कि इसका असली हकदार कौन
होगा। गिनीज बुक में किसकी फोटो छपेगी।
इस प्रसंग में अपने गिरगिट की राय गजब की है। उसका कहना है कि,
क्या
यह खबर कालाहांडी में पहुँची है? यदि नहीं पहुँची है तो तुरंत
पहुँचाओ.........। यह मेडल पक्का वहीं गिरेगा। अगर आप सही टेम बताओ तो मैं बता
सकता हूँ कि इसका असली हकदार कौन है क्योंकि जिस समय यह खबर टी.वी. पर आ रही थी उस
समय से 15 मिनट पहले अकेले मेरे गाँव में एक साथ सात-सात शिुशु अवतार ले
चुके थे। ठीक उसी समय तीन-चार कन्याएँ या तो तकिए से दबकर या परात के पानी को पीकर
परलोक जा चुकी थीं। यदि उन अभागी प्रसूताओं को पता होता तो सात अरबवें की सच्ची
हकदार इन्हीं में से कोई बच्ची होती। अपने देश की एक चौथाई जनसंख्या आंकड़ों में या
तो पैदा ही नहीं होती और सरकारी आँकड़ों में
किसी तरह पैदा करा भी दी जाए तो फिर मरती नहीं।
हमारे गिरगिट के अनुसार गाँवों की प्रसूति गृह की घुप्प अँधेरी
कोठरी में ढिबरी के उजाले में ठीक घड़ी भी नहीं देखी जा सकती और कोई देखने वाला मिल
भी जाए तो मानक समय से घंटों का अंतर पिए बैठी ये घड़ियाँ कब किसी को कुछ
देने-दिलाने देंगी? आज से तीन-चार दशक पहले के गाँवों में हमारे आप जैसों में से
कितनों के घर घड़ियाँ होती थीं? ऐसे में गाँव के मुखिया की घड़ी ही काम
आती थी। उसी से कुंडलियाँ काढ़ी जाती थीं। भविष्य का निर्धारण होता था। उन्हीं से
शादी-ब्याह जैसे अहम फैसले होते थे। इन्हीं घड़ियों और बनारस के खटखटिया प्रेसों
में छपे पंचागों ने मिलकर न जाने कितनों को मंगली करार देकर कोख से लेकर कब्र तक
क्वाँरा रखा।
गनीमत है कि हिंदू धर्म की तरह घड़ी घंटाल का बवाल अन्य धर्मों
में नहीं होता वरना ओसामा के पिता कितनी कुंडलियाँ मिलाते बनवाते। अभी हाल में असम
के एक ऐसे महान व्यक्ति का पता चला है जिसके शायद 40 पत्नियाँ और
94
बच्चे हैं। यदि इन महापुरुषों का दुनिया को यही योगदान आगे भी मिलता रहा तो जहाँ
एक अरब जनसंख्या बढ़ाने में बारह बरस लगे वहीं आगे यह अवधि घट कर साल दो साल से
ज्यादा नहीं रह पाएगी।
सात अरबवें गुमनाम बच्चे की खुशी में केक काटने वाला ही था कि
इतने में न जाने कहाँ से गिरगिट आ धमका। उसने मेरे हाथ से चाकू छीन लिया और बोला,
मूरख!
केक काटने के पहले क्या तुमने यह सोचा कि यह सात अरबवाँ बच्चा आखिर पैर कहाँ रखेगा?
क्या
इतनी जगह दुनिया में बची है कि वह अपना पाँव इस धरा पर टिका सके?
यह प्रश्न सुनते ही मेरे पावँ के नीचे की किराए की जमीन खिसकने
लगी। हकीक़त में तो वहाँ ज़मीन थी ही कहाँ, जो खिसकती? जहाँ
मैं खड़ा था वहाँ एक बहुमंज़िली इमारत के कुतुबमीनारी खंभों पर लटकी ग्यारहवीं मंज़िल
का वन बी.एच.के. फ्लैट था। खैर! उसे फ्लैट कहकर केवल मैं खुश होता रहा हूँ। वरना
उसके ढाई फुटे ट्वायलेट में फँसे मेरे ताऊ, चिकनी टाइल्स
पर लुढ़की मेरी माँ से पूछो तो वे इस फ्लैटिया कल्चर को सिरे से ही खारिज करते हैं।
उनके अनुसार इन फ्लैटों में यदि एक भैंस बाँध दी जाए तो वह सही से ढंग से साँस भी
न ले सकेगी।
खैर! यदि फ्लैट कल्चर विकसित न होती तो शहरों में ज़मीन पर पाँव
रखने की जगह न मिलती, विशेष रूप से महानगरों में फिर भी स्वागत है उस नरगिस का जो
दिला सकती है सात सौ करोड़वें व्यक्ति शिशु का तोहफा! हमारे महान देश भारत को।
.डॉक्टर गुणशेखर
ganga prasad sharma gunsekhar ke 2 vyangya
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