इन दिनों विश्व भर में अनुपयोगी पदार्थों की समस्या तेजी से बढ़ रही है। इन अपशिष्ट पदाथोंर् में दूषित जल, हवा, प्लास्टिक व इनसे बने उपकर...
इन दिनों विश्व भर में अनुपयोगी पदार्थों की समस्या तेजी से बढ़ रही है। इन अपशिष्ट पदाथोंर् में दूषित जल, हवा, प्लास्टिक व इनसे बने उपकरण, धातुगत अपशिष्ट पदार्थ, उर्बरक, रबड़, कपड़ा, औषधियां आदि हैं। वैज्ञानिक इन पदार्थों से छुटकारा पाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। ताकि इन अनुपयोगी व्यर्थ के पदार्थों से छुटकारा दिलाकर पर्यावरण को शुद्ध किया जा सके।
भारत में 142 प्रथम श्रेणी के नगरों में उत्पन्न होने वाले मल जल की निकासी की व्यवस्था मुश्किल से 4 प्रतिशत जनता को उपलब्ध है। राजस्थान में तो और भी खराब स्थिति है। सनृ 2010 तक वायु में प्रदूषण की मात्रा 19,709 लाख टन से बढ़कर 50,969 हो जाने की संभावना है। दिल्ली में मात्र 25 प्रतिशत जनसंख्या को अपशिष्ट जल के निराकरण की सुविधा है। शेष जनसंख्या इसी जल को काम में लेने को अभिशप्त है।
अनुपयोगी पदार्थ या कूड़ा कचरा या अपशिष्ट पदार्थ अनेक स्त्रोतों से निकल कर पूरे समाज, देश, जल, वायु को प्रभावित करते हैं। मनुष्य चीजों का उपभोग करता है। अनुपयोगी हो जाने पर इन चीजों को काठ-कबाड़ के रूप में फेंक देता है। कूड़े के ढेर कालान्तर में विश्वव्यापी समस्या बन जाते हैं।
मनुष्य, जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों के अलावा अपशिष्ट पदार्थों के सबसे बड़े उत्पादक हैं - उधोग धन्धे, फैक्टरियां, मिलें, परमाणु-भटि््टयाँ आदि। ज्यादातर उधोग धन्धे अपना बेकार माल, काठ-कबाड़, कूड़ा-कचरा खुले में या नदी नालों में फेंक देते हैं।
इन अपशिष्ट पदार्थों को वैज्ञानिकों ने तीन भागों में विभाजित किया है। (1)मल-मूत्र (2) गंदा पानी (3)कूड़ा-कचरा। जब ये हारिकारक पदार्थ नदियों में आते हैं तो नदियों को विषैला बनाते हैं। समुद्र में भी प्रदूषण की मात्रा बढ़ रही है। पिछले दिनों हुए इराक के युद्ध में समुद्र में टनों तेल छोड़ दिया गया हजारों पक्षी मर गए। इसी क्रम में प्लास्टिक की थैलियां जो आजकल सर्वत्र प्रयोग में आ रही है,इनको नष्ट करने की समस्या बढ़ी व्यापक है। अब दिनोदिन प्लास्टिक का प्रयोग बढ़ रहा है और इसके कारण प्लास्टिक कूड़ा-कचरा भी बढ़ रहा है। इसे जलाने के भी खतरे हैं क्योंकि जलाने पर सायनोजन गैस बनती है जो बहुत विषैली होती है। अमेरिका और अन्य विकसित देशों में इन थैलियों का निस्तारण एक बड़ी समस्या बन गयी है।
खेतों में काम में आने वाले विभिन्न खादों के कारण भी नदियों के जल में प्रदूषण बढ़ रहा है। इसी प्रकार परमाणु भटि्टयों से निकलने वाला परमाणु अपशिष्ट बहुत खतरनाक है। इस कचरे से कैंसर जैसा भयानक रोग हो सकता है। भारत में अपशिष्ट पदार्थों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में हर साल करोड़ों टन घरेलू कूड़ा-कचरा निकलता है। उद्योग-धन्धों का इस कचरे में योगदान 15-20 प्रतिशत होता है।
भारतीय नदियों में 1085 किलोलीटर कचरा प्रति वर्ष बहा दिया जाता है। रासायनिक खादों के कारण विषैली गैसें हवा में छोड़ी जाती हैं। इनमें सल्फर-डाइ-आक्साइड, कार्बन-मोनो-आक्साइड, गंधक अम्ल, नाइट्रोजन के आक्साइड आदि प्रमुख हैं। कपड़ा उद्योग भी इसी प्रकार से विषैली पदार्थों को निकालता है।
अपशिष्ट पदार्थों के कारण पर्यावरण की समस्याएं बढ़ रही है, तथा इनसे संबंधित लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कई तरह की बीमारियाँ अपशिष्ट पदार्थों के कारण होती हैं।
इस परिस्थिति पर विचार कर के अब यह तय किया जा रहा है कि इन विषैले, अपशिष्ट पदार्थों का निपटाने के लिए विशेष कार्य योजनाएं बनाई जाएं। इसी प्रकार इन पदार्थों को पुनः काम में लाने के प्रयास भी किये जा रहे हैं।
भारत सरकार ने 1975 में शिवरामन की अध्यक्षता में इस कार्य हेतु एक समिति का गठन किया था। समिति ने ये सुझाव दिये।
(1) बड़े-बड़े कूड़ेदान स्थापित किये जाएं।
(2) मानव द्वारा अपशिष्ट जल, मल-मुत्र के निकासन हेतु उचित व्यवस्था की जाए।
(3) बाजारों में कूड़ा-कचरा उठाने की समुचित व्यवस्था की जाए।
(4) कूड़े के ढ़ेरों को जलाकर भस्म करने की विधि काम में लायी जाए।
(5) सुविधाजनक सफाई व्यवस्था की जाए।
अपशिष्ट पदार्थों के पुनः कागज बनाना, लोहे की कतरन से पुनः स्टील बनाना, एल्युमिनियम के टुकड़ों से पुनः एल्युमिनियम बनाना आदि काम शुरू किये गए हैं। इसी प्रकार प्लास्टिक की थैलियां, जुते-चप्पल आदि का भी पुनः प्रयोग किया जाने लगा है।
दिल्ली, अहमदाबाद, मद्रास और कलकता जैसे शहरों में पुनः चक्रण के कारखाने स्थापित किये जा रहे है। कुल मिलाकर इन अपशिष्ट पदार्थों से पूरी दुनिया परेशान है। यह विकास के लिए किये कार्यों का प्रतिफल है। विकास से उत्पन्न समस्याओं में एक है प्रदूषण और अपशिष्ट पदार्थ।
विकासशील देशों को इस ओर अभी से ही ध्यान देना चाहिए ताकि इन पदार्थों से उत्पन्न होने वाले खतरों से मानवता को बचाया जा सके। आगे ये खतरे और बढ़ेंगे और तब शायद इन खतरों पर नियंत्रण करना मुश्किल होगा क्योंकि तब तक ये खतरे पर्यावरण और प्रकृति को निगल चुके होंगे। प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए भी अपशिष्ट पदार्थों पर नियंत्रण आवश्यक है। कचरे, गन्दगी के ढ़ेरों से कई प्रकार की बीमारियां भी हो जाती हैं। कई बार संक्रामक रोग फेल जाते है। परमाणु कचरे से रेडियोएक्टिव किरणें निकलती हैं जो हानिकारक हैं, अतः अनुपयोगी पदार्थों की इस विश्वव्यापी समस्या पर कठोर नियंत्रण से ही काबू पाया जा सकता है।
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