मूलतः दीपोत्सव ‘श्री' अथवा लक्ष्मी का आव्हान-पर्व है। लक्ष्मी की चर्चा ऋगवेद में सबसे पहले हुई है। ‘श्री' धन-देवी हैं तथा भगवान...
मूलतः दीपोत्सव ‘श्री' अथवा लक्ष्मी का आव्हान-पर्व है। लक्ष्मी की चर्चा ऋगवेद में सबसे पहले हुई है। ‘श्री' धन-देवी हैं तथा भगवान विष्णु की पत्नी हैं। जब हरि ने बावन रूप धारण किया तो लक्ष्मी पद्म कमल के रूप में अवतरित हुईं।
दीपावली उत्साह का पर्व है। अधिकतर ग्रंथों में इस पर्व को दीपावली और कहीं-कहीं दीपमालिका (भविष्योत्तर, अध्याय 14 उपसंहार) की संज्ञा दी है। वात्सायन कामसूत्र 1.4.82 के अनुसार ‘यक्षरात्रि' तथा राज मार्तण्ड 1346-1348 के आधार पर ‘सुखरात्रि' कहते हैं। निर्णय सिंधु, काल तत्व विवेचन (पृ.315) के अनुसार यह पर्व चतुर्दशी, अमावस्या एवं कार्तिक प्रतिपदा इन तीनों दिनों तक मनाया जाने वाला कौमुदी-उत्सव के नाम से प्रसिद्ध है।
मूलतः दीपोत्सव ‘श्री' अथवा लक्ष्मी का आव्हान-पर्व है। लक्ष्मी की चर्चा ‘श्री' धन-देवी हैं तथा भगवान विष्णु की पत्नी हैं। जब हरि ने बावन रूप धारण किया तो लक्ष्मी पद्म कमल के रूप में अवतरित हुई। जब विष्णु परशुराम के रूप में आए तो लक्ष्मी ‘धरनी' कहलायीं। राम के साथ सीता तथा कृष्ण के साथ रूक्मिणी बनकर वे सदैव विष्णु की पत्नी बनती आयी है।
पुरातन संस्कृति को जीवित रखने के लिए हम दीपावली का पर्व हर्षएवं उल्लास के साथ मनाते हैं। वस्तुतः दीपावली का उत्सव 5 दिनों तक, पांच कृत्यों के साथ मनाया जात है यथा-धनतेरस अर्थात् धन-पूजा, नरक चतुर्दशी अर्थात् नरकासुर पर विष्णु विजय का उत्सव, लक्ष्मी पूजा ‘श्री' का आव्हान पर्व, द्यूत दिवस अर्थात् भाई दौज के नाम से बहन-भाई के प्रेम का आदान-प्रदान का उत्सव। इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इन पांचों दिनों में दीपदान, गाय-बैंलों की पूजा, गोवर्द्धन, नव वस्त्र धारण करना, द्यूत क्रीड़ा, एक माला बांधना आदि कृत्य किए जाते हैं।
लक्ष्मी पूजन के समय, विश्ोषकर व्यापारी वर्ग ‘शुभ-लाभ' अवश्य लिखता हैं। शुभ-लाभ के माध्यम से भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पक्ष सामने आता हैं हमारी संस्कृति से अक्षर को ब्रहा्रा कहा गया है। साथ ही शब्दों के नाद को ईश्वरीय ध्वनि माना जाता है। ‘शब्द' ध्वनि में एक शक्ति निहित रहती हैं इन शब्द-ध्वनियों का ठीक-ठीक प्रयोग सांकेतिक गति प्रदान कर लक्ष्यगामी बनाता हैं। शब्द शक्ति के बारे में प्राचीन ग्रन्थों में स्पष्ट किया गया है कि ‘शब्द-नाद' ही सृष्टि का प्रथम ‘आद्य-नाद' है। यही नाद विश्व के निर्माण तथा पदार्थो को उत्पन्न करने के कार्य में अग्रसर होता है।
प्रत्येक शब्द में एक गूढ़ार्थ दिया रहता है। शब्द में निहित बिम्ब एवं भावना उसे नए-नए अर्थ प्रदान करती है। भारतीय संस्कृति का प्रतीक चिन्ह है ‘स्वास्तिक'। इसे भी लक्ष्मी पूजन के समय अंकित करते हैं। ‘शुभ' एवं ‘लाभ' शब्दों में व्यापक अर्थ तथा सामाजिक भानवनाएं छिपी हुई है। शुभ से तात्पर्य है ‘कल्याण्कारी'। ऐसे कार्य जिनसे अधिक से अधिक लोगों का कल्याण, जो सामान्य मानव हित, मानव गरिमा तथा मानवीय प्रतिष्ठा के अनुरूप हों- ‘शुभ' के अंतर्गत् आते हैं।
‘शुभ' शब्द भावनात्मक होने के साथ-साथ निराकार का द्योतक है। इस शब्द का विस्तार अनन्त हैं इस सूक्ष्म शब्द का अहसास भर किया जा सकता है, शाब्दिक अभिव्यक्ति एवं शुभकामनाओं का भाव जागृत हो उठाता है। ‘शुभकामना संदेश' ईश्वरीय वाणी के समान चमत्कार उत्पन्न करने वाले होते हैं।
‘लाभ' शब्द भौतिक उपलब्धियों का परिचायक है। यह समृद्धि में निरन्त वृद्धि का संदेश देता हैं इस शब्द को अंकित कर हर आने वाले की समृद्धि, वृद्धि की कामना के साथ मानो हम अपनी समृद्धि ओर उसकी वृद्धि की भी कामना रखते हैं। परस्पर लाभ के प्रयासों से सामाजिक बंधन सुदृढ़ होते हैं एवं उन्हें गतिशीलता मिलती हैं जब तक हम एक-दूसरे के लिए उपयोगी और लाभकारी नहीं होगे, तब तक व्यवहारिक रूपसे हम एक-दूसरे के संबंधों का निर्वाह करने में भी असमर्थ रहते हैं।
दीपावली के दिन ‘शुभ-लाभ' शब्दों का बड़ा ही गूढ़ अर्थ हैं इन शब्दों के चंदन, गेरू, रंग या पेंट से लाल-पीले रंगों से पूजा के स्थल के अतिरिक्त दरवाजों पर भी लिखा जाता है। दाहिनी ओर शुभ तथा बाईं ओर लाभ लिखकर भावनातमक एंव व्यापहारिक आदर्श की भावना को अभिव्यक्ति देते हैं।
दीपावली, साधकों के लिए एक प्रमुख पर्व है। तांत्रिक तो इसे महापर्व के रूप में स्वीकारते हैं। इस दिवस पर बड़े-बड़े तांत्रिक अपनी मंत्र साधना को जगारण कर सिद्ध करते हैं वैसे यह पर्व ज्ञान का प्रतीक पर्व हैं अन्धकार में भटकते मानव समाज को नवीन प्रकाश-किरण देने में समक्ष यह पर्व स्वयं में अनेकानेक परम्पराओं को समेटे हुए हैं। दीपावली के दिन दीपदान करने का विश्ोष महात्म है दीपदान करने से लक्ष्मी स्थिर होती है। होती हैं वैज्ञानिक दृष्टि से वर्षा ऋतु के पश्चात, जहरीले जंतुओं से बचाव के लिए लोग तालाब, कुंओं, मंदिरो, चौराहों पर दीप जलाया करते थे। दीप जलने के स्थान पर कीड़े इकट्ठे होकर मन जाते हैं वर्षा ऋतु में धूप की कमी के कारण वायुमंडल में रोग के कीटकाणुओं का बाहुल्य हो जाता हैं। इस स्थिति में जलते हुए दीपकों की ओर आकषिर्त होकर कीटाणु स्वयं ही अपनी आहुति दे देते हैं।
सामयिक परिप्रेक्ष्य में बदलते युग संदर्भो के साथ आज दीपावली की मान्यताओं में भी अन्तर आ चुका हैं। दीपावली की रात्रि में अब मिट्टी के दीयां के स्थान पर मोमबत्तियां और बिजली की झालर लगाकर में दीपावली का मूल उद्देश्य कहीं भी दृष्टिगत नहीं होता है।
जीवन में अनेक प्रकार के अंधकार घिरे रहते हैं। जो व्यक्ति समाज और राष्ट्रीय खुशी में कड़वाहट का जहर घोल देते हैं। दीपावली पर तेल से भरा जलता हुआ छोटा सा दीपक यह संदेश देता है कि तिल-तिल कर जलना और प्रकाश बिखेरना जिस प्रकार दीपक का धर्म है, उसी प्रकार उत्सर्ग मानव धर्म हैं उत्सव-पार्वो का उद्देश्य होता है आपस में खुशियां बांटना। अगर कोई अकेला है और दुखी भी तो उसे साथ लेकर उल्लासित हो। जहां निराशा का अंधेरा नजर आए वहां दीपक जलाकर उत्साह का प्रकाश बिखेरा जाए। प्रेम सद्भाव के बिना काई भी पर्व अधूरा हैं। वैसे भी यह एक ऐसा पर्व है जिसके साथ पौराणिक, ऐतिहासिक, राष्ट्रीय और सामाजिक सभी भावनाएं एवं मान्यताएं जुड़ी हुई है।
दीपावली प्रकाश पर्व के नाम से जाना जाता हैं। दीप ज्योति ज्ञान की प्रतीक है। ‘तमासो मां ज्योतिर्गमय' ही इस पर्व का उद्देश्य है। इस अवसर पर हमें ऐसा संकल्प लेना होगा जो देश की वर्तमान स्थितियों में राष्ट्रीय एकता, अखंडता के लिए सेतु बन सके। आज लक्ष्मी प्रसन्न कराने के लिए ठेके पर कराए जाने वाले सस्ते-मंहगे अनुष्ठानों के स्थान पर आत्मिक निष्ठा एवं सदाचार की भी आवश्यकता है। मानव मात्र के कल्याण एवं मंगल के लिए सामंजस्यपूर्ण जीवन प्रणाली और प्रगतिशील सामाजिक संस्कृति को स्वीकारना होगा। अपनी संस्कृति की रक्षा एवं सांस्कृति गौरव को बनाए रखने के लिए समाज एवं राष्ट्र में व्याप्त असंगतियों को दूर करने की आवश्यकता का अनुभव करना होगा। तत्पश्चात निरन्तर सहयोगी बनकर अपने दायित्व का निर्वाह करने के लिए ‘प्रकाश पर्व पर लिया हुआ सत् संकल्प सफल हो सकता है' यह अवधारणा करनी होगी।
लक्ष्मी पूजा की सार्थकता, राष्ट्रहित एवं विश्व शांति सभी कुछ हमारे इन ठोस अनेकता में एकता के साथ हमारी पहचान है एवं राष्ट्रीय एकता का आधार है। उत्सवों की परम्परा में दीपोत्सव एक ऐसी परम्परा है जो सामाजिक जीवन को संस्कारी बनाती है। दीपावली का दिन भारत की अनेक विभूतियों के जीवन-प्रसंगों से संबंधित है। यह दिवस धार्मिक समन्वय का प्रतीक है। किसी भी राष्ट्र के विकास में उसका आधार केवल आर्थिक नहीं होता, अपितु उसमें महापुरुषों की तपस्या, उत्सर्ग, साधना, परोपकार के संदेश भी रहते हैं। लक्ष्मीपूजन और ज्योति पर्व पर सत्य-असत्य, अंधेरा-प्रकाश में अंतर समझने की आवश्यकता है। रात भर जागे दीपक का प्रभासित रखने से कल्पना लोक में लक्ष्मी के कठोर धरातल पर नहीं। अच्छा यही होगा कि हम अपने वैभव और सुख का भागीदार निरीह और विवशता से जी रहे लोगों को बनाएं और दूसरों का भला सोचने के लिए हमें एक ऐसे दृष्टि चाहिए जो उस ज्योति के दर्शन करा सके।
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
राजसदन-120/132 बेलदारी लेन
लालबाग, लखनऊ
बहुत सार्थक रचना ..
जवाब देंहटाएं.. आपको दीपोत्सव की शुभकामनाएं !!