लखनदादा अम्बेडकर चबूतरे से उठकर कुछ कदम चले ही थे कि गश खाकर गिर पड़े। कुछ ही देर पहले उन्हे लडखड़ाते हुए चलता देखकर बच्चे ही नहीं बूढे...
लखनदादा अम्बेडकर चबूतरे से उठकर कुछ कदम चले ही थे कि गश खाकर गिर पड़े। कुछ ही देर पहले उन्हे लडखड़ाते हुए चलता देखकर बच्चे ही नहीं बूढे भी हंस रहे थे परन्तु लखनदादा को गिरते ही पूरी बस्ती दौड़ पडी। सोखाराम उनके मुंह पर नाक रखते हुए बोला भइया पीये तो है नहीं फिर लड़ाखड़ाकर गिरे क्यों ? चल तो रहे थे बिल्कुल शराबियों जैसे, भईया पीते है सबको मालूम है इसीलिये सबके सब हंस रहे थे। इतने में हंसवन्ती बोली अरे तुम सब दूर हटो,हवा आने दो। जेठजी पीये नहीं है। कोई तकलीफ है कल बहुत चिन्तित थे बेटवा के नौकरी को लेकर। सोखाराम करिया से बोले बाबू जल्दी से हंसवन्ती की खटिया उठा ला। लखनदादा को लेटाकर खटिया टांग कर हंसवन्ती के घर के सामने नीम के पेड़ के नीचे खटिया रख दिये। लाली बेना से दनादन हवा करने लगी। सोखाराम तनिक भर में हैण्डपाइप से लोटा भर पानी लाकर गमछा भीगों कर लखनदादा का मुंह धोकर शरीर पोंछने लगे। कुछ देर के बाद लखनदादा बोले मैं कहां हूं। लखनदादा की छोटी बहू,बेटा हरेन्द्र नाती सब घेर लिये थे। पोती पुष्पा तो पांव पकड़कर रोये जा रही थी।
हंसवन्ती-जेठजी हमारी नीम की छांव में हो जंगल में नहीं हो। जंगली जानवर नहीं बस्ती के लोग घेरे हुए है।
सोखाराम-क्या हंसवन्ती तूझे मजाक सूझ रहा है। देख रही है भईया के गले से आवाज निकल नहीं रही है,तू मजाक कर रही है। इतने में करिया बोला-कक्का गांजा है बना लूं क्या ? सोखाराम चुप तेरी मां को भौजाई कहूं। देख रहा है जान की पड़ी हैं तूझे गांजा की पड़ी है।
हंसवन्ती-करिया ठीक कह रहे है हो सकता है खाली पेट गांजा का धुआं मन भर-भर कर उड़ाये हो। गांजा लग गया है।
करिया-मेरे सामने तो कक्का गांजा पीये नहीं है। मेरे साथ तो कक्का गांजा पीये नहीं बाकी और किसी के साथ पीये हो तो मैं नहीं जानता।
सोखाराम-देखो भईया ना गांजा पीये है ना दारू यह तो कनफरम है। होश में आने दो दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा। इतने में लखनदादा कराहते हुए उठने लगे। सोखाराम हाथ पकड़कर बोले भईया लेटे रहो जीव ठौरीक हो जाने दो फिर हम घर छोड़ देगे। लखनदादा पानी का इशारा किये। हंसवन्ती दौड़कर हैण्डपाइप से लोटे में पानी भर लायी और उनके मुंह में लोटा लगा दी। लखनदादा आंख बन्द किये ही पानी डकार खटिया पर लेट गये।
करिया-काका तूने कक्का को छू दी। कक्का तो तेरे भसूर है और तेरे खानदान के है,पाप लगेगा।
हंसवन्ती-करियाबाबू ढकोसला में अब मेरा विश्वास नहीं रहा। किसी के जान की पड़ी तुम ना छूने की बात कर रहे हो। पानी पी लाना जरूर था वही हमने किया, रूढिवाद जहर है,ढकोसलाबाजी आज के जमाने में उचित नहीं है।
सोखाराम-तुम लोग तनिक चुप रहो। करिया भईया को सहारा देकर बैठाओ,बैठने का इशारा कर रहे है। मैं डां.नरेन्द्र को आवाज देता हूं।
करियाराम- ठीक है कौन सा बड़ा डाक्टर है नीमहकीम खतरे ही जान।
हंसवन्ती-भले ही डांक्टर नहीं है मुसीबत के समय में तो डां.नरेन्द्र ही काम आते है। राहत तो उनकी दवा से मिल जाती है,बुखार आ जाये तो पांच कोस पैदल चलकर कोई दवाई लेने जायेगा। पता चले कि रास्ते में दम तोड़ दिया। मौंके पर तो नरेन्द्र बाबू काम आते है, कितने बरसों से डाक्टरी कर रहे है,अच्छी जानकारी हो गया है। इतने में डांक्टर नरेन्द्र भी आ गये। डाक्टर के आते ही लखनदादा तनकर बैठ गये। लखनदादा को तनकर बैठते हुए देखकर करिया बोला क्या नरेन्द्र थोड़ी देर पहले आ जाते तो काका गिरते भी नहीं।
डां.नरेन्द्र लखन दादा का हाथ पकड़कर कुछ देर मुआयना करने के बाद बोले दादा कैसा लग रहा है। धड़कन तो ठीक चल रही है। कुछ याद है कैसे गिरे थे।
लखनदादा-कुछ भी नहीं। चबूतरे से उठा हूं घर जाने के लिये चला था बस इतना याद है।
डां-कोई बात सोच रहे थे क्या ?
लखनदादा-शोषित आदमी की दौलत क्या है सपना कहों या सोच। सपने में जीने वाले को सपने देखने लायक ना छोड़ा जाये तो दुख तो होगा। कह कर लम्बी-लम्बी सांसे भरने लगे।
डां-दिल को ठेस लगी है किसी बात से। बहू ना कुछ अनुचित कह दिया हो तो मैं उसकी तरफ से क्षमा मांग लेता हूं।
हंसवन्ती-जेठ जी की बहूये जैसे पूरे गांव में कोई बहू नहीं होगी। कितनी सेवा करती है। वे तो गाय है,मुंह नहीं खोल सकती कितनों भी तकलीफ उठा लें।
करिया-नरेन्द्र तू डाक्टर है या नेता। अरे भाई दवाई दे ना।
डां.नरेन्द्र करिया भईया ना जर है ना बुखार मेरी जानकारी के अनुसार कोई दिल की बीमारी भी नहीं है। कभी -कभी ऐसा होता है सोचते-सोचते चक्कर आ जाता है आदमी गिर पड़ता है घबराने की कोई बात नहीं हो सके तो कांफी पा ला दो। घबराने की कोई बात नहीं है,काका घबराहट हो तो एक गोली खा लेना बस। चिन्ता नहीं करना सब ठीक हो जायेगा।
लखननदादा-कलयुगी आदमी की दोगली मानसिकता कुछ नहीं ठीक होने देगी डाक्टर बाबू।
डांक्टर-चक्कर आने का कारण कुछ और है।
लखनदादा-दो महीने से भरपूर नींद नहीं आ रही है।
सोखाराम-ऐसा क्या हुआ भईया रोज साथ बैठते हैं कभी जिक्र भी नहीं किये। अरे बात कहने से दिल हल्का हो जाता तुम खुद दूसरों को उपदेश देते रहते हो।
लखनदादा-समाधान अपने हाथ में नहीं है ना। कह कर भी क्या करता नमूसी होती लोग हंसते भी।
करियाबाबू-कौन ऐसी गुस्ताखी कर सकता है इस बस्ती में जो किसी के दुख पर हंसे। मजदूरों की बस्ती में तो ऐसी हंसी नहीं होती। हां मालिकों के बारे में पक्का कहा नहीं जा सकता क्योंकि उनके मन में राम तो बगल धारदार खंजर होती है।
लखनादादा-कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ।
सोखाराम-तुम्हारे साथ भईया किसने किया बताओ उसकी जीभ हलक से खींच लेते हैं।
डांक्टर-काका मन पर बोझ ना रखा करो। चिन्ता चिता होता है।
लखनदादा-जानता हूं डांक्टर बेटवा पर जिस आसरे में जी रहा था उसकी उम्मीद ही खत्म हो गयी।
हंसवन्ती-किस आसरे की उम्मीद टूट गयी जेठ जी। लड़के दोनों कमा रहे है,खाने पीने पहनने की कोई कमी नहीं है फिर कौन उम्मीद टूट गयी।
लखनदादा-हंसवन्ती तुमको पता है हम कितनी तकल्ीफ उठाकर बेटवा को पढाये है। बेटवा भी हिम्मत वाला है कभी-कभी तो खाली पेट भी स्कूल गया है। खाने पहनने की बहुत तंगी थी। सेर भर कमाई में परिवार पालना बहुत कठिन काम था इसके बाद भी हमने पाला-पोसा ख्ौर सरकारी वजीफे की सहायता को भी भूला नहीं सकता। बड़ी मदद मिली वजीफे से बेटवा शहर में बहतु तकलीफ उठाया भूखे राते काटी,सगे रिश्तेदारों ने कन्नी काट ली। मेरा बेटा भी अपना स्वाभिमान नहीं मरने दिया,मेहनत मजदूरी करके खाया और हमें भी देता रहा।
हंसवन्ती-तुम्हारे लायक बेटे का किस्सा तो बस्ती वाले अपने बच्चों को सुनाते है। इसमें कोई नयी बात तो नहीं है।
लखनदादा-है। करिया बताओ तब तो कुुछ सूझे। इतने में रविन्द्र गिलासय थमाते हुए बोला लो बड़े पापा काफी पी लो। डाक्टर भईया बोले थे ना। मैं उनकी बात सुनकर भागकर बाजार गया वहीं से लाया।
हंसवन्ती-चार कोस से काफी लाया।
रविन्द्र-काफी की पुड़िया दुकान से खरीदा फिर चायवाले के पास गया उसको बनाने नहीं आ रहा था। वही से दूध लिया घर में खुद बनाकर लाया हूं।
लखनदादा-युग-युग जी मेरे लाल इतनी मेहनत किया है तो पीना ही पड़ेगा वैसे कुछ खाने पीने की इच्छा नहीं है। सब इच्छा जैसे मर गयी है।
रविन्द्र-दादा ये बतौर दवाई पीना है।
लखनदादा-हां बेटा पी रहा हूं। लखनदादा फंूक-फंूक कर कांफी पीये। कुछ देर बाद उनका मनठौरिक हुआ। वे घर जाने के लिये उठने लगे। इतने में सोखाराम कंध्ो पर हाथ रखते हुए बोला भईया और आराम हो जाने दो फिर घर जाना कौन सा दूर घर है। हरेन्द्र थोड़ी देर और रूक जाओ बाबूजी फिर ले चलता हूं।
लखनदादा-मैं आ जाउंगा तुम लोग घर चलो। गाय चिल्ला रहा है।
हंसवन्ती-हरेन्द्रबाबू देखो बछ़डा छुडा तो नहीं लिया है। हरेन्द्र घर की ओर देखकर बोला हां कतवारू के खेत में बछडा़ चला गया। जा बेटा पुष्पा पकड़कर बांध दे। वैसे अभी तो घास भी नहीं खाने लायक है पर कतवारू की गाली हमें खानी पड़ेगी।
सोखाराम-भईया आपको किस बात की चिन्ता है वो तो बता ही नहीं रहे हो।
लखनदादा-सोखा बात मेरे जीवन स जुड़ी है तू क्या पूरा गांव जानता है,मेरी आख भी नहीं खुली थी कि बाबूसाहब की चाकरी में लगना पड़ा था क्योंकि मेरे पिताजी आजादी से पहले कलकत्ता में नौकरी करते थे। घर अच्छे से चल रहा था सालों बाद ना जाने कहां गायब हो गये। मजबूरी में मुझे हलवाई करनी पड़ी थी। उस समय सेर भर मजदूरी दोपहर तक की मिलती थी चार बजे जाना पड़ता काम पर जब बाबू साहब की नींद खुद गयी हांक लगवा देते थे उस समय जाना ही पड़ता था। छोटा भाई और बहन के पालन का बोझ सिर पर आ गया था। मां भी कुछ महीनों बाद अंधी हो गयी थी वह अलग मुसीबत थी छुआछूत का जहर आदमी होकर भी जानवरों से बदत्तर बना रखा था। अब तो हालात में काफी सुधार है ख्ौर लाख मुसीबतों को झेलकर बड़ा बेटा लिख पढ गया। सोचा कि अपने भी दिन आयेगे बड़ी उम्मीद थी कि बेटा बड़ा साहब बन जायेगा पर सपने मार दिये गये।
करियाबाबू-कक्का किसने मारा तुम्हारे सपने,किसने कमलेन्द्र की योग्यता का चीरहरण किया है,चलों हम पूरी बस्ती के लोग उसकी आंखें खोल देते है।
लखनदादा-किस-किस की आंखों खोलोगे,दुर्योधन तो हर विभाग में पालथी मारे बैठे है,जातिवाद का जहर छोड़कर राज कर रहे है।
सोखाराम-भईया तुम्हारा सपना कैसे मरा समझ में नहीं आ रहा है।
लखनदादा- कमलेन्द्र अब बड़ा साहब नहीं बन पायेगा।
करियाबाबू-क्यों नहीं काका वह तो बहुत पढालिखा है। वह तो कम्पनी का ब्राण्डअम्बेसडर बन सकता है।
लखनदादा-जो बनने का हक था वह तो मिल ही नहीं रहा है,बा्रण्डअमबेसडर की बात कर रहे हो।
हेरन्द्र-अधिक योग्यता और अधिक वफादारी उपर से नीचले तबके का,कहावत है ना एक तो करैला दूसरे नीम के पेड़ पर चढ जाये। खूबियों की वजह से भईया की तरक्की के रास्ते बन्द कर दिये भईया सेमीगर्वमेण्ट कम्पनी में काम करते है। सरकारी नियम शायद लागू नहीं होते है इसीलिये मनमर्जी चल रही है,कम्पनी की चाभी वर्णिकश्रेष्ठ और समानता विरोधी हाथों में है इसीलिये भईया के साथ अत्याचार हो रहा है ज्वाइन करने के कुछ महीने बाद से ही जब लोगों को पता चला कि भईया नीचले तबके के है। सुनने में आ रहा है कि भईया की सी.आर.खराब कर दी गयी है।
सोखाराम-ये क्या होता है।
करियाबाबू-दफतरों में कम्पनियों गोपनीय रिर्पोट बनता है। इसी के आधार पर प्रमोशन होता है। अगर कमलेन्द्र की सी.आर खराब की गयी है तो ये तो भ्रष्टाचार अत्याचार और नीचले तबके के योग्य वफादारी कर्मचारी के भविष्य का ही नहीं उसके परिवार,पूरे गांव की उम्मीदों का बलात्कार कर दिया गया है घटिया मानसिकता के अफसरो ने,सरकारी आरक्षण के बाद भी ऐसा घिनौना कृत्य है जातिवाद से उत्प्रेरित।
छिन लिया खुशी का इक कतरा तूने
क्या कहूं तुम्हे तो हमने
खुदा समझा था पर ये मेरी भूल थी
प्रच्छेदन कर दिया तुमने
रोम-रोम रो उठे है
पलकों के बांध
मजबूत हो गये है इतने
अब तो टूटते ही नहीं
हमें तो उम्मीद में जीना है
जिन्दगी जहर है तो पीना है
निक नहीं किया तुमने
उम्मीद का कतरा था इक
वो भी लूट लिया तुमने........
हंसवन्ती-ये तो सरासर अन्याय है,बताओ बड़े-बड़े पढे-लिखे अफसरों की इतनी गिरी हुई सोच है तो गांव के रूढिवादी गंवारों के बारे मे देखो।
हरेन्द्र-बाबूजी अब घर चलो। खाना खाकर आराम करो। भईया की नसीब में होगा बड़ा अफसर बनना तो कोई रोक नहीं पायेगा। भईया के पास ज्ञान का भण्डार है दुनिया उनको मानती है,मत दे कम्पनी वालो प्रमोशन। प्रमोशन देने से तो कम्पनी का मान बढता लोग कहते देखो फला कम्पनी में कमलेन्द्र बड़ा साहब है पर कम्पनी प्रबन्धन ने तो अपनी साख गिरा ली है,जबकि भईया से बहुत कम पढे लिखे बड़े-बड़े पदो पर है,दुर्भाग्यवश वही नसीब लिख रहे है। देखना भईया के सामने यही नसीब लिखने वाले एक दिल सिर झुकायेगे।
लखनदादा-बाद की बात है बेटा अरे प्रमोशन दो साल के बाद होता या ना होता,बेटवा की नौकरी चलती या ना चलती पर एक कर्मशील,वफादार,इर्मानदार व्यक्ति के चरित्र पर लांछन आरोप ये कैसे भ्रष्ट लोग है।
हंसवन्ती-ये तो सीता का त्याग या शंबुक ऋषि का वध हो गया। बुद्ध,महात्मा गंाधी और अम्बेडकर बाबा के देश में ऐसा भ्रष्टाचार।
लखनदादा-हां हंसवन्ती कर्म को पूजा,उच्च शिक्षित,प्रतिष्ठित निरापद बेटवा को चरित्रहीनता का आरोप तो चैन छिन लिया है। ना जाने कब भ्ोदभाव जैसे अमानीय दर्द से छुटकारा मिलेगा ?
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नन्दलाल भारती.... 12.10.2011
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जनप्रवाह। साप्ताहिक। ग्वालियर द्वारा उपन्यास-चांदी की हंसुली का धारावाहिक प्रकाशन
उपन्यास-चांदी की हंसुली,सुलभ साहित्य इंटरनेशल द्वारा अनुदान प्राप्त
लैंग्वेज रिसर्च टेक्नालोजी सेन्टर,आई.आई.आई.टी. हैदराबाद द्वारा रचनायें शैक्षणिक एवं शोध कार्य।
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