एस. के. पाण्डेय का व्यंग्य - भ्रष्टाचार की जरूरत

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चिम्मनलाल जी से पूछा गया कि आप तो जनतंत्र के समर्थक थे। आखिर भ्रष्टतंत्र में कैसे सम्मलित हो गए ? आप लोगों ने जनतंत्र का इतना बुरा हाल क्य...

हास्य व्यंग्य

चिम्मनलाल जी से पूछा गया कि आप तो जनतंत्र के समर्थक थे। आखिर भ्रष्टतंत्र में कैसे सम्मलित हो गए ? आप लोगों ने जनतंत्र का इतना बुरा हाल क्यों कर दिया ? क्या आप जनतंत्र का कोई भी ऐसा तन्त्र बता सकते हैं जिसमे भ्रष्टाचार न हो ?

चिम्मनलाल जी बोले भ्रष्टाचार है तो लेकिन इसमें बुरा क्या है ? ज्यादा हैरान या परेशान होने की जरूरत नहीं है। भारत जैसे देश के लिए यह अच्छा संकेत है। सब समझ का फेर है। आप लोग इसे बुरा समझते हैं। और हम लोग अच्छा। और जिसे हम लोग अच्छा समझते है वह अवश्य ही फलता-फूलता है। दरअसल इसके बिना देश नहीं चल सकता। राजनीति नहीं हो सकती। जन सेवा नहीं हो सकती। भ्रष्टाचार राजनीति और जनसेवा का तड़का है। जैसे दाल में तड़का देने से दाल स्वादिष्ट हो जाती है। वैसे ही भ्रष्टाचार से राजनीति और जनसेवा की मिठास बढ़ जाती है।

भारत में भ्रष्टाचार का बहुत महत्व है। देश में भ्रष्टाचार को धर्म माना जाता रहा है और भ्रष्टाचारी की पूजा होती रही है। लाख भ्रष्टाचारी हो, चाहे कितना ही बड़ा घोटाला क्यों न किया हो ? उसे दुत्कारा नहीं जाता। लोग उसे पुचकारते रहे हैं। देश की जनता उसे सिर माथे पर बिठाती है। इतिहास देखिये उन्नीस सो उनचास से आज तक कितने भ्रष्टाचारी हुए, कितने घोटाले हुए। लेकिन जनता ने नेता को कभी निराश नहीं किया। जिसको भ्रष्टाचारी कहा गया, जनता ने उसे ही भारी मतों से बिजयी बनाके देश हित करने का कार्य-भार सौंप दिया।

जिस पर जितने ही अधिक मुकदमें चल रहे होते हैं, हमारे देश की जनता उसे उतना ही योग्य राजनेता मानती है। हत्या, लूट और रेप इत्यादि के आरोपी को हमारी जनता देश हित के लिए योग्य समझती है। विश्वास न हो तो जाँच-पड़ताल कर लीजिए। एक नहीं सैकड़ों उदाहरण देश में मौजूद है।

जनता जागरूक है, वह सब कुछ जानती है। अतः यदि भ्रष्टाचार बुरा होता तो जनता भ्रष्टाचारी के हाथ को और मजबूत क्यों करती ? हमारी जनता में एक ही कमी है कि यह बहकावे में आ जाती है। इसलिए कभी-कभार थोड़ा बहुत हल्ला-दंगा भी कर देती है। वरन जनता हमारे पक्ष में है। और सदा रहेगी। जनता और नेता की ऐसे ही निभेगी। हमारी सभाओं में देखों हमारी आवाज सुनने व हमें देखने के लिए कैसा जन सैलाब उमड़ता है ?

हम आज की तारीख़ में भ्रष्टाचारी थोड़े हुए है। हम उस समय भी भ्रष्ट थे जब हम जनता से वोट माँगने गए थे। तब हमारे आचार और बिचार में भ्रष्टाचार था और आज कुछ बचा ही नहीं है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि हम भारतीय हैं। हमारे यहाँ खाने में अचार, व्यवहार में शिष्टाचार तथा शादी में द्वारचार होता है। और मर जाओ तो उठाने वाले भी चार होते हैं। मतलब हर जगह चार होता है। कुछ करने के लिए और न करने के लिए भी बिचार होता है। कुछ करो या न करो पर प्रचार होता है। आज गाँव से शहर तक व्यभिचार और दुराचार होता है। भगवान ने दो ही आँखे दी हैं पर आँखे चार होती हैं। अतः यदि देश में एक और चार यानी भ्रष्टाचार है तो क्या बुराई है ? क्योंकि चार अपनी संस्कृति से जुड़ा है।

अतः हम सब को एक जुट होकर काम करना होगा और इसे भारतीयता की निशानी, पहचान बनाना होगा। अगर हम भारतीय होकर भी भ्रष्टाचार से बिमुख हो जायेंगे तो अपनी पहचान खो देगें। अपनी संस्कृति से यह एक और धोखा होगा।

कुछ समय पूर्व भ्रष्टाचारी जी का कुछ लोगों ने अपहरण कर लिया था। जब उन्हें उनके सरगना के सामने पेस किया गया तो वह दौड़कर उनसे गले मिला। और अपने ही लोगों को डाँट पिलाई। बोला यह तो अपना भाई है। इसे मार कर हमें क्या मिलेगा ? हमारी और इनकी मंजिल एक है। हम इनके देश को बर्बाद करना चाहते हैं। उसे खोखला कर देना चाहते हैं। और ये खुद अपने देश को खोखला कर रहे हैं। उसे लूट रहे हैं। इस प्रकार ये हमारे सहयोगी हुए। फर्क इतना है, हम बाहर रहकर इनके देश को खोखला करते है और ये अंदर रह कर करते हैं। वह आगे बोला जाओ। और निर्भय होकर रहो। नाहक में सुरक्षा गार्डो की फ़ौज लेकर चलते हो। तुम्हें हम लोगों से कोई खतरा नहीं है।

अब देखिये इसी भ्रष्टाचार की वजह से भ्रष्टाचारी जी की जान बच गई।

आप लोग चाहते हैं कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कानून बन जाए। नहीं माने तो बना भी दिया जायेगा। क्योंकि नेता दिल रखना चाहते हैं तोड़ना नहीं। और दिल रखते भी हैं। बड़ा भारी दिल। बिना बड़े दिल के कथनी और करनी को अलग नहीं किया जा सकता। अगर कुछ तोड़ते भी हैं तो ऐसा तोड़ते हैं जो जल्दी जुड़े ही न। तुम लोग अपने को ज्यादा समझदार समझते हो। लेकिन असली समझदारी जनसेवकों के पास ही होती है। समझदारी इन्ही से शुरू और इन्ही पर खत्म हो जाती है। ये रास्ते बनाने में चूहों को भी मात देने वाले है। क्या सोचते हो कि कानून बन जाने से भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी खत्म हो जायेगें ? बिल्कुल नहीं। जैसे हिंदुस्तान से सोने की चिड़ियाँ उड़ गई। वैसे ही हिंदुस्तान में नैतिकता की चिड़ियाँ, जो भ्रष्टाचार रुपी दाने को चुंग सकती थी, मर चुकी है।

सोचो ! जिस चीज की जरूरत होती है। क्या उसे समाप्त किया जा सकता है ? कभी नहीं। किसी भी कीमत पर नहीं। भ्रष्टाचार के बिना हम अंधाधुंध तरक्की नहीं कर सकते। इसलिए इसकी बहुत जरूरत है। तो केवल कानून क्या कर लेगा ? जैसे आपको, हमको दहेज की जरूरत है। तो कानून ने क्या कर लिया ? क्या आज देश में भूर्ण का लिंग जाँच नहीं होता ? होता है। क्योंकि हम और आप इसे जरूरी समझते हैं।

बिना भ्रष्टाचार के दिन दूनी रात चौगुनी बरक्कत मुश्किल ही नहीं असम्भव जान पड़ती है। इसलिए आगे बढ़ने के लिए भ्रष्टाचार की जरूरत होती है। और किसकी इच्छा नहीं होती कि हम आगे बढ़े। हमारा देश आगे बढ़े। हमारे देश का नाम रोशन हो। अंग्रेजी में एक कहावत है कि- ‘समथिंग इज बेटर दैन नथिंग’। अतः यदि हम और क्षेत्रों में देश का नाम रोशन नहीं कर सकते तो कम से कम एक क्षेत्र में ही सही। हमारी कोशिस है कि जब दुनिया में भ्रष्टतम देश का नाम आये तो हमारे देश का नाम हो। जब दुनिया के महानतम भ्रष्टाचारियों की सूची जारी हो तो उसमें हम भरतीय ही हों। और होंगे भी । तब हम सब मुक्त कंठ से गायेगें कि –

“सबसे आगे होंगे हिदुस्तानी ---------”।

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डॉ. एस. के. पाण्डेय,

समशापुर(उ. प्र.)।

URL: http://sites.google.com/site/skpvinyavali/

BLOG: http://www.sriramprabhukripa.blogspot.com/

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रचनाकार: एस. के. पाण्डेय का व्यंग्य - भ्रष्टाचार की जरूरत
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