ऊँट भी खरगोश था व्यंग्य - संग्रह -प्रभाशंकर उपाध्याय ( पिछले अंक से जारी...) जमानत पर छूटे विश्वगुरू की प्रेस काँफ्रेंस जमा...
ऊँट भी खरगोश था
व्यंग्य - संग्रह
-प्रभाशंकर उपाध्याय
जमानत पर छूटे विश्वगुरू की प्रेस काँफ्रेंस
जमानत पर रिहा स्वामी प्रचंड प्रभुजी महाराज की प्रेस काफ्रेंस का आयोजन था। ऊंचे और भव्य आसन पर संतजी विराजे थे। पचासों चेले-चेलियां यत्र-तत्र चुलबुला रहे थे। सैंकड़ों उल्लासित भक्त, अनवरत जय जयकार से धरती-आसमां को थर्रा देने हेतु यत्नशील थे।
मीडिया के कैमरे की जद में आने वाला एक सुनहरा बैनर, महाराज जी के ठीक पीछे टंगा हुआ था। और उस बैनर पर लिखा था-‘‘ श्री श्री 108, पूज्यपाद, प्रातः स्मरणीय, मठाधिपति, विश्वगुरू, स्वामी प्रचंड प्रभु जी महाराजधिराज․․․․․․․․․․।''
सामने प्रेस की कुर्सियां थीं। वहां, इलेक्ट्रोनिक तथा प्रि्रंट मीडिया के हिन्दी और अंग्र्रेजी पत्रकारों का खासा हुजूम नजर आ रहा था। और वहां कुछ ‘एंगल-जर्नलिस्ट भी मौजूद थे।;आधुनिक पत्रकारिता की एक विधा को ‘एंगल-जर्नलिज्म‘ कहा जाता हैद्ध। मेरे बगल में बैठे एक 'एंगल-जर्नलिस्ट' ने बैनर की ओर इंगित करते हुए पूछा- ''इन बाबाओं के नाम के साथ 108 बार श्री शब्द क्यों लगाया जाता है, जानते हो?''
मेरी जिज्ञासु दृष्टि को देखकर, ‘एंगल जर्नलिस्ट‘ बोला, 'श्री' के व्यापक तात्पर्य हैं, जैसे लक्ष्मी, सौंदर्य, शान-शौकत, प्रभा, कीर्ति तथा त्रिवर्ग अर्थात् अर्थ, धर्म, काम इत्यादि। इनमें श्रीदेवी या भाग्यश्री का शुमार भी हो तो कहने ही क्या? दरअसल, आज के साधु- संतों की 'एग-मार्क ' हैं ये निधियां। ''
भई वाह! क्या ‘एंगल‘ था उस ‘एंगल-जर्नलिस्ट‘ का ? बहरहाल, प्रेस काँफ्रेंस प्रारंभ हुई। उस काँफ्रेंस की रपट, जस की तस लिखी जा रही है। भविष्य में कोई खंडन प्राप्त हुआ तो उसे भी क्षमा याचना सहित प्रकाशित कर दिया जायेगा। काँफ्रेंस में संवाद में रहे पत्रकारों के सम्मुख संख्या लिखी गयीं हैं। चूंकि, अधिकांश उत्तर गुरूजी के शिष्यों- शिष्याओं ने दिये, अतः उनके आगे भी संख्या उल्लेख है। चुनांचे प्रस्तुत है, रपट-
पत्रकार -1 '' स्वामीजी! सुना गया है कि आप माफी मांग कर जेल से छूटे हैं। हैरत है, इतने नामी और चमत्कारी संत को माफीनामा लिखना पड़ा। ''
शिष्य -1 '' यह मीडिया की बकवास है। आप लोग तीन-चार माह से गुरूजी के विरूद्ध विष वमन कर रहे हैं। सच तो यह है कि पूज्यपाद के प्रताप के सम्मुख कानून किंकर्त्तव्यविमूढ हो गया था। ''
पत्रकार - 2 '' आप सारा दोष मीडिया पर नहीं थोप सकते। मीडिया ने स्वामीजी द्वारा धौंस देने तथा हत्या करवाने के सबूत पेश किये हैं?''
शिष्य -1 '' यह तो अच्छा है कि हमारे गुरूजी धमकाते ही हैं, श्राप नहीं देते, जैसा दुर्वासा ऋषि आये दिन दिया करते थे। 'श्राप' जन्म-जन्मातर तक पीछा करता है और उसका परिहार भी 'श्राप' देने वाले के पास ही होता है। रही हत्या की बात। साधु किसी का वध नहीं करते बल्कि भस्म कर देते हैं। हमारे गुरूजी भी हत्या क्यों करेंगे। जिसे चाहें भस्म कर दें और उसकी राख को गंगाजी में प्रवाहित कर दें। ''
''इस तरह सबूत भी नहीं रहे और मृतात्मा भी सीधी स्वर्ग में जाये। वस्तुतः श्राप देना और भस्म कर डालना, साधु -संतों का विशेषाधिकार है। इसे कानूनी सीमा में नहीं बांधा जा सकता। इसके अनेकानेक उदाहरण हैं, यथा-
''कपिल मुनि ने राजा सगर के सौ पुत्रों को भस्म कर डाला। क्या कपिल मुनि को गिरफ्तार किया गया ? ब्रम्हर्षि परशुराम ने इक्कीस बार क्षत्रिय वध किया, उनमें कितने ही राजा- महाराजा भी थे। क्या उन पर कोई मुकदमा चला? हमें तो शासकों को भी दण्ड देने का हक है। इन्द्र के पद पर पहुंचे, राजा नहुष को ऋषि अगस्त्य ने एक पल में पृथ्वी पर रेंगने वाला सर्प बना दिया था। ''
पत्रकार - 3 '' आप लोग साधक हैं। अपने शरीर को भांति भांति के कष्ट देकर, तप करते हैं। कोई कठोर शीत में नंगे बदन रहता है तो कोई भीषण गर्मी में भी चारों ओर धूनी लगाकर समाधि में रमता है। लेकिन, जब पुलिस थोड़ी भी सख्ती बरतती है तो आप लोग इतनी जल्दी कैसे टूट जाते हैं। उस समय, आपका तप -बल और इच्छा- शक्ति कहां लुप्त हो जाती है?''
काँफ्रेंस में कुछ क्षण के लिए खामोशी छा जाती है, तत्पश्चात् चेला नं․ 1 बोलता है।
शिष्य - 1 '' स्वामी जी की साधना पृथ्वी लोक के व्यवहारों के प्रतिरोध हेतु नहीं हैं, अपितु पूज्यपाद तो परम लक्ष्य के साधक हैं। ''
पत्रकार - 3 '' वह परमलक्ष्य क्या है? सम्पत्ति, सुंदरी या सत्ता की नजदीकी? आज, स्वामियों के पास क्या नहीं है? अकूत संपत्ति। आधुनिक सुख- सुविधायुक्त आश्रम। एन․आर․आई․ चेले-चेलियां। सियासत और हालीवुड-वालीवुड की हस्तियों से ताल्लुकात। एक मेले में डेरा डाले एक साधु के कैम्प में आग लगने से, 20 लाख रूपये नष्ट हो गये और साधु ने रो रो कर बुरा हाल कर दिया। आखिर क्या है, आप लोगों का परम लक्ष्य ?''
घनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए, प्रचंड प्रभु की अंगुलियां थम गयी थीं। वे पहली बार मुखरित हुए-
प्रचंड प्रभु उवाच - ''रे शठ! क्या इन्हें हम संचित करते हैं? वे स्वयंमेव आती हैं और शताब्दियों से आ रही हैं। राजे- महाराजे, अपना आसन देकर हमारा पद- प्रक्षालन किया करते थे। अनेक राजाओं ने अपनी राजकुमारियां, तपस्वियों के साथ ब्याह दीं। महात्मा दीर्घतमा तो अंधे थे किन्तु उनके प्रताप से अभिभूत हुए राजा बलि ने अपनी रानियों को दीर्घतमा से पुत्र प्राप्ति हेतु भेज दिया था। ''
आंग्ल पत्रकार - ‘‘ वेरीगुड विल यू गिव अस मोर एक्जॉम्पल?''
विश्वगुरू की अंग्रेजी किंचित कमजोर थी, अतः उन्होंने इस हेतु एक अंग्रेजीदां शिष्या की सहायता ली। लिहाजा वह वार्ता प्रस्तुत है -
शिष्या -'' राजा हरिशचन्द्रा डोनेटेड हिज स्टेट टू मुनि विश्वमिट्र एण्ड वेन्ट टू एब्रॉड विद हिज फैमिली। ''
- ''इंटर कोर्स एक्टिविटीज बॉइ अ सेंट कांट बी क्लासिफाइड एज 'रेप', बिकॉज दैट, अप-लिफ्ट सोशियल स्टेट्स ऑव वीमन। व्हाइल द सेंट रिमेन्ड ऑनली सेंट। जस्ट लुक सम एक्जॉम्पल्स -‘‘द ऑकरेंस ऑव मुनि पाराशर, ए दीवर (धीवर ) गर्ल, गेव अस व्यासजी, हू वाज ए ब्रिलिएंट पुराण-रॉइटर। मेनका डिमोलिश्ड मेडीटेशन ऑव विश्वामिट्र् एण्ड वी गोट ए ग्रेट इंडियन किंग, कॉल्ड बरत (भरत)। ममता वाज एन ऑर्डीनरी लेडी, बट विद कॉइशन ऑव डेवगुरू बिरस्पटि (देवगुरू बृहस्पतिद्ध शी हैड बिकम गुरू वॉइफ (गुरू पत्नी )।''
अंग्रेजी पत्रकार -'बट दिस इज नॉट ए करेक्ट वे टू अपलिफ्ट करेक्टर ऑफ साधुज। ''
शिष्या (तैश से ) - ''व्हाई आर यू अगेंस्ट सनातन धर्मा? इन अघोर-तंत्रा, नो डिवोशन इज पॉसिबिल विद आउट वीमन। ए बौद्धिस्ट वाज अरेस्टेड, व्हेन ही वॉज बारगेनिंग विद, सम कॉल-गर्ल्स। वन टाइम चर्चस् ऑव योरोप वर डीनोटेड एज फोर्ट ऑव एन्जायमेंट। एज वेल एज मुल्ला'ज एण्ड मौलवी'ज वर नॉट सेव्ड फ्रॉम वूमन। ''
हिन्दी पत्रकार - '' महाराज जी! माना कि आप प्रचंड प्रतापी हैं। शासकों में आपकी पैठ है। तो ऐसे क्या कारण रहे कि एक महिला शासक ने आपको महीनों जेल में रखा और आपको, उसे महामाया महादेवी का अवतार कहना पड़ा?''
प्रंचड प्रभु (प्रचंड क्रोध से फुंफकार कर ) -'' लंपट! 'यत्र नार्यस्तु पूज्यते, तत्र रमंति देवताः।' हमने नारी को देवी कहा तो देवता हमारी मदद को आ गये और जेल के द्वार खुल गये । हां, नारी की जगह पुरूष शासक होता तो हम, उसे अवश्य ही भस्म कर देते। तुझे भी छोड़ रहे हैं। और अब, ऐसे अनर्गल प्रश्न मत पूछना। ''
यह कहकर प्रचंड प्रभु तत्क्षण ही प्रेस काँफ्रेंस से उठकर चल दिये। पीछे पीछे उनकी मंडली भी, जय․․․․․जय․․․․․ का घोष करती हुई, अनुगमन कर गई।
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काग के भाग बड़े
आसमां की ओर इंगित कर, कवि विनोद पदरज ने कहा, ''सायं हुई और कौवे, कांव․․․․कांव․․․․ करते हुए सरकारी भवनों की ओर उड़ चले। ये, वहां के दरख्तों पर रैन बसेरा करेंगे। इन कागों को सरकारी प्रांगण क्यों रास आया? एक व्यंग्यकार के तईं कभी सोचा है तुमने?''
उस दिन के बाद, सांझ होते ही घर की छत पर, नित्य चढता हूं क्योंकि छत से कार्यालयों का परिसर, भवनों का आंशिक भाग और वृक्ष नजर आते हैं। साथ ही आशियानों की ओर लौटते कौओं के झुंड दर झुंड भी उतरते हुए दीख पड़ते हैं। वहां, व्याप्त कांव․․․․कांव․․․की काकारूत भी यहां किंचित सुनाई देती है। ''
व्यंग्यकार शरद जोशी ने कभी लिखा था कि बगुले, भैसों के पास क्यों जाते हैं? और अब कवि विनोद पदरज, विनोद पूर्वक पूछते हैं कि काक, सरकारी परिसर में ही रैन बसेरा क्यों करते हैं? आज, इस बिन्दु पर विचार किया तो पाया कि कागों के स्वभाव तथा क्रियाकलाप में आदमजाद सरीखी समरूपताएं समाहित हैं, नेता-गणों से तो यह रिश्ता काफी नजदीकी प्रतीत होता है।
- चुनांचे, कैसे विलक्ष्ाण हैं काग-
- जरूरत होने (श्राद्ध पक्ष और ऋषि पंचमी ) पर गलाफाड़ पुकार तथा मीठी मनुहार के उपरांत भी बड़े नाज-नखरे दर्शाता हुआ आता है और बीच बीच में परों को फड़फड़ाकर अथवा यत्र-तत्र, कुदक-फुदक कर उड़न छू हो जाने का आभास कराता रहता है।
- खुद काला कलूटा और उदंड प्रवृति का है किन्तु खूबसूरतों तथा शरीफों के साथ छेड़छाड़ से बाज नहीं आता। सुंदर चिडि़याओं की पूंछ पकड़ लेता है। सीधी सादी गायों के कान खींच देता है। खाना पकाती गृहिणी के पास से रोटी ले भागेगा या नाश्ता करते बालक को भयाक्रांत कर टोस्ट ले उड़ेगा।
- मान्यता है कि दो नयनों के बावजूद यह सबको एक आंख देखता है। दर असल, यह अपनी मुंडी इतनी अधिक बार घुमाता हैं कि इसके समदृष्टि होने का भ्रम पैदा हो गया है। किन्तु इतनी सर्तकता के बाद भी कलकंठी कोयल, इस छलिये को चतुरता से छल लेती है। वह अपने अंडे इसके घोंसले में रख देती है और यह धोखे से उन्हें 'से' देता है लिहाजा कागा मिठभाषी चाटुकारों के स्वार्थ को भांप नहीं पाता।
- यह अपने बच्चों की देखभाल तो जतन पूर्वक करता है, लेकिन दूसरे के बच्चों को नहीं छोड़ता । यहां तक कि मुर्गीखानों से चूजे चुरा लेता है। लेकिन, पक्षी जब इसकी करतूतों से तंग आकर एकजुट हो जाते हैं, तब घिरे हुए कौवे की दयनीय दशा देखते ही बनती है।
- काक का भावनाएं जताने का तरीका भी प्रभावशाली है। असंतोष, चेतावनी तथा क्रोध व्यक्त करने की कला में कौआ निष्णात है। मौका मिलने पर, यह अपनी जमात को एकत्र करने का बूता भी रखता है। और हवाबाज़ भी गज़7ब का होता है ऊपर-नीचे, दायें-बायें, आड़े-तिरछे कैसे भी उड़कर निकल लेता है। सुना है कि 'बाज' भी इसे पकड़ नहीं पाता।
- जितनी गंदगी उतने काग। शाक हो या मांस, जिंदा हो या मुर्दा सबको हथियाकर, नोंचकर, मुंडी हिला-हिलाकर, उचक-मचक कर, मजे से हड़प करता है। इसे बदहजमी की कोई शिकायत नहीं होती ।
- यह इतने कुकृत्य, धूर्तता, अनाचार के बावजूद सम्मान पाता है। वर्ष भर मुंडेरों से दुत्कारे जाने के बावजूद इसकी आव भगत करनी ही पड़ती है। डाक और दूरभाषिक युग से पूर्व प्रिय के आगमन के प्रति प्रतीक्षातुर विरहणी नायिका को काक की कर्कश वाणी भी मधुर प्रतीत होती थी और वह आल्हादित होकर, उसे पसंदीदा भोजन कराने अथवा उसकी चोंच सोने से मंढवा देने का वचन देती थी। तभी तो बड़भागी काक के बारे में 'रसखान' ने भी कहा - '' काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।'' और अब कवि संजय आचार्य लिखते हैं कि तोता, चिडि़या, मुर्गी छोड़ो, नया दौर है, कौव्वे पालो। ''
कदाचित, इन्हीं खासियतों की वजह से अग्निपुराण में शासकों को कौवे की भांति चाक-चौबंद रहने की राय दी गई है।
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व्यंग्य सर्वेः अगर तुम मिल जाओ․․․․․!
फ्रांस का एक नगर है, वर्सेल्स और उस शहर में स्थित है, सत्रहवीं सदी के बने शाही महल। इन महलों में पेटिट ट्रिनान तो बेहद विख्यात है। लोकश्रुति है कि इस महल में घुसने पर कभी कभार भूतकाल के प्रत्यक्ष दर्शन हो जाते हैं। यहां सशरीर अतीत की सैर के अनेकानेक किस्से सुने गये हैं। इस तरह के तीन वाकियात प्रस्तुत हैं -
10 अगस्त 1901 की बात है उस समय लंदन की दो महिलाओं शार्लोट और एलिना ने पेटिट ट्रिनान में प्रवेश किया। उनका सामना 18वीं शती की वेशभूषा पहने कुछ व्यक्तियों से हुआ। उनमें उस काल के स्त्री-पुरूष और बच्चे थे। उन्हें, उस समय की घोड़ा गाडि़याँ भी दिखाई दी थीं।
सन् 1928 में मिस क्लारा एवं ऐन लम्बार्ट को इस महल में तकरीबन सौ वर्ष पूर्व का लिबास पहने एक गायक दल दिखाई दिया। उस काल के वाद्य यंत्रों पर वह दल एक पुरानी धुन बजा रहा था।
अक्टूबर 1979 में फ्रांस के मांटेलबार के नजदीक एक प्राचीन होटल में सिम्पसन दम्पति ठहरे। रात का खाना खाया और दूसरी सुबह का नाश्ता किया। भोज्य सामग्री प्राचीन पद्धति द्वारा बनायी हुई थी। भोजन बेहद लजीज और उसका बिल अत्यन्त सस्ता था।
सर्वे और परिणाम -
अतीत को पुनः पाने और भावी जीवन की जिज्ञासा का एक अलग रोमांच है। अगर ऐसा मोबाइल-सेट बने और वह आपको भूत, भविष्य तथा वर्तमान कालों में मोबाइल कराने में समर्थ हो अर्थात् सेट का एक बटन दबाएं तो सन्न से भूतकाल में जा पहुंचें। दूसरा दबाएं तो दन्न से भविष्य में छलांग लगा जाएं और तीसरा दबाएं तो बैक-टू-पैवेलियन यानि वर्तमान में लौट आएं।
इन तीनों काल में से आप किस काल में 'फील-गुड' करेंगे ? एक व्यंग्य सर्वेक्षण के दौरान यह प्रश्न देश के हजारों स्त्री-पुरूषों से पूछा गया। सर्वे का परिणाम निम्नवत् हैः-
52 प्रतिशत ने भूतकाल को पसंद किया। ऐसी चाहना करने वालों में वालियां (नारियां) अधिक थीं, जो बासी कढी में उफान की माफिक युवावस्था की ओर लौट जाना चाहती थीं। 24 प्रतिशत लोगों ने भविष्य में जाने की आकांक्षा जतायी। ग्यारह प्रतिशत दो घोड़ों पर सवार रहे अर्थात् उनकी पसंद भूत-भविष्य, भूत-वर्तमान अथवा भविष्य-वर्तमान थी। 9 प्रतिशत व्यक्ति त्रिकाल को अपनी मुट्टी में कैद करना चाहते थे। शेष 4 प्रतिशत ने तटस्थ भाव दर्शाया यानि उनकी पसंद वर्तमान थी।
रायशुमारी -
सर्वे के दौरान एक सवाल और पूछा गया। प्रश्न था - ''यदि सशरीर सैर कराने वाले मोबाइल को आपके हाथ में दे दिया जाए। तो उसका उपयोग आप अपने किस कार्य के लिए करेंगे ?''
इस सवाल के बड़े दिलचस्प जवाब मिले, उनमें से चुनिंदा पेश किये जा रहे हैं। लीजिये, लुत्फ उठाइये उन उत्तरों का -
एक नौकर पेशा -''प्रत्येक माह के वेतन वितरण वाले दिन मे जाऊंगा तथा पूरी तनख्वाह प्राप्त कर, उधार वसूल करने वालों से बचता हुआ, छुट्टीवाले दिन में चला जाऊंगा।''
एक सास - ''हुंह ․․․․․․․․․ यह दहेज दिया है, मुए लड़की वालों ने। ऊंट के मुंह में जीरा है, जीरा ․․․․․․․․․․․․․। मन कह रहा है कि फूंक ही डालूं ऐसी दरिद्रन को। लेकिन भाईसाहब ․․․․․․․․․․․․․․․․․क्या यह मोबाइल मुझे बता देगा कि मैं बाइज्जत बरी हो जाऊंगी ? मेरे बेटे की दूसरी शादी में कोई दिक्कत तो नहीं आयेगी? नयी बहू खूब सारा दहेज लेकर आयेगी․․․․ ना ․․․․․․?''
चुनावी प्रत्याशी - महाराज! नमस्कार․․․प्रणाम․․․․․दण्डवत․․․․․। किधर है आपका मोबाइल ? जल्दी लाओ हुजूर ,चुनाव घोषित हो गये हैं। क्या, यह मोबाइल मुझे पार्टी का टिकट दिला देगा? मैं, पहले भविष्य में जाऊंगा और अपना चुनाव परिणाम देखूंगा। जीता तो वाह !, हारा तो वर्तमान में लौटकर, विरोधी से मोटी रकम ऐंठकर, नाम वापस ले लूंगा․․․ ही․․․․․ही․․․․․․ही․․․․․। ''
राजस्थानी व्यापारी -‘‘ रे भाया! इक जमाणो हो जद रूपिया रा हवा हेर (सवा सेर ) घी मिलतो हो। थारे रिमोट रे आसरे तो म्है वणी जमाणा में ही जाणो चावूंगो। पाछे लिछमीजी री दया सूं लाखों रो माल खरीद लूंगो। फेर भविष्य रा सबसूं महंगो काल में जाई, सबरो माल बेच दूंगो। अरबों- खरबों रो मुनाफो म्हारी अंटी में होवेलो․․․․․․․․हें․․․․․․․․․हें․․․․․․․․हें ․। ''
एक गृहिणी - ․․․मैं तो आपके मोबाइल का पूरा उपयोग करके ही वापस करूंगी, भाई साहब! सच्ची बात तो ये है कि मेरी पड़ोसन कई दिनों से अपने पति के लिए एक स्वेटर बुन रही है। उसका डिजाइन मुझे पता नही लग रहा है। मैं, सबसे पहले मोबाइल का भविष्यवाला बटन दबाऊंगी और उस काल में चली जाऊंगी, जहां उसका पति स्वेटर पहनकर बाहर निकल रहा होगा, तब उसका डिजाइन नोट कर लूंगी। उसके बाद में भूतकाल में जाऊंगी और उसी डिजाइन का स्वेटर बना लूंगी। फिर वर्तमान में लौटकर पड़ोसन से भी पहले अपने पति को वैसा ही स्वेटर पहनाकर चक्कर में डाल दूंगी। सच्च ․․․․․․․․․․․․․․․․बहुत मजा आयेगा। ''
एक कवि - '' कमाल की कल्पना है भगवन्! काल को कब्जे में करने वाला यंत्र अहा․․․․।
भई इसी तर्ज पर मेरी ताजा कविता हाजिर है -
‘ले जाए चाहे, भविष्य में या भूत में यंत्र।
एक कवि को चाहिए नोट, मंच और तंत्र॥
नोट, मंच ओ‘तंत्र, मिले श्रोता सुनने को।
जीवनभर का माल मिले, खाने भरने को॥
हे मोबाइल महाराज! ले चलो मुझे वहां पर।
परम सुंदरी एक कवयित्री भी हो जहां पर॥‘
एक पत्नी - '' हाय ․․․․․हाय ․․․․․मेरे नसीब में ही बदा था, यह टटपूंजियां कलम घसीट पति! अरे इससे तो अच्छा था वह डॉक्टर जिसे मैंने इसलिए रिजेक्ट कर दिया था कि मैं इस साहित्यकार के प्यार में अंधी हो गई थी। हाय ․․․․․ अब क्या रूतबे हैं डॉक्टर साहब के ? दो-दो कोठियां और चार-चार कार हैं। गुर्दे चोरी के धंधे में करोड़ों कमाए हैं उसने। उसी कुँवारेपन की ओर वापस जाना चाहूंगी ताकि गलती सुधारने का एक मौका तो मिले। ''
एक पति- '' बहुत दुखी हूं․․․ सर। मुझे वह मोबाइल अवश्य दीजिये। मेरी सास जब देखो तब यहां आ धमकती है और अपनी पुत्री की प्रशंसा के गीत गाकर मुझे बहुत बोर करती है। उसके उपदेशों से मुझे एलर्जी हो गयी है। मैं इस सेलफोन से सासूजी के आने की सभी संभावित तिथियां डायरी में नोट कर लूंगा जी, फिर उन्हीं दिनों का ऑफिसियल-ट्यूर बना कर उड़न छू हो जाया करूंगा। ''
एक स्टिंग पत्रकार - '' अब तक तो अफसरों- नेताओं के अतीत और वर्तमान के कारनामों की बखिया उधेड़ा करता था। अगर, रिमोट मिल जाये तो स्टिंग जर्नलिज्म का मजा ही आ जायेगा। भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के मस्त-मस्त ''स्कूप'' मिलेंगे। स्कैंडलों का भंडाफोड़ करती, सनसनी खेज कवर-स्टोरी बनेंगी। बन्धु, वह मोबाइल मुझे ही देना। ध्यान रखिये कहीं हमारा प्रतिद्वंदी चैनल न ले उड़े, उसे। ''
छात्र- '' अरे ․․․․अंकल! भविष्य में जाने से क्या फायदा? नौकरी तो मिलेगी ही नहीं। बेरोजगारी पल्ले पड़ेगी। इतना पढ़ने के बाद भूतकाल में जाना भी बेकार है। अपन तो स्टूडेंट -लाइफ में तो मस्त हैं। और हमेशा इसी लाइफ में रहना चाहेंगे। ''
एक खिलाड़ी - '' इस मोबाइल से हमारा खेल आर-पार का हो जायेगा। मैच की हार-जीत का पता पहले ही लगा लेंगे। जीते तो पौ बारह! हारे तो बुकिज से हाथ मिलाकर पहले ही मैच फिक्सिंग कर लेंगे। ''
रिमिक्स सिंगर - '' ओए अपनी तो बल्ले․․बल्ले ․․․ हो जाएगी․․․उ․․․उ․․․ रू․․․रू․․। अब आयेगा, स्टेज प्रोग्राम के साथ कबूतर उड़ाने का․․․मजा। ब्रदर आप हमें मोबाइल देंगे तो हम आपके एक दो कबूतर फ्री उड़ा देंगे। ''
वाह! चाय
चाय भी अजब शै है। यह, इंसान को प्रारम्भ से ही अपना रक़ीक़ बना देती है। यकीन न हो तो, एक बालक के सम्मुख, चाय तथा दूध का प्याला, संग संग रखकर देखो । वह बालक चाय के प्याले की ओर ही लपकेगा। उसके हाथ में चाय का प्याला थमाइए और देखिए कि वह कितने मजे से सुड़कता है। यूं भी चाय, विश्व में पानी के बाद सर्वाधिक पिया जाने वाला पेय पदार्थ एक सर्वे द्वारा सिद्ध हो गया है।
चुनांचे, चाय की खोज को दुनिया के महानतम आविष्कार का दर्जा दिया जाना चाहिए। उसके जनक योगीराज 'धर्म' को धन्यवाद देना होगा। यदि साधना के दौरान उन्हें नींद न आती और मारे क्रोध के उन्होंने अपनी पलकें काटकर जमीन पर नहीं फेंकी होतीं तो, ठेंगा पीते आप चाय। कहा जाता है कि साधक 'धर्म' की उन्हीं पपोटों से पैदा हुआ था चाय का पौधा । ऐसा पौधा, जो आज असंख्य उनींदी पलकों की नींद उड़ाए दे रहा है। बिना चाय के बिस्तर नहीं त्यागते भाई लोग।
गर चाय नहीं होती तो, बीवी बेड-टी कैसे पेश करती? इसी बूते पर, वह आपको जगाती है, 'उठिए जी, चाय तैयार है।' गरज यह कि चाय न होती तो आप उस सुरीले स्वर को तरस जाते, जनाब। दिन भर के किच-किच भरे माहौल में, एक वही वाक्य तो आनन्दमय है।
लिहाजा, चाय की चाह किसे नहीं है? यह अमीर-गरीब सभी तबकों में समान रूप से प्रिय है। गृहस्थों को तो लुभाती ही है, साथ ही संन्यासियों को भी मोहती है। नतीजन, जीवन में चाय की पैठ काफी गहरी है। कहावत है कि झूठ बोलने और चाय पीने का कोई समय नहीं होता ।
सत्रहवीं सदी में 'वालर' ने चाय की अनुशंसा में एक कविता लिख मारी थी। उन्होंने चाय को पादप जगत की महारानी का खिताब अता किया था। उस जमाने में चाय को पिया नहीं, बल्कि चाबाया जाता था। इसकी उबली पत्तियों को नमक तथा मक्खन मिलाकर खाया जाता था।
अरे वाह! चाय की पत्तियों के सेवन की बात पर याद आ गया, बाड़मेर का एक गधा। चाय- वाले द्वारा फेंकी गई पत्तियों को खाकर इतना आदी हो गया था कि बिना उन्हें खाए, उसका मूड बोझा ढोने का बनता नहीं था।
लिहाजा अब, नौकर- पेशाओं को ही लीजिए। अधिकांश का काम करने का मूड बगैर चाय के बनेगा ही नहीं। दस बजे दफ्तर में घुसे। हाजिरी दर्ज की और लपक लिए कैंटीन की ओर। आधा-पौना घंटा वहां बैठकर, इधर-उधर की करेंगे।
चाय की गर्मागर्म चुस्कियों के संग बाबू लोग, बॉस की निंदा का रस भी सेवन करेंगे। कुछ शेयर-बाजार की, कुछ राजनीतिक माहौल की चर्चा करेंगे। देश के रसातल की ओर जाने का गम सभी को सालेगा। कभी बेवजह ठहाके लगाए जाएंगे।
उधर, चतुर बॉस, घोंचू से दिखने वाले, कैंटीन के छोकरे को पांच रूपया थमाकर सारी खबर ले लेगा किस- किसने उसके खिलाफ जहर उगला।
अतः प्रत्येक ऑफिस के पास चाय का खोखा होना परमावश्यक हो गया है। किसी कार्यालय का भवन बाद में बनेगा। नींव डलते ही, चायवाला वहां पहले स्थापित हो जाएगा। आखिर, इमारत बनाने वालों को भी तो चाय चाहिए।
ऑफिस में आनेवाला समझदार आगंतुक, सर्वप्रथम चाय की दुकान पर जाकर चाय पहुंचाने का आदेश देता है, तत्पश्चात् दफ्तर में दाखिल होता है। ऐसे सज्जन का काम कौन नहीं करेगा? गोया, चाय सरीखा सुलभ, सस्ता और प्रभावशाली सुविधा-शुल्क दूसरा नहीं है।
आपकी किचन के एक कोने में बेपरवाह पड़ी रहने वाली चाय की ताकत का गुमान आपको नहीं होगा। हद से हद चाय के प्याले में तूफान आने का अंदाज लगा सकेंगे। इससे अधिक अनुमान तो अमरीकावासियों को भी नहीं था। यदि चाय नहीं होती तो अमरीका पता नहीं कितने वर्ष गुलामी में, और काटता? ब्रितानी सरकार ने चाय पर कर लगाया, आक्रोश स्वरूप अमरीकियों में आजादी के अंकुर फूटे।
चाय का प्याला सुड़कते सुड़कते, शोधकर्ताओं ने चाय में 127 तत्व खोज निकाले। उनके अनुसार चाय, हृदयरोग, मोतियाबिन्द, खाज-खुजली और कैंसर से बचाव करती है। चीनी डाक्टरों ने इसमें विटामिन्स तक ढूंढ लिये। एक चीनी कवि ने चाय की महिमा का गुणगान कुछ इस प्रकार किया है -''इसका पहला प्याला मेरे गले को तरावट से भरता है, दूसरा तन्हाई को खत्म करता है। तीसरा पीने के बाद आत्मा का अहसास होता है, चौथे प्याले से मेरे दुख समाप्त हो जाते हैं। चाय का छठा प्याला पीते ही, मैं अमरता के बारे में सोचने लगता हूं और सातवां प्याला पीने के पश्चात् ताजी हवाओं के झोंके मेरे तन-बदन को सुकून पहुंचाते हैं।''
देर क्यों? गुरू, हो जाओ शुरू।
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(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)
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