साम्राज्यवादी चीन अपने ही देश में आतंकवादी हमलों का शिकार होने के बाद अहसास कर रहा है कि अब ऊॅट पहाड़ के नीचे है। हालांकि चीन में आतंकवाद ...
साम्राज्यवादी चीन अपने ही देश में आतंकवादी हमलों का शिकार होने के बाद अहसास कर रहा है कि अब ऊॅट पहाड़ के नीचे है। हालांकि चीन में आतंकवाद एक दशक से भी ज्यादा पुराना है। लेकिन सीक्यांग प्रांत में कुछ दिनों के भीतर आतंकवाद की जिस तेजी से सिलसिलेवार हिंसक वारदातें घटी हैं, इन घटनाओं ने चीन का मुगालता तो तोड़ा ही है, उसे शायद यह भी समझ आ गया है कि आतंकवाद को प्रोत्साहन व आश्रय देने का अर्थ अपने ही देश में भस्मानुसर पैदा करना है। लिहाजा चीन को सार्वजनिक तौर से पहली बार पाकिस्तान को चेतावनी देनी पड़ी है कि उग्रवादी पाकिस्तान से प्रशिक्षित हैं और पाकिस्तान इन पर फौरन लगाम लगाए। अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहे। पाकिस्तान इस धमकी को लेकर दुविधा में है। क्योंकि अमेरिका भी पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों से खफा है। लिहाजा उसकी मजबूरी है, कि वह चीन की खुट्टेबरदारी करता रहे। नतीजतन पाकिस्तान सरकार ने चीन को हर तरह का सहयोग करने का मजबूत भरोसा जता दिया है। लेकिन जिस इस्लामिक मूवमेंट ऑफ ईस्टर्न तुर्किस्तान (आईएमईटी) संगठन ने चीन में वारदातों को अंजाम दिया है, उस पर अलकायदा का बरद्हस्त है और वह पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान में सक्रिय रहकर उग्रवादियों को बकायदा शिविरों में प्रशिक्षण देने के काम में लगा है। इससे जाहिर है कि पाकिस्तानी सरकार और सेना का उस पर कोई नियंत्रण है ही नहीं।
चीन के मुस्लिम बहुल सीक्यांग प्रांत में पिछले तीन दिनों से जारी हमलों में कुछ उग्रवादियों समेत करीब बीस लोग मारे गए हैं। इन हमलों में उग्रवादियों के निशाने पर चीन का हान समुदाय है। हमलों से चीन की बौखलाहट लाजिमी है। लेकिन अपनी जांच एजेंसियों से जब उसे यह पता चला कि ये हमले उस पाकिस्तान से प्रशिक्षित आतंकवादियों ने किए हैं जो उसका मित्र देश है। लिहाजा चीन और ज्यादा तिलमिला गया। क्योंकि उसे यह उम्मीद नहीं थी कि मित्र ही दगा देगा। सिक्यांग राज्य की सीमा पाक अधिकृत कश्मीर से जुड़ी है लिहाजा चीन की चिंता इसलिए वाजिब है क्योंकि उग्रवादियों की चीन की सीमा में घुसपैठ आसान है। इस इस्लामिक सरदर्द से एकाएक निपटना भी सरल नहीं है। अमेरिका की कमजोर आर्थिक हालत विश्व फलक पर उभरने के बाद चीन की कोशिश है कि वह दुनिया की आर्थिक महाशक्ति के रूप में अमेरिका की जगह ले ले। इसलिए वह किसी भी हालत में आतंकवाद को अपने यहां पनपने का मौका देना नहीं चाहता। क्योंकि खुदा न खास्ता आतंकवाद ने पैर पसार लिए तो वह उसे आर्थिक महाशक्ति बनने में बाधा पैदा करेगी। उसके साम्राज्वादी विस्तार के जो मंसूबे हैं, उनको भी पलीता लगेगा। उसकी सैन्य ताकत व सामरिक रणनीति आंतरिक सुरक्षा को ही नियंत्रित करने में खर्च हो जाएगी।
चीन के सीक्यांग राज्य में उईगुर मुस्लिम आबादी गणना के हिसाब 37 प्रतिशत होने के कारण है अल्पसंख्यक दायरे में है, लेकिन वह अपनी धार्मिक कट्टरता के चलते बहुसंख्यक हान समुदाय पर भारी पड़ती है। वैसे भी हान समुदाय बौद्ध धर्म का अनुयायी होने के कारण कमोबेश शांतिप्रिय है। इसलिए उईगुर सांप्रदायिक दंगे भड़काकर इस प्रांत में अस्थिरता पैदा करने क मंसूबों को हिंसक वारदातों के रूप में अजांम देते रहते हैं। वैसे उईगुर तुर्की मूल के निवासी हैं। उनकी कद-कांठी, संस्कृति और भाषा मध्य एशिया के पुराने सोवियत गणतंत्रों के निवासियों के कॉफी नजदीक है। इस क्षेत्र में हान समेत 47 प्रकार की जातियों के लोग रहते हैं, लेकिन नस्लें दो ही हैं, चीनी हान और उईगुर मुसलमान। इन जातियों में जाति बार गिनती के हिसाब से आकलन किया जाए तो उईगुर की संख्या सबसे अधिक है। नतीजतन सांप्रदायिक समूहों में झड़पें चलती रहती हैं। ईटीआईएम की मंशा है कि इस क्षेत्र में पूर्वी तुर्किस्तान के नाम से एक नया देश वजूद में आए। इन विद्रोही हिमायतियों का यह दावा भी है कि 1940 के दशक में यहां इसी नाम का एक स्वतंत्र संप्रभुता वाला तिब्बत की तरह देश था। लेकिन 1949 में लाल चीन के वजूद में आने के बाद इस पूरे इलाके पर चीन की मायोबादी कम्युनिस्ट सरकार का पुख्ता साम्राज्य स्थापित हो गया। हालांकि विश्व इतिहास में खासतौर से एशियाई इतिहास के जानकारों का मानना है कि उरगुई मुस्लिमों के इस राज्य में दखल से पहले यह पूरा इलाका चीनी साम्राज्य का ही हिस्सा था। इसे हान वंश के राजाओं ने युद्ध के माध्यम से जीता था और उन्होंने अर्से तक सीक्यांग में राज किया।
यहां उईगुरों और हानों की मूल संस्कृति के बीच भी एक स्पष्ट विभाजक रेखा है। इन संस्कृतियों के बीच तालमेल बढ़ाने की भी कभी पवित्र कोशिशें नहीं हुईं। बल्कि चीन की हमेशा कोशिश रही है कि तिब्बत की तरह चीनी मूल के लोगों को बड़ी संख्या में रोजगार व आवास की सुविधाएं उपलब्ध कराकर आबादी के जातीय अनुपात का गणित गड़बड़ाकर हान चीनीयों को बहुसंख्यक बना दिया जाए। किसी हद तक चीन अपनी इस क्रूर व कुटिल मंशापूर्ति में कामयाब भी हुआ है। हालांकि सीक्यांग में सांप्रदायिक दंगे कोई नई बात नहीं है। 2009 में भी इन दोनों समुदायों के बीच जबरदस्त टकराव के चलते करीब 200 लोग मारे गए थे। 2008 में आयोजित चीन में ओलंपिक खेलों के दौरान भी चीन ने तिब्बतियों के साथ उईगुरों पर दंगे भड़काने के आरोप लगाकर दमन का रवैया अपनाया था।
हालांकि चीन में बढ़ता आतंकवाद उन साम्राज्यवादी मंसूबों का भी परिणाम है जिन्हें चीन पाक अधिकृत कश्मीर में अंजाम देने में लगा है। इस क्षेत्र में चीन ने करीब 10 हजार सैनिक तैनात किए हुए हैं और करीब 80 अरब डॉलर निवेश क बहाने अपनी सामरिक घुसपैठ पाकिस्तान में बढ़ा रहा है। पीओके में चीन की इस मौजूदगी को आतंकवादी संगठन बरदाश्त नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए वे चीन को सबक सिखाने की कोशिशों में लगे रहते हैं। चीन पीओके में सैन्य ताकत के साथ उपस्थित रहकर भारत को घेरने की कोशिश में है। माओवादियों के जरिए नेपाल में तो चीन का दखल इतना बढ़ गया है कि अब सत्ता पर कब्जा ही माओवादियों का है। यही चीन ने नेपाली पुलिस को प्रशिक्षण देने का सिलसिला शुरू कर वहां के सुरक्षा मामलों में भी प्रभावी हस्तक्षेप शुरू कर दिया है। इधर चीन का व्यापार के बहाने दखल बंगलादेश, म्यामार और श्रीलंका में भी बढ़ा है। चीन में बढ़ता आतंकवाद इस बात का भी प्रतीक है कि चीन के लोकतांत्रिक चेहरे में साम्राज्यवादी विस्तार की कुटिलता छिपी है, इसे भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समझना जरूरी है।
भारत के प्रति भी चीन की मंशा कभी अच्छी नहीं रही। भारत को नीचा दिखाने की दृष्टि से ही उसने पीओके में दिलचस्पी ली और उसे अपना सामरिक अड्डा बनाया। क्योंकि यहां से वह अरब सागर पहुंचने की तजवीज जुटाने में लगा है। इसी क्षेत्र से चीन ने सीधे इस्लामाबाद पहुंचने के लिए काराकोरम सड़क मार्ग भी तैयार कर लिया है। इस दखल के बाद से चीन ने भारत की अवहेलना करते हुए पीओके क्षेत्र को पाकिस्तान का हिस्सा बताने संबंधी बयान भी देना शुरू कर दिए थे। चीनी दस्तावेजों में अब इसे उत्तरी पाकिस्तान दर्शाया जाने लगा है। इसलिए चीन में हुए आतंकवादी हमलों को प्रतिक्रियास्वरूप हुए हमलों के रूप में भी देखने की जरूरत है।
हांलाकि चीन में लोकतांत्रिक व स्वतंत्र मीडिया का वर्चस्व न होने के कारण वहां चल रही विद्राहियों की वारदातें आसानी से मीडिया की सुर्खियां नहीं बनतीं। विदेशी मीडिया का भी वहां प्रवेश वर्जित है। इन प्रतिबंधों के पीछे चीन की मंशा है कि वहां मानवधिकार संगठन खड़े न हो जाएं ? यह खबर तो इसलिए बाहर आई क्योंकि अब चीन में आतंकवाद सिर से ऊपर चला गया है। इस हमले में छह चीनी सैन्य अधिकारी मारे गए हैं और 20 से ज्यादा घायल हैं। फिर चूंकि आतंकवादी पाकिस्तान से प्रशिक्षित है, इसलिए चीन को पाकिस्तान की मुश्कें कसने के लिए और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आतंकवाद की ओर बटोरने के लिए इस घटना को सार्वजनिक करना जरूरी हो गया था। वैसे भी चीन 9/11 की घटना के बावजूद आतंक का पनाहगार ही बना हुआ था, अब जब वह खुद इसका शिकार बनने लगा है तो उसे भी लगने लगा है कि अपने देश में घट रही आतंकवादी घटनाओं को उजागर नहीं किया गया तो वह कालातंर में इस मुद्दे पर अलग-थलग पड़ जाएगा और बाद में उसे इस मुद्दे पर सर्मथन बटोरना भी मुश्किल होगा। बहरहाल अब ऊॅट पहाड़ के नीचे है।
pramod.bhargava15@gmail.com
प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49, श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी (म.प्र.) पिन-473-551
लेखक वरिष्ठ कथाकार एवं पत्रकार हैं।
bahut-bahut badhaayee.adbhut aalekh!khoj-khabar donon jabardst.
जवाब देंहटाएंpramod bhaaragav ji aapane yah samachar rachanakar men dekar rachanakar ke paathakon ko ek khushi di hai, cheen aaya ab aatankvaadi pahad ke chiche. bhaarat ki or kaali najar vaale ka munh kala. hari om
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