प्रमोद भार्गव का आलेख - अंगों के व्‍यापार पर अंकुश का कानून

SHARE:

मानव अंगों की अवैध खरीद-फरोख्‍त और इसके लिए गरीबों के अमानवीय दोहन के मामलों में भारी जुर्माने तथा कड़ी सजा देने के प्रावधान से जुडे़ मानव ...

मानव अंगों की अवैध खरीद-फरोख्‍त और इसके लिए गरीबों के अमानवीय दोहन के मामलों में भारी जुर्माने तथा कड़ी सजा देने के प्रावधान से जुडे़ मानव अंग प्रत्‍यारोपण (संशोधन) विधेयक 2009 को लोकसभा में पारित हो गया है। इस विधेयक का मूल उद्‌देश्‍य मानव अंग निकाले जाने से लेकर उसके प्रत्‍यारोपण को नियमित एवं सुगन बनाने के साथ-साथ अंगों के नाजायज कारोबार पर रोक लगाना है। इस कानून के दायरे में स्‍तंभ कोशिकाओं के साथ ऊतकों (टिशू) के व्‍यापार पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। ऐसे मामलों में अब 10 साल तक की सजा और एक करोड़ रूपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। 1994 में मूल रूप से अस्‍तित्‍व में आए इस कानून के तहत अब तक पांच साल की सजा और 10 से 20 हजार तक के आर्थिक दण्‍ड का प्रावधान था। अब ऐसी उम्‍मीद की जा रही है कि जिगर (लीवर) और गुर्दे (किडनी) का गैर कानूनी तरीके से प्रत्‍यारोपण करने वाले चिकित्‍सा कारोबारी भयभीत होंगे। इसके साथ ही किसी व्‍यक्‍ति के निधन के बाद उसके निकटतम परिजनों की सहमति से मृत व्‍यक्‍ति के महत्‍वपूर्ण अंग दान करने की भी व्‍यवस्‍था इस कानून में है। देश में फिलहाल 17 केंद्र इस काम में लगे भी हैं।

ऋग्‍वेद में कहा गया है कि जीव जगत का विकास एक कोशिका से हुआ है और कोशिका के विभाजन से ही विकास आगे बढ़ा। आज दुनिया के चिकित्‍सा विज्ञानी अपने नए अनुसंधानों से इस निष्‍कर्ष के इर्दगिर्द पहुंच रहे हैं। मसलन मानव त्‍वचा से महज एक स्‍तंभ या वंश कोशिका (स्‍टेम सेल) को विकसित कर कई तरह के रोगों के उपचार व निदान की पद्धतियां प्रचलन में आती जा रही हैं। चूंकि कोशिका विभाजित होकर विकसित होने की क्षमता रखती है इसलिए इस प्रक्रिया में पुनर्जीवन की संभावना तलाशी गई है। गोया यदि कोशिकाओं का मानव शरीर के क्षय हो चुके अंग पर प्रत्‍यारोपित करके विकसित होने का क्रम शुरू कर दे तो ऊतकों की मरमम्‍त का सिलसिला शुरू हो जाएगा। करीब दस लाख वंश कोशिकाओं का एक समूह सुई की एक नोक के बराबर होता है। लिहाजा इसमें मानव शरीर के उस हर अवयव को पुनजीर्वित व दुरूस्‍त करने की क्षमता खोजी गई हैं जो मृतप्राय अथवा निष्‍क्रिय हो चुके हैं। ऐसी चमत्‍कारी उपलब्‍धियों के बावजूद समूचा चिकित्‍सा समुदाय इस प्रणाली को रामबाण नहीं मानता। ऐसे लोगों का दावा है कि स्‍तंभ कोशिका पद्धति को जादुई छड़ी के रूप में पेश नहीं किया जाना चाहिए। शारीरिक अंगों के प्राकृतिक रूप से क्षरण अथवा दुर्घटना में नष्‍ट होने के बाद जैविक प्रक्रिया से सुधार लाने की प्रणाली में अभी और बुनियादी सुधार लाने की जरूरत है। अलबत्ता इतना जरूर है कि यह एक सर्वोत्तम वैकल्‍पिक चिकित्‍सा है और भविष्‍य में इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

ऐसी संशय और असमंजस की स्‍थिति में तय है मानव अंगों की खरीद-फरोख्‍त और उनके नाजायज कारोबार पर अंकुश के लिए एक प्रणाली कानून की जरूरत थी, जिसकी इस संशोधित विधेयक से कमोबेश पूर्ति होती है। दरअसल जिगर (लीवर) और गुर्दा (किडनी) जैसे जीवनदायी अंग यदि पूरी तरह से खराब हो जाते हैं तो इनका सफल उपचार किसी अन्‍य व्‍यक्‍ति के अंगों को बदलकर (प्रत्‍यारोपित) ही संभव है। इस परिवर्तन के लिए अंगों की उपलब्‍धता दो ही तरह से मुमकिन होती है एक तो अंगदान के जरिए, दूसरे लाचार व्‍यक्‍ति का अंग क्रय करके लेकिन अब जिगर का इलाज रोगी की ही अस्‍थि मज्‍जा से स्‍तंभ कोशिका निकालकर उसे क्षय हो चुके जिगर के हिस्‍से में प्रत्‍यारोपित करके किया जा सकता है। इस प्रणाली के अमल में आने पर एक-डेढ़ माह में ही बिना किसी गंभीर शल्‍य क्रिया का कष्‍ट झेले रोग का निदान हो जाता है।

इधर वंशानुगत रोगों को दूर करने के लिए महिला की गर्भनाल से प्राप्‍त स्‍तंभ कोशिकाओं का भी दवा के रूप में इस्‍तेमाल शुरू हुआ है। इस हेतु गर्भनाल रक्‍त बैंक (कार्ड ब्‍लड बैंक) भी भारत समेत दुनिया में वजूद में आते जा रहे हैं। इस चिकित्‍सा प्रणाली के अंतर्गत प्रसव के तत्‍काल बाद गर्भनाल काटने के बाद यदि इससे प्राप्‍त वंश कोशिकाओं का संरक्षण कर लिया जाए तो इनसे परिवार के सदस्‍यों का दो दशक बाद भी उपचार संभव है। इन कोशिकाओं का इलाज के लिए उपयोग दंपति की संतान के अलावा उनके भाई-बहन तथा माता-पिता के लिए भी किया जा सकता है। गर्भनाल से निकाले रक्‍त को क्रायोजेनिक संरक्षण वॉल्‍ट (कक्ष) में 21 साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है। लेकिन इस बैंक में रखने की शुल्‍क कम से कम एक लाख रूपए से लेकर डेढ़ लाख रूपए तक है। ऐसे में यह उम्‍मीद नहीं की जा सकती कि 20-25 रूपए रोजाना कमाने वाला आम आदमी इन बैंकों का इस्‍तेमाल कर पाएगा। सरकारी स्‍तर पर अभी इन बैंकों को खोले जाने का सिलसिला शुरू ही नहीं हुआ है। यदि होता भी है तो आम आदमी के लिए खाता खोलना भी मुश्‍किल होगा। हालांकि निजी अस्‍पताल में इन बैंकों की शुरूआत हो गई है और 75 से ज्‍यादा बैंक अस्‍तित्‍व में आकर कोशिकाओं के संरक्षण में लगे हैं। इस पद्धति से जिगर, गुर्दा, हृदय रोग, मधुमेह और स्‍नायु जैसे वंशानुगत रोगों का इलाज संभव है। नया कानून इस बैंकों की मनमानियों को नियंत्रित करने का काम भी करेगा।

महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान निकलने वाले जिस रक्‍त को अब तक अशुद्ध माना जाता था, उसमें दरअसल जीवन को निरोगी और दीर्घायु बनाने की क्षमता पाई गई है। नए शोधों से पता चला है कि इस रक्‍त में स्‍तंभ कोशिकाएं प्रचुर मात्रा में होती हैं। जिनका प्रयोग अनेक बीमारियों से छुटकारे के लिए किया जा सकता है। मुंबई में तो इन कोशिकाओं के संरक्षण की दृष्‍टि से ‘मेन्‍स्‍टुअल स्‍टेम सेल बैंक' भी शुरू हो चुका है। शोधों से पता चला है कि रजस्‍वला स्‍त्री के रक्‍त से मिलने वाली वंश कोशिकाओं में सफलता का प्रतिशत अस्‍थि मज्‍जा (बोन मैरो) से निकाले गई कोशिकाओं की बनिस्‍वत एक सौ गुना अधिक होती है। इस उपचार पद्धति की सबसे प्रमुख खासियत यह है कि ये आसानी से उपलब्‍ध हैं और इन्‍हें एक आसान प्रक्रिया के जरिए इकट्‌ठा किया जा सकता है। इनके संग्रह के लिए चिकित्‍सा विशेषज्ञ की भी जरूरत नहीं रहती। इन कोशिकाओं को जमा करने की इच्‍छुक महिलाओं को महावारी के रक्‍त को एकत्रित करने के लिए एक विशेष किट बैंक से दी जाती है। इस रक्‍त से प्राप्‍त कोशिकाओं से भी हृदयरोग, मधुमेह, चोट और रीढ़ की हड्‌डी के इलाज मुमकिन बताया जा रहे हैं।

लेकिन स्‍तंभ कोशिकाओं से उपचार की ये प्रणालियां अभी शैशव अवस्‍था में हैं और सीमित हैं। उपचार भी मंहगा है। इस कारण जिगर और गुर्दा की बीमारियों को प्रत्‍यारोपण के जरिए ही दूर करने की सबसे ज्‍यादा मांग है। इसकी आपूर्ति के लिए सरकार की कोशिश है कि कैड वेरी अर्थात ब्रेन डेड (दिमागी तौर पर मृत लोगों के अंग) लोगों के अंगदान से की जाए। यह प्रत्‍यारोपण के लिए अंगों की आपूर्ति का सबसे अच्‍छा और सरल माध्‍यम है, जिसे लोगों में जागरूकता पैदा करके पूरा किया जा सकता है। भारत में हर साल एक लाख 50 हजार लोगों के गुर्दे प्रत्‍यारोपण की जरूरत होती है। लेकिन बमुश्‍किल 5000 लोगों में गुर्दा प्रत्‍यारोपण मुमकिन हो पाता है। हृदय प्रत्‍यारोपण के हालात तो बेहद चिंताजनक है। देश में हर साल 50 हजार लोग हृदय प्रत्‍यारोपण के इंतजार में रहते हैं। इनमें से महज 10-15 लोगों का ही हृदय परिवर्तित हो पाता है। देश में अंग प्रत्‍यारोपण के लिए जरूरी चिकित्‍सा सुविधाओं में हो रही वृद्धि और मानव अंग प्रत्‍यारोपण अधिनियम 2009 में संशोधन के बाद अंग प्रत्‍यारोपण कराने वाले लोगों की संख्‍या में भारी वृद्धि की उम्‍मीद की जा रही है। लेकिन इसके बावजूद अंगदान करने वालों की संख्‍या नहीं बढ़ रही। अंग प्रत्‍यारोपण कराने के लिए बड़ी संख्‍या में विदेशी भी भारत आने लगे हैं, क्‍योंकि यहां खर्च कम होने के साथ अंगों की खरीद-फरोख्‍त का सिलसिला चलते रहने के कारण अंगों की उपलब्‍धता आसान बनी रहती है। तीन साल पहले गुड़गांव के एक निजी चिकित्‍सालय में 600 मजदूरों के गुर्दे धोखाधड़ी करके निकाल लिए जाने का हृदयहीन मामला सामने आया था। हालांकि अब कृत्रिम गुर्दे का भी निर्माण करने में चिकित्‍सा विज्ञानियों ने सफलता हासिल कर की है। किंतु अभी यह प्रणाली चलन में नहीं आई है। इसके चलन में आने के बाद उम्‍मीद की जा सकती है कि मानव गुर्दे की जरूरत में स्‍वाभाविक रूप से कमी आ जाएगी।

अंग प्रत्‍यारोपण में सबसे कारगर पद्धति अंगदान ही है। इसकी आपूर्ति तीन प्रकार से अंगदान करके की जा सकती है। पहला कोई भी इंसान जीवित रहते हुए अपना गुर्दा अथवा जिगर दान करके जरूरतमंद को नया जीवन दे दे। दूसरे किसी व्‍यक्‍ति के ब्रेन डेड होने पर, उसके परिजनों की अनुमति मिल जाए तो अंग-प्रत्‍यारोपण किया जा सकता है। इस पद्धति को भी इस संशोधित विधेयक में मान्‍यता हासिल करा दी गई। ब्रेन डेड से मसलन मस्‍तिष्क की मृत्‍यु एक ऐसी अपरिवर्तनीय हालत है जिसमें मस्‍तिष्‍क की समस्‍त चैतन्‍य क्रियाओं का अंत हो जाता है। मस्‍तिष्‍क मृत होते ही ‘सेरेब्रल न्‍यूरांस' भी पूरी तरह खत्‍म हो जाता है। मस्‍तिष्‍क या उसके किसी हिस्‍से के मृत होने की स्‍थिति को कानून की भाषा में व्‍यक्‍ति की मृत्‍यु की सामान्‍य रूप से या फिर दुर्घटना में मौत हो जाए तो उसके अंगों का प्रत्‍यारोपण करके लोगों को नया जीवन दिया जा सकता है। लेकिन इसमें अंगदान करने की समय सीमा होती है। समय रहते मृत व्‍यक्‍ति से अंग निकाल लिए जाएं तभी उनका प्रत्‍यारोपण संभव हो पाता है। इसमें परिवार की इजाजत कानूनन जरूरी है। अंगदान को व्‍यावसायिक दायरे में भी लाया गया है। चेन्‍नई स्‍थिति ‘मल्‍टी अॉर्गन हार्वेिस्‍ंटग एण्‍ड नेटवर्क फाउण्‍डेशन के प्रबंधन न्‍यासी सुनील श्रॉफ' ने भारत सरकार से मांग की है कि मृत-देह के दान की दर बढ़ाकर प्रति देह 10 लाख कर दी जाए तो हमें 1100 दानदाता हरेक साल आसानी से मिल जाएंगे। लिहाजा प्रत्‍यारोपण के लिए 2200 गुर्दे आसानी से उपलब्‍ध होंगे। देश में प्रत्‍येक साल सड़क हादसों में करीब एक लाख 40 हजार लोगों की मौत होती है। बहरहाल इस संशोधित कानून के अस्‍तित्‍व में आने से जहां उपचार निदान में आसानी होगी, वहीं इलाज को ठेठ कारोबारी निगाह से देखने की मानसिकता पर भी अंकुश लगेगा।

pramod.bhargava15@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्रमोद भार्गव का आलेख - अंगों के व्‍यापार पर अंकुश का कानून
प्रमोद भार्गव का आलेख - अंगों के व्‍यापार पर अंकुश का कानून
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQwqAbqXmuQh-BbHe7DgzPDiTQT0dCo9wtOv_H-yrQKC76iQVt23yek0jQt2pF0tAP_9R16o582BcOKiCTJy5S4gEPhCqlLDGTp2ydRWnZaWLnnELJMBaVL-Nou2i8Y2_MPWQbTA/s249/pramod+bhargava+new.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQwqAbqXmuQh-BbHe7DgzPDiTQT0dCo9wtOv_H-yrQKC76iQVt23yek0jQt2pF0tAP_9R16o582BcOKiCTJy5S4gEPhCqlLDGTp2ydRWnZaWLnnELJMBaVL-Nou2i8Y2_MPWQbTA/s72-c/pramod+bhargava+new.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2011/08/blog-post_16.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2011/08/blog-post_16.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content