आदमखोर (कहानी संकलन) संपादक - डॉ. दिनेश पाठक शशि - 9 - मंजुला गुप्ता की कहानी : सच्चाई

SHARE:

कहानी संग्रह आदमखोर (दहेज विषयक कहानियाँ) संपादक डॉ0 दिनेश पाठक ‘शशि’ संस्करण : 2011 मूल्य : 150 प्रकाशन : जाह्नवी प्रकाशन विवेक व...

kahani sangraha aadamkhor dahej vishyak kahaniya dinesh pathak shashi

कहानी संग्रह

आदमखोर

(दहेज विषयक कहानियाँ)

संपादक

डॉ0 दिनेश पाठक ‘शशि’

संस्करण : 2011

मूल्य : 150

प्रकाशन : जाह्नवी प्रकाशन

विवेक विहार,

शाहदरा दिल्ली-32

शब्द संयोजन : सागर कम्प्यूटर्स, मथुरा

----

सच्चाई

श्रीमती मंजुला गुप्ता

छम-छम-छम लगातार पाजेब की रुन-झुन के संग-संग, चूड़ियों की खनक की आवाज दूर से जब धीरे-धीरे क्रमशः पास आने लगी, तो मेरी उत्सुकता चरम सीमा पर पहुँच गयी। ऊपर का मकान अभी तक तो खाली पड़ा था बल्कि छः माह से खाली था। मेरे महीने भर के प्रवास में रहने से, कब लोग आ गये-चूड़ियों एवं पाजेब की खनक से मैंने सहज अनुमान लगा लिया कि उसमें आज के समान कोई माडर्न टॉप जिंस वाली लड़की नहीं, अपितु सिंदूर, बिंदी, चूड़ी, पाजेब एवं चटक शोख रंगों वाली साड़ी से सुसज्जित कोई पारम्परिक महिला होगी।

मेरा अनुमान सही निकला, सफेद झक दूध में मानों किसी ने थोड़ी सी केशर अथवा गुलाब की ताजा पंखुड़ियों को पीसकर उसका रंग मिला दिया हो- ऐसा दिप-दिप करता गौर वर्ण, गोल मुखड़े के बीचों-बीच नाक पर चमकती, सफेद हीरे की लौंग, घने काले रेशमी बालों की लम्बी कमर तक झूलती चोटी, चौड़े माथे पर लाल चमकती बिंदी, एवं बीचों बीच गहरे लाल पीले प्रिन्टेड नायलान की साड़ी से बार-बार उघड़ते सिर को ढंकते वह अपना परिचय देने लगी ‘‘यहाँ मेरी ससुराल हैं। मेरे पति पाँच भाई और तीन बहनें हैं। यह सबसे बड़े हैं। हम लोग आसाम में रहते हैं, वहाँ कोयले का बहुत बड़ा हमारा व्यापार है। हम लोग यहाँ अपने दोनों बच्चों के संग घूमने आये हैं। इस महीने की पच्चीस तारीख तक चले जायेंगे। आप कभी आसाम घूमने आना-, बहुत सुंदर जगह हैं।’’

‘‘सुंदर तो हमारा जयपुर शहर भी कम नहीं -’’ मेरे कहने पर उसकी मासूम, भोली सूरत पर हल्की सी मुस्कान दौड़ पड़ी और वह जैसे आयी थी, वैसे ही छम-छम करते हुए चली गयी।

अपने शहर में महिलाओं की आधुनिकता के प्रति दिनोंदिन बढ़ती ललक एवं गला काट स्पर्धा को देखकर मैं सोचने लगती ऐसी महिलायें, थोड़े दिनों बाद केवल गाँव में ही दिखायी पड़ेगी। बीच-बीच में हमारी मुलाकातें होती रहतीं। वह नीचे किसी न किसी काम से ही आती, कभी कपड़ा सुखाने, कभी सब्जी खरीदने, परन्तु उसकी सास की चौकस निगाहें मानों प्रतिपल उसके ऊपर लगी रहतीं। बातों में यदि तनिक भी देर हो जाती तो उसकी कर्कश गुहार आरम्भ हो जाती और वह जिस रफ्तार से आती थी उसी रफ्तार से सहमती सी चली जाती।

घनघोर वर्षा के उपरान्त, खिली, चमकती धूप सी, छायी रहने वाली, उसके चेहरे पर हँसी और मुस्कान की जगह उदासी की परत देख, मेरे पूछने पर, उसने बताया कि उसके पति की तबियत ठीक नहीं रहती। शरीर में दिनों-दिन दुर्बलता आती जा रही है। कई डाक्टरों को दिखाने, एवं कई तरह के टेस्ट के उपरान्त ‘‘पीलिया’’ बीमारी निकली और अब उसका इलाज चल रहा है।’’

मुझे आज भी वह दिन भुलाये नहीं भूलता जब दोनों सास-बहू ने करवा चौथ का व्रत रखा था। लाल सुर्ख लहंगा ओढ़नी में, नख-शिख सोलह सिंगार किये वे छत पर चंद्रमा की पूजा करने, अन्य महिलाओं के संग छत पर आयी थी। पूजा के उपरान्त कमला ने सबसे पहले अपनी सासू जी के चरण स्पर्श किये उसके उपरान्त अन्य महिलाओं के। बातों का सिलसिला चलने पर उसने बताया कि आज ही प्रातः उनकी तबियत अधिक बिगड़ने से हास्पिटल में भर्ती कराना पड़ा।

जैसे-जैसे समय बीतता गया, इलाज के उपरान्त भी उसकी तबियत बिगड़ती चली गयी। कभी प्राईवेट अस्पताल, कभी सरकारी, कभी अंग्रेजी दवा, कभी आयुर्वेदिक होम्योपैथिक इतने डॉक्टर और दवाओं के उपरान्त भी लाभ होते न देखकर अब पूजा, पाठ, दान-पुण्य का सिलसिला आरम्भ हो गया। कभी भजन पूजन की यह मंडली बुलायी जाती, कभी वह मंडली। घर के लगभग सभी प्राणी आँखों में आँसू भरे हुए मानो ‘‘गजग्राह’’ की आर्तपुकार से भर जुगल किशोर के जीवन की भीख माँग रहे थे। जहाँ दो पड़ोसी इकट्ठे होते बस जुगल किशोर की बीमारी की चर्चा छिड़ जाती। अंत में सभी पास-पड़ोसियों ने उसके जीवन की भीख माँगनी शुरु - हे भगवान। हम सब की आयु में से पाँच-पाँच वर्ष तू कम कर दें परन्तु इसकी बढ़ा दें। छोटे-छोटे बच्चे, कच्ची गृहस्थी, कमला कुछ

पढ़ी-लिखी भी तो नहीं है कि आगे नौकरी करके अपना और अपने बच्चों का इज्जत से पेट भर सके।’’

परन्तु अंत में सबके सारे प्रयास अकारथ सिद्ध हुये। ईश्वर के अटल फैसले पर सबको सिर झुका देना पड़ा।

कोई भी व्यक्ति ईश्वर की इस क्रूर सच्चाई को सहज में स्वीकार नहीं कर पा रहा था। जितने मुँह उतनी बातें.....’’डाक्टरों की गलती से ऐसा हो गया। शायद उसने ही कोई गलत दवा किसी अनाड़ी के बताने से ले ली।’’‘‘हाय..हाय...तीन....चार महीने के इलाज में इतना पैसा पानी की तरह बहाया फिर भी नहीं......जान लेवा कष्ट सहा फिर भी नहीं बचा............खैर होनी को जो कुछ मँजूर था अंत में वह सब हो गया।

थोड़े दिनों तक तो आर्त स्वर में चीख-चीख कर रोने के संगमसंग प्रदू कर्म का तांडव नृत्य चलता रहा। सभी एक स्वर से स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन, कपड़े और दान दक्षिणा में सोने चाँदी का नाम ले रहे थे। दूर-दूर से रिश्तेदार भी ऐसा डेरा डालकर बैठे थे जैसे कोई घर में ब्याह शादी का आयोजन हो रहा हो। जुगल किशोर के माता-पिता अपने दिवंगत बेटे की आत्मा की शान्ति के लिए लाखों रुपये पानी की नांई बहा रहे थे। कमला बस चुपचाप निर्विकार भाव से आते-जाते लोगों को एकनजर देख लेती। उसे सबने बारहवीं के दिन नहला धुला कर सफेद साड़ी पहना दी थी। उसके शारीर से लगभग सभी आभूषण विशेष रूप से जो सुहाग के प्रतीक माने जाते हैं उतार लिए गये थे। उसका चेहरा अब श्रीहीन होने के संग-संग पत्थर की तरह सख्त हो चुका था। उसके चेहरे से समस्त कोमल भाव जैसे उड़न छू हो गये थे।

धीरे-धीरे सभी मेहमान विदा हो गये और मात्र परिवार के लोग ही रह गये। कमला के दुर्दिन तो पति के नेत्र बंद करते ही आरम्भ हो गये थे परन्तु अब उसके और उसके बच्चों के ऊपर पहले तो दबे ढके स्वर में, पुनः मुखर रूप में अत्याचार आरम्भ हो गया। बात-बात में जुगल-किशोर के पिता जिन्हें हम सब सेठ जी कहते थे और उनकी पत्नी सेठानी जी बहू को कुलच्छनी, अभागिनी, बेटों को खा जाने वाली कहती, कभी बच्चों को अभागा, उन्हें अनाथाश्रम में भेज देने को धमकाती, उनके ऊपर किया जाने वाला खर्च, उन्हें नागवार गुजर रहा था। दोनों बच्चे माँ से लिपट कर जब रोते और वह भी जब इस आघात को झेलने की हिम्मत जुटाने का प्रयास करतीं तो इस मर्मस्पर्शी दृश्य को देखकर मानों पत्थर भी पिघल उठता। कमला अक्सर अपने छोटे-मोटे जेवर चुपके-चुपके बेच कर अपने इस आपातकालीन संकट से निपटने का प्रयास करती थी परन्तु यहाँ पर भी वे लोग उसके संग अत्याचार करने से नहीं चूके। अब तो जुबान के संग-संग लात घूँसे और थप्पड़ों की नौबत आ गयी। गलती कोई करें, घर में किसी प्रकार का नुकसान होने पर घूम फिर कर निशान कमला या उसके दोनों बच्चों को बनाया जाता। नित्य प्रति इस तरह की घटनायें देख-देखकर हमारे मकान मालकिन की बूढ़ी अम्मा जो कि दया, करुणा, ममता की साक्षात्मूर्ति थी, और कालोनी की सभी महिलायें प्रातः काल मंदिर में उनका चरण स्पर्श करना अपना अहो भाग्य मानती थीं, उन्होंने कठोर शब्दों में सेठ जी एवं सेठानी जी को यह चेतावनी दे कि यदि तुम लोग जुगल किशोर की बहू और बच्चों पर इस तरह से जुल्म करोगे तो मैं तुम्हें अपने मकान में नहीं रहने दूँगी। तुम लोग अगले महीने ही मकान खाली करके यहाँ से चले जाओं। इन निर्दोष, बेसहारा लोगों पर इतना जुल्म देख-देखकर हमारा मकान ही नहीं सब अभिशप्त हो जायेंगे।

और वास्तव में थोड़े दिनों पश्चात् ही उन लोगों ने वह मकान छोड़ दिया और अन्यत्र चले गये।

मेरा उन लोगों से सम्पर्क लगभग टूट गया। इधर बेटी के जन्म, उसकी परवरिश एवं देखभाल में मैं इतना व्यस्त हो गयी कि उन लोगों का ख्याल भी मेरे मस्तिष्क से लगभग निकल चुका था। समय मानों पंख लगाकर चलाजा रहा था। इसी बीच कई वर्ष बीत गये। एक दिन में बाजार से कुछ आवश्यक सामान खरीद, शीघ्र से शीघ्र घर पहुँच जाने की उतावली में थी कि किसी नारी की क्षीण परन्तु मधुर परिचित स्वर सुनकर ठिठक गयी। ‘‘बहन जी जरा सुनिये......सुनिये बहन जी’’ का स्वर सुनकर मैंने जिसे देखा उसके दयनीय रूप का वर्णन शायद मेरी लेखनी के वश में नहीं हैं। बीमार, दुर्बल, काया पर जगह-जगह फटी मैली साड़ी को लपेटे अपने असमय हो गये सफेद केश, झुर्री लिये चेहरा और हाथ पाँव मानों महीनों से साबुन और तेल के दर्शन नहीं हुये हैं : मैं उसे देखते ही सहसा पहचान न पायी। उसकी दयनीय सूरत और करुणा की साक्षात मूर्ति देख मैं पलभर में सकते में भर बड़ी कठिनाई से बोल पायी ‘‘तुम!’’ उसकी आँखें पलभर में भर-भरा उठीं।

‘‘क्या बताऊँ बहन जी। वहाँ अम्मा जी ने जबसे मकान खाली करने को कह दिया तो इन लोगों ने यहाँ पर खूब बड़ा मकान किराये पर ले लिया है। यहाँ आस-पास किसी का मकान नहीं है। चारों तरफ सुनसान खाली प्लाट हैं। इन लोगों ने मेरे पति का पैसा जो कुछ उन्होंने बैंक अथवा ‘‘जीवन बीमा’’ के तहत जमा

किया था, मुझसे अंगूठा लगवा-लगवा कर निकाल लिया। जब तक पैसा निकालने का काम चल रहा था, तब तक तो यह लोग बड़े प्रेम एवं सहानुभूति से पेश आ रहे थे। ससुर जी बच्चों को गोद में बैठा-बैठा कर आश्वासन देते थे मैं हूँ न अभी,मेरे जीते जी तुम लोगों को कोई बाल-बाँका न कर सकेगा.....,’’ मेरे एवं बच्चों के लिए कुछ न कुछ बाजार से लाते रहते जिसे देख मैं प्रसन्न ही नहीं, अपितु पूरी तरह आश्वस्त भी थी कि चलो इनके पापा नहीं हैं, तो क्या इन लोगों की देखभाल में बच्चे कुछ बन जायेंगे। इनका भविष्य चौपट न होने पायेगा। वे बच्चों को दुलारते हुये कहते ‘‘देखो तो मेरी शक्ल तुम्हारे पापा से कितनी मिलती है।’’

लेकिन यह सब मानो किसी जालसाजी के तहत था। सारा पैसा बैंक से निकलते ही उनका असली रूप प्रकट हो गया। इन लोगों ने मकान भी ऐसी जगह सुनसान में लिया है कि उनके जुल्मों की दास्तां किसी को पता न चले। इन लोगों ने सुच्चा दूध पीने के लिए एक भैंस खरीद ली हैं। उसने सामने बंधी भैंस की ओर इशारा किया। मैं प्रातः काल पाँच बजे उठकर, इसकी सानी-पानी कर दूध निकालती हूँ। इन लोगों ने नीरजा की आठवीं क्लास में ही पढ़ाई छुड़ा दी। कहते हैं कि घर का कामकाज सिखाओ। ज्यादा पढ़ने पर लड़का नहीं मिलेगा। वह मेरे साथ ही घर का कामकाज में मदद करती हैं। दीपक को दसवीं पास करते ही, पास की दुकान पर बैठाने लग गये। कहते हैं कमाई कर...... कहाँ से खर्चा चलेगा। तीन-तीन प्राणी मुँह बायें मेरे सामने खड़े रहते हो, सबको रोजाना मौत आती है जाने तुम लागों को क्यों नहीं आती।’’

वह आँसुओं का घूँट पीते हुये, थोड़ा रुक कर इधर-उधर देखकर बोली ‘‘बहन जी दुनिया का असली चेहरा, एवं उसका बीभत्स रूप मुझे दीपक के पापा के न रहने पर दिखायी पड़ गया। यह जो आत्मीय जन हैं न, परिवार वाले, उन्हें मैंने कभी गैर नहीं समझा, मेरे दहेज का सारा जेवर और खास-खास सामान छोटी ननद की शादी में यह कहकर दिया कि पापा जी का हाथ अभी तंग है, बाद में नौबत ही न आयी, बनवाने की। व्यापार में मंदी, तो कभी ननदों की शादी। पैसा जुट ही न पाया। मेरे पीहर वाले इनके बारहवें के दिन आये थे। देन-लेन में तो कोई कमी न की। ससुर जी के हाथ में मोटी रकम नकदी की थमायी। सारे घर के लोगों को नये कपड़े पहनाये, उसके बाद पलट कर भी न देखा मैं जीती हूँ या मरती हूँ अथवा मेरे बच्चे किस हाल में हैं। उल्टे बातों-बातों में यह इशारा कर गये कि मुझे हर हाल में यहीं रहना है। चाहे कितना ही दुख क्यों न उठाना पड़े। उनका मानना है कि जो लड़की माता-पिता के घर से दुल्हन का जोड़ा पहन कर जाती है, ससुराल की देहरी से अर्थी पर कफन ओढ़कर निकलती है। दुबारा मायके में उसका स्थान नहीं है।

मैंने तो जीवन का यह सभी गरल, ईश्वर की देन समझकर ग्रहण कर लिया है। क्या करुँ? पढ़ी-लिखी होती तो पति के जाने के उपरान्त उसके रुपयों की जानकारी रखती। कहीं भी अगूँठा नहीं लगाती। अच्छी तरह पढ़कर दस्तखत करती।

और वह सुबकती आँसू पोंछती ‘‘चलूं, ढेरों काम पड़े हैं। सासू जी को तनिक भी आपसे मिलने का पता चल गया तो जान ले लेगीं।’’

और वह जैसे आयी थी, वैसे ही चली गयी।

सारे रास्ते मेरे दिमाग में बस एक ही वाक्य बारम्बार हथौड़े की तरह बज रहा था‘‘ काश! मैं पढ़ी-लिखी होती।’’

‘‘काश! वह पढ़ी-लिखी होती, सोचते-सोचते मैं अनायास ही उसके प्रथम मिलन की मुस्कराती छवि की तुलना आज के दिन से करने लगी। ’’’

9 बी.एस.रोड,

बाईपास गोदाम सकिल,

जयपुर (राज.)

----------------------------.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: आदमखोर (कहानी संकलन) संपादक - डॉ. दिनेश पाठक शशि - 9 - मंजुला गुप्ता की कहानी : सच्चाई
आदमखोर (कहानी संकलन) संपादक - डॉ. दिनेश पाठक शशि - 9 - मंजुला गुप्ता की कहानी : सच्चाई
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEja2VIoL1HjgfsUTMYV3UDlPklvvkigDwpXu8ys4EtVhekAfJ6PhdrRkct6NtYfrQWfs6ct6aR2W9LZJ1QiPBpaebn3xiYWEuQZkRRpDnjfzD6eRNp-XvTnOWdUxbNdTMBAy7xH/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEja2VIoL1HjgfsUTMYV3UDlPklvvkigDwpXu8ys4EtVhekAfJ6PhdrRkct6NtYfrQWfs6ct6aR2W9LZJ1QiPBpaebn3xiYWEuQZkRRpDnjfzD6eRNp-XvTnOWdUxbNdTMBAy7xH/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2011/08/9.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2011/08/9.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content