आदमखोर (कहानी संकलन) संपादक - डॉ. दिनेश पाठक शशि - 12 - धर्मपाल साहिल की कहानी : किसी भी शहर में

SHARE:

कहानी संग्रह आदमखोर (दहेज विषयक कहानियाँ) संपादक डॉ0 दिनेश पाठक ‘शशि’ संस्करण : 2011 मूल्य : 150 प्रकाशन : जाह्नवी प्रकाशन विवेक व...

kahani sangraha aadamkhor dahej vishyak kahaniya dinesh pathak shashi

कहानी संग्रह

आदमखोर

(दहेज विषयक कहानियाँ)

संपादक

डॉ0 दिनेश पाठक ‘शशि’

संस्करण : 2011

मूल्य : 150

प्रकाशन : जाह्नवी प्रकाशन

विवेक विहार,

शाहदरा दिल्ली-32

शब्द संयोजन : सागर कम्प्यूटर्स, मथुरा

----

श्री धर्मपाल साहिल

किसी भी शहर में

चाय की चुस्कियों के साथ सुबह का समाचार-पत्र पढ़ते-पढ़ते मैं अचानक चौंक उठा। हाथ में पकड़ा चाय का कप मेज पर रखकर मैंने ऐनक ठीक की और पूरा ध्यान केन्द्रित करके यह समाचार पढ़ा। हृदय में परेशानी, घृणा, दुःख, आक्रोश व पश्चाताप के भाव बरसाती नाले की भांति उमड़ पड़े। इसी प्रभाववश एक घनिष्ठ मित्र के घर रात बिताने की याद का बोझ मेरे मन-मस्तिष्क पर हिमालय जितना हो गया।

सप्ताह भर पहले ही मुझे कम्पनी के काम से उस शहर जाना पड़ा था। पत्नी बीमार थी। मैं तो चाहता था कि बॉस किसी और को भेज दे, लेकिन प्राईवेट कम्पनियों में सरकारी विभागों जैसी छूट नहीं होती। बॉस का हुक्म टालने का सीधा-सा अर्थ होता है बॉस को नाराज करना।

हालांकि काम काफी देर से निपटा था, फिर मैं रातोंरात अपने शहर लौट जाना चाहता था, पर लम्बे समय से राज्य के हालात ठीक न होने के कारण बसों की रात्रि-सेवा बंद थी। रेलवे स्टेशन पहुँचकर पता चला था कि रात नौ बजे मेरे शहर जाने वाली अन्तिम गाड़ी स्वभाववश छह घंटे लेट चल रही थी। दिसम्बर की कड़ाकेदार ठंड थी।

‘‘तो रात मुझे प्लेटफार्म पर ठिठुरन में गुजारनी पड़ेगी।’’ यह विचार कौंधते ही मुझे उसी शहर में रहते अपने कॉलेज के दिनों के मित्र सुधीर की याद आ गयी। मैंने वहाँ ठंड में हड्डियां कपाने की अपेक्षा सुधीर के पास रात में ठहरना ही उचित समझा था। मन ही मन मैंने रेलवे की अकर्मण्यता को कोसा। प्लेटफार्म पर छावनी डाले प्रतीक्षारत यात्रियों व शंटिग करते इंजनों पर दृष्टिपात करता और कोलाहल को अनसुना करता हुआ बाहर आ गया था तथा रिक्शा करके मैं सुधीर के घर की ओर चल पड़ा था।

सर्दियों की रात का माहौल में घुली दहशत के कारण बाहर अधिक चहल-पहल नहीं थी। चिमनियों द्वारा उगले धुएं व ट्रैफिक से उड़ी धूल के कारण स्ट्रीट लाईट की रोशनी बहुत मद्धिम नजर आती थी। सड़क के किनारे लगे गन्दगी के ढेर से उड़ती सड़ांध व प्रदूषित वातावरण के कारण चारों ओर फैली मछली बाजार की-सी दुर्गन्ध मेरे नथुनों को सराबोर कर गयी थी। इन्हीं कूड़े के ढेरों पर खड़े किये फिल्मी सितारों के कटाउट्स पर दृष्टि पड़ते ही मेरी आँखों के सामने सुधीर का हँसमुख चेहरा घूम गया। ऊँचे कद-काठी व सुन्दर चेहरे में वह किसी फिल्मी हीरो से कम नजर नहीं आता था। मेरे मित्र का चरित्र इन फिल्मी सितारों जैसा नहीं जो पर्दे पर तो आदर्श पति, पत्नी, माँ, बाप, भाई, बहन, दोस्त आदि की भूमिका निभाते हैं लेकिन असल जिन्दगी में वे कितने आदर्शहीन हैं, यह तो पत्र-पत्रिकाओं में नित्य-प्रति छपते इनके रोमांस व सैक्स-स्कैंडल के चर्चों से पता चल ही जाता है।

रामायण धारावाहिक की सीता (दीपिका) की जब भरत (संजयजोग) से विवाह जैसी खबरें समाचार-पत्रें में प्रकाशित होती हैं तो ये सितारे किस नैतिकता का संदेश जन-साधारण को देते हैं, लेकिन मेरा मित्र सुधीर ऐसा नहीं है। वह तो साफ-सुथरे चरित्र और ऊँचे आदर्शों पर चलने वाला इंसान है। इसीलिए तो मैं सुधीर के चुम्बकीय व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ था।

वह उम्र ही ऐसी थी। बस जोश ही जोश था। होश से तो दूर का भी वास्ता नहीं था। सुधीर हमारा दिमाग था। उसके उपजाऊ मस्तिष्क में रोज नई-नई योजनाएं जन्म लेतीं कुछ नया कर दिखाने की, विद्यार्थियों की भलाई की। और हम उन योजनाओं को सफल करने के लिए जी-जान से जुट जाते। उस उम्र में दोस्ती का आधार विचारों में समानता तो था ही, साथ एक-दूसरे के प्रति सम्मान तथा दुख-सुख में निस्वार्थ सेवा-भावना भी थी, शायद इसीलिए इस उम्र में हुई दोस्ती की जड़ें बहुत गहरी थीं।

सुधीर एक कुशल और प्रभावशाली वक्ता था। उसने अनेक भाषा एवं वाद-विवाद प्रतियोगिताएं जीतकर कॉलेज का नाम रोशन किया था। वह एक अच्छा अदाकार भी था।

मेरी सुधीर से प्रथम मुलाकात भी यूथ फैस्टिवल हेतु तैयार किए जा रहे एक नाटक की रिहर्सल के दौरान ही हुई थी। दहेज समस्या पर आधारित उस नाटक में सुधीर की भूमिका एक ऐसे प्रगतिशील विचाराधारा वाले युवक की थी जो सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन हेतु नौजवान सभा का गठन करता है तथा लोगों में इन बुराइयों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए जागृति पैदा करता है।

नाटक में वह जान पर खेलकर दहेज के लोभियों को गिरफ्तार कराकर एक अबला को दहेज-दानवों के क्रूर पंजों से मुक्त कराता है, जबकि इसी नाटक में मेरी भूमिका एक लालची पति की थी जो अपने दहेज-लोभी माँ-बाप के षड्यन्त्रों में पूरा साथ देता है, और अन्त में मेरा हश्र भी अपने माँ-बाप जैसा ही होता है। सुधीर ने इस नाटक में इतना जीवन्त अभिनय किया था कि न केवल हमारे नाटक को ही प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था बल्कि सुधीर को भी श्रेष्ठ अदाकार का पुरस्कार मिला था। सुधीर के उत्कृष्ट अभिनय के पीछे एक कारण यह भी कि सुधीर जो वास्तविक जीवन में था वहीं, उसे नाटक में भी करना था। सुधीर के बिना दहेज शादी करने की कसम खा रखी थी। वह किसी के साथ अन्याय होता बरदाश्त नहीं कर सकता था। नाटक की रिहर्सल के समय पनपी हम दोनों की दोस्ती समय के साथ-साथ और गहरी होती गयी थी। हम हमनिवाला थे। कॉलज में हमारी दोस्ती दूसरों के लिए मिसाल थी। शिक्षा पूरी करने के बाद सुधीर बैंक में एकाउंटेंट भर्ती हो गया था, और मुझे एक कैमिकल फैक्ट्री में केमिस्ट के पद पर सन्तोष करना पड़ा था। हम दोनों ने बिना दहेज विवाह किया था। लेकिन सुधीर की पत्नी सीमा अन्तर्जातीय थी।

इन्ही सोचों में डूबे मुझे पता ही न चला था और रिक्शा सुधीर के मोहल्ले में प्रवेश कर गया था। एक विशालकाय हवेली के सामने रिक्शा रुकवाकर रिक्शा-चालक को भाड़ा दिया और गेट के पास से जाती सीढ़ियाँ चढ़कर मैं ऊपर पहुँच गया था। सुधीर दूसरी मंजिल पर किराये के फ्लैट में रहता था।

मुझे असमय व अचानक आया देखकर सुधीर की बाछें खिल उठी थीं। बड़े तपाक से हाथ मिलाते हुए मुझे अपनी बलिष्ठ बाहों में भर लिया था। सीमा भाभी से नमस्ते, बच्चों से ‘हैलो-हैलो’ करने के बाद वह मुझे बैठक में ले गया। मेरे ना-ना करते भी उसने अलमारी से व्हिस्की की बोतल निकाल ली थी। सीमा को खाना तैयार करने को कहकर उसने दो पैग तैयार कर लिए थे।

मिलने की खुशी में हमने जाम टकराए। प्लेट से भुजिया का चम्मच भरकर फांकते हुए सुधीर ने मेरे परिवार की कुशल-क्षेम पूछी।

मैं बता ही रहा था कि मेरी पत्नी लगभग एक वर्ष से रीढ़ की हड्डी के दर्द से चारपाई पकड़े हुए है। कई जगह इलाज कराया है, पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। घर को सम्भालना पड़ रहा है। मैं तो हर हाल में अपने घर लौट जाना चाहता था, लेकिन कोई साधन ही न बना।

अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई थी कि उस हवेली के निचले हिस्से से गाली-गलौज, चीखने-चिल्लाने का शोर मेरे कानों में पड़ा जो हमारी बातचीत में विघ्न डाल रहा था। ‘‘यह कैसा शोर है, सुधीर?’’ मैंने अपनी रामकहानी बीच में ही रोककर पूछा था।

‘‘कुछ नहीं, रोज का ही काम है इनका, छोड़ इन्हें तू, अपनी सुना।’’ सुधीर ने गिलास खाली करते हुए लापरवाही से कहा, जबकि नीचे से लगातार आ रहे किसी स्त्री के क्रन्दन ने मेरे भीतर हलचल मचा दी थी। एक जिज्ञासा जोर मार रही थी कि खुद ही नीचे जाकर देखूं आखिर माजरा क्या है। मैंने सुधीर का ध्यान उस ओर आकर्षित करने की कोशिश में दोबारा कहा, ‘‘देखें तो सुधीर, किसी औरत की आवाज है। मुझे तो केाई गड़बड़ लगती है, जैसे किसी औरत के साथ......।’’

‘‘हाँ-हमारे मकान-मालिक की बहू है। वह साला आज फिर पीकर उसे पीट रहा होगा।’’ सुधीर ने मेरा गिलास खाली होने की प्रतीक्षा करते हुए निर्विकार भाव से कहा।

‘‘क्यों मारता है उसका पति?’’ मैंने पुनः पूछा।

‘‘घर में सौ झगड़े होते हैं मिया-बीबी में। हमें क्या लेना-देना किसी के पर्सनल लाइफ से।’’ सुधीर मेरा गिलास खाली होने की अधिक प्रतीक्षा न कर सका, और वह अपने गिलास से पुनः व्हिस्की उड़ेलने लगा।

यह सुधीर की पुरानी आदत हैं वह शराब बहुत तेजी से पीता है। पीता क्या हलक में उड़ेलने की कोशिश करता है। उसके साथ शराब का आनन्द नहीं लिया जा सकता। गटागट शराब पीकर वह जल्दी ही सरूर में आ जाता है। लेकिन ज्यों-ज्यों उस पर नशा हावी होता है वह गम्भीर होता जाता है। औरों की भांति वह अनर्गल बकता नहीं है। बहुत ही कम और सोच-समझ कर बोलता है और अक्सर तीसरे-चौथे पैग के बाद तो जैसे गुम ही हो जाता है। बिल्कुल गूंगा। मिट्टी का बुत।

नीचे से दबा-घुटा नारी स्वर-‘‘बचाओ.........मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है....वे कहाँ से लाएं.......छोड़ दो मुझे........।’’ आदि स्वरों की चीख मेरा हृदय चीर रही थी लेकिन इन सबसे बेखबर सुधीर दूसरा गिलास तैयार करते हुए स्वयं ही बड़बड़ाया-‘‘लगता है आज तो साले इस बेचारी को मार ही डालेंगे......।’’

‘‘क्यों भला?’’ मैंने भी आखिरी घूंट भरकर खाली गिलास मेज पर रखते हुए पूछा।

‘‘दहेज के लिए तंग करते हैं, मारते-पीटते हैं कमीने।’’

‘‘लेकिन इतनी बड़ी हवेली, कार, सभी सुख-सुविधाएं तो हैं इनके पास। क्या कमी है.......फिर ऐसा क्यों करते हैं ये लोग?’’

ृ‘‘अरे, ये जो बड़े लोग होते हैं, ये दिल के बहुत छोटे होते हैं। इन सालों को पैसों की भूख होती है, इनकी नीयत बहुत खोटी होती है।’’ सुधीर पर शराब का असर हो चला था।

‘‘तूने कोई दखल नहीं दिया? कॉलेज में तो तू दहेज समस्या पर

लम्बे-लम्बे लैक्चर झाड़ा करता था। याद है, यूथ फैस्टिवल में हमने जो दहेज समस्या का नाटक खेला था, जिसे फर्स्ट प्राइज भी मिला था, तब तो तू इस समाज को बदल डालने की बड़ी-बड़ी बातें किया करता था, नयी-नयी योजनाएं बनाता था, अब तुझे क्या हो गया?’’ मैंने सुधीर को कुरेदने की कोशिश की।

‘‘पहले-पहल कोशिश की थी, यार। मगर मकान मालिक ने स्पष्ट कह दिया था कि हमारे घरेलू मामलें में दखल देने की जुर्रत मत करना, नहीं तो और कोई मकान ढूंढ लो।

तुझे तो पता ही है, आजकल शहरोें में मकान की कितनी समस्या है। आकाश छूते किराए। अजीबो-गरीव शर्तें। यह मकान भी बहुत मुश्किल से मिला है। यहाँ से मेरा बैंक भी नजदीक है, बच्चों का स्कूल भी बस-स्टैंड व रेलवे-स्टेशन भी अधिक दूर नहीं है। पूरे साल भर का किराया एडवांस लिया है इन लोगों ने। करने दो जो भी करते हैं ये कमीने।’’

सुधीर ने समर्पण भाव से उत्तर दिया। इतने में सीमा भाभी ने रसोई से आकर पूछा, ‘‘खाना यहीं लगा दूं या भीतर?’’

‘‘हाँ-हाँ, भीतर ही लगा दो, टी.वी. वाले कमरे में।’’ सुधीर ने अपने गिलास में तीसरी बार व्हिस्की डालते हुए कहा। नीचे से दिल दहला देने वाली आवाजें अभी भी आ रही थीं। सुधीर ने झटपट गिलास खाली किया और मुझसे बोला, ‘‘यार, क्या बच्चों की तरह गिलास मुँह से लगाए बैठा है। चल, जल्दी कर, खाना खाएँ।’’ खाना भीतर लग गया और हम बैठक से उठकर अन्दर चले गये। सुधीर के टी.वी. ऑन करते ही बाहर का कोलाहल दब-सा गया। खाना खाते हुए सुधीर ने टी.वी. पर समाचारों पर एक-दो बार टिप्पणी की। मैं उसकी हाँ में हाँ मिलाता रहा। मुझे वे समाचार कहाँ सुनाई दे रहे थे। मैं तो मकान-मालिक की बहू पर हो रहे अत्याचारों के बारे में सोच रहा था तभी सीमा भाभी भी हमारे पास आकर बैठ गयीं।

पिछली बार जब मैं सुधीर से मिलने आया था तो मकान मालिक की बहू ने ही बताया था कि वे लोग तो अपने रिश्तेदारों की शादी में शामिल होने गये हैं। बड़े ही सत्कार के साथ उसने मुझे चाय-पानी पूछा था। हँसमुख चेहरे व नम्रता के लिबास में वह मुझे साक्षात देवी नजर आई थी। सूरत व सीरत का खूबसूरत संगम। कुछ पलों की उस मुलाकात ने मेरा मन मोह लिया था। उसके सौम्य व शिष्ट व्यवहार ने अमिट छाप छोड़ी थी मेरे हृदय पर। सचमुच उस व्यक्ति ने पूर्वजन्म में मोती दान किये होंगे। नित्य-प्रति होते अत्याचार की बात ने मेरे अन्तर्मन को भीतर तक झकझोर दिया था। मेरे लिए यह असहनीय था। इसलिए मैंने इस बारे में भाभी की प्रतिक्रिया जानने हेतु पूछा-

‘‘भाभी जी, आपके मकान मालिक रोज-रोज अपनी बहू पर जो जुल्म करते हैं, आपको बुरा नही लगता?’’

‘‘बुरा तो बहुत लगता है, भाई साहब, पर ये बहुत जालिम लोग हैं। मेाटी आसामी हैं। मिनिस्टरों तक पहुँच है। मोहल्ले भर में दबदबा है इनका। देखो न, कैसे सारा मेाहल्ला कानों में उंगली डाले खामोश है, फिर हम ही क्योें दुश्मनी मोल लें इनसे!’’

‘‘भाभी, आपको याद है न, कॉलेज में एक बार जब प्रोफेसर गुप्ता ने आपके साथ अभद्र व्यवहार किया था तो सुधीर ने कॉलेज में हड़ताल करा दी थी, जुलूस निकाला था और उस प्रोफेसर की बदली करवाकर ही दम लिया था। फिर आपको बदनामी से बचाने हेतु जात-पात की परवाह न करते हुए आपका हाथ थाम लिया था.......।’’

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन कॉलेज लाइफ और इस दुनियावी जिन्दगी में कितना अंतर है, आप शायद समझ नहीं रहे। बहुत कुछ सोचना पड़ता है। मैं तो तंग आ चुकी हूँ रोज-रोज मकान बदल कर। मकान चेंज करने पर सबसे अधिक परेशानी ग्रहिणी को उठानी पड़ती है। नये सिरे से सारा घर को सैट करना पड़ता है। नये ढंग से एडजस्ट करनी पड़ती है। पेट काट-काट कर बनाई घर की चीजों का सत्यानाश हो गया है। वो देखो अलमारी पर पड़ी खरोंचे, इस डायनिंग टेबल की तो एक टांग ही उखड़ गई थी। बैड की प्लाई उखड़ गयी है। फ्रिज पर भी रगड़ के निशान पड़ गए हैं। कई बार तो यह महसूस होता है कि जैसे यह खरोंचे, ये निशान शरीर पर पड़े हों। यह सब नुकसान यहाँ शिफ्ट करते हुए है। मैंने तो सुधीर से स्पष्ट कह दिया है कि अब जो भी हो, मैं मकान नहीं बदलूँगी जब तक कि अपना मकान नहीं बन जाता। इसके लिए हम हरेक समझौता करने के लिए तैयार हैं।’’

पिछले डेढ़ वर्ष से पत्नी के चारपाई पर होने के कारण मुझे पति-पत्नी दोनों की भूमिका निभानी पड़ रही है। इसलिए मुझे भी इस बात का अच्छी तरह अहसास हो गया है कि घर को सजाने, संवारने सुचारू रूप से चलाने का काम जितनी कुशलता से गृहिणी कर सकती हैं उतना और कोई नहीं। चार दीवारों व एक छत के मकान को घर बनाना और उसमें पवित्र भावनाओें, परिश्रम से खुशियों के फूल मंहकाने का काम एक औरत ही कर सकती है।

बातों का सिलसिला टी.वी. पर टेलीफिल्म शुरू होते ही रुक गया।

संयोगवश टेलीफिल्म का कथानक भी दहेज समस्या पर ही आधारित था। पर्दे पर बहुओं को अमानवीय यंत्रणाएँ देने व निर्दयता से जलाकर मारने के दृश्य अत्यन्त वीभत्स थे जिन्हें देखकर मेरा रोम-रोम सिहर उठा था।

सीमा भी शायद इन दृश्यों को देख न सकी। वह उठकर बैडरूम में चली गयी। दहेज-लोभियों के जालिम पंजों में जकड़ी, छटपटाती, बचाव हेतू चीखती-चिल्लाती नायिका के क्रन्दन में मुझे जैसे नीचे मकान मालिक की बहू का करुणामयी स्वर सुनाई दे रहा था।

उधर-सुधीर का कलाकार मन भी शायद भावुक हो उठा था। वह काफी देर बाद खुमारी भरी आवाज में फिल्म की तारीफ के पुल बांधते हुए कह रहा था, ‘‘क्या फिल्म बनाई है यार, कमाल की डायरेक्शन है। बर्निंग थीम है। डायलॉग भी एकदम चुस्त हैं। एक्टिंग भी लाजवाब है।’’

पार्श्व में नारी के नारकीय जीवन की तर्जुमानी करते मार्मिक गीत ने तो सुधीर की आँखें नम कर दी थीं। फिल्म देखते-देखते सुधीर नींद के आगोश में चला गया था। मैं टी.वी. बन्द कर रजाई में दुबक गया था। नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी, सुधीर ने अपने आदर्शों पर पहरा देने की अपेक्षा, हवा के बहाव अनुसार क्यों बदल लिया था। पता नहीं क्यों, सुधीर का इस प्रकार बदलना मुझे गवारा नहीं हो रहा था। मैं आँखें बन्द कर सोने की कोशिश करता तो कभी इस हवेली की बहू का फूल-सा नाजुक-मासूम चेहरा, फिल्मवाली नायिका के जले हुए विकृत मुख में परिवर्तित होने लगता। कभी दीवारें कँपा देने वाली चीखों से दिल बैठने लगता। कभी सुधीर पर गुस्सा आता तो कभी सीमा को ही सुधीर में आए बदलाव के लिए दोषी ठहराने लगता। इसी कशमकश में एक पल भी मेरी आँख न लगी और मुँह- अँधेरे ही में गाड़ी पकड़कर अपने शहर लौट आया था।

फिर पूरे सप्ताह बाद सवेरे आदतन चाय की चुस्कियों के साथ अखबार पढ़ रहा था कि नजर सुधीर के शहर व मोहल्ले के एक समाचार पर अटक गयी। चाय का कप मेज पर रखकर मैंने एक सांस में सारी खबर पढ़ डाली। सुर्खी थी- ‘एक और अबला की बलि चढ़ी।’’

इबारत थी- शहर के.......मोहल्ले में......दहेज के लोभियों ने.........नवविवाहिता को मार डाला। महिला संगठनों ने जुलूस निकाला। अभियुक्तों को गिरफ्तार कर सजा देने की मांग। पुलिस ने केस दर्ज किया।

मुझे सारी इबारत जानी-पहचानी लगी। मुझे लगा ये पंक्तियाँ तो मैं वर्षों से रोजाना पढ़ता और चाय की चुस्कियों के साथ सिप करता आ रहा हूँ। आज इस खबर में नया क्या है? सिर्फ शहर का नाम ही तो बदला है। कल फिर यही खबर शहर का नाम बदलकर पुनः प्रकाशित होगी। पता नहीं क्यों मेरे मन में एक अपराध बोध जागने लगा कि इस अबला के कत्ल में मेरा भी हाथ है। अबकी बार मैं इस खबर को पूरी कोशिश के बावजूद चाय की घूंट के साथ सिप न कर सका और चाय बीच में ही छोड़कर, उदास मन व भारी कदमों से चलकर, तैयार होने के लिए गुसलखाने में घुस गया। ’’’

----

1677-एल.टी. 3, सैक्टर-3,

तलवाड़ा टाउनशिप, 144216 (पंजाब)

-------------------.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: आदमखोर (कहानी संकलन) संपादक - डॉ. दिनेश पाठक शशि - 12 - धर्मपाल साहिल की कहानी : किसी भी शहर में
आदमखोर (कहानी संकलन) संपादक - डॉ. दिनेश पाठक शशि - 12 - धर्मपाल साहिल की कहानी : किसी भी शहर में
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEja2VIoL1HjgfsUTMYV3UDlPklvvkigDwpXu8ys4EtVhekAfJ6PhdrRkct6NtYfrQWfs6ct6aR2W9LZJ1QiPBpaebn3xiYWEuQZkRRpDnjfzD6eRNp-XvTnOWdUxbNdTMBAy7xH/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEja2VIoL1HjgfsUTMYV3UDlPklvvkigDwpXu8ys4EtVhekAfJ6PhdrRkct6NtYfrQWfs6ct6aR2W9LZJ1QiPBpaebn3xiYWEuQZkRRpDnjfzD6eRNp-XvTnOWdUxbNdTMBAy7xH/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2011/08/12.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2011/08/12.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content