आदमखोर (कहानी संकलन) संपादक - डॉ. दिनेश पाठक शशि - 10 - कुहेली भट्टाचार्य की दो कहानियाँ

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कहानी संग्रह आदमखोर (दहेज विषयक कहानियाँ) संपादक डॉ0 दिनेश पाठक ‘शशि’ संस्करण : 2011 मूल्य : 150 प्रकाशन : जाह्नवी प्रकाशन विवेक व...

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कहानी संग्रह

आदमखोर

(दहेज विषयक कहानियाँ)

संपादक

डॉ0 दिनेश पाठक ‘शशि’

संस्करण : 2011

मूल्य : 150

प्रकाशन : जाह्नवी प्रकाशन

विवेक विहार,

शाहदरा दिल्ली-32

शब्द संयोजन : सागर कम्प्यूटर्स, मथुरा

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डॉ. कुहेली भट्टाचार्य

(1) चेतना

गांव का पुजारी लगभग दौड़-दौड़ कर रास्ते से आ रहा था। पास के स्कूल का टीचर रतनलाल बैठा था, पीपल के नीचे बने चबूतरे पर। उसके पास ही हांफते-हांफते पुजारी जा रहा था। रतनलाल ने पूछा - क्यों चाचा ऐसे भागे-भागे कहाँ से आ रहे हो।

बोलो मत, शादी के लिए एक लड़की देखने गया था। उस लड़की ने कर दिया मेरा बेड़ा गर्क।

रतललाल हँसने लगे। क्यों चाचा क्या कर दिया लड़की ने? रतनलाल को पता था पुजारी शादी करवाने का काम भी करता है। दूर-दूर गाँव तक इतना कि शहर तक भी पुजारी कम और विचौलिए के तौर पर ज्यादा जाने जाते हैं। सुबह निकल जाते हैं तीन चार घरों में लड़की दिखाने ले जाते हैं लड़के वालों को तो सुबह भूखे पेट ही निकलते हैं क्यों कि वहाँ जाकर अच्छे-अच्छे पकवान भी खाने हैं। लड़की वाले चाहे गांँव के हों या शहर के। लड़के वालों की खातिदारी तो करेंगे ही और साथ-साथ इनका भी गुजारा हो ही जाता है। सुबह किसी के घर चले गये, तो नाश्ता, दोपहर को गये तो भोजन, और शाम को गये, तो फिर नाश्ता। वर्षों से ऐसा ही चला आ रहा है। आज क्या बात हो गई जो पुजारी जी इतना परेशान नजर आ रहे हैं। पुजारी कहने लगा -

‘सुबह-सुबह एक घर गया, सबको एक लड्डू पकड़ा दिया। लड़की का बाप कहता है मैं गरीब आदमी हूँ कुछ कर नहीं सकता। पर मैंने जाते-जाते उनके घर देखा, बाहर स्कूटर खड़ा है। कंजूस है कोई लड़के वालों को क्या एक लड्डू खिला कर विदा करते हैं? फिर शादी कैसे होगी, और कह रहा है ‘मैं अपनी बेटी को केवल मात्र एक जोड़ी कपड़ों में ही विदा कर सकता हूँ। मैंने अपनी बेटी को पढ़ाया लिखाया इतना काबिल बना दिया कि वो कमा कर खा सके। लड़के वाले कैसे पसंद करेंगे, बताओ मास्टर जी? उन्होंने अपने बेटे के पीछे जो पैसा खर्च किया कहाँ से निकालेंगे? लड़के की शादी कराके ही तो निकालेंगे ना।

रतनलाल जोर-जोर से हँसने लगा। पुजारी उसके मुँह की तरफ देखने लगा फिर पूछा-तुम हँस क्यों रहे हो।

-पुजारी जी आपका जमाना गया, अब भी कुछ सीखो। अगर लड़के की पढ़ाई में बाप ने खर्चा किया तो क्या लड़की की पढ़ाई पर उसके बाप ने खर्चा नहीं किया? तो ऐसा करो एक नया नियम बना दो। लड़के की पढ़ाई में जितना खर्च हुआ वो लड़की वाले दें, और लड़की की पढ़ाई पर जितना खर्च हुआ वो लड़के वाले दें। ये रहेगा ना सही?

-कैसी उल्टी बात कर रहे हो। लड़के वाले तो लड़के वाले होते हैं। वो क्यों दें? लड़की वालों को तो देना ही पड़ता है।

रतनलाल हँस कर बोला - ‘वो क्यों? अच्छा बताइये फिर क्या हुआ। ’

-अरे ना ही पूछो तो अच्छा है। दूसरी लड़की जब दिखाने के लिए गये तो खिलाया पिलाया तो ढंग से। घर देख कर भी लग रहा था खाते-पीते घर के हैं। जिसने मुझे खबर दी थी उसने भी कहा पैसे वाले हैं। पर जब लड़के के बाप ने दहेज की बात छेड़ी, बस इतना ही कहना था कि कौन सी गाड़ी दे रहे हैं आप। मेरे हाथ में एक रसगुल्ला था लड़के के हाथ में भी एक कचौड़ी, लड़के के बाप ने चाय के कप में एक बार ही मुँह लगाया था कि लड़की बोल पड़ी-

-‘‘उठिये उठिये, आप लोग निकल जाइये हमारे घर से।’’

मैंने अपने हाथ का रसगुल्ला मुँह में डाल लिया। प्लेट की बाकी मिठाइयाँ तब तक पड़ी हुईं थीं। लड़का कचौड़ी छोड़ कर ही खड़ा हो गया। लड़के का बाप भी। लड़की हठ कर दरवाजे तक चली गई। पर्दा हटा दिया और कहने लगी जल्दी चले जाइये, हम बिकाऊ आदमी से शादी नहीं करेंगे। मेरे पिता ने मुझे पढ़ा-लिखा कर डॉक्टर बनाया है। शादी करूँगी तो इंसान से। भेड़ बकरी से नहीं। जल्दी से हमारा मौहल्ला छोड़ कर भाग जाइये। नहीं तो पुलिस बुला लूँगी।

-बताओ कैसी लड़की है ये।

-‘ठीक ही तो है चाचा। लड़कियों को और कितने दबा कर रखोगे? लड़के वाले ऊँचे हैं, लड़की वाले सर झुका कर चलेंगे, वो जमाना गया। अब बराबरी का जमाना है।’

-पता........नहीं?

बड़बड़ाते हुए पुजारी अपने घर की तरफ चलने लगा। रतनलाल आप ही बोल उठा ‘चलो लड़कियाँ जाग तो उठीं! ’’’

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(2) लालसा

रात के ढ़ाई बजे, ममता बेलफेयर एसोसिएशन के प्रेजिडेन्ट नमिता के घर फोन की घंटी बजी। उत्तम नगर में एक शादीशुदा औरत जोकि मात्र 19 साल की थी उसे उसके पति ने दहेज के लिए जिन्दा जला डाला। वो भी घर के बाहर सब लोगों की आँखों के सामने। वहाँ की पुलिस भी कोई कार्यवाही नहीं कर रही है।

सुनते ही नमिता का खून खौल उठा। उसने कमीश्नर पुलिस को फोन लगाया और साथ ही साथ वेलफेयर के बाकी मेम्बरों को खबर दे दी। सब इकट्ठे होकर चल पड़े उत्तम नगर की तरफ जहाँ पर अब भी जले हुए शरीर का कुछ हिस्सा पड़ा हुआ है। देखते ही सबके रौंगटे खड़े हो गए। उन लोगों के पहुँचते ही स्थानीय पुलिस भी हरकत में आ गई। अब तक क्यों चुप बैठी थी पुलिस ये तो सबको ही पता है पर अब, जब बात नौकरी पर आ पहुँची तो वे भी काम पर लग गये।

उस लड़की का शौहर जिसका नाम राजेश था। सबके सामने अपनी बीवी को जलाकर बड़े ही गर्व के साथ निकल गया, जैसे कोई बहुत बड़ा और महान वीरता का काम करके निकला हो।

अड़ोस-पड़ोस से जितनी बातों को इकट्ठा किया गया उससे पता चला राजेश मोतिया को बहुत दिनों से तंग कर रहा था। बोल रहा था ‘तेरी माँ ने कहा था स्कूटर देगी पर कहाँ है स्कूटर? अब तो मैं मोटरसाइकिल ही लूंगा। जा अपनी माँ के पास, ले आ मेरी मोटरसाइकिल।’

मोतिया की माँ घर-घर में काम करके अपना गुजारा करती थी। थोड़ा-थोड़ा पैसा इकट्ठा करके बेटी की शादी करा दी। राजेश को सरकार से झोपड़ी के बदले पच्चीस गज जमीन मिली। उस पर उसने छोटा सा घर बना लिया। देखने सुनने में भी लड़का अच्छा था। मोतिया की माँ ने सोचा, बेटी सुखी रहेगी। इसलिए अपना सबकुछ देकर अपने जिगर के टुकड़े की शादी करके विदा किया और सोचा था थोड़ा-थोड़ा करके पैसे कइट्ठे करके एक साल में एक सेकेण्ड हैंड स्कूटर खरीद देगी। पर बीमार पड़ गई। जितने भी पैसे इकट्ठे किये थे सब दवाईयों में चले गये। ऊपर से कमजोरी की वजह से काम पर भी नहीं जा सकी। इसलिए अब तक स्कूटर के पैसे इकट्ठे नहीं कर पाई। उसे पता था राजेश उसकी बेटी के साथ मार पिटाई करता है। पर वो क्या करती बेबस। तबियत थोड़ी ठीक होते ही काम पर लग गई ताकि अपनी बेटी को इस दर्दनाक हालत से बचा सके। लगभग पैसे इकट्ठे भी हो गये थे, कुछ ही कम थे। अब राजेश मोटर साइकिल माँग बैठा कहाँ से लाती। दो-तीन दिन पहले राजेश ने मोतिया की जमकर पिटाई की और माँ के पास भेज दिया। फिर मोतिया की माँ ने तय कर लिया ये जो छोटा सा घर है इसी को बेच डालेंगी। उसकी जिन्दगी किसी भी तरह कट ही जायेगी। पर उसने मोतिया को कुछ नहीं कहा। बस इतना ही कहा मैं दो चार दिन में ही मोटर साइकिल के पैसे लेके तेरे घर में आऊँगी। उसे बोल, और दो-चार दिन सब्र कर ले।

राजेश को सब्र ही कहाँ था। उसे तो ये आश्वासन झूठा ही लगता था। उसके सामने एक ही तरकीब थी, दूसरी शादी और इसके लिए मोतिया को मरना ही था। अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए आक्रोश से भरपूर राजेश एक नरभक्षी बन गया और मोतिया को बाँधकर मिट्टी के तेल से नहला दिया। उसे अपनी गुंडागर्दी पर नाज था। वो जानता था अड़ोस-पड़ोस के लोग उससे डरते हैं। इसलिए अपने घर को बचाने के लिए बाहर लाकर मोतिया के शरीर को आग लगा दी। मोतिया चीखी चिल्लाई पर कोई भी हिम्मत करके उसे बचाने नहीं आया। जल-जल कर चिल्ला-चिल्लाकर देखते ही देखते मांस-पिण्ड में बदल गई। उसकी एक साल की शादीशुदा जिन्दगी की यही भयंकर परिणति हुई।

वेलफेयर के सभी लोग रस्ते में ही खड़े थे और पुलिस राजेश को पकड़कर ले आई। इतने में मोतिया की माँ हाथ में एक पोटली लेकर आ गई। आकर ठीक उसी जगह खड़ी हो गई जिससे दो कदम दूरी पर उसके जिगर का टुकड़ा जला भुना कर मार दी गई थी। उसे कुछ भी पता नहीं चल रहा था वो सब कुछ सुन रही थी। पर जैसे उसका दिमाग काम ही नहीं कर रहा था। जैसे ही पुलिस राजेश को लेकर वहाँ पहुँची वो कहने लगी ‘मैंने घर बेच दिया, ये ले अपनी मोटरसाइकिल का पैसा। अब मेरी बेटी को तंग नहीं करेगा ना? ले पैसा ले।

वहाँ पर खड़े सभी इंसानों की आँखें नम हो गई। सब सोच रहे थे इस बेचारी ने तो अपनी बेटी को सुखी बनाने के लिए उसकी शादी रचाई थी.....! ’’’

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123 ए., सुन्दर अपार्टमेण्ट,

जी.एच-10, नई दिल्ली-87

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रचनाकार: आदमखोर (कहानी संकलन) संपादक - डॉ. दिनेश पाठक शशि - 10 - कुहेली भट्टाचार्य की दो कहानियाँ
आदमखोर (कहानी संकलन) संपादक - डॉ. दिनेश पाठक शशि - 10 - कुहेली भट्टाचार्य की दो कहानियाँ
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