मुंबई में ताजा श्रंखलाबद्ध आतंकी हमले के बाद जिस तरह से हमारे नेतृत्वकर्त्ताओं के अनर्गल बयानों की फेहरिश्त जारी हुई है, उससे जाहिर होत...
मुंबई में ताजा श्रंखलाबद्ध आतंकी हमले के बाद जिस तरह से हमारे नेतृत्वकर्त्ताओं के अनर्गल बयानों की फेहरिश्त जारी हुई है, उससे जाहिर होता है कि वे जख्मों पर मरहम लगाने की बजाय नमक छिड़कने वाली बेदर्द दलीलें दे रहे हैं। इन दलीलों से साफ हो गया है कि हम उस अमेरिका से तो कोई प्रेरणा अथवा सबक नहीं लेना चाहते, जहां आतंकवाद से सख्ती से निपटने के कारण 9/11 के बाद कोई आतंकी हमला नहीं हुआ, किंतु अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान और इराक से अपनी तुलना करके आखिर वे देश की अवाम को क्या संदेश देना चाहतें हैं, यह जरूर समझ से परे है ? ये देश तो वैसे ही सांप्रदायिक कट्टरता के चलते आतंकवाद के ऐसे गढ़ बन चुके हैं, जिनके लिए अब आतंकवाद भस्मासुर साबित हो रहा है। केंद्र सरकार के नुमाइंदे विस्फोटों की ठोस वजह बताने की बजाय यदि आतंकवादी मुल्कों से भारत की तुलना कर बचाव की मुद्रा में आएंगे तो यह स्थिति जवाबदेही से मुकरने का पर्याय साबित होगी, जिसे जनता कभी माफ नहीं करेगी। इस विस्फोट के सिलसिले में खुफियां तंत्र की नाकामी भी पेश आई है। हैरानी है कि उसे कड़ीबद्ध हमले की भनक तक नहीं लगी। इस वाबत ऐसा भी लगता है कि आतंकी हमलों में शहीद हुए जांबाजों की शहादत का जिस तरह से कथित कांग्रेसियों ने पूर्व में मखौल उड़ाया है वह खुफिया तंत्र और पुलिस के दुस्साहसी लड़ाकों का मनोबल तोड़ने वाला साबित हुआ है। नतीजतन वे अपने दायरे में सिमटते जा रहे हैं।
वैसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए-2 राजनीति के हर मोर्चे पर नाकाम है। आतंकवाद, नक्सलवाद और माओवाद जैसी समस्याओं के समाधान बाबत अभी तक केंद्र सरकार का कोई साफ रूख और पारदर्शी रवैया सामने नहीं आया है। जिस सकल घरेलू उत्पाद दर को वह 9-10 प्रतिशत तक पहुंचाने का इस चालू वित्तीय साल में डंका पीट रही थी उस पर भी घटी औद्योगिक उत्पादन दर और बेरोजगारी की बढ़ती दर ने पानी फेर दिया है। देश की वित्तीय राजधानी मुंबई में हुए इन ताजा हमलों का असर विकास की इन कथित दरों पर और देखने में आएगा। इसके बावजूद हमारे नेता इस विकट घड़ी में ऐसे बयान देंगे, तो अवाम को हताश तो करेंगे ही आतंकी संगठनों के हौसलों को भी पंख देंगे।
जिस मासूम राहुल गांधी की शक्ल में हम भावी प्रधानमंत्री का चेहरा देख रहे हैं, उनमें कितनी प्रतिउत्पन्न मति (आईक्यू ) है, यह उनके द्वारा कुछ दिनों के भीतर दिए दो बयानों से तय हो जाता है। किसानों के आंसू पोंछने भट्टा पारसौल पहुंचने पर राहुल गांधी ने कुछ उपलों (कंडे) के ढेर में लगी आग को देखकर कहा था कि भट्टा पारसौल में 74 किसानों को जिंदा जला दिया गया और कई महिलाओं के साथ पुलिस ने बलात्कार किया। इस बाबत जांच हेतु उन्होंने स्थानीय किसानों के साथ एक ज्ञापन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी दिया था। लेकिन न तो एक भी ऐसी महिला मिली, जिसने थाने पहुंचकर कहा हो कि मेरे साथ दुराचार हुआ है और न ही ऐसा एक भी परिजन मिला जिसने कहा हो कि मेरे परिवार के व्यक्ति को जिंदा जला दिया गया। इस थोथे बयान की हवा मीडिया ने भट्टा पारसौल में घर-घर दस्तक देकर निकाल दी थी। क्या किसी देश के भावी प्रधानमंत्री को इतनी भी समझ होना जरूरी नहीं कि वह उपलों की राख और मानव अस्थियों में भेद कर सके ?
नौसिखिया राहुल का अब मुंबई हमले पर बयान आया है कि खुफिया तंत्र समेत अनेक उपायों की बदौलत 99 फीसदी हमले रोके जा चुके हैं, लेकिन हर आतंकी हमले को रोकना नामुमकिन है। अफगानिस्तान, ईरान और इराक में अमेरिकियों पर हमले जारी हैं। जिस व्यक्ति को एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल भावी प्रधानमंत्री के रूप में पेश कर रही है, क्या आतंकवाद का गढ़ बने चुके देशों से अपने देश की तुलना करने वाले राहुल को इतनी आसानी से जनता प्रधानमंत्री के रूप में मंजूर कर लेगी ? इधर उनकी गलतबयानी के बचाव में आए दिग्विजय सिंह बोलते हैं कि भारत-पाकिस्तान से बेहतर स्थिति में है। आखिरकार क्या हमारी सुरक्षा की चुनौतियां राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक चुस्ती इतने शिथिल हो गए हैं कि हम अपने देश की तुलना आतंकवादी देशों से करने लग जाएं ? क्या हम देश को पकिस्तान पोषित आतंकवाद का गढ़ बनाना चाहते हैं ? क्या राहुल उन 99 फीसदी संभावित हमलों की सूची दे सकते हैं, जिन्हें खुफिया तंत्र और प्रशासन की सतर्कता के चलते रोका गया ? जो धमाके निर्दोष लोगों की जान लेने की तसदीक कर रहें हैं, वे तो रोके नहीं जा पा रहे, लेकिन जो आतंकवादियों की असावधानी अथवा तकनीकी गड़बड़ी से नाकाम साबित हो रहे हैं, उन्हें वे सरकारी तंत्र की कामयाबी बता रहे हैं ? मुंबई के तीन भीड़ से भरे रहने वाले इलाके झाबेरी बाजार, ओपेरा हाउस, और दादर में क्रमानुसार धमाके होते हैं और हमारी जासूसी एजेंसियों व पुलिस तंत्र को खबर तो क्या भनक तक नहीं लगती ?
गृहमंत्री पी. चिदंबरम का हमले के बाद पत्रकारों को दिए इस बयान के भी कोई मायने नहीं हैं कि मुंबई पुलिस ने 26 नवंबर 2008 के आतंकी हमले के बाद आतंकियों के कई हमलों के मंसूबों पर पानी फेर दिया। नतीजतन पिछले 31 महीनों में पुणे में जर्मनी बेकरी पर हुए हमले को मिलाकर महज दो ही बड़े आतंकवादी हमले हुए हैं। यहां गौरतलब है कि 26/11 के हमले के बाद एक मजबूत आतंकवाद विरोधी दस्ता खड़ा किया गया था, आखिर वह इन दो हमलों को रोकने में सक्षम साबित क्यों नहीं हुआ ? यही नहीं केंद्र में कांग्रेस द्वारा सत्ता संभालने के बाद इन सात सालों में राष्ट्र 15 बड़े आतंकवादी हमले झेल चुका है। इनमें 670 से भी अधिक निर्दोष प्राण गंवा चुके हैं। कई अपंगता का आजीवन अभिशाप झेलने को विवश हुए हैं। अकेले मुंबई में पांच सालों में तीन बड़े आतंकी हमलों में 370 लोगों को जान से हाथ धोने पड़े हैं। मारे गए इन लोगों के परिजनों को तो नेता अपने घड़ियाली आंसुओं से जीवनदान दे नहीं सकते ? लेकिन इस तरह के बयान देकर उनकी हताशा को तो और गहरा करने से बचें।
हमें अपने देश की तुलना कथित आतंकवाद को आश्रय देकर प्रोत्साहित कर रहे देशों की बजाय उन पश्चिमी देशों से करनी चाहिए जहां एक हमले के बाद आतंकवादी दूसरा हमला करने में कामयाब नहीं हुए। ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि इन देशों ने आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं किया। अमेरिका में हुए 9/11 के हमले के बाद वहां के राजनीतिक नेतृत्व ने आतंकवाद से लड़ने की जो इच्छाशक्ति जताई, उसके चलते दूसरा आतंकी हमला संभव नहीं हुआ। ब्रिटेन, स्पेन और चीन भी पहले आतंकी हमले के बाद सख्ती से पेश आए। लिहाजा इन देशों मेंं भी हमलों की पुनरावृति नहीं हुई। शून्य की इस अवधारणा (जीरो टॉलरेंस) को भारत में भी अमल में लाया जा सकता है, बशर्ते राजनीतिज्ञ मजबूत इच्छा शक्ति दिखाएं। वोट की राजनीति को फिलाहल देश की संप्रभुता व अखण्डता के लिए खूंटी पर टांग दें। अफजल गुरू जैसे आतंकवादियों को तुरंत फांसी दें। भारत से आतंवाद हमेशा के लिए निर्मूल करने के लिए यह एक सुनहरा अवसर है क्योंकि अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान ने आतंकवादियों के खिलाफ मुहिम छेड़ी हुई है, लिहाजा आतंकवादी अपनी आत्मरक्षा के रास्ते तलाशने में उलझे हैं। इसलिए वे भारत में आतंकी हमलों की नई योजना नहीं बना पा रहे। लेकिन जब हमारे नेतृत्वकर्ता देश की सुरक्षा की तुलना अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों से करने की बजाय आतंकवादी देशों से करेंगे तो देश आतंकवाद से महफूज कैसे रहेगा ?
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प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है ।
America se to ham apnee tulnaa kar nahee sakte...wo ek mahashakishalee rashtr hai.Lekin haan! Hamare netaon ne to had kar dee hai.Waise bhee hamare qaanoon ekdam ghisepite hain.
जवाब देंहटाएंmarte rahiye bas...
जवाब देंहटाएंभार्गव साहब नमस्कार,
जवाब देंहटाएंमुंबई बम काण्ड पर आपका लेख काफी अच्छा बन पड़ा है, इसी सन्दर्भ में मैंने एक हास्य कविता लिखी है सरकार की आपबीती पढ़िएगा , आपको पसंद आएगी...
बहुत ही सत्य लिखा है आपने,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com