तमाम प्रगति के बावजूद आज भी जिन पशुओं का महत्व मानव-समाज के लिए बना हुआ है, उनमें हाथी एक हैं। हाथी सर्कस में आपका मनोरंजन करता है, चिडि़य...
तमाम प्रगति के बावजूद आज भी जिन पशुओं का महत्व मानव-समाज के लिए बना हुआ है, उनमें हाथी एक हैं। हाथी सर्कस में आपका मनोरंजन करता है, चिडि़याघर में दिल बहलाता है, जंगलों में लकड़ी ढ़ोता है, शोभा यात्राओं, शादियों आदि में काम आता है, साधु-सन्तों के आश्रम की शोभा बढ़ाता है।
भारतीय साहित्य, स्थापत्य, मूर्तिकला, चित्रकला में हाथी हमेशा से ही महत्वपूर्ण स्थान पाता रहा है। देवी-देवताओं के चंवर डुलाता है हाथी, वेदों, पुराणों, उपनिषदों की गाथाओं मे आता है हाथी। समुद्र मंथन में प्राप्त हुआ था हाथी। जंगल में शेर को केवल हाथी ने ही चुनौती दी है। एक कथा के अनुसार ऐरावत हाथी के साथ 7 अन्य हाथियों ने मिलकर पृथ्वी का भार वहन कर रखा है। ये सात अन्य हाथी पुंडरीक, वामन, कुमुद, आनन, पुष्टदन्त, सार्वभौम एवं सुप्रीत हैं। हाथी युद्ध का एक अनिवार्य और महत्वपूर्ण अंग रहा है। अश्वत्थामा हाथी के कारण महाभारत का पूरा घटनाक्रम बदल गया था। गणेशजी का सिर हाथी का बनाया गया है। विष्णु तथा लक्ष्मी को भी हाथी प्रिय रहा है।
ऐसे महत्वपूर्ण और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हाथी के बारे में आम पाठक बहुत कम जानते हैं। आइए इस गजगाथा का अवलोकन करें।
प्राणि विज्ञानियों के अनुसार हाथी मेमेलिया जाति का विशालकाय जन्तु है जो लगभग तीन हजार वषोंर् से मानव की सेवा कर रहा है। और जैसा कि आप जानते हैं मरा हाथी सवा लाख का क्योंकि हाथी दांत एक अत्यन्त दुर्लभ चीज है। विश्व के सबसे बड़े हाथी का अवशेष विक्रम विश्वविद्यालय के संग्रहालय में है। हाथी की आयु तीन सौ वषोंर् तक मानी गयी है। मगर आधुनिक काल में हाथी 80-100 वर्ष तक जीता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार हाथी दो प्रकार के होते हैं। (1) भारतीय हाथी, (2) अफ्रीकी हाथी।
भारतीय हाथी भारत, सिलोन, बर्मा, श्याम, सुमात्रा आदि जगहों पर पाया जाता है। भारत में हाथी पश्चिमी हिमालय में देहरादून तक पाया जाता है। मैसूर, आसाम, पश्चिमीघाट तथा गंगा नदी के किनारे के जंगलों में भी हाथी पाया गया है। भारतीय हाथी अफ्रीकी हाथी की तुलना में छोटा, तथा कम वजन का होता है। इसके कान छोटे होते हैं तथा इसकी पीठ अवतल होती है।
भारत में हाथियों की संख्या 7000 के आस-पास आंकी गयी है, जिसमें से 3000 हाथी दक्षिण भारत में है। घरेलू कायोंर् के लिए दक्षिण भारत में हाथियों को पकड़ा जाता है। लकड़ी के बड़े-बड़े गठ्ठों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में हाथियों से ज्यादा उपयोगी कोई जानवर नहीं पाया गया है। हाथियों में तीव्र बुद्धि तथा अच्छी स्मरण शक्ति बहुत ज्यादा विकसित होती है मगर देखने की शक्ति बहुत कम विकसित होती है।
भारतीय हाथी के अगले पांवों में 5 नाखून होते हैं जबकि पिछले पांवों में केवल चार नाखून होते हैं। एक घण्टे में हाथी 5 किलोमीटर तक की यात्रा कर लेता है। हाथी अच्छे तैराक होते हैं। जंगलों में रहने वाले हाथियों की उम्र पालतू हाथियों की तुलना में बहुत ज्यादा होती है। हाथियों की ऊंचाई 2․7 मीटर तक पाई जाती है। एक बड़े हाथी का वजन 3500 किलोग्राम तक हो सकता है। लेकिन सरकस के हाथी का वजन 2700 किलोग्राम तक होता है। वैसे हाथियों का वजन 1050 से 4200 कि0 तक हो सकता है। हाथी एक शान्त और आलसी प्रकृति का जीव है। सामान्यतया हाथी खड़ा ही रहता है। तथा केवल रात्रिकाल में ही बैठता है। हाथी रात में 11 बजे से 4 बजे तक सोता है।
हाथियों को श्रृंगार कराया जाता है। हाथियों से पोलो, होली खेली जाती है। हाथी एक राजसी शानदार, ठाठदार सवारी है।
हाथियों में प्रजनन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। जंगल में प्रजनन होता है। हथिनी 21/2 वषोंर् से 3 वषोंर् के बीच में एक बार प्रजनन करती है। अधिकतम 15 बार प्रजनन रिकॉर्ड किया गया है। नर हाथी मस्त हो जाने पर पूरे जंगल को अपनी चिंघाड़ों से गुंजा देता है। यह स्थिति तीन सप्ताह तक रहती है। इसी बीच समागम हो जाता है। गर्भावस्था बीस माह तक रहती है कभी-कभी 18 माह से 22 माह तक भी रहती है। हाथियों में जुड़वा बच्चे शायद ही कभी हुए हों।
नये बच्चा हाथी का वजन 100 किलो तक होता है। नये बच्चे की ऊंचाई 100 सेंटीमीटर हो सकती है। जल्दी ही बच्चा हाथी अपनी मां के साथ जंगल की सैर करने लग जाता है। हथिनी अपने बच्चे को बहुत प्यार तथा हिफाजत से रखती है। हाथियों के समूह का नेतृत्व हथिनी के हाथ में रहता है। बच्चों को समूह के बीच में रखकर एक सुरक्षित घेरा बनाकर झुण्ड चलता है। हथिनी हमेशा अपने बच्चों की रक्षा करने को तत्पर रहती है। बच्चा अपनी मां को पहचानता है।
हाथियों का भोजन बहुत ज्यादा होता है। जंगल में वे हर समय घास-फूंस, पेड़-पौधे, पत्त्ाियां खाते रहते हैं। काफी ज्यादा मात्रा में पानी पीते हैं। एक बार में हाथी करीब 70 लीटर पानी पी जाता है और दिन भर में करीब 200 लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है। एक बार पानी पीने में हाथी को कुछ ही सैकंड लगते हैं। सूंड में पानी भर कर हाथी मुंह में छोड़ता है। हाथी सुबह-शाम नहाते समय ही पानी पी लेता है।
हाथियों को यदि पालतू बनाया जाये तो ये कई प्रकार से उपयोगी हो सकते हैं। हाथियों को प्रशिक्षण देने के लिए महावत होते हैं और हाथियों को अंकुश की सहायता से सिखाया जाता है। एक प्रशिक्षित हाथी एक बार में 500 किलो तक सामान ढो सकता है। हाथियों के लिए काम के बाद निद्रा तथा आराम बहुत आवश्यक है।
हाथियों को पकड़ने के लिए ‘खेड़ा' लगाया जाता है। दक्षिण भारत में हाथी पकड़ना एक व्यवसाय है। पकड़े गये हाथी को प्रशिक्षित करके सर्कस, चिडि़याघर, विदेश, आदि स्थानों पर भेज दिया जाता है। हाथियों में कई प्रकार की बीमारियां भी हो जाती हैं। वैसे स्वस्थ हाथी रोजाना नहाना पसन्द करता है। गहरे पानी में हाथी नहाने का आनन्द लेते हैं।
काफी पुराने समय से ही हाथियों को जन-मानस में सम्मानीय स्थान प्राप्त रहा है। ‘बाबरनामा' में हाथी को खास, भारी और समझदार जानवर कहा गया है। जो प्रतिदिन 14 ऊंटों के बराबर भोजन करता है। हाथियों को ईख बहुत पसन्द है। अकबर के जमाने में हाथी पर प्रतिदिन 25 रुपयों का व्यय होता था, जबकि नौकरों की मासिक तनख्वाह 4 रुपये थी। चन्द्रगुप्त मौर्य के पास 9 हजार हाथी थे। हाथियों का प्रयोग युद्ध, शिकार, घूमना-फिरना, सवारी आदि कार्यों के लिए किया जाता था।
सफेद हाथी बहुत दुर्लभ है, मगर अत्यन्त शुभ माना गया है। जैन कथाओं में महावीर स्वामी की माता तथा बुद्ध की माता जी को गर्भकाल में स्वप्न में सफेद हाथी दिखाई दिये थे। प्रत्येक राजा की ताकत हाथी से आंकी जाती थी।
मेवाड़ के युद्ध में हाथी काम में आये थे। हाथियों को युद्ध के बाद बन्दी बनाया जाता था तथा भेंट में दिया जाता था।
हाथी को चित्रकला, साहित्य, स्थापत्य तथा मूर्तिकला में विशेष स्थान प्राप्त रहा है। जैन मंदिरों के बाहर हाथी बनाये जाते हैं। घरों के बाहर हाथियों को भित्ति चित्रों के रूप में बनाया जाता है। मेवाड़ी चित्र शैली में हाथियों पर कई चित्र बनाये गये हैं। मुगल चित्र शैली में हाथियों पर सवार राजा, प्रेमी युगल आदि चित्र बनाये गये हैं। हाथी पर स्त्री सवार के भी चित्र बनाये गये हैं। हाथी पर चढ़कर शिकार करने के भी चित्र हैं। सफेद हाथी की भी चर्चा अकबर काल में हुई है।
आधुनिक काल में भारत सरकार द्वारा हाथी विदेशी सरकारों को भेंट दिये गये हैं, ताकि हमारे सम्बन्ध उन देशों से मधुर बने।
चित्रकला के अलावा हाथी की मूर्तियां भी मिलती हैं। प्राचीन भारतीय संस्कृति, पुराणों व आख्यानों में हाथी की कई कथाएं आती हैं। एक बार हाथी का पांव मगर ने पकड़ लिया तो भगवान विष्णु स्वयं हाथी को बचाने दौड़ पड़े। हाथी की सवारी का अपना ही मजा है। सजे-धजे हाथियों की तीज, गणगौर पर सवारी निकाली जाती है। मैसूर का दशहरा हाथी की सवारी के बिना सूना है। युद्ध हो या शांतिकाल हाथी तो सब जगह काम आता है। रईसों की बारात में अभी भी हाथी एक शोभा है। हाथी पर तोरण मारना अभी भी एक महत्वपूर्ण वैवाहिक क्रिया है।
वास्तव में गज गाथा बहुत बड़ी है तथा सत्ता, समृद्धि, शक्ति और सम्पत्ति का प्रतीक है हाथी।
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यशवन्त कोठारी
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