पुस्तक समीक्षा - कहानी संग्रह : मुक्त होती औरत

SHARE:

दैहिक मुक्‍ति की कामना में अग्रसर ‘‘ मुक्‍त होती औरत '' कहानी संग्रह-प्रमोद भार्गव समीक्षक-डॉ पद्‌मा शर्मा बहुराष्‍ट्रीय कम्‍पन...

clip_image002

दैहिक मुक्‍ति की कामना में अग्रसर ‘‘मुक्‍त होती औरत''

कहानी संग्रह-प्रमोद भार्गव

समीक्षक-डॉ पद्‌मा शर्मा

बहुराष्‍ट्रीय कम्‍पनियों की संरचनात्‍मक गतिविधियाँ, उनका वर्चस्‍व और उनसे उत्‍पादित भौतिक सुख-साधनों की आयातित आमद से मनुष्‍य बाह्य ही नहीं आभ्‍यांतरिक स्‍तर पर भी प्रभावित हुआ है। मशीनी क्रियाशैली और उसके फलस्‍वरूप उत्‍पन्‍न भावनात्‍मक शून्‍यता के साथ निस्‍पृह जीवन ने मानव मस्‍तिष्‍क पर अमिट प्रभाव डाला है। साहित्‍य भी इनसे अछूता नहीं रहा। इस दौर में चले विभिन्‍न विमर्शों ने जहाँ साहित्‍य की घेराबन्‍दी की वहीं लेखक को भावनात्‍मक ही नहीं रचनात्‍मक स्‍तर पर भी प्रभावित किया। वर्षों से चली आ रही नारी-दासता, आँचल में दूध और आँखों के पानी से स्‍त्री-मुक्‍ति की कामना से प्रेरित उथले सामाजिक एवं विचारपूर्ण साहित्‍यिक प्रयास प्रारम्‍भ हुए। समकालीन कहानियों के दौर में ऐसे ही कई मुद्‌दोंं के साथ प्रमोद भार्गव का कहानी संग्रह ‘‘ मुक्‍त होती औरत '' वर्तमान परिदृश्‍य, सामाजिक कूटनीति, मनोवैज्ञानिक अधोगति एवं दैहिक आवश्‍यकताओं को रेंखांकित करता हुआ प्रस्‍तुत हुआ है। इसमें स्‍त्री(कामकाजी) और नारी (जो स्‍वतंत्रता की ओर अग्रसर) , महिला (जो समाज में सम्‍मानित है) की मुक्‍ति की कामना नहीं है वरन्‌ उस औरत की मुक्‍ति की कामना है जो विभिन्‍न चौखटों में जकड़ी संस्‍कारगत जड़ता, धर्मभीरुता और दैहिक परतंत्रता के कारण अभी भी संघर्षरत है।

नारी मुक्‍ति की यह कामना दैहिक स्‍तर पर ही नहीं अन्‍य अनेक स्‍तरों पर है जहाँ ओढ़ी हुई नैतिकता, लिजलिजे सामाजिक बन्‍धन, युवा पीढ़ी द्वारा आर्थिक सुदृढ़ता के प्रयास स्‍वरूप बहुराष्‍ट्रीय कम्‍पनी का आश्रय और उसके परिणामस्‍वरूप प्रकृतिजन्‍य दैहिक आवश्‍यकताओं की प्रतिपूर्ति में कमी , सामाजिक खोखली मान्‍यताओं, जातिगत प्रतिबद्धता, के साथ-साथ ढकोसली धार्मिक व्‍यवस्‍थाओं से नारी मुक्‍ति हेतु उनके पात्र प्रयासरत हैं।

लेखक प्रयोगधर्मी है। शैलीगत गत्‍यात्‍मकता, रचनात्‍मक वैविध्‍य, भाषा की भावप्रवणता के साथ-साथ कहानी के कथ्‍यों में भी विविधता है। कहानियाँ एक ही चौखटे में आबद्ध न होकर विविधरूपा हैं जिनमें समसामयिक समस्‍याओं और तत्‌संबंधी निवारण की ओर प्रस्‍थान बिन्‍दु भी है।

‘‘मुक्‍त होती औरत '' की परिकल्‍पना का प्रथम सोपान लेखक के समर्पण से ही प्रारम्‍भ होता हैं जब कोई भी पुरुष लेखक अपनी सफलता में पत्‍नी का श्रेय और प्रेय मानता है तब वह वास्‍तविक रूप में स्‍त्री शक्‍ति के प्रभाव, औदार्य एवं त्‍याग को स्‍वीकार करता है। यही लेखक ने स्‍वीकार भी किया है- ‘‘जीवनसंगिनी... आभा भार्गव को जिसकी आभा से मेरी चमक प्रदीप्‍त है...!''

कहानी ‘मुक्‍त होती औरत' धार्मिक छल एवं दिखावे के साथ-साथ पाखण्‍ड को भी अभिव्‍यक्‍त करती है। सामान्‍य जीवन से परे मनुष्‍य जब दैवीय(साध्‍वी) रूप को ग्रहण करता है तब उस पर प्रत्‍यक्ष एवं अप्रत्‍यक्ष मानसिक दबाव हाबी होते हैं। फिर चाहे नन्‍दिता आर्थिक तंगी के कारण समर्पित हुई हो या नादानीवश किये गये अनैतिक कृत्‍य की भरपायी मुक्‍ता ने साध्‍वी बनकर की हो। दबाव में आकर किये गये धर्माचरण स्‍वयं अपने से , समाज से और धर्म से छलावा है। अकाट्‌य तर्कशक्‍ति , व्‍यंग्‍योक्‍तियाँ और प्राश्‍निक विधि का प्रयोग करते हुए कहानी मनोवैज्ञानिक धरातल को स्‍पर्श करती है।

जैन धर्म पर आधारित इस कहानी में अहिंसा के सिद्धान्‍त का पालन करने वाले धर्मावलम्‍बी पुत्र मोह में भ्रूण हत्‍या से परहेज नहीं करते। निबंध शैली में लिखी गयी विभिन्‍न शीर्षकों में आबद्ध यह कहानी उपन्‍यास के कलेवर को समाहित किये है। ‘आहार' केवल भाजन नहीं है , गलत एवं अपवित्र को भी आँखों द्वारा ग्रहण करना भी आहार में समाहित है तो फिर दैहिक शुचिता की कल्‍पना बेमानी हैं इसी तरह के तर्क प्रस्‍तुत करते हुए कहानी में उत्‍थान आया है। किशोरवय में देखे गये कुछ यौनजन्‍य क्रियाकलाप मन की अबोध गीली मिट्टी पर अपना अमिट प्रभाव छोड़ते हैं जो मन के किसी कोने में छिपकर बैठ तो जाते हैं और तत्‍संबंधी परिस्‍थितियाँ पाकर उन कार्यों में बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध होते हैं।

कहानी का मुल प्रश्‍न और निराकरण नायिका मुक्‍ता के माता-पिता की सोच में शामिल था-

‘‘जवान बेटी को खेलने खाने की उम्र में बलात्‌ साध्‍वी बनाकर क्‍या हमने उचित किया ? क्‍या यह प्राकृतिक इच्‍छाओं के विरुद्ध नहीं ...?''

बंधन भय को जन्‍म देता है। मर्यादित जीवन विभिन्‍न दुश्‍चिन्‍ताओं से घिरा रहता है क्‍योंकि बंधन पतन के गर्त की ओर ले जाता है। ‘‘जहाँ बन्‍धन है, मर्यादाएँ हैं, वहीं आशंकाएँ हैं, बन्‍धन के ढीले पड़ जाने की...अथवा टूट जाने की ...। जहाँ मर्यादाएँ हैं वहाँ भय है, उनके उल्‍लंघन का ...।''बलात्‌ धर्म हेतु समर्पण मुक्‍ता का बलात्‍कार था जहाँ उसकी इच्‍छाओं का गला घोंट दिया गया। निश्‍चित ही प्रकृतिजन्‍य दैहिक आवश्‍यकताओं की पूर्ति की चाहना और उसकी पूर्ति ही आनन्‍द की उच्‍चतम परिणति है। प्रमोद जी की कहानियों में मुक्‍ति की यह कामना और उसकी अन्‍तिम परिणति किसी अन्‍य के द्वारा परिचालित न होकर कहानी के नारी पात्रों द्वारा ही होती है।

नारी को मानसिक रूप से इतना अधिक संस्‍कारगत जड़ता में आबद्ध कर दिया जाता है कि गौरवशाली जातीय परम्‍पराओं के निर्वाह हेतु वह पुरुष की प्रतिच्‍छाया को स्‍वीकार करती हुयी उसके अन्‍त के साथ अपने अंत को भी ‘सती' होकर अंगीकार करने को तत्‍पर रहती है। लेखक नारी स्‍वतंत्रता का पक्षधर है उनका पैरोकार बन वह ‘सती का सत ' कहानी में कहता है‘‘ न जाने क्‍यों लोग स्‍त्री से अपेक्षा करते हैं कि वह देह की कारा से मुक्‍त होने की बात सोचे ही नहीं....?''

यौनाकर्षण और यौनक्रियाओं के प्रति लोगों का ध्‍यान आकर्षित करने के लिए परमार शासक ने खजुराहो के मन्‍दिर का निर्माण करवाया था। वर्तमान परिवेश में अत्‍यधिक महत्‍वाकांक्षा के वशीभूत और शीघ्रअतिशीघ्र धनवान बनने की लालसा ने पद, पैसा और शोहरत पाने के लिये मानव जीवन को प्रतिस्‍पर्धी बना दिया है इस हेतु की पूर्ति के लिये वह अपने नैसर्गिक सुख और आनन्‍द को विस्‍मृत कर काम के बोझ तले दबा हुआ जीवन व्‍यतीत करने को मजबूर है। फलस्‍वरूप उसका शारीरिक सामंजस्‍य गड़बड़ा गया है।उच्‍चशिक्षित और उच्‍च पद प्रतिष्‍ठित लोग एक अलग ही व्‍याधि से ग्रसित हो रहे हैं , इन सबके लिए काम के बोझ से मुक्‍ति की आवश्‍यकता है। इन सबके प्रभाव स्‍वरूप सन्‍तानोत्‍पत्ति पर अंकुश लगता जा रहा है। ‘‘इन्‍तजार करती माँ'' का इन्‍तजार और भी बढ़ जाता है जब डॉक्‍टर नकारात्‍मक उत्तर दे देते हैं।

‘‘ आईटी की शिक्षा ग्रहण करते हुए आयुषी और रत्‍नेश ने सॉफटवेयर व हार्डवेयर की मौलिक प्रोग्रामिंग का गणित तो अच्‍छे से हल किसा था लेकिन यह गणित उनकी जिन्‍दगी के रासायनिक घोल में गड़बड़ा गया था । गड़बड़ी भी तब समझ आई जब उनकी उम्र तैंतीस-पैंतीस साल की हो चली। तीन साल का वैवाहिक जीवन गुजारने के बावजूद वे अपना उत्तराधिकारी पैदा नहीं कर पाए।''

वैधव्‍य जीवन अभिशाप होता है क्‍योंकि स्‍त्री से उसके जीने के मायने ही समाज द्वारा छीनने का भरसक प्रयास किया जाता है। विधवा ‘किराएदारिन '(किराएदारिन कहानी) बमुश्‍किल अपना और अपने बच्‍चों का जीवनयापन करती है। उसकी समस्‍याएँ उसकी अपनी हैं उनका कोई साझेदार नहीं है वरन्‌ अकेली स्‍त्री के शरीर के रखवाले कई पैदा हो जाते हैं। पुरुष समाज अपनी स्‍वार्थसिद्धि पूर्ण न होने पर स्‍त्री को ही लांछित करने का दुस्‍साहस करता है।पर इन सबका सामना करते हुए खुद को पवित्र रखने का वह अनथक प्रयास करती है। प्रमोद जी की नारी पात्र कमजोर नहीं हैं वे समस्‍याओं का डटकर मुकाबला करती हैं और समय आने पर उन्‍हें सजा देना भी उन्‍हें आता है। ‘‘ हमारे समाज का न तो कोई अपना चरित्र है न निश्‍चित दृष्‍टिकोण और न ही कोई राष्‍ट्रव्‍यापी लक्ष्‍य। पति-पत्‍नी और बच्‍चों तक ही सीमित रहने वाले इस समाज के लोग जब कोई श्रेष्‍ठ उपलब्‍धि हासिल नहीं कर पाते तब उनके लिए सारी श्रेष्‍ठता, शारीरिक चरित्र पर केन्‍द्रित होकर रह जाती है। वह भी स्‍त्री के चरित्र को लेकर कुछ ज्‍यादा ही मर्यादित और कठोर होती है।'' (शंका)

आज की नारी व्‍यावहारिक धरातल पर सोचने लगी है। अब वह पति को परमेश्‍वर मान उसकी पूजा नहीं करती वरन्‌ समाधानविहीन - असाघ्‍य रोग से ग्रसित पति के अन्‍त की कामना करती है क्‍योंकि असाघ्‍य रोग से पति का यदि निदान सम्‍भव नहीं है तो समय और धन दोनों व्‍यय करने से कोई फायदा नहीं है (पिता का मरना)।मानव जीवन जटिलताओं से पूर्ण है। अपने जातीय गौरव और सत्‍य के परिपालन में स्‍त्री अपना सर्वस्‍व समर्पण के लिये तत्‍पर है। आज की नारी अपने साथ किये गए ‘छल' को पसन्‍द नहीं करती और उस पुरुष का परित्‍याग करने में भी संकोच नहीं करती जिसके साथ वह शारीरिक सुख का उपभोग कर चुकी है (छल)। पुत्र रक्षार्थ हेतु वह नैतिकता के मानदण्‍ड तोड़ स्‍वार्थ सिद्धि में लिप्‍त हो जाती है समाज से छल कर बैठती है (भूतड़ी अमावस्‍या) । असहाय आदिवासी महिला के संघर्ष की कहानी है ‘जूली' जो अपनी योग्‍यता और कौशल से अपने उच्‍च लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने में सक्षम हो जाती है।

पन्‍द्रह कहानियों में से नौ कहानी नारी केन्‍द्रित है। लेखक की लेखन गाड़ी एक ही ढर्रे

या विषय केन्‍द्रित नहीं रही। समाज की अन्‍य समस्‍याओं और अन्‍य क्रियाकलापों को भी प्रमोद जी ने विषयवृत्त में सम्‍मिलित करके प्रत्‍यक्ष युगबोध में दत्तचित्त होने का परिचय दिया है।नेताओं के स्‍वार्थ को कहानी‘दहशत' में लिया है। पुरातन सामंतवादी सामाजिक व्‍यवस्‍था का विरोध ‘नक्‍टू' में किया गया है। बहुराष्‍ट्रीय कम्‍पनियों के झांसे और भुलावे में आकर तथा पूंजी को दोगुनी करने के फेर में व्‍यक्‍ति अपने मूल से भी वंचित हो जाता है। आधुनिक खेती का डंका पीटती , नकली खाद और नकली बीज के विक्रय को बढावा देती इन कम्‍पनियों ने फसल को तो भरपूर नुक्‍सान

पहुँचाया ही है किसानों को आत्‍महत्‍या के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है। और ‘गंगाबटाईदार' जैसे बटाईदार तो और भी अधिक सकते की स्‍थिति में हैं क्‍योंकि फसल का आधा उत्‍पादन तो मालिक के अधिकारक्षेत्र में आता है पर नुक्‍सान की भरपाई का उत्तरदायित्‍व सिर्फ और सिर्फ बटाईदार पर होता है। डाकुओं की जानकारी पुलिस महकमें तक पहुँचाने का महत्त्वपूर्ण काम ‘मुखबिर' करते हैं।उन पर हमेशा विपत्तियों का साया मँडराता रहता है। वह डाकू और पुलिस के पाटों के बीच पिसता रहता है। कहानी ‘विधायक विद्याधर शर्मा की नाकारा बेटे के विधायक बनने के सफर को अभिव्‍यक्‍त करती है। एक नवीन कथ्‍य और नवीन शैली का संयोजन करती कहानी है ‘‘परखनली का आदमी''। इक्‍कीसवीं सदी के दूसरे दशक के एक ऐसे मानव की

परिकल्‍पना को प्रस्‍तुत किया गया है जिसके अपने मस्‍तिष्‍क में एक कम्‍प्‍यूटर है , जिसमें परखनली के आदमी के डाटाज फिट हैं, वह अपने दैनिक जीवन के क्रियाकलाप बखूबी करता है यहाँ तक कि अॉफिस भी संभालता है। यह ऐसे शिशु के जन्‍म की कहानी है जो किराए की कोख से पैदा हुआ हैं । प्राकृतिक रूप से सन्‍तानोत्‍पत्ति और किराए की कोख से प्राप्‍त सन्‍तान में मूलभूत यही अन्‍तर होता है कि वहाँ भावना और सम्‍वेदना में तर तरोताजा वातावरण प्राप्‍त नहीं हो पाता। यह अदभुत्‌ कहानी है।

कहानी सुनाते से चलते हैं ऐसे में वे वाक्‍य शुंरु करते हुए कहते हैःं- ‘‘तो........''

कहानियों की भाषा सहज, सरल एवं प्रभावपूर्ण हैं। शैली में गत्‍यात्‍मकता है जो कहानी को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुई है। कुछ कहानियों की भाषा में पत्रकारिता का प्रभाव परिलक्षित होता है ऐसे में भाषा में दुरुहता आ गयी है और कथ्‍य को प्रभावित किया है जिससे भावविहीनता और संवेदनशून्‍यता आ गयी है। लेखक नवीन प्रयोग का पक्षधर हैं नवीन शिल्‍प और नवीन तकनीक का प्रयोग करते हुए निबंध शैली का प्रयोग किया है। कहानी में कई स्‍थानों पर बेवजह विस्‍तार दिया है, उनसे बचा जा सकता था।

प्रमोद जी में तर्कशक्‍ति और भाषा गढ़ने की अदभुत्‌ क्षमता है। परिमार्जित भाषा-शैली के साथ-साथ अलंकार और प्रतीको का आश्रय भी लिया गया है। परिपूर्ण तो मानव भी नहीं है फिर कृति में कुछ कमियाँ होना स्‍वाभाविक है। कथ्‍य का कलेवर बड़ा है और विषय व्‍यापक है। नारी मुक्‍ति के प्रयास में सक्रिय लेखक ने नारी जीवन की उन जटिलताओं और मानसिक रूप से बन्‍धन ग्रसित जीवन को समाज सापेक्ष मानवीय अहर्ताओं के अनुरूप प्रस्‍तुत करने का अतुलनीय और प्रशंसनीय प्रयास किया है। शिल्‍प की दृष्‍टि से भी उन्‍होंने कहानी में नवीन सम्‍भावनाएँ प्रस्‍तुत की हैं। वे साधुवाद के पात्र हैं। निश्‍चित ही ‘‘मुक्‍त होती औरत'' नारी मुक्‍ति के कई सोपान प्रस्‍तुत करने में सहायक सिद्ध होगी।

---

 

कृति- मुक्‍त होती औरत (कहानी संग्रह)

कृतिकार- प्रमोद भार्गव

प्रकाशक- प्रकाशन संस्‍थान

मूल्‍य - 250 रुपये

समीक्षक- डॉ पद्‌मा शर्मा

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. धन्यवाद जी
    बहुत ही सधी हुई समीक्षा की है आपने और इससे हमें इस कथा संग्रह की मोटी मोटी जानकारी मिल गई है और एक इसे पढ़ने की इच्छा भी अब बलवती हो रही है। इसके साथ ही साथ आपकी इस समीक्षा ने मुझे भी प्रेरित किया है काफी दिनों से एक पुस्तक की समीक्षा जो अधूरी पड़ी थी उसे मैं आज पूरा कर लूं। पुनश्च धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: पुस्तक समीक्षा - कहानी संग्रह : मुक्त होती औरत
पुस्तक समीक्षा - कहानी संग्रह : मुक्त होती औरत
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiuv3j6NT1pR0kFqdJjoivip9LFagfgd6yWjYSFtXfdJUF59kg8gQ6Uj_ksSFkLRNrVVYv1xkJkvd_lL1XT9DAAzE541IioDRdOdPfYSdliIog_MB2KxBzuRUIlVJNveM80C4_L/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiuv3j6NT1pR0kFqdJjoivip9LFagfgd6yWjYSFtXfdJUF59kg8gQ6Uj_ksSFkLRNrVVYv1xkJkvd_lL1XT9DAAzE541IioDRdOdPfYSdliIog_MB2KxBzuRUIlVJNveM80C4_L/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2011/06/blog-post_14.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2011/06/blog-post_14.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content