चिम्मनलालजी अपनी पार्टी-‘एसकेएपी’ यानी ‘सबकुछ अपना पार्टी’ के प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं की एक बैठक को सम्बोधित करते हुए बोल रहे थे कि ह...
चिम्मनलालजी अपनी पार्टी-‘एसकेएपी’ यानी ‘सबकुछ अपना पार्टी’ के प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं की एक बैठक को सम्बोधित करते हुए बोल रहे थे कि हमारे पास आगामी चुनाव के पहले सिर्फ एक वर्ष का ही समय शेष रह गया है। अतः हम सबको सारे आपसी मतभेद भुला करके काम करना है। हमें मालूम है कि हमारे बीच मतभेद और भेद दोनों है। फिर भी जनता का मत एक हो यानी ‘एसकेएपी’ के पक्ष में मतदान हो, इसलिए हमें कुछ भी करना है। यदि अब भी नहीं करेगे तो कब करेंगे। यही पीक टाइम है। अगर अब भी चूक गए तो समझो पाँच साल के लिए चूक गए।
सभी लोग चाहे जिस क्षेत्र के हों। चाहे जिस विभाग से सम्बद्ध हों, कान खोलकर सुन लें कि यह समय आराम करने का नहीं है, कमाने का नहीं है, बटोरने का नहीं है। खर्च करने का है। दिमाग, धन-बल जो भी है सब। चोर भी समय पड़ने पर लूटे हुए को लुटा देते हैं और हम लोग तो नेता हैं। यह समय हाथ पर हाथ धरे बैठने का नहीं है। बल्कि दौड़ने का है। सभी क्षेत्रों का दौरा करो। जहाँ से आपलोग चुनाव जीतकर आये हैं, उसे याद कीजिए। वहाँ जाना ज्यादा मुश्किल हो तो उस क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के साथ जाओ तो रास्ते मैं भटकना नहीं पड़ेगा। सिर्फ कुछ ही दिनों की तो बात है। उसके बाद तो फुर्सत ही फुर्सत होगी।
किसी ने कहा नेता जी अबकी बार कोई ऐसा विधेयक पास करवा दीजिए जिससे चुनाव होना हो तो मार्च के अंत तक हो जाया करे। जून में चुनाव होने से गर्मी में जबरन दौड़ धूप करना पड़ता है। एक-दो महीने तो दिन रात एक कर देना पड़ता है। जो सेहत के लिए काफी नुकसानदायक होता है। गर्म हवा और लूक तथा पैंतालीस से पचास डिग्री का पारा सहकर बाहर निकला नहीं जाता। चिरोंजीलाल बोले कि पूर्ण बहुमत में आने तो दीजिए। उसके बाद हम ऐसी सभी समस्याओं पर विचार करेंगे।
नेता जी आगे बोले कि नई-नई कुछ योजनाओं की हम घोषणा करने वाले हैं। लाखों रिक्तियों को भरने के लिए विज्ञापन निकाल रहे हैं। जिन विभागों में कोई भी रिक्त स्थान नहीं है। उनमें भी रिक्त पद निकालें जायेंगे। चुनाव के बाद ऐसे विज्ञापन रद्द कर दियें जायेंगे। राजनीति में यह सब तो चलता ही रहता है। विज्ञापन निकलना और रद्द होना लोकतंत्र में आम बात है। और तो और परीक्षायें भी सम्पन्न कराई जा सकती हैं। लेकिन परिणाम वही खटाई में। खोदा पहाड़ निकली चुहिया। बेरोजगारों में नवजीवन जगाने के लिए, उन्हें ढाढस बँधाने के लिए। कुछ न कुछ करना हमारा कर्तव्य भी बनता है। इसी बहाने उनमें कुछ करने का हौसला आता है। कम से कम विज्ञापन की फीस का जुगाड़ करना सीखते हैं।
कुछ आवश्यक चीजों के दाम जो हम अब तक बढ़ाते आयें हैं। अब थोड़ा कम करना चाहते हैं। बेचारी जनता मँहगाई के बोझ से दबी जा रही है। थोड़ी सी राहत पाकर उसके जान में जान आएगी और वह अनजान होकर एसकेएपी के लिए मतदान करेगी।
जिन गावों में आठ घंटे भी बिजली नहीं रहती। उनमें अठारह घंटे सप्लाई होगी। और जिन शहरों में चार घंटे की कटौती होती हैं। वहाँ चौबीस घंटे बिजली दी जायेगी।
जो सड़कें वर्षों से टूटी हैं। उन पर जल्द ही काम चालू कर दिया जायेगा। कुछ नई सड़कों का भी नक्शा पास करवा रहे हैं। इन्हें बनवाएंगे नहीं। बस दो-दो महीने पर जाँच-पड़ताल होती रहेगी। और चुनाव बीत जायेगा।
किसी ने कहा कि नेता जी जो काम पिछले चार साल में नहीं हुआ। उसे आप केवल एक साल में कैसे पूरा कर देंगे ? नेता जी बोले पूरा कौन कर रहा है ? हम शुरुआत कर रहे हैं। चिरौंजीलाल जी समझाते हुए बोले जो काम हमें चार साल पहले शुरू करना चाहिए था। उसे हम आज शुरू करने जा रहे हैं। बस इतना ही है। आप लोग परेशान मत हों। यह समझ कर कुछ कर दिखाओ कि चुनाव एक साल बाद नहीं, बल्कि एक महीने बाद ही है। अभी तक जो प्रमुख काम हमने किया है वह है वस्तुओं की मूल्य बृद्धि और आज पहली बार घटाने का निर्णय ले रहे हैं।
किसी ने कहा इससे हमारे बजट में असंतुलन की स्थिति आ जायेगी। उससे कैसे निपटा जायेगा। चिरौंजीलालजी बोले कि वस्तुओं का मूल्य हम मजबूरी में घटा रहे हैं। वैसे हम इस स्थिति में हैं नहीं। वस्तुतः हमें कम से कम दो रूपये हर जरूरत वाली चीजों के मूल्यों में इसी वक्त बढ़ा देना चाहिए। परन्तु अब ऐसा न करके चुनाव के बाद दो के जगह चार बढ़ा देंगे तो सूत और ब्याज सब वापस हो जायेगा।
चिम्मनलालजी एसकेएपी के बरिष्ठ नेता तिवारी जी से बोले हमने एजेंडा बनाने के लिए एक समित बनाई है। जिसका दारोमदार आपके ऊपर ही होगा। आपलोग ‘न भूतो न भविष्यते’ के तर्ज पर एक ऐसा एजेंडा तैयार करवाइए कि जिसे देखकर विरोधियों के दांत खट्टे हो जाएँ और जनता चार साल के सारे गम भुलाकर एसकेएपी को सिर पर बिठा ले। किसी ने पूछा कि क्या पिछले चुनाव के एजेंडे से इसमें कुछ शामिल कर सकते हैं ? चिम्मनलालजी बोले हर नई सरकार का नया एजेंडा होता है। पुराने एजेंडा में क्या था क्या नहीं था ? यह अब किसे याद है ? चुनाव के बाद इतनी व्यस्तता आ जाती है कि किसी को भी उसे देखने की फुर्सत ही नहीं मिलती। एजेंडे की जरूरत चुनाव से पहले होती है। और चुनाव के पहले की कोई भी बात अथवा चीज का चुनाव जीतने के बाद कोई खास मतलब नहीं रह जाता।
चिम्मनलालजी आगे बोले चुनाव प्रचार में भी हमें दिल खोलकर खर्च करना है। मकसद सिर्फ चुनाव जीतना है। इसके लिए कुछ भी करेंगे। एड़ी से चोटी तक का जोर लगा देंगे। यह सब सुनकर किसी कार्यकर्ता ने प्रश्न किया। इन खर्चों की भरपाई कहाँ से होगी ? नेता जी बोले। यह सोचने का समय अभी नहीं है। और चुनाव जीतने के बाद इसके अलावा और कुछ सोचने का समय ही कहाँ रहता है ?
चुनाव के पूर्व घोषित योजनाएं चुनावी योजना कहलाती हैं। चुनाव गर्मी की तरह होता है। जिसके दौरान योजनाओं व वादों रुपी धूल उड़ाई जाती है । यह परम्परा है। लोकतंत्र का अहम हिस्सा है। लेकिन गर्मी के बाद बरसात आती है। यह प्राकृतिक है। और बरसात में धूल खोजने पर भी नहीं मिलती। विभिन्न रास्तों से होता हुए जल समुन्द्र में जा पहुँचता है। जहाँ पहले से ही जल ही जल होता है। इसी तरह लोकतंत्र में भी होता है । जो पहले से भरे हैं वे और भरते जाते हैं।
चुनाव के पहले जो रिक्तता आ जाती है। उसे चुनाव के बाद पूरा कर लिया जाता है। जो दौड़-धूप की जाती है, उसके बदले नेता लोग छककर विश्राम करते हैं। लेकिन चुनाव के पूर्व होने वाले धूल रुपी वादे, वोटों की बरसात हो जाने पर चुनाव के बाद लगभग शांत हो जाते हैं यानी उनका अस्तित्व भी शेष नहीं रह जाता।
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डॉ. एस. के. पाण्डेय,
समशापुर (उ. प्र.)।
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(चित्र - ज्ञानेन्द्र टहनगुरिया की कलाकृति)
आपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्वागत है
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शानदार व्यंग्य्।