‘‘आज की इस महंगाई में, मैं दोनों का भार वहन नहीं कर सकता, भाई।'' ‘‘लेकिन भैया माँ और पिताजी दोनों का कहना है कि वे जहाँ कहीं भी रहे...
‘‘आज की इस महंगाई में, मैं दोनों का भार वहन नहीं कर सकता, भाई।''
‘‘लेकिन भैया माँ और पिताजी दोनों का कहना है कि वे जहाँ कहीं भी रहेंगे दोनों एक-साथ ही रहेंगे।''
‘‘तो फिर तुम ही क्यों नहीं रख लेते दोनों को अपने पास?''-छोटे शई ने तुनक कर कहा।
‘‘लाला जी आपके तो दो ही बच्चे हैं और वो भी दोनों लड़के। जरा सा भी खर्चा नहीं है आपका तो । हमारे सामने तो दो-दो लड़कियाँ भी है। हम कैसे करेंगे। कल को लड़कियों के शादी-ब्याह भी करने होंगे हमें तो।''-दालान से गुजरते हुए उसके कानों में बहू-बेटों द्वारा उन्हीं के बारे में की जा रहीं बातें गर्म पिघले सीसे सी उतर गई। मस्तिष्क में हथौड़े से चलने लगे। मुशकिल से बिस्तर तक पहुँची और निढाल सी गिर पड़ी। नींद कोसों दूर हो चुकी थी। रह-रह कर बहू-बेटों के बीच हो रहा वार्तालाप उसे विचलित कर रहा था। उसने पास सोते पति की ओर निहारा,कितना निश्छल और मासूम चेहरा है। इन्हें क्या पता कि उनके बेटों के लिये हम दोनों कितना बड़ा बोझ हो गए हैं। इनको जगा कर क्या अभी इन कपूतों की सारी करतूत बताऊँ ?
‘ ‘अपने भविष्य के लिये भी सोचो कुछ''-जब भी मैंने कहा तो मेरी बात पर ये हँसा करते थे,-‘‘अरी राधा, जिसके दो-दो हीरे समान नगीने हों उसको फिर किस बात की चिंता हो।''सोचते-सोचते उसकी आंखों में आंसू भर आये। हमेशा ही दोनों बेटों की खुशियों पर वे न्यौछावर रहे। बेटों ने जब भी किसी चीज की मांग की, उसे जुटाने के लिये हर संभव प्रयत्न किये। अच्छे से अच्छा खाना अच्छे से अच्छे कपड़े और शिक्षा भी। चाहें इसके लिये उन्हें कितना भी संघर्ष क्यों न करना पड़ा हो। इन कपूतों को इसका क्या पता। इन को तो कभी महसूस ही नहीं होने दिया कि इन्हें समाज में उच्च पद, मान और प्रतिष्ठा दिलाने में मॉ-बाप को कितनी मेहनत करनी पड़ी थी और ये कपूत इस तरह बदला चुकाना चाहते हैं कि बूढ़े माँ-बाप इन्हें अब बोझ लगने लगे है।
अरे जो कुछ बचा था वह सब तो बांट ही दिया था इन दोनों में- घर,मकान, चल और अचल जो भी सम्पत्ति बची थी,सब इन्हें सौंप दी हमने, अपने जीते जी ही फिर भी इन्हें बोझ लगने लगे हैं हम दोनों जो हम दोनों को भी बाँटने की साजिश कर रहे हैं।
‘‘जागते रहो, जागते रहो।''-चौकीदार की आवाज सुनकर उसकी विचार श्रृंखला टूट गई। घड़ी की ओर देखा, घड़ी की दोनों सूइयाँ तीन पर टिकी हुई थीं। सोचते-सोचते मस्तिष्क की नसें खिंचने लगीं तो हाथों से सिर को दबाते हुए, आँखें बन्द कर तनाव कम करने का प्रयास करने लगी।
वातावरण में फैली नीरवता को चौकीदार की ‘‘जागते रहो'' आवाज भंग कर रही थी लेकिन उसके मन का हा-हाकार किसी भी तरह शान्त होने का नाम नहीं ले रहा था। मन में अन्तर्द्वन्द्व मचा था। तभी ‘पानी देना राधा' अपने पति की आवाज सुनकर विचारों के बवण्डर में घिरी वह पानी लाने के लिए उठ गई।
‘‘अब तक जाग रही थीं क्या, कोई परेशानी है?''-पानी का गिलास पकड़ते हुए उसके पति श्याम ने पूछा तो वह असली बात को छुपाते हुए बोली- ‘नहीं परेशानी तो कुछ नहीं है।'
‘‘फिर ठीक है, समय बताना जरा क्या बजा है?''
‘चार'-दीवार घड़ी की ओर टार्च से रोशनी डालते हुए वह बोली। -1-
समय जानकर वह दुबारा निद्रा देवी की गोद में चले गये। उन्हें क्या पता कि समय अच्छा नहीं है। आज नहीं तो कल ये बात खुलकर सामने आयेगी ही कि जिनको वे हीरा समझते थे, वे निरा कांच ही सिद्ध हुए हैं।
शुरू से अब तक,खोजने पर भी कहीं भी ऐसा क्षण नहीं मिलेगा जब माँ- वाप की ओर से उन्हें उपेक्षा सहन करनी पड़ी हो।
एक बार दोनों भाइयों का टूअर शिमला जा रहा था। महीने का अन्तिम सप्ताह चल रहा था और जैसा कि लगभग सभी नौकरी पेशा वालों के साथ होता है,जेब में पैसे नहीं थे। दो-तीन काम घर के पैसों के अभाव में और भी रुके हुए थे। उसने जब अपने पति श्याम से कहा कि दोनों बेटों को घर की वस्तुस्थिति से अवगत कराके उनका शिमला टूअर पर जाने का कार्यक्रम रद्द करा दें,तो श्याम ने हँसते हुए कहा था-‘‘कैसी बातें करती हो राधा,बच्चों की खुशी के लिए ही तो हम कमाते हैं। उनका दिल टूट जायेगा। तुम चिन्ता न करो ,मैं कुछ न कुछ इन्तजाम अवश्य ही........... स्वयं कष्ट भोगे पर इन्हें कानों कान खबर न होने दी। उन्हीं बच्चों को आज हम दोनों की ही खुशी की भी परवाह नहीं। अरे हम दोनों प्राणी एक-दूसरे का साथ ही तो चाहते हैं न, पर क्या उनको ये भी गंवारा नहीं? जब कि ये अच्छी तरह जानते हैं कि हम दोनों जीवन के इन वर्षो में एक दिन को भी कभी अलग नहीं रहे हैं। हमारा शारीरिक से अधिक आत्मिक सम्बन्ध रहा है जो पूरी तरह से रोम-रोम में रच-बस गया है। अब इन्हें कौन समझाये कि हम दोनों एक-दूसरे का मन- दर्पण हैं। बाहर का जो भी व्यक्ति देखता-सुनता वह ही कहता कि ये तो द्वापर के राधा-कृष्ण ने कलियुग में इन दोनों के रूप में जन्म ले लिया है।
लोगों की बातें सुन-सुन कर जहाँ उसके मन में प्रसन्नता होती वहीं आशंकित भी हो उठती वह व ईश्वर से प्रार्थना करती कि हे प्रभो, हमारा बन्धन जीवन की अंतिम सांसों तक बनाये रखना। इसे जमाने की बुरी नजर से भी बचाना।
लेकिन इन कपूतों की बातें सुनकर अब लगता है कि जमाने की नहीं ,खुद अपनों के द्वारा साजिश रची जा रही है।
लेकिन नहीं ,मैं ऐसा हरगिज नहीं होने दूँगी। चाहे अब श्याम बच्चों की खुशी का कितना ही वास्ता क्यों न दें। हम दोनों एक हैं, एक ही रहेंगे। स्वप्न में भी अपने को अलग-अलग देखना हमें गंवारानहीं। ये बच्चे तो हकीकत में ही हम दोनों को अलग करने की साजिश रच रहे हैं।
नहीं मैंं उनकी साजिश को कामयाब नहीं होने दूँगी। ऐसे बच्चे भी किस काम के जो अपनी सुख-सुविधाओं की खातिर अपने बूढ़े माँ-बाप का त्याग और तपस्या सब भुला बैंठें और उन दोनों को बोझ समझने लगें।
चिड़ियों के चहकने की आवाज सुनकर श्याम उठ बैठे और मेरी ओर देखने लगे,-‘‘अरे तुम्हारी आँखें लाल क्यों हो रही हैं। सूज भी रही हैं। जरूर रात भर जागी हो और लगता है रोई भी हो। क्या बात है राधा, बताओगी नहीं मुझे?''
‘‘कुछ नहीं ,कुछ भी तो नहीं।''-मैंने छुपाने का असफल प्रयास किया पर रात भर का रुका बाँध रुलाई बन कर फूट पड़ा। मैं श्याम के सीने से लगकर फफक-फफक कर रो पड़ी। मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे। हिचकियों के बीच , मैंने रात की सारी घटना श्याम को बता दी। सुनकर श्याम के चेहरे पर भी मर्माहत पीड़ा उभर आई। पर दूसरे ही क्षण अपने को अप्रभावित सा सिद्ध करते हुए बोले-‘‘बस ,इतनी सी बात।''
अपनी पुरानी आदतानुसार हमेशा की तरह ही मेरी बात को साधारण सिद्ध करते हुए उन्होंने मेरे चेहरे पर अपनी आँखें गड़ा दीं-‘‘अरे पगली,अपने बच्चों की बातों का बुरा मान गई?'' -2-
‘बच्चे! अभी ये बच्चे हैं? आप भी कमाल करते हैं। दो-दो, तीन-तीन बच्चों के बाप हैं ये।'-मैंने रोषवश खिसियाकर कहा।
‘‘तुम तो बिल्कुल नादानों की तरह बातें कर रही हो। अरे ,जैसे वो हमें जान से ज्यादा प्यारे हैं वैसे ही वो भी हमें उतना ही प्यार करते हैं।''
‘आप का मतलब है कि मैंने रात में जो अपने कानों से सुना था वो मेरा वहम था। सब झूठ था?'
‘‘मैनें ऐसा कब कहा। पर जरा गंभीरता से सोच कर देख, आज कल की मंहगाई तो अच्छे-अच्छों के होश गुम किये हुए है। हमारे तुम्हारे जमाने और थे,जब एक कमाता था और पूरा घर-परिवार बैठ कर खाता था। पर आज में और उस समय में जमीन-आसमान का अंतर है। आज दो बच्चों का लालन-पालन भी कितना मुश्किल हो गया है। फिर ऊपर से शादी-ब्याह,पढ़ाई-लिखाई,घर-गृहस्थी के अनेक खर्चे। कितना भी वेतन मिले किसी को, महंगाई के राक्षस के सामने सब कम पड़ जाता है,‘‘समझाते हुए श्याम ने कहा तो मेरा मन कुछ शांत हुआ।
‘‘लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि बच्चे मॉ-बाप के भी हिस्से कर दे । क्या चल-अचल संपत्ति की तरह हम दोनों को भी उन्होंने संवेदना रहित , निर्जीव चीज समझ लिया है?''
‘‘ऐसा नहीं होगा राधा। हम किसी भी कीमत पर अपना बंटवारा नहीं होने देंगे इससे पहले कि बच्चे अपना निर्णय हमें बताऐं हम दोनों कहीं तीर्थ पर निकल चलते हैं। वहीं किसी आश्रम में रहेंगे।''
‘‘नहीं-नहीं। ऐसा मत करिये पिताजी, हमने आपकी सारी बातें सुन ली हैं। हम क्षमा चाहते हैं माँ, आप दोनों साथ ही रहेंगे चाहे कहीं भी रहें।''-कहते हुए चारों बहू-बेटे पैरों में गिर पड़े तो वह पिघल गई। श्याम भी इस खुशी से छलक आये आंसुओं को पोंछते हुए उनकी ओर निहार, मुस्कराते हुए बोले-‘‘नहीं बेटे आप लोग प्रसन्नता पूर्वक रहें हम लोगों ने निर्णय कर लिया है तो इस नेक काम से मत रोको। हम लोग यदा-कदा तुम्हारे हालचाल लेते रहेंगे।
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श्रीमती शशि पाठक
28,सारंग विहार,
पोस्ट-रिफायनरी नगर
मथुरा-281006
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सत्य के करीब ले जाती रचना।
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बाबूजी, न लो इतने मज़े...
भ्रष्टाचार के इस सवाल की उपेक्षा क्यों?
kash ki jindagi bhi kahani jitani hi saral hoti....
जवाब देंहटाएंसच्चे भाव,
जवाब देंहटाएंबधाई हो आपको - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
पहले के ज़माने में माँ -बाप बच्चों को घर से निकाल देते थे, लेकिन आज वही बच्चे माँ - बाप को घर से निकालने से नहीं चुकते
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