कहानी संग्रह 21 वीं सदी की चुनिन्दा दहेज कथाएँ संपादक - डॉ. दिनेश पाठक 'शशि' अनुक्रमणिका 1 -एक नई शुरूआत - डॉ0 सरला अग्रवाल 2 ...
कहानी संग्रह
21 वीं सदी की चुनिन्दा दहेज कथाएँ
संपादक - डॉ. दिनेश पाठक 'शशि'
अनुक्रमणिका
1 -एक नई शुरूआत - डॉ0 सरला अग्रवाल
2 -बबली तुम कहाँ हो -- डॉ0 अलका पाठक
3 -वैधव्य नहीं बिकेगा -- पं0 उमाशंकर दीक्षित
4 - बरखा की विदाई -- डॉ0 कमल कपूर
5- सांसों का तार -- डॉ0 उषा यादव
6- अंतहीन घाटियों से दूर -- डॉ0 सतीश दुबे
7 -आप ऐसे नहीं हो -- श्रीमती मालती बसंत
8 -बिना दुल्हन लौटी बारात -- श्री सन्तोष कुमार सिंह
9 -शुभकामनाओं का महल -- डॉ0 उर्मिकृष्ण
10- भैयाजी का आदर्श -- श्री महेश सक्सेना
11- निरर्थक -- श्रीमती गिरिजा कुलश्रेष्ठ
12- अभिमन्यु की हत्या -- श्री कालीचरण प्रेमी
13- संकल्प -- श्रीमती मीरा शलभ
14- दूसरा पहलू -- श्रीमती पुष्पा रघु
15- वो जल रही थी -- श्री अनिल सक्सेना चौधरी
16- बेटे की खुशी -- डॉ0 राजेन्द्र परदेशी
17 - प्रश्न से परे -- श्री विलास विहारी
(10) भैया जी का आदर्श
महेश सक्सेना
रामपुर नाम के एक छोटे से गाँव में रामदयाल गुरुजी रहा करते थे। वे बड़ी लगन और मेहनत से गाँव के बच्चों को पढ़ाते और सदाचार अपनाने की शिक्षा देते थे। गाँव के लोगों को गुरुजी अपने से लगते थे। गुरुजी के परिवार में उनकी पत्नी तथा चार बेटियाँ थीं जिन्हें वे समान रूप से स्नेह करते थे।
गाँव में कोमलप्रसाद नाम के एक प्रभावशाली सज्जन भी रहते थे जिनकी गिनती बड़े काश्तकारों में होती थी। वे सरल और सादा स्वाभाव के थे। गाँव के विकास कार्योंे में वे बड़ी रुचि लेते थे। गाँव की तरक्की का जब भी कोई काम आ पड़े तो वे ऐड़ी-चोटी का जोर लगाकर उसे कराके ही दम लेते थे। वे गाँव के प्रत्येक परिवार के सुख-दुःख में शामिल रहते थे। गाँव के लोग उनकी बड़ी इज्जत करते और आदर से उन्हें भैया जी कहते थे। उनके आराम के वक्त भी दुखियारा आ जाये तो सारे काम छोड़कर उसके साथ चल देते थे।
रामदयाल गुरुजी भैयाजी को अपना बड़ा भाई जैसा भी मानते थे। शाला और घर के कामकाज से फुर्सत पाते ही गुरुजी प्रायः रोज रात को भैयाजी के पास आकर बैठते और गाँव तथा शाला के विकास कार्यों पर चर्चा किया करते थे। रामदयाल गुरुजी की बड़ी बेटी पूनम बहुत लगन से पढ़ती थी। वह अच्छे अंकों से परीक्षा में पास होती। घर के कामकाज में भी वह पूरी तरह रुचि लेकर माँ का हाथ बंटाती थी। वह अपने शिष्ट और नम्र व्यवहार से सभी का मन मोह लिया करती थी। पूनम गाँव की शाला में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुकी थी। वह आगे पढ़ना चाहती थी। गाँव में उच्च पढ़ाई की व्यवस्था न होने से रामदयाल ने उसे शहर के हॉस्टल में रखकर पढ़ाने का फैसला किया। जब इस बात की चर्चा उन्होंने अपनी पत्नी से की तो वे बोली ‘पूनम अब ब्याह योग्य हो गई है। आगे पढ़ाने के बजाय अब तो कोई अच्छा लड़का देखकर उसके हाथ पीले कर दो।
रामदयाल को अपनी पत्नी की सलाह अच्छी लगी। उस दिन से पूनम के लिये अच्छे वर की खोज करने में लग गये। सबसे पहले तो उन्होंने आसपास के गाँवों मेें जाकर अच्छे लड़के की तलाश की। कई जगह जाने के बाद भी बात जम नहीं पाई और कुछ जगह तो भारी दहेज की माँग की गई तो कहीं अति सुन्दर लड़की की बात कही गई। कई लड़के तो इतने गर्व भरे अन्दाज से बात करते कि दुबारा उनके घर जाने की रामदयाल गुरुजी हिम्मत ही नहीं कर पाये। इस तरह लड़के वालों की तरह-तरह की मीन-मेख और डींग भरी बातें सुनकर वे घर लौट आते।
एक दिन रामदयाल ने भैयाजी के पास बैठकर बदलते समय और दहेज की कुरीति पर बात की तो भैयाजी ने उन्हें समझाते हुये कहा ‘‘ईमानदारी और मेहनत की गाढ़ी कमाई से जी रहे हो। इसलिये देखना तुम्हें दामाद भी नेक और गुणवान ही मिलेगा।''
समय बीतता गया। कई महीनों की भाग-दौड़ के बाद संयोग से एक दिन भोजपुर गाँव के मायाराम के बेटे से विवाह की बात आगे बढ़ी। मायाराम को गुरुजी की लड़की पूनम बहुत पसंद आई और रिश्ता पक्का हो गया तो विवाह की तारीख भी तय हो गई। दहेज की कोई बात खुलकर सामने नहीं आई। लेकिन हर लड़की वाले की तरह गुरुजी ने भी यह जरुर कहा कि पूनम की शादी तो मैं अपनी हैसियत से ज्यादा करुँगा।
रामदयाल बड़े जोर शोर से शादी की तैयारी में जुट गये। हलवाई, शामियाना, बारात ठहराने आदि का प्रबन्ध सब कुछ बहुत दिन पहले ही कर लिया। एक दिन गुरुजी के दरवाजे पर बारात आ चुकी थी। सारा गाँव बारात का स्वागत बड़े उत्साह से कर रहा था। पूनम की सहेलियाँ उसे चारों तरफ से घेरे खड़ी थीं। कई तरह की रस्में हुइर्ं। बारात का स्वागत भी बड़ी धूमधाम से हुआ। इसी बीच कुछ कानाफूसी शुरु हुई। लड़के के पिता ने रामदयाल को बुलाकर कहा-‘फेरे तो तभी पड़ेंगे जब आप बेटे को मोटरसाइकिल देंगे।'
यह सुनते ही गुरुजी के पैरों से जमीन खिसक गई। उनकी आँखों के सामने अँधेरा सा छा गया। फिर वे स्वयं को सम्हालते हुये बोले-‘मायारामजी दहेज की तो आपने कोई बात नहीं की थी। मैं गरीब आदमी तो मोटरसाईकल खरीदने की रकम जुटाने में असमर्थ हूँ। हाँ विवाह हो जाने दीजिये। आखिर यह मेरा दामाद ही है भविष्य में बन सका तो मैं मोटरसाईकिल दिला दूँगा।
तभी लड़के के मामा बोले ‘देखो जीजाजी मैंने आपसे पहले ही कहा था ऐसे लोगों के यहाँ रिश्ता न करें लेकिन आप मेरी बात मानें तब न। अब आपको जरा सी भी अपनी प्रतिष्ठा का ध्यान हो तो बारात वापस ले चलिये।'
रामदयाल बोले ‘आप मेरी इज्जत धूल में मिलाने को क्यों तुले हैं। बारात वापिस गई तो पूरे गाँव में मखौल बन जायेगा।'
पास ही में खड़े कुछ बुजुर्गांे ने मायाराम को तरह-तरह समझाने की कोशिश की परन्तु मायाराम टस से मस नहीं हुये। रामदयाल मन ही मन सोच रहे थे बारात वापिस चली गई तो बड़ी बदनामी होगी। जितने मुँह उतनी बातें होंगी। लड़की के चरित्र पर भी लांछन लगाने में लोग नहीं चूकेंगे। फिर दूसरी जगह रिश्ता तय करना भी तो मुश्किल ही होगा। यह सोचते ही उनकी आँखों से आँसू छलक पड़े। आगे बढ़कर उन्होंने मायाराम के पैर पकड़ लिये और बोेले ‘समधी साहब, मेरी लाज रख लीजिये। मेरी बेटी का जीवन बर्बाद न कीजिये। भगवान मायाराम भला कब मानने वाले थे और बोले ‘हमने जो निश्चय कर लिया है वह तो पूरा होना ही चाहिये। वरना यह समझो कि बारात वापिस ही जायेगी।'
मायाराम के बदलते तेवर को देखकर उनका बेटा भी गुस्से में बल खा रहा था। उसे अपनी हेठी लग रही थी। वह बोला - ‘‘बापू बारात वापिस ही जायेगी।''
जब पूनम ने यह सब सुना तो उसके सब्र का बाँध टूट गया। उसने अपने रिश्ते के एक भाई से सिसकते हुये कहा - ‘‘पिताजी से कह दो कि वह इस लड़के से ब्याह करेगी ही नहीं।''
बेटी का यह संदेश पाकर गुरुजी बोले - ‘‘मायाराम जी आप मेरे सारे किये पर पानी क्यों फेर रहे हैं। मेरी विवशता और प्रतिष्ठा पर तो जरा सहानुभूति से विचार कीजिये।''
मायाराम ने यह सुनकर मुँह टेढ़ाकर इशारे से बारातियों को वापिस चलने को कहा। यह सुनकर रामदयाल गुरुजी बारातियों को रोकने के लिये आगे बढ़े ही थे कि एक बुलंद आवाज गूँजी - ‘‘गुरुजी इन दहेज लोभियों से कहो कि एक पल देर किये बिना ही बारात वापिस ले जायें और अपने बेटे को किसी अच्छी जगह बेचें।''
गुरुजी भैयाजी की ऐसी बात सुनकर और उनका मुँह देखकर चकित होकर बोले - ‘‘अरे भैयाजी यह क्या कह रहे हो। मेरी बेटी क्या अनव्याही ही रह जायेगी।''
भैयाजी बोले - ‘‘घबराओं नहीं, मेरे बेटे के साथ पूनम का विवाह आज अभी इसी मंडप में होगा। इतना सुनते ही बाराती सकते में आ गये और अपना सा मुँह लिये मायाराम और बाराती के बैरंग लौट जाने के बाद पूनम सजी संवरी मंडप में बैठाई गई और थोड़ी देर में ही भैयाजी का बेटा श्याम दूल्हा बनकर मंडप में आ पहुँचा।
महिलाओं ने ढोलक की थाप पर मंगलगीत गाना शुरु किया। तब पूरे गाँव के सामने श्याम और पूनम विवाह के बन्धन में बंध गये। बिदा के समय रामदयाल भैयाजी का हाथ पकड़कर बोले - ‘‘आपने मुझ पर सचमुच ही बहुत बड़ा उपकार किया है। समाज में एक आदर्श उपस्थित किया है।''
भैयाजी बोले - ‘‘मैं पूनम जैसी सुन्दर और सुशील बहू पाकर प्रसन्न हूँ।'' उस दिन उस गाँव के लोगों ने यह निश्चित किया कि दहेज जैसी घिनौनी कुप्रथा को समाप्त करने के लिये न स्वयं दहेज लेंगे और दूसरों को भी दहेज लेने और न देने के लिये कहेंगे।
'''
ई. डब्लू. एस. - 9,
कस्तूरबा स्कूल के पीछे,
नार्थ टी.टी. नगर भोपाल।
--
(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)
COMMENTS