शशि पाठक का कहानी संग्रह : अपरिमित - (11) विज्ञान कथा - अन्तरिक्ष की दुनिया

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अपरिमित (कहानी संग्रह) श्रीमती शशि पाठक   प्रकाशक जाह्‌नवी प्रकाशन दिल्‍ली - 32 © श्रीमती शशि पाठक -- विज्ञान कथा (विज्ञान गल्प...

अपरिमित

(कहानी संग्रह)

श्रीमती शशि पाठक

 

प्रकाशक

जाह्‌नवी प्रकाशन दिल्‍ली-32

© श्रीमती शशि पाठक

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विज्ञान कथा (विज्ञान गल्प)

अन्तरिक्ष की दुनिया

घर के दरवाजे तक पहुँचते-पहुंचते पवन पस्‍त हो गया। धूप और बस्‍ते के बोझ के कारण उसका बुरा हाल हो रहा था। दरवाजा खुलने में हो रही देरी भी सहन नहीं हो पा रही थी। दरवाजा खुलते ही वह अपनी बहन पर झल्‍ला उठा-,‘‘क्‍या है दीदी,इतनी देर कर दी। मेरी तो हालत खराब हो गयी। न जाने कब तक ये पढ़ाई करनी पड़ेगी।''

‘‘अभी क्‍या है बच्‍चू, अभी तो शुरूआत है बस,इतनी जल्‍दी हिम्‍मत हार गये। अच्‍छा अब हाथ-मुँह धो लो तब तक मैं खाना लगाती हूँ।''दीदी ने प्‍यार से कहा।

पवन ने हाथ मुँह धोये, कपड़े बदले और फिर खाना खाने लगा। खाना खा चुकने के बाद उसे फिर होम वर्क की चिन्‍ता सताने लगी। आज स्‍कूल से होम-वर्क मिला भी ज्‍यादा है। यदि अभी नहीं किया तो रात तक पूरा हो पाना मुश्‍किल है। फिर मैडम पिटाई करेंगी स्‍कूल में। अजीब मुसीबत है। मन मार कर वह होम-वर्क करने बैठ गया। बीच-बीच में उसे झपकी भी लग जाती और सचमुच ही वह किताब पर सिर रख, कुर्सी पर बैठे-बैठे सो गया। खिड़की के उस पार हरा-भरा बगीचा है। अनेक प्रकार के फूल और तितलियाँ व चिड़ियों की चहचहाहट से उसकी शोभा में चार चाँद लग रहे थे। मौसम बड़ा सुहाना था,तभी उसे आकाश में उड़न- तश्‍तरी नज़र आई। वह धीरे-धीरे नीचे की तरफ आ रही थी। वह उत्‍सुकता से उसकी तरफ देखे जा रहा था।

लेकिन ये क्‍या? ये तो उसके बगीचे में ही उतर रही है। नीले रंग की उड़न तश्‍तरी गोल थी। लेकिन उसका संचालन हैलीकॉप्‍टर की तरह ही हो रहा था। तश्‍तरी के ऊपर पंखा जोर-जोर से घूम रहा था। नीचे दो पहिये और सामने एक बल्‍ब जल बुझ रहा था। उड़न तश्‍तरी बगीचे में उतर गई। कुछ ही देर में उसमें से एक नाटा-सा आदमी निकला। पता नहीं वह आदमी ही था या बच्‍चा। उसके कपड़े बिल्‍कुल अंतरिक्ष के वासियों जैसे थे। आहिस्‍ता-आहिस्‍ता वह खिड़की की ओर बड़ने लगा। शायद उसने पवन को देख लिया था।

भय के कारण पवन की आवाज गले में ही घुट कर रह गई। बोलना चाह कर भी वह बोल नहीं पा रहा था। उसके आश्‍चर्य का ठिकाना न रहा जब वह अजीब आदमी उसी से पूछ रहा था,‘‘तुम्‍हारा नाम क्‍या है पवन?''

‘पवन! इसे मेरा नाम कैसे पता चला? अवश्‍य ही यह कोई जादूगर है। मैं तो इसे नहीं जानता। फिर......तुम्‍हें मेरा नाम कैसे पता लगा?मैं तो तुम्‍हें जानता तक नहीं और फिर तुम हो कौन? इस दुनिया के तो तुम नहीं लगते। तुम्‍हारा पहनावा चाल-ढाल सब अलग है। पवन ने डर छोड़ कर हिम्‍मत करके पूछ ही लिया।

पवन की बात सुन, पहले तो वह बहुत देर तक एक अजीब आवाज में हँसता रहा।फिर बोला-

‘‘इसमें क्‍या मुश्‍किल है? मेरी ये वेश-भूषा देख रहे हो न। इसमें से एक सूक्ष्‍म तरंग निकलती है। जो मुझे सामने वाले व्‍यक्‍ति के बारे में सारी जानकारी दे देती है। मैं अन्‍तरिक्ष का रहने वाला हूँ। समझे।''

‘‘यदि तुम अन्‍तरिक्ष के रहने वाले हो तो इस पृथ्‍वी पर कैसे आ गये?'' पवन ने आश्‍चर्य से पूछा।

ये एक लम्‍बी कहानी है। मैं और मेरे माता-पिता अपनी- अपनी उड़न तश्‍तरियों में सवार होकर सैर को निकले थे। मैं उनसे बिछुड़ कर यहाँ आ गया। बहुत दिन से मन करता था कि पृथ्‍वी की सैर करूँ। लेकिन हर बार मन की मन में रह जाती। माता-पिता से कहने पर सदा उनका प्रतिरोध ही मिला। इस पृथ्‍वी के रहने वाले बहुत खतरनाक जीव हैं। इसलिये तुम कभी वहाँ जाने की कोशिश भी मत करना।‘‘क्‍यों? क्‍या आपने वहाँ जाकर देखा है। नहीं न। फिर सुनी-सुनाई बातों का क्‍या प्रमाण है आपके पास।''

जब मैंने उनसे पूछा तो वे रुंधे गले से बोले-‘ बेटा हम वैसे ही थोड़े ही कह रहे हैं। तुम्‍हारे दादाजी इसके प्रमाण थे।'

‘दादाजी!, पर कैसे? पूरी बात बताओ।' पवन ने उत्‍सुकतावश पूछा। पवन की उत्‍सुकता देख अन्‍तरिक्ष मानव बोला-

‘‘ऐसे ही बेचैनी से मैंने भी प्रश्‍न किया था। मालूम है फिर उन्‍होंने ऐसी दर्दनाक कहानी बताई,जिसे सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। फिर मैंने पृथ्‍वी ग्रह की सैर का सपना देखना छोड़ दिया। पर अचानक आज............''

‘‘तुम तो मेरी उत्‍सुकता को तो पहले शान्‍त करते नहीं,दूसरी और बढ़ा देते हो।'' अति व्‍यग्र होकर पवनबोला।

‘‘धीरज रखो। मैं धीरे-धीरे तुम्‍हारे सभी प्रश्‍नों का उत्‍तर दूंगा। पर यहाँ तुम्‍हारे बगीचे में खड़ा होना तो मुश्‍किल है। कभी भी कोई खतरा प्रकट हो सकता है।''

‘‘हाँ-हाँ, तुम मेरे कमरे में आ जाओ। यहाँ कोई नहीं आता। तुम बिल्‍कुल सुरक्षित रहोगे। लेकिन तुम्‍हारी ये उड़न तश्‍तरी,इसे देख लोग संदेह करेंगे ।''

पवन के इतना कहते ही अन्‍तरिक्षवासी एकदम आश्‍वस्‍त हो गया।-‘‘बस-बस इतना ही काफी है। मेरे शरीर पर ये जो बटन देख रहे हो न, लाल, नीला, पीला और हरा, सफेद, काला, एवं भूरा। ये सब बटन समय-समय पर मेरी सहायता करते हैं। लाल रंग के बटन की सहायता से जब चाहें तब उड़न तश्‍तरी को प्रकट और अदृश्‍य कर सकते हैं। इतना कहकर उसने लाल बटन को दबाया और देखते ही देखते उड़न तश्‍तरी गायब हो गई। उड़न तश्‍तरी की समस्‍या हल होते ही पवन ने राहत की सांस ली-अच्‍छा ,अब अन्‍दर आ जाओ। मैं तुम्‍हारे लिए दरवाजा खोलता हॅूं।

‘नहीं-नहीं,दरवाजा खोलने की कोई आवश्‍यकता नहीं हैं।'-अन्‍तरिक्ष मानव ने कहा।

‘‘क्‍यों, क्‍या फिर कोई चमत्‍कार दिखाओगे जादूगर जी?''

अपने लिए जादूगर संबोधन सुनकर वह फिर से अजीब आवाज में हँसा-‘हाँ तुम इसे जादू कह सकते हो। पर हमारे लिए इसमें जादू जैसी कोई बात नहीं है। हमारी पोशाक की बनाबट उसमें फैली सूक्ष्‍म तरंगों का जाल और बटनों की करामात ही सब कुछ कर सकती है। हम चाहें तो इन बटनों की सहायता से कैसा भी रुप धारण कर सकते हैं। अब मैं नीले बटन की सहायता से छोटा रुप रख, खिड़की की सलाखों से भीतर आ सकता हूँ।'' ‘अच्‍छा, तो फिर जल्‍दी आओ दोस्‍त। इससे पहले कि कोई आ जाय।'

शीघ्र ही उसने नीला बटन दबाया। बटन दबाते ही उसका शरीर चूहे जैसा हो गया और कुछ ही देर बाद वह पवन की कुर्सी के पास खड़ा था।

‘‘अरे रे, तुम्‍हारे बटन तो सचमुच कमाल के हैं। अच्‍छा तुम बैठो, मैं तुम्‍हारे लिए कुछ खाने-पीने का प्रबन्‍ध करता हूँ।''

‘नहीं दोस्‍त, मुझे कुछ नहीं चाहिए।'

‘‘अब क्‍या किसी बटन की मेहरबानी से पकवान भी आने वाले हैं?''-पवन ने मजाक में पूछा।

‘खाने और पकवानों की तो हमें जरुरत भी नहीं पड़ती है।'-अंतरिक्ष मानव ने कहा तो पवन फिर हैरान होकर पूछ बैठा,-‘‘ फिर क्‍या तुम भूखे रहते हो या फिर तुम्‍हें भूख ही नहीं लगती?''

पवन का यह प्रश्‍न सुन अंतरिक्ष मानव ने जेब से कुछ कैपसूल निकाले और मेज पर फैला दिए फिर बोला,- ‘ये कैपसूल देख रहे हो, बस दिन भर के लिए एक ही पर्याप्‍त है। इसको खाने के बाद भूख नहीं लगती है।'

‘‘फिर तो तुम्‍हारी मौज ही मौज है। सारा रोना तो इस भूख का ही है। जब भूख ही नहीं लगेगी तो फिर नौकरी करके पैसा कमाने की क्‍या जरुरत है और जब नौकरी ही नहीं करनी है तो फिर पढ़ाई का चक्‍कर भी खत्‍म। होम वर्क न करने पर अध्‍यापक द्वारा पिटने का डर भी छूमन्‍तर। वाह! क्‍या बात है।''-पवन कल्‍पना लोक में डूब ही जाता यदि अंतरिक्ष मानव उसे न उबारता।

‘दोस्‍त तुम तो ऊँची-ऊँची उड़ानें भरने लगे। तुम्‍हारी पृथ्‍वी भी तो कितनी सुन्‍दर है। नदी,झरने,बाग-बगीचे,हर तरफ मस्‍ती में झूमते रंग-बिरंगेफूल और उन पर मंडराती रंग-बिरंगी तितलियाँ। ऊँची-ऊँची आसमान को छूती पर्वत मालाएंॅ और पेड़-पौधे, सभी कुछ तो सुहाना है।

‘‘इतना सब होते हुए भी आदमी के जीवन में इतनी समस्‍याएँ हैं कि वह उन्‍हीं में उलझा रहता है। इन सब चीजों की ओर ध्‍यान भी नहीं दे पाता।''

‘वो कैसे?'

अन्‍तरिक्ष मानव के पूछने पर पवन बोला,-‘‘अब यार बात को मोड़ो नहीं, तुमने वायदा किया था कि मेरी जिज्ञासाओं को शान्‍त करोगे।''

‘हाँ-हाँ मुझे सब याद है, पर तुम्‍हारी बातें सुनकर मेरे अन्‍दर भी तुम्‍हारे इस पृथ्‍वी लोक के बारे में जानने की तीव्र इच्‍छा हो रही है।'

‘‘मैं अच्‍छी तरह जानता हूँ कि जिस तरह अंतरिक्ष्‍ा की दुनिया और वहाँ के रहने वालों के बारे में जानने की जितनी उत्‍सुकता मेरे अन्‍दर पैदा हो रही है उतनीही तुम्‍हारे अंदर भी इस पृथ्‍वी और यहाँ के रहने वालेां के बारे में जानने की हो रही होगी पर दोस्‍त पहले तुम अपने अंतरिक्ष के बारे में बताओ। फिर मैं बताऊँगा।''-पवन ने आश्‍वासन देते हुएकहा।

अच्‍छा तो सुनो,‘‘अन्‍तरिक्ष में हवा का दाब बहुत कम होता है। इसलिये एक विशेष प्रकार की ड्रेस पहनकर ही वहाँ का जीवन जीना संभव हो पाता है।जैसा कि तुम मेरी इस ड्रेस को देख रहे हो। इससे हमें आक्‍सीजन मिलती रहतीहै।हवा का दाब कम होने की वजह से हमारे शरीर का भार फूल से भी हल्‍का हो जाता है और हम तैरते हुएएक जगह से दूसरी जगह जाते हैं। अन्‍तरिक्ष पर नौ ग्रहों का आधिपत्‍य है- मरकरी, वीनस, अर्थ, मार्स, जुपीटर, सैटर्न, यूरेनस, नैपच्‍यून और प्‍लूटो। मरकरी ग्रह की दूरी सूरज के एकदम निकट है और प्‍लूटो सबसे दूर। इसलिये मरकरी ग्रह पर जीवन एकदम असंभव है।''

‘वो कैसे?' पवन ने पूछा।

‘‘क्‍योंकि वह सूर्य के एकदम निकट है,इसलिये वहाँ उष्‍मा इतनी अधिक है कि वहाँ पहुँच पाना ही असंभव है।''

‘क्‍या तुमने सभी ग्रह देखे हैं?' पवन ने कौतूहल से पूछा।

‘‘हाँ-हाँ क्‍यों नहीं। हमारी पोशाक में जो पीला बटन है उसकी सहायता से हम जिस ग्रह पर जाना चाहें पहुँच जाते हैं। अभी तक में कई ग्रहों का आनंद ले चुका हूँ। पृथ्‍वी ग्रह के बारे में मेरे दादाजी का अनुभव बहुत खराब रहा, इसलिये मेरे माता-पिता इस ग्रह पर आने के लिए मना करते थे। लेकिन यहाँ आकर तो ऐसा लगता है कि अब तक जितने भी ग्रह देखे हैं,उन सबमें पृथ्‍वी ग्रह ही सबसे सुंदर है।''

‘‘अरे हाँ, अपने दादाजी वाला किस्‍सा तो तुमने सुनाया ही नहीं। ऐसा क्‍या हुआ था तुम्‍हारे दादाजी के साथ जो ---''

एक बार मेरे दादाजी ने पृथ्‍वी ग्रह पर जाने की सोची। उन्‍होंने पहले लाल बटन दबाया और उड़न तश्‍तरी में सवार होकर पीला बटन दबाकर पृथ्‍वी ग्रह पर जाने की इच्‍छा प्रकट की मगर दुर्भाग्‍य से बीच रास्‍ते में उड़न तश्‍तरी में खराबी आ गई। उसका संतुलन बिगड़ गया और एक किले की चोटी पर उनकी उड़न तश्‍तरी गिर पड़ी। उड़न तश्‍तरी के गिरने के साथ ही दादाजी भी गिर पड़े। पास ही चोटी के उस पार एक गाँव था। धमाके की आवाज के साथ ही गाँव के बच्‍चे,बूढ़े और महिलाऐं एकत्रित हो गये। वे सब टूटी हुई उड़न तश्‍तरी को आश्‍चर्य से देखने लगे। दादाजी पास ही पड़े कराह रहे थे। पर उनकी वेश-भूषा को देखकर सभी डर गए। उनकी सहायता करना तो दूर सभी पत्‍थर उठा-उठा कर उनके ऊपर मारने लगे।

‘‘फिर उन्‍होंने बटनों की सहायता क्‍यों नहीं ली?''पवन ने उत्‍तेजित होते हुए कहा।

‘‘चोटी पर गिरने के साथ ही उनके सभी बटन चकनाचूर हो गए थे। बटनों के टूटने से ही वह और भी ज्‍यादा असहाय हो गए थे। वे पड़े-पड़े कराहते रहे।जब दो दिन तक वे वापस नहीं आये तो मेरे माता-पिता को उनकी चिंता हुई। उन्‍होंने सभी ग्रहों में ढॅूंढा पर कहीं भी उनका पता न चला।''

‘‘फिर तुम्‍हारे दादाजी के बारे में कोई सूचना नहीं मिली?''

‘सूचना मिल गई थी तभी तो ये सारी घटना बाद में दादाजी ने ही सुनाई थी। वरना हमें क्‍या पता चलता।'

‘‘तो दादाजी के बारे में सूचना कैसे मिली?''

‘ये सफेद बटन देख रहे हो न,इसको दबाने पर जिस वस्‍तु को चाहें इसमें देख सकते हो। वह चाहे फिर दुनिया के किसी कोने में क्‍यों न छुपी हो।'

‘‘अरे फिर तो यह दूरदर्शन हुआ। यह देखो इस कोने में जो डिब्‍बा रखा हुआ है, इसमें भी बटन दबाते ही दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने के कार्यक्रम देख सकते हैं। ये दूरदर्शन है, इसे अंग्रेजी में टेलीविजन कहते हैं।''-पवन ने जानकारी देते हुए कहा।

‘अच्‍छा! जिसको चाहें ,क्‍या उसको देख सकते हैं?'- अंतरिक्ष मानव ने प्रत्‍युत्‍तर में प्रश्‍न किया।

‘‘नहीं, वो तो नहीं देख सकते। ये तो दूरदर्शन वालों की इच्‍छा पर निर्भर करता है। वह जो दिखाना चाहें दिखाते हैं। लेकिन इससे दुनिया की दूरी सिमट कर रह गई है। हम सभी का ज्ञान भी बढ़ा है।''-पवन ने उत्‍साहित होते हुए कहा,- लेकिन तुम अपने दादाजी के बारे में बताओ, फिर क्‍या हुआ?''

‘‘फिर क्‍या होता। पता चलते ही मेरे माता-पिता रात के समय जब कोई भी ग्रामीण वहाँ नहीं था,जाकर उनको घायल अवस्‍था में वहाँ से ले आये।''अन्‍तरिक्ष मानव इतना कहकर चुप हो गया।

पवन की जिज्ञासा शान्‍त नहीं हुई थी, अपनी चुप्‍पी को तोड़ते हुए वह बोला ,-‘दादाजी को तो बहुत चोटें आई होंगीं। फिर तो किसी डॉक्‍टर को दिखाना पड़ा होगा?'

‘‘हमारे अंतरिक्ष पर डॉक्‍टर नाम की कोई चीज नहीं है।''-अन्‍तरिक्ष मानव द्वारा इतना कहते ही पवन हैरानी से पूछ बैठा-तब तुम्‍हारे दादाजी की चोटें कैसे ठीक हुईं? क्‍या फिर किसी बटन का चमत्‍कार हुआ था।''

‘हाँ, तुमने बिल्‍कुल ठीक पहचाना। इस हरे रंग के बटन की सहायता से मेरे दादाजी की सभी चोटें धीरे-धीरे ठीक हो गईं।'-अंतरिक्ष मानव ने अपनी बात पूरी भी न की थी कि पवन बोल पड़ा,-‘‘धीरे-धीरे का क्‍या मतलब? एकदम क्‍यों नहीं।''

‘एकदम इसलिए नहीं क्‍यों कि हरे बटन से एक विशेष प्रकार की हल्‍की-हल्‍की किरणें निकलती हैं जो

धीरे-धीरे सभी चोटों पर डाली जाती थीं। दादाजी का काफी शरीर क्षतिग्रस्‍त हो गया था इसलिए थोड़ा अधिक समय लगना स्‍वाभाविक था।

‘‘अच्‍छा, उसी तरह जैसे हमारी पृथ्‍वी पर कोई दुर्घटना ग्रस्‍त हो जाय या बीमार पड़ जाय तो लम्‍बे समय तक दवाई-पट्‌टी एवं इंजेक्‍शन लेने पड़तेहैं।''पवन ने समझते हुए कहा।

‘ट्रिन-ट्रिन.....टेलीफोन की घंटी की आवाज सुनकर अन्‍तरिक्ष मानव एक बार तो डर गया।लेकिन कुछ देर में पवन ने ‘रोंग नंबर' कहकर फोन का रिसीवर रख दिया।

‘‘इसमें ये आवाज कैसी थी? क्‍या चीज है ये।''अंतरिक्ष मानव ने डरते हुए भी न डरने का अभिनय करते हुए पूछा।

‘ये टेलीफोन है। इसे दूरभाष भी कहते हैं। इसमें ये गोला देख रहे हो, इसमें एक से नौ तक गिनती हैं। फिर शून्‍य है। बस नम्‍बर पता होना चाहिए, जिसका नम्‍बर घुमाओ उसी से बात हो जाती है। फिर चाहे वह कितनी भी दूर क्‍यों न हो।'-पवन ने अध्‍यापक के लहजे में समझाया।

‘‘और अभी-अभी तुम रोंग नम्‍बर बोल रहे थे। इसका क्‍या मतलब?''

‘रांग नम्‍बर यानि गलत नम्‍बर। जब लगाया हुआ नम्‍बर न लगकर, कोई दूसरा नम्‍बर लग जाय तो उसे रांग नम्‍बर कहते हैं।'

‘‘अरे! किसी दूसरे दूर ग्रह पर किसी से बातें करनी हों तो हम अन्‍तरिक्षवासी भी इस काले बटन के माध्‍यम से बातें करते हैं। लेकिन इसमें नम्‍बर का कोई चक्‍कर नहीं होता। फिर रांग नम्‍बर लगने का तो कोई सवाल ही नहीं होता।''

‘फिर बिना किसी नम्‍बर के इच्‍छित व्‍यक्‍ति से कैसे बात होती हैं?-पवन ने आश्‍चर्य से पूछा।

‘‘ये तो बहुत ही आसान है। जिससे भी हमें बात करनी होती हैं,उसे पहले सफेद बटन से देख लेते हैं। और हाँ,इस काले बटन में कुछ देर तक ध्‍वनि होती है। जो उस व्‍यक्‍ति के बटन में भी होती है।जिसे सफेद बटन द्वारा देखा है। ध्‍वनि से ही उसे पता चल जाता है कि कोई उससे बात करना चाहता है।फिर बातें हो जाती हैं।''- अन्‍तरिक्षमानव ने तरीका बताया।

‘कमाल है,इससे तो रांग नम्‍बर लगने का कोई डर ही नहीं। यहाँ तो रांग नम्‍बर इतने लगते हैं कि दिमाग खराब हो जाता है। समय बरबाद होता है सो अलग। हमारी पृथ्‍वी से तुम्‍हारा अन्‍तरिक्ष ज्‍यादा अच्‍छा है, ऐसा तुम्‍हारी बातें सुनकर लगता है। देखने पर तोन जाने कितना अच्‍छा लगेगा।'-पवन ने प्रसन्‍नता व्‍यक्‍त करते हुए कहा।

‘‘कुछ भी कह लो पर हमें तो तुम्‍हारी पृथ्‍वी बहुत अच्‍छी लगी है, जबकि तुमने हमें अभी तक इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं दी है। फिर भी जो कुछ भी जाना है उसी ने हमें तो मोहित कर लिया है। अच्‍छा अबतुम अपनी पृथ्‍वी के बारे में और जानकारी तो दो।''-अन्‍तरिक्षमानव ने आनन्‍दित होते हुए कहा।

‘हमारी पृथ्‍वी एकदम गोल है। इसके तीन चौथाई भाग में पानी है और एक चौथाई भाग में जमीन। ये सूरज के चारों ओर घूमती रहती है। इससे जो हिस्‍सा सूरज के सामने आ जाता है वहाँ दिन तथा जो छिपा रहता है वहाँ रात होती है। रात और दिन मिलाकर चौबीस घन्‍टे होते हैं। अलग-अलग जगहों पर देशकाल और जलवायु के हिसाब से लोगों का रंग-रुप,रहन-सहन और खान-पान होता है। कहीं पर अधिक वर्षा-शीत या गरमी होती है तो कहीं-कहीं पर आँधी-तूफान या भूकम्‍प का डर बना रहता है। उसीके अनुसार लोग अपने घरों का निर्माण करते हैं। भारतवर्ष में छह ऋतुएँ होती हैं जो बारी-बारी से बदलती रहती हैं। इसलिए यहाँ का मानव सब ऋतुओं के साथ ही अपने परिवेश को बदल लेता है। फलदार वृक्ष, चाय के बागान, सुन्‍दर-सुन्‍दर पुष्‍प और ऊंची- ऊँची पर्वत शिखाओं की गोद में अठखेलियाँ करती नदियाँ, पर्वतों से उतरकर मैदानों में शान्‍त-भाव से बहती हैं और धरा का आँचल पावन कर लोगों का मन भी तृप्‍त करती हैं। लेकिन.....

‘‘लेकिन क्‍या?''

‘इतना सब होते हुए भी मानव बहुत परेशान रहता है।'

‘‘वो कैसे?''

‘जैसे हम बच्‍चों को ही ले लो। सुबह जल्‍दी बिस्‍तर छोड़कर उठना, फिर स्‍कूल के लिए तैयार होना और सारे दिन स्‍कूल के बन्‍धन में रहना। स्‍कूल से घर आकर स्‍कूल में अध्‍यापकों द्वारा दिया गया ढेर सारा काम करना उसके बावजूद भी हर समय अध्‍यापक की डाँट-फटकार का डर। परीक्षा का भूत सिर पर सवार रहता है सो अलग। स्‍कूल में अध्‍यापक और घर पर माता-पिता की डाँट-फटकार। मुसीबत ही मुसीबत है। इससे तो तुम्‍हारी अन्‍तरिक्ष की दुनिया ज्‍यादा अच्‍छी है, जहाँ कम से कम पढ़ाई और नौकरी की तो चिन्‍ता नहीं रहती।''

‘पढ़ाई और नौकरी के अलावा ऐसा और कुछ नहीं है, जिससे मानव को खाना मिल सके?''-अन्‍तरिक्ष मानव ने उत्‍सुकता से पूछा।

‘‘क्‍यों नहीं, लेकिन पढ़ाई तो फिर भी सबके साथ जरुरी है। अनपढ़ आदमी को तो कदम-कदम पर और भी ज्‍यादा मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। व्‍यापार, खेती- वाड़ी, रिक्‍शा या टेम्‍पू चालन, मजदूरी, मिल, खदानों आदि के माध्‍यम से भी मनुष्‍य अपना पेट तो भर सकते हैं पर बहुत मेहनत के बाद। लेकिन अधिक नहीं तो थोड़ी-बहुत पढ़ाई की जरुरत उन्‍हें भी पड़ती है, नहीं तो धोखा हो जाता है। साथ ही हर बात के लिए दूसरों का मुंह देखना पड़ता है।''-पवन ने पट़ाई का महत्‍व बताते हुए कहा।

‘‘धोखा हो जाता है और मुँह देखना पड़ता है, का क्‍या मतलब?''

यदि हम पढ़-लिख नहीं पायेंगे तो कोई भी कुछ भी लिखकर हमसे अंगूठा लगवा सकता है। इसको धोखा कहते हैं और मानलो किसी का पत्र हमारे पास आया है या कहीं पत्र लिखना है तो हमें ऐसे आदमी को तलाशना पड़ता है जो हमारा पत्र लिख दे या पढ़ दे। अब इस सबके लिये उस व्‍यक्‍ति की सुविधा व फुर्सत सभी कुछ देखना पड़ता है।इसको कहते है दूसरों का मुँह देखना''- समझाते हुए पवन बोला।

‘‘तब तो पढ़ाई बहुत ही जरुरी है।परन्‍तु हमारे अन्‍तरिक्ष्‍ा में ऐसा नहीं है।''

तभी तो कहता हूँ कि हमारी पृथ्‍वी से तुम्‍हारा अन्‍तरिक्ष बहुत अच्‍छा है। एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर मौज करते रहो। किसी बात की कोई चिन्‍ता नहीं रहती।''-पवन ने आनन्‍दित होते हुए कहा।

‘‘अरे यार मैं तो इन सबसे बोर हो चुका हूँ। सारे दिन कैप्‍सूल खाकर निठल्‍लों की तरह पडे़ रहो या बेमतलब घूमते रहो। तुम्‍हारी पृथ्‍वी पर सुबह से शाम तक कुछ न कुछ करने को तो है, और घूमने के लिए एक से एक शानदार जगह। वाह।''

‘‘काश हम दोनों का आपस में स्‍थान परिवर्तन हो सकता।''-पवन ने ठण्‍डी आह भरते हुए कहा।

‘‘इसमें क्‍या मुश्‍किल है। मैं भी तो यही चाहता हूँ।''- अन्‍तरिक्ष मानव तपाक से बोला।

‘‘लेकिन ऐसा हो तो बड़ा मजा भी आयेगा और परेशानी भी होगी।''

‘‘वो कैसे?''

मैं तुम्‍हारे अन्‍तरिक्ष में पहुँच गया और तुम यहाँ। तब हम दोनों को नई-नई चीजें देखकर आन्‍नद भी आयेगा और एक-दूसरे के तौर तरीकों से अंजान होने के कारण परेशानी का सामना भी करना पड़ेगा। फिर हम पहचान भी तो लिये जायेंगे।''

‘‘मेरे होते हुए तुम किसी बात की चिन्‍ता मत करो। नीले बटन की करामात इतनी जल्‍दी भूल गए?''-अन्‍तरिक्ष मानव ने याद दिलाते हुए कहा।

‘‘नहीं-नहीं,भूला नहीं हूँ। पर नीले बटन की सहायता से तो सिर्फ तुम मेरा रुप रख सकते हो। लेकिन मैंक्‍याकरुँगा?'' -उदास होते हुए पवन बोला।

‘उदास क्‍यों होते हो? मैंने ऐसे ही आपस मेंअदला- बदली के लिए थोड़े ही कहा है।'

‘‘तो क्‍या कोई जादू करोगे या ऐसा भी कोई बटन है तुम्‍हारे पास, जिसकी सहायता से मुझे अन्‍तरिक्ष मानव बना दोगे।''-अन्‍तरिक्ष मानव की बात बीच में काटते हुए पवन ने पूछा।

‘‘हाँ,ये तुमने ठीक पहचाना। मेरे पास एक बटन ऐसा भी है जो तुम्‍हें अन्‍तरिक्ष मानव में परवर्तित कर सकता है।''

‘याहू.....तब तो मजा आ जाएगा। जल्‍दी से बताओ वह बटन कौन सा है?''

‘‘हाँ तो सुनो, ये जो भूरा बटन देख रहे हो न, इसकी बनावट अन्‍य बटनों से भिन्‍न है। आमतौर पर सारे बटन वस्‍त्रों से सटे हुए हैं। पर यह भूरा बटन बटन खड़ा हुआ है। इसके दोनों हिस्‍सों में शीशा है। नीचे के हिस्‍से की तरफ तुम देखना और ऊपर के हिस्‍से की तरफ मैं देखूँगा। देखते ही देखते तुम अन्‍तरिक्ष मानव की शक्‍ल और अक्‍ल दोनों ही ले लोगे और मैं तुम्‍हारी। ठीक है न? फिर कोई कैसे पहचानेगा। बताओ?''-अन्‍तरिक्ष मानव ने गर्व से सीना तानते हुए बतलाया।

‘‘ये बटन तो वाकई सारे बटनों का बादशाह निकला। तुम्‍हारा रुप रखने के बाद क्‍या ये सारे बटन मेरे पास होंगे?''

‘‘हांॅ,क्‍यों नहीं होंगे।वहाँ अन्‍तरिक्ष पर तो कदम-कदम पर इनकी जरुरत पड़ेगी। इनके बिना वहाँ क्‍या है?''

‘अन्‍तरिक्ष्‍ा के नाम पर याद आया। वहाँ हमारी पृथ्‍वी की तरह सुबह-शाम बढ़िया-बढ़िया भोजन क्‍यों नहीं मिलता? दवाई, कैपसूल खाने में तो मुझे अच्‍छा नहीं लगता।'-पवन ने अपनी परेशानी बताई।

‘‘इसके बिना कोई चारा भी तो नहीं है। ये तो तुम्‍हें पता ही है कि वहाँ हवा का दाब कम है। वनस्‍पति आदि के लिए उपयुक्‍त जलवायु चाहिए।वो वहाँ है नहीं।इसी वजह से वहाँ पृथ्‍वी की तरह हरियाली नहीं है जिससे हमें विभिन्‍न प्रकार के व्‍यंजन मिलते हैं। क्‍या करें कैपसूल खाना तो मजबूरी है।भूख शान्‍त करने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा।''-कारण बताते हुए अन्‍तरिक्ष मानव बोला।

‘क्‍या कैपसूल के द्वारा सभी आवश्‍यक तत्‍व जैसे विटामिन, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड आदि सब मिल जाते हैं?'-पवन ने पूछा।

‘‘हाँ, हमें दिनभर के लिए सभी चीजें पर्याप्‍त मात्रा में मिल जाती हैं।''

‘अच्‍छा, तो अब जल्‍दी करो, कहीं ऐसा न हो कि तुम्‍हारे माता-पिता तुम्‍हें ढूढ़ते हुए यहाँ तक आ पहुचें।'-पवन उतावलापन दिखाते हुए बोला।

‘‘हाँ, वो तो तुम ठीक कह रहे हो। बटन का प्रयोग तो ठीक से समझ गये हो न? क्‍यों कि रूप बदलने के बाद मैं तुम्‍हारी कोई सहायता नहीं कर पाऊँगा। तुम्‍हें स्‍वयं ही अपनी उड़न तश्‍तरी लानी पड़ेगी। पीले बटन की सहायता से मंगल ग्रह पर जाना होगा। वहीं मेरे माता-पिता मिल जायेंगे। बाकी सब तुम स्‍वयं ही समझ लोगे।''-अन्‍तरिक्ष मानव ने समझाते हुए बताया।

‘सब समझ गया। अब मैं नीचे की ओर देखता हॅूं और तुम ऊपर की ओर देखो।.....अरे! ये तो चमत्‍कार हो गया।'-पवन ने अपने को ऊपर से नीचे तक निहारा-‘मैं तो बिल्‍कुल अन्‍तरिक्ष मानव बन गया और तुम बिल्‍कुल मेरी तरह।'

लाल बटन दबाते ही एक उड़नतश्‍तरी बाहर लॉन में आकर खड़ी हो गई। नीला बटन दबाते ही चूहे के आकार में बदल कर पवन खिड़की से निकल कर बाहर आ गया और पुनः अन्‍तरिक्ष मानव में बदल गया तथा उड़न तश्‍तरी में सवार हो गया-

‘अच्‍छा दोस्‍त, अलविदा। मैं मंगल ग्रह पर जाने के लिए पीला बटन दबाने वाला हूँ।'

‘‘अलविदा दोस्‍त, फिर मिलेंगे।''

पीला बटन दबाते ही उड़न तश्‍तरी मंगल ग्रह की ओर उड़ चली। वह तेजी के साथ ऊँचे-ऊँचे पहाड़,नदियाँ, देवदार के वृक्ष आदि सब कुछ नीचे छोड़ती जा रही थी जिसे देख अन्‍तरिक्ष मानव बने पवन को बहुत मजा आ रहा था। कभी-कभी तो वह डर भी जाता कि कहीं ऊँचे- ऊँचे देवदार के वृक्ष से न टकरा जाये उसकी उड़न तश्‍तरी। पर देखते ही देखते वह मंगल ग्रह पर पहुँच गया। उड़न तश्‍तरी से उतरते ही वह हवा में तैरने लगा। सामने से आते दो अन्‍तरिक्ष मानवों को देखकर उसनेअनुमान लगाया कि ये अन्‍तरिक्ष मानव उसके दोस्‍त के मम्‍मी-पापा हैं। वह उन दोनों के पीछे-पीछे चलने लगा। थोड़ी दूर जाकर उसके मम्‍मी-पापा ने अपनी उड़न तश्‍तरियों को छोड़ दिया और स्‍वचालित अन्‍तरिक्ष यान में सवार हो गये। पवन ने भी ऐसा ही किया।

पवन ने स्‍वचालित यान से बाहर झाँक कर देखा। जगह-जगह लम्‍बी और गहरी खाइयाँ देखकर वह डर गया। पूरा मंगल ग्रह लाल रंग से रंगा हुआ दिखाई दे रहा था।

एक अद्‌भुत नजारा देख, पवन रोमांच से भर उठा। मंगल ग्रह के वायु मण्‍डल का दाब पृथ्‍वी के वायु मण्‍डलीय दाब से 160 गुना कम है, ऐसा पवन ने पुस्‍तकों में पढ़ा था और अब महसूस भी कर रहा था। इतने कम दाब के कारण बर्फ सीधे भाप में परिवर्तित हो रही थी। पानी कहीं भी नजर नहीं आ रहा था।

देखते ही देखते थोड़ी ही देर में धूल भरी आँधी भी चलने लगी जिससे चारों ओर उमस और घुटन हो गई।

मंगल ग्रह 687 दिन में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करता है। प्रत्‍येक पन्‍द्रह और सत्‍तरह साल बाद पृथ्‍वी से इसकी दूरी न्‍यूनतम होती है।

‘‘अरे यहाँ तो दो-दो चाँद हैं। हमारी पृथ्‍वी से तो एक ही दिखाई देता है।''-पवन ने अभी तक केवल पढ़ा ही था कि मंगल ग्रह पर फोबोस और देहमोस नाम के दो चन्‍द्रमा पाये जाते हैं, आज दोनों को प्रत्‍यक्ष देखकर वह अपने कौतूहल को दबा न सका।

थोड़ी दूर जाकर एक्‍स-वाई ने अपनी-अपनी उड़न तश्‍तरियों को छोड़ दिया और स्‍वचालित अन्‍तरिक्ष यान में सवार हो गये।पवन ने भी ऐसा ही किया। धीरे-धीरे उनका स्‍वचालित यान नये-नये अचम्‍भों और कौतूहलों को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ा जा रहा था। पवन को बहुत आनन्‍द आ रहा था। अचानक यान एक खाई में उतरने लगा। पवन जब तक कुछ समझ पाता तब तक उसका यान एक विशालकाय यान में प्रविष्‍ट हो गया। यान के रुकते ही एक्‍स-वाई का अनुकरण करते हुए पवन भी यान से उतर गया। चारों ओर नजरें घुमाकर देखा तो वह किसी राजा-महाराजा के किले से कम नहीं लग रहा था। हॉल में सामने की दीवार पर भी कई सारे बटन लगे हुए थे। लेकिन वे रंगीन नहीं थे। सभी पारदर्शी थे। उनपर नम्‍बर लिखे हुए थे। एक्‍स-वाई ने चार नम्‍बर का बटन दबाया तो तुरन्‍त ही तीन गिलास पेय पदार्थ और एक प्‍लेट में कुछ कैपसूल प्रकट हो गये। एक्‍स- वाई के द्वारा गिलास उठाये जाते ही पवन ने भी अपना गिलास उठा लिया।

तीन नम्‍बर का बटन दबाते ही पलंग प्रकट हो गये और पाँच नम्‍बर का बटन दबाते ही पंखा चलने लगा। फिर एक माइक से आवाज आने लगी।पवन की आँखों से नींद कोसों दूर थी। वह मंगल ग्रह के बाद सभी ग्रहों को जल्‍दी- जल्‍दी देखना चाहता था। उनकी कल्‍पना में खोए-खोए ही जाने कब आँख लग गई उसे पता ही न चला। सुबह को जब आँख खुली तो वह हड़बड़ा उठा। लेकिन दूसरे ही पल, ये जानकर कि मैं अन्‍तरिक्ष में हॅूं, यहाँ स्‍कूल का क्‍या काम , मन शान्‍ति से भर उठा। अपने पलंग से उतर कर उसने देखा कि मिस्‍टर एक्‍स और मिसेज वाई जाग चुके हैं और कहीं जाने की तैयारी कर रहे हैं। वह भी जल्‍दी- जल्‍दी तैयारी करने लगा।

‘‘जेड?''-एक्‍स,वाई ने आवाज दी।

‘जी कहिए?'-पवन पहले तो अचकचाया,फिर बोला।

‘‘पहले छह नम्‍बर दबाओ,फिर जल्‍दी से नाश्‍ता करके तैयार हो जाओ। रोज-रोज समझाना पड़ता है। जाने कब अकल आयेगी।''

मम्‍मी की कड़कदार आवाज सुनकर भूलोक वाली मम्‍मी की याद आ गई। नाश्‍ते के नाम पर आलू के पराँठे और दही चटनी की महक,कैपसूल देखकर गायब हो गई। छह नम्‍बर का बटन दबाते ही पलंग दीवार में ही जाने कहाँ समा गया। कमरे से बाहर निकल कर तीनों स्‍वचालित यान में सवार हो गये।

स्‍वचालित यान विशालकाय यान से निकल कर खाई से ऊपर की ओर उड़ चला। खाई से बाहर निकलते ही स्‍वचालित यान को छोड़कर तीनों ने अपने लाल रंग के बटन को दबाया। उड़न तश्‍तरियों के प्रकट होते ही सभी अपनी-अपनी उड़न तश्‍तरियों में सवार हो गए।

एक्‍स-वाई के जाते ही पवन ने भी पीला बटन दबाया। पहले बुध ग्रह पर जाने की इच्‍छा व्‍यक्‍त की। उसके बाद शुक्र ग्रह पर चलने की आज्ञा दी।पीले बटन के दबाते ही पवन की उड़न-तश्‍तरी बुध ग्रह की ओर उड़ चली और थोड़ी देर में बुध ग्रह पर उतर गई, बुध ग्रह यानी बुद्धिमान। यूनानी लोग इसे मरक्‍यूरी भी कहते हैं।-पवन ने उड़न-तश्‍तरी के मीटर में पढ़ा, बुध के एक गोलार्ध्‍द में तापमान 400 डिग्री सेन्‍टीग्रेड था तो दूसरे गोलार्ध्‍द में शून्‍य के नीचे 200 डिग्री से नीचे तक उतर आया है। उसने अपनी विज्ञान की पुस्‍तक में पढ़ा था कि यह ग्रह पृथ्‍वी से बहुत छोटा है और 88 दिन में सूर्य का एक चक्‍कर लगा लेता है। यह अपनी धुरी पर एक चक्‍कर लगाने में भी 88 दिन ही लेता है। इसी कारण बुध का एक गोलार्ध्‍द हमेशा सूर्य की ओर रहता है तो दूसरा अंधेरे में। बुध को सूर्य के निकट होने के कारण पृथ्‍वी से सात गुना अधिक ऊर्जा मिलती है। पवन ने देखा कि जैसा पुस्‍तकों में पढा़ था वैसे ही खड्‌ड जगह-जगह नजर आ रहे हैं।वायुमण्‍उल भी हाइड्रोजन एवं हीलियम युक्‍त है।

पवन को इस ग्रह पर और कोई खास बात नजर नहीं आई इसलिए उसने शुक्र ग्रह पर जाने की तैयारी की।

शुक्र को भोर और सायं का तारा कहते हैं। पर ये तारा नहीं ग्रह है। यूनानी लोग इसे कुप्रिस कहते हैं। रोमन लोग इसे वीनस कहते हैं। वीनस यानि सौंन्‍दर्य की देवी। पवन ने देखा कि यह ग्रह हमारे सबसे निकट है। आकार- प्रकार में भी बिल्‍कुल हमारी पृथ्‍वी जैसा ही लग रहा है लेकिन इसकी सतह वायुमण्‍डल के घने बादलों से घिरी हुई है। इसके वायुमण्‍डल में कार्बन डाईआक्‍साइड और आर्गन की मात्रा अधिक है। यहाँ बिना आक्‍सीजन के आ पाना बहुत कठिन है। पवन ने महसूस किया कि शुक्र ग्रह ,बुध ग्रह की अपेक्षा अधिक चमकीला है।

अब उसने मंगल ग्रह की ओर उड़न तश्‍तरी मोड़ दी। अगले ही पल मंगल ग्रह पर पहुँच कर उसने एक कैपसूल खाया और फिर आराम करने लगा। लेटे-लेटे ही वह आज की रोमांचकारी ग्रहों की यात्रा के बारे मे सोचने लगा। कल वह वृहस्‍पति और शनि ग्रह की यात्रा करेगा। आहा...वृहस्‍पति ग्रह तो बहुत बड़ा ग्रह है और शनि ग्रह सबसे सुन्‍दर। बड़ा मजा आयेगा।

अगले दिन उसने वृहस्‍पति ग्रह पर पहुँच कर देखा कि वृहस्‍पति ग्रह तो बहुत विशाल और भव्‍य है।सोलह चन्‍द्र इस ग्रह की परिक्रमा कर रहे हैं। इसका वायुमण्‍डल मुख्‍यतः मीथेन हाइड्रोजन, तथा अमोनिया गैसों से बना है।

पवन को महसूस हो रहा था कि जैसे उसका वजन बढ़ता जा रहा है। अरे वाह!इसकी सतह पर विशाल लाल धब्‍बा तो अत्‍यन्‍त अद्‌भुत लग रहा है। वास्‍तव में ये ग्रह तो बहुत ही सुन्‍दर है।

इसके बाद पवन ने पीला बटन दबाया। कुछ समय बाद ही वह शनि ग्रह पर था। उसने महसूस किया कि यह ग्रह बहुत ही ठण्‍डा है। इसका वायुमण्‍डल भी वृहस्‍पति ग्रह की ही तरह है। वृहस्‍पति ग्रह की तरह ही इसके इर्द-गिर्द भी वलय हैं परन्‍तु शनि के वलय ज्‍यादा विस्‍तृत और स्‍पष्‍ट हैं।वर्फ से ढके होने के कारण अति चमकीले और सुन्‍दर लग रहे हैं। वापस मंगल ग्रह पर आकर पवन यूरेनस, नेपच्‍यून और प्‍लूटो की यात्रा को अपनी सोच में बसाये निद्रा देवी की गोद में चला गया।

सुबह मिसेज एक्‍स के द्वारा जगाऐ जाने पर वह हड़बड़ा कर उठा और जल्‍दी-जल्‍दी दैनिक कायोंर् से निवृत हो ,अपनी उड़न तश्‍तरी निकालने लगा तो ये देखकर हैरान रह गया कि एक्‍स और वाई अभी तक तैयार नहीं हुए। वह असमंजस में पड़ा ,पूछने की सोच ही रहा था कि मिसेज एक्‍स की आवाज सुनाई पड़ी-

‘‘बेटा जेड, आज तुम्‍हें अकेले ही घूमने जाना पड़ेगा क्‍योंकि आज हमारा स्‍वास्‍थ्य कुछ ठीक नहीं है।''

‘आप चिन्‍ता न करें और आराम करें। मैं अकेला ही चला जाऊंगा।' थोड़ी देर बाद ही वह यूरेनस ग्रह पर पहुँच गया।

यूरेनस, वृहस्‍पति और शनि के बाद तीसरा बड़ा ग्रह है। इसके इर्द-गिर्द भी वलय हैं। यूरेनस के बाद नेपच्‍यून ग्रह पर जाने की इच्‍छा प्रकट करते ही अगले पल वह नेपच्‍यून ग्रह पर पहुँच गया। ये ग्रह आकार-प्रकार में बिल्‍कुल यूरेनस जैसा ही लगा। इसका वायुमण्‍डल मीथेन और हाइड्रोजन गैसों से बना हुआ है। इसके आठ चन्‍द्र्रमा हैं। सब मिला-जुला कर यूरेनस जैसा ही यह ग्रह भी है।

वापस मंगल ग्रह पर आकर पवन ने एक्‍स-वाई से उनके स्‍वास्‍थ्‍य के बारे में पूछा फिर कुछ देर बाद आराम करने चला गया।

अंतिम ग्रह प्‍लूटो की यात्रा शेष रह गई थी। अब तक वह सारे ग्रहों की यात्रा कर चुका था और उसे ऊब सी होने लगी थी। रोज ग्रहों की यात्रा करना फिर कैपसूल खाकर सोना,ऐसी दिनचर्या से वह तंग हो गया है। इससे अच्‍छा तो पृथ्‍वी पर है, कभी ऊब का नाम ही नहीं। पृथ्‍वी पर विभिन्‍नता है। कर्मठशीलता है। यहाँ की तरह निठल्‍लापन और बोरियत नहीं है।

पवन ने मन ही मन एक योजना बना डाली। अगले दिन प्‍लूटो ग्रह पर पहुंच कर उसने देखा कि इस ग्रह में भी कोई विशेष बात नहीं है। यह भी यूरेनस और नेपच्‍यून की भाँति ही है। अन्‍तर केवल इतना ही है कि यहाँ अन्‍धकार बहुत अधिक है।

अपनी योजना के अनुसार मंगल ग्रह पर न जाकर, पवन ने वापस पृथ्‍वी पर जाने की सोची और पीला बटन दबाते ही वह पृथ्‍वी पर पहुंच गया। वहाँ जाकर उसने देखा कि अन्‍तरिक्ष मानव उसके बगीचे में ही एक बैंच पर उदास सा बैठा है। चारों ओर खिले रंग-बिरंगे फूल और उनपर मंडराती तितलियाँ भी उसका ध्‍यान अपनी ओर नहीं खींच पा रही हैं। वह किसी गहरे विचार में डूबा हुआ है। पवन ने दूर से ही आवाज दी-

‘‘दोस्‍त....दोस्‍त.....।'' परन्‍तु अन्‍तरिक्ष्‍ा मानव की विचार श्रृंखला न टूटी तो पवन ने उसके पास जाकर उसके कंधे को झकझोरते हुए पुकारा,-‘‘दोस्‍त ,कहाँ खोए हुए हो? मैं कब से तुम्‍हें आवाज दे रहा हॅूं। तुम न जाने ....।''

‘अरे दोस्‍त तुम! तुम वापस आ गये? मैं इस समय तुम्‍हारे ही विचारों में खोया हुआ था। कहो कैसा लगा हमारा ग्रह? अच्‍छा लगा न।'-अन्‍तरिक्ष मानव ने लगभग चहकते हुए पूछा।

‘‘हाँ अच्‍छा लगा पर पृथ्‍वी से अच्‍छा नहीं। तुम बताओ, तुम्‍हें कैसी लगी हमारी पृथ्‍वी?''

‘बहुत अच्‍छी। बस ये कहो कि मजा आ गया। तरह- तरह के रमणीक स्‍थान, वेश-भूषा, खान-पान।'

‘‘तभी तो.......लेकिन तुम्‍हारे ग्रहों पर? दिनभर ग्रहों पर घूमना, वापस आकर कैपसूल खाकर सो जाना, फिर अगले दिन वही सब, सच पूछो तो मैं तो तुम्‍हारे ग्रहों पर ऊब गया। अपनी पृथ्‍वी पर एकरसता तो नहीं है। निठल्‍लों जैसा जीवन लगता है तुम्‍हारे ग्रहों पर तो।''

‘सचमुच तम्‍हारी पृथ्‍वी पर बहुत विविधता है। पढ़ाई- लिखाई, विभिन्‍न उत्‍सव, समयबध्‍द काम करना और न जाने क्‍या-क्‍या। मैं यहाँ बगीचे में बैठा तुम्‍हारे बारे में ही सोच रहा था। तुम आ गये हो तो तुम्‍हें देखकर मेरी जान में जान आ गई है। अब तुम जल्‍दी से अपना रूप बदलो ,मैं शीघ्र ही अपने ग्रह पर वापस जाना चाहता हूँ।'

अन्‍तरिक्ष्‍ा मानव की बात सुन पवन भी बोला-‘‘जल्‍दी तो मुझे भी है दोस्‍त, अपनी माँ के हाथ का बना स्‍वादिष्‍ट भोजन किए बिना बहुत दिन हो गये हैं।''

रूप बदलते ही अन्‍तरिक्ष मानव की उड़न तश्‍तरी अन्‍तरिक्ष की ओर उड़ने लगी।

‘‘अलविदा दोस्‍त....अलविदा।''-दोनों ने एक- दूसरे को हाथ हिलाते हुए कहा।

‘‘अरे पवन,ये हाथ हिला-हिला कर किसको अलविदा कह रहे हो?''-मम्‍मी की आवाज सुनकर पवन जाग उठा और हड़बड़ा कर आश्‍चर्य से बोला,-‘तो क्‍या ये सब सपना था?'

और फिर वह जोर से हँस पड़ा और हँसते-हँसते ही सपने में की गई अन्‍तरिक्ष यात्रा का दिलचस्‍प किस्‍सा, वह माँ को सुनाने लगा।

l

श्रीमती शशि पाठक

जन्‍म तिथि ः 11जुलाई 1960

जन्‍म स्‍थान ः बालापट्‌टी, हाथरस जिला-अलीगढ़

शिक्ष्‍ाा ः एम0ए0(समाज शास्‍त्र) वि0वि0 मेरठ

प्रकाशन ः स्‍तरीय पत्रपत्रिकाओं में सन्‌1983 से कहानी, लघुकथा, लेख, कविताओं का निरंतर प्रकाशन।

प्रसारण ः सन्‌ 1986 से आकाशवाणी के विभिन्‍न केन्‍द्रों से रचनाओं का

प्रसारण।

कृतियाँ ः रिश्‍तों की सुगन्‍ध (कहानी संग्रह)

ग्रहों की अनोखी दुनिया (बाल - उपन्‍यास)

अपरिमित (कहानी संग्रह)

सम्‍प्रति ः स्‍वतंत्र लेखन

सम्‍पर्क सूत्र ः द्वारा-दिनेश पाठक‘शशि'

आर0बी0-3/98-बी, रेलवे कालोनी

मथुरा-281001(उ0प्र0)

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(समाप्त)

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: शशि पाठक का कहानी संग्रह : अपरिमित - (11) विज्ञान कथा - अन्तरिक्ष की दुनिया
शशि पाठक का कहानी संग्रह : अपरिमित - (11) विज्ञान कथा - अन्तरिक्ष की दुनिया
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