बालमन में संस्कारों और पालित पशु-प्रेम की छाप छोड़ने वाला बाल उपन्यास किट्टी समीक्षक-डॉ0 अनिल गहलौत रीडर, हिन्दी-विभाग के.आर.पी.जी. क...
बालमन में संस्कारों और पालित पशु-प्रेम की छाप छोड़ने वाला बाल उपन्यास किट्टी
समीक्षक-डॉ0 अनिल गहलौत
रीडर, हिन्दी-विभाग
के.आर.पी.जी. कॉलेज, मथुरा
किट्टी उपन्यास डॉ0 दिनेश पाठक ‘शशि' की अपनी पालतू बिल्ली के वृत्त पर आधारित एक सशक्त बाल उपन्यास है। इस उपन्यास की प्रमुख पात्र उनकी अपनी पालित बिल्ली किट्टी की कहानी है। इस कहानी में किस प्रकार से किट्टी को पाला गया और वह परिवार में अपनी जगह बना पायी तथा किस प्रकार से वह परिवार की शुभकारिणी और परिवार के सदस्यों की आत्मीय बन जाती है इस समग्र घटनाक्रम को उपन्यास लेखक डॉ0 दिनेश पाठक शशि ने बड़े ही मनोवैज्ञानिक धरातल पर सजीव ढंग से उकेरा है।
वस्तुतः बिल्ली ‘किट्टी' डॉ0 दिनेशपाठक शशि के घर में आकर अपनी चूहों की विघटनकारी समस्याओं से तो उन्हें निजात दिलाती ही है, साथ ही उनके बेटों की दिनचर्या को सुव्यवस्थित बनाने की भी निमित्त बन जाती है।
किट्टी सुबह जल्दी उठती है और उसे अपने दैनिक शौच निवृत्ति के लिए प्रातः जल्दी उठकर बाहर जाना होता है, इसके लिए डॉ0 पाठक के बच्चों को भी जल्दी जागकर उसे बाहर निकालना पड़ता है, और इस प्रकार उनकी भी जल्दी उठकर बिस्तर छोड़ने की आदत पड़ जाती है।
किट्टी प्रातः बाहर जाकर जब निवृत्त होकर लौटती है तो, जीभ-स्नान करती है और इससे पे्ररित होकर डॉ0 पाठक के बेटे भी प्रातः दैनिक क्रियाओें में नियमित हो जाते हैं।
किट्टी के बीमार होने की घटना और उसकी पीड़ा में उसके प्रति डॉ0 दिनेश पाठक के सम्पूर्ण परिवार की जो संवेदना स्वाभाविक रूप में चित्रित हुई है वह बेजोड़ है। दरअसल किट्टी के प्रति जो आत्मीयता है उसका आधार है किट्टी की वफादारी का व्यवहार, उसका घर में आते बंदर को डराकर रोकना, बच्चे की ओर बढ़ते हुए साँप को मार देना तथा घर के सदस्यों के प्रति प्यार भरा व्यवहार। ये बातें स्वयं ही सबके हृदय में आत्मीयता को बढ़ा देती हैं। दूसरी ओर किट्टी के द्वारा ‘एक दवा खाकर मरा चूहा' खा लेने से, वह गंभीर रूप से बीमार हो जाती है तब उसकी जो सघन चिकित्सा कराई गई है उसका विवरण पाठक को पालित की पीड़ा में पालक के हृदय की तरलता का जीवन्त साक्षात्कार कराता है। लेखक और उसका समस्त परिवार किट्टी की चिकित्सा, किसी परिजन की चिकित्सा की भावना और गंभीरता से कराते हैं। यह प्रेम, संवेदना का एक जीवन्त संदेश, सामान्य उपन्यास और बाल उपन्यास के पाठक को देता है।
शैली-शिल्प, भाषा और कथ्य-संयोजन में विशेष अंतर हुआ करता है। सामान्य उपन्यास के तत्व बाल-उपन्यास के तत्वों में अंतर है। जैसे कथा-सूत्र का गंभीर प्रभाव और मुख्य कथा के साथ-साथ संलग्न सहकथाएँ बाल उपन्यास में नहीं होती हैं, रोचकता और जिज्ञासा का सूत्र बाल उपन्यास में निरंतरता बनाए रखता है। बालमन की सघन सूझ लेखक को होती है तद्नुसार बाल मनोविज्ञान के धरातल पर छोटी-छोटी बातों और व्यवहारों का स्वाभाविकता के साथ चित्रण बाल उपन्यास में किया जाता है। पात्रों की संख्या भी सीमित होती है तथा बाल उपन्यास में चरित्रों का विकास घटनाक्रम के द्वारा ही किया जाता है। बाल उपन्यासों में संवाद-योजना का विशेष महत्व है। वहाँ लम्बे-लम्बे उपदेशात्मक संवाद नहीं होते हैं। संवादों में जटिलता तथा गंभीर दार्शनिकता नहीं होती। बाल उपन्यास की कथोपकथन शैली सरल, सरस तथा रोचक होती है। संवादों के माध्यम से ही उपन्सासकार पात्रों का चरित्रांकन करता है तथा उपन्यास पढ़ने वाले बच्चों को उपन्यास का ‘मैसेज' देता है। बाल उपन्यास का कथ्य-संयोजन उलझावपूर्ण न होकर सीधा-सपाट होता है। सांकेतिक शैली का प्रयोग बाल-उपन्यास में वर्जित है।
उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर किट्टी बाल उपन्यास की मीमांसा करने पर यह उपन्यास कथ्य और शिल्प के संतुलित कला-कौशल पर खरा उतरता है।
उपन्यास का प्रारम्भ लेखक के किट्टी बिल्ली के सीधे वर्णन से न करके बड़े कौशल के साथ बिल्ली-पालने की आवश्यकता और उसके औचित्य को घटनाक्रम के जरिए प्रासंगिक बनाते हुए की है। चूहों द्वारा पुस्तकों के हानि पहुँचाने से लेखक व उसके दोनों पुत्र विचलित हो जाते हैं। चूहे मारने की दवा के प्रयोग के लिए अहिंसावादी लेखक सहमत नहीं है, ऐसे में समस्या का कोई समाधान नहीं सूझता है। इतने में छोटा बेटा सागर, सोनू के घर से बिल्ली लेकर उपस्थित हो जाता है और प्रत्यक्ष समाधान के रूप में बिल्ली, किट्टी के रूप में उस परिवार की पालित हो जाती है। इस प्रकार उपन्यास का प्रारम्भ अत्यंत रोचक और मौलिकता पूर्ण बन पड़ा है।
इस उपन्यास में लेखक की बालमन की सूझ का परिचय तो पग-पग पर मिलता है। सागर ‘‘बिल्ली कैसे रुकेगी?'' इस प्रश्न के उत्तर में एक प्याली में दूध उसके आगे रख देता है और अपनी मम्मी से कहता है - ‘‘ऐसे रुकेगी''।
सुबह किट्टी जल्दी उठती है, बच्चे देर तक सोते हैं। कोेई दरवाजा नहीं खोलता है तो किट्टी बरामदे में ही गंदा कर देती है। पापा के नाराज होने पर दोनों बच्चे कहते हैं- ‘‘ठीक है पापा कल से हम किट्टी की आवाज सुनते ही जाग जाया करेंगे।'' लेकिन दूसरे दिन सुबह फिर नहीं जागते।
‘‘दूसरे दिन किट्टी की आवाज सुनते ही मेरी आँख खुल गई। देखा आकाश-सागर निश्चित सोये पड़े हैं तो मुझे फिर गुस्सा आ गया और दोनों को जोर से पुकारा, सुनते ही दोनों हड़बड़ाकर उठ बैठे और किट्टी की आवाज सुन झट दरवाजा खोल दिया।''
इस प्रकार एक और दृश्य-‘‘दूध पीने के बाद किट्टी ड्राइंगरूम में गई और उछलकर सोफे पर बैठ गई- बिल्कुल निश्चिंत मुद्रा में जिसे देख सागर अपने को रोक न सका-
‘‘लो अब ये महारानी सोफे पर ही बैठेंगी।'' उसने किट्टी को पकड़ा और सोफे से नीचे उतार दिया, लेकिन दूसरे ही पल वह उछली और फिर उसी सोफे पर बैठ गई।
इसी प्रकार-‘‘किट्टी को देखते ही आस्था ने सागर से झपटकर उसे अपनी गोद में ले लिया तो विशाख भी उसकी पीठ पर हाथ फिराने लगा।''
बीमार किट्टी जब ठीक हो जाती है तो सुनकर आस्था के घर भी सब प्रसन्न हो उठे और किट्टी को देखने के लिए आ गये। ‘‘आस्था ने तो किट्टी को देखते ही गले से लगा लिया।'' इस प्रकार हम देखते हैं कि लेखक को बालमन की अनुभूतियों का पर्याप्त संज्ञान है और उसने अपने उपन्यास में स्थान-स्थान पर उसके अनुसार अनुभावों का चित्रण किया है।
लेखक ने इस उपन्यास के संस्कारों तथा चरित्रों के विकास को भी घटनाक्रम के द्वारा कुशलता के साथ उकेरा है- ‘‘सागर ने बिल्ली आकाश को पकड़ाई और खुद वाशबेसिन पर साबुन से हाथ धोकर एक बर्तन में थोड़ा दूध ले आया''।
इस प्रकार बच्चों में पालित पशुओं को छूने के बाद हाथ-धोने की आदत डालने का एक संस्कार भासित होता है। किट्टी किचिन में कोई चीज जूठी नहीं करती है। इससे किट्टी का सुसंस्कार प्रमाणित होता है।
लेखक ने बिल्ली की दैनिक क्रिया से निपटने की स्वच्छता का भी सजीव चित्रण किया है जो बालकों के लिए पे्ररणाप्रद है-
‘‘दरवाजे का खुलना था कि किट्टी ने बाहर को दौड़ लगा दी। पीछे-पीछे आकाश और सागर दोनों इस कौतूहल से बाहर गये कि देखें क्या करती है। किट्टी बाहर जाकर अगले पैरों से जमीन खोद रही थी। जमीन खोदकर वह गड्ढे के ऊपर बैठ गयी और फिर गन्दगी को अपने अगले पैरों से ही मिट्टी डालकर वहाँ ढंक दिया।''
किट्टी दैनिक व्यायाम करने का भी चित्रण बड़ा ही चित्रोपम तथा बालकोें के लिए संदेशप्रद है - ‘‘उसके बाद किट्टी द्वारा ने अपनी कमर को बीच से ऊँचा उठाकर अंगड़ाई सी ली और फिर दौड़कर किचिन गार्डन में नीम के पेड़ पर चढ़ गयी। फिर नीम से उतरी तो फुर्ती के साथ इधर-उधर को दौड़ लगाने लगी।''
लेखक बच्चों को समझाता है- ‘‘बेटे ये सभी जीव-जन्तु प्रकृति के अनुरूप अपने को ढालकर व्यायाम आदि से अपने शरीर को स्वस्थ रखते हैं। तुम्हारी तरह नहीं कि इतवार की छुट्टी है तो आलस आ गया और सोते रहे सूरज निकलने तक।''
इस बाल उपन्यास के कथोपकथन अत्यंत सरल, स्वाभाविक हैं। संवाद योजना बाल उपन्यास की अपेक्षा के अनुरूप अत्यन्त सटीक हैं। संवाद छोटे-छोटे तथा भाषा नितांत सहज, सरल, खड़ी बोली है। संवाद, चरित्र-विकास में सहायक बने हैं। बिल्ली का किचिन में कोई चीज झूठी न करना संवादों के द्वारा चित्रित किया गया है। इसी प्रकार उसका साँप को मारकर बच्चे की रक्षा करना तथा बंदर को घर आने से द्वार पर रोके रखना ‘‘फ्लैश-बैक'' शैली में दिखाया गया है, जो पशुओं की स्वामिभक्ति को चित्रित करता है।
समग्रतः किट्टी एक सशक्त सफल और सार्थक बाल उपन्यास है जो बालकों के लिए रोचक तथा समान रूप से संदेशप्रद भी है। लेखक की मौलिकता तथा कल्पनाशीलता ने इस उपन्यास को सर्वाग रूप से सजा-सँवार कर बाल-साहित्य का एक कालजयी उपन्यास बना दिया है।
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समीक्ष्य कृति - किट्टी (बाल उपन्यास),
लेखक - डॉ0 दिनेश पाठक ‘शशि'
पृष्ठ - 32
मूल्य - 30 रू.
प्रकाशक - विभोर प्रकाशन, दिल्ली
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