भाजी वाला नव प्रभात की बेला है हाथ भाजी का ठेला है आवाज लगाता जाय दीनू भाजी, संतरा, केला है भाजी लेलो बाबू, भइया भाजी खाकर...
भाजी वाला
नव प्रभात की बेला है
हाथ भाजी का ठेला है
आवाज लगाता जाय दीनू
भाजी, संतरा, केला है
भाजी लेलो बाबू, भइया
भाजी खाकर खून बढ़ाओ
फल खाकर तुम सेहत बनाना
जल्दी आओ जल्दी आओ
कद्दू,ककड़ी और करेला
लाल टमाटर हूं लाया
कभी बीमार न पड़ता है वह
संतुलित भोजन जिसने खाया
देखो भाजी वाला आया
देखो भाजी वाला आया
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नव वर्ष
आया है नव वर्ष साथियों
आया है नव वर्ष
नई खुशियां नई उमंगें
लाया है नव वर्ष
खुशियों का थैला
हाथ में लिए है
आगे बढ़ो लेने वालो
ये तुम्हारे लिए है
आज ही है इस क्षेत्र में
कल कहीं आगे बढ़ेगा
मोल करो लेने वालो
वरना बड़ी दूर जाना पड़ेगा।
आया है नव वर्ष साथियों
आया है नव वर्ष
नई खुशियां नई उमंगें
लाया है नव वर्ष।
सर्दी आई
गर्म कपड़े ऊनी जुराबें और शॉल ओढ़
कर सर्दी नानी एक किनारे खड़ी
देख रही थी बच्चों को
उछलते कूदते पानी में नंगे पाव
जगह जगह ठहरे बरसात के पानी
में बच्चे पांव मार कर
खुशी से नाचते।
इधर आओ प्यारे बच्चो
बहुत हुआ अब खेल तुम्हारा
कहा नानी ने आँख दिखाई
बच्चो को यह बात बताई
देखो ठण्ड से बचकर रहना
बीमार पड़ जाओगे वरना
गर्म कपड़े और जुराबें
डाल कर ही बाहर निकलना
पानी में कही पाँव न रखना
देखो सम्भल कर तुम चलना।
देखो स्कूल जाते हुए तुम
सिर पर गर्म टोप लगाना
सम्भल कर तुम पानी पीना
कपड़ों को न जरा भिगाना।
कम करो अब बाहर खेलना
रजाई लेकर बैठे रहना
और खूब पढ़ाई करना
आपस में तुम कभी न लड़ना।
वृक्ष लगाओ
घास, पत्ते, पेड़ पौधे
जीवन के आधार
मत मारो, मत उजाड़ो
मत करो संहार
वृक्ष लगाओ, वृक्ष लगाओ
करो वृक्षों से प्यार
वर्षा, जल है हमको देते
गंध गंदगी को ये हर लेते
धूल धुंआ खाकर भी
शुद्ध हवा हम सबको देते
जकड़े रखते भूमि के ये
उड़ने दे न बहने दे
भरा पूरा हो परिवार इनका जहां
प्यासा किसी को न रहने दे
कहे आलोक यह जान लो
बात मेरी मान लो
इनके बिना कुछ नही
कैसे जी पाओगे तुम
मिटा कर पेड़ पौधों को
खुद को ही मिटाओगे तुम।
वन्दना
गोरी तुझे है कहते
विद्या की तू है देवी
ए हंस वाहिनी माँ
पूजा करेंगे तेरी
आजा तू मेरे दिल में
दिल पर विराज हो जा
छोटा सा दिल ये मेरा
जिस पर हो राज तेरा
पढ़ना हमें सिखा दो
लिखना हमें बतादो
विद्या का दान दे माँ
जीवन सफल बना दो
ग्रंथों में तू लिखी है
पुराणों में तू छिपी है
जिस ओर देखता हूँ
मुझे तू ही तू दिखी है
मीकी को तूने तारा
तुलसी भी तेरा प्यारा
ये रविन्द्र, मीराबाई,
मुन्शी भी था तुम्हारा
कहता आलोक तेरा
सबको है तूने तारा
अपनी शरण में लेकर
उद्धार कर हमारा
गोरी तुझे है कहते
विद्या की तू है देवी
ए हंस वाहिनी माँ
पूजा करेंगे तेरी
मौसम चार
एक बरस कें मौसम चार मौसम चार,
पहला मौसम जब आया,
नई कक्षा में प्रवेश है पाया,
नई पुस्तकें, नई कापियाँ,
पापा ने नया बैग दिलाया,
नई कक्षा का लाघां द्वार,
एक बरस के मौसम चार-मौसम चार।
दूसरा मौसम छुटिटयों का भाई,
थोड़ी मस्ती थोड़ी पढ़ाई,
कोई नानी के घर जाये,
दूर कहीं कोई हो आये,
पूरी हुई छुटिटयां
अब स्कूल चलो सरकार,
एक बरस के मौसम चार मौसम चार।
तीसरा मौसम है खेल का,
भिन्न-भिन्न बच्चों के मेल का
खूब खेलें और स्वस्थ रहें हम,
फल खांए और मस्त रहें हम,
नाम करो जगत में अपना
बनकर बड़े फनकार,
एक बरस के मौसम चार मौसम चार।
चौथा और अंतिम मौसम है पढ़ने का,
इम्तिहान अब सिर पर खडे़ हैं।
परिणाम आएगा जितने पढ़े हैं,
नाम करो, ऐसा कुछ काम करो,
सपना हो साकार,
एक बरस के मौसम चार मौसम चार।
तो हम सीखें
मैं पढ़ तू पढ़
अब करो किनारे
कुछ भी समझ नही
आता हमारे
गुरु जी, अब कुछ
ऐसा लाओ
नया नया कुछ
हमें सिखाओ
दो और दो चार, मालूम है
कैसे हुए यह तो बतलाओ
दो के बाद तीन ही क्यों
चार क्यों नही आया
एक एक को जोड़ा जब
तब मैंने यह पाया
सुना मैंने जितना अब तक
भूल गया वह सारा
देखे थे जो चौबीस पंछी
याद है आज भी बारह
रेत पर जो घर बनाये थे
वह आज भी बना सकता हूँ
वह कागज की नाव जो
पाँच साल पहले बनाई थी
कापी के पुराने पन्ने को फाड़ कर
वह आज भी बना सकता हूँ
आप हमें बताएं
कुछ नया हमें दिखाए
और हम से ही करवाये
तो हम सीखें।
गर्मी आई
भागी बिस्तर छोड़ रजाई
दादी ने थी शाल छुपाई
दादा जी ने फेंकी कमली
गर्मी आई गर्मी आई
अम्मा लगी घड़ा ढूंढने
बाबू जी से मिसरी मंगवाई
मुंडु बिट्टु मांगे ठण्डा
दादी ने थी डांट पिलाई
आइसक्रीम है बादाम वाली
ठण्डी मीठी कुल्फी आई
एक में दो, दो में पांच
ऑफर तीस जून तक भाई
भाठ बराबर तापे धरती
आसमान तपे तवा समान
बाहर निकलना कठिन हुआ
अब कैसे होय सारा काम
घूंघट छोड़ सामने आए
पंखे और कूलर भाई
चॉक वाला लाला बोला
एयर कंडीशनर की हुई सगाई
गर्मी आई गर्मी आई
वर्षा ऋतु
हरी भरी खेती लहलहाए,
पेड़ो पर नये पत्ते आए।
घुमड़ घुमड़ घुड़ आए बादर,
चमक रही है पीली चादर।
शरर-शरर शर हवा चलती,
डर डर कर है धूप निकलती।
रात में चंदा और सितारे,
दुबके रहते डर के मारे।
जहां कही सिर बाहर आया,
बदरा ने फिर से धमकाया,
झर-झर-झर-झर बरसा पानी,
धरती की फिर आई जवानी।
देख दामिनी होश उड़ाए,
बार बार छूने को ललचाए।
पेड़ पे बैठा बन्दर रो ले।
धन्य हो गई धरती सारी,
सबको लगती प्यारी प्यारी।
मेरे प्यारे दादा जी
दादा जी, दादा जी,
मेरे प्यारे दादा जी,
मेरे पापा के बाबा जी,
हमारे घर के राजा जी,
दादा जी दादा जी,
मेरे प्यारे दादा जी।
हमें घूमने ले जाते,
कथा कहानियाँ खूब सुनाते,
अच्छी बातें हमें बताते है,
मेरे प्यारे दादा जी।
कुर्ता पजामा खूब है भाता,
सर पर टोपी, हाथ में डंडा,
उनके सामने शरारत करे जो,
पल मे कर देते हैं ठंडा ।
दादा जी,दादा जी
तेरे प्यारे दादा जी
बाल गीत
नन्हे मुन्ने बच्चों आओ
चुन्नु मुन्नु तुम भी आओ
हाथ पकड़ कर आपस में तुम
गोल-गोल में खड़े हो जाओ
खेलेंगे हम ऐसा खेल
सुन्दर सी एक बनेगी रेल
जिसके कपड़े मे है मैल
वह नही पाएगा खेल
मै जाँचूं या खुद बताओगे
कटे हुए हो सब के नेल
कंघी की हो सबने सिर में
सबके बालों में हो तेल
खेलेंगे हम ऐसा खेल
सुन्दर सी एक बनेगी रेल
पुल
मैं पुल हूँ, मैं पुल हूँ ,
यात्रियों का मूल हूँ।
पहले पहल बना इक झुल्ला,
जो भी उसके ऊपर चलता,
गिरता नदी में जाकर,
जैसे घी में रसगुल्ला।
उसके बाद लकड़ी का होता था,
जो भी उसके ऊपर चलता,
जा नदी में रोता था।
छोटी और बड़ी गाडि़यां,
चलती तो हिल जाता मै,
कभी कभी तो खुद भी,
नदी मे मिल जाता में।
नदी का पानी मुझे छू, छू कर इतराता था,
डर के मारे मेरा तो सांस ही रुक जाता था।
जब लोग गिर कर मरने लगे तो,
मेरा आविष्कार हुआ,
सरिया, सीमेंट, रेत बजरी,
से मैं तैयार हुआ।
टी0 एल0 एम
पाठशाला में गुरूजी एक दिन एक बैग थे लाये
कोई कहे बिस्कुट है, कोई मूंगफली बताये
खूब मजे से खाएंगे आपस में थे रहे बतियाये
तभी गुरूजी ने था बोला
धीरे से उस बैग को खोला
चुन्नु-मुन्नु यहां पर आओ
रिकी पिंकी तुम भी आओ
सात सात के ग्रुप बनाओ
बैग से निकले अजब खिलौने
छोटे बड़े और सलोने
कही आयत कही वृत पड़े थे,
कही वर्ग छोटे बड़े थे
कागज थे कई रंगों वाले,
अक्षर कटे थे पीले, काले।
खेल-खेल में हमने सीखा,
मनोरंजन भी खूब किया।
नैतिक शिक्षा सोशल साईंस
और गणित का ज्ञान लिया।
लगता था जो पाठ कठिन,
टी0 एल0 एम0 ने सरल किया
टी0 एल0 एम0 का सामान गुरूजी
जब भी आप लाएंगे
हम सब बच्चे मिलकर
आप संग टी0 एल0 एम0 बनाएंगे
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कवि परिचय
नाम - अनन्त आलोक
जन्म - 28 - 10 - 1974
शिक्षा - वाणिज्य स्नातक शिक्षा स्नातक,
पी0जी0डी0आए0डी0, स्नातकोत्त्ार हिन्दी
(शिक्षार्थी)
व्यवसाय - अध्यापन
विधाएं - कविता, गीत, ग़़ज़ल, हाइकू, बाल कविता, लेख,
कहानी, निबन्ध, संस्मरण, लघु - कथा, लोक - कथा, , मुक्तक एवं संपादन।
लेखन माध्यम - हिन्दी, हिमाचली एंव अंग्रजी।
मुख्य प्रकाशन - 1․ “हिमाचल में स्लेट पत्थर और लकड़ी के
मकानों की प्रासंगिकता”,
2․ “देवधरा सिरमौर” ग्यारह मन्दिरों का
संक्षिप्त वर्णन
3․ सिरमौर की अनोखी दिवाली
4- शिक्षा विभाग की पत्रिका “शिक्षा विर्मश” का
2007 मार्च में सह संपादन।
5- “बाबा बड़ोलिया”
6- कुछ पुस्तकों एवं काव्य सग्रहों में रचनाएं
प्रकाशित
विशेष - हि0प्र0 सिरमौर कला संगम द्वारा सम्मानित
पर्वतालोक की उपाधि
- विभिन्न शैक्षिक तथा सामाजिक संस्थाओं द्वारा
अनेकों प्रशस्ति पत्र, सम्मान
- नौणी विश्वविद्यालय द्वारा सम्मान व प्रशस्ति पत्र
- दो वर्ष पत्रकारिता एंव नेहरू युवा केन्द्र में जिला
समन्वय एन0एस0वी0 कार्यानुभव।
- आकाशवाणी से रचनाएं प्रसारित
- देश प्रदेश की तीन दर्जन से अधिक पत्र-पत्रिकाओं
में रचनाएं प्रकाशित
- काव्य सम्मेलनों में निरंतर भागीदारी
- आधा दर्जन से अधिक सामाजिक संस्थाओं में
पदाधिकारी एंव सक्रिय सदस्य।
- शिक्षा विभाग में जिला स्रोत समूह सदस्य
- चार दर्जन से अधिक बाल कविताएं, कहानियां
विभिन्न बाल पत्रिकाओं में प्रकाशित
प्रकाशनाधीन - “तलाश” (काव्य संग्रह)
संपर्क सूत्र - आलोक भवन, बायरी, डा0 ददाहू, त0 नाहन,
जि0 सिरमौर, हि0प्र0 173022
9418740772, 9817414261, 9318570640
Email : anantalok25@yahoo़in,anantalok1@gmail़com
Blog - anantsahitya.blogspot.com
Sahityaalok.blogspot.com
आपकी पहली कविता भाजी वाला पढी , अच्छी लगी , बधाई।
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