जितेन्द्र जौहर की काव्य समीक्षा : चार पंक्तियाँ, चौदह ग़लतियाँ

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      क्या आप जानते हैं कि अब हमारे नैशनल एंथेम...अर्थात्‌‍ ‘राष्ट्र-गान’ (जन-गण-मन) की तरह ‘यूथ एंथेम’ (युवा-गान) भी आ गया है! चौंकिए मत,...

     
क्या आप जानते हैं कि अब हमारे नैशनल एंथेम...अर्थात्‌‍ ‘राष्ट्र-गान’
(जन-गण-मन) की तरह ‘यूथ एंथेम’ (युवा-गान) भी आ गया है! चौंकिए मत,
हुज़ूर...! दरअस्ल हुआ यूँ कि एक दिन नेट-सर्फ़िंग के दौरान अचानक मेरी
दृष्टि ‘कुमार विश्वास डॉट कॉम’ पर दर्ज इस आत्म-श्‍लाघात्मक सूचनांश पर
ठहर गयी- ‘उनके एक मुक्तक ‘कोई दीवाना कहता है’ को देश का ‘यूथ एंथेम’ की
संज्ञा भी दी गयी है...’ यह पढ़कर मैं स्तब्धाक्ष रह गया। इसके तीन कारण
थे :

       पहला तो यही कि ‘एंथेम’ शब्द से ईश्वर-स्तुति, भजन, राष्ट्रीय गान,
वंदना, आदि का बोध होता है। शब्दकोषीय दृष्टि से ‘एंथेम’ का आशय/अभिप्राय
Song of praise, Sacred song, National hymn, Psalm, Hymn, Chorale से
है। इस प्रकार ‘यूथ एंथेम’ का सामान्यतम अर्थ हुआ- ‘युवा-गीत/ युवा-गान’।
कहना न होगा कि  ‘एंथेम शब्द के साथ जो गरिमा और गम्भीरता जुड़ी है,
उससे यह मुक्तक दूर... कोसों दूर खड़ा है!  इस संदर्भ में तथ्य, तर्क एवं
प्रमाण प्रस्तुत करने से पहले... मैं चाहूँगा कि शेष बचे दो अन्य
बिन्दुओं पर भी विचार करता चलूँ।

       द्वितीय, ऊपर उद्धृत सूचनांश में ‘भी’ शब्द विशेष रूप से ध्यातव्य है जो
यह स्पष्ट संकेत दे रहा है कि इस मुक्तक को ‘यूथ एंथेम’ के अलावा कुछेक
अन्य संज्ञाएँ भी दी गयी हैं। ये संज्ञाएँ कौन-कौन सी हैं और किसने
प्रदान की हैं, इस बावत उनकी उपर्युक्त साइट पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं
है। बहरहाल मेरी जिज्ञासा अशमित ही रह गयी!

       पुनश्‍च, उक्त वाक्य कर्म-वाच्य (पैसिव वॉइस) है। वाक्य की यह संरचना
अनायास नहीं, बल्कि सायास होने का आभास दे रही है...मुझे लगता है कि
जान-बूझकर इसे कर्तृ-वाच्य (ऐक्टिव वॉइस) न बनाकर, कर्म-वाच्य बनाया गया
है, ताकि ‘कर्ता’ पद छिपाया जा सके... अर्थात् संज्ञा-प्रदाता के नाम का
खुलासा न करना पड़े। यह एक मनोवैज्ञानिक सच है कि यदि किसी नामवर समीक्षक
या प्रतिष्ठित संस्था/अकादमी ने यह संज्ञा प्रदान की होती, तो उसका
नामोल्लेख सगर्व किया गया होता। ऐसे में, बहुत संभव है कि कभी किसी
चाटुकार ने किसी मंचादि से वाचिक परम्परा में उक्त संज्ञा उछाल फेंकी हो।
तब तो मैं सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूँगा कि- चाटुकारा: किं न कुर्वन्ति।


प्रायः स्वार्थांधता की सँकरी गलियों में उन्मुक्त विचरण करने वाले
‘अटैची-वाहक’ चाटुकार नवनीत-लेपनार्थ ऐसी अनधिकृत/अप्रामाणिक संज्ञाएँ
बाँटते देखे गये हैं। सच तो यह भी है कि कभी-कभी किसी हल्की-फुल्की कविता
की माधुर्ययुक्त/श्रुति-सुखद मंचीय प्रस्तुति के दौरान श्रोता-मण्डप से
उभरने वाली तालियों की गड़गड़ाहट के तात्कालिक मनोवैज्ञानिक प्रभाव की
गिरफ़्त में आकर किसी अख़बार का कोई असाहित्यिक पृष्ठभूमि वाला संवाददाता
अपने शब्द-ज्ञान का दुरुपयोग कर अतिप्रशंसात्मक रपट प्रेस को अग्रसारित
कर देता है। और हाँ... यदि युवाओं के बीच लोकप्रियता को आधार मानकर इस
मुक्तक को ‘यूथ एंथेम’ के रूप में प्रचारित (प्रपोगेट) करने का प्रयास
किया अथवा करवाया जा रहा है, तो ‘मुन्नी बदनाम हुई’ के रचयिता को भी यह
हक़ है कि वह अपनी रचना को ‘इंडियन एंथेम’ के रूप में स्वीकार किये जाने
का दावा पेश कर दे...क्योंकि देश की गली-गली में यह गाना बजता हुआ सुना
गया है!!


समग्रतः यह बात मेरी समझ से परे है कि हिन्दी छंद-शास्त्र को ‘ठेंगा’
दिखाने वाली इस चतुष्पदी रचना (मुक्तक) को आख़िर किसने, कब, किस आधार पर
और किस अधिकार से ‘यूथ एंथेम’ जैसी गरिमायुक्त संज्ञा प्रदान करने की
कुचेष्टा की है???


       यद्यपि उच्च शिक्षा और उत्कृष्ट साहित्य-सृजन का कोई अपरिहार्य सह-संबंध
नहीं है, तथापि हिन्दी पद्य-साहित्य (काव्य) में पी-एच.डी. जैसी
प्रतिष्ठित उपाधि अर्जित करने वाले डॉ. कुमार विश्वास अपने इस मुक्तक के
वास्तविक ‘साहित्यिक स्तर’ से अपरिचित हों, इसकी संभावना नगण्य है। ऐसे
में, उन्हें स्वयं ही ‘कोई दीवाना कहता है’ जैसी ‘हल्की’
मुक्तकाभिव्यक्ति के लिए ‘यूथ एंथेम’ जैसी ‘भारी’ संज्ञा स्वीकारने में
थोड़ा संकोच तो करना ही चाहिए था। ख़ैर, साहित्य की किसी अंतरिक्षीय
कक्षा (ऑर्बिट) में स्थापनार्थ सुनियोजित रूप से किये अथवा करवाये जाने
वाले आत्म-प्रक्षेपण अथवा प्रियपात्र-प्रक्षेपण के ऐसे निंद्य प्रयास
पहले भी होते रहे हैं। ‘यूथ एंथेम’ के रूप में इस संदर्भित मुक्तक को
प्रचारित करने का यह प्रयास साहित्य की उसी पुरातन परम्परा की हास्यास्पद
कड़ी है। अब एक नज़र उस यथाकथित ‘यूथ एंथेम’ पर-


कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है।   =३१ मात्राएँ -२८ =३
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है। =३० मात्राएँ -२८ =२
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है,          =३० मात्राएँ -२८ =२
ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है। =३० मात्राएँ -२८ =२


       आइए, कथ्य और शिल्प के धरातल पर चलकर उपर्युक्त मुक्तक के अन्तर्पट
खोलने का एक लघु प्रयास किया जाय! इसके लिए सबसे पहले इस मुक्तक का
छंद-निरूपण करना अति आवश्यक है। विदित हो कि यह मुक्तक हिन्दी के
‘विधाता’ छंद में रचा गया है जिसे छंदाचार्यों ने ‘शुद्धगा’ छंद भी कहा
है। इसमें अनिवार्य लघु (४x१ = ४ मात्राएँ) और १२ दीर्घ (१२x २ = २४
मात्राएँ) को मिलाकर कुल २८ मात्राएँ होती हैं। यथा- ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ
।ऽऽऽ. कंठस्थ रखने की दृष्टि से इसे सरल सूत्र-रूप में कुछ यूँ भी
गुनगुनाया जा सकता है- ‘पुजारीजी पुजारीजी पुजारीजी पुजारीजी’। यहाँ
दीर्घ वाले स्थानों पर दो दो लघु भी लाये जा सकते हैं क्योंकि दो समीपस्थ
लघु = एक दीर्घ। यथा- ‘पुजारीपन’ अथवा ‘अमरपाटन’ या ‘चलाचरखा’ या फिर
‘उतरकरचल’ की ४ आवृत्तियाँ। छंद-लक्षण के इस आलोक में उपर्युक्त मुक्तक
लघु मात्राओं के १६ चिह्नित स्थानों में से ९ स्थानों (बोल्ड लेटर्ज़ में
इंगित) पर दीर्घ मात्रा की अवांछित आवृत्तियाँ लादे खड़ा है। चूँकि
हिन्दी छंद-शास्त्र मात्रा गिराने की अनुमति नहीं देता है, अतः यह इस
मुक्तक का बहुत बड़ा दोष है। यहाँ विदित हो कि हिन्दी छंदशास्त्र
फ़ारसी-उर्दू के बह्‌र-विज्ञान की तरह ‘कोई’ शब्द को ‘कुई’ अथवा
‘मेरी’/‘तेरी’ को क्रमशः ‘मिरी’/‘तिरी’ के रूप में प्रयोग की छूट नहीं
देता है। फ़ारसी-उर्दू बह्‌रों पर आधारित ग़ज़लों में उक्तवत मात्रा
गिराने (हृस्व) की अनुमति है लेकिन हिन्दी छंदाधारित मुक्तकों में नहीं।
‘विधाता’ छंद का उपर्युक्त निर्धारित मात्रा-विधान लघु-दीर्घ के जिस क्रम
की माँग कर रहा है, उसके अनुसार मुक्तक की पंक्ति कुछ यूँ होनी चाहिए-
‘कई दीवान कहता है, कई पागल समझता है।’ लेकिन...ऐसा कर देने से ‘अनर्थ’
की स्थिति उत्पन्न हो गयी है...या यूँ कहें कि ‘छंद-भंग’ की स्थिति से
बचने का उपाय खोजने के क्रम में यह पंक्ति अब ‘अर्थ-भंग’ के धरातल पर
पहुँच गयी है। ऐसे में, यहाँ किसी अन्य/बड़े फेर-बदल की आवश्यकता है।
मसलन यूँ कि- ‘मुझे संसार दीवाना, तुझे पागल समझता है।’ मैं समझता हूँ कि
यदि डॉ. कुमार विश्‍वास थोड़ा-सा ध्यान केन्द्रित कर सकें, तो वे अपना
उपर्युक्त मुक्तक आसानी से संशोधित कर सकते हैं। ख़ैर...बात को आगे
बढ़ाता हूँ।


मात्रा गिराने के उपर्युक्त ९ दोषों के अतिरिक्त, एक अक्षम्य दोष यह भी
कि ‘पागल’, ‘बादल’ के क्रम में ‘दिल’ का तुकान्त (क़फ़िया) स्वीकार्य
नहीं है। अतः चौथी पंक्ति में सही तुकान्त ‘घायल’, ‘पायल’, काजल, आदि रूप
में होना चाहिए था। छंद-भंग के क्रम में यह भी ध्यातव्य है कि इस मुक्तक
में १४-१४ मात्राओं पर ‘यति’ की अनिवार्यता और १५-१५ मात्राओं पर ‘गति’
हेतु लघु की आवश्यकता-पूर्ति न हो पाने से ‘यति-गति’ की दुर्गति हो गयी
है! स्पष्टतः इसमें कहीं १६ मात्राओं पर ‘यति’ दर्ज है, तो कहीं १५ पर।


इसके अलावा, प्रथम पंक्ति का द्वितीय पंक्ति के साथ भलीभाँति चस्पा न हो
पाना भी खटकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इन दोनों पंक्तियों का कोई
सह-संबंध स्पष्ट नहीं हो पा रहा है, जिसके चलते यहाँ ‘भैंगापन’ उभर आया
है। इस बिन्दु को और अधिक स्पष्ट करने के लिए उक्त दोनों पंक्तियों का
मूल कथ्य गद्यात्मक रूप में सामने रख लेना उचित होगा। बक़ौल मुक्तककार,
‘कोई मुझे दीवाना कहता है, तो कोई मुझे पागल समझ लेता है...मगर धरती की
बेचैनी को सिर्फ़ बादल ही समझता है।’ अब विचार करें कि क्या ये दोनों
पंक्तियाँ सह-संबंधित (को-रिलेटेड) हैं? पुनश्‍च, मुक्तक की द्वितीय
पंक्ति में ‘मगर’ शब्द का प्रयोग अपना औचित्य/सार्थकता सिद्ध नहीं कर पा
रहा है। विदित हो कि ‘मगर’ एक विरोधसूचक संयोजक (एडवर्सेटिव कंजंक्शन) है
जिसके द्वारा दो परस्पर विरोधी कथनों को जोड़ा जाता है।


उक्तेतर, एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु यह भी कि इस मुक्तक की तृतीय पंक्ति में
दो पक्ष (स्त्री-पुरुष)  जितने सुस्पष्ट रूप से दृग्गत हैं, उतने द्वितीय
पंक्ति में नहीं, बल्कि प्रथम में तो बिलकुल नहीं! कहने का तात्पर्य यह
है कि यदि मुक्तककार दो पक्षों (स्त्री-पुरुष) को अन्त में लाया है, तो
आरम्भ में भी उनकी मौजूदगी उभरकर आनी चाहिए थी क्योंकि मुक्तक की प्रथम
पंक्ति पर विषय-प्रवर्तन या भाव- विचारोद्‌घाटन का दायित्व होता है।
द्वितीय पंक्ति उस प्रवर्तित विषय अथवा उ‍द्‍घाटित भाव-विचार को समृद्ध
करती है...उसमें एक नया आयाम जोड़ती है, जबकि तीसरी पंक्ति एक ऐसे सोपान
के रूप में सामने आती है जिस पर चढ़कर चौथी अर्थात्‌ अन्तिम या यूँ कहें
कि सबसे महत्त्वपूर्ण पंक्ति शीर्ष तक पहुँचती है। यह चौथी पंक्ति ही
पूरे मुक्तक का प्राण बनती है (इसका मतलब यह कदापि नहीं कि शेष पंक्तियाँ
निष्प्राण होती हैं)। आशय यही कि इसी चौथी पंक्ति पर किसी मुक्तक का
सम्पूर्ण रूप-सौन्दर्य, लालित्य, अर्थ-चमत्कार निर्भर करता है। ऐसे में,
बेहतर स्थिति यही होगी कि मुक्तक की चौथी पंक्ति (वस्तुतः ‘प्राण
पंक्ति’) सर्वप्रथम जन्म ले। इसी पंक्ति को खड़ा करने के लिए शेष तीन
पंक्तियों का ताना-बाना बुना जाना चाहिए। लेकिन वतुस्थिति यह है कि
अधिकांश कविगण प्रायः प्रथम से चतुर्थ पंक्ति तक क्रमशः लिखते एवं
सामर्थ्यानुसार यथास्थान ‘तुक’ मिलाते चले जाते हैं।

       प्रसिद्ध कवि डॉ. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ के प्रकाश्य
मुक्तक-संग्रह ‘बाँसुरी-बाँसुरी’ की पाण्डुलिपि में ‘विधाता’ छंद के
अनुशासन में बँधे अनेक मुक्तक देखकर मुझे प्रसन्नता हुई। श्रृंगार-रस में
आप्लावित उनके निम्नांकित मुक्तक में जहाँ मधुर चुम्बन की वाचालता है, तो
वहीं उसके माधुर्य को अभिव्यक्त कर पाने की भाषागत असमर्थता भी...‘ज्यों
गूँगे को गुड़’! यह मुक्तक पढ़ते ही मेरी स्मृति में कविवर त्रिलोचन आ
गये...यह कहते हुए कि-  ‘भाषा के भी परे प्राण लहरें लेता है!’ बहरहाल
मुकतक का आनन्द लीजिए-

हृदय की पीर को कब कह, सकी संसार की भाषा।
बहुत वाचाल चुम्बन की, मधुर उपहार की भाषा।
हज़ारों गीत-ग़ज़लों में, नहीं है व्यक्त हो पाती,
तुम्हारे रूप की भाषा, हमारे प्यार की भाषा।

       यहाँ पंक्ति-चतुष्टय की भावगत सुसंबद्धता द्रष्टव्य है। साथ ही, यह भी
कि तीसरी पंक्ति को कितनी कलात्मकता के साथ चौथी पंक्ति का सोपान बनाया
गया है! मुक्तककार को हार्दिक बधाई!

       डॉ. कुमार विश्वास का एक अन्य मुक्तक भी कथ्य और शिल्प की दृष्टि से
क़ाबिले-ग़ौर है :
समुन्दर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नहीं सकता। =२९
ये आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नहीं सकता। =३०
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले,  =३०
जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता।    =३०

       उक्त मुक्तक के शैल्पिक शैथिल्य पर अब बहुत कुछ कहने की आवश्यकता नहीं
है क्योंकि लघु-दीर्घ की कुल संख्या के साथ ही गिरायी गयी मात्राओं को
मोटे अक्षरों में दर्शा दिया गया है। यहाँ एक शिल्पेतर दोष अत्यन्त
हास्यास्पद है; इसके लिए एकबारगी तृतीय और चतुर्थ पंक्ति में अवगुम्फित
कथ्य पर विचार कीजिए- ‘मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले / जो
मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता।’ यहाँ असफल प्रेम-जन्य नैराश्य
में डूबा एक प्रेमी अपनी प्रेमिका के मंगेतर से अनधिकार सीधा संवाद
स्थापित कर बैठा है; वह अपनी प्रेमिका की शादी में ख़लल डालता हुआ दिखायी
दे रहा है। विद्वज्जन विचार करें कि आख़िर वह प्रेम कितना सच्चा हो सकता
है जो अपनी प्रेयसी का भावी पथ ही अवरुद्ध कर डालने पर आमादा है। क्या
कोई सच्चा प्रेमी अपनी प्रेमिका के प्रति यूँ दुराशयी एवं दुश्‍चिंतक हो
सकता है? मानाकि किसी कारणवश उसे उसकी प्रेयसी देह-रूप में नहीं मिल सकी,
इसका मतलब यह तो नहीं कि वह देहासक्त-देहभक्त प्रेमी अपनी प्रेमिका के
मंगेतर अर्थात्‌ भावी जीवन-साथी को ही भड़का दे!


       यक़ीनन यह कितनी हास्यास्पद बात है कि ‘मेरी (प्रथम व्यक्ति/पुरुष)
चाहत...अर्थात्‌ प्रेयसी (द्वितीय व्यक्ति/स्त्री) को तुम (कोई तृतीय
व्यक्ति/पुरुष) दुल्हन बनाने से पहले यह सुन लो कि जो मेरा नहीं हो पाया,
वह तुम्हारा नहीं हो सकता।’ कोई भी समझदार व्यक्ति ऐसा अविवेकपूर्ण दावा
नहीं कर सकता। वस्तुतः यह कोई ज़रूरी नहीं कि जो ‘मेरा’ नहीं हो सका, वह
किसी ‘अन्य’ का भी नहीं हो सकता। समग्रतः  इस मुक्तक के पार्श्‍व से एक
प्रकार का ‘एग्रेशन’ झाँक रहा है जो कि ‘अपूर्ण कामना’ की कोख से जन्मा
है; यह ‘एग्रेशन’ व्यक्ति को अपराधी बना देता है...नाकाम आशिक़ों द्वारा
की गयी हिंसा (प्रेमिका पर तेज़ाब फेंकना, हत्या कर डालना, आदि) के
समाचार इसी ‘एग्रेशन’ का प्रतिफल है। निश्‍चिततः ऐसा लेखन कतिपय पथभ्रांत
आशिक-मिजाज़ युवाओं का क्षणिक मनोरंजन तो कर सकता है, प्रबुध्द वर्ग को
प्रभावित नहीं कर सकता...और न ही श्रेष्ठ साहित्य में कोई स्थान बना सकता
है।

       सामग्री के खोज-क्रम में मुझे डॉ. कुमार विश्वास का ही एक मुक्तक मिल
गया जिसमें छंद का सम्यक निर्वाह मुक्तककार को बधाई का पात्र बनाता है-

बहुत बिखरा, बहुत टूटा, थपेड़े सह नहीं पाया।     =२८
हवाओं के इशारों पे, मगर मैं बह नहीं पाया।      =२८
अधूरा अनसुना ही रह गया, यूँ प्यार का क़िस्सा,   =२८
कभी तुम सुन नहीं पाये, कभी मैं कह नहीं पाया।  =२८

       यहाँ प्रेम-प्रसूत पीड़ा ने अभिव्यक्ति पायी है। ‘तुम’ से अभिप्रेत
शख़्स (वस्तुतः ‘प्रेयसी’) के सम्मुख उसकी प्रेम-कथा ‘अन्टोल्ड’ और
‘अनहर्ड’ रह गयी है। स्पष्टतः प्रेम-धरा पर तमाम असह्य थपेड़ों के बीच
स्वयं की टूटन और बिखराव का साक्षी बनना रचनाकार की त्रासदी है। दर्द के
ऐसे असहनीय मौसम में ‘हवाओं’ के स्वेच्छाचारी ‘इशारों’ पर न बहने की
दृढ़ता एक अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत करती है। ‘हवाओं’ की सांकेतिकता ने इस
मुक्तक में लाक्षणिकता का समावेश कर दिया है...‘इशारा’ करती हुई ‘हवाओं’
की आलंकारिकता इस मुक्तकाभिव्यक्ति को और भी समृद्ध बना गयी है। लेकिन...
कथ्य की तार्किक प्रस्तुति को केन्द्र में रखते हुए कहना होगा कि बिखराव,
टूटन की पश्‍चगामी क्रिया है...अर्थात्‌ चीज़ें टूटती पहले हैं, बिखरती
बाद में। अतः इस मुक्तक की प्रथम पंक्ति में आंशिक संशोधन की दरकार है।
मेरी विनम्र राय में, पंक्ति कुछ यूँ होनी चाहिए- ‘बहुत टूटा, बहुत
बिखरा, थपेड़े सह नहीं पाया।’

       इसके अतिरिक्त द्वितीय व तृतीय पंक्ति में भी कुछ दोष मौजूद हैं जिनका
उल्लेख किये बिना मुक्तक का संशोधित रूप ही यहाँ प्रस्तुत है-

बहुत टूटा,  बहुत बिखरा, थपेड़े सह नहीं पाया।
हवाओं के इशारों पर, मगर मैं बह नहीं पाया।
रहा है अनसुना औ’ अनकहा यूँ प्यार का क़िस्सा,
कभी तुम सुन नहीं पाये, कभी मैं कह नहीं पाया।

       मेरा मानना है कि अब यह एक बेहतर मुक्तक कहलाने का पात्र बन गया है।

COMMENTS

BLOGGER: 68
  1. पारखी नज़र की शानदार समीक्षा।

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  2. किसी साहित्यकार के लिए आत्म्श्लाधा अशोभनीय है. डॉक्टर विश्वास जी अपने विवादास्पद वक्तव्यों / कृत्यों से चर्चित हो रहे हैं किन्तु इससे साहित्यकार बिरादरी पर धब्बा लग रहा है. उनकी रचना युवाओं में लोक प्रिय हुयी है किन्तु उसे नॅशनल एंथेम का खिताब नहीं दिया जा सकता ..यह तो सरासर नॅशनल एंथेम का अपमान करना हुआ. जहाँ तक साहित्यिक समालोचना का प्रश्न है मैं इस समालोचना के तकनीकी बिन्दुओं से सहमत हूँ ...केवल एक बात को छोड़कर ...वह यह कि मनोभावों को किसी बने बनाए फ्रेम में बांधने के पक्ष में मैं बिलकुल नहीं हूँ. जंगल में जब पत्तों की सरसराहट होती है तो उसमें भी एक संगीत होता है ...पत्तों को कोई नहीं सिखाता संगीत का सा रे ग म . झरने के पानी के संगीत के लिए कोई शास्त्रोक्त नियम नहीं है. प्रकृति के संगीत का व्याकरण नहीं होता ...वह तो अपनी ही लय में गूंजता है. शायद मैं लोक गीतों के पक्ष में अधिक हूँ जो आम लोगों के जीवन का सहज साहित्य है. यद्यपि शास्त्रीय साहित्य का विरोधी भी नहीं हूँ. उसका अपना महत्त्व है ...लालित्य है.

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  3. भूल सुधार -
    कृपया "उसे नॅशनल एंथेम का खिताब नहीं दिया जा सकता" को इस तरह पढ़ें " एंथेम का खिताब नहीं दिया जा सकता " .

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. बहुत खूब ! जौहर साहब आपकी यही समीक्षा 'अभिनव प्रयास में भी पढ़ी आप बधाई के पात्र है कि आप एक सजग साहित्यकार की भूमिका निभा रहे हैं |

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  6. ये लोग बाज़ारू हैं। जो बिके उसके लिए कुछ भी कर सकते हैं। अगर छूट मिले तो ‘स्टंट’ शब्द का प्रयोग करना चाहूंगा कि ये सब मार्केट की रणनीति और स्टंट है। बस।
    आपकी समीक्षा लाजवाब है। बहुत सी जानकारी आपकी इस पोस्ट से मिली।
    आभार।

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  7. आप सभी की निष्पक्ष राय के लिए हार्दिक आभार !

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  8. स्थापित को धूल चटाती गजब की विश्लेष्णात्मक धोबी पछाड़. ऎसी सूक्ष्म समीक्षा बेहद कम पढ़ने को मिलती है.. जब तक छिद्रान्वेषी स्वभाव न हो ऐसे छिद्र नहीं ढूँढे जा सकते.

    हाँ, बहुत-सी रचनाएँ ऎसी छिद्रान्वेषी समीक्षा से छूट पा सकती हैं, लेकिन तभी जबकि कोई रचना वाकई में सद्भावों को उपजाती हो तब उसमें निहित त्रुटियों से समीक्षक/ आलोचक/ छंदशास्त्री भी विमुखता दिखाकर उसके प्रति क्षमा भाव दिखाते हैं. परन्तु यहाँ डॉ. कु.विश्वास पर कैसे विश्वास करें जब वे अपनी साधारण जी तुकबंदी को यूथ-एंथम की संज्ञा देने पर तुले हों. ऐसे कार्य उनकी मानसिकता को दर्शाते हैं...
    जितेन्द्र जी, एक प्रश्न मन में उपजा है..
    रविन्द्रनाथ टैगोर का जार्ज-पंचम के स्वागत में रचा चापलूसी-गान धीरे-धीरे भारत का राष्ट्रीय-गान [नेशनल एंथम] बनकर उभर सकता है तो
    अब वर्तमान में कु.विश्वास की ऎसी बेलौस चिल्लाहट को क्यों न 'यूथ एंथम' कहा जाये? :) .... [व्यंग्य]
    किसी का गरिमामय नामकरण रख देने से क्या वह हृदयों में स्थान बना लेता है?
    इस तरह के कार्य बेवकूफ बनाने और धोखाधडी करने वाले लोगों के होते हैं.
    आपने ढोल की पोल खोलकर न केवल पाठकों को जागरुक किया है अपितु छंद-शास्त्र की महत्वपूर्ण जानकारी भी दी है. आपकी इस समीक्षा के लिये साधुवाद.

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  9. बेहद गहन,बेबाक,सटीक ,स्पष्ट,तर्कपूर्ण और ज्ञानवर्धक समीक्षा !
    बहुत दिनों बाद आपको पढ़कर अच्छा लगा !

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  10. बेहद गहन समीक्षा. कोई मेरे जैसा नासमझ होगा जिसे इस विधा का ग्यान नही होगा उसने उसकी शान मे कसीदे काढ दिये होंगे लिन्क देते तो अच्छा था।। लेकिन आपने खूब पहचाना। शुभकामनायें।

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  11. गुरूजी, चरण कहाँ हैं आपके? क्या लिखा है!!!
    दरअसल मंच पर कॉमेडी करके लोगों को सस्ता मनोरंजन देने वाले कवियों का बोलबाला है... मुन्नी बदनाम पर थिरकने वाले युवाओं की तात्कालिक तालियाँ बटोरकर वे अपने को दिनकर और निराला समझने लगते हैं... चलिए साहित्य(?) को बेच के कुछ लोग अपनी रोजी रोटी तो चला रहे हैं... कौशलेन्द्र जी से सहमति रखता हूँ... मैं भी साहित्य में नियमों कि अपेक्षा भावों को अधिक महत्व देता हूँ... पर इसमें भाव भी कहाँ है? ५ रूपये वाली किताब की छिछली शायरी लगती है... बधाई इस जानदार लेख के लिए.. प्रणाम..

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  12. बहुत गहन समीक्षा है...आपका प्रयास तारीफ के काबिल है...

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  13. नेशनल ऐन्थम एक बहुत भव्य उपाधि है. और जब बात नेशन की आती है यानि देश की तो जो कुछ भी होता है हमारा होता है. तेरा मेरा नहीं. (मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले,
    जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता।) ये किसी की प्रेम अभिव्यक्ति हो सकती है एक व्यक्तिगत अभिव्यक्ति हो सकती है परन्तु नेशनल ऐन्थम जैसी उपाधि देना मेरे विचार से बचकानी सोच है.

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  14. बहुत ज्ञानवर्धक, गंभीर और सटीक समीक्षा...

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  15. जितेंद्र जी, आपका ये स्तंभ निश्चित रूप से प्रशंसनीय और स्वागतयोग्य है|अभिनव प्रयास के नए अंक में पहले ही देख चुका हूँ और पढ़ चुका हूँ आपका ये स्तम्भ| पढ़ते ही अशोक अंजुम जी को खत भी लिख चुका हूँ एक| आजा आपका मेल मिला और यहाँ आई टिप्पणियों को देखने के बाद रोक नहीं पाया खुद को फिर से लिखने से|

    आपके स्तम्भ की पहली किश्त, जिसमें आपने मुनव्वर राणा साब के ग़ज़ल की विस्तृत चरचा की थी, उसके बाद ये दूसरी किश्त तनिक खलती है कि विवेचना कई जगह शालीनता खोती-से लगती है| पूरी बात को शालीन तरीके से भी रखा जा सकता था| इसी बाबत अभिनव प्रयास के नए अंक में भी एक खत आया हुआ है, देखा ही होगा आपने|

    जहाँ तक कुमार विश्वास के इस वेब-साइट पर उनकी प्रसिद्ध पंक्तियों को यूथ-एनथेम का विशेषण देने की बात है तो वो आत्मश्लाघातमक{जैसा कि आप कहते हैं} इसलिए नहीं कही जा सकती कि वो वेब-साइट कुमार साब के प्रशंसकों द्वारा बनाई गई है और चलाई जा रही है| दूसरी बात कि एंथेम तमाम शाब्दिक अर्थ जो आपने दिये हैं वो पूरी तरह सही हैं, लेकिन आप खुद इतने अच्छे कवि-शायर हैं और बिम्ब की भाषा समझते हैं|...तो यहाँ एंथेम शब्द एक विशेषण, एक बिम्ब के तौर पर प्रयुक्त हुआ है कुमार साब के प्रशंसकों द्वारा| कुमार साब क्यों आएंगे भला इस पर आपत्ति जताने| हमने अपनी शायरी में अपनी माशूका के होंठो को अंगारा कह दिया या ज़ुल्फों को नाग कह दिया तो क्या वो सचमुच में अंगारे और नाग हो गए| ...और हमारी माशूका तो इसका खण्डन करने को आने से रही :-) तो वो एंथेम शब्द का इस्तेमाल महज एक बिम्ब के तौर पर उन पंक्तियों की तारीफ करने के लिए हुआ है|

    जहाँ तक इन पंक्तियों की छांदिक और शास्त्रीय कमियों का सवाल है वो आपने बिल्कुल जायज उठाया है| सैल्यूट आपको इसके लिए| लेकिन इसमें भी एक विरोधाभास है| एक तरफ तो ये पंक्तियाँ मुक्तक के रूप में आप खारिज कर रहे हैं और वहीं दूसरी तरफ आप इन्ही पंक्तियों को अभिनव प्रयास के मुक्तक विशेषांक में शामिल भी करते हैं| आप खुद भी तो अभिनव प्रयास के संपादक मंडली में शामिल हैं?

    इस स्तम्भ की नियमितता बरकरार रखिएगा| अभिनव प्रयास को बहुत ऊंचाइयों पे ले जाने वाला है आपका ये स्तम्भ| बस इतनी-सी इल्तजा है कि पूरी विवेचना में शब्दों की शालीनता बनी रहे|

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  16. gdhe ko bap bnane ka muhavra isi trh se to bna hai

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  17. बेनामी12:00 am

    जन नायक बनाने के लिए जनता के दिल में जगह बनानी पड़ती है......उनका अपना हिस्सा बनकर उनके बीच उतरना पड़ता है....अब कुमार विश्वास तो युवाओं के बीच जाकर आवाज़ नहीं लगाते, आओ आओ मुझे प्यार करो, मेरी रचनाओ को गाओ....एक व्यक्ति को युवाओं का अपार प्यार मिल रहा है, ये नसीब है उसका, तो फिर इस बात पर कैसा विवाद......इस तरह की तकनीकी जानकारी ब्लॉग पर छाप कर आप अपनी कुंठा को तो निकाल सकते हैं ....लेकिन कुमार को युवाओ के दिलो से नहीं निकाल सकते....जों उनकी कविताओं पर थिरकते हैं, गाते हैं...उनका रिश्ता कविता से मन से तकनीक से नहीं ....लगता है आप अपनी रचनाये लिखते वक्त भी दिमाग का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं ....इसीलिए आपकी रचनाये दिलों तक नहीं पहुचती.....इस पर भी दोष कुमार विश्वास को....वो तो जों हैं सो हैं....आप खुद के कार्यों की समीक्षा करें तो ज्यादा बेहतर होगा .......

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  18. बेनामी1:20 pm

    स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

    Benaami Tipaaniyan Spam nahi hoti...Literari baabu...Ghor nahi Ghanghor shnyantra hai kumar vishwas ke khilaaf...Market Value increase karo, roka kisne hai Mr. Critic

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  19. ये कर्णप्रिय तो है मगर इसे ऐसी सँज्ञा देना उचित नहीँ। थोड़ी सफलता मिलते ही चाटुकारोँ और मौका परस्तोँ की फौज खड़ी होने लगती है। अब बड़प्पन इसमेँ है कि इनसे कैसे बचा जाये। इतनी बेहतरीन समीक्षा के लिये आप वाकई बधाई के पात्र हैँ।

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  20. निःशब्द कर दिया आपकी इस समीक्षा ने...

    पूर्णतः सहमत हूँ आपसे....

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  21. बेनामी3:05 pm

    लगता है- ये बेनामी साब चाटुकारों की उसी लाइन में से आ टपके हैं जिनकी ओर बेबाक समीक्षा में इशारा किया गया है। अरे भय्या तर्क को तर्क से काटो। समीक्षक बधाई का पात्र है...निर्भीकता के लिए।

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  22. बेनामी4:33 pm

    मेरा भी यही प्रश्न है जो गौतम जी ने अपनी टिप्पणी के एक अंश में उठाया है -

    जहाँ तक इन पंक्तियों की छांदिक और शास्त्रीय कमियों का सवाल है वो आपने बिल्कुल जायज उठाया है| लेकिन इसमें भी एक विरोधाभास है| एक तरफ तो ये पंक्तियाँ मुक्तक के रूप में आप खारिज कर रहे हैं और वहीं दूसरी तरफ आप इन्ही पंक्तियों को अभिनव प्रयास के मुक्तक विशेषांक में शामिल भी करते हैं| आप खुद भी तो अभिनव प्रयास के संपादक मंडली में शामिल हैं?

    venus kesari

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  23. बेनामी6:50 pm

    आजकल किसी भी विषय पर समीक्षा लिखना जितना कठिन है शायद उससे भी कठिन उसे पढकर पचा पाना है. जितेन्द्र जौहर जी की सभी टिप्पणियाँ आत्म-विश्वास से इतनी सराबोर होती हैं कि कोई भी व्यक्ति इन्हें सहज रूप में स्वीकार नहीं कर पाता. कारण स्पष्ट है...कि इन्हें प्रभावहीन करने के लिए तर्कों की कमी जान पड़ती है. जब तार्किक दृष्टि से आप अपनी बात न कह पायें तो फिर क्रोध के वशीभूत किसी न किसी तरह अपनी बात मनवाना चाहते हैं. डॉ. कु. विश्वास संभवतः एक अच्छे राजनीतिज्ञ हो सकते हैं. लच्छेदार बातों से युवाओं में अपनी पहचान बनाना आजकल का सबसे अधिक लोकप्रिय शुगल होता जा रहा है. युवा पीढ़ी हर प्रकार की नई विधाओं की तरफ तीव्रता से आकर्षित होती है भले ही उसमें किसी प्रकार का कोई लाभ न हो. डॉ. कु. विश्वास जैसे तथाकथित साहित्यकार हमारे युवाओं को ऐसे छिछोरे नॅशनल एंथेम सुना कर कहाँ ले जाना चाहते हैं, ये तो वही जाने. यहाँ यह कहना कोई अतिशयोक्ति न होगी की इस प्रकार का घटिया साहित्य कुछ समय के लिये तो आपका मन मोह सकता है परन्तु वास्तविकता सामने आते ही इससे नफरत भी होने लगती है.

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  24. बेनामी11:13 pm

    वेद व्यथित और ‘उपेन’ जी के बीच में जो दो बेनामी टिप्डयां हैं वे मुझे भी कवि कुमार विश्वास के चमचे लग रहे हैं। यार...फ़ेमस हो जाना एक बात है और बढ़िया लेखक होना दूसरा मुद्दा है। जौहर साहिब आपने गजब का जौहर दिखाया है। आप बहुत पारखी हैं। मैं सलाम करता हूं आपको...!

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  25. ईमेल से प्राप्त टिप्पणी -
    I was facing difficulty in posting my comments at your blog,....please arrange to post my comments at Rachanakar and oblige. Thanks and regards,
    Ashwani Roy

    डाक्टर विश्वास साहेब की रचना को नेशनल अन्थेम बताना भारी भूल होगी. इस प्रकार के लेखन से युवाओं को कुछ समय के लिए अवश्य भरमाया जा सकता है परन्तु इसमें ऐसा कुछ नहीं जो किसी भी ह्रदय पर अपनी छाप छोड़ सके. मैं जितेन्द्र जौहर जी की सटीक टिप्पणियों को अक्सर पढ़ता रहता हूँ क्योंकि इनमें न केवल विषय-वस्तु के प्रति स्वस्थ तार्किक दृष्टिकोण होता है अपितु इनसे हमें हिन्दी साहित्य के प्रति गहन चिंतन की प्रेरणा भी मिलती है. सच तो यह है कि यही चिंतन आगे चल कर कही न कही साहित्य सृजन हेतु प्रेरणा स्रोत भी बनता है. “आत्मश्लाघा अशोभनीय है” मैं कौशलेन्द्र जी की इस टिप्पणी से सहमत हूँ. मुझे डाक्टर विश्वास जी के तथाकथित नेशनल अन्थेम में कहीं संगीत या लय जैसी कोई बात दिखाई नहीं दी. अगर कोई व्यक्ति अपनी रचना को गज़ल या रुबाई बताए तो इस रचना को इसके तकनीकी पक्ष पर तो खरा उतरना ही होगा अन्यथा यह एक सामान्य रचना बन कर रह जायेगी. “एंथेम शब्द एक विशेषण , एक बिम्ब के तौर पर प्रयुक्त हुआ है” गौतम राजर्षि जी की इस टिपण्णी से भी मैं सहमत नहीं हूँ क्योंकि बिम्ब तो कविता के अंदर होता है ...बाहर नहीं. और हाँ..कुछ लोग बेनामी टिप्पणियां चुपचाप यहाँ-वहाँ ठेल देते हैं जो उचित नहीं है. ऐसे ही एक बेनाम सज्जन का यह कहना कि कविता दिल से होनी चाहिए ...दिमाग से नहीं ....बड़ा हास्यास्पद लगता है. अगर डाक्टर विश्वास जन नायक बनना चाहते हैं तो इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? हमारे देश के सभी महान साहित्यकार लोगों के दिलों तक दस्तक दे चुके हैं परन्तु उन्होंने कभी भी चाटुकारों की कोई फौज नही बनायी. ये बेनामी सज्जन विश्वास जी के बड़े चाटुकार प्रतीत होते हैं क्योंकि इन्होंने जौहर साहेब के किसी भी तर्क का कोई जवाब नहीं दिया. उल्टा आपने जौहर साहेब को उनकी अपनी रचनाओं पर ही टिप्पणी लिखने का सुझाव दे डाला. अरे भाई, अगर आप ही अपनी रचनाओं पर टिप्पणी देने लगेंगे तो उसे पढेगा कौन? चलते चलते एक और बात कहना चाहूँगा ... सत्यम शिवम सुन्दरम ...यह जरूरी नहीं कि अच्छी बात सभी को सब जगह अच्छी लग ही जाए, कभी कभी अच्छी बातें सभी स्थानों पर कह देना शायद उचित नहीं होता.

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  26. बेनामी9:56 am

    yaar ye sab mil kar kitne se kutta fajiti machayeyn hain par ek aadmi ki mehnat ki bazay aapna ochapan jahir hi kar sakey. are bhale logo sare mil kar us se aadi janta bhi hindi ki goud me lakar to dikhaoo....aur sab se badi baat ye ki Dr Kumar chup chaap hindi ke vistaar me lage hain in chirkuton par dhayaan hi nahi dete ...ha ha ha

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  27. बेनामी11:04 am

    क्या डॉ. विश्वास ने नेशनल एंथम नाम दिया ?

    कल को लोग उन्हें या फिर किसी को कविता का मसीहा पुकारेंगे तो क्या वो सफाई देने मीडिया के पास या जनता के पास जायेंगे?

    ये समीक्षा डॉ. विश्वास की रचना की ही क्यों की गई ?

    ज्ञान बांटने का इतना शौक है तो ब्लोगर्स को क्यों नहीं शिष्य बना लेते ....आपकी ब्लॉग्गिंग की दुनिया में टिप्पणियों का बाजारीकरण नहीं होता क्या ?

    चाटुकार आपके पास नहीं क्या ?

    सच तो ये है दूकान खोल कर तो आप सारे भी बैठे हैं...नाम और दाम का तलबगार कौन नहीं होता ? लेकिन ग्राहक है कि आपका रुख ही नहीं करते?

    अब कह कहेगे कि बाज़ार कि दिशा, दशा दोनों खराब है.....अरे हम तो नए सूत्र बनाने में विश्वास रखते हैं .....फोर्मुले बदले भी जा सकते हैं ....

    गुलज़ार से पहले त्रिवेणी नामक विधा का नाम सुना था क्या ? अब गुलज़ार के नाम कि लकीर इतनी लम्बी हो चुकी है कि सदियों बात ही कोई उनसे लम्बी रेखा खीच पाया तो खीच पायेगा .....हाँ! साहित्यकार शब्द कि बिरादरी में वो आते हैं कि नहीं आते इसमें भी मतभेद है


    आपकी बात तर्कसंगत हो सकती है .....न्याय संगत तब मानी जाती जब व्यक्ति की उभरती हुई कामयाबी के प्रति लेखन में बैर-भाव ना प्रतीत होता....आपकी ब्लोग्गिं की दुनिया में एक कवियित्री हैं....जों अपनी रचनाओ में आदर्श-वादिता की वकालत करती है ....पढ़ कर लगता है कि अध्यात्मिक चैनल चल रहा हो, जिनका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं ......भविष्य में उनकी रचनाये अगर पढ़ी भी गई .....तो कलयुग का तो नहीं सतयुग का भान होगा :-) लेकिन हिन्दयुग्म ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ कवियित्री कि उपाधि से सम्मानित किया .....गुटबाजी करके किसी को क्षणिक सुख तो प्राप्त किया जा सकता है....लेकिन प्रेम नहीं. एक और बात लाखो प्रशंसक हो तो किस- किस को चाटुकार कहेंगे आप ......हाँ! जिनके पास कम लोग होते हैं...वो चाटुकारों से लेन-दें भी कर लेते हैं और उनका प्रबंधन भी. मेरे पास आप लोगों जितना वक़्त नहीं....आप लोगों को बात बढ़नी हो बढाइये.


    यहाँ सिर्फ गुलज़ार साहब का उदाहरण दिया गया है .....अच्छा होगा अगर आप लोग कुमार को अलग ही रखेंगे


    हर्षित

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  28. निवेदन है कि कृपया इस साहित्यिक स्थल की गरिमा अपनी टिप्पणियाँ देते समय बनाए रखें, जो कुछ बेनामी टिप्पणियों में झलक रही है. घोर अमर्यादित टिप्पणियों अथवा विषय वस्तु से रहित टिप्पणियों को वैसे भी प्रकाशित नहीं किया जाता है. अमर्यादित भाषा दरअसल स्वयं लेखक के अमर्यादित रूप को ही प्रकट करते हैं, यह भी एक अकाट्य तथ्य है.
    आप सभी प्रसंशकों से आग्रह है कि आप इस स्वस्थ और बेबाक समीक्षा के प्रत्युत्तर में तथ्यगत विवाद करें, प्रति-तथ्य सामने लाएँ और स्वस्थ वाद-विवाद करें. आपके प्रश्नों व प्रति-तथ्यों का उत्तर प्रस्तुत कर लेखक व संपादक को खुशी होगी.

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  29. बेनामी2:02 pm

    Ratlaami ji, Benamiyon ki tipaaniyon se kya jhalak raha hai wo to bata diya aapne ....khud ko sahitykaar kahne waale aur ek gut dwara sahitykaar maanne wale ne ye kaha hai

    "vedvyathit ने कहा…
    gdhe ko bap bnane ka muhavra isi trh se to bna hai '

    Kya ye sahitya mein maryadit bhasha hai ...ise kuntha nahi to kya kahnenge aap ?

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  30. आद. जितेन्द्र जी आपकी समीक्षा को नमन .....
    मुक्तक पर इतना गहन विवेचन और एक एक शब्द पर इतनी पारखी नजर .....?
    सुभानाल्लाह ......!!
    मैं तो कहती हूँ कुमार विश्वास जी भाग्यशाली हैं जिनकी रचना इस समीक्षा के लिए चुनी गई ....
    कुमार जी को इसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए ....:)
    हर चुनौती कुछ सीखने के लिए होती है ...

    यूँ जब आपने अभिनव प्रयास में यह स्तंभ शुरू किया था , तभी सोचा था कि एक पोस्ट लिख सभी को सचेत कर दूँ कि पता नहीं किसकी खैरियत आने वाली है ....:))

    कुमार विश्वास जी की मैं भी फैन हूँ ...बहुत अच्छा लिखते हैं ...
    पर समीक्षा अपनी जगह है .....

    जवाब देंहटाएं
  31. बेनामी6:37 pm

    जौहर साहिब,
    आदाब।
    आप क़लमचोर तन्कीदकार नहीं है। आपकी हक़बयानी को सलाम करता हूँ। आपने इश्क और मुश्क में डूबे क़त्‍आत(मुक्तकों)की सच्ची तन्कीद की है। आइना दिखाया है।

    यहाँ ग़लती कुमार विश्वास या उनके चापलूसी-पसंद भाइयों की भी नहीं है...दरअस्ल आज ज़ियादातर शोअरा(शायर/कवि)अपनी तारीफ़ ही सुनना चाहते हैं। मैं मंचों को और मंचों की घटिया सियासी हरक़तों को काफी करीब से जानता हूँ। ये चापलूस भाई यहाँ अपनी राय दर्ज करने के बाद सबसे पहले कुमार विश्वास को फोन पर सूचना देंगे ताकि उन्हें मंच मिलते रहें।

    गौतम राजरिशी साहिब की राय से मैं इत्तेफ़ाक नहीं रखता। आपने कहीं भी शालीनता की हद नहीं तोड़ी है। तन्कीदकार के रूप में आपकी ज़ुबान तहज़ीब के दायरे है। यदि कोई शाइर अपने क़लाम को तमाम आला दर्जे के लकब (उपाधियों)से नवाजने लगे, तो उस पर ऐसी ही तन्कीद पेश की जानी चाहिए।

    हरकीरत जी ने सही फ़रमाया है कि-
    "मैं तो कहती हूँ कुमार विश्वास जी भाग्यशाली हैं जिनकी रचना इस समीक्षा के लिए चुनी गई ....
    कुमार जी को इसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए ....:)
    हर चुनौती कुछ सीखने के लिए होती है ..."


    बहरहाल... मैं मुरीद हो गया हूँ आपका।

    ‘ऐ जौहर...तेरी पारखी नज़र को सलाम!’

    जवाब देंहटाएं
  32. बेनामी7:10 pm

    जौहर जी.....आप जैसे ईमानदार समीक्षकों की आज बहुत जरूरत है। आपकी समीक्षा ही नहीं, आपकी हिम्मत पर भी दाद देता हूँ।

    आपका यह आलेख समीक्षा की एक नयी जमीन तोड़ता है। इस तेवर की फड़कती हुई बेबाक समीक्षा मैं पहली बार पढ़ रहा हूँ। तमाम पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षा के नाम पर ठकुरसुहाती ही चल रही है।

    कुमार विस्वास और उनके चेलों को इससे आहत होने की बजाय सत्य को स्वीकार करते हुए स्वयं को निखारने का मौक़ा समझना चाहिए। मगर......ये क्या? यहाँ सब तो आदरणीय जौहर जी की मेहनत पर पानी फेरने पर तुल गये।

    अरे भैया.....आज के दौर में कौन इतनी गहराई से किसी को पढ़ता है। जौहर जी ने केवल पढ़ा ही नहीं, बल्कि समीक्षा भी की।

    कोई कुछ भी कहे, इससे जौहर जी का गहरा अध्ययन तथा ज्ञान उजागर हुआ है। उन्हें मेरा प्रणाम!

    जवाब देंहटाएं
  33. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  34. जितेंद्र जी
    डॉ० विश्वास की मंचीय् योग्यता का प्रशंसक मैं भी रहा हूँ और उनके कई मुक्तकों में खामियों का अभास भी मुझे था किन्तु उन खामियों पर सार्वजनिक टिप्पणी करने के लिए जो आपने समय निकाला और जो साहस दिखाया है वह प्रशंसनीय है। क्योंकि इससे कविता के मंचीय प्रस्तुतिकरण पर मुग्ध होने वाले लोगों का ध्यान उसके गुणों को परखने की ओर जाएगा।
    मैं डॉ विश्वास को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता, किन्तु यदि वे साहित्यिक व्यक्ति हैं तो उन्हें इस समीक्षा का बुरा नहीं मानना चाहिए।

    सादर

    रवि कांत अनमोल

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  35. बेनामी6:59 am

    Mujhe koi sharm nahi hain ye kahne me ki dr.kumar vishvas ko main pasand karta hun. ANTHM wali baat ko bevajah badhaya gaya hain.....NON SENSE. takniki khamiyon ke baare me meri jaankari thodi kam hain to uspar to nahi kah sakta par ha vicharparakh tippani ki baat hain to itna kahna chahunga dr kumar vishvas ka sahityik gyan aur unka sampurna rachnakram padhne ke baad hi unhe kavi ki upadhi dijiyega ya chhiniyega.. unka sahityik gyan hindi urdu sanskrit english sahitya ke gahan adhyayn aur mehnat ki den hain......ANTHM sangya unhone nahi di to bevajah uss baat ko uthakar yahan rakhne ka tuk mujhe samjh nahi aata. aaj agar unpar sawal uth rahe hain ya jo log utha rahe hain wo sab unse isrshya rakhne wale hain aur dr vishvas ko rajnitigya karar dete hue sabhi rajneetik dukaan khol rahe hain...........jin kaviyo ke naam ek tippani me likhe hain jinhe shretsth bataya gaya hain unme vineet chouhan jee ko chhand ke gyan se door batana murkhata hain.............aur agar fir bhi aap vishleshan karne ke itne shoukin hain to VACHIK PARAMPARA aur PATHIK parampara ke kaviyon ka alag alag mulyakan kijiye jo nishpaksh ho. Manch ko pathniya sahitya ke rachnakram se jodna kitna sahi hain ? aur agar dr.kumar vishvas kuchh nahi hain to fir itne budhhijeevi log apna keemati samay unpar charcha me kyun kharch kar rahe hain ? sach ye hain ki aaj dr.vishvas jin bulandiyon par hain wo sabko hatprad karne wala hain aur kuchh logo ko ye hajam nahi ho raha bas yahi karan hain unki khilaaf baatein ho rahi hain. aaj ka budhijeevi varg apne aap me hi imaandar nahi hain.........sameeksha karni hi thi to uska star samajik parivesh aur sahitya tak hi rakhte to acha rhta. dr.kumar vishvas ke sahitya ne ya aap jo bhi kahe hindi kavita ko ek gati di hain jisse nayi kavita desh ke yuvao tak pahuch rahi hain. vartman hindi sahitya ki garimaki chinta hoti hain logo ko.........kai saal se hindi mancho par sirf chutule aur uljalul vyang jo vyang kr upar swayam ek vyang hain unka raj raha....sahitya ka mahaj bhram bana raha. par un kaviyo me se kisi ko bhi janta se sweekar nahi kiya na koi itna prasidh hua isiliye kisi ko takleef nahi hui lekin ekdum se ek shringar ka geetkar achhe geet likhne ke saath saath bada naam bhi paane laga to wo aapki chinta ka vishay ho gaya? kumar vishvas ke geeto ka apna alag star hain aur kuchh baaton ko mudda banakar unke sahityik rachnadharmita ka apman karna sarsar anyay bhi hain aur galat bhi hain.kam se kam dr kumar vishvas ne ek sahityik vatavaran nirmit kiya hain jo hindi kavita kai tarah se labhnavit karega.........unki kavitao se kuchh bhi bura nahi hona hain. aur bhi kai cheeze hain kahne ko par ab neend aa rahi hain :-) aur kripaya meri tippani ko apmanjank kahne ka kastha na karen. kyunki maryadaye kitni jeevit hain ye dikh raha hain. aap sabhi bahut adarniyav hain mere liye.....sabhi ko vyaktigat pranam!

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  36. .
    .
    .

    मौत की आग़ोश में जब थक के सो जाती है माँ
    तब कहीं जाकर ‘रज़ा‘ थोड़ा सुकूं पाती है माँ

    रूह के रिश्तों की गहराईयाँ तो देखिए
    चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ

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  37. नित्यानन्द जी, सर्वप्रथम तो यह कि आप को अन्य किसी भी सम्माननीय कवि की इस तरह से आलोचना करने का अधिकार नहीं है। आपने जिस तरह से चार कवियों का नाम ले कर इस तरह की बात कही है, वह सही नहीं है। यह भी तय है कि किसी भी कवि को यदि जनता ने स्वीकार किया है तो उसमें सबसे ज्यादा उस कवि की स्वयं की प्रतिभा का योगदान होता है। किसी से “नजदीकियां” या दूरियां इस को बहुत ज्यादा प्रभावित नही करतीं। अगर ऐसा होता तो आप भी किसी मंचीय सफ़ल कवि का सहारा लेकर मंच के एक सफ़ल कवि होते (हांलाकि मुझे प्रसंन्नता है कि आपने वो रास्ता नही अपनाया) वरना आपके 'गदराया यौवन ले कर कहां चली…' सरीखे गीत आज 'यूथ-एन्थेम' होते और आप पर भी ऐसी समीक्षा हो रही होती।

    जितेन्द्र जी, मुक्तक विशेषांक के सैकड़ो कवियों की सूची मे से समीक्षा के लिए ड़ा0 कुमार विश्वास की ही तीन मुक्तके आप को क्यों चुननी पड़ी? आप पांच अलग-अलग कवियों की मुक्तके भी चुन सकते थे। वैसे आपकी मर्ज़ी। बहरहाल अच्छा लगेगा यदि कबीर और मीरा सरीखे रचनाकारो की रचनाओ की समीक्षा भी की जाये, ताकि और ज्यादा सीखने को मिले।

    जवाब देंहटाएं
  38. नित्यानन्द जी, सर्वप्रथम तो यह कि आप को अन्य किसी भी सम्माननीय कवि की इस तरह से आलोचना करने का अधिकार नहीं है। आपने जिस तरह से चार कवियों का नाम ले कर इस तरह की बात कही है, वह सही नहीं है। यह भी तय है कि किसी भी कवि को यदि जनता ने स्वीकार किया है तो उसमें सबसे ज्यादा उस कवि की स्वयं की प्रतिभा का योगदान होता है। किसी से “नजदीकियां” या दूरियां इस को बहुत ज्यादा प्रभावित नही करतीं। अगर ऐसा होता तो आप भी किसी मंचीय सफ़ल कवि का सहारा लेकर मंच के एक सफ़ल कवि होते (हांलाकि मुझे प्रसंन्नता है कि आपने वो रास्ता नही अपनाया) वरना आपके 'गदराया यौवन ले कर कहां चली…' सरीखे गीत आज 'यूथ-एन्थेम' होते और आप पर भी ऐसी समीक्षा हो रही होती।

    जितेन्द्र जी, मुक्तक विशेषांक के सैकड़ो कवियों की सूची मे से समीक्षा के लिए ड़ा0 कुमार विश्वास की ही तीन मुक्तके आप को क्यों चुननी पड़ी? आप पांच अलग-अलग कवियों की मुक्तके भी चुन सकते थे। वैसे आपकी मर्ज़ी। बहरहाल अच्छा लगेगा यदि कबीर और मीरा सरीखे रचनाकारो की रचनाओ की समीक्षा भी की जाये, ताकि और ज्यादा सीखने को मिले।

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  39. बेनामी5:27 pm

    जितेन्द्र जी---- आपने एक सच्चा और ईमानदार समीक्षक होने का परिचय दिया है। मैं आपकी काव्य-समझ और बारीकियों के गहरे विश्‍लेशण पर अचरज में हूँ। पूरी की पूरी एक्स्रे रिपोर्ट पेश कर दी है आपने।

    कुमार एंड मण्डली झल्लाएगी ही...। कुमार विश्वास मंचीय तुकबंदी वाले कवि हैं। कई मंचों पर मेरा साथ हुआ। यदि वह गीतकार हैं तो चुटुकुले काहे को भाँजते हैं जनाब?

    और हाँ...ऊपर वाली "बेनामी’टिप्पड़ियों में से दो टिप्पड़ियां मुझ जैसे मंच वाले लोग बखूबी पहचान सकते हैं कि स्वयं कुमार विश्वास ही ने दी हैं।

    जितेन्द्र जी----आपके तर्क अपनी जगह पर बिलकुल दुरुस्त हैं, इतने जबरदस्त् हैं कि न तो कुमार विश्वास और न उनका कोई चेला काट सकता है।

    अभी बारी-बारी से वार करने तमाम चेले/चाटुकार आएँगे। उनमें कोई भी आपके तर्क नहीं काट पाएगा। मैं उन सबों के ज्ञान को जानता हूँ।

    जितेन्द्र जी---- आपकी जिस पत्रिका में यह छपा करता है मुझे उसका पता मिल जाता तो अच्छा था। मैं इसकी कापी यहां से ले जा रहा हूं...अन्य मित्रों के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  40. बेनामी7:22 pm

    जौहर साहब.....प्राणाम।
    मैं नतशीष हूँ आपके गहरे चिंतन और सूक्ष्म-सुन्दर तथा तर्कपूर्ण विवेचन पर। काश मुझे आपका सानिध्य मिलता.....।

    दुर्भाग्य है.....इन स्वघोषित स्वनामधन्य मंचीय पहलवानों का जो इस ईमानदार समीक्षा से कुछ सीखने की जगह तरह-तरह से आपको घेरने की कोशिश कर रहे हैं। एक भी सज्जन आपके लिखे पर कोई भी काट नहीं पेश नहीं पाये..... बस प्रलाप करके चले जा रहे हैं।

    जौहर साहब.....दो बार कुमार विश्‍वास मेरे साथ मंच पर रहे। उनके साहित्य की स्तरीयता से मैं भलीभाँति परिचित हूँ। फ़ेमस हो जाना एक बात है....और श्रेष्ठ व उत्तम साहित्य-सर्जना दूसरी बात। प्रसिद्धि कभी भी उत्तमता की गारंटी नहीं होती।

    मुझे नहीं मालूम कि आपको इंटरनेट की पर्याप्त जानकारी है या नहीं? आपको सूचना देना चाहूँगा कि अभी ये जो ऊपर "sanvi" नाम के दो कमेंट हैं, वे नकली आईडी से आये हैं। मैंने अभी इन महान तर्कशास्त्री महोदय/महोदया (जो भी हों) उर्फ़ sanvi का प्रोफ़ाइल देखने को क्लिक किया...वहाँ कुछ भी नहीं है। आज या कल में ही ये आईडी जेनरेट की गयी है। उस पर सिर्फ़ एक व्यूअर ही था।

    और हां...... ऊपर एक अन्य महोदय की बातें तो पढ़िए...जो इंग्लिश के अक्षरों में लिख गये हैं कि-

    "Mujhe koi sharm nahi hain ye kahne me ki dr.kumar vishvas ko main pasand karta hun."

    हा...हा...हा...हाऽऽऽ!
    अरे भले मानुष...अगर शरम नहीं है, तो अपना नाम छुपाके क्यों बेशर्मी दे रहे हैं???????????????????????.........!!!!!

    जय चापलूसी.....जय अक्खड़ता! कुछ सीखने के बजाय एक अच्छे समीक्षक को ही शिकार बनाने चल दिये हैं एकजुट होकर। ध्यान रखना भाई कि- ‘सत्य मेव जयते’

    जौहर साहब....आपको पुनः नमन!

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  41. बेनामी8:04 pm

    Vaah....jauhar ji....vaah! Kamaal ka dhoyaa hai aapne. Aaeena dikhaayaa hai aapane. Aisee satahee rachnaae yadi manch pe chalatee rahee to manch gande ho jaayenge.

    Kumar Viswas ko saahitykaar nahee kahaa jaa sakta, Wo sirf popular type ka chaltaaoo maal taiyaar karate hai. Aap unkee koi bhee kavita dekh leejiye.

    Mujhe yaad hai ki unhone Nityaanand ki ek rachna mein her-pher karke apne naam se pesh kar diyaa tha. Yadi mujhe aapka address mil jaaye to bahut kuchh bhej saktaa hoo.



    Mujhe mobile pe suchnaa milee ki gajab ke tebar vaali ek behatreen sameexa chhapi hai.

    जवाब देंहटाएं
  42. बेनामी8:43 pm

    भला हो दिल्ली और भोपाल वाले उन मित्रो का जिन्होने इतनी धमाकेदार.... शानदार..... जानदार समीक्षा की ओर ध्यान खींचा। मैं लम्बे समय से इंटर्नेट से कट-आफ़ था....कवि सम्मेलनो के चलते मैं लगातार बाहर रहा। आज इंटर्नेट पे आया, तो समय की कीमत वसूल हो गयी है।

    जौहर जी, आपको तमाम पत्रिकाओ में पढ़ता रहा हूं। आपकी एक कविता ‘रज्जो की चिट्ठी’ और गीत ‘लम्बी दूरी है’ मुझे अभी तक याद है....आपको मैंने फोन भी किया था। मुझे नहीं मालूम था कि आप समीक्षा में भी इतनी गहरी चिंतनदृष्टि रखते हैं।

    अशोक अंजुम साहब ने भी एक बार मुझसे आपके भाषा-ज्ञान की प्रशंसा की थी। उसका प्रमाण आज देख रहा हूं.....बड़े-बड़े धुरंधर समीक्षक भी आपसे गहन समीक्षा की कला सीख सकते हैं। आप निश्चित तौर पर बहुत आगे जाएंगे।

    कुमार विश्वास एंड पार्टी के ये लोग जो यहां आपके खिलाफ़ लिख रहे हैं, आपके सामने खड़े होने की भी सामर्थ नही रखते।

    आपकी हिम्मत-हौसला-लेखन क्षमता के लिए साधुवाद!

    जवाब देंहटाएं
  43. बेनामी9:17 pm

    जौहर साब...आप जौहरी हैं....गजब के पारखी हैं...मेरा दिल खुश हो गया आपके लेखन का जौहर देखकर।

    लेकिन....लेकिन... एक बात कहूँगा कि (यदि बुरा न माने) आप किसी स्तरीय कवि पर कुछ लिखते, तो वह आपका मुरीद हो सकता था। आपने एक बाजारू और चीप पोएट पर कलम चलाकर उसे ऊँचा उठा दिया। अरे भाई... सीधी सी बात है जो कवि अपने मुक्तक यानी चार-लाइना तक में सही काफिया नहीं मिला पाया...वो क्या कविता लिखेगा?

    यदि आप चाहे, तो कुमार की सारी तुकबंदियां उठाकर देख लें...उनमें गम्भीरता नहीं मिलेगी। उनकी तुकबंदियों में छंद की जो दुर्दशा है सो है ही...आपने इसे लिखा भी है कि-

    "हिन्दी छंद-शास्त्र को ‘ठेंगा’ दिखाने वाली इस चतुष्पदी रचना(मुक्तक) को आख़िर किसने, कब, किस आधार पर और किस अधिकार से ‘यूथ एंथेम’ जैसी गरिमायुक्त संज्ञा प्रदान करने की कुचेष्टा की है?"

    आपके अध्ययन की गहराई के लिए हार्दिक बधाई...साधुवाद।

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  44. जौहर साहब....आपको साधुवाद । ऎसी बेबाक समीक्षा स्वयं को निखारने का मौक़ा देती है । बहुत लोग लाभान्वित हुए होंगे। सचमुच आप एक सजग साहित्यकार की भूमिका निभा रहे हैं | बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  45. बेनामी11:02 pm

    dr.kumar vishvas ki uttam sahitya rachna se aap bhalibhanti parichit hain ? aap koun hain parichya dijiyega apna agr aapko sharm na ho to. uttam sahitya padhna hain unka mujhse kahiye main padhwata hun unki achhho rachnaye.
    chaaploos shabd bada galat istemal kar gaye hain.


    BANSURI CHALI AAO,O MERE PAHLE PYAR,MADYANTIKA,HAAR GAYA TAN MAN, MAIN BHAV SUCHI UN BAHVO KI,MAANG KI SINDOOR REKHA, MADHUYAMINI, PYAR NAHI DE PAUNGA, UJALA DEKHUN GAZAL........... KANDHE PAR MERE SAR NAHI AAYA WALI GAZAL JISE MUNNVAR RANA SAHB SE BAHUT BADA SHER KAHA HAIN..... AUR ABHI KI VYAKARAN SE JO POST MARTM KIYA HAIN WO SIRF UNKI ABHI KI RACHNA KA HI HAIN WO KATAI SAAABIT NAHI KARTI KI UNKO VYAKRAN KA GYAN NAHI HAIN...........UNKA GYAN AAP SAMJH HI NAHI PAAYE YAHI HO SAKTA HAI JAB AAP UNKE SAATH MANACH PAR YA MANCH KE ALAWA RAHE HAIN TO.

    जवाब देंहटाएं
  46. बेनामी11:30 pm

    आदरणीय जौहर जी तो कविता की सम्पूर्ण पाठशाला हैं...यदि कुमार विश्वास उसमें दाखिला ले लें, तो उनका भला ही होगा।

    जो कवि अपने मुक्तक यानी चार-लाइना कविता में भी काफिया तक नहीं मिला सका, उससे श्रेष्ठ साहित्य की उम्मीद लगाना समझदारी नहीं है।

    आज दुर्भाग्यवश कुमार विश्वास जैसे तुक्कड़ों की भरमार है मंच पर।

    जौहर जी, यदि आप नित्यानंद जी द्वारा सुझाए गये विनीत चौहान और आशीष अनल आदि के अलावा हास्य-व्यंग्य वालों की भी कुमार विश्वास की तरह धुलाई-पुछाई कर सकें, तो मंचों की काफी गंदगी साफ हो सकती है।

    @ आदरणीय रतलामी जी, यदि आप श्री जौहर जी की उस पत्रिका का पता यहां छाप सकें, तो मेहरबानी होगी। मैं उसे रेगुलर पाठक के रुप में पढना चाहूंगा।

    जवाब देंहटाएं
  47. बेनामी11:46 pm

    Raghuvanshi jee ap bahut mahan insaan bhi hai. bahut hi achhe kavi bhi, aap in baaton me kripaya mat padiye....

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  48. बेनामी12:14 am

    वाह....जितेन्द्र जी! साधुवाद...साधुवाद...साधुवाद। क्या कहने आपकी बारीक दृष्टि के... आपने कमाल का जौहर दिखाया है। उम्र के इस पड़ाव तक आकर भी कभी ऐसी दनदनाती हुई खनकदार समीक्षा नहीं पढ़ने को मिली थी। सच्चे मायनों में यही होती है समीक्षा जो बारीक छन्नी लगा सके। आपने क्या ख़ूब जौहर दिखाया है...भाई! फोटू में भी देखकर लगता है कि वाकई आप ज्ञानी और अध्ययनशील हैं। एक-एक शब्द से लग रहा है कि मोती बिखेर दिये हैं।

    आपको मेरा ढेर सारा आशीर्वाद और शुभकामनाएँ। आपकी यह समीक्षा सही मायने में समालोचना है....आपने अच्छाइयां भी तो बतायी हैं। कुमार विश्वास में दम्भ बहुत हो चला था....ऐसी सच्ची समीक्षा/समलोचना से कुछ अंकुश तो लगेगा ही।

    जवाब देंहटाएं
  49. बेनामी12:27 am

    Train mein hoo. Abhi ek mitra ka SMS mila. Pata chalaa ki Kumar pe koi dhamaakedaar Tippani chhapi hai so haazir hoo. Mitra ka dhanyawaad ki itni pyaaree samiksha padhne ko milee.

    Shri Jitendra Ji badhaaee ke paatr hain- eemaandaari keliye. Samikshak hone ki jimmedaari nibhaanaa koi Jauhar ji se seekhe.

    Ratlami Ji...
    'Abhinav Prayaas' patrikaa ka address bhi publish keejiye taaki Jauhar ji se ham bahut kuchh grahan kar saken.

    जवाब देंहटाएं
  50. जितेन्द्र जौहर का नियमित समीक्षा स्तम्भ पत्रिका अभिनव प्रयास में प्रकाशित होता है. यह समीक्षा इस पत्रिका में पूर्व प्रकाशित है. यहाँ इसका संपादित स्वरूप ही दिया गया है. संपूर्ण असंपादित समीक्षा अभिनव प्रयास में उपलब्ध है.
    पत्रिका-अभिनव प्रयास, स्वरूप-त्रैमासिक, संपादक-अशोक अंजुम, मूल्य-रू.15(वार्षिक150रू.), संपर्क-615,ट्रक गेट, कासिमपुर, अलीगढ़ उ.प्र (भारत)

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  51. बेनामी8:09 am

    "dr.kumar vishvas ki uttam sahitya rachna se aap bhalibhanti parichit hain ? aap koun hain parichya dijiyega apna agr aapko sharm na ho to."

    - ये लिखने वाले महाशय ’शर्म/बेशर्म’ की बात कर रहे हैं। बंधुवर... तुम्हें कौन सी शर्म सता रही थी जो अपना नाम न देकर, "बेनामी" बनकर अवतार ले बैठे। अपना नाम बताओ...चलो मैं भी फिर इस ईमानदार समीक्षक के सामने खुलकर आता हूँ। और हां....फर्जी आईडी न बनाना। 'नित्यानंद' और 'sanvi' आदि नाम से।

    जौहर साहब, मैंने कल दर्जनों लोगों को पढ़्वाया आपका ये लेख...उनमें दो लोग छंद के गहरे जानकार थे...उन्होंने भी आपके तर्क अकाट्य बताए हैं....आप चिंता न करें..............हम सब आपके साथ हैं।

    और ये लोग अगर आपको ऊपर इंग्लिश में लिखकर बताई गई कविताएं भेजें, तो आप उनकी चुनौती स्वीकार कर लीजिएगा। मुझे मालूम है कि कुमार में कितना कविता है....और कितनी पैंतरेबाजी है।

    जवाब देंहटाएं
  52. निंदक नियरे राखिये...
    सच्चा मित्र वही होता हैं जो आपकी प्रशंसा न करे अपितु सही बात से आपका साक्षात्कार कराये. किस्मत वाले होते हैं जिन्हें स्तरीय समीक्षक मिलते हैं. मैं डॉ.कुमार विश्वास का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ. मंच पर यदि किसी को जादूगर की संज्ञा सही मायेने में दी जा सकती हैं तो वो डॉ.कुमार विश्वास हैं. मैंने उनसे मंच पर प्रस्तुति के विषय में बहुत कुछ सीखा हैं. मेरे आरम्भ के दिनों में अक्सर वो सञ्चालन में एक बात मेरे लिए कहा करते थे की ये युवा कवि शिल्प में कमज़ोर हो सकता हैं पर भाव पक्ष से आप सुनेंगे तो अच्छा लगेगा. मैं उनकी ये टिप्पडी सहर्ष स्वीकार करता था..क्योकि मुझे पता था की वो व्याकरण की द्रष्टि से मुझसे अधिक जानते हैं...आज उन्ही की पंक्तियों में यदि समीक्षक ने तथ्यपूर्ण तरीके से प्रश्न-चिन्ह लगाया हैं तो उन्हें स्वीकार करने में शायद कोई आपत्ति नहीं होगी...

    जवाब देंहटाएं
  53. shri jagannath prasad das (bhau kavi) ke dwara virchit "hindi chand prabhakar" namak pustak Utter pradesh hindi sansthan ne chhpee hai. jo k 1929 ke baad pahli bar prakashit hui hai. is pustak ko dhyan poorvak padhne se kavi log apni rachnaaon ko theek kar sakte hain. mera anurodha un kaviyon se vishesh roop se hai jo prashidhdh to hain par sidhdh nahee hain. shri bhagwan dixit

    जवाब देंहटाएं
  54. बेनामी12:45 pm

    सौरभ बाबू की बात काफी हद तक सही है....मेरा मानना है कि कुमार विश्‍वास को मंच का पर्फार्मर तो कह सकते हैं, लेकिन साहित्यकार नही कहा जा सकता....कत्तई नही. कुमार ने युवाओ को इश्क-विश्क की तुकबंदियों से सस्ता मनोरंजन दिया है. गीतकार तो नीरज जी हैं, सोम जी को भी मैंने सुना है.....मुझे अच्छे लगे..... और भी कई लोग हैं. बहुत पहले एक बार देवल आशीष को लालकिले से कविता पढ़ते हुए सुना था......उस युवा का गला भी अच्छा था, गीत भी......आजकल पता नही कहां हैं. इधर बीच विष्नु सक्सेना जी काफी चर्चित हैं. उन्होंने मंच पर कभी भोंड़ापन नहीं दिया और न चुटुकुले सुनाए. मैं कविता का अदना सा पाठक और श्रोता हूं....थोड़ा बहुत लिख भी लेता हूं. बस इतना जानता हूं कि जीतेन्द्र जौहर जी ने बड़ी मार्के की बातें लिखीं हैं.....कुमार विश्वास ही नहीं, तमाम मंच वाले लोग उनसे काफी कुछ सीख सकते हैं.

    सौरभ की ये वाली बात भी अच्छी लगी-
    "युवा कवि शिल्प में कमज़ोर हो सकता हैं पर भाव पक्ष से आप सुनेंगे तो अच्छा लगेगा. मैं उनकी ये टिप्पडी सहर्ष स्वीकार करता था..क्योकि मुझे पता था की वो व्याकरण की द्रष्टि से मुझसे अधिक जानते हैं...आज उन्ही की पंक्तियों में यदि समीक्षक ने तथ्यपूर्ण तरीके से प्रश्न-चिन्ह लगाया हैं तो उन्हें स्वीकार करने में शायद कोई आपत्ति नहीं होगी..."

    मंच से दूसरे पर टिप्प्ड़ी करना आसान होता है....खुद पर की गयी टिप्पड़ियां झेलना कठिन. यदि कुमार विश्वास अपनी मुक्तकों को बहुत अच्छा मानते हैं, तो मानते रहें. जीतेन्द्र जी ने तो स्वस्थ विचार रखे हैं, यह मुझे लगता है. मैं तो ऐसे विद्वान के पास में बैठकर कविताई सीखना चाहूंगा.

    आज का युवा वैसे भी भटकाव का शिकार जान पड़ता है. ऐसे में उन्हे "पागल कहता है....दीवाना कहता है" जैसी रचनाएं नहीं सुनानी चहिए. उसे अच्छा रास्ता दिखाया जा सकता है.

    और एक बात..... यदि आप सारे विद्वान लोग ध्यान दें...मैं बहुत मन से कवि सम्मेलन सुनने जाता हूं. लेकिन जब लौटता हूं तब ऐसा लगता है कि बेकार में रात खराब की. ऐसी वैसी अश्लील बातें कि मां बहने बेटियां शर्मिंदा हो जाएं. क्या ये लोग अपनी बहन बेटी के सामने उस तरह की अंड बंड कविताएं सुना सकते हैं? शायद नहीं.....तब मेरी बहन बेटी का खयाल ये लोग क्यों नहीं रखते? मुझे इससे ज्यादा कुछ नहीं लिखना. अगर कोई गलती हो गयी हो तो एड्वांस में माफी चाहता हूं.

    जीतेन्द्र जी के प्रति मेरा मन श्रद्धा से भर उठा है. उन्हें मेरा प्रणाम और सौरभ बाबू को शुभकामना कि उन्होंने सही बात कही.

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  55. बेनामी6:01 pm

    sameekshak mahoday, Gautam ji aur doosre benami kumaar prashansko ke jawaab bhi den to uttam hoga....yahan to aisa prateet hota hai mathmatics ke ek hi formule se sawaal ka hal nikaalne waale buddhijevi type log ikaathey hain....aur tipiya kar apni-apni buddhimatta ka pramaan de rahe hain.....aap wo log hain jo Hindi ko apni jaageer samajhte hain....use itna klishth bana do ki aam aadmi dare.... Jayshankar prasaad ko kaun padhta hai sivaay hindi students ke ? Neeraj aur harbans ji to sabhi ki zubaan par hai....aapki chinta ki vishayvastu kya hai ? yuvaon ko hindi ke prati jagrat karna? ya hindi gyaan University ke hindi department tak seemit rakhna....ya fir amuk vyakti ki badhti hui lokpriyta aur saath hi saath vaibhav dekh kar irshya karna ?

    Jo Chaatukaaro aur yuvaon par tohmat jad rahe hai na aap ....agar sahi arth mein yuva aur chatukaar Ikatthey ho gaye to aapka System crash ho jaayega....Net connection bardast nahi kar paayega..

    comments publish karne ka bhi moderation lagaya hua hai? aitraaj sameeksha se nahi hai....aitraaz jhoothe aur galat ilzaamon se hain jo bewajah lagaye jaa rahe hain...

    Umeed hai Jauhar ji sawalon ke jawaab bhi denge.....sirf sameeksha se unki jimmedari khatm nahi ho jaati

    Harshit

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  56. बेनामी6:53 pm

    yuva man bhatak raha hain...... kyun bhai koun sa galat kaam kar diya kisi yuva ne kumar visvash ji ko sunne ke baad ? koun sa nuksan ho gaya?

    aur dr.kumar vishvas ki manchiya shaili ka jimmedar swayam manch hi hain. jab ve kavi sammelano me aaye tab bhi mancho par kuchh apvad hata diye jaye to aisa hi mahoul tha. aur dewal ashish ji bahut achhe geetkar hain bahut sahi baat hain. dr.kumar vishvas ke geet padhe ya sune hain aapne? unhe padhiye fir unki gunvatta par sawal dagiyega.


    aman dalal

    जवाब देंहटाएं
  57. बेनामी10:20 pm

    उसूलों पर अगर आँच आये तो टकराना ज़रूरी है। ज़िन्दा हो अगर तो ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है।। ---वसीम बरेलवी मि. अमन दलाल जिस बारे में पूरी जान कारी न हो वहाँ वक्तव्य देना ज़रूरी नहीं है। इस व्यक्ति का तो वो अपराध है जो क्षमा योग्य भी नही है। इसने युवा पीढ़ी को हिन्दी कविता के माने सिर्फ ये बताया है कि 4 मुक्तक और 40 अश्लील चुटकले\। अगर सही माने में गीत्कार हो तो चुटकलो का सहारा क्यों? क्या अप्की गीत की दुकान में माल कम है। अगर जौहर जी किसी की समीक्षा कर रहे हैं तो आप बर्दाश्त भी नहीं कर पा रहे। खेल को खेल की भावना से खेलिये। इस चर्चा में अपशब्दों का प्रयोग वातावरन को दूषित करेगा। और आपका स्तर भी गिरेगा।

    जवाब देंहटाएं
  58. ईमेल से प्राप्त टिप्पणी-

    Sir,
    Kindly post my comments at Rachanakar as I am responding from mobile.

    I request all responders to avoid anonymity and say truthful facts on
    what they feel. If their comments have no factual info or relevance
    then it is all waste. Many people react with anonymity and change
    their names/IDs very frequently which is grossly unfair. I wonder at
    the silence of Dr Vishwas. That really tantamounts to his acceptance
    of committing mistakes in the said poetic expressions. Mr Jauhar
    deserves all praise for offering his just and truthful comments
    herein. He has acted gracefully by maintaining his calm and cool at
    certain irritating comments from the so called anonymous supporters of
    Dr Vishwas.
    Ashwani Roy

    जवाब देंहटाएं
  59. बहुत ही गहन समीक्षा की है आपने ... आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  60. यहाँ आई तमाम टिप्पणियों को पढ़ने के बाद, फिर से कुछ लिखने से खुद को रोक नहीं पाया| अब डा० कुमार की लोकप्रियता का ये भी एक पहलू है कि इसी "रचनाकार" ब्लौग के किसी पोस्ट पर इतनी टिप्पणियाँ तो पहले कभी नहीं मिली| बस एक कुमार विश्वास के नाम ने इतने लव-हेट की प्रतिक्रियाओं को इकट्ठा करावा दिया|

    मुझे कुमार विश्वास पसंद हैं| उनका बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ मैं या ऊपर लिखे कुछ महानुभावों के शब्दों में कहूँ तो बहुत बड़ा चाटुकार हूँ उनका| तुम्हारे प्रशंसक भए प्रशंसक और कुमार के प्रशंसक हुये उनके चाटुकार तो यही सही| वैसे मुझ जैसे अदने से फौजी को कुमार विश्वास की चाटुकारिता से क्या मिलने वाला है, ये मेरे छोटी सी समझ से परे है|

    जब मैंने एंथेम को बिम्ब या प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल होने की बात कही तो अश्विनी राय जी ने कहा है कि "बिम्ब कविता में होता है, कविता से बाहर नहीं"...शायद सच कह रहे हैं वो| मुझे इतना नहीं पता कि मैं तो बस कविता का प्रेमी हूँ| लेकिन अब ऐश्वर्या राय की आँखें मुझे अच्छी लगती हैं और मेरे जैसा अ-कवि उन आँखों को "झील सी गहरी" कह डालता है तो उन आँखों की तारीफ के लिए उन आँखों के प्रशंसक ओह सॉरी चाटुकारों द्वारा तारीफ करने के लिए बिम्ब का प्रयोग ही हुआ| यहाँ न ऐश्वर्या ही कविता है और न उसकी आँखें....

    मुझे हिन्दी के छंदों का ज्ञान नहीं है, उर्दू की बहरों का है| कुमार साब की ये पंक्तियाँ उर्दू की एक बहुत ही लोकप्रिय बहर, हजज की मुसमन सालिम बहर पर लिखी गई हैं और उस बहर पे बिलकुल दुरूस्त हैं, लेकिन जौहर साब ने जो भी लिखा है वो बिलकुल जायज है| यहाँ इस समीक्षा में जौहर साब ने कवि की कविता पे उसकी शास्त्रीयता को लेकर सवाल उठाए हैं और बड़े ही सटीक सवाल उठाए हैं, लेकिन तमाम टिप्पणीकर्ता उससे परे होकर कुमार विश्वास के पीछे ही जाने क्यों लट्ठ लेकर पर गए हैं, जो कि मुझे वाज़िब नहीं लगता|

    मैं कुमार विश्वास से बस एक बार मिला हूँ| उनकी कविताओं, उनकी प्रस्तुति का तो खैर पहले से ही प्रशंसक ओह मेरा मतलब चाटुकार था,लेकिन उस मुलाक़ात में उनकी स्मरण-शक्ति, उनके विलक्षण अध्ययन की वजह से उनका और-और प्रशंसक हो गया हूँ| दुनिया कुछ भी कहती रहे उनके बारे में| मैं उस कुमार विश्वास का भी प्रशंसक हूँ जो मेरी पहली कहानी हंस में छपने पर मुझे फोन करके डांट लगाता है कि छपने के लिए इतनी कमजोर सी कहानी क्यों लिखी| जो मुझसे कहता है कि वो अभी भी अपनी शुरुआती कमजोर रचनाओं का लोकप्रिय हो जाने का दंश झेल रहे हैं, इसलिए नहीं चाहते कि मैं भी वही गलती करूँ| ...तो ये भी एक पहलू है इस तथा-कथित अपने चाटुकारों से लिपटे कवि का|

    उनकी कवितायें बेशक कमजोर हों, लेकिन हाऊ डू यू डू और एमीनेम के रैप गानों में उलझी पीढ़ी का एक बड़ा हिस्सा कम से कम उनकी पंक्तियों की बदौलत भ्रमर, कुमुदिनी और पीर जैसे हिन्दी शब्दों का इस्तेमाल तो करता है|

    जौहर साब का ये स्तम्भ महज कवि-विशेष की कविताओं का विश्लेषण करता है न कि उनकी कथित सस्ती लोकप्रियता या मंच-प्रदर्शन का| कमाल है कि इतने बड़े-बड़े नाम यहाँ टिप्पणी कर रहे हैं और इतनी सी जाहिर बात को नजर-अंदाज़ कर रहे हैं|

    खैर, शायद यही कुमार विश्वास की लोकप्रियता का आलम है कि each one of us either love to hate him or hate to love him...

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  61. बेनामी7:18 pm

    " "dr.kumar vishvas ki uttam sahitya rachna se aap bhalibhanti parichit hain ? aap koun hain parichya dijiyega apna agr aapko sharm na ho to."

    - ये लिखने वाले महाशय ’शर्म/बेशर्म’ की बात कर रहे हैं। बंधुवर... तुम्हें कौन सी शर्म सता रही थी जो अपना नाम न देकर, "बेनामी" बनकर अवतार ले बैठे। अपना नाम बताओ...चलो मैं भी फिर इस ईमानदार समीक्षक के सामने खुलकर आता हूँ। और हां....फर्जी आईडी न बनाना। 'नित्यानंद' और 'sanvi' आदि नाम से।

    जौहर साहब, मैंने कल दर्जनों लोगों को पढ़्वाया आपका ये लेख...उनमें दो लोग छंद के गहरे जानकार थे...उन्होंने भी आपके तर्क अकाट्य बताए हैं....आप चिंता न करें..............हम सब आपके साथ हैं।

    और ये लोग अगर आपको ऊपर इंग्लिश में लिखकर बताई गई कविताएं भेजें, तो आप उनकी चुनौती स्वीकार कर लीजिएगा। मुझे मालूम है कि कुमार में कितना कविता है....और कितनी पैंतरेबाजी है।

    """"

    ye comment jinhone bhi diya hain wo BENAMI nahi hain ?
    jankaaro ki baat karte hain ?
    apna naam batyiyega fir baat karenege.

    main rajrishi ji aur harshit se poori tarah sahmat hun. aman

    जवाब देंहटाएं
  62. अच्छा विश्लेषण किया है आपने

    जवाब देंहटाएं
  63. nइस बहस में भाग लेने वालों का धन्यवाद, जिन्होंने जाने-अंजाने इस ब्लाग के लिखे जाने के उद्देश्य को सम्पूर्णता प्रदान की। एक नाम-विशेष की चर्चा होने से ही यह ब्लाग अचानक आकर्षण का केन्द्र बन गया। पर आप सबों से प्रार्थना है कि चर्चा के केन्द्र-बिन्दु डा कुमार विश्वास की अनुपस्थिति का ध्यान रखते हुए टिप्पणियां की जानी चाहिए। दूसरी बात यह, कि कुछ टिप्पणियों को पढकर ऐसा लग रहा है कि बिना उपर की चर्चा को ठीक से पढे ही किसी विशेष प्रयोजन के लिए जल्दबाज़ी में टिप्पणी कर दी गई हो। जैसे कई लोग अब तक इसी बात पर उलझे हुए हैं कि डा कुमार के गीत को ‘नेशनल एंथेम’ का दर्ज़ा कैसे दिया जा सकता है, जबकि यहां बात ‘यूथ एन्थेम’ की हो रही है, न कि नेशनल एन्थेम की।
    इसमें जहां तक मुक्तक-समीक्षा और विवेचना की बात है, वहां तक तो सब सही लग रहा है, परन्तु इसमें कुछ कविनुमा लोगों की अतिरिक्त रूचि और फ़ेसबुक में वाल-वाल घूम घूम पर इसका लिंक चिपकाना ‘समीक्षा’ की सीमा से बाहर है। ये कविनुमा लोग अपनी कुंठा को जगजाहिर कर रहे हैं। jउनके प्रयास की भी सराहना की जानी चाहिए।
    आगे, गौताम जी ने बहुत ही अच्छी टिप्पणी की है। उनको बधाई। उन्होंने यह साबित किया है कि वो सिर्फ़ वर्दी के फ़ौजी नहीं हैं, बल्कि मन से भी हैं। इन बेनामी टिप्पणियों की बौछार के बीच उन्होंने अपनी बात बहुत ही संजीदा तरीके से रखी है।
    अब समीक्षक महोदय से मुखातिब हो कर यह कहना चाहूंगी कि आपने अपनी जानकारी के हिसाब से बिल्कुल सही समीक्षा लिखी है। छंद का इतना ज्ञान भाषा की स्नातक स्तर की पढाई में प्रथम वर्ष में ही दे दिया जाता है, और उसके आलोक में आपने दो पन्नों में काफ़ी मेहनत की है। लेकिन यूनिवर्सिटी की पढाई से आगे शिक्षा समाप्त नहीं हो जाती। इसके आगे का ज्ञान उस्तादों को पढने और उनकी सोहबत से आता है। बिना किसी मुनव्वर राना, वसीम बरेलवी, अब्बास ताबिश या अहमद फ़राज़ का हवाला दिए यह कहना चाहूंगी, कि छंदोदबद्ध शायरी में ‘ग़लत-उल-अवाम-फ़सीह’ को उस्तादों ने जगह दी है। इसका मतलब यह होता है, कि यदि आपकी किसी रचना में कोई मात्रा का cदोष है, लेकिन फिर भी अवाम उसको अपना लेती है, तो वह रचना नज़ीर बन जाती है। ऐसा बड़े उस्ताद ग़ालिब के यहां भी हुआ है। उम्मीद है कि आप उनकी ग़ज़लों को समीक्षा के चपेटे में नहीं लेंगे। डा विश्वास की रचनाओं को अवाम ने अपनाया है, इस बात से तो आप भी इत्तेफ़ाक़ रखते ही होंगे।
    वैसे, जब चर्चा डा कुमार विश्वास की रचनाओं की हो ही रही है, तो आप सब को निमंत्रण देना चाहूंगी, कि आप डा विश्वास की अन्य रचनाएं- ‘है नमन उनको’, ‘मांग की सिंदूर रेखा’, ‘मदयंतिका’, ‘रूपा-रानी’ इत्यादि पढ कर उनके काव्य-शिल्प के बारे में कोई निष्कर्ष निकालें।
    अंत में यह, कि डा कुमार विश्वास की इन ही पंक्तियों (मुक्तकों) ने हिन्दी और हिन्दी कविता से दूर जा रही एक पूरी युवा पीढी को फिर से भाषा की गोद में ला कर रख दिया है। अब भाषा के अन्य पुत्रों से अनुरोध है कि उसे पालने में सहयोग दें, न कि सौतेला समझ कर उसका विरोध करें।
    - रूचिका

    जवाब देंहटाएं
  64. बेनामी11:48 pm

    गौतम राजर्षि की यह बात कि----
    "कुमार की लोकप्रियता का ये भी एक पहलू है कि इसी ’रचनाकार’ ब्लौग के किसी पोस्ट पर इतनी टिप्पणियाँ तो पहले कभी नहीं मिली|बस एक कुमार विश्वास के नाम ने इतने लव-हेट की प्रतिक्रियाओं को इकट्ठा करावा दिया|"

    इससे श्री जौहर जी की शानदार और तर्कसंगत समीक्षा को कमतर आंकने की नाजायज कोशिश है. गौतम राजर्षि जी जरा यह दरयाफ़्त करके बात करें कि "रचनाकार" पर आयी हुयी अन्य स्मीक्षाओं में क्या इतनी जोरदारी से तर्क देकर कभी बात उठाई गई है? बेशक "रचनाकार" पर तमाम स्मीक्षाएं पहले भी आती रही हैं......और आ रही हैं....उनका भी अपना स्तर है. लेकिन इस समीक्षा में आदरणीय जौहर साहब ने दूध और पानी को "हंस" बनकर अलग अलग करके रख दिया है. इसलिए आप्का ये कहना कि कुमार के चलते ये प्रतिक्रियाएं आ रही रही हैं, सरासर गलत है.

    आपकी ये बात कि-----
    "लेकिन अब ऐश्वर्या राय की आँखें मुझे अच्छी लगती हैं और मेरे जैसा अ-कवि उन आँखों को "झील सी गहरी" कह डालता है तो उन आँखों की तारीफ के लिए उन आँखों के प्रशंसक ओह सॉरी चाटुकारों द्वारा तारीफ करने के लिए बिम्ब का प्रयोग ही हुआ| यहाँ न ऐश्वर्या ही कविता है और न उसकी आँखें...."

    हे तर्कशास्त्री, कृपया बताइए कि क्या किसी ’कानी’ या ’अंधी’ महिला की आंखों को आप "झील से गहरी" कह डालेंगे? श्री जौहर जी ने दूसारे शब्दों में यही तो बात कही है----खुद पढ़ लीजिए----

    " ‘एंथेम’ शब्द के साथ जो गरिमा और गम्भीरता जुड़ी है,
    उससे यह मुक्तक दूर... कोसों दूर खड़ा है!"

    आपकी इस बात पर हंसी आ रही है कि कुमार से पहले हिन्दी वाले लोग भ्रमर और कुमुदनी जैसे शब्द नहीं जानते थे. आप्ने लिख मारा कि---- "उनकी पंक्तियों की बदौलत भ्रमर, कुमुदिनी और पीर जैसे हिन्दी शब्दों का इस्तेमाल तो करता है|" आप्की जानकरी के लिए बता दें कि जब कुमार पैदा भी नहीं हुए थे, तबसे हिन्दी वाले इन शब्दो को प्रोग में लाते रहे हैं।

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  65. बेनामी12:20 am

    अरे भाई.......मुझे तो यह लग रहा है कि यहां भैंस को अक्ल से बड़ा बताने की अजीबोगरीब कोशिश करी जा रही है। जो भी हो.....जौहर जी का जौहर सलाम करने के काबिल है। ऐसे समीक्षक को पाकर कुमार बाबू को शुक्रिया बोलना चाहिए था। गलतियां सीकारने में क्या जाता है? सौरभ सुमन ने सही कहा है कि - "किस्मत वाले होते हैं जिन्हें स्तरीय समीक्षक मिलते हैं."

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  66. श्रीमान बेनामी जी को नमन,

    जाने कैसे इस बेकार से बहस में उलझ गया हूँ मैं भी| खैर... आपके पहले प्रश्न के जवाब में इतना कह दूँ कि जौहर साब की समीक्षा मुझे भी पसंद आई है और इस ब्लौग पर इस समीक्षा के अवतरित होने से पहले ही मैं अभिनव प्रयास में पढ़ कर संपादक के नाम खत लिख चुका हूँ| कृपया कर मेरी दोनों टिप्पणी को ध्यान से पढ़ें, मैंने जौहर साब की तारीफ ही की है| आपने कहा कि "रचनाकार" पर इससे पहले इतनी शानदार और तर्कसंगत समीक्षा के पहले नहीं आई है, तो जौहर साब ने अपने इसी स्तम्भ की पहली किश्त को जो मुनव्वर राणा की ग़ज़लों की धज्जियाँ उड़ाती है और जो इतनी ही शानदार और तर्कसंगत है, को क्यों नहीं लगाया इस ब्लौग पर? इस किश्त को लगाने के बाद बकायदा इसका लिंक सबको मेल किया गया? यही काम इस समीक्षा की पहली किश्त को लेकर क्यों नहीं किया गया? फिर देखते आप भी कि उस पर कितनी टिप्पणियाँ आती हैं और फिर मैं भी देखता कि आप बेनामी होकर कितनी बार आते टिप्पणी करने|

    ...और मैं कोई तर्कशास्त्री नहीं हूँ, सर| मैं एक निरा मूढ़ सा कविता प्रेमी हूँ| कानी अंधी महिला का कोई पगलाया सा दीवाना होगा तो यकीन मानिए उसे अपनी प्रेमिका की आँखें झील सी ही लगेंगी| मेरा कहने का मंतव्य महज इतना ही था और है कि कुमार की इन पंक्तियों को यूथ एंथेम कहने का दुस्साहस कुमार साब के ऐसे ही दीवाने प्रशंसकों का है|

    तीसरी और आखिरी बात कि आपने टिप्पणी में मेरी पूरी बात पढ़ी नहीं | मैंने कहीं नहीं लिखा है कि हिन्दी वाले लोग भ्रमर और कुमुदिनी जैसे शब्द नहीं जानते थे| गुरूवर, उत्तेजित होकर प्रतिक्रिया उगलने से पहले पूरी बात तो पढ़ लें| मेरा इशारा युवा पीढ़ी के उस हिस्से की तरफ है जो पूरी तरह अंग्रेजीयाई हुई है और जो फिर भी कुमार साब की इन पंक्तियों के बहाने हिन्दी के इन शब्दों का इस्तेमाल करती है| आपने मेरे एक सम्पूर्ण वाक्य का थोड़ा सा हिस्सा उठा लिया संदर्भ देने के लिए| पूरा वाक्य तो पढ़ लेते|

    ...और इतनी अच्छी अच्छी बातें लिख रहे हैं आप, तो ये छुपाव कैसा? जौहर साब की इतनी बेमिसाल समीक्षा की तौहीन तो आप कर रहे हैं| उनमें इतनी हिम्मत तो है कि बेबाकी से बात भी कहते हैं और पूरे डंके की चोट पर अपने नाम और तस्वीर के साथ भी| आप उनको पसंद भी कर रहे हैं और छुपे हुये भी हैं....माजरा समझ में नहीं आ रहा|

    जवाब देंहटाएं
  67. बेनामी1:30 pm

    आदरणीय जीतेन्द्र जी की यह समीक्षा--- "चार पंक्तियाँ, चौदह ग़लतियाँ"----- इतनी बेबाक, गहन और तथ्यपूर्ण है कि मैं उनका प्रशंसक हो गया हूँ। उन्होंने कितनी बारीकी से दमदार विवेचना की है। आजकल के समीक्षकजन इतनी निर्भीकता और ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी कहाँ निभाते हैं.....उसके लिए हिम्मत चाहिए होती है....जौहर जी में यह हिम्मत भरपूर दिखाई दे रही है।

    कुमार विश्वास मंचों पर अपना प्रभाव जमा लेते होंगे....लेकिन इस समीक्षा से जीतेन्द्र जी का उससे कोई वास्ता नहीं झलक रहा है। उन्होने तो सिर्फ़ साहित्य के हित में अपनी बात लिखी है....कुमार विश्वास के विरोध में नहीं। और फिर....यदि कोई कवि मंचों पर जाता है, तो उसे अपनी कविता में निखार लाने के लिए बारीकियों को सीखना भी चाहिए। जीतेन्द्र जी ने तो फ्री में ही कुमार विश्वास को इतना सिखा दिया है.....इसके लिए उनके समर्थकों/प्रशंसकों (मैं "चाटुकार" नहीं कहूंगा) को उनका आभारी होना चाहिए था।

    कुमार जी से कहना चाहूँगा कि कोई अपने में पूर्ण नहीं होता है। आपको बुरा मानने की बजाय इस समीक्षा से सीखना चाहिए था। इस बात को ऊपर कई लोगों ने कहा भी है। सच्ची कहता हूँ कि आपकी जगह पर मैं होता, तो जीतेन्द्र जी को अपना गुरु या दोस्त बना लेता।

    मुझे भी कुमार विश्वास की निन्दा या फिर प्रसंशा से कोई लेना-देना नहीं है। मैं सही बात का समर्थक हूँ। मैं इस समीक्षा से काफी कुछ नया सीखकर जा रहा हूँ। जीतेन्द्र जी....आपका मैं प्रशंसक हो गया हूँ। आपको मेरा प्रणाम।

    और हाँ....मैं किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहता....बस इसलिए ’बेनामी’ बनकर कमेंट कर रहा हूँ। वैसे किसी को बुरा नहीं लगना चाहिए। मेरा उद्देश्य किसी का दिल दुखाना नहीं है। सभी को नमस्कार....

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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रचनाकार: जितेन्द्र जौहर की काव्य समीक्षा : चार पंक्तियाँ, चौदह ग़लतियाँ
जितेन्द्र जौहर की काव्य समीक्षा : चार पंक्तियाँ, चौदह ग़लतियाँ
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