अमित अपनी बुआजी के पास रहता है। उसके फूफाजी का एक स्कूल है। अमित भी उस स्कूल में कक्षा पांच का विद्यार्थी है। पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने, इस...
अमित अपनी बुआजी के पास रहता है। उसके फूफाजी का एक स्कूल है। अमित भी उस स्कूल में कक्षा पांच का विद्यार्थी है। पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने, इसीलिए अमित यहाँ रहता है। अमित के फूफाजी, बुआ जी भी इस विद्यालय में रहते हैं। विद्यालय के एक कोनें में उन्होंने एक सुन्दर सा घर बना रखा है। बुआजी के बेटे बबलू लखनऊ से डाक्टरी पढ़ाई कर रहे हैं। दीपू और गुडि़या बुआजी के साथ ही रहते हैं। विद्यालय के बीचोंबीच में एक बड़ा सा घास का मैदान है जिसकी घास की कटिंग के लिए हर महीने बाहर से एक माली आता है। माली अपने साथ एक गोल-गोल मशीन भी लाता है। जिसके धकेलने पर मैदान की घास छोटी-छोटी हो जाती है। छोटी होने पर घास बहुत सुन्दर लगने लगती है। मखमली सी। अमित उस पर अपना हाथ फिराकर देखता है। शा के समय अक्सर गुडि़या दादी और दीपू भैया के साथ वह भी घास पर बैठकर पढ़ता है।
गुडि़या दादी को कबूतर और खरगोशों से बहुत प्यार है। उन्होंने घास के मैदान के एक कोने में ईटों का एक छोटा सा कटघरा बनवा दिया है। उसके दो हिस्से हैं। नीचे के हिस्से में भूरे-भूरे 2-3 खरगोश रहते हैं। ऊपर के हिस्से में सफेद रंग के ही 4-5 कबूतर। कबूतरों वाले हिस्से में छोटे-छोटे मिट्टी के दो बर्तन रखे हैं। जिनमें से एक में गेहूँ-बाजरा के दाने रखे रहते हैं। दूसरे बर्तन में पानी भरा रहता है।
कबूतरों का जब मन करता है दाना चुगने लगते हैं और जब मन करता है गुटरगूँ गुटरगूँ करते हुए गोल-गोल नाचने लगते हैं। कबूतरों का नाचना अमित को भी बहुत अच्छा लगता है।
खरगोश हरी-हरी घास खाते हैं। उन्होंने अपने कटघरे में नीचे जमीन में गड्ढे बना लिए हैं। उनका जब मन करता है तब उन गड्ढों में घुसकर आराम फरमाते हैं और जब मन करता है, ऊपर निकलकर दरवाजे की जगह लगी जाली में से देखने लगते हैं। अमित उन्हें हरी-हरी घास, उस जाली में से ही देता है। घास को अन्दर खींचकर वे चबाने लगते हैं। देख-देखकर अमित खुश होता है।
फूफाजी ने विद्यालय में दो कुत्ते भी पाल रखे है। एक कुत्ते का रंग सफेद-काला, चितकबरा सा है। दीपू भैया ने उसका नाम बादल रख दिया है। दूसरे कुत्ते का रंग बादामी जैसा है। उसका नाम जैकी है। जैकी बादल से थोड़ा बड़ा और तेज है जबकि बादल छोटा और सुस्त। दोनों कुत्तों को जंजीर में बांधकर रखा जाता है ताकि विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों को काट न लें।
दीपू भैया बादल और जैकी को टहलाने ले जाते हैं। सुबह का काम अमित के फूफाजी का है वे सुबह पांच बजे ही जाग जाते हैं।
बादल और जैकी के कारण किसी चोर उचक्के की, अन्दर आने की हिम्मत नहीं होती। जरा सी आहट होते ही वे दोनों भौंक-भौंक कर इतना शोर मचाते हैं कि बाहर के आदमी की तो हिम्मत ही न पड़े। कुत्ते के काट लेने पर रैबीज के मोटे-मोटे 12 इंजेक्शनों के डर से कोई बाहरी व्यक्ति उस क्षेत्र में घुसने की हिम्मत नहीं करता। जैकी और बादल को, रात के समय भी जंजीर में बांध कर रखा जाता है। ऐसा न हो कि किसी दिन किसी कबूतर या खरगोश को ही मार दें। कभी-कभी जैकी जंजी को खींच-खींच कर, खुलने की कोशिश करने लगता है। ऐसा करने पर अमित के फूफाजी उसे डांट देते हैं। जैकी मन मार कर चुप बैठ जाता है।
एक दिन रात को सभी सो रहे थे अचानक जैकी जोर-जोर से भोंकने लगा। सबकी नींद टूट गई। दीपू के पापा ने उठकर देखा - जैकी कबूतरों के कटघरे की ओर मुँह करके जोर-जोर से भौंक रहा था। उन्होंने कबूतरों और खरगोश के कटघरे के पास जाकर देखा। वहाँ कुछ नहीं दिखा तो वे फिर सो गये। थोड़ी देर बाद जैकी ने फिर भौंकना शुरू कर दिया। अमित के फूफा ने इस बार जैकी की जंजीर को पेड़ से खोल दिया। जैकी भागा-भागा कबूतरों के कटघरे के पास गया और किसी कांटेदार चीज हो अपने पैर के पंजों से ठेलने लगा। टार्च की रोशनी में देखा तो वह पर्वती चूहा था जो जैकी द्वारा ठेलने
पर अपना मुँह अन्दर घुसाकर गोल गेंद सा हो गया था। उसके कांटेदार शरीर पर पंजे मारने से जैकी के पंजों से खून निकल आया था पर उसे बाहर फेंककर ही जैकी रूका।
एक रात फिर से जैकी ने भोंकना शुरू कर दिया। दीपू, गुडि़या, अमित सभी जाग गये। अमित के फूफाजी ने उस डांटा लेकिन उसने भौंकना बंद नहीं किया। वे जैकी के पास आये तो देखा कि जैकी ने अपनी जंजीर खोल ली है और वह दौड़-दौड़ कर कभी खरगोशों के कटघरे की ओर जा रहा है तो कभी विद्यालय के पश्चिमी कोने में बनी क्यारियों की ओर। वे समझ नहीं पाये कि जैकी ऐसा क्यों कर रहा है।
उन्होंने खरगोश के कटघरे को गौर से देखा। दो खरगोश मरे पड़े थे अब तो अमित के फूफाजी को क्रोध आ गया। जरूर ही ये जैकी की करतूत है। जंजीर में से खुलकर इसने दोनों खरगोशों को मार डाला है।
उन्होंने जैकी को जंजीर में बांधा और जोर-जोर से पीटना शुरू किया। जैकी को बुरी तरह पिटता देख अमित रो पड़ा- ‘‘नहीं फूफाजी, जैकी को मत मारो।''
दीपू और गुडि़या ने भी कहा - ‘नहीं, पापा, हमारा जैकी खरगोशों को नहीं मार सकता, आप इसे मत मारो। लेकिन वे जैकी को पीटते ही रहे। क्रोध में मनुष्य अपना विवेक खो बैठता है। उनपर भी क्रोध का भूत पूरी तहर सवार था। पिटते-पिटते जैकी गिर पड़ा तो वे उसे ऐसे ही छोड़कर जाकर सो गये।
सुबह को सब लोग जागे तो जैकी को देखा। वह पिटाई से अधमरा जैसा हो गया था। गुडि़या और दीपू ने जैकी के शरीर पर हाथ फिराया तो जैकी की आँखों से आँसू निकल पड़े और वह दोनों को चुपचाप देखने लगा। जैसे कहना चाह रहा हो कि मैंने खरगोशों को नहीं मारा।
अमित भी जैकी की इस हालत को देखकर रो पड़ा।
दीपू ने जैकी की जंजीर खोली तो वह लंगड़ाते हुए धीरे-धीरे विद्यलाय के उसी पश्चिमी कोंने में बनी क्यारियों की ओर जाने लगा। पीछे-पीछे अमित, दीपू, गुडि़या और उनके मम्मी-पापा भी चले। दिन के उजाले में उन्होंने देखा कि वहाँ एक क्यारी में जंगली बिल्ला मरा पड़ा है। जैकी ने उसे खरगोशों को मारते हुए देखा होगा। तभी उसने जंजीर से खुलने की कोशिश की होगी। तब तक बिल्ला खरगोशों को मार चुका होगा। अगर जैकी जंजीर में बंधा न होता तो बिल्ला एक भी खरगोश को नहीं मार पाता। खूब भौंक-भौक कर उसने सभी को इसी लिए जगाना चाहा था। दिन के उजाले में सभी ने देखा जंगली बिल्ला ने अपने पैनें पंखों से जैकी के चेहरे को घायल कर दिया था। फिर भी जैकी ने जंगली बिल्ला को मार गिराया।
अमित ने पूजा जी को जब वास्तविकता पता चली तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ वे बहुत दुखी हुए। अनजाने में ही उन्होंने जैकी की बहुत पिटाई कर दी थी। उन्होंने बिना कारण जाने भविष्य में जैकी को कभी भी न पीटने की कसम खाई तो सभी बच्चे खुश हो उठे। जैकी ने भी दो पैरों पर खड़े होकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की।
‘‘आज जैकी को रात के समय बांधकर नहीं रखा जायेगा'' - अमित ने फूफाजी के इस एलान पर सभी बच्चे ताली बजाने लगे। जैकी भी उन्हें प्यार से देखने लगा। जैसे कह रहा हो कि मैं बोल तो नहीं सकता पर अपने मालिक के प्रति वफादारी ही मेरा कर्तव्य है।
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डॉ․दिनेश पाठक‘शशि' (संक्षिप्त परिचय)
जन्म ः 10 जुलाई 1957, गाँव-रामपुर (नरौरा), जिला-बुलन्दशहर (उ0प्र0)- 202397
पिता ः पं0 हरप्रसाद पाठक, माता ः श्रीमती चंपा देवी
शिक्षा ः एम0ए0 (हिन्दी), पी-एच0डी0(विषयः भारतीय रेल के साहित्यकारों का हिन्दी भाषा एवं साहित्य को प्रदेय), विद्युत इंजीनियरिंग
प्रकाशन ः सन् 1975 से स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं, संकलनों में कहानी, बाल कहानी, लघुकथा, लेख एवं समीक्षाओं का निरन्तर प्रकाशन यथा-
पत्र-पत्रिकाओं में ः कादम्बिनी, नवनीत, सारिका, साप्ता0 हिन्दुस्तान, वर्ष वैभव, कथाबिम्ब, पंजाब सौरभ, हरिगंधा, घर प्रभात, सेवन हिल्स, रमणी, सहेली समाचार, आकाशवाणी (हिन्दी), प्रतिबिम्ब, मोहन प्रभात, युवाहिन्द, हमारी पहल, षट्मुखी, पहुँच, सम्मार्जिनी, इरा इण्डिया, तारिका, किशोर क्रान्ति, मृगपाल, रूपकंचन, सुपरब्लेज, कजरारी, मुक्ता, मनियाँ, भूभारती, तुम्हारी मौत का जिम्मेदार, नवतारा, मित्र संगम, प्रौढ़ जगत, भारतीय रेल पत्रिका, रेल राजभाषा,रेल संगम, शब्दवर, मनमुक्ता, भाषासेतु, प्रतिप्रश्न, जगमग दीप ज्योति, अतएव, अक्षरा, कार्टूनवाच, डुमडुमी, ब्रजशतदल, जमुना जल, आकार, विश्वविवेक (अमेरिका), अमीबा, पंजाबी संस्कृति, हाइकू भारती, युवा सुरभि, सानुबन्ध, फाग, वामांगी, प्रयास, सम्यक्, अछूते सन्दर्भ,प्रणाम इंटरनेशनल, नारायणीयम्, मानक रश्मि, तरंग शिक्षा, सामाजिक आक्रोश, राजनैतिक समाचार पत्रिका, सन्मार्ग, विजय यात्रा, शोषितदुनिया, राष्ट्रीय श्रमिक, चौथी दुनिया, ब्रज गरिमा, जे․वी․जी․ टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा, निर्दलीय, लोक शासन, हम सब साथ-साथ, ब्रज सलिला, सरोजिनी, हाइकु दर्पण, शीराजा, डी․एल․ए․, अमर उजाला, दैनिक जागरण, उत्त्ार प्रदेश आदि।
बाल-साहित्य ः बालक, बालहंस, बाल नगर, बालमंच, देव पुत्र, बाल पताका, बाल साहित्य समीक्षा, बाल बाटिका, कुटकुट, चंपक, लल्लू जगधर, चिल्ड्रेन बुलेटिन, हरियाणा रेडक्रास, हिमांक रतन, स्नेह, बच्चों का देश, बाल स्वर, बाल मिलाप, उपनिधि, कमला वाटिका, बाल प्रतिबिम्ब आदि में।
संकलनों में ः अक्षरों का विद्रोह, स्वरेां का आक्रोश, कितनी आवाजें, उपहार, शिलालेख, सम्यक्, शब्दों के तेवर, व्यंग्य भरे कटाक्ष, व्यंग्य कथाओं का संसार, अछूते संदर्भ, अंधा मोड़(सभी लघुकथा संकलन), सवारी सरकार बहादुर की, आधी हकीकत, टुकड़ा-टुकड़ा सच (सभी लघुकथा संकलन), ऐतिहासिक बाल कहानियाँ, आधुनिक बाल कहानियाँ, इक्कीसवीं सदी की बाल कहानियाँ, बाल मन की कहानियाँ, फुलवारी (सभी बाल कहानी संकलन) साहित्य और उत्त्ार संस्कृति, कहानी जंक्शन, कहानियों का कुनबा, हिन्दी की श्रेष्ठ बाल कहानियाँ, इक्कीसवीं सदी की चुनिंदा दहेज कथाएं,चर्चित व्यंग्य लघुकथाएं आदि।
प्रसारण ः सन् 1980 से आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों मथुरा-वृन्दावन, दिल्ली, रोहतक, ग्वालियर एवं राष्ट्रीय चैनल दिल्ली से कहानी, ब्रज कहानी, कविता, नाटक एवं झलकियों का प्रसारण।
प्रकाशित कृतियाँ ः 1․ अनुत्त्ारित (कहानी संग्रह),
2․ धुंध के पार (कहानी संग्रह),
3․ बेडि़याँ (ब्रजनवकथा-संग्रह),
4․ हाँ, यह सच है (लघुकथा-संग्रह),
5․ अमर ज्योति (बाल कहानी-संग्रह)
6․ पुस्तकों की हड़ताल (बाल कहानी-संग्रह)
7․ अनुपम बाल कहानियाँ (बाल कहानी-संग्रह)
8․ सपने में सपना (बाल कहानी-संग्रह)
9․ जादुई अंगूठी (बाल कहानी-संग्रह)
10․ मेहनत का फल (बाल कहानी-संग्रह)
11․ मेरा जैकी (बाल कहानी-संग्रह)
12․ नई शिक्षा नई दिशा (बाल कहानी-संग्रह),
13․ किट्टी (बाल उपन्यास)
14․ भारतीय रेलः इतिहास एवं उपलब्धियाँ (शोध)।
'इन्टरनेट पर कुछ कहानी एवं बालकहानी तथा लघुकथाएं, एवं व्यंग्य रचनाएँ
'कुछ बाल कहानियाँ कक्षा 1, 2 एवं 6 की हिन्दी पाठ्य पुस्तकों में,
'कुछ बाल कहानियों का हिन्दी से अंग्रेजी, बंगला, मराठी आदि में अनुवाद तथा कुछ लघुकथाओं का पंजाबी में अनुवाद प्रकाशित,
व्यक्तित्व पर शोधः आगरा विश्व विद्यालय की छात्रा कु0शिखा तोमर द्वारा ‘‘कथाशिल्पी डॉ․दिनेश पाठक‘शशि' का हिन्दी साहित्य को प्रदेय'' विषय पर शोध किया गया है 2009 में।
संपादन ः 1․ समकालीन लघुकथा (ल․क․ संकलन),
2․ शब्दों के तेवर (ल․क․ संकलन),
3․ कदम-कदम समझौते (ल․क․ संकलन)․
4․ टुकड़ा-टुकड़ा सच (व्यंग्य संकलन),
5․ आधीहकीकत(व्यंग्य संकलन),
6․ इक्कीसवीं सदी की चुनिंदा दहेज कथाएँ (कहानी संकलन),
7․ आदमखोर (कहानी संकलन),
8․ कब टूटेंगी बेडि़याँ (दहेज ल․ कथा संकलन),
9․ धत् तेरे की (व्यंग्य-संकलन),
10․ सम्यक त्रैमा0 (लघुकथा विशेषांक),
11․ सम्यक् (महिला लघुकथाकार विशेषांक)
12․ बाल साहित्य समीक्षा (मथुरा साहित्यकार अंक),
13․ यू․एस․एम․ मासिक (मथुरा विशेषांक)
14․ बाल साहित्य समीक्षा (मथुरा संतोष कुमार सिंह अंक),
15․ बाल साहित्य समीक्षा (पं0 ललित कुमार वाजपेयी उन्मुक्त विशेषांक)।
संपादन सहयोग ः 1․ विजय यात्रा साप्ता0 सन् 1980-81,
2․ राष्ट्रीय श्रमिक (पाक्षिक) सन् 1980-81,
3․ सम्यक् (मासिक) 1996 से 2006 तक,
4․ हाइकु दर्पण (मासिक), अगस्त 2001 से 2005 तक,
5․ मसि कागद (मासिक) 2004 से जून 2006 तक।
पुरस्कार/सम्मानः 1․ भारत सरकार द्वारा प्रेमचंद पुरस्कार-1996
2․ राष्ट्रकवि पं․ सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्य पुरस्कार समिति चित्त्ाौड़गढ द्वारा सम्मानित-1998
3․ भारतीय बाल कल्याण संस्थान कानपुर द्वारा सम्मानित- 1999
4․ अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनन्दन समिति मथुरा द्वारा सम्मानित - 2000
5․ संभावना साहित्यिक संस्था नोएडा द्वारा मायाश्री पुरस्कार - 2003
6․ बालगंगा साहित्यिक संस्था जयपुर द्वारा सम्मानित-2004
7․ ब्रजकला केन्द्र मथुरा द्वारा सम्मानित- 2005
8․ उद्भावना साहित्यिक संस्था मथुरा द्वारा सम्मानित- 2007
9․ जमुना जल साहित्यिक संस्था मथुरा द्वारा सम्मानित-2007
10․ रेल मंत्रालय (भारत सरकार)द्वारा लाल बहादुरशास्त्री पुरस्कार-2009
11․ अनुराग सेवा संस्थान लालसोट राज․द्वारा संम्मानित-2010
प्रतिनिधि ः 1․ शुभ तारिका (मासिक) अम्बाला,1980 से,
2․ बच्चों का देश (मासिक) सन् 2002 से
3․ बाल प्रतिबिम्ब (मासिक) सन् 2002
सचिव ः पं0 हरप्रसाद पाठक-स्मृति बाल साहित्य पुरस्कार समिति, मथुरा
सम्प्रति ः रेलवे में जूनि․ इंजीनियर (प्रथम)
सम्पर्क ः 28, सारंग बिहार, पोस्ट- रिफायनरी नगर, मथुरा-281006, मोबा․ 09412727361
Email : dr_dinesh_pathka@yahoo.com ,oa drdinesh57@gmail.com
Web Site : www.dineshpathkashsahi.blogspot.com
dhara pravah rachna..
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