राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण के निर्देशन में गंगा नदी घाटी प्रबन्धन योज...
राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण के निर्देशन में गंगा नदी घाटी प्रबन्धन योजना के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गंगा नदी की सफाई एवं बहाव को सुनिश्चित करने के लिए कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति ने 7000 करोड़ मंजूर किये। इस 7000 करोड़ की धनराशि में 5100 करोड़ केन्द्र तथा 1900 करोड़ उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड व अन्य राज्य देगें। केन्द्र की इस 5100 करोड़ की धनराशि में 4600 विश्वबैंक बतौर कर्ज देगा। इस परियोजना को अगले 8 वर्षों में पूरा किया जाना सुनिश्चित होगा तथाकुल व्यय लगभग 15000 करेड़ का अनुमान है। गंगा की सफाई तथा बहाव को सुनिश्चित करने के लिए गंगा नदी घाटी प्रबन्धन योजना का खाका कानपुर आई0आई0टी0 के नेतृत्व में देश के प्रमुख सातों (कानपुर सहित) आई.आई.टी. ने किया है।
गंगा नदी तथा गंगा घाटी की विशालता का अन्दाज कुछ जानकारियों से लगाकर हम इसकी गम्भीरता का एहसास कर सकेेगें। अपने उद्गम स्थल गोमुख से अपने समर्पण बिन्दु गंगा सागर तक गंगा नदी की लम्बाई 2510 किमी0 है। इस गंगाघाटी का क्षेत्रफल 9,07,000 वर्ग किमी0 है तथा इसका सम्पर्क देश के 11 राज्यों से हैं। इन 11 राज्यों में से 5 राज्यों में गंगा नदी का पवित्र स्पर्श है। गंगा नदी में छोटी-बडी प्रमुख नदियॉ महाकाली, करनाली, कोशी, गण्डक, घाघरा, यमुना, सोन तथा महानन्दा आदि मिलकर इसके स्वरूप को विशालता, पवित्रता तथा गहराई देती हैं। गंगा नदी के तट पर हरिद्धार, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, गाजीपुर, पटना तथा कोलकाता जैसे धार्मिक, राजनैतिक गतिविधियों के केन्द्र तथा आर्थिक रीढ़ के शहर स्थित हैं। गंगा नदी की विशालता तथा उपादेयता का अन्दाज इसी बात से लगाया जाता है कि गंगा घाटी में निवास करने वाली तथा निर्भर रहने वाली लगभग 50 करोड़ आबादी दुनिया की किसी भी नदी घाटी में रहने वाली आबादी से ज्यादा है। जीवन के लिए भोजन हेतु सिंचाई के मामले गंगा नदी घाटी देश की कुल सिंचित क्षेत्र का 29.5 प्रतिशत है।
भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे लम्बी नदी, लगभग 50 करोड़ की आबादी का भरण पोषण करने वाली पवित्र गंगा, पंच प्रयागों के प्राण से अनुप्राणित गंगा, ऋगवेद के श्लोक (10.75) में वर्णित गंगा, रामायण में सीता द्वारा पूजी गई गंगा, भगवान विष्णु के अंगूठे से निकली विष्णुपदी गंगा, संगम इलाहाबाद में भुनि भारद्वाज द्वारा अर्चित की गई गंगा, रोम की पियज्जा नबोना में वर्णित दुनिया की 4 प्रमुख नदियों नील, दानुबे, रियोदिला प्लांटा में शुमार चैथी गंगा, आमेजन तथा कांगो के बाद सर्वाधिक जलराशि की गंगा, समय के साथ अपने पुत्रों की उपेक्षा से आहत होकर दुनियॉ की सबसे प्रदूषित नदी कैसे बन गई? भागीरथ के प्रयासों से धरती पर लाई गई गंगा भागीरथी प्रयासों से ही स्वच्छ, निर्मल और अविरल होगी। गंगा को मात्र नदी या उपभोग करने का पानी समझने वालों को जानना चाहिए कि अनुपम पारिस्थितिकी तन्त्र को संजोये, जैव विविधता को अन्दर समेटे तथा सामाजिक सांस्कृतिक धरोहर वाली नदी गंगा केवल एक नदी ही नहीं बल्कि वह गंगा हमारे लिए व हमारी संस्कृति के लिए मॉ है, देवी है, परम्परा है, संस्कृति है और बहुत कुछ है जिसको जाना नहीं जा सकता है सिर्फ समझा व महसूस किया जा सकता है।
गंगा के प्रदूषण के लिए बढ़ती आबादी, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण तथा कृषि के कारण ज्यादा जिम्मेदार है। बढ़ती आबादी और शहरीकरण से गंगा नदी घाटी पर दबाब बढ़ गया जिसके कारण नदी का प्रदूषण स्तर बढ़ता गया और गंगाजल आचमन की तो छोड़िये स्नान के योग्य भी नहीं रहा। वैज्ञानिको के अनुसार जो बैक्टीरिया 500 फैकल प्रति 100 मिली होना चाहिए वह 120 गुना ज्यादा 60,000 फैकल प्रति 100 मिली पाया गया, जिससे गंगा स्नान योग्य भी नहीं रह गई। उत्तर प्रदेश के अन्दर कन्नौज से लेकर पवित्र शहर वाराणसी तक लगभग 450 किमी के बीच गंगा सर्वाधिक प्रदूषित हैं इस क्षेत्र की फैक्ट्रिया इस नदीं को प्रदूषित कर रही है। एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार गंगा में 75 प्रति सीवरेज तथा 25 प्रतिशत औद्योगिक प्रदूषण पाया जाता है। इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार तत्व अपने द्वारा फैलाये गये प्रदूषण से बेखबर भी नहीं है। हॉ उनको जानकर भी अनजान रखने वाली शासन प्रणाली गंगा की इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है। हमारी स्वार्थ परक उपभोग वाली मानसिकता ने हमारे पारिस्थितिकी तन्त्र का कितना नुकसान कर दिया है इसकों हमारी आने वाली पीढ़ी भुगतेगी। अगर हम वास्तविक धर्म में विश्वास रखते थे तो मोक्ष दायिनी मॉ स्वरूपा गंगा को प्रदूषित न करते। हम 800 ई0 के ब्रह्मानन्द पुराण में वर्णित निर्मल गंगा मन्त्र, ‘‘ गंगा पुष्यजलां प्राप्य त्रयेदश विवत्र्रयेत्। शौचच माचमनं सेकं निर्माल्यं मलधर्षणम्। गात्र संवाहनं क्रीडां प्रति ग्रहम थोरतिम्। अन्य तीर्थ रत्रि चैवः अन्य तीर्थ प्रशंनम्। वस्त्रत्यागमथाघातं सन्तांरच विशेषताः,’’।। में वर्णित 13 प्रतिबन्धित कार्य न करते जैसे मल त्याग, धार्मिक पूजन सामग्री का धोना, गन्दे पानी का विसर्जन, चढावे के फूल इत्यादि फेंकना, मैल धोना, स्नान में रासायनिको का प्रयोग, जल क्रीडा करना , दान की मांग करना, अश्लीलता, गलत मन्त्रों का उच्चारण, वस्त्रों को फेंकना, वस्त्रों को धोना तथा तैर कर नदी का पार करना वर्जित है। 800 ई0 को ब्रह्मानन्द पुराण में भी यह मन्त्र समय कालीन सिद्ध है तथा यही मन्त्र इक्कीसवीं सदी में भी सत्य है।
यह सही है कि गंगा की सफाई के प्रयास हुए परन्तु किये गये यह प्रयास पूर्णतया असफल सिद्ध हुए हैं। सन् 1986 मं गंगा एक्शन प्लान प्रथम तथ बाद में गंगा एक्शन प्लान द्वितीय चलाये जिसमें सरकार के अनुसार लगभग 950 करोड़ बर्बाद हुए और परिणाम जस का तस रहा। जानकार हैरान होगी कि गंगा एक्शन प्लान प्रथम के पहले तथा प्लान के बाद नापे गये गंगा के बनारस घाट के प्रदूषण स्तर मे कोई अन्तर नहीं आया था। यह दोनो एक्शन प्लान ब्यूरो क्रेशी की लेट लतीफी और लाल फीताशाही के शिकार हो गये। गंगा के निर्मल करने के प्रयासो के तहत उत्तराखण्ड की सरकार ने लाल कृष्ण आड़वानी के उपस्थिति में अप्रैल, 2010 में ‘स्पर्श गंगा’ अभियान की शुरूआत की थी। इस अभियान को दलाई लामा, बाबा राम देव तथा चिन्दानन्द सरस्वती का आर्शीवाद था। सिविल सोसायटी ने भी अपने-अपने स्तर पर गंगा की स्वच्छता और बहाव को अक्षुण्ण रखने के लिए सतत् और गम्भीर प्रयास किये। अब तक के किये गये प्रयासों में तकनीकविदों, पर्यावरणविदों तथा सांस्कृतिकदूतों को एक साथ नहीं लिया गया था। इन परियोजनाओं का आधार सिर्फ बड़े शहर थे तथा राज्य सरकारों और नगर निकायों की भागीदारी आवश्यक तौर पर सुनिश्चित नहीं की गई थी।
गंगा के तट पर उसके नैसर्गिक बहाव को रोककर बॉध बनाना तथा ऊर्जा पैदा करना विकसित देश की आवश्यकता तो हो सकती है परन्तु पारिस्थितिक तन्त्र से खिलवाड़ आवश्यकता से अधिक महॅगा सौदा है। गंगा के तट पर पहले से ही दो बड़े-बड़े बांध बन चुके हैं तथा कई छोटी-छोटी जल विद्युत परियोजनायें काम रही हैं। अब गंगा अधिक भार अपने ऊपर सहने को तैयार नहीं दिखती। प्रोफेसर बी0डी0 अग्रवाल के सन् 2008 तथा सन् 2009 के अनशन के दौरान मिले अभूतपूर्व जनसमर्थन से पतित पावनी गंगा के उद्धार का मार्ग खुलता प्रतीत हुआ। अब गंगा नदी घाटी प्रबन्धन योजना के तहत हर तरह के पहलुओं को ध्यान में रखने की बात कही गई है। इस प्रबन्धन योजना में तकनीक का इस्तेमाल, पर्यावरणविदों की राय तथा सांस्कृतिक दूतों (पण्डो, पण्डितों, पुजारियो और साधु-सन्तो आदि) का समायोजन किये जाने की योजना है। शासन स्तर भी सहयोग की अपेक्षा की जा रही है तथा इस योजना के क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियों नीति, कानून और शासन की ध्यान रखने की बात की जा रही हैं इस बार पूरी नदी घाटी (क्षेत्रफल 9,07000 वर्ग किमी) को समाहित किया जा रहा हैं तथा उपकरण और प्रणाली के तौर पर भू स्थानिक डाटा बेस प्रबन्धन, माडलिंग और सिनैरियों जनरेशन और संचार माध्यम के व्यवहारिक विकास पर जोर दिया गया है। यह तो भविष्य ही बतायेगा कि यह गंगा नदी घाटी प्रबन्धन योजना कारगर होगी या फिर गंगा एक्शन प्लान की तरह हवा हवाई सिद्ध होगी। कुछ भी हो यदि यह योजना सफल हुई तो भारतीय तकनीक प्रबन्धन को एक ऊंचा मुकाम मिलेगा अन्यथा देश की अग्रणी संस्था आई.आई.टी. की साख पर बट्टा लगेगा। तकनीक के अलावा असली जनजागरण मुहिम पर्यावरणविदों, सांस्कृतिक दूतों, तथा राजनैतिक दलों को एक साथ चलानी होगी तब कहीं गंगा की अविरलता तथा निर्मलता सुरक्षित तथा संरक्षित रहेगी।
डॉ0 मनोज मिश्र
एशोसिएट प्रोफेसर
भौतिक विज्ञान विभाग,
डी0ए-वी0 कालेज,
कानपुर।
द्वारा
डॉ0 मनोज मिश्र
‘सृष्टि शिखर’
40 लखनपुर हाउसिंग सो0,
कानपुर - 24
.
जवाब देंहटाएंडॉ मनोज ,
एक अति सराहनीय लेख के लिए हार्दिक बधाई। निश्चय ही ऐसी योजनाओं की जरूरत है जो बढती समस्यों से निजात दिलाएं। कार्य तो अपनी गति से ही होगा , लेकिन नदियों को बचाए रखने हेतु ऐसे प्लान और उनका सही क्रियान्वयन ही बहुत बड़ी उपलब्धि है।
आभार।
.
सार्थक आलेख। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं