कहानी रिहाई ...
कहानी
रिहाई
कृष्ण गोपाल सिन्हा
अदालत के कटघरे में शिप्रा खड़ी थी और उसके वकील अदालत से दरख्वास्त कर रहे थे कि उसके मुवक्किल की जज्बातों और ज़रूरतों को देखते हुए उसे इस बात की राहत और मोहलत दी जाय ताकि वह अपने पति नितिन के साथ अपनी मर्जी से कुछ समय बिता सके. सरकारी वकील इस बात पर विरोध और आपत्ति दर्ज कराते हुए दलील दे रहे थे कि मर्डर के जुर्म में सजायाफ्ता मुजरिम को मानवीय या संवेदना के आधार पर किसी भी तरह कि राहत नहीं दी जानी चाहिए. मुक़दमे में पक्ष और विपक्ष की ओर से रखी दलीलों को सुनने के बाद जस्टिस कालरा ने शिप्रा से जानना चाहा कि उसे इस बारे में क्या कहना है.
सभी की नज़रें अब शिप्रा पर टिक गयीं. जज साहब की तरह अदालत में मौजूद सभी लोग शिप्रा की ओर कुतूहल और जिज्ञासा से देख रहे थे. जज साहब की ओर मुखातिब होकर शिप्रा कह रही थी, " जज साहब, सबसे पहले तो मैं अदालत से यह अनुरोध करती हूँ कि मुझ पर जो इल्जाम लगे हैं और जो सजा मुझे दी गयी है उस पर नए सिरे से दोबारा सुनवाई हो क्योंकि दोषी होने न होने की सज़ा मेरे अलावा मेरे परिवार को भी उठानी पड़ रही है जो न्यायसंगत नहीं कही जा सकती. अब मै अपनी ओर से वह बात कहना चाहती हूँ जो अजीब भले लगे पर किसी भी तरह असाधारण और आश्चर्यजनक नहीं कहा जा सकता." यह सुनकर अदालत में मौजूद लोग आपस में कुछ कहने सुनने लगे तो जज साहब ने लोगों को खामोश रहने का आदेश दिया.
अदालत में अब पूरी तरह सन्नाटा था. शिप्रा ने अपनी बात कहानी शुरू की. " जज साहब, आज से लगभग पांच साल पहले मैं अपने शहर से यहाँ एमबीए करने आयी. एमबीए करने के दौरान ही मेरी दोस्ती नितिन से हुई और धीरे धीरे हम एक दूसरे को पसंद और प्यार करने लगे. हमने अपने पसंद और प्यार की बात अपने घर वालों से भी नहीं छुपाई. हम दोनों बहुत ही खुश थे और सौभाग्य से एक ही जगह हम दोनों को नौकरी भी मिल गयी. हमने शादी करने का फैसला तो पहले ही कर लिया था पर इसे कुछ समय के लिए टालते हुए हम साथ साथ रहने लगे जिसे हमारे कुछ साथियों ने अपनी मर्जी से लिव-इन-रिलेशन का नाम दिया. हमें इस पर किसी तरह का ऐतराज़ भी नहीं था. इस बीच न जाने कब और कैसे एक हादसा हुआ और हमारे दोस्तों में से ही एक अक्षय को किसी ने गोली मार दी और इस मामले में मेरा नाम आगया और उसके बाद जो कुछ हुआ उसे अदालत पूरी तरह जानती है. अदालत से ही परमिशन लेकर मैंने और नितिन ने कोर्ट में जाकर शादी कर ली और यह भी मुझे दोषी ठहराए और सज़ा दिए जाने के बाद हुआ. जज साहब जब तक यह केस दुबारा सुना जाय और दुबारा फैसला सुनाया जाय तब तक मुझे अपने पति से मिलने और कुछ वक्त गुजारने की इजाजत दी जाय.'
सरकारी वकील ने शिप्रा की इस बात पर कड़ी आपत्ति की तो जज साहब ने पूछा कि उनकी आपत्ति की वजह क्या है. सरकारी वकील कुछ आगे कहते इससे पहले ही शिप्रा बोल पड़ी. "जज साहब, सरकारी वकील आपत्ति की जो भी वजह बताये या गिंनाये, मैं वह वजह बताना चाहती हूँ जो किसी भी माँ,बाप,भाई, बहन और दोस्त को आसानी से समझ आ सकती है भले ही अदालत में वकील साहब इनमे से कोई भी हैसियत नहीं रखते इसलिए वे कुछ न समझने के लिए मजबूर लगते है. " जैसे ही शिप्रा की इस टिप्पणी पर सरकारी वकील ने ‘ऑब्जेक्शन' कहा जज ने उनकी ओर हाथ उठाकर बैठ जाने का इशारा किया. क्षण भर खामोश रहने के बाद शिप्रा कहने लगी, "जज साहब, उम्र और ज़िंदगी के जिस दौर से मैं गुजर रही हूँ उसमें कुछ ऐसे सपने होते हैं,भावनाएं होती हैं, अहसासात होते हैं, जज़्बात होते हैं और ज़रूरतें होती हैं जिसमे उसे किसी के साथ की ज़रूरत होती हैं."
"चलिए एक मुलजिम को सपनों,अहसासों और इंसानी ज़रूरतों को पूरा करने का हक भले न हो पर उनसे जुड़े उन लोगों के अहसासों और ज़रूरतों पर पाबंदी लगाने का क्या औचित्य है जिन्होंने कोई जुर्म नहीं किया है और क्या उनका जुर्म यह है कि उन्होंने किसी बदनसीब के साथ अपना नसीब जोड़ लिया है और वे तब भी अपने प्यार और रिश्ते पर फख्र करते हैं. जज साहब, ऐसे लोग अगर कही और या किसी और से अपनी ज़रूरतें पूरी करने लगें तो क्या इसे आप जुर्म के दायरे में नहीं रखेंगे. मैं जानती हूँ कि नितिन के लिए मुझसे दूर और बिना मेरे जीना कितना मुश्किल है और फिर मैं भी तो उसके बिना नहीं जी सकती. इसीलिये मैं आप से गुजारिश करती हूँ कि मुझे नितिन के पास जाने और उसके पास वक़्त गुजारने की इजाजत दी जाय. "
जस्टिस कालरा चुप थे. शिप्रा के वकील और सरकारी वकील की ओर उन्होंने देखा. वे दोनों भी खामोश थे और उनमे से कोई भी कुछ कहने के लिए न तो खडा हुआ और न ही कुछ बोला. सारा मामला बहुत ही अहम् था, गंभीर भी था. जज साहब पूरी दिलचस्पी और गहराई से शिप्रा के अनुरोध पर गौर करना चाहते थे. जहां तक पूरे जजमेंट को रिब्यू करने की बात थी तो इस बारे में सारे कानूनी पहलूओं को देखने के बाद निर्णय लिया जा सकता था. परन्तु शिप्रा को क़ैद के दौरान नितिन के पास जाने और कुछ वक़्त गुजारने की इजाजत और उसके लिए और ज़रूरी पहलूओं पर कानून से ज़्यादा मानवीय और संवेदनात्मक के आधार पर ही निर्णय लिया जा सकता था. इस सब के लिए पर्याप्त समय और सोच विचार की भी ज़रूरत थी. शायद इसीलिए जस्टिस कालरा ने उस दिन कोर्ट की कार्यवाही अगली सुनवाई की तारीख एक सप्ताह बाद तय करते हुए मुल्तबी कर दी थी.
जिस हादसे को लेकर शिप्रा और नितिन पर मुसीबत का पहाड़ टूटा और शिप्रा को अक्षय को गोली मारने का दोषी मानते हुए अदालत ने उम्र क़ैद की सज़ा सुनायी गयी थी अदालत के बाहर असलियत कुछ और ही थी.
इन दोनों के कुछ और दोस्त थे जिनमे से दीक्षा इन्हीं के ऑफिस में काम करती और एक वर्किंग वूमन हॉस्टल में रहती थी. अक्षय और नरेन से दीक्षा ने ही शिप्रा और नितिन से परिचय करवाया था और अब इन पाँचों का अपना एक सर्किल बन गया था. अक्षय और नरेन् एक फ्लैट में साथ साथ रहते थे. नए ज़माने के नए सोच और नज़रिए के ये सभी कभी एक दूसरे के घर तो कभी किसी डिनर तो कभी किसी आउटिंग के लिए एक साथ होते और मौज मस्ती करते. वीकेंड पर ये अक्सर कही बाहर का प्रोग्राम बना लेते और एंज्वॉय करते.
शिप्रा,नितिन और अक्षय अपने अपने शहर से बंगलौर एमबीए करने आये थे. तीनो ही एक ही बैचमें थे और यहाँ आने से पहले इनमे से कोई भी एक दूसरे से परिचित नहीं था. तीसरा सेमेस्टर समाप्त होते होते इन तीनो में अच्छी दोस्ती हो गयी. अक्षय और नितिन दोनों ही शिप्रा के नज़दीक आने की कोशिश करने लगे पर शिप्रा की दिलचस्पी अक्षय में न होकर नितिन में थी जिसे वह ज़ाहिर नहीं होने देती थी. कभी कभी अक्षय इस बात से काफी परेशान भी हो जाता था कि वह शिप्रा का ध्यान नितिन से ज्यादा रखता था पर शिप्रा को यह न तो महसूस ही होता था और न ही वह अक्षय को यह महसूस होने देना चाहती थी कि उसकी पहली और आख़िरी पसंद नितिन ही है. नितिन बहुत ही सीधा और शांत स्वभाव का था पर कभी उसने भी यह ज़ाहिर नहीं होने दिया कि वह शिप्रा को अपने दिल की गहराईयों से प्यार करता है.
एमबीए की पढ़ाई पूरी होने और कैम्पस सेलेक्शन होते होते इन तीनों का परिचय दीक्षा और नरेन् से हुआ दीक्षा और नरेन बंगलौर आने से पहले से ही एक दूसरे से परिचित थे. बंगलौर में इन दोनों ने दूसरे इंस्टिट्यूट से एमबीए किया पर दोनों ही इंस्टिट्यूट का कैम्पस प्लेसमेंट एक साथ हुआ और इनके मुलाक़ात और परिचय का यही से शुरुआत भी हुआ. दो अलग अलग संस्थानों में इन्हें प्लेसमेंट मिली. शिप्रा ,नितिन और दीक्षा एक फ़ाइनन्सिअल कंसर्न में जॉब पा गए और नरेन और अक्षय ने एक ही बैंक में नौकरी ज्वाइन कर ली.
एक बार शिप्रा और नितिन वीकेंड डिनर पार्टी से देर रात अपने अपार्टमेन्ट में लौटे थे. उनको आये एक घंटा ही बीता होगा कि नरेन् ने नितिन को मोबाईल पर बताया की पार्टी ख़त्म होने के बाद सब जाने लगे थे कि अक्षय को किसी ने गोली मार दी. नितिन को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. उसने हड़बड़ी में शिप्रा को जगाया और दोनों उस रेस्टोरेंट पहुंचे जहां से वे एक घंटे पहले ही अपने अपार्टमेन्ट पहुंचे थे. दीक्षा और नरेन वहां मौजूद थे. रेस्टोरेंट के मैनेजर और स्टाफ के अलावा पुलिस के लोग भी तहकीकात में जुटे हुए थे. रेस्टोरेंट के स्टाफ और वहां पर मौजूद लोगों से पूछ ताछ करने के बाद डेड बॉडी को पोस्ट मार्टम के लिए भेज दिया गया और दीक्षा, नरेन, शिप्रा और नितिन को पुलिस ने कोतवाली आने को कहा.
पुलिस की तहकीकात और मौके पर मिले सबूत को आधार बनाकर शिप्रा को अक्षय के मर्डर का आरोपी पाया गया और अदालती कारवाई पूरे होने पर शिप्रा को ह्त्या के जुर्म में उम्र क़ैद की सज़ा सुनायी गयी. शिप्रा की जिद की वजह से ही नितिन ने शिप्रा की ओर से जजमेंट रिब्यू के लिए अपील किया था. इसी अपील की सुनवाई के दौरान शिप्रा ने अदालत से यह गुहार लगाई थी की उसे अपने पति नितिन के साथ रहने और वक़्त गुजारने की इजाज़त दी जाय.
एक हफ्ते के बाद जब अदालत की कारवाई शुरू हुई तो अदालत खचाखच भरी हुई थी. जस्टिस कालरा के आदेश पर शिप्रा को कटघरे में हाज़िर होने के लिए कहा गया. शिप्रा कटघरे में आयी तो जज साहब ने सबसे पहले शिप्रा के वकील मनसुखानी को अपना पक्ष रखने को कहा. मिस्टर मनसुखानी ने अदालत से गुज़ारिश की कि उनकी मुवक्किल को उसकी उम्र और उसकी भावनाओं के मद्देनज़र अदालत से राहत दिए जाने और अपने पति के साथ रह पाने का हक मिलना जायज़ है और अदालत को इसकी इजाज़त देनी चाहिए. जहां तक जजमेंट रिब्यू की बात है तो यह उनके मुवक्किल का बुनियादी हक इस लिए है कि वह अब भी अपने को निर्दोष मानती है और अगर उसे भरोसा है कि उसके निर्दोष होने की बात ज़रूर साबित हो सकती है तो उसे इसका एक मौक़ा ज़रूर मिलना चाहिए. मिस्टर मनसुखानी के बाद सरकारी वकील की बारी आयी तो उन्होंने जजमेंट रिब्यू के मामले को माननीय अदालत से निर्णय और आदेश को ज़रूरी बताया और मुल्जिमा को कोई और राहत देने से पहले उस बारे में एक क़ैदी की हैसियत में जेल से बाहर जाने और वापिस आने को लेकर यह सुनिश्चित करना ज़रूरी बताया कि उसे कब कब और कितने समय के लिए इजाज़त होगी और इसके लिए ज़मानत किसे लेनी होगी.
सरकारी वकील की बात पूरी होने पर जस्टिस कालरा ने अपना फैसला सुनाया. इस फैसले में जजमेंट रिब्यू की अपील को अदालत ने स्वीकार करते हुए आदेश दिया कि इस केस की सुनवाई पूरी होने और उसका फैसला आने तक मुल्जिमा को दी गयी सज़ा बरक़रार रहेगी. आज के फैसले का दूसरा पहलू यह था कि अदालत ने मुल्ज़िमा को उसकी भावनाओं और ज़रूरतों के मद्देनज़र अपने पति नितिन के साथ जाने और रहने के लिए इजाज़त देते हुए निर्णय दिया कि सप्ताह में एक बार हर शनिवार को नितिन के साथ जाने और अगले सोमवार को सुबह आठ बजे से पहले वापिस जेल पहुँचना होगा और इसकी पूरी ज़िम्मेदारी नितिन की होगी. अदालत ने यह भी फरमाया कि जहां तक इसकी ज़मानत लेने की बात है तो विशेष हालातों और ज़रूरतों के मद्देनज़र मै जस्टिस के. एस. कालरा खुद इसकी ज़मानत लेता हूँ.
शिप्रा की नम आँखों में सपने तैरने लगे. उसे इस फैसले की उम्मीद कम ही थी पर उसके मन में एक आसरा और भरोसा ईश्वर के अलावा जज साहब पर भी था. उसे लग रहा था कि जस्टिस कालरा उसके लिए ईश्वर के ही स्वरुप हैं. नितिन को अकस्मात एक बहुत बड़ी राहत और खुशी मिली थी. उसे शिप्रा और उसके प्यार पर गर्व हो रहा था. अदालत से मिली राहत और इजाज़त के मुताबिक हर सप्ताह नितिन के साथ शिप्रा घर पर आ जाती थी. अब नितिन बाकी दिनों पहले जैसा तनहाई नहीं महसूस करता था और शिप्रा का समय सैटरडे के इंतज़ार में आसानी से कटने लगा. उधर केस की दुबारा सुनवाई भी शुरू हो गयी थी. दीक्षा और नितिन से इन लोगों की दूरी तभी पैदा हो गयी थी जब वे अदालत में शिप्रा के खिलाफ गवाही देने पहुंचे थे. दरअसल, इन्हीं दोनों की गवाही की वजह से शिप्रा को सज़ा हुई थी. दीक्षा ऑफिस में नितिन से मिलती थी पर दोनों के बीच कोई बात नहीं होती थी. नितिन यह महसूस करता था कि दीक्षा ही अब उससे कटने लगी थी.
नरेन स्वभाव से संकोची और बहुत ही सीधा युवक था. अक्षय की मौत के बाद वह अब अकेला रह गया था. दीक्षा भी अब उससे मिलने में कोई दिलचस्पी नहीं लेती थी. शिप्रा की सज़ा होने के बाद से ही वह नरेन से कटने लगी थी. उसने शिप्रा के खिलाफ गवाही ज़रूर दी थी पर अब उसे इस बात को लेकर परेशानी और अफ़सोस होता था कि वह कैसे लोगों के बहकावे में आ गया. वह नितिन से मिलकर अपने मन की बात शेयर करना चाहता था पर वह खुद से इतना शर्मिन्दा महसूस करता था कि नितिन से मिलने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाता था.
इस बीच कुछ महीनों बाद शिप्रा प्रीगनेंट हो गयी. नितिन और शिप्रा की खुशियों का अब कोई ठिकाना नहीं रहा. लेकिन खुशियों के साथ चिंताएं भी बढ़ने लगी. आने वाले मेहमान से जुड़ी कई बातें अब उनके ज़हन में आने लगी. केस की सुनवाई में कितना समय लगेगा और क्या फैसला होगा यह सोचकर दोनों अब परेशान रहने लगे. शिप्रा नितिन को समझाती कि ऊपर वाला कोई न कोई रास्ता निकालेगा ही और दोनों ने जेल के अधिकारिओं और अदालत को ज़ल्द से ज़ल्द प्रीगनेंट होने की बात बता देने का निर्णय किया. इस बार घर से वापिस आने पर जेल अधीक्षक को यह बात बतायी और अदालत की अगली तारीख में जज साहब को भी इस बारे में बताया.
इसी रोज शिप्रा के वकील की ओर से अदालत से यह दरख्वास्त भी की गयी कि शिप्रा की कोख में पल रहे बच्चे और माँ की सेहत और देखभाल के मद्देनज़र केस की सुनवाई जल्द से जल्द पूरी की जाय और इस बीच जेल में उसकी देखभाल और खानपान के ज़रूरी इंतजामात के लिए जेल के अधिकारियों को ज़रूरी हिदायतें भी दी जाय. अदालत ने दोनों ही मुद्दों पर अपनी मंज़ूरी देते हुए यह फैसला किया की इस केस की सुनवाई अब रोजाना की जायेगी. अदालत में इस मुक़दमे से जुड़े सारे सवाल, सबूत और गवाह दुबारा तलब किये गए. शिप्रा हर रोज़ अदालत में लाई जाती और कारवाई के दोरान मौजूद रहती. नितिन भी रोजाना अदालत की कारवाई के समय मौजूद रहता . इस मुक़दमे की पैरवी जिन पुलिस अधिकारियों ने की थी और उनका तबादला हो गया था उन्हें भी अदालत ने तलब किया. केस के प्रोजिक्युशन औफ़िसर से केस को दुबारा अदालत के सामने रखने को कहा गया. इस सारी कवायद में बचाव पक्ष के वकील अपनी दलील और तर्क अदालत के सामने रखते रहे .
हादसे के समय रेस्टोरेंट में मौजूद लोगों को भी कोर्ट में दुबारा पेश होना पडा. इसके बाद बारी आयी केस के दो अहम् गवाह नरेन और दीक्षा की. नरेन् को अदालत ने कटघरे में आकर इस मुक़दमे के बारे में अपनी गवाही देने को कहा. अभियोजन पक्ष के वकील ने अदालत से अपील की कि नरेन और दीक्षा तो वारदात के समय मौजूद चस्मदीद गवाह है और ये तो पहले ही अपना बयान दे चुके है इस लिए दोबारा इनके बयान की ज़रूरत नहीं है. जज साहब ने इस पर अपनी सहमति नहीं दी और नरेन को अपना बयान देने का आदेश दिया. नरेन् कटघरे में आते ही फूटफूट कर रोने लगा. सभी खामोश थे और जज साहब उससे कहने लगे कि बेख़ौफ़ होकर जो उसे कहना हो वो कहे. नरेन ने खुद को संभालते हुए अपना बयान देना शुरू किया. “जज साहब, आपने केस के दुबारा सुने जाने और फैसला देने का निर्णय करके हमें अपनी ग़लती को सुधारने और सच को सामने लाने का जो मौक़ा मुझे दिया है उससे मुझे घुटघुट कर जीने और मरने से बचा लिया है. सबसे पहले तो मैं आप से इस बात के लिए अपना गुनाह कबूल करता हूँ कि मैं किसी बहकावे में आ गया था और मुझसे एक बहुत बड़ी भूल यह हुई थी और मैं ग़लत लोगों का साथ देने लगा था. जज साहब, मैं यह कबूल करता हूँ कि मैंने दबाव और बहकावे में आकर गवाह के तौर पर जो बयान इस अदालत में दिया था वह एक गढ़ा हुआ झूठ था और मैं उस गुनाह में शामिल होने की ग़लती की जिसकी वजह से शिप्रा को सज़ा दी गयी जब कि अक्षय की ह्त्या में उसका कोई हाथ नहीं था. जज साहब, मैं आप से विनती करता हूँ कि अगर आप मेरी इस ग़लती के लिए मुझे माफ़ नहीं कर सकते तो मेरे इस गुनाह के लिए आप जो भी सज़ा मुझे देंगे मैं उसे पूरा करूंगा क्योंकि आप के सज़ा देने से मैं ईश्वर की ओर से दी जाने वाली सज़ा से बच जाउंगा.”
जज साहब ने नरेन से जानना चाहा कि क्या वह बता सकता था कि अक्षय को गोली किसने मारी. इसका जवाब देते हुए नरेन ने कहा कि उसे इस बारे में किसी भी तरह की कोई जानकारी नहीं है .
अदालत ने नरेन को कटघरे से बाहर आने का आदेश देते हुए दीक्षा को गवाही के लिए कटघरे में आने का हुक्म दिया. कटघरे में पहुँच कर दीक्षा खामोश नज़रें नीची किये खड़ी रही. जज साहब ने बचाव पक्ष के वकील से दीक्षा से सवाल करने के लिए कहा. इस पर दीक्षा ने जज साहब की ओर देखा और कहने लगी, " जज साहब, सबसे पहले मुझे अपनी बात अदालत के सामने रखने की इजाज़त देने की कृपा करें."
" इजाज़त है" कहते हुए जज साहब ने बचाव पक्ष के वकील को बैठ जाने का इशारा किया. जज साहब, नरेन ने अदालत को आज जो बातें बतायी है वह पूरी तरह सच है. पर इसके अलावा और भी कई सच है जो मैं अदालत को बताना चाहती हूँ. आज मैं अदालत को उन रिश्तों और ताल्लुकातों के बारे में भी वह सब कुछ बताना चाहती हूँ जो अक्षय की मौत और इस केस से जुड़े हैं.
हम पांच नितिन और शिप्रा ,अक्षय और नरेन और मैं एक दूसरे से परिचित थे, एक दूसरे को जानते थे और एक दूसरे से मिलते थे और कभी कभार बाहर भी जाते थे.हम सभी हमउम्र तो थे ही हमारे ख़याल और सोच भी एक दूसरे से कमोबेश मिलते थे. हम सभी मिडिल क्लास और अपर मिडिल क्लास फेमिली से आते है. इस सब के बावजूद सब की अपनी अपनी खूबियाँ और कमज़ोरिया भी थी. नितिन और शिप्रा में दोस्ती गहरी थी ही और उन्होंने कभी इसे छिपाया भी नहीं और इस केस में सज़ा होने के बावजूद दोनों ने शादी कर ली. मुझे आज इस बात का खुलासा करना है कि मैं उन दोनों के साथ ही काम करती थी और मन ही मन नितिन को प्यार भी करती थी जिसे मैंने कभी ज़ाहिर नहीं होने दिया. यह भी सच है कि इसी वजह से मैं शिप्रा से चिढ़ती भी थी. लकिन कभी भी इन दो वजहों से हमारे बीच कोई अनबन या तनाव नहीं पैदा हुआ. हां यह ज़रूर था कि मैं अपने को अकेला महसूस करती थी. शायद यही वजह थी कि मैं अक्षय में दिलचस्पी लेने लगी थी और उससे अकेले में मिलने भी लगी थी. अक्षय में मेरी दिलचस्पी और उससे मेरे मिलने की बात नरेन जानता था क्योंकि वे दोनों दोस्त होने के अलावा एक ही साथ रहते भी थे. मुझे अपने होस्टल से बाहर जाने और अक्षय से मिलने में कोई दिक्कत नहीं होती थी. अक्षय के पास आने पर मुझे पता लगा कि अक्षय मन ही मन शिप्रा को चाहने लगा था. जहां तक नरेन की बात है तो यह सच है कि वह बहुत ही सीधे स्वभाव का है और कौन किससे मिलता है , कौन किसमे दिलचस्पी लेता है जैसी बातों से वह कोई सरोकार ही नहीं रखता था.
जज साहब, अक्षय के बारे में मुझे कुछ भी कहने का हक़ नहीं है पर मैं अपने बारे में एक गुनाह कबूल करना चाहती हूँ कि जब अकेले में मैं उसके साथ होती तो मुझे महसूस होता था कि नितिन मेरे पास है और यही मुझे अक्षय की बातों से भी लगता कि जितनी देर मैं उसके पास होती वह मुझमे शिप्रा को देखने और महसूस करने की कोशिश करता था. लेकिन अब हम दोनों की यह आदत बन चुकी थी और हम दोनों को यह अच्छा भी लगने लगा था. लेकिन इस कहानी में एक नया मोड़ तब आया जब मुझे पता चला कि मेरे अलावा और भी कुछ लड़कियाँ थी जिनमे अक्षय दिलचस्पी तो लेता ही था और उनमे उसकी दिलचस्पी और नज़दीकी काफी बढ़ चुकी थी. मैंने इस बारे में जब भी उससे कुछ जानना और पूछना चाहा तो वह मेरी बात को टाल जाता. धीरे धीरे मैंने महसूस किया कि अब उसे मेरा साथ अच्छा नहीं लगता था. वैसे भी हम दोनों के बीच दोस्ती कम और हमारी अपनी ज़रूरतें अहम् थी. हमारे इंटरेस्ट और ज़रूरतें भी कामन थे. फिर एक दिन अक्षय ने ही मुझ पर उलटे सीधे आरोप लगाने शुरू कर दिए और इसे ही बहाना बनाकर मेरे साथ अपने रिश्ते को उसी पल ख़त्म करते हुए मुझे इस बात की धमकी देने लगा कि अगर मैंने कभी किसी से भी उसके बारे में कुछ कहा या बताया तो उसका अंजाम उसे भोगना पड़ेगा. मेरे सामने बस अन्धेरा ही अन्धेरा था. दरअसल, मैं उसके सम्बन्ध तोड़ लेने से कम और उसकी धमकी से ज़्यादा परेशान हो गयी क्योंकि मुझे अब यह अहसास हो गया था कि वह बहुत ही ग़लत आदमी था और कभी भी किसी के साथ कुछ भी कर सकता था. हमारे बीच दोस्ती तो थी नहीं कि मैं उसके टूटने का ग़म करती पर इस बात का गहरा अफ़सोस था कि मैंने कैसे इसके पास आने की सोची और क्यों इसमे अपनी पसंद तलाशने और पाने की ग़लती की.
जज साहब , इन हालातों में मेरे लिए अपने को संभालना मुश्किल हो गया था. न तो मैं अपने मन और हालात के बारे में किसी से कुछ शेयर कर सकती थी और न ही अपनी ग़लतियों के पश्चाताप का कोई रास्ता ही समझ पा रही थी. इसी बीच मेरी मुलाक़ात हिना से हुई. शायद अक्षय से ही उसने मेरे बारे में कुछ सुना और जाना हो. एक दिन वह मेरे हॉस्टल आयी और अक्षय की सारी करतूतों को बताते हुए यह भी बताया कि किस तरह वह उसके चंगुल में फंसते फंसते बच सकी. उसने मुझे समझाया कि तुम बहुत ही खुशकिस्मत हो कि उसकी वजह से तुम किसी और मामले में फंसने और उलझने से बच गयी वरना वह आदतन तुम्हें किसी ऐसी बड़ी मुसीबत में डाल देता और तुम्हारी ज़िंदगी पूरी तरह बर्बाद करके ही दम लेता.
मगर मुझे यह पता नहीं था की उसकी वजह से ही मेरी तकदीर में एक ऐसा मोड़ भी आयेगा जहां मुझे अफ़सोस, पछतावा और शर्मिन्दगी के अलावा कुछ भी नहीं मिलेगा. जज साहब सच यह है कि अक्षय को गोली उसी के एक साथी नवल ने मारी थी जिसकी बहन की ज़िंदगी को बर्बाद करने में अक्षय का हाथ था. नवल का भी ताल्लुक शहर के ऐसे लोगों से था जो बात बात में गोली चलाने से कत्तई परहेज़ नहीं करते थे. नवल और उसके साथियों को अक्षय से ही मेरे बारे में पता चला था और उन्होंने एक प्लान के मुताबिक़ मुझ पर यह दबाव बनाने की कोशिश की कि मैं इस मामले में शिप्रा का नाम ले लू ताकि दोस्तों में ही किसी के होने पर शक की गुंजाईश कम रहेगी. इसके लिए उन्होंने मुझे जान से मारने की भी धमकी दी और उधर नरेन को भी इसी तरह की धमकी देकर अदालत में चस्मदीद गवाह बनने के लिए मजबूर किया.
जज साहब, पहली ग़लती अक्षय से दोस्ती करके की थी. दूसरी ग़लती अक्षय में नितिन को तलाशने की की थी और तीसरी ग़लती दबाव में आकर झूठी गवाही देकर की. मैं जानती हूँ कि झूठी गवाही देना भी एक जुर्म है और इसके लिए मुझे सज़ा हो सकती है. पहली दो ग़लतियों की सज़ा तो मेरे लिए यही है कि अब मैं किसी का प्यार पाने के क़ाबिल नहीं रही और जहां तक तीसरी ग़लती की बात है तो उसके लिए आप जो भी सज़ा देंगे उसे मैं पूरा करूंगी. बस अब इससे आगे मुझे कुछ भी नहीं कहना है."
दीक्षा के इस बयान के साथ ही अदालत ने अगली सुनवाई के समय नवल को पेश करने और नरेन और दीक्षा के अलावा हिना को भी अदालत में हाज़िर किये जाने का आदेश देते हुए आने वाले सोमवार तक के लिए कारवाई स्थगित कर दी.
इस बीच पुलिस ने नवल को हिरासत में ले लिया और उससे पूछताछ और तहकीकात के आधार पर वह रिवाल्बर भी बरामद कर लिया जिससे अक्षय को गोली मारी गयी थी.
अगले सोमवार को अदालत में सबसे पहले हिना को बुलाया गया. जज साहब ने हिना से उसकी दीक्षा से हुई मुलाक़ात और अखय के बारे में जो वह जानती थी अदालत को बताने के लिए कहा. हिना ने अदालत में बयान दिया कि “सचमुच अक्षय के इरादे और कारनामें दोनों ही ठीक नहीं थे. उसका काम बस लड़कियों से मेल जोल बढ़ाने, उनसे नजदीकियां बनाने और फिर धमकियां देकर उनसे किनारा का लेने का ही था. जो उससे बच पाती या अपने को समय रहते बचा लेती वो मेरी तरह खुशकिस्मत होती पर ज़्यादातर लड़कियां नवल की अभागी बहन की तरह उसके हवस का शिकार बनती और फिर उनकी ज़िंदगी बर्बाद हो जाया करती. मुझे जैसे ही दीक्षा के उसके चंगुल में फसने की बात पता चली मैं उसके पास गयी और उसे उसके बारे में जो कुछ जानती थी बताया.”
हिना के बाद नवल को कटघरे में लाया गया. उससे सरकारी वकील या बचाव पक्ष के वकील कुछ पूछताछ या जिरह करते इससे पहले ही जज साहब ने उसे अदालत को इस मामले में वह सब कुछ बताने को कहा जो अक्षय की मौत और इस वारदात को अंजाम देने में उसके लिप्त होने से जुड़ा है. नवल ने अदालत में जो बयान दिए वह उसका कबूलनामा ही था. उसने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि अक्षय को गोली उसी ने मारी. उसने यह भी कबूल किया कि दीक्षा और नरेन को उसी ने झूठी गवाही देने और इस मामले में शिप्रा का नाम लेने के लिए धमकी दी और मजबूर किया.
अब यह तो यह तय सा ही लग रहा था कि नवल के कबूलनामे के मद्देनज़र उसे सज़ा मिलेगी और शिप्रा रिहा कर दी जायेगी. अदालती कारवाई और ज़रूरी औपचारिकताएं पूरी होने तक शिप्रा को इंतज़ार करना ही था. जज साहब ने नवल को जेल भेजने और फैसले के लिए अगली पेशी पर अदालत में लाये जाने का हुक्म दिया. नरेन और दीक्षा को उनके हालात और मजबूरियों को ध्यान में रखते हुए झूठी गवाही देने के इल्जाम से जज साहब ने बरी कर दिया. शिप्रा और नवल के बारे में फैसला सुनाने के लिए उन्होंने तारीख तय कर दी.
अदालत द्वारा दी गयी तारीख पर पुलिस ने नवल को जज साहब के सामने पेश किया. ह्त्या करने और गवाही के लिए नरेन और दीक्षा को डराने धमकाने के जुर्म को संगीन मानते हुए अदालत ने नवल के लिए फाँसी की सज़ा सुनायी और शिप्रा को अब तक की सज़ा और परेशानियों के लिए प्रोजीक्युशन को लापरवाही बरतने के लिए फटकार लगाते हुए भविष्य में ऐसे मामलों में तत्परता और मुस्तैदी से काम करने की चेतावनी भी दी. शिप्रा की सज़ा माफ़ कर दी गयी और वह जेल से अगले ही दिन रिहा कर दी गयी.
शिप्रा और नितिन बहुत खुश थे. दीक्षा ने अपने को काफी बदल लिया था. नरेन के मन पर से एक बड़ा बोझ टल गया था. दीक्षा के बारे में खुले और साफ़ मन से सोचते हुए दोनों ने पहल की और नरेन को दीक्षा को अपनाने और उससे शादी करने के लिए राजी कर लिया. नरेन और दीक्षा के शादी कर लेने के बाद उन्हें ज़िंदगी में नयी ताज़गी महसूस हुई. कुछ समय बाद शिप्रा के गोद में बेटी आयी तो नर्सिंग होम में बधाई देने आने वालों में दीक्षा ,नरेन और हिना के अलावा जस्टिस कालरा भी थे. जज साहब को देखकर शिप्रा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा . वह उनके चरणों को स्पर्श कर आशीर्वाद लेना चाहती थी पर जज साहब ने उसके माथे पर अपना हाथ रखते हुए कहा कि मेरा आशीर्वाद तो हमेशा ही तुम्हारे साथ है.
वक़्त ने शिप्रा और नितिन को एक कठिन संघर्ष से बाहर लाकर अपार खुशियाँ बख्शी थी तो दीक्षा के ज़ख्मों पर मरहम लगाया था और नरेन को सुकून अता करते हुए दोनों को नयी ज़िंदगी जीने की राह दिखाई थी. कुछ समय खुशियों का साथ पा लेने के बाद वे भूलने लगे थे कि कभी कोई तूफ़ान भी आया था. अब उन सब के सामने बसंत था, बहारें थी, रोशनी थी, सब कुछ सुनहरा और सुहाना था.
( 'रिहाई' कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं.)
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