अनुक्रमणिका 1 -एक नई शुरूआत - डॉ0 सरला अग्रवाल 2 -बबली तुम कहाँ हो -- डॉ0 अलका पाठक 3 -वैधव्य नहीं बिकेगा -- पं0 उमाशंकर दीक्षित 4 - बरखा...
अनुक्रमणिका
1 -एक नई शुरूआत - डॉ0 सरला अग्रवाल
2 -बबली तुम कहाँ हो -- डॉ0 अलका पाठक
3 -वैधव्य नहीं बिकेगा -- पं0 उमाशंकर दीक्षित
4 - बरखा की विदाई -- डॉ0 कमल कपूर
5- सांसों का तार -- डॉ0 उषा यादव
6- अंतहीन घाटियों से दूर -- डॉ0 सतीश दुबे
7 -आप ऐसे नहीं हो -- श्रीमती मालती बसंत
8 -बिना दुल्हन लौटी बारात -- श्री सन्तोष कुमार सिंह
9 -शुभकामनाओं का महल -- डॉ0 उर्मिकृष्ण
10- भैयाजी का आदर्श -- श्री महेश सक्सेना
11- निरर्थक -- श्रीमती गिरिजा कुलश्रेष्ठ
12- अभिमन्यु की हत्या -- श्री कालीचरण प्रेमी
13- संकल्प -- श्रीमती मीरा शलभ
14- दूसरा पहलू -- श्रीमती पुष्पा रघु
15- वो जल रही थी -- श्री अनिल सक्सेना चौधरी
16- बेटे की खुशी -- डॉ0 राजेन्द्र परदेशी
17 - प्रश्न से परे -- श्री विलास विहारी
(7) आप ऐसे नहीं हो
श्रीमती मालती बसंत
हरीश ने जैसे ही मानसिक चिकित्सालय के परिसर में कार रोकी, कुछ महिलायें दौड़ती हुई आयीं, एक महिला चढ़कर कार के बोनट पर बैठने लगी, एक उसके कांच पर हाथ फेरने लगी, कोई दूर से ही कार को देखकर ताली बजाने लगी। उन विक्षिप्त महिलाओं की इस स्थिति को देखकर हरीश का मन दुःख से भर गया, इनका भी क्या जीवन है? इन स्त्रियों को तो अपनी स्थिति का भान भी नहीं है, कि वे क्या कर रही हैं? हरीश मन ही मन डर रहा था, उसकी पत्नी की भी यह हालत न हो पर उसकी पत्नी की स्थिति कुछ अलग थी।
हरीश के विवाह को अभी कुछ ही दिन बीते थे कि उसको अपनी नवविवाहिता पत्नी को इस मानसिक चिकित्सालय में भर्ती कराना पड़ा।
विवाह के बाद हरीश को महसूस हुआ कि उसकी पत्नी उससे न बोलती है, न हँसती, न रोती बस अक्सर शून्य में देखा करती। एक दिन उसे फिट पड़ने पर हरीश ने अपने ही शहर में इस मानसिक चिकित्सालय में भर्ती कर दिया।
हरीश नियमित रूप से दोनों समय उसे खाना देने जाता। आज भी वह खाना लेकर आया था, उसे पता था कि वह उससे बोलेगी नहीं, फिर भी उसका कर्तव्य था वह उसे खाना दे उससे बोले। हरीश जब उसके वार्ड में पहुँचा तो उसने देखा उसकी पत्नी निर्मला अपने बाल संवार रही थी। उसकी उपस्थिति को अनदेखा कर वह उसी तरह बाल संवारती रही। इस समय वार्ड पूरी तरह खाली था। सारी स्त्रियाँ बाहर थीं। हरीश आज बहुत सोचकर आया था, वह आज यह कहेगा वह कहेगा। किन्तु यहाँ आकर वह सब कुछ भूल गया। वह कुछ देर तक उसे चुपचाप देखता रहा, फिर उठकर बोला ‘‘मैं जा रहा हूँ, खाना रख दिया है, खा लेना'' उसने कुछ देर उत्तर की प्रतीक्षा की पर उत्तर न पाकर वह अपने दफ्तर, जा पहुँचा उसका मन दफ्तर के काम में नहीं लग रहा था। उसके दिमाग में केवल निर्मला का चेहरा ही घूमता रहा। वह अब क्या करे उसकी समझ में नहीं आता। माँ के कितने मना करने पर भी उसने निर्मला से विवाह किया था। माँ का विचार था कि हरीश शहर की ही किसी पढ़ी-लिखी लड़की से विवाह करे, जो उसका साथ दे सके, किन्तु हरीश के विचार ही अलग थे।
उसने निर्मला को अपने किसी मित्र के यहाँ देखा था, जो उसके मित्र की रिश्ते की बहन थी। सीधी साधारण वस्त्रों में निर्मला उसे बहुत अच्छी लगी थी, आधुनिक फैशन परस्त तितलियाँ उसे पसन्द नहीं थीं।
हालाँकि निर्मला केवल दसवीं पास थी, फिर भी निर्मला का मासूम भोला-भाला चेहरा उसे भा गया था। केवल इसी आधार पर वह निर्मला से विवाह करने की जिद कर बैठा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उससे कैसे कहाँ गलती हो गई?
दूसरे दिन हरीश सीधे निर्मला के पास न जाकर, डॉक्टर के पास गया।
डॉक्टर ने कहा ‘‘शारीरिक रूप से वह पूर्ण स्वस्थ है। मानसिक रूप से अस्वस्थ नहीं लगती, क्योंकि वह कही गई बात को अच्छे से समझती है बस जवाब नहीं देती, उसके मन में कोई अवश्य ऐसी बात है, जो परेशान कर रही है, जिससे वह अवसादग्रस्त है। तुम्हें उस बात को बाहर निकालना होगा। इसके लिए बहुत धैर्य की जरूरत है। उसे प्रेम और विश्वास से जीतना होगा। वह कुछ भी कहे, उसका बुरा नहीं मानना, लेकिन उसको कुछ कहना जरूरी है अन्यथा उसके दिमाग पर बुरा असर पड़ सकता है।''
‘‘सर! मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ।'' हरीश का गला एकदम भर्रा सा गया, जिसे उसने शीघ्र ही संभाल लिया।
‘‘चिन्ता किसी बात की नहीं है मि. हरीश धैर्य रखिये वह बोलें या न बोलें आप उनसे बात करने की कोशिश कीजिये, अपने अतीत की बातें कीजिये। उनके हाव-भाव से जानिये कि उनकी पसन्द नापसंद क्या है?''
हरीश डॉक्टर से मिलकर निर्मला के वार्ड में पहुँचा। वह देर तक निर्मला से बातें करता रहा, उसने बीते दिनों की मनोरंजन इत्यादि की बातें की। उसने देखा निर्मला उसकी बात ध्यान से सुन रही है। पर कुछ नहीं बोली, लेकिन निर्मला की आँखों में चमक से उसे विश्वास हो गया कि निर्मला ठीक हो जायेगी।
वह उसके लिए सुन्दर-सुन्दर पत्र-पत्रिकाएँ ले गया, अपने जीवन की मनोरंजक घटनायें सुनाई, चुटकुले सुनाये, निर्मला के चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर उसका मन उत्साहित हो उठा, उसे विश्वास होने लगा कि वह दिन-ब-दिन सफल होता जा रहा है।
दो चार दिन बाद हरीश फिर डॉक्टर से मिला और उसकी छुटटी की बात की तो डॉक्टर ने कहा ‘‘वह ठीक हो गई है, लेकिन जब तक वह आपसे बात न करने लगे तब तक विश्वास नहीं किया जा सकता, उसकी मानसिक समस्या का हाल उसके बोलने पर ही पता चल पायेगा। आप उसे कुछ घण्टे इस अस्पताल से बारह ले जा सकते हैं, इसकी अनुमति दे सकता हूँ। किसी पार्क में ले जाकर उसे घुमाइये और उसके मन की बात निकलवाईये।''
हरीश ने जब निर्मला से बाहर घूमने चलने की बात कही तो वह तुरन्त तैयार हो गई। हरीश उसे एक बहुत सुन्दर पार्क में ले गया। रंग-बिरंगे फूलों को देख निर्मला को बड़ी खुशी हुई ‘‘तुम्हें यह फूल अच्छा लगता है?'' हरीश ने एक फूल तोड़कर निर्मला को दे दिया।
‘‘मेरे बालों में यह फूल लगा दीजिये।''
‘‘क्या'' हरीश को उसके पहली बार बोले शब्द पर विश्वास नहीं हुआ ‘‘फिर से कहो निर्मला क्या चाहती हो।''
‘‘यह फूल मेरे जूड़े में लगा दीजिये।''
‘‘हाँ-हाँ क्यों नहीं, तुम ऐसे ही बोला करो निर्मला तुम्हारे बोलने से यह पूरा बाग महक उठा है।'' निर्मला उसकी बात सुनकर शर्मा गई।
‘‘बोली, आप तो ऐसे नहीं हो। जैसा मेरी सहेलियाँ कहती थीं।''
‘‘कैसा?'' हरीश ने जानना चाहा।
‘‘मुझ को, माँ-बाप से दहेज न मिलने पर जलाकर मार डालने वाले।'' ‘‘तुमने ऐसा कैसे सोच लिया।''
‘‘आपसे पहले जो भी मुझसे विवाह करने के लिए आये थे; केवल दहेज न मिलने पर उसने मुझे पसन्द नहीं किया- आप पहले व्यक्ति थे, जिसने दहेज की मांग नहीं की। मेरी सहेलियों का कहना था, जो दहेज नहीं मांग रहा, उसमें जरूर कोई खराबी होगी या हो सकता है, दहेज न मिलने से तुम्हें वह मार ही डाले, इसलिये मैं बहुत डर गई थी। आप मुझे अपने घर ले चलिये अस्पताल में नहीं रहूँगी।''
‘‘हाँ-हाँ, जरूर तुम्हारी आज ही छुटटी करवा लूँगा।'' हरीश ने जब डॉक्टर से निर्मला के बारे में सब कुछ बताया-डॉक्टर ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी।
हरीश की खुशी की सीमा नहीं रही। वह अपने प्रयास में सफल हो गया था। सच है, प्रेम से सबका हृदय जीता जा सकता है। यह बात वह अपनी माँ को जल्दी से जल्दी फोन करके बता देना चाहता था।
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ई-112/2, शिवाजी नगर, भोपाल - 16
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(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)
वाह बहुत सुन्दर और रोचक अब आगे का इंतज़ार है।
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