अनुक्रमणिका 1 -एक नई शुरूआत - डॉ0 सरला अग्रवाल 2 -बबली तुम कहाँ हो -- डॉ0 अलका पाठक 3 -वैधव्य नहीं बिकेगा -- पं0 उमाशंकर दीक्षित 4 - बरखा...
अनुक्रमणिका
1 -एक नई शुरूआत - डॉ0 सरला अग्रवाल
2 -बबली तुम कहाँ हो -- डॉ0 अलका पाठक
3 -वैधव्य नहीं बिकेगा -- पं0 उमाशंकर दीक्षित
4 - बरखा की विदाई -- डॉ0 कमल कपूर
5- सांसों का तार -- डॉ0 उषा यादव
6- अंतहीन घाटियों से दूर -- डॉ0 सतीश दुबे
7 -आप ऐसे नहीं हो -- श्रीमती मालती बसंत
8 -बिना दुल्हन लौटी बारात -- श्री सन्तोष कुमार सिंह
9 -शुभकामनाओं का महल -- डॉ0 उर्मिकृष्ण
10- भैयाजी का आदर्श -- श्री महेश सक्सेना
11- निरर्थक -- श्रीमती गिरिजा कुलश्रेष्ठ
12- अभिमन्यु की हत्या -- श्री कालीचरण प्रेमी
13- संकल्प -- श्रीमती मीरा शलभ
14- दूसरा पहलू -- श्रीमती पुष्पा रघु
15- वो जल रही थी -- श्री अनिल सक्सेना चौधरी
16- बेटे की खुशी -- डॉ0 राजेन्द्र परदेशी
17 - प्रश्न से परे -- श्री विलास विहारी
(3) वैधव्य नहीं बिकेगा
पं0 उमाशंकर दीक्षित
पूर्व मंत्री सेवकराम घर में मसनद के सहारे बैठे थे। उनके सामने आर्य समाज के मंत्री और सामूहिक विधवा-विवाह समिति के संयोजक पं. हर्षवर्धनशास्त्री विराज मान थे।
सेवकराम जबसे एम.एल.ए. का चुनाव हारे हैं, तब से पूरे पाँच माह के निरन्तर विश्राम के बाद आज शास्त्रीजी के विशेष आग्रह पर सांयकाल एक सार्वजनिक सभा को सम्बोधन करेंगे क्योंकि चुनाव हार जाने पर उन्हें ऐसा सदमा पहुँचा कि पूरे एक माह 10 दिन तो अस्पताल के बैड पर पड़े पड़े काटने पड़े। इसके बाद छैः माह तक डॉक्टरों ने उन्हें पूर्णरूप से विश्राम करने का परामर्श दिया था। उन्हें दिल का दौरा क्या पड़ा- वे एक दम सार्वजनिक जीवन से ‘कट आफ' हो गये।
आज इस सुअवसर को वे अपने हाथ से नहीं निकलने देना चाह रहे थे। अतः अपनी आँखों को अजीब तरह से मिचकाते हुए शास्त्री जी से बोले-‘‘देखिये हर्षवर्धन जी' वैसे तो डाक्टरों ने मुझे कम्पलीट रैस्ट के लिए कहा है, परन्तु भला आपका अनुरोध मैं कैसे टाल सकता हूँ। फिर विधवा-विवाह जैसी ज्वलन्त सामाजिक समस्या का निराकरण तो हमको और आपको मिलकर करना ही है।'' ‘आपसे मुझे यही आशा थी-मंत्री जी।' शास्त्री जी ने दोनों हाथ जोड़ते हुए आभार व्यक्त किया।
फिर सामने दीवार पर नजर फेंकते हुये भूतपूर्व मंत्री सेवकराम ने कहा-‘‘देखो शास्त्री जी मुझे चुनाव हारने का बिल्कुल ही गम नहीं है। मैं तो राजनेता कम और सामाजिक कार्यकर्ता अधिक हूँ। मेरे जीवन का तो प्रथम लक्ष्य समाज सेवा ही है। अब उसे और बखूबी कर सकूँगा।'' अच्छा तो बताओं मुझे कितने बजे आपकी सेवा में आना है।''
‘‘ठीक पाँच बजे''- शास्त्री जी ने बताया। ‘प्रचार तो खूब करा दिया है न', होठों को निपोड़ते हुए पुनः सेवकराम ने पूछा।' इसमें कोई कमी नहीं करनी चाहिए। सही प्रचार ही हर कार्यक्रम की सफलता है।''
‘इसकी आप चिन्ता न करें''- शास्त्री जी ने उठते हुए कहा। ‘अच्छा -नमस्ते जी', कहकर शास्त्री जी चले गए।
सायँ पाँच बजे........ म्यूनीसिपल हाल भीड़ से खचाखच भरा था। सभी सम्भ्रान्त और विशिष्ट व्यक्ति भी उपस्थित थे। वे सभी प्रथम पंक्ति में बैठे हुए थे। सर्वप्रथम कार्यक्रम के संयोजक हर्षवर्धन शास्त्री ने समारोह का उद्देश्य बतलाया- ‘‘भाइयों और बहनों! आज इस समारोह का आयोजन इन सामने बैठी हुई सैकड़ों विधवा बहनों के विकास को लेकर किया गया है। हमें इनकी परेशानियों को मिटाने का रास्ता तै करना है। आज आप और हम सबको मिलकर इनको सामाजिक-जीवन में आगे बढ़ाने और इनके सुन्दर सुनहरे भविष्य के बारे में सोचना है। आज के इस शुभ अवसर पर सामाजिक जीवन में महान क्रान्ति लाने वाले सच्चे समाज सेवी एवं विधवा विवाह के महान समर्थक भूतपूर्व मंत्री माननीय सेवकराम जी ने पधार कर हमारा गौरव बढ़ाया है। हम उनके विशेष आभारी हैं। मैं उनसे निवेदन करता हूँ कि वे इस समारोह का विधिवत-उद्घाटन करते हुए अपने दो शब्दों द्वारा हमारा मार्ग दर्शन करें।' तभी जोरदार तालियाँ बज उठीं।
चुस्त पाजामा, खादी की शेरवानी और सफेद गांधी टोपी में सेवकराम जी खूब फब रहे थे।
भूतपूर्व मंत्री जी ने उठकर सर्वप्रथम भरपूर उपस्थिति पर नजर डाली-सोचा भीड़ तो उत्साह वर्धक है। फिर गला साफ करते हुए बोलना प्रारम्भ किया- ‘‘भाइयों और बहिनों! इधर कुछ समय से मैं अस्वस्थ चल रहा हूँ। डॉक्टरों ने मुझे घूमने- फिरने के साथ अधिक बोलने पर भी अंकुश लगा रखा है। परन्तु आज आप लोगों के दर्शनों की लालसा ने मुझे यहाँ आने को विवश कर दिया। इसे मैं रोक न सका। मैं इन हजारों दुखित विधवा बहिनों के बीच अपने को पाकर धन्य हो गया हूँ। काश ईश्वर मुझे भी इनके दर्द का थोड़ा सा हिस्सा दे देता तो मैं और भी धन्य हो जाता। (फिर जोरदार तालियाँ बजने लगीं।) क्योंकि मैं राजनीतिज्ञ बाद में हूँ और समाज सेवक पहले। इसलिए कहता हूँ हमारी ये बहिनें एक प्रकार से सामाजिक अन्याय से पीड़ित हैं। ये भाग्य के साथ-साथ हमसे यानी समाज से सताई हुई हैं। हमने इन्हें अंधविश्वास और रूढ़िवादिता से मुक्त नहीं कराया। इनमें साहस नहीं जगाया। जिससे बहुत सी बहिनें पतन के गर्त में गिर गईं। बहुत सी बहिनों को अपना तन तक बेचने को मजबूर होना पड़ा।
मैं आज के इस समारोह में युवकों से प्रार्थना करता हूँ कि वे इस सामाजिक क्रान्ति में आगे आयें और इन बहिनों को अपनायें। साथ ही मैं इस समारोह का विधिवत उद्घाटन करता हूँ और यहाँ इन विधवाओं के विवाह में व्यय होने वाले धन के लिए दस हजार एक सौ एक रूपये की एक छोटी सी भेंट भी अर्पण करता हूँ।
तालियों की गड़गड़ाहट से फिर हाल गूँज उठा। तालियों के शोर में ही उन्होंने यह भी घोषणा कर दी कि यदि मेरा बेटा भी कभी विधवा विवाह का प्रस्ताव मेरे समक्ष रखेगा तो मैं कभी इन्कार नहीं करूँगा और अपना सौभाग्य समझूँगा।'' इतना कहते हुए सेवकराम जी ने समारोह का उ�घाटन करते हुए शास्त्री जी को दस हजार एक सौ एक रूपये का चैक भेंट कर दिया फिर अस्वस्थता की बात कहते हुए सभी से क्षमा याचना कर विश्राम हेतु घर लौट आये। अगले दिन यह समाचार सभी समाचार पत्रों में बड़े-बड़े शीर्षकों में प्रमुख खबरों में छपा। सेवकराम जी अत्यन्त प्रसन्न हो रहे थे। उनकी पत्नी और बच्चे कह रहे थे कि आपके कल के भाषण ने वास्तव में आपकी अच्छी शोहरत मचा दी है। आगामी उप चुनावों में आपकी सीट पक्की है।
तभी टेलीफून की घंटी बजी। सेवक राम ने बड़े उत्साह से रिसीवर उठाया।
‘‘मैं कीमती लाल बोल रहा हूँ- मंत्री जी।''
‘कहिए सेठ जी कैसे याद किया?' - भू.पू. मंत्री जी बोले।
‘‘कल के आपके विचारों से मैं बहुत प्रभावित हुआ। वास्तव में हमारे नेताओं और समाज सुधारकों में ऐसी भावना आ जाये तो देश का उद्धार हो जाये। इसी खुशी में मैं आपको अपने घर डिनर के लिए आमन्त्रित कर रहा हूँ। मुझ गरीब का घर भी आप जैसे समाज सुधारकों की चरण-धूल से पवित्र हो जायेगा।'' सेठ जी ने कहा।
‘‘आप और गरीब‘, सेठ कीमती लाल जी।'' सेवकराम जी ने कहा। आप तो उद्योग की मानी हुई हस्ती हैं। सेठ जी कहिए-आपकी सेवा में कितने बजे हाजिर हूँ।'
‘मंत्री जी कल जरा जल्दी ही आ जायें तो इधर-उधर की कुछ और बातें भी हो जायेंगीं'- सेठ जी ने कहा।
सेवक राम आज का दिन अपने लिए शुभ मान रहे थे। वे भीतर से बहुत प्रसन्न थे। कई सालों से सेठ कीमती लाल को अपने पक्ष में करना चाहते थे और आज वह स्वयं उनको डिनर के लिए आमन्त्रित कर रहे हैं। अबके चुनाव का पूरा व्यय उन्हीं से करवाया जायेगा। उनके प्रभाव से वोट भी अच्छे मिल जायेंगे। अरे, अब जब मैं मिनिस्टर नहीं हूँ तो अभी से क्यों न चुनाव गठबंधन कर लिया जाये। उनके सहयोग से अपने पुत्र नितिन को क्यों न कोई छोटा-मोटा उद्योग खुलवा लिया जाय; आदि विचारों से हवाई पुल बाँधने लगे। सेवकराम ने सोते-सोते न जाने कितनी बड़ी-बड़ी योजनायें बनालीं।
आज की सुबह उनके लिए विशेष कीमती थी। रह-रह कर उनके सामने सेठ कीमती लाल की सूरत आ रही थी। समय बहुत धीरे-धीरे खिसक रहा था। ठीक ग्यारह बजे सेवक राम जी कीमती लाल की कोठी पर पहुँचे। पोर्च में गाड़ी पहुँचते ही सेठजी ने स्वयं आकर उनकी अगुवाई की। आधुनिक ढंग से सुसज्जित बहुत ही खूबसूरत कमरे में उन्हें बिठाया गया। वहाँ प्रत्येक वस्तु अधिक मूल्यवान और विदेशी थीं। सेठ जी का जीवन स्तर देखकर तो मंत्री जी मंत्र-मुग्ध हो गये। तभी एक काली सी लड़की बेशकीमती वस्त्रों में लिपटी एक ट्रे में दो चांदी के गिलासों में जल लेकर उपस्थित हुई। उसके नैन-नक्श बहुत आकर्षक थे। रंग अवश्य आवश्यकता से अधिक काला था। बड़ी-बड़ी आँखें एकदम मोती जैसे चमकते दाँत, और गदराया शरीर।
सेवकराम उसे एकटक देखते रह गये। उनकी तन्द्रा तब भंग हुई जब सेठ जी ने उनसे कहा-मंत्री जी यह मेरी लाडिली बेटी है- क्षमा।'' फिर सेठ जी ने अपनी बेटी से कहा- ‘‘बेटी-थोड़ी देर बाद दो कप काफी और......।'' हाँ पापा, कहकर क्षमा गिलास उठाकर अन्दर चली गई।
क्षमा के चले जाने के पश्चात कीमती लाल जी ने एक लम्बी सांस खींचकर अपनी बात कहना प्रारम्भ किया- ‘‘आपको क्या बताऊँ मंत्री जी। यह लड़की विधवा हो जाने पर बड़ी अन्तर्मुखी हो गई है। अपने जीवन को व्यर्थ समझने लगी है। मुझे भी इसके भविष्य के लिए कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। परन्तु कल के आपके भाषण ने मुझे एक नई रोशनी दी है। मेरे पथ को प्रशस्त कर दिया है। सेवकराम अत्यधिक उत्साहित होकर बोले- ‘‘सेठ जी मैं भी विधवा विवाह के एकदम पक्ष में हूँ। हमें नव युवकों को इस दिशा में प्रेरित करना चाहिए। आप भी दकियानूसी छोड़कर अपनी बिटिया का विवाह कर दें।
तब तक क्षमा बिटिया काफी के दो प्याले और कुछ नाश्ता एक ट्रे में संजोये हुए लेकर आ गई और सामने रखकर पुनः अन्दर चली गई। इस बार उसकी ड्रैस चेन्ज थी। वह साड़ी और भारतीय परिधान में और भी आकर्षक लग रही थी। सेठ जी ने काफी का प्याला मंत्री जी की ओर बढ़ाते हुए अपनी बात आगे बढ़ाई- ‘‘सेवक राम जी मेरी बेटी के बारे में आपका क्या खयाल है?'' ‘‘किस विषय में'' - वे गम्भीर होकर बोले।
कल आपने कहा था कि मेरे बेटे ने यदि विधवा विवाह का प्रस्ताव.....।''
अचानक सेवकराम को जैसे साँप सूँघ गया हो। एकदम बड़े-बड़े नेत्रों से वे सेठ जी को घूरने लगे। फिर कुछ प्रश्न भरी दृष्टि से बोले- ‘‘ठीक ही तो कहा था मैंने। ठीक है इसमें मुझे कोई एतराज नहीं। परन्तु यह मेरे बेटे नितिन का निजी मामला है। मैं उसकी राय जानकर ही बताऊँगा- आपको।''
देखिए वैसे तो मुझे हजारों रिश्ते मिल सकते हैं, एक करोड़ पति बाप की बेटी के लिए वरों की क्या कमी है। परन्तु मैं अपने बराबर का स्टेटस चाहता हूँ।'' - सेठ कीमती लाल ने फरमाया।
मैं इस पर गम्भीरता से विचार करूँगा। आप विश्वास रखें। ये तो मेरे आदर्श की बात है।'' -मंत्री जी ने कहा।
भोजन के उपरान्त दोनों दिग्गजों में घुट-घुट कर बातें होने लगीं। धीरे-धीरे यह खबर समाज में फैल गई। नेताजी सेवकराम अपने लड़के की शादी सेठ कीमती लाल की विधवा पुत्री क्षमा से करेंगे। ये खबरें समाचार पत्रों ने भी बड़ी-बड़ी सुर्खियों में प्रकाशित कीं। सभी ने इस विधवा विवाह की खूब प्रशंसा की। सगाई की रस्म भी बड़ी सादगी से सवा रूपये में सम्पन्न हुई। अब विवाह का दिन भी समीप आने लगा।
पूर्व मंत्री सेवकराम ने एक दिन सेठ कीमती लाल को अपने बंगले पर बुलाया।'' मुझे लगता है कि इस विवाह सम्बन्ध में कुछ विध्न आने वाला है।'' मंत्री जी ने कहा। ‘‘ये आप क्या कह रहे हैं?'' कीमती लाल ने साश्चर्य पूछा।
‘‘मैं ठीक ही कह रहा हूँ सेठ जी! आपका बड़ा बेटा मेरे बेटे को आपकी कम्पनी में फिफ्टी परसेन्ट शेयर देने को राजी नहीं है। मैंने पहले ही कहा था कि मेरे नितिन को आपकी कं. में फिफ्टी का शेयर चाहिए?''
‘‘अब आप इस जिद पर मत अड़िए मंत्री जी। आपके बार-बार इन्कार करते करते मैं आपको एक करोड़ का एक नया फ्लैट तथा एक कार देने का वायदा कर चुका हूँ। आप जैसे आदर्शवाले समाज सुधारक को अधिक लालच में नहीं पड़ना चाहिए।'' -सेठ कीमती लाल ने चश्मा ठीक करते हुए कहा।
‘‘मैं और लालच-छिः छिः। मुझे कुछ नहीं चाहिए। यह तो आपका और नितिन का आपसी मामला है। मुझे तो आपने जो कहा है उससे अधिक कुछ भी नहीं चाहिए।'' - मंत्री जी ने मुस्कराते हुए कहा। नितिन ने मुझसे साफ कह दिया है, कि वह आपकी कंपनी में आधा हिस्सा तो चाहेगा ही। अब विचार लीजिए।
‘‘अब आप मुझे नाजायज रूप से ठग रहे हैं। मंत्री जी?'' कुछ नाराजगी भरे लहजे में कीमती लाल ने कहा। ‘आपके आदर्श और उपदेश क्या बिलकुल दिखावटी हैं?''
‘‘मैं इस में कर ही क्या सकता हूँ, सेठ जी।'' - रूखेपन में सेवकराम ने कहा।
कीमती लाल जी यह कहकर उठते बने- ‘‘आप कैसे समाज सुधारक हैं- मैं इस पर अभी सोचूँगा। तभी कोई निर्णय ले पाऊँगा।''
‘‘हाँ हाँ सोचलें। इस पर गम्भीरता से सोचें। यह आपकी इज्जत का भी प्रश्न है। देखिए एक तो आपकी बेटी काली है और उस पर भी विधवा। तब भी मैंने बेटे से हाँ करवा दी। अब यह मामला मेरे बेटे का सर्वथा निजी है। इसमें मैं भी कुछ दखल नहीं दे सकता।''
कीमती लाल उठकर चलते बने। सेवकराम अकेले कमरे में मसनद के सहारे बैठे रहे। एक अजीब सी नीरसता थी कमरे में। बैठे बैठे वे ख्वाबों के महल बनाने लगे।
सेठ कीमती लाल अपने घर आकर अपने कमरे में निढाल पड़ गये। वे अपने ऊपर ग्लानि से भरे हुए थे। सोच रहे थे कि मैंने ही सेवकराम को दौलत का प्रलोभन देकर इस शादी के लिए तैयार किया था। लेकिन मुझको क्या मालूम था, वे समाज सुधारक के रूप में लालची कुत्त्ो हैं। लेकिन अब बात समाज में फैल चुकी है। यदि यह शादी नहीं हुई तो मेरी पूरी प्रतिष्ठा धूल में मिल जायेगी। अब तो मैं बुरी तरह फंस चुका हूँ। साँप छछूंदर वाली गति हो गई है मेरी।
सेठजी के एकान्त नीरवता मय वातावरण को उनकी बेटी क्षमा ने आकर भंग कर दिया। अप्रत्याशित क्षमा के आगमन से सेठजी चौंक उठे और उसे निहारने-लगे, व्यथा से बोझिल प्रश्न भरी दृष्टि से।
‘‘पापा-मैंने आपकी और सेवकराम जी की सारी बातें सुनलीं हैं। मुझे आज ही ज्ञात हुआ कि मेरा वैधव्य करोड़ों में बिक रहा है। इसका आभास तो मुझे पहले से ही था, परन्तु आज प्रत्यक्ष में ज्ञात हो गया और सारे रहस्य से पर्दा खुल गया।'' -क्षमा ने कहा।
‘‘पापा-विधवा विवाह का आदर्श उपस्थित करना है तो दौलत से नहीं नैतिकता के सिद्धान्तों से करिए।
पिता ने कहा - ‘बेटी -तुझे इन पचड़ों में नहीं पड़ना चाहिए। हम स्वयं तेरे हित की चिन्ता में लगे हैं।' -एक लम्बी साँस खींची सेठजी ने।
‘परन्तु पिताजी मैं यह शादी नहीं करूँगी। यह निर्णय मैं दृढ़तापूर्वक ले रही हूँ। -बेटी ने कहा।
‘‘मगर यह विवाह नहीं हुआ तो मेरी इज्जत मिटटी में मिल जायेगी, बेटी! मेरे लिए चन्द चांदी के टुकड़े तेरी जिन्दगी से ज्यादा कीमती नहीं हैं।'' -पिता ने कहा।
‘‘मगर यह बात सिद्धान्ततः गलत है। मैं हरगिज इसे नहीं मानूँगी। पापा-मुझे इसके लिए क्षमा करें। इन लालची कुत्तों की भूख कभी शान्त नहीं होगी। आगे भी मुझे और आपको इनसे स्थायी शान्ती नहीं मिलेगी।''
‘पापा - मैंने अपना वर स्वयं चुन लिया है। वह धनवान नहीं है परन्तु वैल एजूकेटेड इन्सान है। मास्टर लखमी चन्द जी का लड़का प्रशान्त। वह अब एक पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में प्रौफेसर भी है। हम दोनों बचपन से ही एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं। वह मुझसे शादी करने को तैयार है। वे लोग दहेज में एक पैसा भी नहीं लेंगे।'
‘मगर मेरी इज्जत'' सेठ जी ने कराहते हुए कहा।
‘‘पापा - इज्जत की चमक रिश्वत देकर अधिक दिन नहीं रखी जा सकती। पापा- प्लीज, आज मैं बालिग हूँ। अपना हित-अनहित अच्छी प्रकार समझती हूँ। मैं अपने कालेपन और वैधव्य का सौदा रूपये देकर कदापि नहीं करने दूँगी।''
और क्षमा ने तैश में आकर फोन उठा लिया। सेवकराम जी ने जो कमरे में करोड़पति बनने के ख्वाब देख रहे थे, फोन की घन्टी बजते ही रिसीवर उठा लिया। बड़ी उत्सुकता से बोले- ‘‘कौन सेठ जी बोल रहे हैं क्या? हाँ, कहिये क्या निर्णय लिया। मन में तुरन्त सोचा कि कीमती लाल ने आखिर उनके सामने घुटने टेक ही दिए क्योंकि उनके पास और चारा ही क्या है?'' परन्तु फोन पर एक स्त्री का स्वर सुनकर चौंके ‘‘मैं सेठ कीमती लाल नहीं हूँ- मंत्री जी। मैं उनकी विधवा बेटी क्षमा बोल रही हूँ। मंत्री जी- यह विवाह अब नहीं होगा। आप सिद्धान्त हीन निहायत गिरे हुए इन्सान हो। समाजसुधारक की आड़ में छिपे भेड़िया हो। हाँ मैं अन्यत्र शादी कर रही हूँ।'' -यह कहते हुए क्षमा ने फोन रख दिया।
मंत्री जी जोर से चीखे- ‘हलो, हलो, क्या कहा, मैं सिद्धान्तहीन हूँ। निहायत गिरा हुआ इन्सान, समाज सुधारक नहीं भेड़िया हूँ?' परन्तु फोन तो कट चुका था और मंत्री जी हाथ में रिसीवर लिए वहीं लुढ़क गये। शायद उन्हें फिर से दिल का दौरा पड़ गया था।
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''' जगदम्बा भवन, 104 चन्द्रलोक कॉलौनी, कृष्णा नगर, मथुरा-281004
वाह ……………गज़ब की कहानी और और उसका अन्त्…………आज ऐसे ही उच्च विचारों की आवश्यकता है जहां पैसे की जगह इन्सानियत को अहमियत दी जा सके।
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