यह मात्र संयोग नहीं है कि भारत के विरूद्ध सुपर बग तथा अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की अमेरिकियों के सस्ते इलाज के लिए भारत या मैक्सिकों...
यह मात्र संयोग नहीं है कि भारत के विरूद्ध सुपर बग तथा अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की अमेरिकियों के सस्ते इलाज के लिए भारत या मैक्सिकों जाने की चिन्ता हो, दोनो ही मामलों में भारत के विरूद्ध कुप्रकार की गन्ध तो मिलती ही है और साथ ही भारत की धीरे-धीरे बढ़ती ताकत का एहसास भी पूरी दुनिया महसूस कर रही है। ज्ञान के युग में जिस सर्वाधिक संसाधन की आवश्यकता होती है वह मानव संसाधन है, जिसकी पूंजी भारत की झोली में नैसर्गिक तौर पर है। उदारीकरण के बाद आई टी की धूम ने भारतीय मेधा की पहचान अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार कराई। आई टी के साथ-साथ दवा उद्योग, वाहन उद्योग सहित कई उद्योगों ने अन्तर्राष्ट्रीय पहचान इन बीते 20 वर्षों में देश की मेधा ने बनाई। इन सारे उद्योगों या इनके इतर अन्य मामलों में भारत की वैश्विक बढ़त का मुख्य कारण भारतीय मेधा ही थी। अमेरिका सहित सारे विकसित देश इस उभरती भारतीय क्षमता को हतोत्साहित करने का प्रयास नये-नये तरीकों से करते रहते है। अमेरिका द्वारा आऊट सोर्सिंग पर प्रतिबन्ध या आऊट सोर्स कराने वाली कम्पनियों पर कर वृद्धि का मामला, एच1बी बीजा को आठ गुना महंगा करने का विषय, सुपर बग का कुप्रचार या अमेरिकी नागरिकों का भारत में इलाज के लिए आने का मसला हो, हर तरह से अपनी श्रेष्ठता से पीड़ित अमेरिका और अमेरिकी राष्ट्रपति भारत को घेरने की हर संभव कोशिश करते दिखते है और भारत को बदनाम कर उसकी व्यवसायिक क्षमता की धार को कुन्द करने का प्रयास करते है।
अभी आल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बर्जीनिया के एक कार्यक्रम में कहा कि मेरी प्राथमिकता होगी कि अमेरिकी जनता सस्ते इलाज के लिए मैक्सिकों या भारत न जायें। भारतीय स्वास्थ्य जगत में जबरदस्त प्रतिक्रिया स्वाभाविक तौर पर हुई जिसकी अपेक्षा इस खुली और तथाकथित बराबर के मौकों वाली वैश्विक अर्थव्यवस्था में होनी चाहिए थी। प्रतिस्पर्धा के लिए समतल मैदान की बातें तथा मुक्त अर्थव्यस्था का पैरोकार अमेरिका लगातार अपने देश की कृषि तथा उद्योगों को अतिरिक्त संरक्षण दे रहा है तथा दूसरे अन्य संभावना वाले देशों की राह में रूकावट पैदा कर रहा है। यह सच है कि अमेरिका की स्वास्थ्य सेवायें भारत की स्वास्थ्य सेवाओं के मुकाबले कई गुना मंहगी है। अमेरिकी राष्ट्रपति अपने यहॉ ‘हेल्थ केयर रिफार्म पैकेज' से काफी उम्मीदें लगाये बैठे है जिसके अनुसार अमेरिका में इलाज आम आदमी की पहुॅच के अन्दर आ जायेगा। अमेरिका के स्वास्थ्य सेवायें निजी हाथों में है तथा यह काफी महंगी है। जो आम जनता की पहुंच से काफी बाहर है। अमेरिका में भारत के सापेक्ष इलाज 10 से 15 गुना तक महंगा है। अमेरिकन मेडिकल एशोसियेशन के एक अनुमान के मुताबिक अमेरिका में भारत के मुकाबले हार्ट बाईपास 13 गुना, हार्ट वाल्व बदलना 16 गुना, एन्जियोप्लास्टी 5 गुना, कूल्हा प्रत्यारोपण 5 गुना, घुटना प्रत्यारोपण 5 गुना तथा स्पाइनल फ्यूजन लगभग 11 गुना महंगा है। अमेरिका में स्वास्थ्य बीमा महंगे होने के कारण लगभग 4 करेाड़ लोग बिना बीमा के जीवन यापन कर रहे है। पूरे देश में महंगी स्वास्थ सेवाओं के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति सवालों के घेरे में है। अत खर्चों में कटौती की बात कर स्वास्थ्य सेवाओं को सस्ता करने का प्रयास भारत की किफायती और उच्चस्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं को लांक्षित करके नहीं किया जा सकता है।
भारत में स्वास्थ्य सेवायें निजी क्षेत्र में आधुनिक और उच्च स्तरीय होती जा रही है तथा भारत की छवि ‘मेडिकल टूरिज्म' के क्षेत्र में उत्तरोत्तर सुधरती जा रही है। पिछले वर्ष भारत में लगभग 6 लाख विदेशी अपने इलाज के लिए भारत आये थे तथा इस वर्ष इस आकड़े में और वृद्धि की संभावना है। अपने देश में एक तरफ इलाज स्तरहीन तथा अनुपलब्ध है। वहीं दूसरी ओर निजी क्षेत्र के अस्तपताल ‘मेडिकल टूरिज्म' की संभावना केा ध्यान में रखकर अपना स्तर तथा उपलब्धता बढ़ाते ही जा रहें है। पिछले वर्ष अपोलों अस्तपताल में अकेले 60,000 के आसपास विदेशी मरीज अपने इलाज के लिए आये थे जिनमें अमेरिका और यूरोप के लगभग 20 प्रतिशत मरीज थे। मैक्स अस्पताल तथा फोटिंर्स अस्पताल में भी क्रमशः 20,000 तथा 6,000 विदेशी मरीज अपने-अपने इलाज के लिए यहॉ आये थे जिसमें लगभग 20 प्रतिशत मरीज अमेरिका और यूरोप से आये थे। देश में विदेशी मरीजों के कारण लगभग 4,500 करोड रूपये की आय हुई थी। देश के सभी निजी अस्पताल इन विदेशी मरीजों की संभावनाओं के कारण अपना वैश्विक विस्तार कर रहे है, उच्च स्तरीय सुविधायें मुहैया करा रहे है, दूसरे देशों के प्रमुख अस्तपतालों के सहयोग का अनुबन्ध कर रहे है, सूचना/सुविधा केन्द्र खोल रहे है तथा इन्टरनेट का भरपूर इस्तेमाल कर रहें हैं। इस तरह भारत में किफायती और अच्छा इलाज उपलब्ध होने की संभावनाये वैश्विक स्तर पर धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। अतः स्वाभविक ही है कि अच्छा और किफायती इलाज दुनियॉ में जहॉ भी उपलब्ध होगा ‘ग्लोबल विलेज' का नागरिक उस ओर ही रूख करेगा। ‘मेडिकल टूरिज्म' की बढने के साथ ही देश के लोगों की नौकरियॉ और व्यवसाय की संभावनाये भी बढ़ती जायेगी। इस समय सूचना केन्द्र/सुविधा केन्द्र का व्यवसाय, टेलिमेडिसन का व्यवसाय, विदेश मरीजों के लिए गेस्ट हाउस, दुभाषियों के सुनहरे मौके, अस्पताओं का विस्तार और दवा उद्योग का विस्तार, दवा के दुकानदारों की वृद्धि, हर देश के नागरिक की रूचि के अनुसार भोजन का व्यवसाय तथा मेडिकल इन्श्योरेन्स के व्यवसाय की वृद्धि लाजिमी है। भारत का निजी क्षेत्र इस संभावना का दोहन वैश्विक स्तर पर कर लेना चाहता है। इस समय मेडिकल टूरिज्म के मालमे में अकेले भारत ही नहीं बल्कि थाईलैण्ड, मलेशिया, ब्राजील और सिंगापुर भी बड़ी संख्या में अपने यहॉ विदेशी मरीजों को आकर्षित कर रहे है, अतः इस क्षेत्र में भी जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा चल रही है।
इस समय एक ओर तो मेडिकल टूरिज्म की वृद्धि हो रही है वही दूसरी ओर निजी स्वास्थ्य सेवायें देश के गरीबों की पहुंच से बाहर होती जा रही है। अमेरिका के अन्दर भी बुरे हालात परिणाम तक पहुंच चुके है। भारत के समक्ष भी खतरा हो सकता है। क्योंकि देश की सरकारी स्वास्थ्य सेवायें नाकाफी और नकारा साबित होती जा रही है। एक अरब इक्कीस करोड़ की आबादी के हिसाब से स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता तथा स्तरहीनता चिन्ता का विषय है। सरकार और निजी क्षेत्र को आपस में सहयोग कर एक ऐसा मॉडल तैयार करना चाहिए जिसमें देश की स्वास्थ्य सेवायें आम आदमी की पहुंच के अन्दर रहे तथा दूसरी तरफ विदेशी मरीजों को उच्चस्तरीय सुविधायें उचित दामों पर उपलब्ध हों। भारत की आबादी का यह विरोधाभास चुनौती भी है और ताकत भी है। हमें युवा आबादी के इस चुनौती को देश की ताकत के रूप में परिवर्तित करना है।
इस मेडिकल टूरिज्म के कारण भारत की निजी स्वास्थ्य सेवायें की भी उच्चस्तरीय एवं वैश्विक स्तर की होने की आवश्यकता बढ़ रही है। इस क्षेत्र में जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा में बढ़त के लिए भारत सरकार केा भी आगे आना होगा। अभी तक की सारी सफलतायें निजी क्षेत्र के प्रयासो के कारण है जिसमें सरकार की भूमिका नगण्य है। सरकार को मेडिकल टूरिज्म के मार्ग में आने वाली बाधाओं को जल्द से जल्द समाप्त करने के प्रयास करने होगें। पूरी दुनियॉ में महॅगी होती स्वास्थ्य सेवाये जहॉ उन देशों की चिन्ता का कारण है वहीं हमारे लिए संभावनाओं का मैदान भी है। अतः हमें इन संभावनाओं का हर संभव दोहन कर भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करनी चाहिए। अमेरिका सहित लगभग सभी विकसित देश महॅगी स्वास्थ्य सेवाओं को आसानी से सस्ता नहीं कर पायेगें। अतः अमेरिकी राष्ट्रपति की चिन्ता उनके लिए समस्या है भारत के लिए तो संभावना है। भारत में भी एक चिन्ता हो रही है कि बीमा आधारित स्वास्थ्य सेवाओं का माडल अमेरिका में असफल होता जा रहा है। अतः इस तरह की स्वास्थ्य सेवा भारत में तो निश्चित तौर पर असफल हो जायेगी क्योंकि यहां की आबादी अमेरिका की आबादी का लगभग 4 गुना है। अतः स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में किसी विदेशी मॉडल की बजाय अपने देश के हिसाब से मॉडल बनाकर हर वर्ग को समाहित करने का प्रयास करना चाहिए।
डॉ0 मनोज मिश्र
एशोसिएट प्रोफेसर
भौतिक विज्ञान विभाग,
डी0ए-वी0 कालेज,
कानपुर।
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संपर्क:
डॉ0 मनोज मिश्र
‘सृष्टि शिखर'
40 लखनपुर हाउसिंग सो0,
कानपुर - 24
dr.manojmishra63@yahoo.com
यही अन्तर है अमेरिका होने का.. वहां का राष्ट्रपति अपने देश की बरक्कत देखना चाहता है, अपने नागरिकों को स्वस्थ देखना चाहता है और हमारे यहां सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है.. और निजी का तो कहना ही क्या... एक बार मरीज घुस भर जाये हास्पिटल में...
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंएक अरब इक्कीस करोड़ की आबादी के हिसाब से स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता तथा स्तरहीनता चिन्ता का विषय है।
आपकी चिंता जायज है। समय रहते इन विषयों पर गौर करना होगा।
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बहुत अच्छा एवम रोचक लेख!
जवाब देंहटाएंओबामा के कहने से दुनिया का कारोबार नहीं रुकेगा। जैसे भारत चाहे तो भी बाहर जाकर शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या में सिर्फ सरकार के कहने भर से कमतरी नहीं हो सकती। उच्च शिक्षा का स्तर विकसित देशों में भारत के स्तर से बहुत ज्यादा ऊपर है अतः ऐसा बहाव बना रहेगा। ऐसा करने के लिये भारत को उच्च शिक्षा का स्तर विश्व स्तरीय बनाना पड़ेगा जो शिक्षा संस्थानों में मौजूद दम्भ और जड़ मानसिकता को देखते हुए हाल फिलहाल बहुत मुश्किल लगता है।
ऐसा ही भारत के साथ उन सब मामलों में हो सकता है जहाँ भी वह अच्छी सेवायें सही कीमत पर मुहैया करा सकता है।
पर इस क्षेत्र में बढ़त लेने के लिये जरुरी है कि भारत का हेल्थ सेक्टर, जिम्मेदार और स्तरीय बने। बाहर से आने वाले मरीजों को विश्वस्तरीय चिकित्सा दे और धन के इस बहाव का भारतीयों को चिकित्सा देने में भी उपयोग करे। खाली बाहर के मरीजों के लिये सेवा देने लगेंगे तो वे देश हित के खिलाफ काम करेंगे। भारत के स्त्रोत इस्तेमाल करेंगे और देश को कुछ नहीं देंगे। बदकिस्मती से बहुत सारे मामलों में ऐसा ही हो रहा है।
भारत की चिकित्सा सेवा मानव अंगों से सम्बंधित स्कैण्डल्स के कारण बहुत बदनाम भी है और वहाँ स्वच्छता, पारदर्शिता और स्तरीयता की महती आवश्यकता है।