अपराध कुछ लोग बतिया रहे हैं - ‘तुम्हें पता है वहां अपराध कम हो रहे हैं।‘ ‘अच्छा ! .......हमारे यहां तो दिन पर दिन बढ़ ही रहे हैं।‘ ‘वह...
अपराध
कुछ लोग बतिया रहे हैं -
‘तुम्हें पता है वहां अपराध कम हो रहे हैं।‘
‘अच्छा ! .......हमारे यहां तो दिन पर दिन बढ़ ही रहे हैं।‘
‘वहां का कानून बड़ा कठोर है ना।‘
‘तभी !.......यहां तो कानून का किसी को डर ही नहीं।‘
‘पता है वहां अभी एक उच्चाधिकारी को भ्रष्टाचार के आरोप में
फांसी दी गई है।‘
‘और यहां............. दुर्दान्त आतंकवादी की भी फांसी भी रोक दी गई है।‘
सस्ता
आज बाजार में बड़ा हल्ला हो रहा था। सुना है मंहगाई में कुछ कमी हुई है। बड़े मैदान पर चल रही सभा में नेताजी जोर-जोर से बता रहे थे-‘‘ये हमने कर दिखाया है.....रसोई गैस में 20 और पेट्रोल-डीजल में 5-5 रूपये की कमी की है........हवाई जहाज का किराया भी हमने 30 प्रतिशत कम कर दिया है............जमीनों की कीमतें और सीमेंट-सरिये की कीमतें भी कम हो रही हैं........हमने जनता की सुविधा का पूरा ध्यान रखा है............इससे गरीब जनता को राहत मिलेगी...........।‘‘
किसना दिन भर ठेले पर माल ढ़ोता यह सब सुनकर बहुत खुश था। वह सोच रहा था-‘‘आज मेरी मजूरी में से चार-पांच रूपये तो बच ही जाएंगे।‘‘
शाम को वह जल्दी-जल्दी राशन की दुकान पहुंचा। वहां भी कुछ लोग मंहगाई में राहत होने की ही चर्चा कर रहे थे। किसना खुश होता हुआ बोला-‘‘सेठजी, मुझे तो आटा-दाल ही चाहिए.........इसमें कितने कम हुए.........।‘‘ उसकी बात सुन सेठजी सहित वहां खड़े सभी लोग ठहाका लगाकर हंस पड़े।
भाषा
भव्य शपथग्रहण समारोह चल रहा था। अहिन्दी भाषी क्षेत्र के साथ-साथ अधिकांश हिन्दी भाषी क्षेत्र के मंत्री भी अंग्रेजी में शपथ ले रहे थे। सभी सहजतापूर्वक सुन रहे थे और औपचारिक तालियां भी बज रही थीं।
एक दक्षिण प्रांतीय महिला ने जब हिन्दी भाषा में शपथ लेना शुरू किया तो सभी आश्चर्यचकित हो गए। कुछ शब्दों का उच्चारण ठीक से न बोल पाने पर भी उसने संभल-संभल कर हिन्दी में शपथ पूर्ण की। हॉल में बैठे सभी गणमान्य व्यक्ति इससे खुष होकर देर तक तालियां बजाते रहे और उस महिला की प्रशंसा करने लगे। कोई कह रहा था-‘‘वाह! हिन्दी में शपथ लेकर आपने तो कमाल कर दिया...।‘‘
टेलीविजन पर यह सब देख रहे मेरे 11 वर्षीय पुत्र ने अनायास पूछा-‘‘पापा, हमारी राष्ट्रभाषा तो हिन्दी ही है ना.........?
आतंकवाद
क्लब हाऊस में चर्चा गर्म थी। आतंकवाद से कैसे निपटा जाए। इस ज्वलंत मुद्दे पर तार्किक बहस चल रही थी। सबके अपने तर्क, अपने समाधान -
‘‘आतंकवाद से निपटने के लिए पोटा जैसा सख्त कानून होना चाहिए।‘‘
‘‘आतंकवादियों को सरे आम फांसी दी जानी चाहिए।‘‘
‘‘देष में एक विशेष कमांडो फोर्स हो, जो आधुनिक हथियारों से लैस हो।‘‘
‘‘मैं तो कहता हूं पड़ौसी देष में चल रहे आतंकी शिविरों पर आक्रमण कर उनका सफाया कर देना चाहिए।‘‘
‘‘राज्यों को और अधिकार मिलने चाहिए।‘‘
‘‘अमरीका और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के साथ मिलकर योजना बननी चाहिए।‘‘
‘‘मैं समझता हूं एक संघीय जांच एजेंसी गठित हो।‘‘
तकरार और बहस के बीच आजादी की लड़ाई देख चुके बाबूजी चुपचाप बैठे थे। किसी ने पूछा, ‘‘बाबूजी, आप चुप क्यूं हैं, बताइये आतंकवाद से निपटने के लिए क्या किया जाए?‘‘
बाबूजी ने एक गहरी श्वास ली और बोले, ‘‘सिर्फ राजनीतिक दृढ़ इच्छा शक्ति चाहिए...........।‘‘
अब सभी चुप थे।
वोट
‘‘सर, आज मुझे एक घण्टे की छुट्टी मिलेगी?‘‘
‘‘ छुट्टी! किसलिए?‘‘
‘‘सर, आज पार्लियामेन्ट के लिए पोलिंग है ना..........‘‘
‘‘तो.........? यू नो, प्राइवेट कम्पनी में छुट्टी नहीं होती।‘‘
‘‘आई नो सर। इसीलिए तो एक घण्टे की छुट्टी ही मांग रहा हूं। परिवार वालों को साथ लेकर अपना वोट डालकर आ जाऊंगा।‘‘
‘‘ओ.के., पर जल्दी आना।‘‘
‘‘सर, आप नहीं जाएंगे वोट करने।‘‘
‘‘नो, नेवर।‘‘
‘‘लेकिन सर, वोट तो हमारा अधिकार है.......‘‘
‘‘बट आई डोन्ट नीड।.........एक वोट के लिए कौन इतनी दूर उस गन्दी प्राइमरी स्कूल में जाए.......... और इतनी लम्बी लाईन में खड़े रहना........ आई कान्ट ............. ए.सी. छोड़कर ............ नेवर............‘‘
‘‘बट सर, एक-एक वोट कीमत होता है डेमोक्रेसी में........‘‘
‘‘नेवर माइंड, कोई फर्क नहीं पड़ता.......... ये जीते या वो.........पिसना तो जनता को ही है...............‘‘
साहब के ए.सी. कमरे से बाहर निकलते वह सोच रहा था - ऐ कितने ही पढ़े-लिखे वोट नहीं करते.... इसीलिए तो जनता को पिसना पड़ता है..........।
पहचान
राजनीतिक धुरंधरों ने सामाजिक सोच में नया क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है। समाज को मानव समूहों के स्थान पर जाति समूहों में बदल दिया है। कल ही चाय की थड़ी पर मिले कुछ लोक बतिया रहे थे -
‘‘नमस्ते, आपका परिचय ?‘‘
‘‘जी, मैं जाट हूं।‘‘
‘‘अच्छा और आप?‘‘
‘‘मैं गुर्जर.....‘‘
‘‘मुझे मीणा कहते हैं....‘‘
‘‘मैं ब्राह्मण हूं...‘‘
‘‘ये सज्जन मराठी हैं।‘‘
‘‘ये श्रीमान् बिहारी हैं।‘‘
‘‘ये बंगाली हैं....‘‘
‘‘और ये....................‘‘
मैं खड़ा सोचता रहा। मेरी असली पहचान क्या है.......... व्यक्तिगत नाम..........एक भारतीय...... या ........................!
संवेदना
आज आन्दोलन को आठ दिन हो गए हैं। प्रदेशभर में जगह-जगह धरने, प्रदर्शन हो रहे हैं, रास्ते जाम हो रहे हैं, रेल की पटरियां उखाड़ी जा रही हैं। राजनीतिज्ञों को अपनी कुर्सी और वोट की चिन्ता है तो आन्दोलनकारियों को अपनी मांगें मनवाने के स्वार्थ की फिक्र।
रोज हाथठेले से माल ठोकर मजदूरी कमाने वाला भोला आठ दिन से बेकाम बैठा है, उसके बच्चों को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही। मजदूरों की कच्ची बस्ती में मातम-सा छाया है। बन्द रास्तों के कारण श्रीवास्तव जी की दोनों लड़कियां कैरियर के लिए आवष्यक परीक्षा नहीं दे पाने के कारण व्यथित हैं। समाचार मिला है कि गांव से ट्रेक्टर में बैठकर शहर के स्कूल जा रहे बच्चों को बन्द का रौब दिखाकर मारा-पीटा गया और ट्रेक्टर में आग लगा दी गई। मंडी में सब्जियों के दाम आसमान छूने लगे हैं। हजारों यात्री ट्रेनें रद्द होने से स्टेशनों पर फंसे हुए हैं। चारों ओर आमजन हैरान-परेशैन है।
आन्दोलनकारी रेल की पटरियों और राजमार्ग पर डेरा डाले, अलाव के ताप में छक कर खा-पी रहे हैं और ढ़ोल-नगाड़ों की ताल पर खुशी से नाच-गा रहे हैं। टी.वी. पर यह सब दृश्य देखकर लगता है शायद् मानवीय संवेदना कहीं खो गई है।
प्रतिमा
चौराहे पर सैंकड़ों लोग अनशन कर रहे थे। एक समाजसेवी भाषण दे रहे थे-‘‘साथियों, आज हम सब सरकार और स्थानीय प्रशासन से यही मांग कर रहे हैं कि हमारे श्रद्धेय महापुरूष की प्रतिमा यहां चौराहे पर लगाई जाए। प्रतिमा लगने से लोगों को उनके जीवन से प्रेरणा मिलेगी, बच्चों को उनके बारे में जानने-समझने का अवसर मिलेगा। हम सब प्रतिवर्ष यहां महापुरूष की जयंती पर भव्य कार्यक्रम आयोजित करेंगे, प्रतिभावान बच्चों को पुरस्कृत करेंगे..................................।‘‘
उसी शहर में एक प्रमुख मार्ग पर स्थित उद्यान में एक अन्य महापुरूष की प्रतिमा लगी हुई है। आज उनकी जयंती भी है, किन्तु वहां कोई भव्य आयोजन तो दूर कोई माला पहनाने भी नहीं आया है।
भ्रष्टाचार-1
गांधी भवन पर आज सैंकड़ों लोग जमा हुए हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ धरना है। लोग हाथों में तख्तियां लिए हाथ उठा-उठाकर भ्रष्टाचार के विरूद्ध नारे लगा रहे हैं। प्रेस और मीडिया के तमाम लोग आ गए हैं। धरने का नेतृत्व कर रहे कार्यकर्ता गांधीजी की मूर्ति पर पुष्पहार पहना रहे हैं। फोटो खींची जा रही है, विविध चैनल के मीडियाकर्मी इन्टरव्यू ले रहे हैं।
लगभग दो घण्टे चले इस धरना कार्यक्रम के बाद लोग अब लौट रहे हैं। एक ओर धरने के अग्रणी कुछ लीडर बतिया रहे हैं। एक ने कहा-‘‘देखा भाई साहब, हमारे इतने प्रयासों के बाद भी इतने लोग ही इकट्ठा हो पाये हैं।‘‘ दूसरा बोला-‘‘जनता को तो जैसे इस सबसे कोई मतलब ही नहीं है।‘‘ तीसरा लीडर बोला-‘‘अब क्या करें, हमें तो यह सब करना ही पड़ता है, राजनीति में जिन्दा जो रहना है।‘‘
भ्रष्टाचार-2
वे आज बड़ी जल्दी में हैं। सामाजिक कार्यकर्ता हैं, अनेक संगठनों से जुड़े हुए हैं। आज भ्रष्टाचार के विरूद्ध विशाल रैली का आयोजन है। उसी में सम्मिलित होने के लिए जा रहे हैं। रास्ते में किसी काम से रूकना है, जल्दी में अपनी कार गलत जगह पार्क कर देते हैं। ट्रैफिक वाले क्रेन से कार उठाकर ले जाने लगते हैं। वे दौडकर उन्हें रोकते हैं। ट्रैफिक सिपाही बताता है कि चार किलोमीटर दूर स्थित थाने से पांच सौ रूपये जुर्माना देकर कार छुड़ानी होगी। वे सिपाही के पास जाते हैं और चुपके से सौ रूपये का नोट उसकी जेब में डाल देते हैं। कार छूट जाती है और वे समय पर रैली में पहुंच गए हैं।
कुछ देर बाद ही वे रैली को संबोधित करते हुए कह रहे हैं-‘‘...... अब प्रत्येक जन को जाग जाना है, हमें भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों का साथ कदापि नहीं देना है। ...... भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए हमें आज यह संकल्प लेना है कि हम न तो रिश्वत लेंगे और न ही कभी भी किसी को रिश्वत देंगे।..................‘‘
-उमेश कुमार चौरसिया
24.4.11
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परिचय विवरण
1. नाम ः- उमेश कुमार चौरसिया
2. पिता का नाम ः- श्री राम दयाल चौरसिया
3. शिक्षा ः- बी.कॉम., एल.एल.बी., एम.ए. (हिन्दी)
4. जन्म तिथि ः- 03 जनवरी, 1966
5. सम्प्रति ः- माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान, अजमेर में सेवारत
6. विधा ः- प्रमुख विधा- नाटक लेखन - निर्देषन - अभिनय
अन्य विधाएं- लघुकथा, कविता, व्यंग्य व गीत लेखन
7. प्रकाशित ः- दस नाट्य कृतियां व चार संपादित पुस्तकें प्रकाषित, विविध राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं एवं इन्टरनेट पत्रिकाओं में लघुकथाएं, व्यंग्य, लेख व कविताएं निरंतर प्रकाषित, दूरदर्शन व आकाशवाणी के लिए निरन्तर लेखन
8. पुरस्कार-सम्मान ः-1. अखिल भारतीय युवा साहित्यकार सम्मान-2005 2. गणतत्र दिवस समारोह में जिला स्तर
पर रंगमंच के क्षेत्र में कार्य के लिए सम्मान-2009 3. अजयमेरू सांस्कृतिक समारोह में कला साधक सम्मान-2006 4. ‘नन्हीं हवा‘ नाटक राज्य में प्रथम पुरस्कार से पुरस्कृत व चार अन्य नाटक राज्य स्तर पर पुरस्कृत । श्रेष्ठ नाटक निर्देशन/अभिनय के लिए अनेक बार पुरस्कृत। 10 वर्ष से बाल-रंगमंच के लिए कार्य
9. पता ः- 50 महादेव कॉलोनी, नागफणी, बोराज रोड़, अजमेर-305001(राज.)
ई-मेल ः ukc.3@rediffmail.com
सामाजिक दायित्व ः-1.सह नगर संचालक, विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी, शाखा-अजमेर
2.सहयोगी संपादक ‘राजस्थान बोर्ड शिक्षण पत्रिका‘
सभी लघुकथायें बेहतरीन समाजिक व्यवस्था पर कडा प्रहार करती हैं।
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