शादीलालजी कुँवारे ही मर गये। कुँवारे इसलिये कि उनकी शादी ही नहीं हुई और शादी इसलिये नहीं हुई क्योंकि उनकी जिंदगी दूसरों कि शादी कराते कराते...
शादीलालजी कुँवारे ही मर गये। कुँवारे इसलिये कि उनकी शादी ही नहीं हुई और शादी इसलिये नहीं हुई क्योंकि उनकी जिंदगी दूसरों कि शादी कराते कराते ही पटरी से उतर गई। सबके काँटे भिड़ाते रहे दूसरों के हुक्के भरते रहे पर अपने गुड़गुड़ाने लायक एक भी हुक्का नहीं भर सके बेचारे शादीलाल और आज इस रंग बिरंगी दुनिया से कूच कर गये। शादियां करवाना उनका पुश्तैनी धंधा रहा है। देश भर के कुँवारे लड़के लड़कियों की जन्म पत्रियां और उनका पूरा बायोडाटा शादीलालजी के माल गोदाम में भरा रहता था।
वे शादी भिड़वाने के बहुत ही कुशल एवं बहुत ही बड़े व्यापारी थे। जिस किसी को अपने बेटे या बेटी का ब्याह करना होता वह शादीलालजी को एक पोस्ट कार्ड डाल देता और पत्र व्यवहार चालू हो जाता। उनके पास हर श्रेणी के लड़के लड़कियों की जानकारी होटल में चाय की तरह हाजिर रहती थी। आई. ए. एस., डाक्टर, इंजीनियर, बाबू चपरासी, जवान अधेड़ बुड्ढे सब प्रकार के लड़कों का नाम एनरोल था। इसी प्रकार अति सुंदरी, सुंदरी अर्ध सुंदरी असुंदरी, काली, गोरी, मोटी, पतली, नाटी लंबी, गृहकार्य में दक्ष, नृत्य क्रीड़ा प्रवीण,भारत सुंदरी, फिल्म सुंदरी सभी प्रकार की लड़कियों की जानकारी मय हिस्टरी और ज्योग्राफी के उपलब्ध थी।
बड़ी लिमिटेड और रीजनेबिल फीस थी शादीलाल की, शादी का आंकड़ा फिट कराने की। प्राप्त दहेज का एक परसेंट वे लेते थे। वे इसे अपना हक मानते थे और एक तरह से इसे वे जनता की फ्री सेवा मानते थे क्योंकि इससे कम परसेंटेज में देश का कोई भी नेता अफ़सर या बाबू काम नहीं करता। आजकल तो करोड़ों अरबों का घोटाला धड़ल्ले से चल रहा है। बहुत बड़े समाजवादी थे शादीलालजी। श्रद्धा से आंखें भर आतीं हैं,जात पांत का कोई भेद नहीं था उनके पास,सब धर्मों का समान आदर,जात पांत पूछे न कोई हरि को भजे सो हरि को होई। ऐसे थे हमारे शादीलालजी। हाँ पत्र व्यवहार के लिये डाक खर्च वे लड़के लड़कियों के पेरेंट्स से अवश्य लेते थे। यदि लड़के लड़कियां अपनी मर्जी से शादी करते तो वे अवश्य उनकी मदद करते।
उनका कहना था कि जब लड़के लड़की तैयार हैं तो माँ बाप कौन होते टाँग मारने वाले। यदि लड़का लड़की तैयार होते और जन्म पत्री का मिलान नहीं होता तो वे अड़ंतू ग्रह को निकाल बाहर कर देते। वे ऐसा करना अपना हक समझते थे,आखिर ब्रह्माजी की गलती को कौन ठीक करे।
आज वे मर गये हैं,बड़ी याद आ रही है उनकी। मेरी शादी भी किसी जमाने में कराई थी उन्होंने। एक लड़की की करुण कहानी है जो मिसेस शादीलाल होते होते रह गईं और मिसेस बरबादीलाल बन गई। काश मेरा नाम बरबादीलाल न होता तो शादीलाल कुँवारे न मरते और मुहल्ले के आवारा टाइप लड़कों के कधों पर चढ़कर श्मशानघाट न जा रहे होते। शादीलाल ने उस लड़की से आंकड़ा फिट कर लिया था जो आज मिसेस बरबादीलाल बनी बैठी हैं। मेरे पिताजी ने मेरी कुंडली शादीलाल के पास भेजी थी लड़की की खोज में।
शादीलाल ने कई कुंडलियों से मेरी कुंडली का मिलान कर डाला पर कोई कुंडली नहीं मिली। मैं भी शादी के लिये कोई विशेष इंट्रेस्टेड नहीं था इसलिये मामला पेंडिंग कर दिया गया और मेरी कुंडली में ही लिपटा पड़ा रहा। इसी बीच शादीलालजी को एक लड़की जंच गई और उन्होंने उसे अपने लिये एंगेज कर डाला। अपने नाम की जनम कुंडली उन्होंने अपने हिसाब से ऐसी बना डाली कि लड़की की जूती में उनका पाँव फिट हो जाये हूबहू लड़की की कुंडली से मेल खाती बनाई उन्होंने अपनी कुंडली। लड़की के पिताश्री को यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई कि उनकी कन्या की पत्री ऐसे व्यक्ति की पत्री से मिली है जो अखिल भारतीय शादी संचालक है। शादी की तैयारियां जोरों पर थीं। आखिरकार शादीलाल दूल्हा बनकर शादी के मंडप में बैठ गये। "कन्या को बुलवाइये" के उदघोष के साथ ही एक सजी संवरी षोडशी छन छनाती हुई शादी के मंडप में शादीलाल के बाजू मॆं शादी कराने बैठ गई। पंडितजी बंधन बांधने के धागे कसने लगे। पर विधि को कुछ और ही मंजूर था।
शादीलालजी अपने ससुरश्री से दहेज के अतिरिक्त अपना एक पर्सेँट कमीशन अलग से माँग रहे थे। ससुरश्री का कहना था की अपनी ही शादी में शादी करवाने का कमीशन ...छी छी.. कितने गिरे हुये हैं शादीलालजी। पर एक पर्सेंट यानी एक पर्सेंट टस से मस नहीं हुये शादीलाल। ससुरश्री दहेज का एक पर्सेंट केलकूलेट करने के लिये दहेज की लिस्ट ढूंढ़ रहे थे की पता नहीं कैसे उनके हाथों में शादीलाल की जन्म कुंडली लग गई। कुंडली के हेडिंग में बरबादीलाल लिखा था जिसे काटकर शादीलाल किया गया था। याने शादीलाल ने फोर्जरी की थी। फिर क्या था शामियाना ही ढह गया। ससुरश्री का पारा क्वथनाँक पार कर गया और सब्र का थर्मामीटर फोड़कर बाहर निकल गया।
"मेरी बेटी की शादी बरबादीलाल से होगी" वे दहाड़े और शादीलाल का हाथ पकड़कर मंडप से बाहर खदेड़ दिया। सौभाग्यवश कहिये या दुर्भाग्यवश मैं यानि कि बरबादीलाल मौकाये बारदात पर हाजिर था सो धर लिया गया और आनन फानन में दूल्हाश्री बना दिया गया। और जो बाला क्षण भर पहले मिसेस शादीलाल होने वाली थीं मिसेस बरबादीलाल बन गईं।
उन्हीं शादीलाल की याद में आंखें भर आईं। जिंदगी दूसरों पर न्यौछावर कर दी,हज़ारों शादियां कराईं,पर खुद कुँवारे चल बसे और मुझ बरबादीलाल को असहाय छोड़ गये। हमने शादीलाल की वसीयत देखी जो ऐसे तलाकशुदा वकील के पास सुरक्षित थी जिसकी उन्होंने शादी कराई थी। वसीयत में लिखा था की उनके मरने के बाद उनकी कब्र पर ये चंद लाइनें टाँक दी जायें "मेरी दरगाह पर बैठो मुझे मत्था टेको जिंदा था तो तुमने बहुत सताया जालिम" मैंने उनकी अंतिम इच्छा जानकर यह पंक्तियाँ उनके पाँयतानें टंकवा दीं, शायद कोई उनकी दरगाह पर मत्था टेकने आये। मैंने भी अपनी तरफ से शादीलालजी के बलिदान एवं त्याग को मूर्त रूप देने के लिये ये पंक्तियां उनके सिरहाने लिखवा दीं "शहीदों की मजारों पर भरेंगे हर बरस मेले, क्वांरे मरने वालों का नहीं नामों निशां होगा"।
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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