प्र साद और रूबी वापस आ चुके थे. चंडीदास ने चपरासी को भेजकर प्रसाद को अपने चैंबर में बुलवाया. ‘‘ नमस्ते सर! '' कहने के बाद प्रसाद ...
प्रसाद और रूबी वापस आ चुके थे.
चंडीदास ने चपरासी को भेजकर प्रसाद को अपने चैंबर में बुलवाया.
‘‘ नमस्ते सर! '' कहने के बाद प्रसाद चंडीदास के ठीक सामने बैठ गया.
चंडीदास प्रसाद को एकटक देखने लगा. जैसे वह किसी अजनबी को देख रहा हो.
‘‘ और... ‘‘टूर'' कैसा रहा ? '' अचानक चंडीदास ने प्रसाद से पूछा.
‘‘ सुपर्व! मजा आ गया... '' प्रसाद ने चहकते हुए कहा.
‘‘ आज मैं तुम्हें दावत देता हूँ... शाम को ब्लू स्टार चलते हैं...'' चंडीदास ने मुस्कुराते हुए कहा.
‘‘ किस खुशी में सर!...''
‘‘ बस...ऐसे ही...क्या मैं तुम्हें दावत नहीं दे सकता ?...'' चंडीदास ने प्रसाद को रहस्यपूर्ण दृष्टि से देखते हुए कहा.
‘‘ क्यों नहीं सर!.. '' प्रसाद ने धीरे से कहा.
रात में ठीक साढ़े आठ बजे चंडीदास और प्रसाद होटल ब्लू स्टार के अन्दर दाखिल हुए. दोनों सीधे बार में चले गए. फिर लड़खड़ाते हुए रेस्टोरेंट में आकर खाना खाने लगे.
‘‘ तुम्हें पूनम के बारे में भी कुछ सोचना चाहिए!...'' एकाएक चंडीदास ने गंभीर वाणी में कहा.
‘‘ क्या मतलब... ? '' प्रसाद चौंक गया.
‘‘ मतलब एकदम साफ है...पति की भी पत्नी के प्रति कुछ जिम्मेदारियाँ होती हैं. तुमने खुद पूनम को पसंद करके शादी किया था. तुम्हारी ज़िद के चलते उसने नौकरी भी छोड़ दिया. तुम अक्सर उसे मारते-पीटते रहते हो. ये सब मुझे बर्दाश्त नहीं...''
‘‘ ये सब किसने बताया आपको ?... '' प्रसाद ने चंडीदास को घूरते हुए पूछा.
‘‘ पूनम ने...'' चंडीदास ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा.
‘‘ तो आप मेरे अॉबसेंस में मेरे घर जाते थे ?...'' प्रसाद ने व्यंगात्मक लहजे में कहा. उसका चेहरा लाल होने लगा.
‘‘ हाँ! पूनम के आग्रह करने पर मैं कई बार तुम्हारे घर गया. क्या केवल तुम्हें ही यह जन्मसिद्ध अधिकार मिला हुआ है कि तुम कहीं भी मुंह मारते फिरो और तुम्हारी पत्नी सती-सावित्री बनी घर में बैठी रहे.! ''
चंडीदास के अंदर का जानवर बेकाबू होने लगा.
‘‘ एक दिन पूनम की ज़िद के चलते रात का खाना भी वहीं खाया था. अब इसके आगे और कुछ बताने की जरूरत मैं नहीं समझता...'' चंडीदास ने आगे कहा. उसके होठों पर कुटिल मुस्कान थिरकने लगी.
प्रसाद चंडीदास को एकटक देखने लगा. उसका चेहरा ऐंठने लगा.
‘‘ अब हमें चलना चहिए. '' कहते हुए चंडीदास खड़ा हो गया.
दोनों चुपचाप होटल के बाहर आ गए. फिर, टहलते हुए कार के पास आ गए. दोनों ही मौन ओढ़े हुए थे. चंडीदास प्रसाद के बगल वाली सीट पर बैठ गया. प्रसाद रोबोट की तरह चुपचाप कार चलाने लगा.
‘‘ अब आएगा मजा!... '' चंडीदास के भीतर का श्ौतान अट्टहास करने लगा.
‘‘ स्साली कुतिया! मेरे पीछे रंगरेलियाँ मनाती है और सामने कैसी गऊ बनी रहती है...बताता हूँ...आज खाल उधेड़ के रख दूँगा... आज मेरा विश्वास टूटा है विश्वास!...फिर क्या बचा ?.....कुछ नहीं...'' सोचते हुए प्रसाद के हाथ काँप गए.कार का अगला हिस्सा डिवाइडर से टकराते-टकराते बचा.
चंडीदास का दिल जोर से धड़क गया.उसने प्रसाद के कंधे को झिंझोड़ते हुए कहा- ‘‘ अरे यार! जरा संभाल के चलाओ!...
प्रसाद ने जैसे कुछ सुना ही नहीं.
कार की गति क्रमशः तेज होती गई. अचानक एक मोड़ पर जैसे ही प्रसाद ने कार को बांए मोड़ा, तेज रफ़्तार से आ रही एक ट्रक से टकरा कर कार चकनाचूर हो गई.
एक झटके के साथ चंडीदास की आँखों में घना अंधेरा भरने लगा. उसकी चेतना किसी गहरे शून्य में समाने लगी. उसे लगा जैसे उसके शरीर को कोई खींच रहा है.
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‘‘ मरीज को होश आ चुका है....'' नर्स ने उत्साहित होकर कहा.
कामायनी ने नर्स को आशा भरी दृष्टि से देखा.
नर्स डॉ0 लाल को बुलाने चली गई.
‘‘ मैं कहाँ हूँ...? '' अचानक चंडीदास के मुँह से निकला.
‘‘ आप डॉ0 लाल नर्सिग होम में भर्ती हैं...रात में आपका एक्सीडेंट हो गया था... तब से आप बेहोश थे... अभी-अभी होश में आए हैं...भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा. '' कामायनी ने पति की जिज्ञासा को शांत करते हुए कहा.
‘‘...मुझे यहाँ तक कौन लाया...? '' चंडीदास ने कराहते हुए पूछा.
‘‘ कुछ राहगीरों ने आपको इस नर्सिंगहोम तक पहुँचा दिया था... '' कामायनी ने विशाल के माथे को सहलाते हुए कहा.
डॉ0 लाल नर्स के साथ चंडीदास के बेड के पास आ कर उसका परीक्षण करने लगे.
एक्सरे-फिल्म को कई कोणों से देखने के बाद डॉ0 लाल ने जैसे ख़्ाुद से कहा-‘‘ दाहिने पैर में फ्रैक्चर है...शायद आपरेशन करना पड़े....आँखों में भी काफी चोट है...‘‘
‘‘ डाक्टर साहब! ये पूरी तरह से ठीक तो हो जाएंगे न!...'' कामायनी ने डॉक्टर लाल से पूछा.
‘‘ देखिए जी! ये अब पूरी तरह से खतरे से बाहर हैं. मैंने ‘‘ फर्स्ट एड '' दे दिया है... लगभग तीन-चार महीने तक इलाज चलेगा. यहाँ का खर्च लगभग एक-डेढ़ लाख तक आ सकता है....बाकी आँख और हड्डी के डाक्टर को भी बुलाना पड़ेगा. उनकी फीस अलग होगी... ''
‘‘ डाक्टर साहब! आप खर्चे की चिन्ता एकदम मत कीजिए!...बस ये ठीक भर हो जाएं....'' कामायनी ने सुबकते हुए कहा.
डॉ0 लाल नर्स के साथ कमरे से बाहर चले गए.
‘‘ और प्रसाद...ऽ...ऽ...? '' एकाएक चंडीदास के मुँह से निकला.
‘‘ प्रसाद भाई साहब तो नहीं रहे... '' कहते हुए कामायनी का गला भर्रा गया.
चंडीदास के भीतर जैसे कोई नाजुक सी चीज टूटकर बिखर गई. उसके मानस-पटल पर कुछ दृश्य उभरने लगे. पहले धूमिल! फिर एकदम स्पष्ट...
लगभग साल भर पहले!
चंडीदास टर्बो एंड टर्बो कंपनी के जनरल मैनेजर के तौर पर अपने चैंबर में आराम की मुद्रा में बैठा हुआ था. तभी एक चौबीस-पच्चीस साल का युवक उसके चैंबर में आया. ठिगना होते हुए भी अधिक मोटा न होने के कारण युवक काफी आकर्षक दीख रहा था.
‘‘ नमस्त सर!... मैं रोहन प्रसाद हूँ आज ही इस कंपनी में जूनियर मैनेजर की पोस्ट पर ज्वाइन किया हूँ.'' प्रसाद ने मुस्कुरते हुए कहा.
‘‘ बैठिए!...'' चंडीदास ने टेबल के दूसरी तरफ रखी हुई कुर्सियों की तरफ इशारा करते हुए कहा.
प्रसाद एक कुर्सी पर बैठ कर चंडीदास से बातें करने लगा.
चंडीदास- ‘‘ आप कहाँ के रहने वाले हैं ? ''
प्रसाद- ‘‘ सर! मैं तो दुर्ग का रहने वाला हूँ. मेरे पापा छत्तीसगढ़ कैडर में आई0ए0एस0 अधिकारी हैं.वे आजकल रायपुर में पोस्टेड हैं.मेरा परिवार वहीं रहता है...''
चंडीदास-‘‘ आप तो बहुत दूर आ गए!.कहाँ रायपुर और कहाँ दिल्ली....खैर! आपके परिवार में और कौन-कौन हैं ? ''
प्रसाद- ‘‘ मम्मी-पापा तो हैं ही. एक छोटा भाई भी है, एम0बी0ए0 कर रहा है...''
चंडीदास-‘‘ क्या आप बैचलर हैं ? ''
प्रसाद- ‘‘ नहीं, एक बीवी भी है. मेरे साथ रहती है. सर! आप कहाँ के रहने वाले हैं ? ''
चंडीदास-‘‘ मैं तो भागलपुर का रहने वाला हूँ. लेकिन, लगभग दस साल से दिल्ली में ही हूँ.''
थोड़ी देर तक कुछ औपचारिक बातें करने के बाद प्रसाद चंडीदास के चैंबर से बाहर चला गया.
पहली ही मुलाकात में चंडीदास प्रसाद से काफी प्रभावित हुआ था.
क्रमशः चंडीदास और प्रसाद के बीच घनिष्ठता बढ़ती गई.
सैंतीस वर्षीय चंडीदास वैसे तो प्रसाद का बॉस था और प्रसाद उसका मातहत.लेकिन व्यावहारिक तौर पर दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे. दोनों के बीच एक अनौपचारिक किस्म का रिश्ता पनपने लगा था. प्रसाद चंडीदास के फ्लैट से लगभग दो सौ मीटर की दूरी पर स्थित कंपनी के एक फ्लैट में अपनी पत्नी के साथ रहने लगा था. अक्सर चंडीदास प्रसाद की ही कार में बैठकर दफ़्तर जाने लगा था.
प्रसाद के व्यक्तित्व से दफ़्तर का हर मुलाजिम प्रभावित था.लेकिन रूबी उससे हद दर्जे तक प्रभावित थी. रूबी कंपनी में मार्केटिंग सुपरवाइजर के पद पर कार्यरत थी और कुंआरी थी. प्रसाद के सीधे नियंत्रण में काम करने के कारण रूबी हमेशा उसके संपर्क में रहती थी. प्रसाद और रूबी के बीच की घनिष्ठता दफ़्तर के लोगों के बीच चर्चा का विषय बनने लगी थी.
उस दिन दोनों दफ़्तर के कैंटिन में बैठकर कॉफी पी रहे थे.
‘‘ सर! मैं आपको एक बात बताना चाहता हूँ...'' अचानक प्रसाद ने चंडीदास से कहा.
चंडीदास ने प्रसाद को आश्चर्य से देखा.
‘‘ रूबी के साथ मेरा ‘‘ अफेयर '' चल रहा है...'' प्रसाद ने धीरे से कहा.
‘‘ ठीक है...इसमें मुझे क्या आपत्ति हो सकती है ? '' चंडीदास ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा.
‘‘ सर! बसंत टाकीज में एक बहुत ही अच्छी फिल्म लगी है. चलिए! आज मेटिनी शो देख लेते हैं...'' प्रसाद ने मुस्कुराते हुए कहा.
‘‘ मैं तो अब पिक्चर-उक्चर देखता ही नहीं...'' चंडीदास ने कंधा उचकाते हुए कहा.
‘‘ क्यों सर ?... ''
‘‘ बस...ऐसे ही...इच्छा ही नहीं होती. आजकल की फिल्मों में बहुत गंदगी भरी रहती है. '' चंडीदास ने मुंह बिचकाते हुए कहा.
‘‘‘ मेरा तो मानना है कि दृश्य नहीं दृष्टि महत्वपूर्ण होती है. '' प्रसाद ने दार्शनिक लहजे में कहा.
चंडीदास कुछ सोचने लगा.
‘‘जानते हैं जिस फिल्म की मैं बात कर रहा हूँ, उसकी क्या खासियत है ?'' प्रसाद ने फुसफुसाते हुए कहा.
चंडीदास ने प्रसाद को कौतूहल से देखा.
‘‘ फिल्म के एक सीन में हिरोइन ने अपने सारे कपड़े उतार दिए हैं...‘' प्रसाद ने अंगड़ाई लेते हुए कहा.
‘‘ सारे कपड़े!...अरे! यह कैसे हो सकता है ? सेंसर ने कैसे पास कर दिया ? '' चंडीदास चौंक गया.
‘‘ सारे कपड़े सर!... लेकिन उसे देखकर दर्शकों के अन्दर किसी तरह की उत्तेजना नहीं जागती. यही तो खासियत है...''
‘‘ अब मैं ऐसी फिल्में नहीं देखता...'' चंडीदास ने सकुचाते हुए कहा.
‘‘ तो आप बूढ़े हो गए हैं क्या ?...आप भी न!...‘' कह कर प्रसाद काफी देर तक हंसता रहा.
अचानक चंडीदास के मस्तिष्क में रूबी का चेहरा कौंध गया. चंडीदास का मन कसैला हो गया. मन ही मन बुदबुदाया-‘‘ स्साली पतुरिया...छिनाल...''
प्रसाद मेज पर पड़े पेपरवेट को इधर-उधर लुढ़काने लगा.
‘‘ लेकिन मेटिनी शो कैसे देख पाएंगे ? पाँच-साढे़ पाँच बजे से पहले तो यहीं से नहीं निकल सकते...'' चंडीदास ने धीरे से कहा.
‘‘ अरे सर! चुपके से खिसक लेते हैं...'' प्रसाद ने रहस्यमय ढंग से कहा.
‘‘ नहीं, ये ठीक नहीं रहेगा, ऐसा करते हैं... छै से नौ देखते हैं... '' चंडीदास ने प्रसाद को समझाया.
प्रसाद मान गया.
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दफ़्तर से निकल कर चंडीदास प्रसाद की कार में बैठकर सीधे फिल्म देखने चला गया.
‘‘ पहले कुछ खाते-पीते हैं, फिर घर चला जाएगा...'' पिक्चर हॉल से निकलने के बाद प्रसाद ने चंडीदास से कहा.
हॉल के पास ही सड़क के दूसरी ओर एक रेस्टोरेंट था.
‘‘ चलो! इसी में खा लेते हैं. '' चंडीदास ने रेस्टोरेंट की तरफ इशारा करते हुए कहा.
‘‘ यह रेस्टोरेंट तो देखने में ही सड़ियल लग रहा है. हम लोग कहाँ रोज़-रोज़ घर से बाहर खाते हैं... चलिए! किसी अच्छे होटल में चलते हैं.'' प्रसाद ने सुझाव दिया.
‘‘ फिर कहाँ चला जाए ? ''
‘‘ आप कभी ब्लू स्टार गए हैं ? '' प्रसाद ने चंडीदास से पूछा.
‘‘ नहीं, वहाँ तो मैं कभी नहीं गया. ''
‘‘ तो फिर चलिए! आज मैं आपको वहीं ले चलता हूँ.खाने के साथ-साथ गाने का भी मज़ा लीजिएगा! '' प्रसाद ने मुस्कुराते हुए कहा.
चंडीदास मान गया.
साढ़े नौ बजे दोनो होटल ब्लू स्टार पहुँच गए. पार्किग में कार खड़ी करने के बाद प्रसाद चंडीदास के साथ होटल के मुख्यद्वार पर आ गया. वहाँ पर पूरी तरह से मुस्तैद वर्दीधारी दरबान ने पहले तो उन दोनों को झुक कर सलाम ठोंका. फिर, धीरे से प्रवेशद्वार को खोल दिया.दोनों एक साथ होटल के अन्दर दाखिल हुए.अन्दर का हॉल वातानुकूलित था. चंडीदास को हल्की-सी सिहरन हुई. वह वहाँ की भव्यता और चकाचौंध से अभिभूत होने लगा.
‘‘ पहले बार में चलकर पीते हैं, फिर खाना खाएंगे. '' सीढ़ियों की तरफ बढ़ते हुए प्रसाद ने कहा.
‘‘ लेकिन मेरी तो एकदम इच्छा नहीं है.'' चंडीदास ने बुरा-सा मुंह बनाया.
‘‘ कभी-कभी तो लेते हैं न! बस मेरा साथ देने के लिए एक पैग ले लीजिएगा!... प्रसाद ने आग्रह किया.चंडीदास मना नहीं कर पाया.
बार में रंग-बिरंगी रोशनी झिलमिला रही थी. प्रसाद और चंडीदास टेबल नंबर दस के पास पड़े हुए सोफे पर पसर कर बैठ गए. बार के अन्दर खूबसूरत और बिंदास किस्म की लड़कियाँ विभिन्न टेबलों पर जाकर अॉर्डर ले रही थीं और अॉर्डर के अनुसार पैग सर्व कर रही थीं. जींस का तंग पैंट और टॉप पहनी हुई बीस-इक्कीस साल की एक दुबली-पतली लड़की ने टेबल नंबर दस के ग्राहकों को अटैंड किया. उसके नाभि के ठीक नीचे स्थित पैंट के हुक से एक कीमती मोबाइल फोन लटक रहा था.
‘‘ और, स्वीट हार्ट! कैसी हो ? '' प्रसाद ने मुस्कुराते हुए लड़की से पूछा.
‘‘ फाइन सर! लेकिन आप तो बहुत दिनों के बाद आए! मैं सोच रही थी कि कहीं आप ये शहर छोड़ कर तो नही चले गए...'' लड़की ने मचलते हुए कहा. फिर, जिज्ञासु भाव से चंडीदास को देखने लगी.
‘‘ इन दिनों कुछ ज्यादे ही बिजी था, इसलिए नहीं आ पाया...ये मेरे सर हैं. यहाँ पहली बार आए हैं. '' प्रसाद ने लड़की की जिज्ञासा को शांत किया.
आर्डर लेकर लड़की चली गई.
‘‘ यह लड़की तो तुमसे काफी घुली-मिली लगती है.'' चंडीदास ने मुस्कुराते हुए प्रसाद से कहा.
‘‘ सर! ये शालिनी है. इस बार में काम करने वाली हर लड़की को मैं जानता हूँ. वह जो काउंटर के पास काले रंग का स्कर्ट पहने हुए खड़ी है...वह रीता है. बहुत ही मजेदार लड़की है. और...वह... जो पैग तैयार कर रही है उसका नाम डॉली है.'' प्रसाद ने फुसफुसाते हुए कहा.
शालिनी ट्रे में खाने-पीने के लिए ज़रूरी चीजें लेकर वापस आई और उन्हें करीने से टेबल पर लगा दिया. दोनों खाने-पीने में लग गए.
‘‘ रूबी का क्या हालचाल है...? चंडीदास ने प्रसाद से पूछा.
‘‘ ठीक है सर! मैं तो आपको बताना ही भूल गया था. आपको याद होगा, पिछले महीने जब मैंने एक हफ़्ते के लिए छुट्टी लिया था तो रूबी ने भी छुट्टी लिया था. हम दोनों बंगलौर घूमने चले गए थे. वहाँ पर हम होटल के एक ही कमरे में ठहरे थे, पति-पत्नी बन कर...अब इसके आगे और कुछ बताने की जरूरत मैं नहीं समझता...'' प्रसाद ने गिलास खाली करते हुए कहा.
चंडीदास को लगा जैसे उसके अंदर कई कुत्ते भौंकने लगे हैं. पिछले महीने रूबी ने उससे एक हफ़्ते का अवकाश मांगा था. वह बहुत दुखी लग रही थी.
‘‘ क्या कोई जरूरी काम है ? '' चंडीदास ने पूछा था.
‘‘ हाँ सर! मेरी ‘‘मदर'' बहुत बीमार हैं. उनका आपरेशन होना है.'' रूबी ने उदास होकर कहा था. चंडीदास ने उसका अवकाश स्वीकृत कर दिया था.
‘‘ वैसे रूबी के माँ-बाप क्या करते हैं ? '' चंडीदास ने प्रसाद से पूछा.
‘‘ इस दुनिया में उसका कोई नहीं है सर! बेचारी एकदम अकेली है.उसकी माँ तो बचपन में ही मर गयी थी और बाप दूसरी शादी करके लंदन में बस गया है. अपने मामा-मामी के साथ रहकर पली-बढ़ी है.'' प्रसाद ने उदास होकर कहा.
‘‘ स्साली...छिनाल...पतुरिया...कुतिया!'' चंडीदास मन ही मन बड़बड़ाया.
‘‘ कल तुम अॉर्डर लेने के लिए लखनऊ जा रहे हो न! '' चंडीदास ने विषयान्तर करते हुए कहा.
‘‘ आपका आदेश है तो जाना तो पड़ेगा ही...वरना रूबी को छोड़कर कहीं जाने का मन ही नहीं करता है...एक बात है सर! कंपनी जो टी0ए0-डी0ए0 देती है, वह तो बहुत ही कम है.इसके लिए भी आपको कुछ करना चाहिए.'‘ प्रसाद ने मचलते हुए कहा.
‘‘ ठीक है, मैं कोशिश करूंगा. '' चंडीदास ने प्रसाद को आश्वासन दिया.
शालिनी ने बिल लाकर टेबल पर रख दिया. प्रसाद ने बिल देखा. चौदह सौ पैंतीस रूपये...बिल के नीचे पंद्रह सौ रूपये रखते हुए प्रसाद ने शालिनी से कहा,-‘‘ बाकी तुम रख लेना!...''
‘‘ फिर जल्दी आना सर! मैं आपको बहुत ‘‘मिस'' करती हूँ.'' शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा.
‘‘ अब खाना खा लेते हैं.'' प्रसाद ने उठते हुए कहा.
दोनों सीढ़ियों से उतर कर रेस्टोरेंट में चले आए. प्रसाद ने चंडीदास से परामर्श करने के बाद खाने के लिए अॉर्डर किया.रेस्टोरेंट के आगे वाले हिस्से में फर्श पर मखमली कालीन बिछा हुआ था, जिस पर बैठकर एक अधेड़ उम्र का आदमी हारमोनियम बजाते हुए ग़ज़ल गा रहा था. उसके दाईं ओर बैठा हुआ एक लड़का तबले पर संगत कर रहा था और बायीं तरफ बैठी हुई एक लड़की अपनी कोमल उंगलियों से सितार के तारों को सहला रही थी.
दोनों ग़ज़ल सुनने लगे.
‘‘ ये झूठे अलला रहा है. ये नहीं कि कोई ढंग का गाना-वाना सुनाए. गजल-वजल तो मेरे पल्ले ही नहीं पड़ती है. पता नहीं लोग कैसे झेलते हैं ? '' प्रसाद ने जम्हाई लेते हुए कहा.
‘‘ खैर! समझ में तो मेरे भी नहीं आती है. लेकिन गा अच्छा रहा है.'' चंडीदास ने लड़खड़ाती हुई जुबान से कहा.
टेबल पर खाना लगाया जा चुका था. दोनो खाना खाने लगे.
‘‘ मुझे तो लगता है तुम रूबी को बहुत प्यार करने लगे हो. कहीं अपनी पत्नी को तलाक देकर उससे शादी करने का तो इरादा नहीं है ? '' अचानक चंडीदास ने प्रसाद से पूछा.
‘‘ क्या ?...प्यार!...'' प्रसाद ने चौंकते हुए कहा जैसे उसे बिजली का तेज झटका लगा हो. ‘‘ मैं प्यार-वार के बारे में नहीं सोचता, केवल मौज-मस्ती में यकीन करता हूँ... यूज एण्ड थ्रो!...''
‘‘ लेकिन यह तो अच्छी बात नहीं है. तुम्हें नहीं लगता कि तुम गलत कर रहे हो ?'' चंडीदास ने धीरे से कहा.
‘‘ क्यों ?... क्या गलत कर रहा हूँ मैं ? मैं उसके साथ कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती तो नहीं करता. इसमें उसकी भी मर्जी शामिल है. अब तक उस पर लगभग पचास हजार खर्च कर चुका हूँ...'' प्रसाद ने उत्तेजित होते हुए कहा.
कुछ देर के लिए दोनो मौन हो गए. चंडीदास सिर पर हाथ फेरने लगा. और, प्रसाद कुछ सोचने लगा.
खाने-पीने के बाद दोनों होटल से बाहर आ गए.
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एक दिन प्रसाद ने चंडीदास को ‘‘डिनर'' के लिए अपने घर पर आमंत्रित किया.
अक्टूबर का महीना था...गुलाबी ठंड शुरू हो चुकी थी. ठीक आठ बजे प्रसाद चंडीदास के साथ अपने घर पहुँच गया. इसके पहले चंडीदास कभी प्रसाद के घर नहीं गया था. दोनों ड्रउइंगरूम में बैठ कर बतियाने लगे. कुछ देर बाद लगभग तेईस-चौबीस साल की एक औरत घर के अंदर से ड्राइंगरूम में आई. चंडीदास ने उस औरत को एकटक देखने लगा. गौर वर्ण, छरहरी काया, उन्नत वक्षस्थल, सुडौल नितम्बों तक लहराते घने काले केश और गोल-मटोल गुलाबी चेहरा...शिकारी की आहट से भयभीत हिरनी की आँखों जैसी सहमी हुई आखें....
‘‘ नमस्ते सर!'' औरत ने दोनों हाथों को जोड़ते हुए चंडीदास से कहा.
‘‘ नमस्ते ! '' चंडीदास ने मुस्कुराते हुए कहा.
‘‘ ये हैं माई वाइफ पूनम प्रसाद!... '' प्रसाद ने चंडीदास को औरत के बारे में बताया.
पूनम एक झटके के साथ घर के अंदर चली गयी.
‘‘ खाने से पहले एक-दो पैग ले लेते हैं...'' प्रसाद ने चंडीदास से कहा.
‘‘ क्या है ? '' चंडीदास ने प्रसाद से पूछा.
‘‘ रम है...इस सीजन में प्रायः मैं रम ही पीता हूँ...''
‘‘ तुम्हारी इच्छा है तो मैं भी एक-दो घूँट ले लूँगा. '' चंडीदास ने जम्हाई लेते हुए कहा.
‘‘ पूनम!...'' प्रसाद जोर से चिल्लाया.
‘‘ पूनम ड्राइंगरूम में आकर स्टैच्यू की तरह खड़ी हो गई.
‘‘ सोडा की दो बोतलें,दो गिलास और नमकीन लेती आओ! '' प्रसाद ने आदेश दिया.
‘‘ जी!'' कह कर पूनम अंदर चली गयी.
प्रसाद ने ड्राइंगरूम के किनारे की आलमारी को खोलकर एक बोतल निकाला. फिर उसकी सील तोड़ने के बाद टेबल पर रख दिया.
पूनम एक ट्रे में सोडा की दो बोतलें, दो गिलास और नमकीन से भरा प्लेट लेकर वापस आई.जैसे ही सोडा की बोतलों को पूनम ने टेबल पर रखा, एक बोतल लुढ़क कर नीचे फर्श पर गिर गई.
‘‘ एकदम गधी हो तुम! एक काम भी ढंग से नहीं कर पाती हो... जाओ! जल्दी से सलाद काट कर लेती आओ!..'' प्रसाद ने चिड़चिड़ाते हुए कहा.
‘‘ जी! अभी लाई...'' कह कर पूनम फिर अंदर चली गयी.
‘‘ तुम्हें इस तरह से नहीं डाँटना चाहिए था...बेचारी कितनी सहम गई थी. '' चंडीदास ने धीरे से कहा.
‘‘ क्या करूँ सर! एकदम गंवार औरत से पाला पड़ा है...'' प्रसाद ने कुछ झेंपते हुए कहा.
प्रसाद और चंडीदास ने एक साथ गिलास उठाकर उन्हें टकराते हुए ‘‘चियर्स!'' कहा. फिर दोनों खाने-पीने लगे.
‘‘ सर! आपसे एक बात कहनी है...'' एकाएक प्रसाद ने चंडीदास से कहा.
‘‘ हाँ-हाँ, कहो! क्या बात है ?''
दोनों की ही जुबान लड़खड़ाने लगी थी.
‘‘ मुझे और रूबी को एक हफ़्ते की छुट्टी चाहिए. हम गोवा घूमने जा रहे हैं. हमने प्रोग्राम बना लिया है.प्लीज सर! मना मत करिएगा! नहीं तो हमारा दिल टूट जाएगा...'' प्रसाद ने अनुरोध किया.
‘‘ ठीक है...चले जाना!...'' चंडीदास ने गिलास खाली करते हुए कहा.
‘‘ एक पैग और बनाऊँ सर! '' प्रसाद ने पूछा.
‘‘ नहीं यार! फिर तो मेरे लिए चलना-फिरना भी मुश्किल हो जाएगा. ''
‘‘बस एक लिटिल पैग! '' प्रसाद ने आग्रह किया.
‘‘ ठीक है, बना दो!...'' चंडीदास ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा.
तभी पूनम ड्राइंगरूम में आकर खड़ी हो गई.
‘‘ क्या बात है ?...'' प्रसाद ने कुछ तेज आवाज में पूछा.
‘‘ जी! खाना तैयार है, कहिए तो लगा दँूँ!...'' पूनम ने सहमते हुए कहा.
‘‘ ठीक है...लगा दो!..'' प्रसाद ने धीरे से कहा.
खाना खाने के बाद जब चंडीदास बेसिन पर हाथ धोने गया तो लड़खड़ाकर गिरते-गिरते बचा. पूनम बेसिन के पास में ही खड़ी थी. उसने फुसफुसाते हुए कहा,- ‘‘ इतना मत पिया करिए सर! ये कोई अच्छी चीज तो है नहीं...''
चंडीदास ने पलट कर पूनम को देखा. उसके मुँह से अनायास ही निकला गया- ‘‘ सॉरी!..''
प्रसाद ने चंडीदास को उसके फ्लैट तक छोड़ दिया.
अपने ड्राइंगरूम में आकर चंडीदास टी0वी0 देखने लगा. अंग्रेजी भाषा में फिल्म चल रही थी.लगभग पाँच मिनट तक फिल्म देखने के बाद उसने रिमोट से चैनल बदल दिया.अब समाचार आने लगा. इसमें उसका मन नहीं लगा. वह लगातार चैनल बदलता रहा. कोई भी प्रोग्राम उसे अच्छा नहीं लग रहा था.
चंडीदास टी0वी0 बंद कर बेडरूम में चला गया. ट्यूबलाइट बुझाने के बाद बिस्तर पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगा.
‘‘ मत पिया करिए. ये कोई अच्छी चीज तो है नहीं...'' बार-बार चंडीदास के दिमाग में कौंधने लगा. तरह-तरह की मुद्राओं में पूनम उसके मानस पटल पर उभरने लगी. देर रात तक उसे नींद नहीं आई.
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प्रसाद और रूबी एक हफ़्ते के लिए अवकाश पर चले गए.
अॉफिस के पते पर प्रसाद का एक पत्र आया हुआ था. चंडीदास ने प्रसाद के घर पर पत्र पहुँचाने के लिए डाकिए से पत्र लेकर अपने बैग में रख लिया.
शाम साढ़े पाँच बजे चंडीदास प्रसाद के फ्लैट के मेनगेट के सामने पहुँच कर धीरे से कॉलबेल के स्विच को दबा दिया. थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला. चंडीदास के सामने पूनम खड़ी थी.
‘‘ अरे सर! आप!... पूनम ने चौंकते हुए कहा.
‘‘ अॉफिस में प्रसाद के नाम एक लेटर आया हुआ था, सोचा आपको देता चलूँ....'' चंडीदास ने पत्र पूनम को पकड़ाते हुए कहा.
पत्र लेकर पूनम ने विह्वल होते हुए कहा,-‘‘ अरे! ये तो मेरी मम्मी का लेटर है...आप अंदर आ जाइए न! बाहर क्यों खड़े हैं ? ''
‘‘ नहीं...अब मैं चलता हूँ. अॉफिस से सीधे यहीं आ गया था...''
‘‘ आइए न! एक कप चाय पीकर चले जाइएगा ! '' पूनम ने चंडीदास से आग्रह किया.
चंडीदास ड्राइंगरूम में आकर सोफे पर बैठ गया.
‘‘ मैं बस पाँच मिनट में चाय बनाकर लाती हूँ. '' कहते हुए पूनम घर के अन्दर चली गयी.चंडीदास टेबल पर पड़े हुए अख़बार को उलटने-पलटने लगा.
कुछ देर बाद पूनम ड्राइंगरूम में वापस आई. नमकीन का प्लेट और चाय के कप टेबल पर रखने के बाद चंडीदास के सामने के सोफे पर बैठ गई. दोनों चाय पीते हुए बातें करने लगे.
‘‘ कब तक वापस लौटेंगे प्रसाद जी!...आपको तो पता होगा...'' पूनम ने चंडीदास से पूछा.
‘‘ प्रसाद जी आफिस के ज़रूरी काम से गए हैं, हो सकता है...'' चंडीदास ने अटकते हुए कहा.
‘‘ आप भी मुझे बनाने लगे. जैसे मुझे मालूम ही न हो कि वे किस ज़रूरी काम से गए हैं...'' पूनम ने चंडीदास को घूरते हुए कहा.
चंडीदास बुरी तरह से झेंप गया.
‘‘ वे आपके जूनियर भी हैं और दोस्त भी... उन्हें आप समझाते क्यों नहीं हैं ? ये कोई अच्छी बात तो है नहीं...'' कहते हुए पूनम की आँखों में नमी भर गई.
इतना सुनते ही चंडीदास पर जैसे कोई भूत सवार हो गया. वह बड़बड़ाने लगा-‘‘ बिलकुल अच्छी बात नहीं है भाभी जी! मैने प्रसाद को कई बार समझाया, लेकिन वह माने तब न! सच कहूँ तो मुझे रूबी एकदम अच्छी नहीं लगती है. पता नहीं प्रसाद ने उस चिचुके हुए आम जैसी लड़की में ऐसा क्या देख लिया कि उस पर लटटू हो गया है...''
पूनम हंसने लगी. चंडीदास ने उसे आश्चर्य से देखा.
‘‘ मैं आपसे कितनी छोटी हूँ, आप मुझे पूनम कह सकते हैं. आपने भाभी जी कहा तो मुझे कुछ अजीब-सा लगा...'' पूनम ने मुस्कुराते हुए कहा.
फिर दोनों कुछ देर के लिए मौन हो गए.
‘‘ मैं तो सोचती थी कि रूबी बहुत सुन्दर होगी...'' पूनम ने बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए कहा.
‘‘ सुंदर! हुंह...खाक़ सुन्दर है... मुझे तो एकदम छिपकली जैसी लगती है.जींस का पैंट-शर्ट पहनने ...बॉब कट बाल कटा लेने और लिपिस्टिक लगाने से ही कोई लड़की सुन्दर नहीं हो जाती है. वह तो तुम्हारे पैरों की धूल के बराबर भी नहीं है. प्रसाद भी पता नहीं कैसे उस चुड़ैल के चक्कर में पड़ गया है. मुझे तो लगता है कि प्रसाद अब सुधरने वाला नहीं...'' चंडीदास ने आवेश से भरकर कहा.
‘‘ ऐसा मत कहिए सर! मैं तो बस उम्मीद में जी रही हूँ.'' पूनम ने बुझे हुए लहजे में कहा.
‘‘ लेकिन तुम बिलकुल चिन्ता मत करना! मैं प्रसाद को समझाने की कोशिश करूंगा. '' चंडीदास ने पूनम को तसल्ली दिया.
पूनम सामने की दीवार को घूरने लगी.
‘‘ अच्छा, अब मैं चलूँगा. '' चंडीदास ने उठते हुए कहा.
‘‘ सर! कल बच्चों के साथ आइए न! मुझे अच्छा लगेगा. '' पूनम ने कुछ गंभीर होकर कहा.
‘‘ बच्चे मेरे साथ नहीं रहते हैं. मैं अकेले रहता हूँ. '' चंडीदास ने धीरे से कहा.
‘‘ क्यों ? बच्चे साथ क्यों नहीं रहते ? '' पूनम ने चौंकते हुए पूछा.
‘‘ मेरी पत्नी जानसन एंड मेरी कंपनी में एरिया मैनेजर है. आजकल कानपुर ब्रांच में पोस्टेड है.'' चंडीदास ने पूनम को बताया.
‘‘ कितने बच्चे हैं ? ''
‘‘ बस एक बेटा है, सातवीं में पढ़ता है. ''
‘‘ खाने-पीने का कैसे करते हैं ? ''
‘‘ कंपनी के मेस में खाता हूँ...'' कहते हुए चंडीदास ड्राइंगरूम से बाहर आ गया.
‘‘ फिर कभी आइएगा सर!... '' पूनम ने मुस्कुराते हुए कहा. फिर, दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया.
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उस दिन रविवार था. दोपहर का खाना खाने के बाद चंडीदास टी0वी0 में फैशन शो देखने लगा. कुछ अति आधुनिक बालाएँ अपने शरीर के लगभग दसवें हिस्से को ढंककर विभिन्न मुद्राओं में चहलकदमी कर रही थीं. तभी अचानक एक दुबली-पतली लड़की के सीने पर बंधा हुआ रेशमी कपड़े का टुकड़ा सरक कर उसके पेट के पास आ गया. शायद संयोगवश ऐसा हो गया था. इसमें उसका कोई दुराशय नहीं था. चंडीदास टी0वी0 बन्द कर कपड़े पहनने लगा. मेनगेट पर ताला लगाने के बाद चंडीदास प्रसाद के फ्लैट की ओर चल दिया.
कुछ देर बाद चंडीदास प्रसाद के फ्लैट के सामने पहुँच गया. उसने धीरे से कालबेल बजा दिया.
पूनम ने दरवाजा खोला. उसकी दोनों हथेलियों में गीला आटा लगा हुआ था.
‘‘ अरे सर आप! आइए!...'' पूनम ने एक कदम पीछे हटते हुए कहा.
‘‘ इधर से गुजर रहा था तो सोचा तुम्हारा हाल-चाल लेता चलूँ...'' कहते हुए चंडीदास ड्राइंगरूम के अन्दर आकर सोफे पर बैठ गया.
पूनम नीले रंग का सूट पहने हुए थी. उसके गले के नीचे का उभार खुला हुआ था, जिस पर चंडीदास की दृष्टि अटक गई.
‘‘ मैं अभी आई...'' कहकर पूनम झट से अंदर चली गई.
कुछ देर बाद जब पूनम ड्राइंगरूम में वापस आई,उसके गले में सफेद रंग का दुपट्टा लिपटा हुआ था.
‘‘ लगता है तुम किचन में थी ? '' चंडीदास ने पूछा.
‘‘ हाँ सर! आटा गूँथ रही थी..'' पूनम ने जवाब दिया.
‘‘ साढ़े बारह बज रहे हैं, अभी तक तुमने खाना नहीं खाया ? फिर तो मैंने तुम्हें ‘‘ डिस्टर्ब '' कर दिया. ''
‘‘ अरे! नहीं सर! ऐसी कोई बात नहीं है. बस अपने लिए ही तो बनाना-खाना है.जब मर्जी होती है,बना कर खा लेती हूँ. मैं आपके लिए चाय बनाकर लाती हूँ....'' पूनम ने मुस्कुराते हुए कहा.
‘‘ चाय पीने की एकदम इच्छा नहीं है... अब मैं चलता हूँ...तुम बनाओ-खाओ! '' कहते हुए चंडीदास खड़ा हो गया.
‘‘ थोड़ी देर और बैठिए न! खाने की तो बस ‘‘ फारमैलिटी '' भर पूरी करनी है.'' पूनम ने धीरे से कहा.
चंडीदास फिर सोफे पर बैठ गया. दोनों बातें करने लगे.
‘‘ प्रसाद का कोई फोन-वोन आया कि नहीं...?'' चंडीदास ने पूनम से पूछा.
‘‘ नहीं आया...''
‘‘ उस रात के बाद फिर मैंने कभी शराब नहीं पिया...'' चंडीदास ने धीरे से कहा.
‘‘ यह तो आपने बहुत अच्छा किया...'' पूनम ने चंडीदास को घूरते हुए कहा.
फिर कुछ देर के लिए दोनों के बीच सन्नाटा पसर गया.
‘‘ पूनम तुम कहाँ तक पढ़ी हो ? '' एकाएक चंडीदास ने पूछा.
‘‘ सर! मैं संस्कृत में एम0ए0 हूँ... मुझे तो नौकरी भी मिल गई थी...एक कालेज में पढ़ाती थी. लेकिन शादी के बाद प्रसाद जी और उनके परिवार वाले नहीं चाहते थे कि मैं नौकरी करूँ...छुड़वा दिए...'' पूनम ने चंडीदास को एकटक देखते हुए कहा. उसके चेहरे पर घनी उदासी छा गई.
‘‘ क्या तुम दोनों ने ‘‘ लव मैरिज '' किया था ? '' चंडीदास ने पूछा.
‘‘ नहीं सर! मेरे मम्मी-पापा भी रायपुर में ही रहते हैं. मैं अपने माँ-बाप की इकलौती संतान हूँ. मेरे पापा बिजनेस करते हैं. एक दिन कालेज से लौटते समय, मैं प्रसाद जी के सामने पड़ गई.बस उसके बाद तो ये मेरे पीछे ही पड़ गए.एक दिन अपने परिवार के साथ मेरे घर आ गए और मेरे पिताजी के सामने मुझसे शादी करने का ‘‘प्रपोजल'' रख दिये. पापा को एक आई0ए0एस0 का बेटा दामाद के रूप में मिल रहा था...मेरे लिए इतना अच्छा रिश्ता उन्हें कहाँ मिलता ? वे मेरी शादी प्रसाद जी से करने के लिए तैयार हो गए...'' कहते हुए पूनम का गला भर्रा गया.
‘‘ तो प्रसाद ने तुम्हें पसंद करके शादी किया था, फिर भी...'' चंडीदास ने अफसोस व्यक्त करते हुए कहा.
‘‘ हाँ सर! मुझे तो लगता है कि मेरी किस्मत में ही कुछ खोट है...शुरू-शुरू में प्रसाद जी मुझे बहुत मानते थे.मेरी हर इच्छा पूरी करते थे. लेकिन इधर लगभग साल भर से सीधे मुँह बात भी नहीं करते हैं. बात-बात पर झल्लाने लगते हैं. कभी-कभी तो मुझ पर हाथ भी उठा देते हैं. अब हमारे बीच पति-पत्नी जैसा कोई रिश्ता ही नहीं रह गया है. हम साथ-साथ रहते भर हैं...'' कहते हुए पूनम कुछ झेंप-सी गई.
‘‘ क्या...? प्रसाद तुम्हें मारता भी है! वह इतना गिरा हुआ आदमी होगा, यह तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकता था...'' चंडीदास ने उत्तेजित होते हुए कहा. फिर बड़बड़ाने लगा-‘‘ सदियों से पुरुष नारी पर अत्याचार करता आ रहा है. उसका शोषण करता आ रहा है और नारी बेचारी मौन रह कर पुरुष का सारा अन्याय-अत्याचार सह रही है.लेकिन अब वक़्त आ गया है कि नारी में भी जागृति आए,वह अपने हक़ के लिए पुरुष से लड़े. ईंट का जवाब पत्थर से दे...आने दो प्रसाद को... बताता हूँ...''
‘‘ नहीं सर! मैंने तो आपको अपना हमदर्द समझ कर ये सब बता दिया.आप उनसे कुछ भी मत बताइएगा! नहीं तो वे मुझे मारने-पीटने लगेंगे...दरसल वे बहुत शक्की स्वभाव के आदमी हैं.आप उन्हें एकदम मत बताइएगा कि मैंने ये सब आपको बताया है. यह भी मत बताइगा कि आप मुझसे मिलते थे. बस अपने ढंग से उन्हें समझाने की कोशिश करिएगा! '' पूनम ने अटकते हुए कहा.
‘‘ ठीक है, तुम कहती हैं तो नहीं बताऊँगा.लेकिन ये सब कब तक चलेगा ? तुम कब तक सहती रहोगी.? '' चंडीदास ने फुसफुसाते हुए कहा.
‘‘ जब तक मेरी किस्मत में लिखा होगा. मैं तो बस उम्मीद में जी रही हूँ सर!...हो सकता है भगवान कभी उनका मन बदल दे...कभी मेरे भी अच्छे दिन आएं...'' पूनम ने शांत लहजे में कहा.
‘‘ अरे! तुम इतनी पढ़ी-लिखी होकर भी इन सब बातों में विश्वास करती हो...मैं तो नहीं मानता!...'' चंडीदास ने पूनम को अपलक देखते हुए कहा.
‘‘ लेकिन मैं तो मानती हूँ...'' पूनम ने धीरे से कहा.
‘‘ अब मैं चलता हूँ...तुम कुछ बना-खा लो! '' चंडीदास ने उठते हुए कहा.
‘‘ रविवार को तो रात में मेस बंद रहता होगा..? '' पूनम ने चंडीदास को एकटक देखते हुए पूछा.
‘‘ हाँ, रात में बन्द रहता है...''
‘‘ तो रात का खाना आप यहीं खा लीजिएगा!...'' पूनम ने कहा.
‘‘ अरे! तुम क्यों परेशान होओगी ?...मैं होटल में खा लूँगा.'' चंडीदास ने झिझकते हुए कहा.
‘‘ होटल में क्यों खा लेंगे ? इसमें परेशान होने वाली कौन-सी बात है ? अपने लिए तो बनाऊँगी ही...आप आ जाइएगा! '' पूनम ने चंडीदास को घूरते हुए कहा.
‘‘ ठीक है, आ जाऊँगा. '' चंडीदास ने बाहर निकलते हुए कहा.
अपने फ्लैट की ओर मंथर गति से चलते हुए चंडीदास उत्साह से भरा हुआ था.
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पूनम के पास जाने के लिए चंडीदास पूरी तरह से तैयार होकर ठीक साढ़े आठ बजे अपने फ्लैट से बाहर निकला. उसके अंदर उथल-पुथल मची हुई थी. पैरों में कुछ कंपन भी थी और दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं. उन्हें नियंत्रित करने के लिए चंडीदास ने कई बार गहरी सांस लिया.सड़क पर चलते हुए वह बार-बार चौंक जाता. फिर, इधर-उधर देखने लगता. जैसे सुनिश्चित करना चाहता हो कि उसे कोई देख नहीं रहा है. जगह-जगह खड़े बिजली के खंभों पर लगी हुई ट्यूबलाइटें रोशनी से जगमगा रही थीं. तभी अचानक बिजली चली गई.हर तरफ घना अंधेरा लहराने लगा.चंडीदास ने जैसे कुछ राहत महसूस किया.लगभग दौड़ते हुए पूनम के फ्लैट के सामने पहुँच कर धीरे से कॉलबेल का स्विच दबा दिया.
पूनम ने दरवाजा खोला. चंडीदास झट से ड्राइंगरूम में आकर सोफे पर पसर गया.
‘‘ मैं आपके लिए चाय बना कर लाती हूँ.'' पूनम ने कहा.
‘‘ चाय रहने दो! बस एक गिलास ठंडा पानी पिला दो! बहुत तेज प्यास लगी है...'' चंडीदास ने होठों पर जीभ फेरते हुए कहा.़
‘‘ लाती हूँ... '' कह कर पूनम अंदर चली गयी.
पानी लेकर पूनम वापस आई. चंडीदास गिलास का सारा पानी एक ही सांस में गटक गया.
पूनम चंडीदास के सामने बैठ गई.दोनों बातें करने लगे.
‘‘ प्रसाद जी को हर महीने लगभग कितनी तनख्वाह मिलती होगी सर! '' पूनम ने पूछा.
‘‘ यही कोई पच्चीस-छब्बीस हजार! क्यों ? प्रसाद तुम्हें बताता नहीं है क्या ? ''
‘‘ नहीं, मुझे कहाँ कुछ बताते हैं... हर महीने पाँच हजार रूपये पकड़ाते हुए कहते हैं कि इतने में ही पूरे महीने का खर्च चलाना.इससे अधिक एक पैसा नहीं मिलेगा...''
‘‘ फिर वह बाकी पैसों का क्या करता है ? बाकी पैसे रूबी पर खर्च कर देता होगा.'' चंडीदास ने स्वंय ही अपने सवाल का जवाब भी दे दिया.
‘‘ पता नहीं क्या करते हैं.'' पूनम ने मुंह बनाते हुए कहा. ‘‘ अभी पिछले हफ्ते की बात है. मैंने अपने लिए कुछ कपड़े खरीदने के लिए कहा तो बड़ी मुश्किल से मुझे लेकर मार्केट गए.एक दुकान में जाकर मैं अपने लिए सूट पसंद करने लगी.तभी ये सिगरेट पीने के लिए दुकान से बाहर चले गए.दुकानदार बहुत हंसमुख था. हंसते हुए मुझसे बातें करने लगा.उसकी किसी बात पर मैं भी हंसने लगी. तभी ये दुकान के अन्दर आए.इनका चेहरा ऐंठने लगा.मुझे डाँटते हुए कहने लगे- ‘‘ कभी-कभी ‘सीरियस' भी रहा करो! हर समय खीसें निपोरती रहती हो. '' मैं तो बुरी तरह से झेंप गई. घर लौटने के बाद भी इनका मूड ठीक नहीं हुआ.मुझसे लड़ने लगे.बात बढ़ गई तो बेंत से मुझे पीटने लगे. अभी तक मेरा हाथ सूजा हुआ है.देखिए न! '' पूनम ने अपना दांया हाथ चंडीदास की ओर बढ़ाते हुए कहा.
चंडीदास पूनम के दांए हाथ को पकड़ कर सूजन देखने लगा. कलाई के ऊपर तीन नीले निशान उभरे हुए थे. पूनम ने झट से अपनी कलाई को वापस खींच लिया.
‘‘ यह तो एकदम जानवरों जैसी हरकत है. छीः! मुझे तो अब प्रसाद से घृणा होने लगी है.अपनी बीवी पर हाथ उठाना कहाँ की मर्दानगी है. तुम्हें भी अब अपने अन्दर बदलाव लाना चाहिए... पूरी ताकत के साथ प्रसाद के इन अत्याचारों का विरोध करना चाहिए...''
‘‘ ...सर! अब मैं खाना लगा देती हूँ. खाना तैयार है.'' कहते हुए पूनम अन्दर चली गई.
पूनम ने खाना लगा दिया. चंडीदास खाना खाने लगा.
‘‘ पूनम! तुम खाना बहुत अच्छा बनाती हो. '' चंडीदास ने खाना खाते हुए कहा.
पूनम ने उसे कृतज्ञ दृष्टि से देखा.
खाना खाने के बाद चंडीदास कुछ सोचने लगा.
जब काफी देर तक चंडीदास कुछ नहीं बोला, पूनम ने मुस्कुराते हुए कहा-
‘‘ कहाँ खो गए हैं सर ?...''
चंडीदास चौंक गया.
‘‘ पूनम मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ...'' अचानक चंडीदास ने अटकते हुए कहा.
‘‘ तो कहिए न! क्या कहना चाहते हैं ? '' पूनम ने चंडीदास को घूरते हुए कहा.
कुछ देर तक मौन रहने के बाद चंडीदास ने धीरे से कहा,-‘‘ कालोनी में किसी को भी पता नहीं है कि मैं इस समय यहाँ पर हूँ, तुम्हारे साथ. कहो तो आज की रात यहीं रुक जाऊँ!..तुम्हारे साथ!...सुबह तड़के ही चला जाऊँगा. किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा...''
इतना सुनते ही पूनम का चेहरा अंगार की तरह लाल हो गया. उसने तड़पते हुए कहा,-‘‘ आप ये कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हैं सर! आपका दिमाग तो नहीं फिर गया है...? ''
चंडीदास ने भावुक होते हुए कहा,-‘‘ पूनम! मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूँ...बस एक रात!...''
‘‘ प्यार करने लगे हैं, इसलिए एक रात मेरे साथ गुजारना चाहते हैं. क्यो ? आप तुरन्त यहाँ से चले जाइए! मैं तो आपको एक अच्छा इंसान समझती थी. लेकिन आप तो निहायत घटिया किस्म के आदमी निकले.'' पूनम ने बिफरते हुए कहा.
‘‘...आज की रात तो मैं तुम्हारे साथ ही सोऊँगा...'' कहते हुए चंडीदास ने पूनम को अपनी बाहों में जकड़ लिया. उसके मुंह से शराब की बदबू आ रही थी. पूनम का जी मिचलाने लगा.
‘‘ प्लीज! छोड़िए मुझे. इस समय आप होश में नहीं हैं... मैने कभी भी आपको इस दृष्टि से नहीं देखा. हमेशा आपको अपना बड़ा भाई समझती रही. '' पूनम ने स्वंय को चंडीदास की पकड़ से मुक्त करने की कोशिश करते हुए कहा.
‘‘ जानती हो पूनम! इस समय प्रसाद किसी आलीशान होटल के सुसज्जित कमरे में एक आरामदेह बिस्तर पर रूबी को अपनी बाहों में लिए हुए पड़ा होगा और तुम यहाँ सती-सावित्री बनी पतिव्रता-धर्म निभा रही हो...मैं तो कहता हूँ कि ‘‘ टिट फार टैट '' (जैसे को तैसा) - बस यही मौका है प्रसाद से हिसाब-किताब बराबर करने का....'' चंडीदास पूनम को उकसाने लगा.
‘‘ फालतू बकवास मत करिए!... मेरा पति चाहे जैसा भी है, आपसे तो अच्छा ही है. जो है, प्रत्यक्ष है,सबके सामने है.आपकी तरह दुहरी ज़िन्दगी तो नहीं जीता. आप सारी दुनिया के सामने तो संत बने फिरते हैं, लेकिन हकीकत में कितने गंदे हैं ? कितने गिरे हुए...'' पूनम ने गुर्राते हुए कहा.
‘‘ तुम कुछ भी कहो पूनम!...आज तो मैं तुम्हें अपना बना के ही रहूँगा...प्लीज पूनम! मुझे समझने की कोशिश करो!...'' चंडीदास घिघियाने लगा.
जब चंडीदास की बाहों का दबाव बढ़ने लगा पूनम ने पूरी ताकत के साथ चंडीदास को धक्का दिया. चंडीदास फर्श पर भहरा गया.
‘‘ मैं अभी बाहर जाकर कालोनी वालों को इकट्ठा करके आपकी करतूत के बारे में बताती हूँ.‘' पूनम ने दरवाजा खोलते हुए कहा.
‘‘ जा रहा हूँ...'' चंडीदास ने खिसियाते हुए कहा और एक झटके के साथ बाहर निकल गया.
पूनम ने झट से दरवाजा अंदर से बन्द कर लिया. फिर, फूट-फूट कर रोने लगी.
‘‘ आप बिलकुल चिंता मत करिए!...सब ठीक हो जाएगा...'' कामायनी ने चंडीदास के माथे को सहलाते हुए कहा.
चंडीदास एकाएक अपने वर्तमान में लौट आया.
(समाप्त)
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-लक्ष्मीकांत त्रिपाठी
पता-14/260, इंदिरा नगर,लखनऊ.
आजकल दोहरे चरित्र वाले ही हर जगह नज़र आते हैं।
जवाब देंहटाएंAchchi kahani. kahani ka ant chaukaane wala hai.
जवाब देंहटाएंshukriya vandanaji! laxmikant.
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