जीवन क्रम बचपन गुजारा खेले में, मेले में, मां की झोली में बाप की बाहों में यौवन गुजारा प्यार की मस्ती में वंश की वृद्धि में आर्थिक समृद...
जीवन क्रम
बचपन गुजारा
खेले में, मेले में,
मां की झोली में
बाप की बाहों में
यौवन गुजारा
प्यार की मस्ती में
वंश की वृद्धि में
आर्थिक समृद्धि में
अधेड़ अवस्था गुजारी
बच्चों के विवाह में
उनके परिवार में
घर के संसार में
वृद्धावस्था गुजारी
अवहेलना में, उपेक्षा में
दर्द में इलाज में
गुजरे हुए इतिहास में
भूल गये हम
नश्वर संसार को
प्रभु के नाम को
मृत्यु के सत्य को
जीवन के अंत को
मोक्ष की राह को
प्यार
प्यार का कोई भी मजहब नहीं होता
प्यार की कोई भी भाषा नहीं होती
प्यार में कुछ भी असंभव नहीं होता
प्यार में कोई भी बंधन नहीं होता
प्यार मौत से कभी डरता नहीं
प्यार मौत से कभी मरता नहीं
प्यार में लुट जाती है सल्तनतें
प्यार में बन जाते है ताजमहल
प्यार जीवन का सुरीला गीत है
प्यार सांसों का मधुर संगीत है
प्यार यौवन का मधुमास है
प्यार ईश्वर का एक वरदान है
मैंने देखा है
धर्म के नाम पर मैंने
धर्म को ही मिटते देखा है
जातिवाद के विषधर को मैंने
देश की अखंडता को डसते देखा है
एक संतान की चाहत में मैंने
रात भर, बांझ को, सिसकते देखा है
आतंक की दहशत में मैंने
बंद तालों में खौफ देखा है
ताजमहल के कब्रखाने में
हथकटे मजदूरों की रूहों को देखा है
सात फेरो की पवित्र कसमों को
व्यापार में बदलते देखा है
देश के रहनुमाओं के हाथों मैंने
देश को ही बिकते देखा है
गुनाह की दुनिया के दरिंदों को
ऊंची कुर्सियों पर बैठे देखा है
मेहनतकश फौलादी हाथों में मैंने
मेरा भारत महान देखा है
हम तुम न बन सके
हम तुम न बन सके
तुम हम न बन सके
फासलों की दूरियां कभी न कम हुई
ना तुम बदल सके, ना हम बदल सके
वफा तेरी पे हम
गिला न कर सके
वफा मेरी पे तुम यकीं न कर सके
ना हम तुम्हें समझ सके, ना तुम हमें समझ सके
यूं जिंदगी भर हम
साथ साथ चले
विश्वास के आधार को शक ने निगल लिया
ना तुम संभल सके, ना हम संभल सके
समझौतों का प्यार
कभी न टिक सका
प्यार की दूरियां कभी ना कम हुई
ना तुम निभा सके, ना हम निभा सके
काश बहु बेटी बन पाती
घर में दीवारें ना खिंचती
महाभारत दोहरायी ना जाती
रामायण में विभीषण ना होता
सोने की लंका ना जलती
काश बहु बेटी बन पाती
मात-पिता की ममता
चौराहे पर खड़ी ना होती
खून के रिश्ते पानी ना होते
प्यार की रीत निभाई होती
काश बहु बेटी बन पाती
अग्नि के फेरों की कसमें
काश तुम्हें याद आई होती
भूल के सारे कर्म धर्म को
विष की बेल लहराई ना होती
काश बहु बेटी बन पाती
शकुनी की चौसर ना बिछती
घर में नये षडयंत्र ना होते
बेटी की कभी कमी ना खलती
काश बहु बेटी बन पाती
पक्षी
चल पंछी कहीं दूर चलें
आदमी जिस बस्ती में रहता हो
चैन से तुम कहां रह पाओगे
जड़ से ही जब काट देंगे पेड़ को
घोंसले तेरे कहां बच पायेंगे
हर पल कोलाहल हो जहां
प्यार के फिर गीत कहां गा पाओगे
बंधनों में आ गये एक बार तुम
फिर कहां आजाद तुम रह पाओगे
सीख लोगे शैतानियत इंसान से
मासूमियत वसीयत में नहीं दे पाओगे
मजहबी सरहदों में बंट गया जंगल तेरा
चैन से तुम मर भी नहीं पाओगे
--
कविता
नीड़
नीड़ उजड़ जाने से पंछी,
शोक नहीं मनाते हैं।
पंख जिनकी ताकत है,
वो फिर से नीड़ बनाते हैं,
नीड़ उजड़ जाने से पंछी......
कटा अँगूठा एकलव्य का,
गुरु मंत्र सिखलाता है।
हिम्मत जिनकी पूंजी है,
वो मंजिल को पा जाते हैं।
नीड़ उजड़ जाने से पंछी......
धीरज के तट से टकराकर,
सब तूफान मिट जाते हैं।
मेहनतकश इंसान के आगे,
देव भी शीश झुकाते हैं।
नीड़ उजड़ जाने से पंछी......
भाग्य भरोसे रहने वाले,
मिट्टी में मिल जाते हैं।
तूफानों से जूझने वाले,
स्वंय इतिहास बनाते हैं।
नीड़ उजड़ जाने से पंछी......
कविता
तपती धरती (ग्लोबल वार्मिंग)
आने वाली संतानों को,
हम क्या विरासत में देंगे
तपते मौसम की लपटें देंगे,
पानी को प्यासी नदियां देंगे,
जंगल को तरसती धरती देंगे,
ओजोन की सिमटती परतें देंगे।
आने वाली संतानों को......
सीमेंट के कंक्रीट शहर देंगे,
शहरों का कोलाहल देंगे,
हाइड्रोजन बम के गोले देंगे,
आंतकी मानव बम देंगे।
आने वाली संतानों को......
परिवारों में सिमटते रिश्ते देंगे,
रिश्तों में मिटता प्यार देंगे,
शांति को भटकते दिल देंगे।
आने वाली संतानों को......
कविता
तलाक
प्रश्नचिन्ह जब सम्बंधों पर लग जाते हैं,
सात जन्म के जीवन साथी पल में दूर चले जाते है
शंका के अकुंश से उपजे,
बीज कहां फल पाते हैं।
सदियों के संस्कार हमारे,
पल में रूप बदल जाते हैं।
सात जन्म के जीवन साथी...
मन पर हावी इच्छाऐं,
जब हो जाती हैं।
सही गलत की सब सीमाऐं,
जाने कहां खो जाती हैं।
सात जन्म के जीवन साथी...
विश्वासों की आधारशिला,
जब हिल जाती है।
एक नीड़ के दो पंछी,
अलग दिशा को उड़ जाते हैं।
सात जन्म के जीवन साथी...
कविता
आशादीप
दुःख अक्सर सिरहाने आकर,
चुपके से कह जाता है।
जिस पत्थर ने ठोकर मारी,
गले उसे लगाकर देख।
दुःख के बादल जब घिर आये,
साथ अपनों ने छोड़ दिया।
जीवन की आपाधापी में,
गैरों को तू अपनाकर देख।
उम्मीदों के अंधियारे में,
आशादीप जलाकर देख।
मंजिल कितनी दूर हो तेरी,
पंखों को फैलाकर देख।
सागर तट से टकराकर,
लहरें, हरदम ये समझाती हैं।
पीछे हटने वाले मुसाफिर,
आगे कदम बढ़कर देख।
कविता
बचपन
ऐ लौट के आ बचपन मेरे,
जब तारों को गिनते गिनते,
बेसुध होकर सो जाते थे।
छोटी छोटी बातों पर हम,
कभी हंसते थे कभी रोते थे।
ऐ लौट के आ बचपन मेरे...
जब दर्द दवा का पता ना था,
मां की झोली बस दुनिया थी।
चंदा को मामा कहते थे,
तारों में हम खो जाते थे।
ऐ लौट के आ बचपन मेरे...
जुगनू का पीछा करते करते,
घंटो हम भागा करते थे।
गुड्डे गुड़िया की शादी में,
दिन रात जश्न मनाते थे,
ऐ लौट के आ बचपन मेरे...
रिश्तों की दुनिया छोटी थी,
हर रिश्तें से प्यार निभाते थे।
तेरे मेरे का भेद ना था,
मिल बांट के सब कुछ खाते थे।
ऐ लौट के आ बचपन मेरे...
कविता
आदमी और जानवर
चिड़िया अपने नवजात को,
शेरनी अपने शावक को,
जलचर, थलचर, नभचर सभी,
सिखाते हैं, अपनी संतानों को,
शिकार के गुर, बचाव के उपाय,
जीवित रहने के लिए,
वंश और परम्परा को जीवित सौंपते हैं,
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को,
बिना किसी विद्यालय के,
शिक्षण या प्रशिक्षण के,
एक मनुष्य को छोड़कर।
मनुष्य संतानों कें लालन पालन में,
भूल जाता है उनको सिखाना,
समाज के नियमों को,
कर्तव्य को, दायित्व को,
प्रेम को, बलिदान को,
और उसकी भूल जन्म देती है।
स्वार्थी को, भ्रष्टाचारी को,
अपराधी को, आतंकी को,
मानवता रहित मानव को।
--
कविता
प्याला
जब तक उम्र मिली खुदा से,
जश्न मना लें प्याले में,
आने वाले कल की चिंता,
घोल के पी जा प्याले में।
होली की जलती हो ज्वाला,
या दीपों की हो माला,
अपना बस त्यौहार एक है,
सुबह शाम पी प्याले में।
पीने वाले पी जाते है,
सब दुःख दर्द प्याले में,
मृत्यु के आने से पहले,
खुशी मना ले प्याले में।
मन में छुपी सारी बातें,
खुल जाती है प्याले में,
चले गये जो इस दुनिया से,
याद उन्हें कर प्याले में।
धर्म, जाति, भाषा के बंधन,
सिमट जाते है प्याले में,
पाप पुण्य की सब रेखायें,
मिट जाती है प्याले में।
प्राण प्रिये मरने पे मेरे,
पंडित को ना बुलवाना,
पीने वालो को बुलवाकर,
जमके पिलाना प्याले में।
काया की माटी का प्याला,
भक्ति की हो माला,
रामनाम सुमिरन के रस को,
सुबह शाम पी प्याले में।
मेरा गांव
भुला दिया उस गांव को हमने,
रचते थे इतिहास जहां,
प्यार जिसे करते थे इतना,
ब्याहता के मायके की तरह।
भुला दिया..........
तपते सूरज में पनपे हम,
आवारा बादल की तरह,
बैलों की घंटी सुनते थे,
मां की लोरी की तरह।
भुला दिया..........
सांझ ढले नदी किनारे,
प्यार के गीत गाते थे,
खुशी ओ गम के अफसाने,
लहरों पर लिख आते थे।
भुला दिया..........
सूरज की आहट से पहले,
पनघट पर गोरी जाती,
आसमान सतरंगी होता,
भवरों की गुंजन होती।
भुला दिया..........
कविता
भरी महफिल में,
बहुत देर तक,
सिर्फ सुनते रहना,
और कुछ न कहना,
नामुमकिन तो नहीं,
मगर बहुत मुश्किल है।
बिखरे घर को,
बचाने की खातिर,
जोश में आकर,
होश ना खोना,
नामुमकिन तो नहीं,
मगर बहुत मुश्किल है।
बेलगाम शब्दों के घोड़ों का,
बहुत तेज रफ्तार से,
बिना दुर्घटना के,
सही मार्ग पर चलना,
नामुमकिन तो नहीं,
मगर बहुत मुश्किल है।
झूठ जब सत्य पर,
हावी हो जाये, तब,
सत्य के अस्तित्व को,
मिटाने से बचाना,
नामुमकिन तो नहीं,
मगर बहुत मुश्किल है।
कविता
अंकुर से पुष्प को,
यौवन से तरूणाई को,
लहरों से ध्वनियों को,
सूर्य से रोशनी को,
रोक सकता है, भला इंसान क्या?
बचपन से मासूमियत को,
नदियों से उफान को,
मां से ममता को,
पुष्प से गंध को,
रोक सकता है, भला इंसान क्या?
पेड़ से छाया को,
मेघों से वर्षा को,
वाणी से शब्दों को,
नयनों से ज्योति को,
रोक सकता है, भला इंसान क्या?
नारी से प्यार को,
प्रसव से जन्म को,
विरह से मिलन को,
जन्म से मृत्यु को,
रोक सकता है, भला इंसान क्या?
कविता
महंगाई
बढ़ती महंगाई,
छीनती है निवाला,
भूखे बच्चे के मुंह से,
डूब जाता है कर्ज के बोझ में,
मेहनतकश इंसान,
और आत्महत्या करता है,
स्वाभिमानी अन्नदाता किसान।
बढ़ती महंगाई,
जलते चूल्हे की आग,
बुझा देती है,
बेबस बाप नहीं बनवा पाता,
टूटे चश्मे का फ्रेम,
बच जाते है बस कुछ चिथड़े,
तन ढकने को यौवन गरीब का।
सत्ता पक्ष संसद में,
देता है कोरे आश्वासन,
विपक्ष सेंकता है राजनीतिक रोटियां,
देश बंद के आह्वाहन से,
करता है शक्ति परीक्षण,
कोई नहीं सोचता,
बढ़ती महंगाई।
कविता
वृक्षारोपण
आज कुछ तेज धार,
आरे की मशीनें उतरी,
आज कुछ जीपों से,
शैतान परिंदे उतरे हैं,
आज फिर जख्मी होंगें,
जंगल में पेड़ों के सीने,
आज फिर शर्मसार होगी मानवता।
जिंदगी भर,
फल-फूल का तोहफा देने वाले,
तपती धूप में बादल बन,
मां के आंचल का साया देने वाले,
आज फिर जड़ से उखड़ कर,
टुकड़ों में कट जायेगें,
आज फिर धरती की आंखों में आंसू होगें।
अब यहां किसी पंछी का,
न बसेरा होगा,
अब न कभी पेड़ों पर,
आदमी के पूर्वज होंगें,
अब हवाओं में,
न होगी खुशबू फूलों की,
चारों ओर उजड़े हुए गुलशन होगें।
कविता
आधुनिक युग की शवयात्रा
गम की रेखायें,
चेहरे पे नहीं किसी के।
हर कोई अपने अपने,
बस गीत गा रहा है।
पहलू में जिनके हमने,
जिंदगी गुजार दी थी।
जल्दी उठाओ अर्थी,
वहीं गुन गुना रहा है।
घर की बगिया का माली,
जो बागवां था कल तक।
अंतिम सफर में देखो,
अकेला ही जा रहा है।
दुनिया के सारे मेले,
रूकते नहीं कभी भी।
मरने वाले बस तू ही,
दुनिया से जा रहा है।
उम्र भर तूने तिनके,
चुन चुन के घर बनाया।
खाली हाथ लेकर,
दुनिया से जा रहा है।
कर्मों की तेरी पूंजी,
बस तेरे संग चलेगी।
दुनिया की सारी दौलतें,
तू छोड़े जा रहा है।
दोहे
‘1'
दुःख के पदचिह्नों की राहें,
छोटी बहुत हुआ करती हैं
अक्सर दुःख के चौराहों पर,
सुख ने भी विश्राम किया है।
‘2'
ख्वाबों में कोई रंग नहीं है,
जीवन में उमंग नहीं है।
लहरों का सरगम कहता है,
जीवन पतझड़ (है) बसंत नहीं है।
‘3'
गंध फूल की भेद न करती,
मंदिर, मसजिद, गुरूद्वारे में।
आसमान को बांट लिया है,
धर्म के ठेकेदारों ने।
‘4'
मेरी दीवानगी का आलम,
कोई आ के तो देखे।
अपना आशियाना हमने,
काफिर के दिल में बनाया है।
‘5'
जिन्हें झुकना नहीं आता,
वो अक्सर टूट जाते हैं।
हवाओं के बवंडर में,
तिनके बच जाते है।
‘6'
वो जो सच कहने की जिद करते हैं,
उम्र भर अंधेरों में सिसकते हैं।
दोहे
‘1'
कितने सावन पतझड़ बीते,
कितने आंधी तूफां आये।
मेरे विश्वासों को तुम,
खंडित कभी न होने देना।
‘2'
वतन की आजादी में,
दरारें दिख रही हैं अब।
हमारी राजनीति नें,
आस्तीन के सांपों को पाला है।
‘3'
तरक्की के चिरागों को,
अपनों ने बुझाया है।
दिलों की दूरियों ने अब,
इस घर को जलाया है।
'4‘
धन दौलत ही जब,
पहचान हो इंसान की।
सभ्यता के उस दौर में,
सादगी अभिशाप है।
‘5'
मुस्कानों का अभिनय,
वो बस करते रहे।
छलक के आंसू पलक से,
राज़ सारा कह गये।
‘6'
वक्त रोके से गर रूका होता,
आदमी भगवान बन गया होता।
कविता
जापान में सुनामी
एक जलजला आया,
धरती थरथरायी,
लहरों का कहर बरसा,
पैगामें मौत बनकर।
फौलादी ट्रक तैरते,
खिलौनों से नजर आये,
तांडव वो मौत का था,
जिंदगी की हार बनकर।
कुछ में थी सांसें बाकी,
कुछ लाशों में पड़े थे,
कुछ जिंदा दफन हुऐ,
जल में समाधि बनकर।
फौलादी परमाणु रिएक्टर,
लहरों में टिक ना पाये,
सुरक्षा कवच सब टूटे,
मिट्टी के खिलौने बनकर।
घुलने लगी जहर अब,
हवा के कण कण में,
मीलों तक सन्नाटा,
मरघट में मौत बनकर।
मेहनत और हिम्मत से,
अब वक्त फिर बदलेगा,
जापान फिर चमकेगा,
उगता सूरज बनकर।
कविता
मेरी पत्नी
आजकल मेरी पत्नी,
चन्द्रमुखी कम, ज्वालामुखी ज्यादा है,
आजकल उसकी आंखों में,
प्यार कम, नफरत ज्यादा है।
आजकल बाहों के घेरों में,
मिलन कम, चुभन ज्यादा है,
आजकल मन में उनके,
समर्पण कम, अधिकार ज्यादा है।
आजकल एकांत लम्हों में,
अपनापन कम, बेरूखी ज्यादा है,
आजकल जिंदगी के हर मोड़ पर,
नजदीकियां कम, दूरियां ज्यादा है।
आजकल उनकी वाणी में,
फूल कम, अंगारे ज्यादा है,
आजकल पति-पत्नी के रिश्ते में,
मिठास कम, खटास ज्यादा है।
आजकल विश्वास की नींव में,
पत्थर कम, दरारें ज्यादा है,
आजकल गृहस्थी की गाड़ी में,
स्पीड (गति) कम, ब्रेक ज्यादा है।
कविता
नींद जब आती नहीं है रातों में,
वो हसीन ख्वाबों की बात करते हैं,
पतझड़ में डाल से टूटे, बिखरे पत्ते,
वो सावन की बरसात की बात करते हैं।
दिल के उजड़े चमन में जब अंगारें बरसें,
वो पहले प्यार की बात करते हैं,
प्यार बिकता है जब बाजारों में,
वो शीरी फरहाद की बात करते हैं।
इश्क ने कर दिया निकम्मा हमको,
वो हमसे कारोबार की बात करते हैं,
दौलत की भूखी इस दुनिया में,
वो सच्चे प्यार की बात करते हैं।
कविता
बापू लौट के तुम आ जाते
हिंसा अपराधों की नगरी,
पूरा भारतवर्ष बना है,
राजनीति से अपराधी का,
एक नया गठबंधन हुआ है,
बापू लौट के तुम आ जाते।
न्याय की तेरी उस लाठी का,
अब तो कोई मोल नहीं है,
जनता के दुःख दर्द को समझे,
ऐसा कोई बापू नहीं है,
बापू लौट के तुम आ जाते।
राजनीति के गलियारों में,
सत्य अंहिसा सिसक रहें है,
भ्रष्टाचार चरम सीमा पर,
राजनीति में नीति नहीं है,
बापू लौट के तुम आ जाते।
दलित दुःखी की दीन दशा का,
अब कोई हमदर्द नहीं है,
हरिजन के दुःख दर्द को समझे,
ऐसा कोई गांधी नहीं है,
बापू लौट के तुम आ जाते।
कविता
भटकन
मैं जलता ही रहा,
कभी विरह की आग में,
कभी मिलन की चाह में।
मैं छलावे में रहा,
कभी अपनों के,
कभी बेगानों के।
मैं सुनता ही रहा,
कभी पास आते कदमों की आहट,
कभी गुजरते हुए कारवां की आवाज।
मैं सोचता ही रहा,
कभी गुजरे हुए कल को,
कभी आने वाले कल को।
मैं जीता ही रहा,
कभी घुट घुट के मरने के लिए,
कभी मर मर के जीने के लिए।
मैं भटकता ही रहा,
कभी मोह के जाल में,
कभी सत्य की तलाश में।
कविता
आजादी के दीवाने
नहीं मिलते नहीं मिलते,
आजादी के दीवाने नहीं मिलते।
जिस आजादी को लक्ष्मीबाई ने,
अपने खून से सींचा,
तात्या टोपे, मंगल पांडे ने,
अपने प्राणों से सींचा,
वो आजादी के रणबांकुरे,
नहीं मिलते नहीं मिलते।
बिखरे हुए राज्यों को,
मिला कर एक कर देना,
इरादों के लौह पुरूष,
सरदार पटेल नहीं मिलते,
नहीं मिलते नहीं मिलते।
मुझे तुम खून दो,
आजादी मैं तुम्हें दूंगा,
सुभाष बोस जैसे,
आजाद फौज के सेनानी,
नहीं मिलते नहीं मिलते।
अहिंसा सत्य के हथियार से,
जंग जीतने वाले,
महात्मा गांधी जैसे अब,
रहनुमा नहीं मिलते।
खुशी से फांसी के फंदे में,
हंस के झूलने वाले,
शहीद भगत सिंह जैसे,
आजादी के परवाने,
नहीं मिलते नहीं मिलते।
कविता
दहेज की बलि
(नव विवाहिता की मौत पर माता पिता की पाती)
गुजारी कितनी रातें हमने,
रो-रो के तुम्हारी यादों में,
ना रूके आंसू ना तुम आये,
ना हम खुद को समझा पाये।
खुदा के वास्ते इक बार,
तुम आ के देख तो जाते,
हम जिंदा दिखते तो हैं,
मगर लाशों में गिने जाते हैं।
तेरे आने की चाहत में,
हमारी पथरा गयी आंखें,
ओ दुनिया छोड़ने वाले,
कभी वापस तो आ जाते।
मिटा देने से खुद को भी,
अगर तुम लौट के आते,
कभी के मिट गये होते हम,
तुम आ के देख तो जाते।
खुदा तू अपने उसूलों में,
कुछ तबदीलियां तो कर,
जो बचपन में चले जाते,
उन्हें वापिस तो भेजा कर।
दोहे
बुढ़ापे में मां बाप को,
बनबास दे देना,
ये कलयुग की रामायण,
समझा गयी हमको।
कभी भी झूठ से,
सत्य हारा नहीं है,
दिये की टिमटिमाती लौ,
ये बतला गयी हमको।
गरीब जनता की आवाज,
जब नेता नहीं सुनते,
क्रांति लीबिया और मिस्र की,
समझा गयी हमको।
अपने दिल पे,
मेरा नाम लिख दीजिए,
इस खता की,
फिर कुछ भी सजा दीजिए।
तुझे अपना कहने की चाह में,
किसी और के ना हम हो सके,
मुझे चाह बस तेरी रही,
तुझ चाह है किसी और की,
मेरे दिल में है बस तू ही तू,
तेरे दिल में कोई और है,
मेरी जिंदगी की मंजिल है तू,
तेरी मंजिलें कोई और है,
तुझे अपना कहने की चाह में,
जिंदगी गुजारी तुम बिन,
कुछ इस तरह से हमने,
कांटों के गुलदस्ते में,
फूलों ने रात गुजारी।
-सम्पर्क सूत्र
5/3 तेग बहादुर रोड, देहरादून
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