आर के भारद्वाज की कहानी - कटे हाथ

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रामेश्‍वर प्रसाद का परिवार एक सुखी परिवार था, पत्‍नी रेवती, दो बेटियां कामिया और सानिया एक बेटा त्रिलोचन। दोनों बेटियां क्रमशः छठी और तीसरी...

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रामेश्‍वर प्रसाद का परिवार एक सुखी परिवार था, पत्‍नी रेवती, दो बेटियां कामिया और सानिया एक बेटा त्रिलोचन। दोनों बेटियां क्रमशः छठी और तीसरी कक्षा में थी, त्रिलोचन मात्र दो साल का था लिहाजा स्‍कूल नहीं जाता था । रामेश्‍वर प्रसाद एक कारखाने में दिहाड़ी मजदूर था, उम्‍मीद थी कि जल्‍दी ही नियमित हो जायेगा । परिवार के संसाधन यद्यपि सीमित थे तो भी रामेश्‍वर प्रसाद का परिवार सुखी था, उसे अपनी पत्‍नी पर बडा गर्व था, रेवती पढ़ी लिखी तो नहीं थी, लेकिन घर को सुचारू रूप से चलाने की कला उसे आती थी । रेवती इतनी सुन्‍दर थी कि रामेश्‍वर प्रसाद ने कभी उससे ऊंची आवाज में बात नहीं की, वह हमेशा उसकी सुन्‍दरता का गुणगान किया करता था, पडोस की अन्‍य स्त्रियों में भी रेवती सबसे सुन्‍दर, सुशील और सुगृहणी थी । फिर एक दिन रामेश्‍वर प्रसाद के परिवार को ग्रहण लग गया। मशीन में काम करते हुये पट्‌टे के टूट जाने के कारण उसके दोनों हाथ मशीन में आने से कट गये, रेवती का रो रो कर बुरा हाल था। मालिक ने मुआवजे के तीन हजार देकर रामेश्‍वर को काम से हटा दिया । अब रामेश्‍वर प्रसाद सिर्फ अपने कटे हाथों को देखता रहता था अपनी पत्‍नी और बच्‍चों को बेबसी भरी आँखों से देखता रहता था, हाथों के साथ साथ मानो उसकी जुबान भी कट गयी थी, वह अब बहुत कम बोलता था। रेवती ने रामेश्‍वर प्रसाद की जगह लेनी चाही तो मालिक ने मना कर दिया, जब तक घर में जो थोडी बहुत पूंजी थी उससे काम चलता रहा, लेकिन खर्चे थे कि सुरसा के मुंह की तरह बढ़ते ही जा रहे थे,ऊपर से मंहगाई, रेवती ने मन ही मन निर्णय लिया कि अब वह परिवार को पालेगी, लेकिन वह पढ़ी लिखी नहीं थी, लिहाजा कोई नौकरी तेा उसे मिलनी नहीं थी,पास में इतना पैसा था नहीं कि वह कोई छोटी मोटी सड़क के किनारे फड ही लगा ले, उसने बस्‍ती से दूर लोगों के घरों में झाडू पोंछा करने का निर्णय लिया, जहां भी काम मांगने जाती वहॉ पहले से ही काम करने वाली लगी होती, जैसे तैसे उसे एक दो घरों में काम मिला, दो से चार हुये लेकिन मालिक लोग उसके जिस्‍म को बुरी तरह से घूरते थे, जहां मौका मिलता अपनी ओछी हरकतों पर उतर आते, फिर भी रेवती सहती रही, काम करती रही, लेकिन अपने जिस्‍म पर उसने किसी को हाथ नहीं लगाने दिया, उसकी मजबूरी को समझने वाले लोग थे ही कितने? वह हर सम्‍भव मालिकों के काले मनसूबों से अपने का बचाती रही। इससे कई मालिक लोग तो नाराज हो गये, दो महीने होते होते उसके पास केवल एक घर रह गया । बच्‍चे कभी फीस की मांग करते ,कभी कपडों की, कभी किताबों की, घर में खाने का पूरा नहीं था फिर दूसरे खर्चे कैसे पूरे होते, कभी कभी वह बच्‍चों को, रामेश्‍वर प्रसाद को खिलाकर खुद पानी पीकर बहाना बनाकर सो जाती। लेकिन भूखों पेट तो नींद भी नहीं आती। जो दूसरों के घरों में रौनक करते थे उन हाथों-पैरों में अब इतनी लकीरें पड गयी थी जो उसके चेहरे से मेल नहीं खाते थे। दूसरों के झूठे बर्तन साफ करते करते उसके हाथ कभी कभी अपने मुंह तक के लिये रोटी को तरस जाते। लेकिन रेवती किसी तरह जिन्‍दगी को घसीट रही थी, ईश्‍वर तू बडा कारसाज है, इन बुरे दिनों से कब छुटकारा मिलेगा अक्‍सर ठंडी आह उसके मुंह से निकल जाती।

'' मॉ आज कही से पैसे का इन्‍तजाम कर देना फीस भरनी है नहीं तो स्‍कूल से नाम कट जायेगा''......बड़ी बेटी कामिया ने कहा था। रामेश्‍वर प्रसाद ने कहा'' कहते हुये लाज आती है लेकिन मेरे जख्‍मों में अब मवाद पडने लगी है अगर कहीं से कुछ पैसे मिल जाते तो दवा आ जाती'' इसी तरह की रोज की जरूरतें निकल आती। रेवती की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने रामेश्‍वर प्रसाद को नहीं बताया था कि अब उसके पास केवल एक ही घर बचा है।

''देखती हूं, अगर मालकिन ने आज कुछ पैसे उधार दे दिये तो फीस, दवा,राशन लेती आऊंगी'' यह कहकर रेवती घर से निकल गयी। रास्‍ते में सोचती जा रही थी कि यदि पैसे नहीं मिले तो क्‍या होगा? स्‍कूल से नाम कटता तो कटे, त्रिलोचन के लिये दूध न मिले तो न सही, लेकिन रामेश्‍वर प्रसाद के लिये दवा लानी बहुत जरूरी है, नहीं तो वह मन में सोचेगा कि मेरे बुरे वक्‍त में रेवती भी साथ छोड़ गयी, सोचते सोचते उसकी आंखों में पानी आ गया ।

.............शाम को रेवती जब घर वापस आयी तो उसके पास रामेश्‍वर प्रसाद की दवा थी, उसने आते ही रामेश्‍वर प्रसाद के हाथों में दवा लगायी, कामिया से कहा,''कल स्‍कूल जाते समय फीस के पैसे ले जाना, उसने खाना बनाया जो राशन वह लायी थी वह सात दिनों के लिये काफी था। उसने अपनी गोद में लेकर त्रिलोचन को दूध पिलाया। सबको खाना खिलाने के बाद खुद खाने बैठी, आज रेवती को भरपेट खाना मिलेगा। पहला कौर डालते ही उसे जोर से उबकाई आई, वह जोर जोर से रोने लगी, सभी हैरान थे, रामेश्‍वर प्रसाद के तो केवल दुर्घटना में हाथ कटे थे लेकिन उसे अपने जिस्‍म से मवाद की बदबू आ रही थी, आज का सामान वह अपना जिस्‍म बेचकर लायी थी......

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RK Bhardwaj

151/1 Teachers colony,Govind Garh

Dehradun (Uttarakhand)

phone: 9456590052

email.  rkantbhardwj@yahoo.com

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(चित्र - अमृतलाल वेगड़ की कलाकृति)

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रचनाकार: आर के भारद्वाज की कहानी - कटे हाथ
आर के भारद्वाज की कहानी - कटे हाथ
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