आर के भारद्वाज का आलेख - जरा सोचिए

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रात करीब 1.30 पर अचानक फोन की धण्‍टी बजती है, दूसरी ओर से आवाज आती है कि आप कौन बोल रहे हैं,फोन उठाने वाला अपना नाम बताता है, दूसरी ओर से ए...

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रात करीब 1.30 पर अचानक फोन की धण्‍टी बजती है, दूसरी ओर से आवाज आती है कि आप कौन बोल रहे हैं,फोन उठाने वाला अपना नाम बताता है, दूसरी ओर से एक दर्द भरी आवाज आती है....मैं सब्‍बरवाल बोल रहा हूं....मेरे सीने में बडा दर्द है......क्‍या आप मेरी मदद कर सकते हैं..... जब तक इधर से जवाब जाता तब तक हैलो हैलो करने पर भी दूसरी ओर से कोई्र जवाब नहीं आता। इधर वाले सज्‍जन फोन रख देते है। .......अगले दिन समाचार पत्रों से ज्ञात होता है कि एक वृद्ध जो घर में अकेले थे अचानक हार्ट अटैक से दिवंगत हो गये।

अपने एक करीबी रिश्तेदार से जो दूसरे शहर में रहते हैं, मिलने के लिये जाता हूं। वहां पर अजीब से हालात देखने को मिलते हैं बहुत बडी कोठी रहने वाले सिर्फ दो बुजुर्ग व्‍यक्‍ति। एक पति एक पत्‍नी। बेटा बहु दिल्‍ली में रहते हैं...बडी लड़की मुम्‍बई में हैं। दोनों फोन से बात करते है मॉ बाप का हाल जानते हैं। इधर पत्‍नी कई रोगों से ग्रस्‍त है बुजुर्ग व्‍यक्‍ति उसकी देखभाल करते है। दो समय का खाना, सुबह का नाश्ता, समय पर दवा-डाक्टर को दिखाना। बडी उम्र के कारण वाहन नहीं चला पाते है। मुझसे प्रार्थना करते है कि किसी ऐसे आदमी का प्रबन्‍ध कर दो जो हमारी देखभाल कर सके। अब इस उम्र में चला फिरा नहीं जाता।

पति पत्‍नी दोनों बडे ओहदों से अवकाश प्राप्‍त है.....लड़का अमेरीका में अपनी पत्‍नी के साथ रहता है। घर के काम के लिये एक नौकर रखा हुआ है जो दोनों के लिये खाना बनाता है घर के दूसरे काम काज करता है। उसका पुलिस से भी सत्‍यापन कराया हुआ है। एक दिन वह दोनों के खाने में बेहोशी की दवा मिलाकर, धर का सारा सामान लेकर धर से फरार हो जाता है।.........

पडोस के लोग वृद्धा को दूसरी मंजिल से आत्‍महत्‍या करने से रोकते हैं। वृद्धा की एक ही रट है अब मैं जीना नहीं चाहती, वृद्ध एक तरफ सूनी आंखों से देखते रहते है। पुलिस बुलाई जाती है, पुलिस आत्‍महत्‍या का कारण जानना चाहती है। वृद्ध द्वारा बताया जाता है कि हमारा एक बेटा है जो दूसरे शहर में नौकरी करता है। हमें अपने पास नहीं रखना चाहता......तीन साल से उसने फोन भी नहीं किया है। इस अकेलेपन से तो मरना बेहतर है..........

पति मुख्‍य अभियन्‍ता के पद से अवकाश प्राप्‍त....पत्‍नी एक कालेज के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्‍त। बेटे बहु चंडीगढ़ में रहते हैं लड़की कश्‍मीर में रहती है। घर में सब आधुनिक सामान है....दोनों बुजुर्ग अकेले रहते हैं। दुख है तो इस बात का कि कोई बात करने वाला नहीं है।

घर में सभी लोग हैं....बेटे बहु....पोते पोतियां, पौत्र वधु। लेकिन श्री भार्गव साहब के माता पिता अपने कमरे में अकेले रहते हैं किसी के पास उनके लिये दस मिनट का समय नहीं है। दोनो बीमार है... वृद्ध .भार्गव साहब को कैंसर है, श्रीमती भार्गव मानसिक रोगी है ......।

ऐसी ही और लगभग इससे मिलते जुलते कई किस्‍से हैं......जरा सोचिये, इन वृद्धों के मानसिक धरातल पर उतर कर.......आपके हमारे पास पडोस में ऐसे कितने ही उदाहरण मिल जायेगें जहां पर बूढ़े व्‍यक्‍ति अकेलेपन का दंश झेल रहे है। क्‍या सरकार, सामाजिक संगठनों का कोई दायित्‍व नहीं हैं, इनके प्रति। कल मेरी आपकी सभी की ऐसी हालत होने जा रही है। सोचिये क्‍या हम इस अकेलेपन के दंश को, अपनी बिमारी को....अपने रोग ग्रस्‍त शरीर को लेकर क्‍या करेंगे। क्‍या हम इतने सक्षम है कि इन हालातों पर काबू पा सकेंगे।

आज समाचार पत्रों में रोज किसी वृद्ध दंपति के हत्‍या, लूटपाट के किस्‍से पढने को मिलते हैं। यह हमारे पडोस के ही लोग हैं, इनके प्रति हमारा कोई्र दायित्‍व नहीं है। क्‍या ओल्‍ड होम में भेज देने भर से हमारे कर्तव्‍यों की इति श्री हो जाती है। ओल्‍ड होम में इनकी कैसी देखभाल की जाती है (एक दो की बात छोड़ दें)......... , यह किसी से छिपा नहीं है।

क्‍यों होते जा रहे है हम इतने असामाजिक, इतने निष्‍ठुर......क्‍या सिर्फ हमें क्‍या......यह कहकर हम इन हालात से अलग हो सकते है।

प्रश्‍न यह है कि फिर क्‍या किया जाये .......कहा जा सकता है कि हमारे अपने ही इतने अनुबन्‍ध हैं कि चाहकर भी हम कोई मदद नहीं कर सकते। यह एक बहाना हो सकता है। लेकिन कहावत है कि जहां चाह वहां राह।

आइये देखते है कि हम इन वृद्ध लोगों की कैसे मदद कर सकते हैं। फर्ज कीजिये आप अपने बिजली के बिल, टेलीफोन के बिल, पानी के बिल को सम्‍बन्‍धित विभाग में जमा कराने जा रहे हैं बस आप सिर्फ इतना कर दें कि घर से चलते समय इन लोगों से भी पूछ लें कि क्‍या आपका बिल जमा हो गया,,,,,,यदि नहीं तो लाइये मैं जमा करा दूंगा। आपके पास अपने व्‍यापार, नौकरी,खेती के बाद थोडा समय मिल जाता है बस सिर्फ इन लोगों को दस मिनट दे दें, इनके हाल पूछ लें....इन्‍हें लगेगा की नहीं, हमारा भी कोई है जो हमारा ख्‍याल रख सकता है।

कहते हैं मुस्‍कान सिर्फ दो ही की अच्‍छी लगती है किसी बच्‍चे की या किसी बुजुर्ग की................ बस आप सिर्फ इन्‍हें थोड़ा सा मुस्‍कराने का मौका दें दें ......

आप शायद कहें कि इन लोगों के ऐसे ऐसे कारनामे होते हैं कि इनसे दूर रहना ही बेहतर है। मैं आपकी बात से इत्‍तेफाक रखता हूं.....लेकिन जो आदमी पिछले 60-70 दशकों में नहीं सुधरा क्‍या अब सुधर जायेगा? आप सिर्फ उनकी बात सुन लें यदि लगता हो कि इनकी बात न्‍याययुक्‍त है तो अवश्‍य करें अन्‍यथा यह कह दें कि इस समय तो ऐसा करना सम्‍भव नहीं हैं ....अभी आप इसी तरह काम चला लें बाद में आपकी बात पर भी विचार करेंगे।

याद रखिये जलती लकड़ी हमेशा पीछे को आती है, आज जिस हालात में यह हैं कल हम होंगे परसों हमारे बच्‍चे होंगे, इनकी मदद करने के बारे में जरा सोचिये। इन्‍हें कहां क्‍या हो रहा है इसके बारे में बता दें.....दुश्‍वारी तो होगी पर यदि आपके माता पिता वृद्ध हैं तो कृपया इन्‍हें अपने साथ रखने का प्रबन्‍ध करें। बच्‍चे और बुजुर्ग थोडा जिद्‌दी होते हैं आप जैसे बच्‍चों को बहलाते हैं वैसे ही किसी प्रकार इन्‍हें भी बहलायें। थोडा समय निकाल कर इनके पास बैठें इनकी समस्‍या को सुनें, इनके पहनने,खाने का जरा अपने से बेहतर प्रबन्‍ध कर दें।

सोचिये....जरा सोचिये......जहां चाह वहां राह.....कृपया इन्‍हें अकेले मत छोड़ें।

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RK Bhardwaj

151/1 Teachers’ Colony

Govind Garh]Dehradun

(Uttarakhand)

email: rkantbhardwaj@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. बहुत संवेदनशील लेख ....सच आज यही हालात हैं बुजुर्गों के ...मार्मिक प्रस्तुति

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  2. amita8:12 am

    भारद्वाज साहब आपने बहुत सही लिखा है हम सबको बस जरा सा सोचने की जरूरत है.
    अमिता

    जवाब देंहटाएं
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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: आर के भारद्वाज का आलेख - जरा सोचिए
आर के भारद्वाज का आलेख - जरा सोचिए
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रचनाकार
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