क़ैस जौनपुरी की कहानी - कबूतर

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एक कबूतर का जोड़ा था․ शहर में तेजी से बन रही इमारतों की वजह से पेड़ों की कमी हो गई थी․ अब कबूतर इमारतों की खिड़कियों के लिए बने छज्‍जे पर र...

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एक कबूतर का जोड़ा था․ शहर में तेजी से बन रही इमारतों की वजह से पेड़ों की कमी हो गई थी․ अब कबूतर इमारतों की खिड़कियों के लिए बने छज्‍जे पर रहने लगे थे․ मगर मादा कबूतर छज्‍जे पर अण्‍डे नहीं दे सकती थी क्‍योंकि उसे डर था कि पिछली बार की तरह इस बार भी उसका अण्‍डा छज्‍जे से गिरकर टूट जाएगा․

इसलिए ये कबूतर का जोड़ा एक ऐसी जगह तलाश रहा था जहां उसे तसल्‍ली रहे कि उसका अण्‍डा सही सलामत रहेगा․ इसके लिए कबूतर के जोड़े ने बहुत कोशिश मगर कोई ऐसी जगह न मिली․ सड़क के किनारे लोगों का आना-जाना लगा रहता था․ और दिन-रात आती-जाती गाड़ियों का शोर भी उन्‍हें डरा देता था․

एक दिन कबूतर का जोड़ा एक खिड़की पर बैठा सोच रहा था․ तभी मादा कबूतर को कमरे के अन्‍दर की दीवार पर जो उसी खिड़की के कोने पर मिलती थी, एक कपड़ा टांगने वाला गोल हैंगर दिखाई दिया․ इस हैंगर में सहारे के लिए तीन टांगें थी․ हैंगर का किनारा गोल था․ उसमें नीचे की तरफ कई क्‍लिप लटकी हुईं थीं, जिनमें कपड़ा टंगा रहता था․ इस गोल हैंगर की बनावट मकड़ी के जाले जैसी थी․ कबूतर इसपे बैठ तो सकते थे मगर अण्‍डा नहीं दे सकते थे क्‍योंकि हैंगर में कई फ्रेम तो थे मगर ये बीच-बीच से खाली था․

मादा कबूतर बार-बार इधर-उधर हैंगर पर बैठने की कोशिश कर रही थी मगर उसे अण्‍डा देने के लिए अभी-भी समतल और सुरक्षित सतह नहीं मिल रही थी․ नर कबूतर वहीं पास में बैठा सोच रहा था और मादा कबूतर की रखवाली भी कर रहा था․

तभी कमरे में एक छोटा बच्‍चा आया․ उसने देखा कि ”खिड़की पर दो कबूतर बैठे हैं․” उस छोटे बच्‍चे ने खुश होकर अपने मम्‍मी-पापा को बुलाना शुरु किया․

-”पापा-पापा, देखो-देखो खिड़की पर चिड़िया बैठी है․ मम्‍मी-मम्‍मी, आओ देखो․”

-”क्‍या हुआ इशू!” छोटे बच्‍चे के पापा ने कहा․

- ”पापा! देखो․․․चिड़िया․․․” इशू ने चहकते हुए कहा․

-”ये कबूतर है बेटा․” इशू के पापा ने इशू को बताया․

-“क्‍या हुआ इशू?- इशू की मम्‍मी ने पूछा․

-”मम्‍मी देखो कबूतर․” इशू ने मम्‍मी को बताया․

इतने में इशू की चहकती आवाज सुनकर कबूतर उड़ गये․ इशू की मम्‍मी को लगा कि ”कबूतर अण्‍डा देने के लिए जगह ढूंढ रहे हैं․” फिर इशू के पापा ने उस हैंगर के ऊपर पेपर बिछा दिया․

थोड़ी देर बाद कबूतर फिर आए․ अब उन्‍हें लगा कि ”खाली जगह पेपर से ढंक चुकी है․ अब उनका अण्‍डा नीचे नहीं गिरेगा․ इसलिए कबूतर खुश थे․ अब कबूतर काफी देर तक बैठे रहते थे․ मगर अण्‍डा देने से पहले दोनों खूब तसल्‍ली कर लेना चाहते थे․”

एक दिन इशू और उसके पापा कमरे में बैठे रेडियो पर गाना सुन रहे थे․ तभी कबूतर का जोड़ा फिर आया․ इशू चिल्‍लाया․

-”पापा! देखो․ कबूतर फिर आ गये․” इशू के पापा ने इशू को चुप कराया․

-”चुप नहीं तो कबूतर भाग जायेंगे․” पापा ने समझाया․

कबूतर के जोड़े ने देखा कि “अब इशू शान्‍त हो चुका है․ मगर कबूतर एक भी पल बेफिक्र नहीं होते थे․ दोनों पूरी नजर लगाए हुए थे कि कहीं कोई उन्‍हें पकड़ने या मारने तो नहीं आ रहा है․”

तभी इशू की मम्‍मी खाने के लिए पराठे लेकर कमरे में आई․ इशू के पापा खाने लगे․

-”आप भी आइये․” इशू के पापा ने इशू की मम्‍मी को बुलाया․

-”आप गरम-गरम खाइए․ हम आ रहे हैं․” इशू की मम्‍मी ने कहा․

इशू के पापा ने सोचा ”क्‍यूं न थोड़ा सा पराठा कबूतरों को भी खिलाया जाए․” और इस मकसद से वो धीरे से पराठे का टुकड़ा कबूतरों के पास पहुंचाने की कोशिश करने लगे मगर जैसे ही पराठा कबूतरों की नजर में आया․ दोनों फुर्रर्र से उड़ गये․

इशू के पापा ने कबूतर के बैठने के लिए थोड़ा और अखबार लेकर बिछा दिया․ उन्‍होंने देखा कि ”कबूतर इस बार अपने साथ एक तिनका लाए थे․” इसका मतलब अब कबूतरों को इस बात का भरोसा हो गया था कि वो यहां अण्‍डा दे सकते थे․ और उन्‍होंने इसी मकसद से तिनके जुटाने की कोशिश शुरु कर दी थी․

आखिर एक जानवर ने इन्‍सान की भावना समझ ली थी․ दूसरे दिन इशू के पापा ने इशू को गोद में उठाकर वो जगह दिखाई․ कबूतर तो उस वक्‍त नहीं थे․ मगर अब वहां दो तिनके आ चुके थे․ इशू के मम्‍मी-पापा को पूरी उम्‍मीद थी कि ”कबूतर अण्‍डा देगी․”

कबूतर अब जब-तब आने लगे थे․ अब उन्‍हें, इशू का खड़ा होना, उनकी तरफ देखकर हाथ हिलाना, इन सब बातों से डर नहीं लगता था․ अब तो कबूतर उसी हैंगर पर सोने भी लगे थे․

कबूतरों ने अब अपना भरोसा जता दिया था․ और एक दिन इशू ने अपने पापा की गोद में बैठकर देखा कि ”कबूतर ने एक खूबसूरत अण्‍डा दिया था․”

कबूतर इशू और उसके पापा की हरकतों को बहुत ध्‍यान से देखते थे․ इशू के पापा इशू को हवा में लहराकर खेल खेलते थे․ इशू हंसता था और अपने पापा की पीठ पर चढ़ जाता था․ कबूतर अब समझ गये थे कि ये सब खेल है․ और कबूतर ये भी समझ चुके थे कि ये परिवार भी उनकी ही तरह छोटा परिवार है․

कबूतर के जोड़े को ये परिवार बहुत अच्‍छा लगा․ उन्‍होंने आपस में बात की कि “हम इस परिवार को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे․ और इस इशू की हर हरकत अपने होने वाले बच्‍चे को सिखाएंगे․” ये सब इसलिए क्‍योंकि इशू बहुत खुश रहता था, तो कबूतरों को लगा कि “अगर हम भी इशू के मां-बाप की तरह अपने बच्‍चे की परवरिश करें तो हमारा बच्‍चा भी इतना ही खुश रहेगा․”

कबूतर के जोड़े ने ये सोच तो लिया․ मगर ऐसा होने में थोड़ी मुश्‍किल थी․ क्‍योंकि वो इन्‍सान नहीं थे․ लेकिन यहां बात तो सिर्फ अपने होने वाले बच्‍चे को खुश देखने की थी․ और ऐसा तो कोई भी सोच सकता है․ चाहे वो इन्‍सान हो या कबूतर․

कबूतर के जोड़े ने इशू की हर बात सीख ली थी․ और इशू के मम्‍मी-पापा की भी सारी बातें सीखते रहते थे․ जैसे सबसे पहले इशू देर तक सोता था․ इशू के मम्‍मी-पापा उसे प्‍यार से जगाते थे․

कबूतर हर नई बात पर इन्‍सान की तरह सोचने लगते थे․ वो सोचने लगे कि ”उनका बच्‍चा भी सो रहा है और दोनों अपने बच्‍चे को प्‍यार से जगाने की कोशिश कर रहे हैं․” हां ये बात अलग है कि उनके पास इशू के मम्‍मी-पापा की तरह प्‍यार करने के लिए दो हाथ नहीं थे․ उनके होने वाले बच्‍चे के पास इशू की तरह सोने के लिए बिस्‍तर नहीं था मगर जब इन कबूतरों ने इन्‍सान की तरह सोचना शुरु ही कर दिया था तो उन्‍होंने ये भी सोच लिया था कि “वो अपने बच्‍चे को हर वो खुशी देंगे जिसका उसे हक है और जो वो देखते थे इशू के लिए․

वो देखते थे कि इशू रोज नहाता है․ और नहाते वक्‍त इशू गाना भी गाता है․ इशू की मम्‍मी जबरदस्‍ती साबुन लगाती है तो इशू रोता भी है․ यहां कबूतरों को लगता था कि “ये थोड़ा ज्‍यादा हो रहा है․ हम अपने बच्‍चे को रुलायेंगे नहीं․” मगर उन्‍हें ये नहीं पता था कि वो इशू के लिए जरुरी था․

और एक दिन उन्‍होंने देखा कि इशू तैयार हो रहा है स्‍कूल जाने के लिए․ कबूतर इशू के पीछे-पीछे चल दिया ये देखने के लिए कि इशू का स्‍कूल कहां है․ इशू का स्‍कूल पास ही में था․ अब कबूतरों को इशू की पूरी दिनचर्या मालूम हो चुकी थी․ इशू कभी-कभी टी․ वी․ भी देखता था․

कबूतरों ने सारी इन्‍सानी बातें सीख ली थीं․ और मादा कबूतर इसी दौरान अपने अण्‍डे को “से“ भी रही थी․ एक दिन अण्‍डे से एक प्‍यारा सा बच्‍चा निकला․ उस दिन कबूतर के जोड़ा बहुत खुश था․ दोनों ने आपस में बात की कि इसका नाम क्‍या रखें․ उन्‍हें और कोई नाम तो सूझा नहीं․ उन्‍होंने फैसला किया कि “हम अपने बच्‍चे को इशू कहकर पुकारेंगे․”

और अपनी आवाज में वो कहते थे․․․ ”ईऊ”․ कहते हैं कि बच्‍चा सबसे ज्‍यादा बातें अपनी मां के पेट में सीखता है․ ईऊ ने भी अपनी मां के प्‍यार और दुलार को समझ लिया था․ पहले दिन सभी बच्‍चों की तरह दुनिया में आने के बाद ईऊ भी खूब रोया था․

अगले दिन ईऊ सुबह होने के बाद भी सो रहा था․ कबूतर का जोड़ा खुश होकर अपने ईऊ के आसपास गोल-गोल घूम रहा था․ दोनों खुश थे कि उनका ईऊ भी उनकी बात समझ रहा था․ वो सोच रहे थे कि “उनका ईऊ जानबूझ कर देर तक सो रहा है․ उनका ईऊ चाह रहा है कि हम उसे प्‍यार से जगाएं․” और फिर दोनों कबूतरों ने एक साथ अपने ईऊ को अपनी छोटी-छोटी चोंच से गुद्‌गुदी करना शुरु कर दिया․ ईऊ चहकते हुए उलट-पलट होने लगा․ ईऊ की मम्‍मी ने ईऊ के पापा से कहा,

-”चलो-चलो, आप ऑफिस जाओ․ आप को देर हो रही है․”

-”ओह नहीं․․․․आज ऑफिस जाने का मन नहीं है․“

-”अच्‍छा, तो फिर अपने ईऊ को खिलाओगे क्‍या․․․कोपर․․․?” मैं जा रहीं हूं ईऊ को नहलाने․ आप जाओ कुछ खाने के लिए ले आओ․․․मेरे ईऊ के अच्‍छे पापा․․․!“

ईऊ के पापा न चाहते हुए भी बाहर की दुनिया की तरफ निकल पड़े․ ईऊ की मम्‍मी खुश थी कि ईऊ के पापा अपनी जिम्‍मेदारी समझते हैं․

थोड़ी देर बाद ही ईऊ के पापा कुछ खाने का सामान लेकर लौटे․ और अपनी चोंच ईऊ के मुंह में डाल दी․ ईऊ खुश था कि कुछ खाने को मिला․ मगर ईऊ के पापा को शरारत सूझी․ उन्‍होंने खाने का सामान अपने पंजों में दबाकर बोले․․․․

-”नहीं दूंगा․․․इसे तो मैं खाऊंगा․”

ईऊ ने रोने जैसा मुंह बना लिया․ ईऊ अपनी मां की तरफ देखने लगा․ ईऊ की मां ने ईऊ के पापा से कहा․

-”आप भी ना․․․छोटे से बच्‍चे को तंग करने में कितना मजा मिलता है आपको․․․”

ईऊ के पापा ने खाने का सामान ईऊ के मुंह में डाल दिया․ ईऊ खुश होकर अपनी मां से लिपट गया․ कबूतर का जोड़ा खुश था कि “उनका परिवार, एक सुखी परिवार है․”

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-क़ैस जौनपुरी

qaisjaunpuri@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. समय के साथ-साथ सब कुछ बदला है...हमारी ज़रूरतों की तरह पक्षियों की ज़रूरतें भी बदली हैं ...पर इस नए परिवेश में उनकी बदली ज़रूरतों को हमें समझना होगा ........पर्यावरण की पहली शर्त है यह......जिसे बहुत अच्छी तरह से बताया है आपने.

    जवाब देंहटाएं
  2. बेनामी3:28 am

    रोचक कहानी, आकर्षक अंदाज़े बयां

    जवाब देंहटाएं
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रचनाकार: क़ैस जौनपुरी की कहानी - कबूतर
क़ैस जौनपुरी की कहानी - कबूतर
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