उंचे कुल में पैदा हुए लोग सिर्फ खुद को उंचा समझते हैं․ बाकी सब उनके लिए एक चमार की औकात रखते हैं․ इन्हीं चमारों की बस्ती में एक ऐसा चमार...
उंचे कुल में पैदा हुए लोग सिर्फ खुद को उंचा समझते हैं․ बाकी सब उनके लिए एक चमार की औकात रखते हैं․ इन्हीं चमारों की बस्ती में एक ऐसा चमार पैदा हुआ जो इन ठाकुरों की झूठी शान के खिलाफ था․
कल्लू चमार एक साधारण मानव था․ लेकिन कल्लू चमार की गलती ये थी कि वो ठाकुरों की बस्ती में पैदा हुआ और ठाकुरों के बीच ही रहता था जहां ठाकुर का हुक्म ही कानून हुआ करता था․ कभी डर से, कभी झूठी इज्जत से और कभी लाठी के दम पर भी․ जैसी जरुरत पड़ती थी ठाकुर वैसा ही करते थे․ आखिरकार, वो ठाकुर थे․
ठाकुरों के घरों में पैदा होने वाले लड़के इन चमारों को “चूहा मारने वाला“ कहते थे․ जबकि कल्लू चमार अपने चमार दोस्तों से कहता था “मैं इन ठाकुरों को चुन-चुन के मारुंगा․“
फरीदाबाद एक ऐसा ही गांव था जहां आए दिन ठाकुरों और चमारों के बीच तनातनी रहती थी․ ठाकुर हमेशा अपनी झूठी शान का दम भरते थे․ “ठाकुरों की बेटियों की तरफ आंख उठाकर देखने वालों की आंखे निकाल ली जाएंगी“ ऐसा खौफ था पूरे गांव में․ और ये खौफ आसपास के कुछ और गांवों तक भी फैला हुआ था․
ठाकुर उंची जाति के लोग थे․ इनके यहां पैदा होने वाली लड़कियां बिना किसी रोक-टोक के खूबसूरत पैदा होती थीं․ वहीं चमारों के यहां अगर कोई खूबसूरत लड़की पैदा हो गई तो ये उस लड़की के लिए तो खतरा था ही, साथ ही साथ पूरी चमार बस्ती के लिए एक जिम्मेदारी बन जाती थी․ क्योंकि ठाकुर यूं तो चमारों को अछूत मानते थे लेकिन एक चमार की खूबसूरत बेटी पर बुरी नजर रखने से उनके कुल को आंच नहीं आती थी․
और जहां तक होता आया है इस तरह की दकियानूसी सोच कुछ कट्टर लोग ही मानते हैं जबकि नई पैदा होने वाली फसल इस भेदभाव को उस हद तक नहीं मानती․ और यहीं पर पैदा होता है दो पीढि़यों के बीच तनाव जिसको खत्म करने और पुरानी सोच को कायम रखने के लिए कुछ नियम बनाये जाते हैं जिनको नई सोच पर थोप दिया जाता है․ कभी मर्जी से तो कभी जबरदस्ती से․
इस तरह के माहौल में जब दो अलग-अलग सोच रखने वाले एक जगह मिलते हैं तब माहौल शान्त रहना थोड़ा मुश्किल हो जाता है क्योंकि ठाकुर का खून गरम होता है․ वहीं पर एक चमार खुद से तो पंगा नहीं लेता है मगर हां जब बात उसकी आन पर आ जाती है तब वो ये भूल जाता है कि, “वो खुद एक चमार है और सामने वाला ठाकुर, जिसका रंग उससे साफ है, और जो खुद को उंची जाति का मानता है․“
ऐसी हालत में कई बार बात बहुत आगे निकल जाती है और एक नफरत सी दिल में बैठ जाती है जिसका खामियाजा बेकुसूरों को भुगतना पड़ता है․ सिर्फ इसलिए क्योंकि वो भी उस कुल में पैदा हुए हैं․ भले ही वो एक रत्ती भर भी इस बात को न मानते हो․
ऐसा ही एक ठाकुर की बेटी के साथ हुआ․ पुरानी पीढ़ी की पैदा की हुई नफरत एक बेकुसूर लड़की को भारी पड़ी․ जिसकी गलती बस ये थी कि वो ठाकुर खानदान में पैदा हुई और बेपनाह खूबसूरत थी․ सोनम नाम था उसका․ सोनम बाकी लड़कियों के साथ पास के एक गांव में एक सरकारी स्कूल में पढ़ने जाती थी․ इस सरकारी स्कूल में सभी जातियों के बच्चे पढ़ते थे․
सरकार ने तो सबको एक समान मानकर सबके लिए एक स्कूल खोल दिया था मगर “ठाकुरों की झूठी शान और चमारों की अपनी आन“ की लड़ाई में स्कूल का माहौल भी नफरत से भर गया था․ चमार अपने गुट में रहते थे․ ठाकुरों की लड़कियां अलग झुण्ड में चलती थीं․ कुल मिलाकर स्कूल में “तू चमार मैं ठाकुर“ की पढ़ाई होती थी․ कभी-कभी लड़ाई झगड़े भी हो जाते थे․ क्योंकि लड़ाई करने वाले तो कम ही होते हैं मगर उकसाने वाले ज्यादा होते हैं․
सोनम और कल्लू भी इसी स्कूल में पढ़ते थे․ सोनम थोड़ा अलग स्वभाव की लड़की थी․ वो कल्लू चमार को सिर्फ कल्लू समझती थी और कल्लू से हमदर्दी रखती थी․ ये बात कल्लू को अच्छी लगी मगर अपने गुट में सरदार होने की वजह से वो सोनम के ज्यादा करीब नहीं जा सकता था․ बात बिगड़ सकती थी․ इसलिये दोनों ने खामोशी अख्तियार कर रखी थी․
वक्त गुजरता रहा․ दोनों गुटों में नये-नये चेहरे आते रहे․ प्राईमरी से जूनियर, फिर जूनियर से इण्टरमीडिएट और फिर कॉलेज․ वक्त अपनी रफ्तार से चल रहा था और दोनों गुटों के बीच नफरत भी मौके की नजाकत के हिसाब से सुलगती रही․
एक बार कल्लू और सोनम आपस में बातें करते देखे गये․ बात जंगल की आग की तरह फैल गई․ ठाकुरों का खून गरम हो उठा․ एक चमार ने एक ठाकुर की बेटी के नजदीक जाने की कोशिश की थी․ और अब सुलगती हुई नफरत ने आग पकड़ ली थी․ और इस आग में धू-धू कर जलने वालों में कुछ ठाकुर भी थे․ कल्लू ने अपने गुट की रखवाली की मगर जब आदमी भीड़ में आ जाता है तब उसकी कोई शकल नहीं होती है․ इस झगड़े में भी यही हुआ․ एक चमार को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा․ ठाकुरों के गुट में किसी के पास पिस्तौल थी․ गरमा-गरमी में पिस्तौल निकल गई और जब निकल गई तो चल भी गई․ गोली चली थी तो किसी को तो लगनी ही थी․
गोली चली थी तो कल्लू चमार के लिए मगर नसीब किसी और का खराब था․ भीड़ में कल्लू सबको समझाते हुए बीच में घिर गया और गोली उसके एक साथी को लगी और अन्जाम ये कि मौके पर ही मौत हो गई․
बात कुछ नहीं थी मगर अब बात बहुत कुछ बन चुकी थी․ कल्लू चमार को उसके गांव में फटकार पड़ी कि उसकी वजह से किसी की जान गई․ कल्लू चमार पर आरोप लगा कि वो एक ठाकुर की लड़की से हमदर्दी रखता है․
कॉलेज कुछ दिनों के लिए बन्द हो गया․ मामला कत्ल का था․ ठाकुरों की जान-पहचान थी․ गोली चलाने वाला ठाकुर अनिल सिंह जमानत पर थाने से ही छूट गया․ इधर चमरौटी में मातम पसरा हुआ था․ कल्लू चमार खुद को गुनहगार मानने लगा․ मगर “लड़ाई-झगड़े से बात सिर्फ बिगड़ती है“ ये बात कल्लू चमार को समझ में आ गई थी․ मगर सबकी समझ एक जैसी नहीं होती है․
किसी ने कहा है, “हर लड़ाई उसी वक्त नहीं जीती जाती․ कभी-कभी हारना भी पड़ता है․ फिर से तैयारी करो और अगली बार जीत तुम्हारी होगी․” इस बात को कई चमार मानते थे․ वैसे भी नीची जाति के पास सिर्फ बर्दाश्त करने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं होता․ कभी-कभी ऐसा होता है कि नीची जाति में कोई ऐसा पैदा होता है जो बीड़ा उठाता है अपनी जाति को ऊपर उठाने के लिए․ जैसा डॉ․ भीमराव अम्बेडकर ने किया था․ मगर हर कोई भीम नहीं होता․ कल्लू चमार में हौसला तो था मगर बाकी चमारों में एकता नहीं थी․ ऐसा ही होता है अक्सर और यही वजह है कि नीची जाति कभी ऊपर नहीं आ पाती․
कल्लू चमार की सूझ-बूझ की नीति कईयों को समझ में नहीं आती थी․ वो खून का बदला खून से लेना चाहते थे․ इन्हीं चमारों में एक था दिनेश․ दिनेश का भाई मरा था उस लड़ाई में और उसकी नजर में सोनम ही इसकी वजह थी․ उसको लगता था कि “कल्लू कभी सोनम को कुछ कहेगा नहीं क्योंकि उसे सोनम से हमदर्दी है“․ कल्लू के गुट में सभी इस बात को मानते थे कि इस बात का बदला सोनम से लेना कोई अक्लमंदी नहीं है․ मगर दिनेश को लगता था कि अगर सोनम को चोट पहुंचेगी तो ठाकुरों की बेईज्जती होगी और यही दिनेश चाहता था․ इसलिए उसने कल्लू से इतर अपना अलग गुट बना लिया था और सबको उसने सोनम पर नजर रखने के काम पर लगा दिया था․ कई दिन बीतने के बाद कॉलेज फिर से खुला․ लोग आने गले․
एक दिन सोनम को कॉलेज अकेले आना पड़ा․ ठाकुरों को चिंता नहीं थी क्योंकि पिछली घटना के बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ था जिससे उन्हें डरने या फिक्र करने की जरुरत पड़े․ दिनेश इसी फिराक़ में था कि ठाकुर एकदम बेफिक्र हो जाएं․ तब बदला लिया जाएगा․ और उस दिन सोनम अकेले थी ये बात दिनेश को पता लग गई․ उसने कालेज से वापस जाते वक्त सोनम को एक सूनसान जगह पर घेर लिया․ दिनेश के साथी सड़क पर आने-जाने वाले लोगों पर नजर रखे हुए थे․
दिनेश ने सोनम को सड़क किनारे सरपतों के झुण्ड में घसीट लिया․ उसके मुंह में सोनम का ही दुपट्टा ठूंस दिया जिससे वो शोर न मचा सके․ दिनेश की नियत खराब थी․ वो बहुत दिनों से सोनम पर नजर लगाए हुआ था․ उसपर कल्लू से नजदीकी और अपने भाई के मारे जाने के बाद दिनेश की नियत ने बदले का रुप ले लिया था․ और आज दिनेश को मौका मिल गया था․ उसने सोनम की इज्जत लूटने का इरादा कर लिया था․
दिनेश की नियत के बारे में कल्लू को शक था इसलिए उसने भी अपने साथियों को दिनेश पर नजर रखने के लिए बोल दिया था․ उस दिन कल्लू कॉलेज नहीं गया था․ इसलिए दिनेश को मौका मिल गया था․ कल्लू के साथियों को भनक लग गई थी कि दिनेश कुछ करने वाला है․ वो तुरंत कल्लू को इस बात से आगाह करना चाहते थे․
उधर कल्लू किसी सरकारी काम से ठाकुरों की बस्ती में ही गया हुआ था․ गांव का प्रधान भी एक ठाकुर ही था․ प्रधान कल्लू की होशियारी और समझदारी समझता था इसिलए चमारों की बस्ती में किसी सरकारी योजना की खबर देने के लिए कल्लू को ही बुलाता था․
जब दिनेश ने सोनम को घेर लिया तब कल्लू के साथी उसे ढूंढ़ते हुए प्रधान के घर की तरफ जा ही रहे थे कि उन्हें कल्लू वापस आता हुआ दिखाई दिया․ उन्होंने कल्लू को सारी बात बताई․
सब उन्हीं सरपतों के झुण्ड से होकर निकल रहे थे․ इधर दिनेश ने सोनम पर काबू पा लिया था․ उसने सोनम के हाथ बांध दिये थे․ सोनम ने जी-तोड़ कोशिश की मगर दिनेश के चंगुल से बाहर नहीं निकल सकी․ अब दिनेश को लगा कि आज उसकी जीत है․ और इस जीत की खुशी के जोश में वो सोनम को याद कराने लगा वो पिछली बातें जिनकी वजह से वो आज उसके साथ ऐसा सुलूक कर रहा था․
उसने सोनम को भी बोलने का मौका दिया․ उसे लगा कि अब उसे रोकने वाला कोई नहीं है․ सोनम भी बहुत हाथ-पैर मारकर थक चुकी थी․ उसने सोनम के मुंह से कपड़ा निकाल दिया और सोनम ने रोते हुए दिनेश से पूछा कि “मेरे साथ ऐसा क्यूं कर रहे हो? दिनेश ने तैश में आकर सोनम को एक थप्पड़ मारा और कहा, “इतनी देर से बक रहा हूं․ समझ में नहीं आया? सोनम का गाल लाल हो गया․ बचपन से लेकर आजतक उसे किसी ने डांटा भी नहीं था मगर आज किसी ने उसे बेवजह थप्पड़ मारा था․ इस थप्पड़ ने सोनम का आत्मविश्वास तोड़ दिया․ उसने फिर कुछ नहीं कहा․ उसे तो बस उस थप्पड़ की गूंज सुनाई दे रही थी․
इस थप्पड़ की गूंज पास से ही गुजर रहे कल्लू और उसके साथियों को भी सुनाई दी․ दिनेश ने सोनम का मुंह अपनी तरफ करते हुए कहा, ”तेरे ठाकुरों ने जो किया है उसका खामियाजा आज तू भुगतेगी․” सोनम तब तक एकदम टूट चुकी थी․ उसे एहसास हो चुका था कि “आज उसे बचाने कोई नहीं आने वाला और उसे अपनी जिन्दगी एक अन्धेरे में खोती हुई दिखाई दी“․ दिनेश को लगा कि “सोनम ने उसके आगे समर्पण कर दिया है․“ अब वो और जोश में आ गया․ उसने हवा में हाथ लहराकर कहा, “आज एक चमार एक ठाकुर की मिट्टी पलीत कर रहा है․ बुला अपने ठाकुरों को․․․․․ बुला․” और दिनेश ने जैसे ही दूसरा थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया․ उसका हाथ किसी और के हाथों में आ गया था․ उसने पलट कर देखा․ सामने कल्लू था․
कल्लू को सामने देख दिनेश का जोश ठण्डा पड़ गया․ जैसे किसी ने गरम लोहे पर एक बाल्टी पानी डाल दिया हो․ और दिनेश छन्न करके रह गया․ कल्लू ने दिनेश को अलग ढ़केलते हुए सोनम की तरफ हाथ बढ़ाया․ सोनम की आंखों में खुशी के साथ-साथ आंसू भी छलक पड़े․ असल में ये खुशी के आंसू थे․ एक लड़की की लुटती हुई ईज्जत बचाई थी कल्लू ने․ और वो लड़की समझ नहीं पा रही थी कि किस तरह कल्लू का शुक्रिया अदा करे․ सोनम चुपचाप कल्लू का हाथ पकड़ते हुए खड़ी हो गई․
आज उसे अफसोस हो रहा था कि ”कल्लू का हाथ पकड़ने का मौका मिला तो वो भी ऐसी हालत में․” इधर कल्लू ये सोच के बेचैन था कि “अब वो क्या करे? दिनेश ने तो अपनी हवस के चक्कर में एक नई मुसीबत बुला ली थी जिसका असर पूरी चमार बस्ती पर पड़ने वाला था․ सोनम की हालत ऐसी नहीं थी कि वो सीधे घर जा सके․
दिनेश को लगा कि अब उसकी जान खतरे में है․ उसने वापस अपने घर जाने के बजाय शहर का रास्ता पकड़ना ठीक समझा․ और दिनेश गांव से बाहर निकल गया․ सोनम और कल्लू एक-दूसरे को देख रहे थे मगर दोनों इस बात से हैरान थे कि आगे क्या करना है?
कल्लू को आने वाला खतरा दिखाई दे रहा था क्योंकि सोनम एक ठाकुर की बेटी थी․ सोनम कल्लू के लिए फिक्रमन्द हो रही थी क्योंकि भले ही कल्लू ने उसकी इज्जत बचाई थी मगर वो था तो एक चमार ही․ और ठाकुरों के गुस्से का ताप तो उसे भी सहना ही पड़ेगा․ मगर पता नहीं क्यों तभी सोनम के चेहरे पर एक संतोष का भाव छा गया जैसे अब सबकुछ ठीक हो गया हो या खुद सोनम ही सबकुछ ठीक करने वाली हो․
दिनेश के साथ-साथ उसके साथी भी गुम हो चुके थे․ अब सोनम और कल्लू एक साथ सरपतों के झुण्ड से बाहर निकल रहे थे․ कल्लू हैरान था कि क्या करे? सोनम ने कल्लू से उसके घर चलने के लिए कहा․ कल्लू ने सोनम का दुपट्टा उसके कन्धे पर रखते हुए कहा, “क्या मेरा तुम्हारे साथ चलना ठीक होगा? सोनम ने कहा, “हां, चिन्ता मत करो․“
सोनम आगे-आगे चल रही थी․ वहीं कल्लू सोनम के पीछे-पीछे चल रहा था․ दोनों की ही गर्दनें झुकी हुई थीं․ जैसे दोनों ने ही बहुत बड़ा अपराध किया हो․ थोड़ी ही देर में सोनम का घर आ गया․
सोनम ने अपने घरवालों से कल्लू की बहादुरी के बारे में बताया․ कल्लू असमंजस में था कि “अब क्या होगा जब सोनम दिनेश की हरकत के बारे में बताएगी? सोनम ने अपने घरवालों को ये बात बता दी कि आज उसके साथ किसी ने छेड़खानी की थी और उसी वक्त कल्लू ने आकर उसकी हिफाजत की․ मगर सोनम ने ये नहीं बताया कि छेड़खानी करने वाला कल्लू के ही गांव का दिनेश था․ सोनम ने बताया कि उसके साथ किसी ने कॉलेज के बाहर छेड़खानी की थी जिसे वो जानती भी नहीं इसलिए अब उनके पीछे पड़ने से कोई फायदा नहीं․ वैसे भी कल्लू ने सही वक्त पर आकर उन सबकी छुट्टी कर दी थी․
कल्लू अब ठाकुरों की बस्ती में हीरो बन चुका था․ सोनम ने अपनी सूझ-बूझ से आने वाली मुसीबत को टाल दिया था․ उसने दिनेश को माफ कर दिया था․ उसने समझ लिया था कि “दोष किसी चमार का नहीं था․ दिनेश सिर्फ एक नासमझ और छिछोरा लड़का था जो पुरानी दुश्मनी के बहाने अपनी हवस मिटाना चाहता था․ जबकि कल्लू ने, एक चमार होते हुए भी, पुरानी दुश्मनी को भूलकर एक दुश्मन की बेटी की लुटती हुई इज्जत बचाई थी जो एक अच्छे इन्सान का फर्ज है․ ऐसी हालत में सोनम ने भी इन्सानियत का फर्ज निभाते हुए पुरानी दुश्मनी को दोस्ती की रास्ता दिखाया था․ अब बाकी लोगों को इस रास्ते पर चलना था․
क़ैस जौनपुरी
--
Qais Jaunpuri
A factory of creative ideas...
Films I Ads I Literatures
बहुत कुछ खत्म हो गया है... बहुत कुछ खत्म होने को है.
जवाब देंहटाएंइसी तरह समाज की सोच को दिशा दी जानी चाहिये।
जवाब देंहटाएंहम ारा देश तभी करेगा जब हम जातिवाद हसे परे होगें
जवाब देंहटाएंतभी समाज को नई सोच मिलेगी
jaati se phle manav mulya yhi hona chahiye
जवाब देंहटाएं