परमार्थ मुरली-क्यों मुंशी भईया माथे पर चिन्ता और मुट्ठी भर आग लिये बैठे हो। कोई नई मुश्किल आन पड़ी क्या ? मुंशी-मुरली जमाने ने तो म...
परमार्थ
मुरली-क्यों मुंशी भईया माथे पर चिन्ता और मुट्ठी भर आग लिये बैठे हो। कोई नई मुश्किल आन पड़ी क्या ?
मुंशी-मुरली जमाने ने तो मुट्ठी में आग भरी है विषमताओं के कलछुले से। इस मुट्ठी आग को फेंकना कठिन हो गया। यह आग तो पहचान बन गयी है जबकि कर्म से आदमी की पहचान बनती है परन्तु यहां तो आंख खुली नहीं आग मुट्ठी में भर दी जाती है। मुट्ठी भर आग ठण्डी नहीं हो पा रही है। यही चिन्ता है और अशान्ति का कारण भी।
मुरली-माथे पर चिन्ता और जमाने की दी हुई मुट्ठी भर भर आग ठण्डी करते हुए तुम तो कलयुग के कर्ण बन गये हो।
मुंशी- क्यों मजाक बना रहे हो मेरी दीनता और मुट्ठी भर आग मे मर रहे सपनों का। आदमी की मदद कर देना कोई गलत तो नहीं। मुझसे जो हो जाता हे कर देता है। किसी से उम्मीद नहीं करता की बदले में मेरा कोई काम करें। अरे नेकी कर दरिया में डाल। इस कहावत में रहस्य है मुरली।
मुरली-देखो आखिरकार सच्चाई जबान पर आ गयी। किसी ने नेकी के बदले बदने की है ना। अरे भईया लोग बहुत जालिम हो गये है। काम निकल जाने पर पहचानते ही नहीं। तुम्हारे पड़ोस सुनील खड़ुस की तरह। किस किस का भला करोगे खुद तकलीफ उठा कर। परमार्थ का राही बनने से बेहत्तर है कि खुद का घर रोशन करो।
मुशी-कुछ लोगों को आदमियत के विरोध की लत पड़ चुकी है तो कुछ लोगों को आदमियत और परमार्थ के राह चलने की। हमे आदमियत और परमार्थ काम में आत्मिक सुख मिलता है ।
मुरली-क्यों न बच्चों के मुंह का निवाला छिन जाये। धूपानन्द का तुमने कितना उपकार किया। आखिरकार उसने तुमको ठेंगा दिखा दिया। यही परमार्थ का प्रतिफल है।
मुंशी-परमार्थ प्रतिफल की चाह में नहीं किया जाता ।परमार्थ के लिये तो बुघ्द ने राजपाट तक छोड़ दिया। यदि आज का आदमी अपने सुखों में तनिक कटौती कर किसी का हित साधे दे तो बड़े पुण्य का काम होगा। आदमी होने के नाते फर्ज बनता है कि हम दीनशोषित वंचित दुखी के काम आये।
मुरली-खूब करो। धूपानन्द को कितने साल अपने घर में रखे खानाखर्चा उठाये नौकरी लगवाये जबकि तुम्हारे उससे कोई खून का रिश्ता भी न था। उसके परिवार तुम अपयश लगाये। धूपानन्द के दिन तुम्हारी वजह से बदले। वही तुमको आंख दिखा रहा है। उसके घर वाले तुमको बेईमान साबित करने में जुटे रहे। नेकी के बदले क्या मिला दुनिया भले ही न कहे पर धूपानन्द के चाचा चाची,भाई भौजाई ने तो कह दिया ना कि भला आज के जमाने में बिना किसी फायदे को कोई किसी को एक वक्त की रोटी नहीं देता मुंशी चार चार साल फोकट में धूपानन्द का खानखर्च कैसे उठा सकता है। मुरली भाई तुम्हारी नेकी तो सांप को दूध पीलाने वाली बात हुई।
मुंशी-हमने अपनी समझ से अच्छा किया है। मै खुश हूं एक लाचार की मदद करके। यदि कोई मेरे निःस्वार्थ भाव को स्वार्थ के तराजू पर तौलता है तो तौलने दो। सच्चाई तो भगवान जानता है। परमार्थ तो निःस्वार्थ भाव से होता है। स्वार्थ आ गया तो परमार्थ कहां रहा। दुर्भाग्यवस किसी की मुट्ठी आग से भर जाये तो आदमी होने के कारण जलन का एहसास कर शीतलता प्रदान करना चाहिये की नहीं।वैसे भी रूढिवादी व्यवस्था ने तो हर मुट्ठी में आग भर दिया है।
मुरली-वाह रे हरिश्चन्द्र वाह करते जा नेकी। खाते जा दिल पर चोट। दर्द पीकर मुस्कराता रह और करता रह परमार्थ। अब तो चेत जा।
मुशी-कोई गुनाह तो नहीं किया हूं कि पश्चाताप करूं। आदमी का नहीं भगवान का सहारा है मुझे। आदमी को परमात्मा का प्रतिरूप मानकर सम्मान करता है। यही मेरी कमजोरी है। यही कारण है कि आग बोने वाले मतलबियों की महफिलों में बेगाना हो जाता हूं। हमारी नइया का खेवनहार तो भगवान है। मुट्ठी ही नहीं तकदीर में आग भरने वाले तो बहुत है।
मुरली-मुंशी भइया ऐरे गैरों के लिये अपनों का पेट काटते रहते हो,खुद को तकलीफ देते हो इसके बदले तुमको क्या मिला।अरे धूपानन्द के परिवार वालो का देखो एक भी आदमी तुम्हारी बीमारी की अवस्था में हालचाल पूछने तक नहीं आया। धूपानन्द ने कौन सा अच्छा सलूक किया तुम्हारे बच्चों को अपशब्द बककर गया। तुम्हारे पड़ोसियों को देखो जिनके दुख मे रात दिन एक कर दिये वही तुम्हें बदनाम कर रहे है। तुम्हारे दुश्मन बन रहे है। ऐसी नेकी किस काम की भइया मुंशी।
मुंशी-यकीन कोई दौलत तो नहीं मिली पर आत्मिक सुख तो बहुत मिला है। यह सुख रूपये से खरीदा भी नहीं जा सकता। परमार्थ के राह में रोड़े तो आते है वह भी हम जैसे गरीब के लिये जिसे रूढिवादी समाज ने मुट्ठी भर आग के सिवाय और कुछ न दिया हो। नेकी की जड़ें पाताल तक जाती हैं ओर गूंजे परमात्मा के कानों को अच्छी लगती है। स्वार्थ की दौड़ में शामिल न होकर मानवकल्याण के लिये दौड़ना चाहिये। इस दौड़ में शामिल होने वाला परमात्मा का सच्चा सेवक होता है।
मुरली-दौड़ो भइया नेकी की राह पर मुट्ठी भर आग लिये। अरे पहने अपनी मुट्ठी की आग को शान्त तो करो। जिस आग ने सामाजिक आर्थिक पतन की ओर ढकेले है।
मुंशी-परहित से बड़ा कोई धर्म नहीं है। यह बात ज्ञानियों ने कही है। मुट्टी में आग भरने वालो ने नहीं। आज का आदमी इस महामन्त्र को आत्मसात् कर ले तो धरती पर बुध्द का सपना फलीभूत हो जाये।
मुरली-मुंशी भइया अपने परिवार के हक को मारकर परमार्थ करना कहां तक उचित है। चलो तुम परमार्थ की राह। यह राह तुमको मुबारक हो पर भइया अपने घर के दीये में तेल पहले डालो।
मुंशी-परमात्मा की कृपा से मेरे दीये का तेल खत्म नहीं होने वाला है। मेरी राह में मेरा परिवार भी सहभागी है। उन्हे भी हमारे उद्देश्य पर गुमान है। हां तंगी में भी मेरा परिवार आत्मिक सुख का खूब रसास्वादन कर रहा है। सच कहूं मेरा परिवार ही मेरा प्रेरणास्रोत है।
मुरली-अपने दिल से पूछो कितना दर्द पी रहे हो। घर परिवार पर ध्यान दो।
मुंशी- पारिवारिक जिम्मेदारी अच्छी तरह निभा रहा हूं। इसके साथ परमार्थ का आत्मिक सुख उठा लेता हूं कोई बुराई तो नहीं।
मुरली-खूब करो। बने रहे परमार्थ के राही। मुझे अब इजाजत दो। तुम्हारे परमार्थ के जनून को सलाम․․․․․․․․․
मुंशी-याद रखना परमार्थ प्रभु की पूजा है।
दहशत
अरे कुमार बाबू क्यो रोनी सुरत बना कर बैठो हो क्या बात है ! ऐसे लगता है कि कोई आपकी भैंस हांक ले गया हो ! क्यों इतने उदास हो ! सिर के बाल अस्तव्यस्त हैं ! भौहे बिलकुल तनी हुई हैं ! गाल पर हाथ रखे बैठे हो ! क्यों इतने उदास हो भइया !क्यों․․․․․․․․ चिन्ता का कोई खास कारण है कहते हुए अंकुर बाबू कुमार बाबू की बगल में बैठ गये !
कुमार बाबूः भाई कमजोर आदमी की खुशी तो बीमार की हंसी के माफिक होती है !
अंकुरबाबूः बड़े मरम की बात कर रहे हो ! मेरी समझ से परे की बात है !सीधी साधी भापा में कुछ कहते तो समझ भी पाता !
कुमार बाबूःअंकुर बाबू कमजोर आदमी दहशत में जीता है ! यह तो मानोगे कि नहीं !
अंकुरबाबूः दहशत मतलब जैसे सीमा पर आंतकवादी बम फोडकर दहशत फैला रहे हैं !
कुमार बाबूःइसी तरह की दहशत कमजोर आदमी न पनप सके बडे बडे उदयोगपति,ओहदेदार इतना ही नहीं तथाकथित धर्म समाज के लोग भी पीछे नहीं है ! मौका पाते ही सभी कमजोर पर टूट पडते हैं बांझ की भांति तभी तो कमजोर कमजोर ही बना हुआ हैं ! न तो उसकी सामाजिक उन्नति हुई हैं uk ही आर्थिक बेचारा रिसते घाव का मवाद ही साफ करते करते मर खप जा रहा है !
अंकुर बाबूः सच कह रहे है ! कुछ भ्रमित स्वार्थी ऊची बिरादरी, ऊंचे ओहदा और सम्पन्न लोग कमजोर लोगो के विकास में बबूल की छांव ही साबित होते हैं ! यह कटु सत्य हैं ! लोग इसे आसानी से नहीं मानेग पर सच्चाई तो यही है !तभी तो देखो उदयोगपतियों का मुनाफा दिन दुना रात चौगुना बढ रहा हैं कमजोर नमक रोटी की जुआड में भटक रहा है ! कमजोर तबके को जातिवाद का जहर पीना पड रहा हैं ऐसी ही हाल बडे ओहदेदारो के मातहत निम्नश्रेणी वाले कर्मचारियों की हैं यदि निम्न श्रेणी का कर्मचारी छोटी जाति का हैं तो उसे पग पग पर शोंपण उत्पीडन प्रताडना के साथ ही आर्थिक नुकसान भी भरपूर पहुंचाया जा रहा है ! कितनी विषमता व्याप्त हैं आज का सुशिक्षित आदमी एंव उच्च असान पर विराजमान आदमी भी जहर की खेती करने से बाज नहीं जा रहा है !नतीजन हर ओर विषमाद के काले बादल छाये हुए है !इन्ही करतूतों की वजह से कमजोर आदमी दहशत में दम भर रहा है !
कुमारबाबूः अंकुरबाबू इतने गूढ रहस्य की बात कर रहे हो ! आपकी बात में चिन्तन के भाव दर्शित हो रहे हैं ! आप सामान्य वर्ग के होकर भी कमजोर व्यक्ति के लिये इतना सोच रहे हैं काश आप जैसे सभी हो जाते तो कब के इस धरती से विषमाद का विष पी गये होते !
अंकुरबाबूः सच कहा है किसी ने बडी मछली छोटी मछलियों को खाकर ही बडी बनी रहने का स्वांग करती रहती है ! दहशत फैेलाना ही उसका स्वभाव होता हैं ! छोटी मछलिया भी एकजुटता का परिचय नहीं देती हैं जिस की वजह से बडी मछली अपने बडे होने के अभिमान में रौदती रहती हैं छोटी मछलियों को !शिकरियों के जाल में भी यही छोटी मछलियां ही जल्दी फंसती हैं !
कुमारबाबूः बिल्कुल सही फरमा रहे हैं! यही तो चिन्ता का विपय है ! आदमी सोच समझ सकता हैं फिर भी अपने रूतबे को कायम रखने के लिये आदमी होकर आदमी का लहू पीकर पलता हैं ! निठारी काण्ड देखो बालक बालिकाओें का यौवन शोपण कर उनकी अंग तक बेच दिये उस ककुर्मी मानिन्दर और उसके साथियों ने ! इसमें ज्यादातर कमजोर लोगों के ही बच्चे थे ! इससे दहशत की दीवार और मजबूत हो गयी हैं ! स्वार्थ के वशीभूत होकर आदमी क्या क्या कर बैठ रहा हैं ! हर ओर दहशत फेली हुई है चाहे जाति समाज की चहरदीवारी हो श्रम की मण्डी हो साहूकार सेठ लोगो की दुकान हो या ऊचे ओहदे का मामला हो हर कमजोर की छाती पर ही बैठकर जुगाली कर रहा हैं खुद के हित की ! परहित की भावना का तो लोप ही हो गया हैं ! यदि इस स्वार्थ की दौड में कोई सामाजिक उत्थान अथवा आर्थिक उत्थान में लगा हुआ हैं तो तहकीकात कर उसको इस विपमतावादी समाज में उच्च आसन प्रदान कर देवत्व का दर्जा दिया जाना चाहिये !
अंकुरबाबूःठीक कह रहे है पर ज्यादातर अमानुष लोग कमजोर मानुषों के आंसू अथवा लहू पीकर ही अपनी तरक्की की नींव मजबूत करते हैं ! आज देवात्माओं का तो मिलना मुश्किल हो गया हैं हजारों बरस में एकाध बार ही कोई बुघ्द पैदा होता हैं कमजोर वर्ग के उद्धार के लिये !काश मानव में समानता का भाव विकसित हो जाता जातिभेद का भ्रम नष्ट हो जाता ! दहशत का घनघोर विषैलापन छंट जाता ! काश मानव अभिमान की दीवार तोडकर मानव कल्याण में निकल पड़ते !सच मानो दहशत का कुहरा छंटते ही वह पूज्य हो जाता बुद्ध भावे गांधी अम्बेडकर की तरह हैं !
कुमारबाबूः ठीक कह रहे हो अंकुर बाबू काश ऐसा हो जाता ! विषमता के बादल छंट जाते ! जातिवाद की जहरीली दरियां में डूबता हुआ इंसान कमजोर केा रौदने के ही फिराक में रहता हैं चाहे वह समाज हो श्रम की मण्डी या धर्म का अडडा या दफतर !किसी ने कहा है देखा देखी पाप देखी देखी पुण्य पर कमजोर केा सताने का पाप ज्यादा हो रहा हैं तभी तो गरीबी भूखमरी जातिवाद का विपधर कमजोर को डंस रहा हैं !
अंकुर बाबूः सच पाप ज्यादा पुण्य कम हो गया हैं इस युग में सब एक दूसरे को ठगने में लगे हुए है कमजोर की पीडा से बेखबर !दुकानदार मिलावट करने में जुटा हैं! उत्पादक श्रमिक के दोहन शोषण में लगा हुआ हैं अधिकारी कर्मचारी के दोहन शोषण उत्पीडन में लगा रहता हैं ! बांस अपना वर्चस्व कायम रखने के लिये मातहतों को आतंकित किये रहता हैं ! सच अब तो एक सर्वे से यह सिद्ध हो चुका है कि इकहत्तर प्रतिशत बांस मातहतों को आतंकित किये रहते हैं यानि सभ्य समाज के आंतकवादी ! ऊची बिरादरी वाला नीचीं बिरादरी वाले को वहिष्कृत करने की जुगाड़ में बेचैन रहता हैं यानि हर ओर दहशत के बादल !
कुमारबाबूःठीक कह रहे हैं तभी तो न गरीबी का उन्मूलन हुआ इस देश से न ही जातिवाद का ! गरीबी और जातिवाद खूब फलफूल रहे हैं ! समृद्ध कमजोर का लहू चूसने को बेकरार लगता है ! वह अपनी तरक्की कमजोर के शोषण उत्पीडन में ही देखता हैं चाहे वह आर्थिक तरक्की हो या सामाजिक ! सच खुद को खास कहने वाले लोग कमजोर की पहचान लीलने पर उतावलने हैं !
अंकुर बाबूःठीक कह रहे है भइया !यदि ईमानदारी से सामजिक एवं आर्थिक सम्बृद्ध लोग अपने फर्ज पर खरे उतरे होते तो ना आज गरीबी नंगे नाचती और ना ही इसांनियत के माथे का कलंक जातिवाद ही होता ! हमारी धरती स्वर्ग से सुन्दर होती ! जातिवाद की विपपान करने वाला खुद को पाता हैं आज भी सहमा हुआ ! जैसे वह आधुनिक प्रगतिशील समाज में नहीं श्मशान में रह रहा हो जहां उसके अधिकारो का दाह संस्कार किया जा रहा है ! सच इसीलिये तो आज शोषित वंचित तरक्की से दूर पडा हुआ हैं ! अस्सी प्रतिशत आबादी को उन्नचास प्रतिशत आरक्षण का विरोध हो रहा हैं जो समाज के अतिशोपित पीडित पिछडे समाज का दिया जा रहा हैं जबकि देश की मात्र बीस प्रतिशत सामान्य आबादी के लिये इक्वावन प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है इस पर कोई श्शोर शराबा ही नहीं हो रहा हैं ! कमजोर को और कमजोर करने की साजिश हो रही हैं ! क्या इसे न्याय कहा जा सकता हैं !अरे वंचितों को आरक्षण की नहीं संरक्षण की जरूरत हैं !ए तो समानता के भूखे रहते हैं पेट की भूख तो हाड फोड कर बुझा लेते हैं !इनके के सर्वांगीण विकास के लिये आरक्षण से ज्यादा संरक्षण की जरूरत हैं !सामाजिक आर्थिक समानता की जरूरत हैं ! वंचित समाज को तरक्क्ी का मौका मिलना चाहिये !
कुमार बाबूः आपकी उदारता की तो मैं कद्र करता हूं ! आपके विचार से मैं बिल्कुल सहमत हूं ! आप सामान्य वर्ग के होकर कमजोर कि पीडा से कितना ताल्लुक रखते हैं ! सच मानिये आप जैसे ही लोगो के नेक इरादे की वजह से ही तो कमजोर सांसें भर पा रहा हैं वरना कब कदम तोड़ चुका होता ! सच मानिये अंकुर बाबू मुझे भी रोज रोज आसुंओं से रोटी गिली कर खानी पडती हैं ! मजबूरी हैं वरना ऐसी चाकरी से तौबा कर लेता ! सवाल हैं छोडकर जाउंगा कहां हर ओर तो यही हाल हैं ! अरमानों का दहन कर चाकरी में लगा हुआ हूं ! हर क्षण मेरे अरमान रौंद दिये जाते है ! किसी क्षण बूढ़ी व्यवस्था के बहते मवाद का चखना पड जाता हैं तो दूसरे क्षण आर्थिक विषमता का तो किसी क्षण तथाकथित बड़प्पन के अभिमान का कुल मिलाकर मुझ जैसे कमजोर आदमी का हर क्षण दहशत में ही गुजरता है अंकुर बाबू !
अंकुरबाबूः क्या कह रहे हो कुमार बाबू !
कुमारबाबूः ठीक कह रहा हूं!यकीन करो मेरी बात पर ! दिल का हर कोना छिल चुका हैं! आशा में ही तो जा रहा हूं वरना विषमता के पोषक जीने कहा दे रहे हैं !
अंकुर बाबूः आपकी बात में तो बहुत दम लगती है !सच आज आदमी अपनी उन्नति के अभिमान में आदमी को ही उत्पीड़ित कर रहा हैं आदमियत से नाता तोड़कर ! हर तरह से प्रयास करने लगा है कि कमजोर आदमी को गुलाम कैसे बनाकर रखे ! अभिमानी व्यक्ति हमेशा प्रयासरत रहता है कि वह कमजोर व्यक्ति उसके सामने श्वान की भांति जीभ लपलपाता दुम हिलाता रहे और स्वार्थी की हर उम्मीदों पर खरा उतरता रहे !सच आज तो समाज हो या दफतर नंगी आंखों से देखा जा सकता हैं !
कुमारबाबूः यही तो हो रहा है ! कल की ही तो बात है हमारे बांस जो किस्मत के कमाल-वश अफसर बन बैठे हैं ! उनमें भले ही बाकी काबिलियते हो पर शैक्षणिक काबिलियतों को पूरा नहीं करते परन्तु बडे साहेब हैं ! मुझ गरीब के आंसू से अपनी वाहवाही संवारने के फिराक में सदा ही रहते हैं !
अंकुरबाबूः कहना क्या चाह रहे हो कुमार बाबू क्या मतलब है आपके कहने का ! आप भी उत्पीडित हैं !
कुमारबाबूः बिल्कुल सही समझे ! कल छुटटी थी पर मुझे परेशान करने के लिये बांस ने दोपहर में फोन किया दफतर बुलाने के लिये खैर मैं घर पर था नहीं ! रात्रि में देर से आया तो पता चला ! बच्चे ने फोन उठाया था !वह बांस से बोल दिया था कि पापा किसी संस्था के जलसे में गये हैं देर से आयेगे जब भी आयेगे तो बता दूंगा !
अंकुर बाबूः यह तो परेशान होने वाली बात नहीं हुई !
कुमार बाबूः बात पूरी तो होने दो ! दुसरे दिन जब दफतर गया !
अंकुरबाबूः तब क्या हुआ बांस ने फटकारा !
कुमारबाबूः ठीक समझे ! अपने पद के घमण्ड में चूर रहने वाले बांस बडी बदतमीजी से बुलाये ! मैं पेश हुआ अंकुर बाबूःतब क्या हुआ !
कुमार बाबूः इतना बदमिजाज अधिकारी नहीं देखा थी इतने बरस की नौकरी में ! बहुत लोगो ने सताया तो है पर बदसलूकी की हदे पार तो वर्तमान के बांस करने लगे हैं !
अंकुरबाबूः अरे ए तो बताओ आपके बांस ने बुलाकर कहा क्या !
कुमार बाबूः सभ्यता का पोस्ट मार्टम और इंसानियत को गाली और क्या !बदतमीजी के साथ बुलाया और बोले क्यो रे कुमार तू कल दफतर क्यो नहीं आया !एक कागज का पुलिन्दा फेंकते हुए बोला ए काम ले जाकर कर अगर तू कल आ जाता तो यह काम कल हो जाता ना ! तेरे के काम कि अहमियत पता नहीं हैं ! जिस दिन मैं अपनी औकात तेरे को दिखा दूंगा ना तू ही समझ तेरा क्या होगा और भी ढेर सारे बुरे शब्द बोले मुझे तो कहने में भी शर्म आ रही है ! मैं इतना बोलकर चला आया साहेब रात में देर से आया था ! इतने में आग बबूला हो गया और बोला जा जल्दी काम कर ! मैं आसूं बहाता काम में जुट गया बांस अपशब्द बकने में पागल की भांति !
अंकुर बाबूः यह तो श्रम कानून का उलंघन हैं और आदमियत को गाली भी ! कैसा अभिमानी आदमी हैं ! अरे घमण्ड तो टूट गया हिरण्यकश्यप का कंस का रावण का ! यह कहां लगता हैं ! क्या उंची पहुंच या उंची जाति ही हर जगह काम आती हैं !
कुमारबाबूः मजबूरी में नौकरी कर रहा हूं ! परिवार और बच्चों के भविष्य का सवाल हैं ! बांस का व्यवहार तो मेरे साथ बहुत ही बुरा हैं ! वह तो संस्था का कर्मचारी नहीं खुद का गुलाम समझता है ! मुझे तो जैसे आदमी ही नहीं समझते ! दफतर में सबसे छोटा कर्मचारी हूं और छोटी बिरादरी का भी ! मालूम है छुटटी के दिन अफसरों के दफतर आने के लिये कान्वेन्स के पैसे मिलते हैं और मुझे नहीं ! मुझे खुद का पैसा खर्च कर छुटटी के दिन काम पर आना पड़ता है ! काम के दिनों में भी बांस छुटटी के समय चिटठी लिखवाने लगते हैं ! हर तरह से मुझे प्रताडित करने का पणयन्त्र रचते रहते हैं और मैं आंसू बहाता काम में जुटा रहता हूं ! क्या करूं ! गरीबो की कौन सुनता हैं मालूूम हैं बांस के पास तो चौबीस घण्टे बढिया दफतर की कार उपलब्ध रहती है !यही नहीं खुद की जरूरत के लिये किराये की भी खडी हो जाती हैं और भी ढेर सारी सुविधायें भी ! छुटटी के दिन मुझ गरीब को दफतर आने के लिये खुद का पैसा खर्च कर काम पर आना पड़ता है ! इसके बाद भी दर्द के सिवाय मुझे आज तक कुछ नहीं मिला !
अंकुर बाबूःकुमार बाबू बांस की इतनी बडी बदतमीजी को बर्दाश्त कर गये ! सच आप तो महान हो कुमारबाबूः क्या करता प्रतिप्रश्न किये बिना काम करता रहता हूं ! मुझे मालूम हैं मेरी कोई ऊंची पहुंच नहीं हैं ! छोटा कर्मचारी और छोटी बिरादरी का कौन मेरी मदद करेगा ! अंकुरबाबू यहां बहुत सारी बातेां का फर्क पड़ता है इण्डिया है मेरी जान इण्डिया ! अंकुर बाबू प्रतिप्रश्न करने पर नौकरी जाने का खतरा भी तो हैं ! मेरा कोई सर्पोटर भी तो नहीं हैं शायद छोटी जाति का होने के नाते अंकुरबाबूः यहां तो मारे रोवै न देय वाली कहावत चरितार्थ हो रही हैं !
कुमारबाबूः आंसू पीकर नौकरी करना मेरी किस्मत बन चुकी हैं !
अंकुर बाबूः यह तो सरासर अन्याय हो रहा है आपके साथ !
कुमार बाबूः इस अन्याय के पीछे बूढी सामाजिक व्यवस्था की बदबू आपको नहीं लगती !
अंकुर बाबूः आती है uk ! सच कुमारबाबू आप ऊंची बिरादरी के होते तो जरूर आपको अच्छा प्रतिफल मिलता भले ही आपकी पहुंच उपर तक न होती ! परन्तु यहां तो आपके साथ जुल्म हो रहा हैं
कुमारबाबूः जुल्म सह तो रहा हूं मुझे मालूम हैं जुल्म सहना भी अपराध है पर इसके पीछे मेरा मन्तव्यहै! मेरे परिवार बच्चों के सुखद भविप्य का सपना हैं !
अंकुरबाबूः यह आप तप कर रहे हैं !
कुमारबाबूःबडे कप्ट उठाकर यहां तक पहुंच पाया हूं इसे गंवाना नहीं चाहता !अफसोस के साथ कहना पड रहा है कि घाव बहुत पाया हूं ! रोज रोज घाव सहकर परिवार के सपने पूरे करने में लगा हूं ! यदि मैंने पीडा की वजह से चाकरी त्याग दिया तो मेरे परिवार के सपने उजड सकते हैं
अंकुरबाबूःआपके मन्तव्य नेक हैं !सहनशक्ति भी आपको भगवान ही दे रहा हैं वरना सब्र का बांध कब का टूट गया होता ! सच कहा है किसी ने नेक उदेश्य से सहा गया कष्ट भी तप बन जाता हैं ! कुमार बाबू आपकी तपस्या के परिणाम उत्तम आयेगे ! भगवान पर भरोसा रखिये !
कुमार बाबूः अच्छे कल की उम्मीद में ही तो दहशत भरा जीवन जी रहा हूं !
अंकुर बाबूः दहशत भरा आपका यह जीवन त्याग हैं ! जो लोग आपके छोटे पद छोटी बिरादरी से घृणा कर जुल्म कर रहे हैं वे ही एक दिन आपके सामने नतमस्तक होगे ! आदमी के साथ भेदभाव का व्यवहार अपराध हो चुका है !
कुमारबाबूः सभी जानते हैं पर अमल कौन करता हैं ! सब कहने में अच्छा लगता हैं ! कथनी करनी में आज का आदमी अन्तर रखता हैं ! हाथी के दांत की भाति दिखाने को और खाने को और !
अंकुर बाबूःठीक फरमा रहे हैं ! दम्भियों की जडों में तो विषमता की ही उर्वरा शक्ति है uk ! यही अभिमान और दहशत पैदा करने का कारण भी !
कुमारबाबूः सत्य तो यही है !
अंकुरबाबूःजनप्रतिनिधि भी विषमता के उन्मूलन के लिये कुछ नहीं कर रहे हैं ! जाति समाज और पार्टी में ही जी रहे हैं ! सिर्फ समानता की बात तो भाषणों में ही करते हैं चरित्र में कहा उतारते हैं ! इतना ही नहीं जाति समाज और अपने ओहदे की वजह से दहशत फैलाने में भी पीछे नहीं रहते हैं ! यही हाल धर्म समाज के ठेकेदारों का भी है ! यदि ए लोग ईमानदारी से समानता के लिये काम किये होते तो विषमता के काले बादल नहीं मंडराते नहीं दंगे फंसाद होते ! नहीं वंचितों के साथ बलात्कार अत्याचार ही होते ! विषमता ने ही तो आदमी के बीच दहशत की दीवार खडी कर रखी हैं चाहे समाज हो या दफतर हर जगह !
कुमारबाबूः ठीक कह रहे हैं अंकुर बाबूः
अंकुर बाबूः सामाजिक और राजनैतिक नेताओं से तो अभिनेता कुछ मामले में अच्छे हें ! सामाजिक उत्थान का काम करते हैं ! अर्न्तजातीय ब्याह करते हैं !अनाथ बच्चों का पालन पोषण कर रहे हैं ! यही नहीं कुंवारी अभिनेत्रियां भी अनाथ बच्चों का गोद लेकर ममता उडेल रही हैं ! लालन पालन कर रही हैं ! कोई सामाजिक अथवा राजनैतिक नेता ऐसा किया हैं नहीं ना और न ही अपनी से छोटी जाति के साथ रिश्ता किया हैं ! हां देश और समाज को कंगला बनाने के लिये घूसखोरी रिश्तखोरी जरूरी कर रहे हैं ! विषमता की खेती कर रहे है !वंचितों को बस मुट्ठी भर भर आग मिल रही है अपने ही जहां में।
अंकुरबाबूः आपके बांस भी कम नहीं ! वे भी अपने पद के अभिमान में आपको खून के आंसू बहाने पर मजबूर किये रहते हैं !
कुमार बाबूः सत्तासम्पन्न लोगों के जाति बिरादरी से उपर उठकर देश जन के कल्याणार्थ काम करना चाहिये ! समानता का व्यवहार करना चाहिये ! चाहे मेरे बांस हो या कोई सामाजिक या राजनैतिक सत्ताधारी या कम्पनी संस्था का पदाधिकारी !
अंकुर बाबूःतभी तो कमजोर आदमी दहशत भरे जीवन से उबर कर समानता का जीवन जी सकेगा और तरक्की का अवसर भी पा सकेगा !
कुमारबाबूः काश सामाजिक आर्थिक समरसता की बयार चल पडती ! घमण्डियों की जडे उखउ जाती !
अंकुरबाबूः जरूर वह दिन आयेगा जब हर दहशत से कमजोर निजात पा जायेगा ! दहशत में रखने वाले अपने कुकर्मो की वजह से खुद दहशत में बसर करेगे !बस जरूरत हैं कुमार बाबू शान्ति और अहिंसक मन से आप और आप जैसे कलमकारों को सामाजिक एवं आर्थिक समरसता के शोले उगलते रहने की ! सामाजिक बुराईयों की भभक रही मुट्ठी भर भर आग को सद्भावना से शीतलता प्रदान करने की।
लहू के कतरे
अरे बाप रे अहिल्या माता के शहर के लोग एक दूसरे के लहू के रंग से शहर बदरंग कर रहे हैं !मारने काटने को दौड़ रहे हैं कहते हुए सचेतन जल्दी जल्दी मोटर साइकिल खड़ी किये और झटपट घर में भागे ! घर में घुसते ही बेहोश से गिर पडे ! सचेतन की हालत देखकर बीटिया दौड़ी हुई आयी और जोर जोर से मम्मी मम्मी बुलाने लगी !बीटिया जूही के पुकारने की आवाज सुनकर कल्पना दौड़ती भागती आयी ! सचेतन को झकझोरते हुए बोली अरे जूही के पापा आंख तो खोलो क्या हो गया तुमको !
सचेतन अरे मुझे तो अभी कुछ नहीं हुआ है अगर ऐसे ही चलता रहा तो शहर की आग को यहां तक पहुंचने में देर नहीं लगेगी !
कल्पनाः क्या कह रहे हो हम अपने ही घर में सुरक्षित नहीं है ! क्या हुआ है शहर को ! कैसी आग लगी है ंशहर में साफ साफ कहो तो सही ! मेरा तो दिल बैठा जा रहा है ! अरे क्या हुआ है शहर कोें !
सचेतनःअरे शहर सुलग रहा है !
कल्पनाः क्या कह रहे हो ! सोलह साल से इस शहर में रह रहे है ! कभी तो नहीं सुलगा था यह शहर कुछ दिनों से इस शहर की अमन शान्ति को ना जाने किसकी नजर लग गयी है !आज फिर कौन सी ऐसी बात हो गयी है कि शहर सुलग रहा है ! बात मेरी समझ में नहीं आ रही है !
सचेतनःभागवान शहर में दंगा फैल गया है !लोग एक दूसरे को मारने काटने पर तूले है ! कही दुकान जल रही है तो कही किसी का घर ! कही इज्जत पर हमला हो रहा है तो कही लहू से सडक नहा रही है !
कल्पनाःबाप रे फिर दंगा ! 21 जनवरी मुकेरीपुरा में दंगा भडका था दस दिन बाद कर्बला मैदान पर आज फिर 12 फरवरी 2007 को दंगा भडक गया !एक सम्प्रदाय दूसरे के जान लेने पर तूली है ! इस शहर की अमन शान्ति को धार्मिक उन्माद खा जायेगा क्या भगवान ! हे भगवान उन्मादियों को सदबुद्धि दो जो लोग धर्म की अफीम खाकर दंगा फैला रहे हैं ! बेचारे गरीब मारे जा रहे हैं !अच्छा बताओ आज किस बात को लेकर दंगा भडका है !
सचेतनः जितने मुंह उतनी बातें ! कोई कह रहा है कि नरसिंह बाजार में एक लड़की के साथ छेड़छाड़ को लेकर दंगा भडका है ! कोई कह रहा हैं दो पहिया वाहनों का भिडन्त को लेकर ! इन्ही अफवाहों को लेकर परसिंह बाजार में भगदड मच गयी ! आग में घी डालने का काम कुछ भागती हुई महिलाओं ने भी किया यह कहकर कि उनके घरों में आग लगा दी गयी हैं ! शायद यही अफवाहे साम्प्रदायिक दंगे का रूप धारण कर ली हो ! खैर खुरापाती लोग तो बहाना ही ढूढते रहते हैं जबकि जानते है कि दंगा करने वाले और दंगे का शिकार हुये लोग यानि दोनो मुश्किल में आते हैं पर सिरफिरे अपनी औकात तो दिखा ही देते हैं ! घरो मं आग लगने की अफवाह फैलते ही उपद्रवी लोग सड़क पर आ गये ! पत्थरबाजी बम पेट्रोल बम तक एक दूसरे के उपर पर फेंकने में जरा भी हिचकिचाये नहीं ! जबकि दोनो पक्ष इसी शहर में रह रहे है एक दूसरे को बचपन से देख रहे हैं फिर भी दंगा भड़का रहे हैं ! जिस गली कूचे में पले बढ़े उसी गली को एक दूसरे के खून से बदरंग कर रहे हैं ! क्या लोग हो गये हैं !एक दूसरे पर इतने पत्थर फेंके गये कि सड़क ही पूरी पट गयी ! नगर निगम ट्रकों में भर कर पत्थर ले गया ! लहू के कतरे बिना किसी अलगाव के शहर के फिजा को बदरंग कर रहे है !उपद्रवी है कि अपनी करतूतों पर मदमस्त होकर जहर घोल रहे हैं ! क्या लोग हो गये है , आदमी के लहू के कतरे कतरे से अपनी धर्मानधता एवं जिद को संवारने पर तुले हुए हैं ! यही साम्प्रदायिक दंगे तो धरती पर इंसानियत के दुश्मन बन हुए हैं ! वाह रे धर्म सम्प्रदाय की अफीम खाकर शहर अमन शान्ति को चौपट कर जंगल राज स्थापित करने पर जुटा है सच 12 फरवरी 2007 का दिन शहर के इतिहास का काला दिवस साबित हो गया है !
कल्पनाः सुरक्षा की जिम्मेदार पुलिस नहीं पहुंची क्या !
सचेतनः पुराने ढर्रे पर ! उपद्रवियों को खदेड़ने के लिये गोलियां चलायी ! गोली चलाने के बाद भी उपद्रवी गलियों में छिप छिप करे पत्थरबाजी करते रहे !पढरीनाथ, मल्हारगंज छत्रीपुरा थाना क्षेत्रों में धारा 144 लग गयी है जैसा अखबार में छपा है !
कल्पनाः क्या हो गया है इस शहर के लोगो को शान्ति सदभाव को कुचलने पर उतर रहे है ! यह शहर तो बहुत सुरक्षित था पर अब इस शहर पर ना जाने किसकी नजर लग गयी।
सचेतनः सच सभ्य समाज के विद्रोहियों की नजर लग गयी है। पुलिस प्रशासन समझा बुझाकर शान्ति बहाल करने मे जुटा है।
कल्पनाःसमझाने के अलावा पुलिस तो और भी कदम उठा सकती थी !
सचेतनःआसू गैस बल प्रयोग तक सीमित रहा! उपद्रव की आग जब अपने चरम पहुंची तब जाकर धारा 144 और कहीं कहीं कफ्र्यू लगाया !
कल्पनाः काश यह सब उपद्रव के शुरूआती दौर में लग जाता तब शायद न तो जान की और नहीं माल की हानि होती !
सचेतनः ठीक कह रही हो ! अब तो उपद्रवियों ने आमजन के लिये मुश्किल खडी ही कर दिये है ! सब बाजार हाट बन्द हो सकता है !
कल्पनाः बन्द तो होना ही चाहिये !कब उपद्रवियों की छाती में उबल रहा उन्माद सुलग उठे और शहर को शर्मसार कर दे ! पूरे क्षेत्र में कफ्र्यू लगा देना चाहिये ! बीच बीच में छूट मिलती रहे ताकि लोग अपने जरूरी काम कर सके !उपद्रवियों की शिनाख्त कर काले पानी की सजा दे देनी चाहिये ताकि फिर उन्माद का भूत न सवार हो सके ! कफ्र्यू में ढिल के वक्त पुलिस को उपद्रवियों पर चौकस निगाहें भी रखनी होगी !सडक पर बिखरे लहू के कतरों के सफाई की भांति लोगों को भी अपने दिलों पर जमी मैल की परतों को धो देना होगा तभी पूर्णरूपेण सर्वधर्म सदभाव कायम हो सकेगा !
सचेतन ः जिस दिन शहर में सदभाव स्थापित हो गया ! सचमुच मैं जश्न मनाउंगा ! कल्पनाः काश तुम्हारी दिली ख्वाहिश पूरी हो जाती ! शासन प्रशासन उपद्रवियों के साथ सख्ती से पेश आता हर राजनीति से उपर उठकर ! उपद्रवियों की हर गतिविधियों पर नजर रखता !
सचेतनः भागवान ठीक तो कह रही हो ! होना तो ऐसा ही चाहिये पर लोग अपने कर्तवयों पर खरे उतरे तब ना! पुलिस प्रशासन को तो आग दृष्टि अब तो रखना ही होगा ! खैर जो लोग अमन पसन्द शहर के लहूलुहान हुए है उनका क्या !
कल्पनाः अमन पसन्द लोग अपनी अपनी घाव को भूलकर शहर की शान्ति के लिए त्याग तो करेगे ही परन्तु उपद्रवी लोग अपनी करतूतों पर लगाम तो लगाये शहर को बदनाम ना करें !
सचेतनः ठीक कह रही हो उपद्रव से शहर की अमन सदभावना को धक्का तो लगता ही है ! वह समुदाय धर्म भी दुनिया की नजरों में बदनाम हो जाता हैं जो दंगा फसाद के लिये जिम्मेदार होता है ! खैर अब से भी अमन हो जाता ! शहर तो झुलस ही गया है ! उपद्रवी अब से भी सदभावना विरोधी गतिविधियों पर लगाम लगा लेते तो बडा सकून मिलता !
कल्पनाः देखो जी चिन्ता को दिल से ना लगाओ तुम्हारी तबियत भी ठीक नहीं हैं ! चिन्ता तुम्हारे स्वास्थ की दुश्मन हैं ! रात भी ज्यादा हो गयी हैं ! अब सो जाओ !
सचेतन बडी मुश्किल से सोया पर नींद में भी कई बार बड़बडाता रहा बचाओ बचाओ ! अरे किसी के आशियाने में आग ना लगाओ ! सुबह हुई ही नहीं कि बच्चों से बार बार अखबार लाने को कहने लगे !
पिता के बार बार अखबार मांगने पर बिटिया जूही बोली अरे पापा अभी अखबार ही नहीं आया तो दे कहां से ! रेडियो सुनो समाचार आ रहा है शहर में शान्ति स्थापित हो रही है धीरे धीरे ! उठो ब्रश करो दवाई लो ! आंख खोले ही नहीं अखबार अखबार मांगने लगे सचेतनः अखबार आज इतना देर से क्यो आ रहा है !
कल्पनाःअरे अखबार और हाकरों पर भी तो दंगे का असर होगा की नहीं !
इतने में कुछ गिरने की आवाज आयी !सचेतन जोर से बोले देखो पेपर आ गया क्या ! लगता है हाकर अखबार फेंका है !
कल्पनाःजल्दी जल्दी गयी और अखबार सचेतन को थमाते हुए बोली लो अखबार आ गया सचेतनःअरे बाप रे !
कल्पनाः क्या हुआ !
सचेतनः शहर में कर्फ्यू जारी ,स्कूल कोल बन्द बसों का आनाजाना बन्द ! शान्ति मार्च ! मंगलवार को शाम होते होते स्थिति बिगडी ! दंगे के दूसरे दिन भी अमन नहीं शहर में !
कल्पनाः दंगे का कारण लगता हैं अफवाहें ही रही है वरना छोटी सी बात को लेकर इतना बडा दंगा ! कभी नहीं होता ! छोटी मोटी बातों में धर्म सम्प्रदाय घुस रहा हैं और यही दंगे का कारण बन जाता हैं ! दंगाईयों की सोची समझी साजिश के तहत सब हो रहा है !
सचेतनः मानवता सदभावना के विरोधी चाहते क्या हैं ! जूना रिसाला के एक सामुदायिक भवन पर बम फेंक दिया है दंगाईयों ने !
कल्पनाः बम फेंका है तो कोई ना कोई हताहत भी हुआ होगा !
सचेतनः खैर भगवान ने बचा लिया हैं जान की हानि तो नहीं हुई हैं ! पुलिस ने मोर्चा खोल दिया है !
कल्पनाः उपदवियों की शिनाख्त कर उनके तलाशी के साथ उनके घरों एवं संदिग्ध स्थानों की भी तलाशी लेनी चाहिये ! दंगाई बम गोले कहां से लाते हैं ! इनके तार हो ना हो किसी उग्रवादी ग्रुप से तो नहीं जुडे हुए है !
सचेतनः हो भी सकता है! पुलिस गहन छानबीन कर रही हैं ! रैपिड एक्शन फोर्स भी शहर में आ चुकी है
कल्पनाः शहर का दंगा साम्प्रदायिक रंग के साथ राजनीतिक रंग में भी रंगा लगता है ! शहर की आर्थिक राजधानी जहां हमेशा ठसाठस भीड रहती थी वहां सन्नाटा पसरा हुआ है !
सचेतनः एक तरफ तो शहर का आवाम बेहाल हैं दूसरी ओर राजनीतिक गरमी भी बढने लगी हैं ! अमन की उम्मीद के बीच आरोप प्रत्यारोप भी लग रहे हैं !
कल्पनाः दंगा भले ही साम्प्रदायिक हो पर राजनीति की उर्वरा शक्ति भी इसमें शामिल तो हैं ! ऐसी खबर गली मोहल्ले में फैल चुकी है !
सचेतनःशहर के लोग संवेदनशील एवं वेदना को समझते हैं ! अमन पसन्द लोग हैं ! सामाजिक एकता में विश्वास रखने वाले लोग हैं ! उपद्रवियों के इरादों को विफल तो कर ही देगे !सच यह है कि कोई तो है जो शहर की फिजा बिगाड़ने पर तुला हुआ है !
कल्पनाःठीक कह रहे हो ! उपद्रवियों को बेरोजगारी अशिक्षा, महंगाई, गरीबी छुआछूत जातिवाद के मुददे दिखाई ही नहीं पड रहे हैं ! देश समाज के दुश्मन साम्प्रदायिक भावना के सहारे शहर का अमन चैन छिन रहे हैं !
सचेतनः समाज में बैर फैलाने वाले लोग देश समाज के कल्याण की बात नहीं कर सकते ना !
कल्पनाः यही तो दुर्भाग्य हैं ! देश में पढे लिखे बेरोजगारों की फौज खड़ी हो रही हैं ! भूख गरीबी पसरी पडी हैं ! अशिक्षा नारी शिक्षा के लिये जंग छेडना चाहिये था पर समाज देश के विरोधी अमन शान्ति के खिलाफ मोर्चा खोल रहे है ! शहर को कफ्र्यू धारा 144 में जीने को विवश कर रहे है
सचेतनः ठीक समझ रही हो भागवान काश उपद्रवी लोग भी सोचते देश समाज के हितार्थ !
कल्पनाः दंगे के पीछे कोई ताकत तो हैं !
सचेतनः पर्दाफाश हो जायेगा ! किसी के तन पर तो किसी के मन पर घाव लगी हैं ! सभ्य समाज के दुश्मनो ने कितनों की रोटी रोजी में आग लगा दिये हैं ! !
कल्पनाः दंगा कोई चैन दे सकता है क्या !नहीं ना !
सचेतनः सब जानकर भी उन्मादी लोग एक दूसरे के खून के प्यासे बन जाते हैं ! जबकि मानवता से बडा धर्म और दर्द से बडा रिश्ता कोई नहीं होता पर उपद्रवी सब रौंदने पर तुले हैं !
कल्पनाः खैर जिन्दगी पटरी पर आने लगी है !
सचेतनः शहर में जल्दी अमन शान्ति स्थापित हो ! उपद्रवी लोग तो आग उगलते ही रहे हैं!
कल्पनाः जूही के पापा कुछ औरतें कल आपस में बात कर रही थी कि हुकूमत असली मुजरिमों पर हाथ नहीं डालती ! तमाम दंगे इस बात के गवाह हैं ! ऐसा करने मे हुकूमत को खतरों से खेलना पड सकता हैं क्योकि दंगे के जिम्मेदार दोनो पक्षों में कट्टरपंथियों की भरमार होती हैं ! यही दंगों का राज तो नहीं हैं !हुकूमत में एक किस्म का कट्टरपंथी तबका वोट बैंक का इंतजाम करता हैं तो दूसरा राजनीतिक बैसाखियों का !
सचेतनःठीक कह रही हो ! राजनीतिक आकाओं ने वोटों की जिस तरह जाति धर्म अथवा सम्प्रदाय के आधार पर विभाजित कर दिया हैं ! उससे से यह कयास लगने लगा हैं अमन पसन्द देश समाज के नागरिक को कि शहर अब बारूद के ढेर पर खुद को पाने लगे है ! समय आ गया है अब उपद्रवियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो ! शासन प्रशासन इसके लिये कमर कस ले ! उपद्रवी चाहे जिन प्रभावशाली क्यों न हो उसे देश समाज का खतरा समझकर उसके खिलाफ कार्रवाई हो ! धार्मिक साम्प्रदायिक उग्रवादी संगठनों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लागू हो जो अमन शान्ति के विरूध्द उठ खड़े होते हैं ! देश में समान संहिता लागू हो !तभी दंगों से निपटा जा सकेगा !
कल्पनाः काश ऐसा ही होता !
सचेतनःऐसा होगा देखना एक ना एक दिन !हत्या दुर्घटना,दंगा उपद्रव महगाई आदि से लम्बे अर्से से दिल दुख रहा है पर अब सकून की खबरें आने लगी हैं ! महाशिवरात्रि एंव जुम्मे की नमाज के प्रभाव से शान्ति एवं सदभावना की बदरी छाने लगी है !
कल्पनाःसच धीरे धीरे अब शहर मुस्कराने लगा है !ऐसी खबर आने लगी है !अमन शान्ति पसन्द शहर के लोग सब कुछ भूलने लगे हैं जैसे कुछ हुआ ही न हो !अच्छा संकेत हैं सामाजिक सदभावना का !
सचेतनः अरे जूही की मां ए देखो ! कई दिनों के बाद बडा सुकून लग रहा है !
कल्पनाः सकून महसूस कर रहे हो यह तो मैं समझ गयी पर दिखा क्या रहे हो !
सचेतनः अखबार ․․․․․․․शहर में अमन चैन हो गया हैं ना इसीलिये पापा अखबार में छपी खबर दिखा रहे हैं क्यो पापा यही ना !
सचेतन ःठीक समझ रही हो !
कल्पनाः शहर में शान्ति हो गयी हैं ! उपद्रवी अपनी अपनी मांदों में छिप गये हैं ! अब फिर कभी सिर ना उठाये ! शहर और शहर की अमन शान्ति को उपद्रवियों ने साम्प्रदायिकता की आग में धूं धूं कर जला ही दिया था पर अब पुनः सदभाव की लहर दौड़ पउुंडी है !
सचेतनः अमन शान्ति में ही तो सभ्य समाज की आत्मा बसती है !
कल्पनाः देखो सब ओर सदभाव पूर्ण माहौल हो गया हैं तुम अपने वादे पर खरे उतरो !
सचेतनः क्या !
कल्पनाः अरे नाचों गाओं जश्न मनाओ भूल गये क्या ?अब तो उपद्रवियों की बोयी मुट्ठी भर आग ठण्डी हो गयी है।
सचेतन ः नहीं भागवान !आज तो वाकई नाचने गाने जश्न मनाने का दिन हैं शहर में अमन शान्ति हैं और घर में बेटे का जन्म दिन 17 फरवरी आज तो दुगुनी खुशी है! उपद्रवियों द्वारा सुलगायी मुट्ठी भर आग ठण्डी हो गयी है।
कल्पना ः अब देर किस बात की !कुछ गीत तो सुनाओ अब ! इस खुशी के माहौल में चार चांद लगाओ !
सचेतनः लो सुनो सुनाता हूं !
मैं एक गीत गाता हूं !
सदभाव का भूखा,
अमन शान्ति का गीत गाता हूं
ना बहे लहू के कतरे कतरे यारो
शहर जहां शान्ति सदभाव की है यारी !
मैं एक गीत गाता हूं ․․․․․․․․․․․․․․․․․․․․․․․․
कटरपंथियों उन्माद नहीं अच्छा
डर में जीने वाले क्या करोगे सुरक्षा
न उगलना कभी आग,
मानवता से कर लो यारी․
मैं एक गीत गाता हूं -----------------------
नन्दलाल भारती
समाप्त
आजाद दीप, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर।म․प्र।-452010,
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जनप्रवाह।साप्ताहिक।ग्वालियर द्वारा उपन्यास-चांदी की हंसुली का धारावाहिक प्रकाशन
उपन्यास-चांदी की हंसुली सुलभ साहित्य इन्टरनेशनल,दिल्ली द्वारा अनुदान प्राप्त
जीवन परिचय /BIODATA
नन्दलाल भारती
कवि,कहानीकार,उपन्यासकार
शिक्षा - एम․ए․। समाजशास्त्र। एल․एल․बी․। आनर्स।
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट (PGDHRD)
जन्म स्थान- ग्राम-चौकी।खैरा।पो․नरसिंहपुर जिला-आजमगढ।उ․प्र।
प्रकाशित पुस्तकें
ई पुस्तकें․․․․․․․․․․․․ | उपन्यास-अमानत,निमाड की माटी मालवा की छाव।प्रतिनिधि काव्य संग्रह। प्रतिनिधि लघुकथा संग्रह- काली मांटी एवं कविता कहानी लघुकथा संग्रह। उपन्यास-दमन,चांदी की हंसुली एवं अभिशाप कहानी संग्रह -मुट्ठी भर आग,हंसते जख्म, सपनो की बारात लघुकथा संग्रह-उखड़े पांव / कतरा-कतरा आंसू काव्यसंग्रह -कवितावलि / काव्यबोध, मीनाक्षी, उद्गार आलेख संग्रह- विमर्श एवं अन्य |
सम्मान | स्वर्ग विभा तारा राष्ट्रीय सम्मान-2009,मुम्बई, साहित्य सम्राट,मथुरा।उ․प्र․। विश्व भारती प्रज्ञा सम्मान,भोपल,म․प्र․, विश्व हिन्दी साहित्य अलंकरण,इलाहाबाद।उ․प्र․। लेखक मित्र।मानद उपाधि।देहरादून।उत्तराखण्ड। भारती पुष्प। मानद उपाधि।इलाहाबाद, भाषा रत्न, पानीपत। डां․अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान,दिल्ली, काव्य साधना,भुसावल, महाराष्ट्र, ज्योतिबा फुले शिक्षाविद्,इंदौर।म․प्र․। डां․बाबा साहेब अम्बेडकर विशेष समाज सेवा,इंदौर , विद्यावाचस्पति,परियावां।उ․प्र․। कलम कलाधर मानद उपाधि ,उदयपुर।राज․। साहित्यकला रत्न।मानद उपाधि। कुशीनगर।उ․प्र․। साहित्य प्रतिभा,इंदौर।म․प्र․। सूफी सन्त महाकवि जायसी,रायबरेली।उ․प्र․।एवं अन्य |
| आकाशवाणी से काव्यपाठ का प्रसारण। रचनाओं का दैनिक जागरण,दैनिक भास्कर,पत्रिका,पंजाब केसरी एवं देश के अन्य समाचार irzks@ifrzdvksa में प्रकाशन , वेब पत्र पत्रिकाओं एवं अन्य ई-पत्र पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशन। |
सदस्य | इण्डियन सोसायटी आफ आथर्स।इंसा। नई दिल्ली |
| साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी,परियांवा।प्रतापगढ।उ․प्र․। |
| हिन्दी परिवार,इंदौर।मध्य प्रदेश। |
| आशा मेमोरियल मित्रलोक पब्लिक पुस्तकालय,देहरादून।उत्तराखण्ड। |
| साहित्य जनमंच,गाजियाबाद।उ․प्र․।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् न्यास,नई दिल्ली
म․प्र․․लेखक संघ,म․्रप्र․भोपाल,
म․प्र․तुलसी साहित्य अकादमी,भोपाल एवं अन्य |
सम्पर्क सूत्र | आजाद दीप, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर।म․प्र․! दूरभाष-0731-4057553 चलितवार्ता-09753081066 Email- nlbharatiauthor@gmail़com Visit:- http://www़nandlalbharati़mywebdunia़com http;//www़nandlalbharati़blog़co़in/ http://nandlalbharati़blogspot़com http:// www़hindisahityasarovar़blogspot़com/ httpp://nlbharatilaghukatha़blogspot़com www़facebook़com/nandlal़bharati |
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