मामूली मौत से फूटा जन विद्रोह का सैलाब तानाशाहों के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है यह ट्यूनीशिया और मिस्त्र में आए बदलाव ने तय कर दिया...
मामूली मौत से फूटा जन विद्रोह का सैलाब तानाशाहों के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है यह ट्यूनीशिया और मिस्त्र में आए बदलाव ने तय कर दिया है। महज दो-ढाई माह पहले ट्यूनीशिया के सिडी प्रांत के एक सब्जी विक्रेता मोहम्मद बाउजिजि ने पुलिसिया अत्याचार से आजिज आकर खुदकुशी कर ली थी। आग की इस एक चिनगारी ने ट्यूनीशिया और मिस्त्र में दशकों से सत्ता पर काबिज तानाशाहों का तख्ता पलट दिया। इन दोनों देशों की जनता की एकजुट शक्ति के सामने दो शासनाध्यक्षों के सत्ता में और बने रहने के मंसूबे धूल-ध्वस्त हो गए। हालांकि विद्रोह की यह आग अभी ठंडी नहीं हुई है, बल्कि बदलाव की इस बयार का विस्तार मध्यपूर्व एशिया और उत्तरी अफ्रीका के उन तमाम देशों में परवान चढ़ रहा है जो एकतंत्री हुकूमत के कठोर शिकंजे में हैं। चूलें हिला देने वाला इन जनविद्रोहों का अह्म पहलू यह है कि इनकी पृष्ठ भूमि में इस्लामी विद्रोह की बजाय इन देशों में जबरदस्त बढ़ती मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अशिक्षा, असमानता और गरीब व अमीर के बीच लगातार बढ़ती खाई है। वैश्विक वित्तीय संकट ने भी पर्यटन उद्योग को चौपट कर आग में घी डालने का काम किया है। पाश्चात्य देशों की औपनिवेशिक गुलामी भी छुटकारे का सबब बनी है।
बुनियादी जरूरतों का अभाव और पूंजी का सीमित लोगों में जब धु्रवीकरण होने लगता है तो जनाक्रोश का फूटना लाजिमी है। उत्तरी अफ्रीका के अल्जीरिया, मोरक्को, इथोपिया, यमन और सोमालिया तथा मध्यपूर्व एशिया में सऊदी अरब, जॉर्डन, इराक व ईरान समेत अनेक खाड़ी देशों में कुछ ऐसी ही वजहों से विद्रोह की आग सुलग रही है। दरअसल किसी भी एकतंत्री व्यवस्था में शासक को न तो अवाम के बुनियादी हकों की चिंता सताती है और न ही मानवाधिकारों के हनन की ? अमेरिका जैसी योरोपीय ताकतों की शह और दया जब इन तानाशाहों पर हो तो ये करेला और वह भी नीम चढ़ा कहावत को चरितार्थ करने लगते हैं। इन देशों ने जहां इन्हें परस्पर भिड़ाने की चालाकियों को अंजाम दिए वहीं सुरक्षा की गारंटी देते हुए हथियार बेचकर अपने आर्थिक व राजनीतिक हित साधे। चूंकि ज्यादातर अरब देशों में प्राकृतिक संपदा के रूप में अकूत तेल भण्डार हैं, इसलिए इस अमूल्य संपदा के दोहन के नजरिये से इनने इन देशों में कठपुतली सरकारों के गठन में अह्म भूमिका निभाई। यही कारण रहा कि पाश्चात्य देशों की बर्बरता सामने आने पर भी इन स्वार्थी शासकों ने इन देशों से टकराव के हालात पैदा नहीं होने दिए। इसलिए तानाशाही की विद्रूपता का कुरूप चेहरा यहां हमेशा दिखाई देता है। लेकिन अब संपूर्ण अरब अवाम में तहरीर चौक से लोकतंत्र की मांग की जो गूंज उठी है, उसने पश्चिम एशिया के अधिकांश तानाशाह शासकों को दहला दिया है। चूंकि अमेरिका ने इन देशों से तेल का दोहन सबसे ज्यादा किया है इसलिए उसके माथे पर भी दुविधा की लकीरें गहरा गई हैं। लिहाजा वह आगाह करने में लगा है कि जिन देशों में जनक्रांति उभार पर है वे उसे सैन्यबल से न कुचलें। जनता-जनार्दन की मंशापूर्ति के लिए लोकतांत्रिक तरीकों से राजनीतिक बदलाव में सहभागी बनें।
मुसलिम देशों के समूह में एकमात्र तुर्की ऐसा देश है जो कमोबेश धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश की श्रेणी में है। इसीलिए मिस्त्र आए में बदलाव का सबसे पहले स्वागत व समर्थन तुर्की ने किया। वरना ट्यूनीशिया में अल-अबेदीन बेन अली 23 साल से और मिस्त्र में होस्नी मुबारक लगातार तीन दशक से राष्ट्रपति की गद्दी पर जनतांत्रिक मूल्यों की अवहेलना और जनता की बुनियादी मांगों की उपेक्षा करते हुए बैठे हैं। मुबारक जनतंत्र के पक्षधर इसलिए भी नहीं थे क्योंकि वे खुद 1981 में अनवर सादात की हत्या के बाद सत्तानशी हुए थे। और परिवारवाद की हिमायत करते हुए अपने बेटे को उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। उनके शासन में भाई-भतीजावाद तो पनपा ही, मंहगाई और भ्रष्टाचार ने भी मर्यादा की सभी हदें लांघने में कोई-कसर नहीं छोड़ीं। होस्नी मुबारक और उनके परिवार की कुल संपत्ति 40 से 70 अरब डॉलर बताई जा रही है। इसमें से ज्यादातर सैन्य सामग्री खरीदने में भ्रष्टाचार के जरिये बनाई। मुबारक की यह संपत्ति स्विटजरलैंड, लंदन, पेरिस, मैड्रिड, दुबई, वाशिंगटन, न्यूयार्क और फैंकफर्ट के बैंकों में होने के संकेत आईएचएस ग्लोबल इनसाइट ने दिए हैं। हालांकि मुबारक के पदच्युत होते ही स्विटजरलैंड सरकार ने उनकी संपत्ति सील करते हुए लेनदेन पर रोक लगा देने का जनहितकारी कदम उठा लिया है।
इन देशों में जन विस्फोट का एक कारण बेरोजगारी और गरीबी व अमीरी के बीच बढ़ती खाई भी रहा है। ट्यूनीशिया में जहां गरीबी की वृद्धि दर में लगातार इजाफा हो रहा है, वहीं बेरोजगारी की दर 13 से 15 प्रतिशत के बीच 2008 से बनी हुई है। मिस्त्र में 2008 से 2010 तक बेरोजगारी की दर 9 से 9.4 फीसदी के बीच बनी हुई है। वैश्विक वित्तीय संकट के चलते पर्यटन उद्योग, प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश और स्वेज नहर में चलने वाले जहाजों से होने वाली आमदनी लगातार गिरी है। शिक्षित बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन रोजगार के नये आयाम उत्सर्जित करने में मुबारक सरकार मददगार साबित नहीं हुई। कमोबेश ऐसे ही हालात यमन के तानाशाही शासन में हैं। यहां बेरोजगारी की दर 35 फीसदी है। मानव विकास सूचकांक में यमन का 140 वां स्थान है। जबकि 40 फीसदी लोग बमुश्किल गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने को अभिशप्त हैं।
पश्चिम एशिया के अनेक देश भी एक दल अथवा एक व्यक्ति के शासन के चलते बदलाव की अंगड़ाई ले रहे हैं। इन देशों में वास्तविक लोकतंत्र दूर तक दिखाई नहीं देता। तिस पर भी असमानता की बढ़ती खाई जन विस्फोट को चिनगारी दिखाने का काम कर रही है। पश्चिमी देशों का हस्तक्षेप राख के नीचे दबी आग में पानी डाल पाएगा ऐसा तत्काल तो नहीं लगता। क्योंकि इजराइल को पश्चिमी देशों के खुले समर्थन ने अरब देशों की दूरी ही बढ़ाई है। हालांकि बराक ओबामा के राष्ट्राध्यक्ष बनने के बाद यह उम्मीद बढ़ी थी कि मुसलिम रक्त का अंश होने के कारण ओबामा अरब जनता की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे। लेकिन फिलीस्तीन मसले के हल को वे किसी मुकाम पर पहुंचाने में नाकाम रहे इसलिए अरब अवाम अब उनसे छिटकने लगा है।
ट्यूनीशिया और मिस्त्र में तानाशाहों ने गद्दी जरूर छोड़ दी लेकिन अब इन देशों के सामने सबसे बड़ी चुनौती लोकतांत्रिक आंकाक्षाओं पर खरा उतरते हुए नागरिक शासन के नव-निर्माण की है। इसका नेतृत्व कौन करेगा यह अभी साफ नहीं है। हालांकि इसी इरादे से अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के पूर्व अध्यक्ष और शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मोहम्मद अल बरदेई देश लौट आए हैं। लेकिन फिलहाल वे नजरबंद हैं। अभी तक आंदोलन की अगुआई विपक्षी दल मुसलिम ब्रदरहुड करता चला आ रहा है। वह सत्ता पर पहला हक अपना मानकर चल रहा है, जो एक हद तक वाजिब भी है। कुछ पुरातनपंथी ताकतें भी सत्ता हथियाने की होड़ में लग गई हैं। हालांकि आंदोलनकारी पुरातनपंथियों से तत्काल की स्थिति में दूरी बनाए हुए हैं। लेकिन गाहे-बगाहे सत्ता का हस्तांतरण चरमपंथी के हाथों में होता है तो मिस्त्र और ट्यूनीशिया में अल्पसंख्यकों पर संकट गहराना तय है। बहरहाल सत्ता परिवर्तन के इन हालातों से भारत को भी सबक लेने की जरूरत है। क्योंकि मंहगाई, भ्रष्टाचार, वंशवाद और अमीर-गरीब के बीच जिस तरह से यहां खाई बढ़ रही है इसकी पृष्ठभूमि में जन विस्फोट यहां भी हो जाए तो कोई अचरज नहीं है।
---
प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49, श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी (म.प्र.) पिन-473-551
लेखक वरिष्ठ कथाकार एवं पत्रकार हैं।
सही तरह से आपने घटनाओं की पडताल की है और सही निष्कर्ष निकाल कर लायें हैं, भारत में भी यही हाल है
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग को निम्नस्तर का कह रहे हैं डॉ श्याम गुप्ता