॥ नर के भेष में नारायण ॥ बात पर यकीन नही होता आज आदमी की नींव डगमगाने लगती है घात को देखकर आदमी के । बातों में भले मिश्री घुली लगे त...
॥ नर के भेष में नारायण ॥
बात पर यकीन नही होता आज आदमी की
नींव डगमगाने लगती है घात को देखकर आदमी के ।
बातों में भले मिश्री घुली लगे तासीर विष लगती है
आदमी मतलब साधने के लिये सम्मोहन बोता है।
हार नही मानता मोहपाश छोड़ता रहता है,
तब-तक जब-तक मकसद जीत नही लेता है।
आदमी से कैसे बचे आदमी बो रहा स्वार्थ जो
सम्मोहित कर लहू तक पी लेता है वो ।
यकीन की नींव नही टिकती विश्वास तनिक जम गया
मानो कुछ गया या दिल पर बोझ रख निकाला गया ।
भ्रष्टाचार के तूफान में मुस्कान मीठे जहर सा
दर्द चुभता हरदम वेश्या के मुस्कान के दंश सा ।
मतलबी आदमी की तासीर चैन छीन लेती है
आदमी को आदमी से बेगाना बना देती है ।
कई बार दर्द पीये है पर आदमियत से नाता है
यही विश्वास अंध्ोरे में उजाला बोता है ।
धोखा देने वाला आदमी हो नही सकता है
दगाबाज आदमी के भेष में दैत्य बन जाता है ।
पहचान नहीं कर पाते ठगा जाते हैं,
ये दरिन्दे उजाले में अंधेरा बो जाते हैं ।
नेकी की राह चलने वाले अंधेरे में उजाला बोते हैं
सच लोग ऐसे नर के भेष में नारायण होते हैं ।
कविताएँ
॥ आशीश की थाती ॥ मां ने कहा था,बेटा मेहनत की कमाई खाना काम को पूजा, फर्ज को धर्म, श्रम को लाठी को समझना यही लालसा है धोखा-फरेब से दूर रहना । लालसा हो गयी पूरी मेरी जय-जयकार होगी बेटा तेरी चांद-सितारों को गुमान होगा तुम पर वादा किया था पूरा करने की लालसा चरणों में सिर रख दिया था मां के हाथ उठ गये थे, लक्ष्मी,दुर्गा और सरस्वती के , परताप एक साथ मिल गये थे । आशीश की थाती थामें कूद पड़ा था जीवन संघर्ष में, दगा दिया दबंगों ने श्रम-कर्म-योग्यता को न मिला मान गरजा अभिमान उम्मीदें कुचल गयीं योग्यता को वक्त ने दिया सम्मान । मां का आशीश माथे,सम्भावना का साथ हक हुआ लूट का शिकार पसीने की बूंद, आंखों के झलके आंसू मोती बन गये विरोध के स्वर मौन हो गये मां की सीख बाप का अनुभव पत्थर की छाती पर दूब उगा गये उसूल रहा मुस्कराता कैद तकदीर के दामन वक्त ने सम्मान के मोती मढ़ दिये । हक-पद-दौलत आदमी के कैदी हो गये जिन्दगी के हर मोड़ पर आंसू दिये सम्भावना को ना कैद कर पाई कोई आंधी बाप के अनुभव मां के आशीष की थी, जिसके पास थाती । | ॥ आदमी अकेला है ॥ अपनी ही खुली आंखों के ख्वाब,डराने लगे हैं अकेला है जहां में फुफकारने लगे है फजीहत के दर्द पीये,जख्म से वजूद सींचे भूख पसीने से धोये सगे अपनों के लिये जीये हैं। वक्त हंसता है,ख्वाब डराता है कहता है जमाने की भीड़ में अकेला है कैसे मान लूं ,हाड़ निचोड़ा किया-जीया सगे अपनों के लिये, क्या वे अपने सच्चे नहीं ? अपनों के सुख-दुख की चिन्ता में डूबा रहा खुद के सपनों की ना थी फिकर खुद की आंखों के सपने धूल गये अपने सपने सगों में समा गये । सच है त्याग सगे अपनों के लिये गैर-अपनों के लिये क्या किये कर लो विचार मंथन वक्त है सच कह रहा वक्त आदमी अकेला है,दुनिया का साजो-श्रृंगार झमेला है। सगे अपनों के लिये दगा-धोखा गैर के हक-लहू से किस्मत लिखना ठीक नहीं, मेहनत-सच्चाई-ईमानदारी से सगे अपनों की नसीब टांके चांद तारे दुनिया का दस्तूर है प्यारे गैरों की तनिक करे फिकर दान-ज्ञान-सत्कर्म हमारे वक्त के आर-पार साथ निभाते जमाने की भीड़ में हर आदमी अकेला, ध्यान रहे हमारे ।
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-दौलत ।
मिठाई खाओ हरिबाबू..........
किस खुशी में रमाकान्त बाबू ।
एक और नये मकान का सौदा कर लिया ।
कितने घर बना लिये ? क्या करोगे इतने मकान और अथाह दौलत जोड़कर ।
जितनी जुड़ जाये कम है आजकल के जमाने मे हरिबाबू ।
कहां ले जाओगे । अरे ले जा भी तो नहीं सकते ।
क्या करूं हरिबाबू ?
दान-ज्ञान-सत्कर्म । ऐसी दौलत जन्म-जन्मान्तर साथ नहीं छोड़ते रमाकान्तबाबू ।
-दईजा ।
जमींदार के अहाते में शहनाई गूंज रही थी। दान-दईजा का दौर चल़ रहा था ।लोग आलीशान कुर्सियों पर विराजे कई तरह की मिठाइयाँ प्लेट भर-भर खा रहे थे। दईजा डालने के बाद पानी पीने का चलन जो था । राजू दईजा देकर जाने लगा । पीछे से कहारदादा बोले अरे राजू पानी पी कर तो जा। कहारदादा की आवाज छोटे जमींदार रतिन्द्र के कानों तक पहुंच गयी वह पूछे कौन राजू है कहार........
सुर्तीलाल का बेटवा और कौन राजू ।
मजदूर सुर्तीलाल के बेटवा को जमींदारी शानो-शौकत । अरे हाथ पर एक मिठाई रखकर भगा देते।
राजू दोनों हाथ पीछे करके कहारदादा से बोला दादा प्यास नहीं लगी है और एक झटके मे नौ -दो ग्यारह हो गया।
गेट से बंधा कुत्ता ।
साहेब ये मालिक थे क्या ?
किसके मालिक ?
कम्पनी के ।
नही आठवीं पास बिगड़ा हुआ ड्राइवर है ।
आफिस स्टाफ से तू-तू कर भौंक रहा था तो मुझे लगा भौंकने वाला व्यक्ति मालिक है ।
गाड़ी बन्द है । काम कोई है नहीं । उच्च पढ़े-लिखे स्टाफ से होड़, बदतमीजी और इनकी-उनकी शिकायत बस यही काम बचा है ।
बड़ा गाडफादर है क्या ?
गाडफादर बदतमीजी करने को नहीं बोलेंगे । यह तो गाडफादर की तौहीनी है । सह है तो क्या बदतमीजी करना चाहिये । इज्जत से नौकरी करना चाहिये ।
लगता है, उच्च सर्वश्रेष्ठ साबित करने का भूत सवार है ।
ठीक कह रहे हैं, ये तो वो हाल हुआ जैसे सेठ के गेट पर बंधा डाबरमैन कुत्ता ।
नन्दलाल भारती 17.02.2011
सम्पर्क सूत्र | आजाद दीप, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर ।म.प्र.! दूरभाष-0731-4057553 चलितवार्ता-09753081066 Email- nlbharatiauthor@gmail.com http://www.nandlalbharati.mywebdunia.com http;//www.nandlalbharati.blog.co.in http://www.nandlalbharati.blogspot.com http:// www.hindisahityasarovar.blogspot.com http:// /nlbharatilaghukatha.blogspot.com www.facebook.com/nandlal.bharati |
जीवन परिचय /BIODATA
नन्दलाल भारती
कवि,कहानीकार,उपन्यासकार
शिक्षा - एम.ए. । समाजशास्त्र । एल.एल.बी. । आनर्स ।
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट (PGDHRD)
जन्म स्थान- ग्राम-चौकी ।ख्ौरा।पो.नरसिंहपुर जिला-आजमगढ ।उ.प्र।
पुस्तकें
| उपन्यास-अमानत -दमन,चांदी की हंसुली एवं अभिशाप कहानी संग्रह -मुट्ठी भर आग,हंसते जख्म, सपनो की बारात लघुकथा संग्रह-उखड़े पांव / कतरा-कतरा आंसू काव्यसंग्रह -कवितावलि / काव्यबोध, मीनाक्षी, उद्गार आलेख संग्रह- विमर्श एवं प्रतिनिधि पुस्तके-अंधामोढ कहानी संग्रह-ये आग कब बुझेगी काली मांटी निमाड की माटी मालवा की छावं एवं अन्य कविता कहानी लघुकथा संग्रह । |
सम्मान | वरि.लघुकथाकार सम्मान.2010,दिल्ली स्वर्ग विभा तारा राष्ट्रीय सम्मान-2009,मुम्बइर्, साहित्य सम्राट,मथुरा।उ.प्र.। विश्व भारती प्रज्ञा सम्मान,भोपल,म.प्र., विश्व हिन्दी साहित्य अलंकरण,इलाहाबाद।उ.प्र.। ल्ोखक मित्र ।मानद उपाधि।देहरादून।उत्तराखण्ड। भारती पुष्प। मानद उपाधि।इलाहाबाद, भाषा रत्न, पानीपत । डां.अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान,दिल्ली, काव्य साधना,भुसावल, महाराष्ट्र, ज्योतिबा फुले शिक्षाविद्,इंदौर ।म.प्र.। डां.बाबा साहेब अम्बेडकर विश्ोष समाज सेवा,इंदौर , विद्यावाचस्पति,परियावां।उ.प्र.। कलम कलाधर मानद उपाधि ,उदयपुर ।राज.। साहित्यकला रत्न ।मानद उपाधि। कुशीनगर ।उ.प्र.। साहित्य प्रतिभा,इंदौर।म.प्र.। सूफी सन्त महाकवि जायसी,रायबरेली ।उ.प्र.।एवं अन्य
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आकाशवाणी से काव्यपाठ का प्रसारण । रचनाओं का दैनिक जागरण,दैनिक भास्कर,पत्रिका,पंजाब केसरी एवं देश के अन्य समाचार irzks@ifrzdvksa वेब पत्र पत्रिकाओं रचनाओं का में निरन्तर प्रकाशन। जनप्रवाह।साप्ताहिक।ग्वालियर द्वारा उपन्यास-चांदी की हंसुली का धारावाहिक प्रकाशन । |
सदस्य |
इण्डियन सोसायटी आफ आथर्स ।इंसा। नइर् दिल्ली |
| साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी,परियांवा।प्रतापगढ।उ.प्र.। |
| हिन्दी परिवार,इंदौर ।मध्य प्रदेश। अखिल भारतीय साहित्य परिषद न्यास,दिल्ली । |
| आशा मेमोरियल मित्रलोक पब्लिक पुस्तकालय,देहरादून ।उत्तराखण्ड। |
| साहित्य जनमंच,गाजियाबाद।उ.प्र.। म.प्र..लेखक संघ,म.्रप्र.भोपाल , मध्य प्रदेश तुलसी अकादमी,भोपाल, एवं अन्य |
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जनप्रवाह।साप्ताहिक।ग्वालियर द्वारा उपन्यास-चांदी की हंसुली का प्रकाशन
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