॥ नया सूर्योदय ॥ करता बसन्त की खेती पावे अंजुलि भर-भर पतझड़ यह कैसा अत्याचार ? आंगन में बरसे अंधेरा चौखट पर गरजे सांझ हुंकारो का मर...
॥ नया सूर्योदय ॥
करता बसन्त की खेती
पावे अंजुलि भर-भर पतझड़
यह कैसा अत्याचार ?
आंगन में बरसे अंधेरा
चौखट पर गरजे सांझ
हुंकारो का मरघट उत्पात मचाया
शोषण उत्पीड़न नसीब बन रूलाया ।
ये कैसा प्रलय जहां उठती
दीन शोषितों को कुचलने की आंधी
क्रान्ति कभी करेगी प्रवेश
कोरे मन में
ना भड़कती अधिकार की ज्वाला
चीत्कार से नभ कांप उठता
धरती भी अब थर्राती
नसीब कैद करने वालों के माथे
शिकन ना आयी ।
दुख के बादल,वेदना की कराह
उठने की उमंग नहीं टिकती यहां
अभिशाप का वास जीवन त्रास यहां
भूख से कितने बीमारी से मरे
ना कोई हिसाब यहां
कहते नसीब का दोष बसते दीन दुखी जहां
क्रान्ति का आगाज हो जाये अगर
मिट जाती सारी बलाये
श्रम से झरे सम्वृद्धि ऐसी
पतझड़ कुनबा हो जाये मधुवन ।
कुव्यवस्था का षडयन्त्र डंसता हरदम
ना उठती क्रान्ति सुलगते उपवन
जीवन तो ऐसे बीतता जैसे
ना आदमी बिल्कुल पशुवत्
क्या शिक्षा क्या स्वास्थ क्या खाना-पानी
आशियाने में छेद इतना
आता-जाता बेरोक-टोक हवा-पानी
शोषित वंचित भारत की दुखद कहानी ।
वंचित भारत से अनुरोध हमारा
आओ करें क्रान्ति का आह्वाहन
सड़ी-गली परिपाटी का कर दें मर्दन
भस्म कर दें मन की लकीरे
समता के बीज बो दे
हक की आग लगा दे वंचित मन मे
सोने की दमक आ जाये वंचित भारत में
नया सूर्योदय हो जावे अंधेरे अम्बर में ।
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अब तो उठ जाओ.............
हे जग के पालनकर्ताओं
शोषित भूमिहीन खेतिहर मजदूर किसानों
कब तक रिरकोगें,ताकोगे वंचित राह
उठने की चाह बची है अगर
आंखों में जीवित है सपने कोई
देर बहुत हो गयी
दुनिया कहां से कहां पहुंच गयी
तुम वही पड़े तड़प रहे हो,
पिछली सदियों से
शोषित भूमिहीन खेतिहर मजदूर किसानों
हुआ विहान जाग जाओ
अब तो उठ जाओ.............
तोड़ने है बंदिशों के ताले
छूना है तरक्की के आसमान
नसीब का रोना कब तक रोओगे
खुद की मुक्ति का ऐलान करो
नव प्रभात चौखट आया
शोषित भूमिहीन खेतिहर मजदूर किसानों
हुआ विहान जाग जाओ
अब तो उठ जाओ.............
जग झूमा तुम भी झूमों
नव प्रभात का करो सत्कार
परिवर्तन का युग है
साहस का दम भरो
कर दो हक की ललकार
नगाड़ा नक्कारों का गूंज रहा
कर दो बन्द फुफकार शोषित भूमिहीन खेतिहर मजदूर किसानों
हुआ विहान जाग जाओ
अब तो उठ जाओ.............
कब तक ढोओगे मरते सपनों का बोझ
मुक्ति का युग है
हाथ रखो हथेली प्राण मन-भर उमंग
21वींं सदी का आगाज
इंजाम तुम्हारे कर कमलों में
बहुत रिरक लिये दिखा दो बाजुओं का जोर
थम जाये नक्कारों का शोर
शोषित भूमिहीन खेतिहर मजदूर किसानो
हुआ विहान जाग जाओ
अब तो उठ जाओ.............
नव प्रभात विकास की पाती लाया है
मानवतावाद का आगाज करो
आर्थिक समानता की बात करो
अत्याचार,भ्रष्टाचार पर करने को वार
जग के पालनकर्ता हो जाओ तैयार
समता की क्रान्ति का करो ललकार
शोषित भूमिहीन खेतिहर मजदूर किसानों
हुआ विहान जाग जाओ
अब तो उठ जाओ.............
आंसू पीकर दरिद्रता के जाल फंसे रहे
बलिदान से अब ना डरो
हुआ विहान जागो करो ताकत का संचय
कल हो तुम्हारा विकास की बहे धारा
शोषित भूमिहीन खेतिहर मजदूर किसानों
एक दूसरे की ओर हाथ बढाओ
अब तो उठ जाओ.............
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॥ फतह ॥
हार तो मैनें माना नहीं
भले ही कोई मान लिया हो
हारना तो नहीं
फना होना सीख लिया है
जीवन मूल्यों के रास्तों पर ।
बेमौत मरते सपनों के बोझ तले दबा
कब तक विधवा विलाप करता
बेखबर कर्मपथ पर अग्रसर
ढूंढ लिया है
साबित करने का रास्ता ।
जमाने की बेरहम आधियां
ढकेलती रहती है रौंदने के लिये
रौंद भी देती
अस्थिपंजर धूल कणों में बदल जाता
ऐसा हो ना सका
क्योंकि मैंने
जमीन से टिके रहना सीख लिया है ।
आंधियां तो ढकेलती रहती है
रौंदने के लिये
जमीन से जुड़े रहना जीत तो है
भले ही कोई हार कह दे
अर्थ की तराजू पर टंगकर
पद-अर्थ का वजन बढाना
जीत नहीं
जमीन से जुड़ा कद बड़ी फतह है । घाव पर खार थोपना मकसद नही
आंसू पोंछना नियति है
इंसान में भगवान देखना आदत
जानता हूं
इंसानियत का पैगाम लेकर,
चलने वालों की राह में कांटे होते है
या बो दिये जाते है
कंटीली राह पर चले आदमी का
बाकी रहता है निशान
यही नेक इंसान की फतह है ।
मानवीय एकता का दामन थाम़ लिया है
यही तो किया है कबीर,बुद्ध और कई लोग
जो काल के गाल पर विहस रहे हैं
पाखण्ड और कपट के बवण्डर उठते रहते है
कलम की नोक स्याही में डुबोये
बढ़ता रहता हूं फना के रास्ते ।
मान लिया है क्या सच भी तो है
पुआल की रस्सी पत्थर काट सकती है
दूब पत्थर की छाती छेदकर उग सकती है तो
मैं देश धर्म और
बहुजन-हिताय की आक्सीजन पर
आधियों में दीया थामे
जमीन से जुड़ा
क्यों नहीं कर सकता फतह ?
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॥ आओ कर ले विचार ॥
मेहनतकश हाशिये का कर्मवादी आदमी
फर्ज का दामन क्या थाम लिया ?
नजर टिक गयी उस पर
जैसे कोई
बेसहारा जवान लड़की हो ।
शोषण,दोहन की वासनायें
जवां हो उठती है
कांपते हाथ वालों
उजाले में टटोलने वालों के भी
दंबगता के बाहों में झूलकर।
हाल ये है
कब्र में पांव लटकाये लोगो का
जवां हठधर्मिता के पक्के धागे से,
बंधों का हाल क्या होगा ?
जानता है ठगा जा रहा है युगों से
तभी तो कोसों दूर है विकास से
थका हारा तिलमिलाता
ठगा सा छाती में दम भरता
पीठ से सटे पेट को फुलाता
उठाता है गैती फावड़ा
कूद पड़ता है भूख की जंग में
जीत नहीं पाता हारता रहता है
शोषण,भ्रष्टाचार के हाथों
टिकी रहती है बेशर्म नजरें
जैसे कोई
बेसहारा जवान लड़की हो । यही चलन है कहावत सच्ची है
धोती और टोपी की
धोतियां तार-तार और
टोपियां रंग बदलने लगी है
तभी तो जवां है शोषण भ्रष्टाचार
और अमानवीय कुप्रथायें
चक्रव्यूह में फंसा
मेहनतकश हाशिये का आदमी
विषपान कर रहा है
बेसहारा जवां लड़की की तरह .....
खेत हो खलिहान हो
या श्रम की आधुनिक मण्डी
चहुंओर मेहनतकश हाशिये के आदमी की
राहे बाधित है
सपनों पर जैसे पहरे लगा दिये गये हो,
योग्य अयोग्य साबित किया जा रहा है
कर्मशीलता योग्यता पर
कागादृष्टि टिकी रहती है ऐसे
मेहनतकश हाशिये का आदमी
कोई बेसहारा जवान लड़की हो जैसे ........
कब तक पेट में पालेगा भूख
कब तक ढोयेगा दिनप्रति दिन
मरते सपनों का बोझ
दीनता-नीचता का अभिशाप
कब तक लूटता रहेगा हक
मेहनतकश हाशिये के कर्मवादी आदमी का
आओ कर ले विचार..................
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जीवन परिचय /BIODATA
नन्दलाल भारती
कवि,कहानीकार,उपन्यासकार
शिक्षा - एम.ए. । समाजशास्त्र । एल.एल.बी. । आनर्स ।
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट (PGDHRD)
जन्म स्थान- ग्राम-चौकी ।ख्ौरा।पो.नरसिंहपुर जिला-आजमगढ ।उ.प्र।
पुस्तकें
उपन्यास-अमानत -दमन,चांदी की हंसुली एवं अभिशाप
कहानी संग्रह -मुट्ठी भर आग,हंसते जख्म, सपनो की बारात
लघुकथा संग्रह-उखड़े पांव / कतरा-कतरा आंसू
काव्यसंग्रह -कवितावलि / काव्यबोध, मीनाक्षी, उद्गार
आलेख संग्रह- विमर्श एवं प्रतिनिधि पुस्तके-अंधामोढ कहानी संग्रह-ये आग कब बुझेगी काली मांटी निमाड की माटी मालवा की छावं एवं अन्य कविता कहानी लघुकथा संग्रह ।
सम्मान वरि.लघुकथाकार सम्मान.2010,दिल्ली
स्वर्ग विभा तारा राष्ट्रीय सम्मान-2009,मुम्बई, साहित्य सम्राट,मथुरा।उ.प्र.।
विश्व भारती प्रज्ञा सम्मान,भोपल,म.प्र.,
विश्व हिन्दी साहित्य अलंकरण,इलाहाबाद।उ.प्र.।
ल्ोखक मित्र ।मानद उपाधि।देहरादून।उत्तराखण्ड।
भारती पुष्प। मानद उपाधि।इलाहाबाद,
भाषा रत्न, पानीपत ।
डां.अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान,दिल्ली,
काव्य साधना,भुसावल, महाराष्ट्र,
ज्योतिबा फुले शिक्षाविद्,इंदौर ।म.प्र.।
डां.बाबा साहेब अम्बेडकर विश्ोष समाज सेवा,इंदौर ,
विद्यावाचस्पति,परियावां।उ.प्र.।
कलम कलाधर मानद उपाधि ,उदयपुर ।राज.।
साहित्यकला रत्न ।मानद उपाधि। कुशीनगर ।उ.प्र.।
साहित्य प्रतिभा,इंदौर।म.प्र.।
सूफी सन्त महाकवि जायसी,रायबरेली ।उ.प्र.।एवं अन्य
आकाशवाणी से काव्यपाठ का प्रसारण । रचनाओं का दैनिक जागरण,दैनिक भास्कर,पत्रिका,पंजाब केसरी एवं देश के अन्य समाचार irzks@ifrzdvksa वेब पत्र पत्रिकाओं रचनाओं का में निरन्तर प्रकाशन। जनप्रवाह।साप्ताहिक।ग्वालियर द्वारा उपन्यास-चांदी की हंसुली का धारावाहिक प्रकाशन ।
सदस्य
इण्डियन सोसायटी आफ आथर्स ।इंसा। नई दिल्ली
साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी,परियांवा।प्रतापगढ।उ.प्र.।
हिन्दी परिवार,इंदौर ।मध्य प्रदेश।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद न्यास,दिल्ली ।
आशा मेमोरियल मित्रलोक पब्लिक पुस्तकालय,देहरादून ।उत्तराखण्ड।
साहित्य जनमंच,गाजियाबाद।उ.प्र.।
म.प्र..लेखक संघ,म.्रप्र.भोपाल एवं अन्य
सम्पर्क सूत्र आजाद दीप, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर ।म.प्र.!
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पहली कविता सूर्योदय पढी अच्छी लगी लेकिन थोड़ी लंबी भी लगी, बहरहाल मुबारकबाद।
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