पी ने का पानी कैसा हो? इस विषय पर वैज्ञानिकों ने काफी प्रयोग किये हैं और पानी की गुणवत्ता को तय करने के मापदण्ड बनाये है। पीने के पानी का...
पीने का पानी कैसा हो? इस विषय पर वैज्ञानिकों ने काफी प्रयोग किये हैं और पानी की गुणवत्ता को तय करने के मापदण्ड बनाये है। पीने के पानी का रंग, गंध, स्वाद सब अच्छा होना चाहिए। शुद्ध आसुत जल पीने के योग नहीं होता है। इसी प्रकार ज्यादा केल्शियम या मैगनेशियम वाला पानी भी कठोर जल होता है और पीने के योग्य नहीं होता है।
पानी में उपस्थित रहने वाले हानिकारक रसायनों की मात्रा पर भी अंकुश आवश्यक है। आर्सेनिक, लेड, सेलेनियम, मरकरी तथा फ्लोराइड, नाइट्रेट आदि स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं। पानी में कुल कठोरता 300 मि․ ग्राम प्रति लीटर से ज्यादा होने पर पानी शरीर के लिये नुकसानदायक हो जाता है। पानी में विकिरण होने पर भी वह स्वास्थ्य के लिए घातक हो जाता है। पानी में विभिन्न बीमारियों के कीटाणुओं का होना, हानिकारक रसायनों का होना तथा कठोरता होना पानी को पीने के अयोग्य बनाता है।
पीने का जल शुद्ध हो, प्यास बुझाये, मन को प्रफुल्लित रखे, तभी वह शुद्ध पेयजल होता है। हमारे शरीर का 60-70 प्रतिशत हिस्सा पानी से बना होता है। प्रतिदिन शरीर को 6-10 गिलास पानी की आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता का एक बड़ा भाग खाद्य पदार्थों के रूप में शरीर ग्रहण करता है। शेष पानी मनुष्य पीता है। गर्मियों में पानी ज्यादा चाहिए क्योंकि पसीने के रूप में काफी ज्यादा पानी शरीर से वापस बाहर निकल आता है। सर्दी में पानी की मात्रा कम चाहिए। पानी, भोजन के पाचन, रूधिर संचरण तथा समस्त अन्य जैव क्रियाओं के लिए अत्यंत आवश्यक है। सुबह उठकर एक गिलास शीतल जल का सेवन व्यक्ति को कई बीमारियों से बचाता है।
पीने के पानी के गुण - पानी हमारी प्यास बुझाता है। प्यास लगना इस बात का संकेत है कि हमारे शरीर को पानी की जरूरत है। यह शरीर को चुस्त बनाए रखना है। इसके द्वारा खाद्य पदार्थों के पोषक तत्व रक्त में मिल जाते हैं। पानी शरीर के रक्त का बहाव यथावत रखता है। वह शरीर के अतिरिक्त तत्व पसीना और मूत्र के रूप में बाहर निकालने में सहायक होता है, मल के निष्कासन में भी सहायक होता है। यह शरीर के ताप को ठीक बनाए रखता है।
पीने का पानी निश्चय ही शुद्ध स्वच्छ और साफ होना चाहिए। यह रंगहीन गंधहीन और गंदगी रहित होना चाहिए। इस में किसी तरह के हानिकारक तत्व नहीं होने चाहिए। हमारे यहां आमतौर पर पानी की शुद्धता और स्वच्छता के बारे में बहुत लापरवाही है। पीने लायक साफ पानी न तो उपलब्ध है और न ही इसकी मांग की जाती है। पानी में तरह-तरह की गंदगी होती है, जिसके बारे में बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता। सच पूछिए तो इसके बारे में जानकारी भी नहीं है। गंदगी में जो रोग के जीवाणु होते हैं, वे आंख से दिखते नहीं, केवल माइक्रोस्कोप से दिखते हैं। इसी गंदगी की वजह से और इसमें रोग के जीवाणुओं से बहुत सी बीमारियों होती है। जैसे दस्त, पेचिस, हैजा, टाइफाइड, पीलिया, नारू और भी कई आंत संबंधी रोग। ये रोग पानी से होने वाली बीमारियों के नाम से जाने जाते हैं।
ज्यादातर लोग पीने का पानी किसी पोखर या तालाब से लेते है जहां बर्तन भी धोए जाते हैं, कपड़े भी धोए जाते हैं, लोग खुद भी नहाते है, गाय भैंसों को भी नहलाते हैं। यह सारी गंदगी अन्दर चली जाती है। इसी प्रकार पानी कुंओं से भी लिया जाता है, जो ज्यादा गहरे नहीं होते है और खुले छोड़े जाते है। हवा के साथ इसमें धूल, मिट्टी, पत्ते, पक्षी की बीट इत्यादि जाकर गिरती है और पानी को प्रदूषित करती है।
कुछ गांवों में हैंडपम्प की सुविधा दी गई है, परन्तु उसके लगभग 10 फुट की गोलाई में कीचड़ व कूड़ा-करकट पड़ा होता है। वहां से गंदा पानी धीरे-धीरे जमीन में रिसकर स्वच्छ पानी को खराब कर देता है। फिर वह पानी पीने योग्य नहीं रह जाता।
पीने के लिए उपयोग में आने वाले पानी के तालाब व टैंक बिल्कुल अलग होना चाहिए, जिससे कपड़े धोने, नहाने तथा अन्य बाहरी अनावश्यक कार्यकलाप नहीं हो। गहरे कुएं का पानी पीने के लिए सबसे बढि़या होता है, जो 100 फुट या इससे अधिक गहरा होना चाहिए। लेकिन अपने देश में आमतौर पर 50 फीट से अधिक गहरे कुएं नहीं होते। कुएं के चारों तरफ पक्की ईंटों एवं सीमेंट का घेरा होना चाहिए, जिससे कि उसमें गंदगी न जा सके। कुंए के चारो तरफ लगभग 5 फुट की चौड़ाई में सीमेंट का पक्का चबूतरा होना चाहिए, जो गंदगी जाने से रोके। कुंए पर बना सीमेंट का यह चबूतरा बाहर की ओर ढलवां होना चाहिए, जिससे कि पानी भरते समय वह फैलने पर बाहर की ओर ही जाए।
कुएं को ऊपर से ढका होना चाहिए, जिससे कि उसमें पेड़ों की पत्तियाँ आदि न गिर सके। साफ और शुद्ध पानी की दृष्टि से पीने के लिए हैंडपम्प एवं नल का पानी सबसे अच्छा होता है। लेकिन इसके पास बर्तन एवं कपड़े आदि धोना पूरी ईमानदारी के साथ रोकना चाहिए। पानी जहां से लिया जाता है इसके आसपास कोई शौचालय आदि होना बहुत हानिकारक होता है।
यदि आप अपने पीने का पानी किसी झरने, नदी, नाले, गड्ढे, तालाब या कुएं से लाते है तो उसे आप अवश्य शुद्ध करें और बीमारियों से बचाव करें।
पानी शुद्ध करने के लिए निम्न बातें अपनाई जा सकती है-
(1) दवा (क्लोरीन) डलवाएं-अपने विकास खण्ड के अधिकारियों से सम्पर्क करें। कुओं में दवा डलवाते रहें,
(2) पानी उबालिए-पानी को लगभग 2 से 5 मिनट तक उबालना चाहिए और फिर छानकर ढक्कनदार बर्तन में रक्खें।
(3) पानी छानिए-साफ दोहरे कपड़े से पानी को छानकर पीने के लिए इस्तेमाल कीजिए।
(4) धूप में रखिए-एक साफ बोतल में पानी भरकर कड़ी धूप में रख दीजिए। इससे कुछ हद तक पानी से होने वाली बीमारियों के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।
(5) सहंजन के बीज डालिए-घड़े के पानी में एक मुट्ठी सहंजन के बीज डालें, इससे पानी साफ होता है।
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यशवन्त कोठारी
86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर,
जयपुर-302002,
फोनः-2670596
---जन स्वास्थ्य पर स्वच्छ, सुन्दर,स्पष्ट व विचारपूर्ण आलेख जो जन जन के सामने अवश्य आना चाहिये....बधाई.
जवाब देंहटाएं--इस लेख के प्रकाश में--कुछ तथाकथित विग्यान प्रचारकों को जानना चाहिये कि चिकित्साविग्यान/विग्यान/गुप्त विध्याओं के किन तथ्यों को सामान्य जन को बताना चाहिये किन को नहीं...
श्रीमान जी, मेरे खेत के बोरवेल का पानी पशुओं के पीने लायक नहीं है, कृपया मुझे सुझाव देवें
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