कहानी ऐसा मत करो मम्मी भवानी प्रसाद ने प्रथम श्रेणी में हायर सेकेण्डरी परीक्षा पास की थी। उसके पिता सरयू प्रसाद माहौर गुना के जिला अस्...
कहानी
ऐसा मत करो मम्मी
भवानी प्रसाद ने प्रथम श्रेणी में हायर सेकेण्डरी परीक्षा पास की थी। उसके पिता सरयू प्रसाद माहौर गुना के जिला अस्पताल में बड़े बाबू थे। भवानी उनका इकलौता पुत्र था। शासकीय महाविद्यालय में उसका प्रवेश कराने वे खुद गए थे। स्कूल के जिन साथियों ने महाविद्यालय में प्रवेश लिया था , उनमें हरिचरण भी था , जो भवानी का घनिष्ट मित्र था। दोनों एक ही मोहल्ले में रहते थे , महाविद्यालय साथ-साथ जाते थे। एक दिन जब दोनों मित्र कैन्टीन की ओर जा रहे थे तब रास्ते में पडा एक पर्स उन्हें दिखा। हरिचरण ने लपक कर उसे उठा लिया। उसने पर्स खोला तो उसमें सौ-सौ रुपयों के नोट दिखे। प्रवेश - पत्र भी दिखा। उसने भवानी से कहा, ‘‘इसमें तो काफी माल है।'' इतने में दो लड़कियाँ भागती हुई आईं। एक ने कहा, ‘‘सुनिये , यह मेरा पर्स है। मुझे दे दीजिए। फीस जमा करनी है।'' भवानी बोला, ‘‘सबूत क्या है ?'' लड़की बोली, ‘‘ मेरा नाम अनीता है। आप प्रवेश -पत्र खोल कर देख लीजिये।'' हरिचरण ने प्रवेश फार्म की रसीद पढ़ी तो वही नाम लिखा था। उसने अनीता को पर्स देते हुए कहा, ‘‘ यदि यह किसी और को मिलता तो आपको पैसे नहीं मिलते।'' अनीता ने उसे धन्यवाद दिया और मुस्कुराती हुई फीस जमा करने चली गई।
भवानी और हरिचरण कैन्टीन में जाकर बैठ गए। भवानी बोला यार तुम्हें उसका पर्स इतनी जल्दी नही देना था। थोड़ा परेशान करते उसे । हरिचरण ने कहा परेशान करना ठीक नहीं होता। वह रो-रोकर अपनी सहायता की पुकार लगा सकती थी, प्राचार्य से शिकायत कर सकती थी। एक सीन क्रिएट कर सकती थी। मैंने उस स्थिति से अपने को बचाया है। अब वे लोग हमको लम्पट नही समझेंगी और कक्षायें प्रारम्भ होने पर यदि वे हमारे ही सेक्शन में होंगी तो दोस्ती करने मे कोई कठिनाई नहीं होगी।
भवानी चाय का आदेश देने के लिए जाने वाला था , तभी वे दोनो लड़कियाँ कैन्टीन मे प्रविष्ट हुईं । दरवाजे के पास रुक कर उन्होंने सीट्स का जायजा लिया , फिर धीरे-धीरे चलीं और उस टेबल के पास पहुँची , जहाँ हरिचरण और भवानी बैठे थे। अनीता ने कहा, ” क्या हम यहाँ बैठ सकती हैं ? कहीं कोई सीट खाली नहीं है।“
‘‘स्वागत है।'' भवानी बोला, ‘‘बैठिए।'' वह उठकर चाय का आदेश देने काउंटर तक गया। अनीता ने हरिचरण से पूछा, ‘‘ आप तो वही है न जिसे मेरा पर्स मिला था।''
‘‘ आपने पहचानने में कोई भूल नहीं की ।''
‘‘तो चाय मेरी तरफ से होगी''
‘‘चाय का आर्डर देने भवानी गया है। किसकी तरफ से होगी यह बाद में तय हो जायेगा।''
भवानी लैाट आया था। बैठते ही बोला, ‘‘क्यों न हम लोग परिचित हो लें। मेरा नाम भवानी प्रसाद माहौर है। मैंने बी. ए. प्रथम भाग में प्रवेश लिया है।''
उसके मित्र ने कहा, ‘‘ मेरा नाम हरिचरण है। मै भवानी प्रसाद का सहपाठी हूँ।''
जिस लड़की का पर्स हरिचरण को मिला था , उसने कहा, ‘‘ मेरा नाम अनीता है... अनीता माहौर । मैंने बी. ए. भाग एक में प्रवेश लिया है।'' उसकी सहेली ने कहा, ‘‘ मेरा नाम राधिका तिवारी है। मैंने भी उसी कक्षा में प्रवेश लिया है, जिसमें अनीता ने ।''
‘‘यह अच्छा संयोग है कि इस मित्र युगल में एक माहौर और एक पंडित है और आप लोगो मे भी ऐसा ही है।'' भवानी ने अनीता से कहा। अनीता ने कोई उत्तर नहीं दिया। थोड़ी देर कोई कुछ नही बोला। वेटर चाय - समोसे लेकर आ गया था। खान-पान शुरू हो गया था। एकाएक अनीता को ठसका लगा , उसका हाथ हिला ,हाथ का कप छलका और चाय उसके कुर्ते पर गिरी। अनीता ने चाय के धब्बे को गिलास के पानी से गीला कर रूमाल से पोंछा। चाय खत्म हो गई। वेटर बिल लेकर आया तो हरिचरण ने जेब में हाथ डाला। अनीता ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘ पेमेन्ट मैं करूँगी। आपने मेरा पर्स लौटाया उसके एवज में।'' उसने बिल चुका दिया।
चारों व्यक्ति कैन्टीन के बाहर आए। कुछ दूर तक साथ चले , फिर लड़के आगे बढ़ गए और लड़कियाँ पीछे छूट गईं। कुछ कदम चलने के बाद लड़के रुके। भवानी लड़कियों से बोला कल की चाय मेरी तरफ से होगी।
‘‘कल तो आने दीजिए ‘‘ अनीता ने कहा और साइकिल स्टेण्ड की ओर बढ़ गई।
महाविद्यालय में कक्षायें चालू हो गई थीं। चारों को एक ही सेक्शन आवंटित हुआ था। प्रारम्भिक चरण में सभी पीरियड्स नहीं लगते थे। कभी-कभी तो एक ही पीरियड लगता था। विद्यार्थी घूम फिर कर चले जाते थे। ऐसे ही एक दिन भवानी और हरिचरण कैन्टीन में गए। भीड़-भाड़ अधिक थी। दोनों कोने में एक चार कुर्सियों वाली टेबल की कुर्सियों पर बैठ गए। भवानी को अनीता की प्रतीक्षा थी। इतने में एम. ए के दो छात्र अजय और नरेश वहाँ पहुँचे और उन खाली कुर्सियों पर बैठने लगे। और कोई सीट खाली नहीं थी। भवानी ने बैठने से रोका और कहा, ‘‘ मेरे मित्र आने वाले हैं आप कोई और जगह देख लें।'' ‘तड़ाक' एक चाँटा भवानी की कनपटी पर पड़ा। ‘‘साला फर्स्ट इयर फूल हमें बैठने नहीं देगा ''
अजय ने दूसरा चाँटा मारना चाहा तो भवानी ने माफी माँगी और हरिचरण के साथ उठकर वहाँ से चल दिया। एक लड़के ने कहा सस्ते छूट गए अजय दादा से। बाहर आकर भवानी बोला, ‘‘ साले ने बहुत जोर से चाँटा मारा।''
‘‘चलो अब घर चलें। तुमसे पहले ही कहा था कि घर चलो , लड़कियों के चक्कर मे मत पड़ो। अच्छा हुआ कि वे दोनों नहीं आईं।''
‘‘पंडित जी घर में पंडिताइन हैं। इसलिए लड़कियों के चक्कर में न पड़ने का उपदेश दे रहे हो। मै लड़कियों के नहीं , लड़की के चक्कर में हूँ। अनीता जैसी गोरी , मृग नयनी , पतली कमर वाली उन्नत उरोजा कोई लड़की देखी तुमने ? मै उस पर फिदा हूँ। मेरी बिरादरी की भी है वह। उससे जुड़ने में तुम्हें मेरा साथ देना चाहिये।''
‘‘तुम अनीता पर फिदा हो और मैं तुमने उसकी सुन्दरता का जो वर्णन किया उस पर फिदा हूँ। तुमने उसका चौड़ा मुँह नहीं देखा , विधाता की कैंची से जो कुछ ज्यादा ही कट गया। जब वह हँसती है या बात करती है, तब कैसी लगती है।'' हरिचरण ने भवानी का मन फेरना चाहा।
‘‘हरिचरण , पूरे शरीर को एक इकाई के रूप में देखना चाहिए। उसके काले लम्बे बाल , कलाकारों जैसी उँगलियाँ , पाँवों की समानुपातिक लम्बाई और मंथर चाल के साथ जोड़ कर उसके मुँह की चौड़ाई अच्छी लगने लगती है। पंडित जी , मेरी सहायता करो।''
‘‘ठीक है दोस्त , मै तुम्हारे साथ हूँ। जो बनेगा अवश्य करूँगा। तुम घर में कोई आयोजन कराओ , जिसमें अनीता और उसके परिवार को बुलाओ।''
दोनों दोस्त साइकिलें लिए पैदल चल रहे थे और बात करते हुए कॉलेज से कोई सौ मीटर दूर बाजार के मार्ग पर पहुँच गए थे। उन्होंने देखा कि दोनों लड़कियाँ एक साइकिल मैकेनिक की दुकान के आगे खड़ी हैं वे दोनों तेज चलकर लड़कियों के पास पहुँच गए। अनीता की साइकिल का पंक्चर ठीक होने में अधिक समय लग रहा था। राधिका को जाने की जल्दी थी , इसलिए दोनों लड़कों के वहाँ पहुँचते ही वह अनीता से अनुमति लेकर चली गई । उसके जाने के बाद तीनों व्यक्ति आपस में कोई बात शुरू कर ही रहे थे कि अजय दादा आ धमके। आते ही उसने दबंग आवाज से पूछा, ‘‘क्या माजरा है ?'' उसने तीखी निगाहों से तीनों को देखा। लड़की पर वे निगाहें अटक गईं।
हरिचरण ने उत्तर दिया, ‘‘ कुछ नहीं भाई साहब। यह जेलर साहब की बहिन हैं। इनकी साइकिल में काम हो रहा है। भवानी इनका रिश्तेदार है और मैं भवानी का मित्र हूँ।''
‘‘ओ के'' अजय दादा ने अनीता को देखते हुए कहा। ‘‘मै छात्र-संघ के अध्यक्ष का चुनाव लड़ूंगा। तुम लोग मेरा प्रचार करना। तुम लोग फर्स्ट इयर में हो न , मुझे अधिक से अधिक वोट दिलाना।''
उसने अनीता से पूछा - ‘‘आपका नाम क्या है ?''
‘‘अनीता'' उसकी ओर देखते हुए अनीता ने उत्तर दिया।
‘‘ अच्छा नाम है। आप फर्स्ट इयर की लड़कियों के वोट दिलायेंगी ''
‘‘ अवश्य'' पूरी कद काठी के गोरे चिट्टे अजय दादा को अनीता ने आश्वस्त किया।
‘‘ओ के आपको कोई परेशान करे तो मुझे बतायें '' कहकर अजय चला गया।
‘‘यह कॉलेज का दादा है। इसका नाम है अजय। सीनियर स्टूडेन्ट है। इसकी दादागिरी से बहुत डरते है सब।'' हरिचरण ने अनीता की जिज्ञासा को शांत किया । साइकिल ठीक हो गई थी। सुधराई देकर अनीता चलने को हुई तो भवानी बोला, ‘‘मै आपको छोड़ दूँगा।'' वह अनीता के साथ चला गया और हरिचरण अपने घर।
महाविद्यालय में छात्र - संघ के चुनाव सम्पन्न हो गए थे। अजय दादा अध्यक्ष पद पर चुने गए थे और अनीता कक्षा प्रतिनिधि बनी थी। भवानी ने अनीता को जिताने में बहुत काम किया था। फिर भी अनीता उत्सुक रहती थी अजय से मिलने के लिए। चुनाव में उसका सम्पर्क अजय से बढ़ गया था। अध्यक्ष पद के चुनाव में हारे हुए एक अन्य दादा को हार की बड़ी चोट लगी थी। वह अजय को सबक सिखाने का जाल बुनने लगा।
छात्र -संघ के शपथ समारोह का दिन आया। महाविद्यालय के प्रांगण में शामियाना तन गया था। ऊँचा मंच बनाया गया था और बहुत सुन्दर बैठक व्यवस्था की गई थी । एक पूर्व मंत्री और देश के प्रसिद्ध नेता शपथ विधि सम्पन्न कराने आये थे । वे दो सचिवों को शपथ दिला चुके थे। जब तीसरा नाम पुकारा जा रहा था , उसी समय कुछ हथगोले शामियाने की झालर में लगकर गिरे और फटे।
शामियाने में धुआँ भर गया, भगदड़ मची और कुछ लोग घायल हो गए। मंच पर फेंका गया हथगोला फटा नहीं। प्राचार्य , प्राध्यापक , छात्र संघ के पदाधिकारी आदि सब बदहवास थे। ऐसे माहौल में मुख्य अतिथि ने उद्घोषक से कहा कि वह लोगों से बैठने की अपील करे और यह सूचना दे कि शपथ विधि पुनः शुरू होने वाली है।
पुलिस वाले लोगों को शांत करने और घायलों को अस्पताल भेजने में जुट गए। पुलिस इंस्पेक्टर ने हथगोला फेंक कर भागते हुए लड़कों मे से दो को पकड़ लिया और उन्हें कोतवाली भेज दिया। थोड़ी देर में शपथ का कार्यक्रम फिर प्रारम्भ हुआ। मुख्य अतिथि ने अध्यक्ष को अलग से शपथ दिलाई, शेष सभी पदाधिकारियों को सामूहिक शपथ दिलाकर अपना उद्बोधन दिया । उन्होंने कहा , ‘‘प्रजातांत्रिक व्यवस्था में छात्र संघ के गठन का महत्वपूर्ण स्थान है। छात्र संघ के निर्वाचित पदाधिकारियों को मेरी बधाई और आशीर्वाद है। हमारी संस्कृति में आदर्श शिक्षा वह मानी गई है, जो विमुक्त करती है या ‘ विद्या सा विमुक्तये।' विमुक्ति का क्षेत्र व्यापक है। मै मानता हूँ कि अतीत के बंधन से मुक्त करके जो वर्तमान में जीना सिखाये वही सही शिक्षा है। जो बीत गई सो बात गई। शिक्षा संस्थाओं में ज्ञान- विज्ञान और चरित्र-निर्माण के तत्वों की वर्षा होती है। जो अपनी ग्राहकता - गागर औंधी रखता है, वह भीगती तो है लेकिन भरती नहीं और जो गागर सीधी और खुले मुँह की होती है, वह भीगती भी है और भरती भी है। विद्यार्थी अपनी गागर खुली रखें और ज्ञान और आदर्श के जल से भरने दें। वे हमारे देश के भविष्य के निर्माता हैं। मुझे बुलाने के लिए प्राचार्य, अध्यक्ष और सभी सम्बंधितों को धन्यवाद ।''
छात्र संघ के अध्यक्ष ने आभार व्यक्त करते हुए कहा ,‘‘चुनाव में हारे हुए लोग शपथ समारोह में ऐसी घिनौनी हरकत करेंगे यह अनुमान नहीं था। जिस मानसिकता के कारण यहाँ बम कांड किया गया वह देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था और संस्कृति के लिए बहुत घातक है। मै अपील करता हूँ कि सभी इसकी निन्दा करें और पुलिस की जाँच में सहयोग करें। मैं पुलिस से अनुरोध करता हूँ कि किसी को बख्शा न जाय।''
‘‘मै बहुत आभारी हूँ माननीय मुख्य अतिथि जी का। उन्होंने हमें समय देकर अनुगृहीत किया एवं धुआँधार विस्फोट और भगदड़ में उन्होंने धीरज की पराकाष्ठा का कुलीन परिचय दिया। उन्होंने उखड़े हुए कार्यक्रम को जमाया। इसके साथ ही मै प्राचार्य , प्राध्यापकों , अतिथियों और सभी विद्यार्थियों के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ।''
कार्यक्रम का समापन घोषित होने के बाद चाय पार्टी हुई। पार्टी में अजय लड़कियों के पास गया और बोला, ‘‘आप लोग घबरायें नहीं। जो छात्रायें दूर रहती हैं, उनके साथ मै किसी को भेज दूँगा। अनीता जी आपको छोड़ने में चलूँगा।''
‘‘भाई साहब मुझे लेने के लिए तो जेल का एक अर्दली आया हैं '' अनीता ने उत्तर दिया।
‘‘फिर भी मै आपके साथ चलूँगा और जेलर साहब से यह निवेदन करूँगा कि पुलिस ने जिन छात्रों को गिरफ्तार किया है वे यदि जेल में भेजे जाँय तो उनके प्रति सख्ती बरती जाये।''
समय बीता और महाविद्यालय का वातावरण सामान्य हो गया । अनीता , राधिका , भवानी और हरिचरण रोज़ ही मिलते थे। कभी - कभी अनीता छात्र-संघ के काम बताकर अजय दादा के साथ चली जाती थी। इस बीच भवानी के घर में सत्यनारायण की कथा का आयोजन हुआ था। सरयू बाबू ने जेलर को सपरिवार बुलाया था। उस समय हरिचरण, भवानी और अनीता की खूब बातें हुई थीं । हरिचरण ने अनीता को बताया था कि भवानी उसके प्रेम में दीवाना है। अनीता मुस्कुराई थी । कथा - भोज में भवानी ने अनीता पर जिस प्रकार ध्यान दिया था उसे जेलर की पत्नी ने ध्यान से देखा था। भोज के बाद जब सरयू बाबू आराम से बैठे तब हरिचरण ने उन्हें अनीता के प्रति भवानी के अतिशय लगाव की सूचना दी थी । सरयू बाबू ने उसे गम्भीरता से नहीं लिया था।
अनीता के सम्बन्ध अजय से निकटतर हो गए। उसकी भाभी ने अनेक बार उन दोनों को पार्क में देखा था । महाविद्यालय के स्नेह सम्मेलन के समय उन दोनों की निकटता चरम अवस्था में पहुँच गई थी जब दिसम्बर की ठंडी रात में मिलन - रस का प्रवाह अनीता को ठंडा न लगकर गरम लगा था। कुछ दिनों के बाद वह अजय से कतराने लगी और चिन्ता करने लगी - पढ़ाई की या कोई और ।
भवानी परीक्षा की तैयारी में आलस कर रहा था। पढ़ाई में दिन - रात एक करने वाले भवानी का प्रमादी आचरण सरयू बाबू की चिन्ता का विषय बन गया। उसने हरिचरण को बुलाकर भवानी के बारे में बात की। हरिचरण ने उन्हें भवानी की शादी कर देने की सलाह देते हुए कहा , ‘‘वह पढ़ने वाला लड़का है। यदि उसकी शादी हो जायेगी तो उसका मन पढ़ाई में पहले जैसा ही लग जायगा।''
‘‘अभी मन बहका है। वह कुछ करने लगे तब मैं शादी कर दूँगा।'' सरयू बाबू ने कहा
‘‘अंकल तब तक तो बहुत देर हो जायगी और वह अपने को संभाल नहीं पायेगा। उसका भविष्य प्रभावित होगा।''
‘‘अभी तुम उसे समझाओ। शादी से भी ध्यान बँटेगा।''
‘‘मेरा अनुभव ऐसा नहीं है ! शादी के बाद पढ़ने में बाधा नहीं आती है।''
‘‘देखेंगे'' सरयू बाबू ने कहा और दफ्तर चले गए।
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दो महीने बाद। शयन-कक्ष में जेलर से उसकी पत्नी ने कहा ‘‘आपसे मैं कई दिनों से एक गम्भीर मसले पर बात करना चाह रही थी। यह सोचकर रह जाती थी कि कहीं आप भड़क न उठें। आज मै आपसे वह बात कहना चाहती हूँ। आपको मेरी कसम है। आप बात सुनकर अनीता को प्रताड़ित न करें। आप समस्या को शांति से सुलझायें।'' जेलर के आश्वस्त करने पर उसने बताया कि अनी के दो महीने चढ़ गए। उसकी चाल ढाल को मै बहुत दिनों से देख परख रही थी । कल बहुत प्यार से समझाने के बाद अनी ने बताया कि सरयू बाबू के बेटे भवानी से उसका प्रेम है। बिना बाप की बेटी के ऊँच -नीच का दोष समाज हमारे ऊपर मढ़ देगी।'' यह समझा कर उसने जेलर को सलाह दी कि वह सरयू बाबू से बात करे और जितनी जल्दी हो सके अनी की शादी भवानी के साथ कर दी जाय।
दूसरे दिन सबेरे ही जेलर सरयू बाबू के घर गया उनसे जेलर का काम पड़ता था। सजातीय होने से दोनों के सम्बन्ध अच्छे थे। दोनो में बहुत लम्बी बात हुई थी। सब तरह की चर्चा के बाद जेलर ने सरयू बाबू को संध्या समय सपत्नीक अपने घर आमंत्रित किया था । शाम को जेलर के घर में सरयूबाबू और उनकी पत्नी की खूब आवभगत हुई थी। चाय नाश्ता परोसने का काम अनीता को दिया गया था। सरयूबाबू ने नजर भर के अनीता की सुन्दरता को देखा था। भवानी की माँ ने उस गोरी चिट्टी बाला से बहुत बातें की थीं। शादी तय हो गई थी और यह भी निश्चित हो गया था कि शादी यथाशीघ्र सम्पन्न हो ताकि दोनों को परीक्षा की तैयारी का समय मिल जाय।
पन्द्रह दिन में अनीता - भवानी की शादी हो गई थी। भवानी बेहद खुश था और अनीता निश्चिंत थी। कुछ दिन भवानी घर से बाहर नहीं निकला। एक दिन हरिचरण ने उसके घर जाकर उसे समझाया । दोनों पढ़ाई में जुट गए थे। जब परीक्षा परिणाम आया तो भवानी उत्तीर्ण हुआ था ,अनीता नहीं हुई । विवाह के सात महीनों के बाद अपनी कोख से अनीता ने एक पुत्र को जन्म दिया था। उसका महाविद्यालय जाना बन्द हो गया था। बच्चे की देखभाल और घर के कार्यों में उसका समय व्यतीत होता था। भवानी उसके इशारों पर नाचता था और अपनी चतुराई से उसने सास - ससुर को भी अपनी मुट्ठी में कर रखा था।
भवानी और हरिचरण संयुक्त अध्ययन करते थे। दोनों ने बी. ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। उसके बाद हरिचरण ने हिन्दी में एम. ए. की उपाधि ली और भवानी ने अर्थशास्त्र में । दोनों लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में जुट गए थे। दो साल बाद लोकसेवा आयोग की परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ । भवानी नायब तहसीलदार के पद के लिए चुना गया था। और हरिचरण का चयन सेल्स टेक्स इंस्पेक्टर के लिए हुआ था। इस बीच अनीता ने एक पुत्री को जन्म दिया था।
भवानी की पद स्थापना भिण्ड जिले में हुई थी और हरिचरण मुरेना के सेल्स टैक्स बैरियर पर नियुक्त हुआ था। भवानी एक साल भिण्ड जिले के विभिन्न स्थानों में रहा इसके बाद उसका पदांकन जिला मुख्यालय में हो गया। उसे प्रायः अनीता की याद सताती थी। भिण्ड में उसे सरकारी आवास नहीं मिल सका। उसने एक निजी मकान किराये पर ले लिया। मकान दो मंजिला था। ऊपर की मंजिल में खाद्य निरीक्षक केदार सिंह भदौरिया अकेला रहता था। नीचे की मंजिल में भवानी पहुँच गया था। मकान की व्यवस्था कर वह गुना से अनीता और बच्चों को ले आया था। भवानी ओर केदार में मित्रता हो गई थी। केदार नायब साहब की सेवा करने को तैयार रहता था। भवानी ने अनीता का परिचय केदार से करा दिया था। बच्चों का स्कूल में प्रवेश कराने के लिए भवानी और अनीता के साथ केदार भी गया था। वह राशन की व्यवस्था कर देता था और अनीता को बाजार घुमा लाता था। भवानी उस मकान में दो साल रहा था। इस अवधि में अनीता और केदार के सम्बन्ध बहुत मधुर हो गए थे । अनीता का पुत्र विवेक केदार से चिढ़ता था। उसने एक दो बार माँ से केदार को घर में न बुलाने के लिए कहा था।
भवानी का तबादला मुरेना हो गया था। हरिचरण ने अपने पड़ोस में उसे मकान दिलाया था। एक साल बाद दोनों मित्र बिछुड़ गए। भवानी दतिया चला गया था और हरिचरण ग्वालियर। ग्वालियर में रहते हुए हरिचरण ने शिवपुरी में एक मकान बनवा लिया था। भवानी को यह मालूम हो गया था। एक लम्बे समय बाद जब दोनों मिले तब भवानी ने हरिचरण से शिवपुरी में बसने की इच्छा प्रकट की थी। उसके पिता रिटायर होकर गाँव में चले गए थे और वह गाँव में रहना नही चाहता था। हरिचरण ने नव निर्मित कॉलोनी में भवानी को एक बड़ा प्लाट दिला दिया था। पदोन्नति के साथ जब भवानी का स्थानांतरण शिवपुरी जिले में हुआ तब उसके प्लाट पर निर्माण कार्य हो सका था। मकान निर्माण के समय ही अनीता ने एक और पुत्र को जन्म दिया।
भवानी ने निर्माण कार्य देखने के लिए कुछ दिनों की छुट्टी ले ली थी। उसके प्लाट के ठीक सामने उसका एक पूर्व सहपाठी अनिल सक्सेना रहता था। प्रेम प्रसंग असफल हो जाने के बाद उसको शादी से चिढ़ हो गई थी। वह महिला बाल विकास अधिकारी था। हरिचरण की बदली भी ग्वालियर से शिवपुरी हो गई थी। जब भवानी की छुट्टी पूरी हो गई , तब उसने अपने दोनों मित्रों से आग्रह किया था कि वे निर्माण कार्य देख लिया करें । वह तो करेरा से आता ही रहेगा। दोनों मित्रों ने उसकी सहायता की थी।
तहसीलदार भवानी ने गृह प्रवेश के भोज में कुछ खास लोगों को ही बुलाया था। जब आमंत्रितों की दावत हो चुकी , तब तीनों मित्र खाने के लिए बैठे। अनीता बच्चे को लिए मेज के सामने खड़ी थी। अनिल ने अनीता पर लगनिया निगाह डालते हुए कहा, ‘‘ आप भी बैठ लीजिए।'' ‘‘ नहीं अभी नहीं। बाबूजी और अम्मा जी को खाना खिलाके खाउँगी। वे लोग पूजा कर रहे हैं।'' अनीता का बड़ा बेटा विवेक किशोर हो गया था। वह खाना परोस रहा था और अनीता यह देख रही थी कि किसे किस चीज की जरूरत है।
खाते हुए अनिल ने कहा, ‘‘ मैडम आप माँ के रूप में अच्छी लगती हैं।''
उसके कथन में कमी पाकर हरिचरण बोला, ‘‘ केवल माँ के रूप में ?''
‘‘बाकी तो तहसीलदार साहब बतायेंगे '' अनिल बोला
अनीता ने हरिचरण की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘‘ भाई साहब तो हमारी शादी के सूत्रधार थे।'' खाने के साथ उन लोगों में बातचीत चलती रही। विवेक काफी कुछ समझने लगा था। उसे अनिल सक्सेना के कथन अच्छे नहीं लगे। भोजन समाप्त कर अनिल ने अनीता की गोद से बच्चे को लिया। ऐसा करते समय उसका हाथ अनीता के अंग से छू गया था। सौरी कहकर वह बच्चे को खिलाने लगा। हरिचरण ने भी शिशु को खिलाया और दोनों ने उसकी कुरती में कुछ नोट खुरस कर अनीता को दे दिया।
सरयू बाबू रिटायर होकर गाँव में खेती कराने लगे थे। दो महीने से भवानी के पास थे। गृह प्रवेश होने के बाद वे चले गए थे। भवानी की पद स्थापना नरवर में थी। वह रोज आता जाता था। कभी - कभी उसे नरवर में रात में रुकना पड़ता था। भवानी के घर में अनिल का आना - जाना बना रहता था। एक दिन चाय के समय अनिल भवानी के घर पहुँचा। उसने भवानी से कहा कि उसके कार्यालय ने एक महिला स्वास्थ्य प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया है। उसके समापन समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में अनीता जी शामिल हों तो अच्छा रहेगा। भवानी और अनीता ने उसे स्वीकृति दे दी थी। उसने ‘धन्यवाद' कहा और वह चला गया। उसके जाने के वाद अनीता ने अपने भाषण के विषय के बारे में भवानी से सलाह ली।
दूसरे दिन दोपहर बारह बजे अनिल जीप लेकर अनीता को लेने पहुँचा । वह जब तक तैयार हुई तब तक उसने बच्चे को खूब प्यार किया। उसे बच्चे को प्यार करते देखकर अनीता बहुत खुश हुई थी। अनिल ने अनीता को जीप में बैठाया और चल दिया। रास्ते में उसने कहा आपके साथ इस तरह बैठकर बहुत अच्छा लग रहा है।
शिविर स्थल पर उनके पहुँचते ही कार्यक्रम प्रारम्भ हो गया । औपचारिकतायें पूरी होने के बाद मुख्य अतिथि का परिचय देते हुए अनिल ने कहा, ‘‘ हमारी आज की मुख्य अतिथि अनीता माहौर जितनी सुन्दर हैं उतनी ही व्यवहार - कुशल हैं । ये योग साधना करती हैं और अपने को शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ रखती हैं। ये तीन बच्चों की माँ है। लेकिन देखने में ऐसी नहीं लगतीं । ऐसी मुख्य अतिथि से आपको बहुत कुछ मिलेगा। मै उनका स्वागत करता हूँ और उद्बोधन देने के लिए उनसे निवेदन करता हूँ।''
अपने उद्बोधन में अनीता में महिलाओं से कहा, ‘‘ कि स्वस्थ रहने के लिए जितना जरूरी उचित खान - पान है। उतना ही जरूरी है कोई व्यायाम करना और उतना ही जरूरी है सही दिशा में सोचना । प्रेम का बर्ताव करना और उदार होगा। छोटी - छोटी बातों को दरगुजर करना।'' अंत में उसने अनिल सक्सेना को धन्यवाद दिया था। उसके भाषण के बाद सभा का समापन घोषित हुआ। चाय हुई फिर अनिल उसे घर ले गया। दरवाजे के सामने जीप रोक कर उसने कहा, ‘‘एक मिनट को मेरा घर देख लीजिए।''
‘‘अवश्य'' कहती हुई वह जीप से उतरी। अनिल ने जल्दी से ताला खोला और अनीता के दरवाजे के अन्दर होते ही द्वार बन्द कर दिया । अनीता ने बैठक और सोने के कमरे के रख रखाव की तारीफ की । उसने पूछा, ‘‘ यह डबल बैड क्यों ? आप तो अकेले हैं।''
‘‘बाजार में डबल बैड ही मिलते हैं आप उस पर बैठें तो उसका होना सार्थक हो जायेगा।''
‘‘ बैठने से क्या होगा'' कहकर वह बैठ गई और बोली , ‘‘आपने शादी क्यों नहीं की ? आप जैसे आकर्षक व्यक्ति पर तो कोई भी लड़की फिदा हो जाती।''
‘‘ मुझे उसका गुलाम बनना पड़ता जैसे भवानी आपका बन गया।''
‘‘ सभी गुलाम नहीं बनते हैं। आप मेरे बच्चे को प्यार करते हैं तो मुझे अच्छा लगता है।''
‘‘ आप बुरा न माने तो एक बात कहूँ ''
‘‘आप कहें मैं बुरा नही मानूँगी।''
‘‘ मैं बच्चे के माध्यम से आपको प्यार करता हूँ। जब मैं उसे चूमता हूँ तो मेरी कल्पना में आपका गाल होता है।''
‘‘ आपको माध्यम की जरूरत नहीं है।''
इतना सुनते ही अनिल ने अनीता को चूम लिया । उसने भी अनिल को चूमा और बोली अभी चलते हैं। बच्चे स्कूल से आने वाले होंगे। वह चली गई । अनिल उसको जाते हुए देखता रहा और थोड़ी देर बाद दरवाजा बन्द कर जीप लेकर कहीं चला गया।
तहसीलदार भवानी प्रसाद माहौर का तबादला कोलारस हो गया था। अब उनका रोज शिवपुरी आना-जाना आसान हो गया था। इस तबादले की खुशी में अनिल ने भवानी को चाय पिलाई थी। अनिल खुद चाय बनाता था। उसका नौकर देर से आता था। यह बात भवानी ने अनीता को बताई तो उसने कहा आप उनसे कहिये कि रोज सुबह चाय यहाँ पी लिया करें। भवानी ने जाकर अनिल से कहा कि मैडम चाहती हैं कि कल से आप रोज चाय हमारे घर में पिया करें। दूसरे दिन से वह भवानी के साथ चाय पीने उसके घर जाने लगा। चाय के समय की बातचीत में अनिल के तर्क-वितर्क, उसका चाय पीने का ढंग, मुस्कुराना , हँसना और बच्चे को खिलना अनीता को बहुत अच्छा लगता था। वह मुग्ध हो जाती थी।
एक रात भवानी कोलारस से नहीं आया था। अनिल के फोन की घंटी बजी। उसने रिसीवर उठाया तो अनीता कह रही थी, ‘‘ आज वे नहीं आए। बच्चे सो गए हैं । तुम क्या कर रहे हो ?''
आप से तुम होने के निहितार्थ को अनिल समझ गया। उसने पूछा, ‘‘ क्या डर लग रहा है मैडम ? ''
दूसरे सिरे से आवाज आई ‘‘ ये मैडम कहना छोड़ो। हमारी आपस की बात चीत में मुझे अनी कहा करो और आप की जगह तुम। मैंने इसकी शुरूआत कर दी है।''
अनिल ने कहा , ‘‘अच्छा मै आता हूँ।''
उसने कपड़े नहीं बदले और चल दिया। अनीता द्वार खोले खड़ी थी। अनिल के अन्दर होते ही उसने दरवाजा बन्द कर दिया। अनिल ने उसके गले में हाथ डाला और उसके साथ बैडरूम की ओर चला। कोई देर किए बिना वे आलिंगनबद्ध हो गए। उसी समय बच्चा रोया । अनीता ने एक हाथ से उसे थपथपाया और दूसरे से अनिल की पीठ सहलाती रही। अनिल ने अलग होते हुए अनीता को चूमा और बोला , ‘‘अब मुझे चलना चाहिए। विवेक भी जाग सकता है।''
उस रात ने अनिल के काम - ज्वर को शांत किया किन्तु अनीता की कामाग्नि में जैसे घी पड़ गया। उसने दो एक बार और अनिल को बुलाया था। एक दिन तो उसने हद कर दी थी। रोज दो बजे अनिल लंच के लिए दफ्तर से घर आता था। जैसे ही अनिल की जीप आई वह घर से निकली और अनिल के घर में घुस गई। उसने अनिल से कहा, ‘‘ आज तुम्हारा उबल बैड सार्थक करने आई हूँ ।''
‘‘ अभी दोपहर में। अभी तो मुझे खाना खाना है।''
‘‘वह बाद में'' कहकर अनीता अनिल से लिपट गई। अनीता के दोनों बडे़ बच्चे स्कूल से पाँच बजे के बाद घर पहुँचते थे। उस दिन विवेक के स्कूल के एक अध्यापक की मृत्यु के कारण स्कूल की छुट्टी दो बजे कर दी गई थी । दोस्तों से मिलकर जब विवेक घर पहुँचा तब अनीता घर में नहीं थी। उसने नौकरानी से पूछा तो वह बोली ,‘‘बाईसाब किसी काम से गईं , जल्दी आने का कहकर गई हैं।''
विवेक घर के बाहर आया। अपनी मोटर बाइक में वह किक लगाने वाला ही था कि उसे अनिल के कमरे की खिड़की से माँ के खिलखिलाकर हँसने की आवाज आई। वह खुली हुई खिड़की के पास गया। उसने अन्दर झाँका तो वहाँ का दृश्य देखकर उसका खून खौल गया। अनीता अनिल से चिपटी थी और अनिल उसे बेतहाशा चूम रहा था। विवेक ने अपने बाल नोंच लिए और पत्थर उठाकर जोर से अनिल के कमरे की दीवार पर मारा। उसने मोटर बाइक में किक लगाई और तेजी से भागा। वह जाने कहाँ - कहाँ निरुद्देश्य घूमता रहा। रात में आठ बजे घर पहुँचा और चुपचाप कमरे में चला गया।
थोड़ी देर बाद अनीता ने विवेक और नन्दिता पुत्री को खाने के लिए बुलाया। नन्दिता तो आ गई विवेक नहीं आया खाने के लिए। नन्दिता को खाना देकर अनीता विवेक को बुलाने कमरे में गई। विवेक बहुत तनाव ग्रस्त था। अनीता ने पूछा ‘‘ क्या बात है, बेटा किसी से झगड़ा हुआ क्या ?''
‘‘ मुझे बेटा मत कहो '' विवेक ने कठोर स्वर में कहा।
‘‘तो मुझे बात तो बता। तू ऐसा तनाव ग्रस्त क्यों हो गया ?'' वह बहुत देर तक पूछती रही , किन्तु विवेक ने कुछ नहीं कहा। नन्दिता खाना खाकर कमरे में पहुँच गई । उसे नींद आ रही थी। उसने दोनों से बाहर जाकर बात करने के लिए कहा । अनीता विवेक का हाथ पकड़ कर उसे भोजन कक्ष में ले गई। उसने फिर पूछा ‘‘बता क्या बात है।''
‘‘मै पापा को बताउँगा।''
‘‘ पापा आज नहीं आयेंगे''
‘‘ तो जब आयेंगे तब बताउँगा ''
अनीता को कुछ क्रोध आ गया। उसने डांट कर कहा ‘‘बता क्या बात है। तू इतना बदतमीज हो गया कि मेरे इतना पूछने पर भी कुछ नहीं कहता।''
‘‘ मै तो बदतमीज ही हूँ आप तो बेवफा हैं।''
‘‘मैंने किससे बेवफाई की ? तू बहुत बढ़ चढ़ कर बात करने लगा है। आने दो पापा को , मै तुम्हारी शिकायत करूँगी। बेहूदा कहीं का।''
‘‘आने दो उन्हें। मै उन्हें बताउँगा कि जिस औरत को आपने सोने से लाद दिया है। वह कितनी बेवफा है।''
अनीता ने उसे एक थप्पड़ मारा , बोली ‘‘ माँ से इस तरह बात की जाती है ? बता क्या बेवफाई की मैंने ?''
‘‘आप की बेवफाई मैंने अनिल अंकल के कमरे की खिड़की से देखी है। मैं सबेरे चिल्ला - चिल्ला कर पापा को बताउँगा। मुझे आपको माँ कहते हुए शर्म आती है।''
अनीता सुनकर सन्न रह गई। उसने अपने को सँभाला और बड़े प्यार से बोली, ‘‘ तेरा नाम विवेक है। तू विवेक से काम ले। मुझे माफ कर दे। तू गुस्सा थूक दे। भविष्य में तू वैसा कुछ नहीं देखेगा या सुनेगा। खाना खा ले और आराम कर।'' अनीता ने उसके चेहरे और पीठ पर हाथ फेरा । उसने बड़े आग्रह से खाना खिलाया। खाना खाकर विवेक अपने कमरे में चला गया। अनीता उसके लिए दूध तैयार करने लगी । विवेक दूध पीकर सोने लगा।
देर रात हरिचरण के फोन की घंटी बजी। वह सोते से जागा। दूसरे छोर से आवाज आई, ‘‘ भाई साहब मै अनीता बोल रही हूँ। अचानक विवेक की तबियत बिगड़ गई है कोई ऊपरी हवा का चक्कर लगता है। आप किसी झाड़ फूँक वाले को ले आइये। जल्दी।''
‘‘ तबियत खराब है तो डाक्टर को लाता हूँ। ओझा क्या करेगा ? ''
अनीता का आग्रह किसी ओझा के लिए ही था। बड़ी मुश्किल से हरिचरण एक ओझा को खोज सका । उसे लेकर हरिचरण भवानी के घर स्कूटर से पहुँचा। उन लोगों ने कमरे में जाकर देखा कि विवेक बेहोश है और उसके मुँह से खून निकल रहा है। ओझा ने कहा इसे फौरन अस्पताल ले जाइये। कमरे में जाते समय हरिचरण ने खाने की मेज पर एक ढक्कन पड़ा देखा तो उसने उठाकर जेब में रख लिया। उस पर पॉइजन छपा था। उसने अनीता से कहा, ‘‘ इसे ऊपरी हवा नहीं है। मैं जीप से अस्पताल ले जाने के लिए अनिल सक्सेना से कहता हूँ। आप भवानी को खबर कर दें।''
हरिचरण ने अनिल को बुलाया। उसे सारी बात बताई। विवेक को जीप में डालकर अनिल अनीता के साथ उसे अस्पताल ले गया। हरिचरण पीछे - पीछे स्कूटर से गया। विवेक को एमरजेन्सी वार्ड में ले जाया गया। दो डाक्टरों ने उसकी जाँच की। जब जाँच चल रही थी उस समय भवानी पहुँच गया था। वह दौड़ता हुआ एमरजेन्सी वार्ड में पहुँचा। जाँच के बाद विवेक को मृत घोषित कर दिया गया।
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डॉ. परशुराम शुक्ल ‘विरही'
‘देवीपुरम' भारतीय विद्यालय मार्ग
शिवपुरी, (म.प्र.) 473551
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