रामवृक्ष सिंह का व्यंग्य - पान खाये सैयाँ हमारो

SHARE:

व्यंग्य पान खाये सैयाँ हमारो डॉ. रामवृक्ष सिंह तीसरी कसम सिनेमा में वहीदा जी पर फिल्माए गए इस गीत को जब हम बचपन में देखते थे तो मन में बड़ी ...

व्यंग्य

पान खाये सैयाँ हमारो

डॉ. रामवृक्ष सिंह

तीसरी कसम सिनेमा में वहीदा जी पर फिल्माए गए इस गीत को जब हम बचपन में देखते थे तो मन में बड़ी हूक-सी उठती थी। उस समय हमें पान खाना बहुत शानदार काम लगता था। इसी उमंग में हम बच्चे से युवा हो गए। फिर बच्चन जी पर फिल्माया गया गाना आया- खइके पान बनारस वाला। अब तो पक्का हो गया कि पान खाना बड़ी इज्जत अफजाई का काम है। परंपरागत रूप से भी हम हिन्दुस्तानियों ने पान को बड़ी हसरत की नज़र से देखा है। पहले राजा-महाराजाओं को कोई काम कराना होता था तो बड़े-बड़े ज्ञानी-ध्यानी और शूर-वीरों से भरी महफिल में पान का बीड़ा तश्तरी पर रखकर आगे बढ़ाया जाता था। जो व्यक्ति बीड़े को उठा लेता था, वह एक प्रकार से उस कठिन कार्य को करने का जिम्मा ले लेता था। इसी को बीड़ा उठाना कहते थे। पान की गिलौरी देकर लोग एक-दूसरे का सम्मान करते थे। बड़ी चीज थी पान।

यदि ऐसा न होता तो राजा-महाराजाओं, नवाबों और रईसों के यहाँ पान के शानदार, बेशकीमती डिब्बे, तश्तरियाँ और रकाबियाँ क्यों रखी जातीं? पान लगाने के लिए बाँदियों की फौजें न होतीं और खूब कीमती सुन्दर व भव्य उगलदान लिए हुजूर की पीक समेटने को बेताब उनके आगे-पीछे घूमते नौकरों का भी तब क्या काम रह जाता? इसीलिए हम कह रहे हैं कि बड़ी चीज थी पान। रहीम ने न जाने किस झक में कह दिया- रहिमन पानी राखिए। सच्चाई तो यह है कि पानी रखने का जमाना तो अब आया है, जब लोग बगल में बिसलरी की बोतल दबाए फिरते हैं, जबकि पान रखने की रवायत सदियों पुरानी है। बड़े-बड़े लोग अपने साथ नौकर रखते थे जो पान की संदूकची लिए हुजूर के पीछे-पीछे चलते थे। उनकी नकल में छोटे लोग भी अंटी में पान दबाए घूमते थे। जो काम ढेरों रुपया देकर भी न हो, उसके लिए बस एक बीड़ा पान काफी होता था। मैं खुद एक ऐसे पान वाले को जानता हूँ जो एक विकास प्राधिकरण के बाहर ठिलिया पर बैठता था। प्राधिकरण के बाबुओं को पान खिला-खिलाकर उसने ऐसा पटाया कि कुछ ही दिनों में प्लाटों का दलाल बन गया। देखते-देखते उसने शहर के कई इलाकों में बड़ी-बड़ी संपत्तियाँ पैदा कर लीं और आज कई करोड़ का मालिक है। उसके बड़े-बड़े शोरूम हैं। सब पान की महिमा है। इसीलिए तो हमारा सुझाव है कि रहीम मियां को कहना था-रहिमन पान खिलाइए, बिना पान सब सून। पान खिलाकर पाइए दिल्ली से रंगून।

नवाब और राजा-महाराजा चले गये। पान रह गया। उसकी शान में इजाफा करने के लिए लोगों ने गीत रच दिए-पान खाए सैयाँ हमारे। खइके पान बनारस वाला। लौंगा इलायची का बीड़ा लगाया। ..तो इसी खुमारी में हम एक दिन बच्चे से जवान हो गए। चार पैसे कमाने के लिए नौकरी की तो पोस्टिंग हुई दक्षिण में। वहाँ रहने के लिए मकान ढूंढ़ने जाएं तो जिसे देखो वही हमपर दरवाजा बंद कर ले। कारण? उनको यही संदेह होता कि यह ऊपी का भइया निश्चित रूप से पान खाता होगा और इधर-उधर, हर कोने-अँतरे में उसकी पिचकारी छोड़ता होगा। हमने उन्हें बहुत समझाया कि यह रईसी शौक नहीं पालते, कि हमारे पास रोटी खाने के तो पैसे ही नहीं हैं, पान की विलासिता हम कैसे पाल सकते हैं? तब जाकर कहीं किराए का कमरा मिला।

लेकिन तब से लेकर अब तक, लगभग पच्चीस साल बीतने के बाद भी हमें यह समझ नहीं आता कि लोग पान क्यों चबाते हैं? तात्विक दृष्टि से और भाषावैज्ञानिक दृष्टि से भी पान खाना तो मुहावरा ही गलत है। पान को लोग चबाते जरूर हैं, पर खाते कहाँ हैं? उससे अधिक तो थूकते हैं। तो क्यों नहीं इस पूरी कार्रवाई को लोग पान थूकने का नाम देते? लेकिन ऐसी तथ्यात्मक विसंगतियों से तो अपना समाज भरा पड़ा है। किस-किस का मुहावरा बदलेंगे?

लिहाजा पच्चीस साल से हम यही अनुसंधान कर रहे हैं कि पान में ऐसी कौन-सी गिजा है, जिसके लालच में लोग ढेरों पैसा खर्च करके (कहते हैं कि हैदराबाद में एक ऐसा पान है जो पाँच सौ रुपये का लगता है) चबाते हैं और फिर खाते या निगलते भी नहीं, बल्कि ऐसे ही, कहीं भी उगल देते हैं। यानी ढेरों रुपये का कचरा कर देते हैं।

पान की प्रमुख (और सबसे ठोस) सामग्री है सुपारी। अपने पिताजी को भी पान खाने का शानदार शौक रहा है। उनका बहुत बारीकी और गौर से निरीक्षण करके मैं अपनी पूरी जिन्दगी का यह निष्कर्ष दे रहा हूँ कि वह ठोस सामग्री यानी सुपारी पान चबाने वाले को अपने पौरुष-प्रदर्शन, वीरत्व को सिद्ध करने का साधन मुहैया कराती है। अक्खड़ स्वभाव का होने के कारण पिताजी की अक्सर लोगों से तनातनी हो जाती थी। और उसके ठीक बाद वे पान चबाने लगते। सुपारी की डलियों को वे ऐसे चबाते जैसे अपने प्रतिद्वंद्वी को ही चबा रहे हों। मुझे देखकर बड़ा अच्छा लगता। पिताजी किस तरह एक-एक के दर्प को पीस रहे हैं। सच कहें तो सुपारी ही पान का केद्रीय तत्व है, जैसे शरीर में आत्मा। सुपारी नहीं तो अच्छे से अच्छा बनारसी और मगही पान भी बेजान है। यही कारण है कि पहले राजा-महाराजा जो काम बीड़े से लेते थे, वही काम आज के राजा-महाराजा यानी भाई और अंडरवर्ल्ड के डॉन लोग सुपारी से लेने लगे हैं। किसी को खल्लास करना हो तो भाई लोग सुपारी देते या लेते हैं। यानी अब वे बात की क्रक्स तक पहुँच गए हैं। खोल को उतारकर सीधे आत्मा की तह तक।

हमने ऊपर कहा कि नवाब चले गए पर पान रह गया, नवाबों के शौक भी यहीं रह गए। ये चीजें शाश्वत हैं। ये रहेंगी- हमेशा-हमेशा रहेंगी, ठीक वैसे ही जैसे जहालत, गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार। ये इन्सानी सभ्यता के आभूषण हैं। इनके बिना सभ्य समाज सूना है।

तो हम देखते हैं कि लोग पान चबाते हैं और जगह-जगह थूक देते हैं। बस की खिड़की से होंठ झुलाए और एक लीटर पीक सड़क पर उगल दी। कार का दरवाजा खोला और काली सड़क की माँग भर दी। साइकिल और रिक्शे से मुंडी घुमाई और अपने थूथन के ज्वालामुखी से पीक का लावा छोड़ दिया। बेशकीमती पीक का ऐसा अपव्यय देख-देखकर हमारी आत्मा रोती है। लेकिन कुछ लोग बड़े संवेदनशील हैं। न जाने हमारी आत्मा के रुदन के खयाल से या फिर अपनी आय के एक बड़े हिस्से से क्रय की गई इस शानदार गिजा के प्रति ममता के विचार से वे लोग पीक को यों ही सड़कों पर जाया नहीं करते, बल्कि वे अपने आस-पास लिफ्ट में, बरामदों में, आलमारियों के पीछे, मेज के नीचे, दरवाजे की दरार में, और वेस्ट पेपर बास्केट में इस कीमती चीज को संचित करते रहते हैं। प्रांतीयता के स्तर पर इस मामले में बद से बदनाम बुरा वाली कहावत बिलकुल फिट बैठती है। यानी केवल ऊपी नहीं, बल्कि अपने देश के कई बड़े ही वाइब्रेंट और उन्नत राज्यों के लोग भी इस क्षेत्र में उतने ही कर्मठ और जागरूक हैं, जितने बीमारू राज्यों के भइये। बदनाम केवल ऊपी-बिहार हैं।

सच कहें तो पीक नाम की यह शानदार वस्तु पान का मुख्य उत्पाद है। इसके उपोत्पादों में कैंसर, दांतों के कीड़े और ऐसी ही नायाब वस्तुएं हैं, जिनके सहारे ढेरों डॉक्टर और दवा वाले अपना जीवन यापन करते हैं। अब हमें समझ आता है कि इस कीमती उत्पाद की गुणवत्ता पर रीझकर ही उसे इकट्ठा करने के लिए नवाब लोग पीतल और अन्य कीमती धातुओं के नक्काशीदार उगलदान क्यों अपने पहलू में रखते थे।

अब नक्काशीदार उगलदान खरीदने और उसे लिए-लिए साहब के आगे-पीछे दौड़ने-भागने वाले नौकरों व गुलामों की फौज रखने की औकात तो लोगों में रही नहीं। शौक बेशक रह गया। किबला हमारा सुझाव है कि जो लोग पान जैसी विलासिता के रसिया हैं वे या तो उसके मुख्य उत्पाद को रखने के लिए अपने कपड़ों -कमीज, कुर्ते, कोट आदि में वाटर-प्रूफ जेबें सिलवा लें और उसी में कीमती पीक को संचित करें या फिर उसे –जैसा कि पान को खाने का मुहावरा है- खा ही लिया करें, थूक कर पान खाने के मुहावरे में बेज़ा तब्दीली न करें। प्रशासन को भी ऐसे लोगों की कुछ मदद करनी चाहिए जैसी कि सिंगापुर आदि देशों में की गई है। यानी इतनी कीमती चीज़ यदि कोई सड़क पर या सार्वजनिक स्थान पर लावारिस फेंक कर जाता दिखे तो उस कीमती चीज को ऐसे लावारिस छोड़ने की फीस के तौर पर सीधे-सीधे पचास या सौ रुपये वसूल लिए जाएं। इस मौके पर रहीम मियाँ हमें फिर याद आते हैं- अपने थोड़े से परिवर्तित दोहे के साथ- रहिमन पान राखिए..राखिए--भइये, थूकिए नहीं। वहीदा आंटी और बच्चन अंकल ने भी इस्क्रीन पर पान खाने की ही बात की है, खाकर जगह-जगह पिचिर-पिचिर थूकने की नहीं।

☺☺☺

---

COMMENTS

BLOGGER: 2
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रामवृक्ष सिंह का व्यंग्य - पान खाये सैयाँ हमारो
रामवृक्ष सिंह का व्यंग्य - पान खाये सैयाँ हमारो
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2011/01/blog-post_3313.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2011/01/blog-post_3313.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content