श्याम नारायण 'कुन्दन' की कहानी - लव मैरिज

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         ’सतीश ये मेरी पत्नी शैलजा जी हैं। कुछ दिन पहले ही हमलोगों ने लव मैरिज की।’          लगभग चार साल के लम्बे अन्तराल के बाद अचानक हुए...

love marriage

         ’सतीश ये मेरी पत्नी शैलजा जी हैं। कुछ दिन पहले ही हमलोगों ने लव मैरिज
की।’
         लगभग चार साल के लम्बे अन्तराल के बाद अचानक हुए एक मुलाकात के
अवसर पर मेरे मित्र राघवेन्द्र ने अपने बगल में बैठी हुई एक भद्र महिला का परिचय
कराते हुए कहा।
     आँखों में काजल, माथे पर बिन्दी, मांग में सिन्दूर, गले में मंगलसूत्र पहने उस भद्र
महिला पर मैंने एक सरसरी नजर डाली और अपना दोनो हाथ जोड़ दिया -’नमस्कार।’
       ’नमस्कार’ बदले में महिला ने भी एक छोटी मुस्कान के साथ अपना सिर झुका
दिया।
     ’और शैलजा ये हैं मि. सतीश, मेरे दोस्त, मेरे भाई, मेरे सबकुछ। जिनकी चर्चा मैं
तुमसे अक्सर किया करता हूँ।’ राघवेन्द्र ने मेरा परिचय कराते हुए आगे बोला।
       ’अरे हाँ.....हाँ... । ’महिला ने अपनी स्मृति पर जोर देते हुए राघवेन्द्र का समर्थन
किया।
      ’जानती हो शैलजा, कालेज में मैं और सतीश अक्सर साथ ही रहते थे। एक साथ
पढ़ते थे और जांन-जहांन की बाते किया करते थे। विभिन्न समस्याओं पर अपने-अपने तर्क
देते थे और कभी-कभी मत भिन्नता के कारण लड़ते भी थे।’
      राघवेन्द्र अपनी पत्नी को वर्षों पुरानी हमारी दोस्ती के किस्से सुना रहा था और वह
मंत्रमुग्ध होकर सुन रही थी पर मैं हां...हूँ.. करते हुए भी उनकी बात बिल्कुल ही नहीं सुन
रहा था।
      दरअसल मैं सोच रहा था कि राघवेन्द्र ने अगर शैलजा से अभी हाल ही में लव
मैरिज किया तो उसकी उस पत्नी का क्या हुआ जिससे उसकी बचपन में ही शादी हो गई
थी जो बिल्कुल ही अनपढ़ और गवांर थी। जिसे राघवेन्द्र बिल्कुल ही पसन्द नहीं करता
था। जिसे मौका मिलने पर अक्सर ही छोड़ देने की बात किया करता था। तो क्या
सचमुच में राघवेन्द्र नें उसे छोड़ दिया? या वह कहीं मर हेरा गई ?
      उस पल मुझे राघवेन्द्र से इस सम्बन्ध में जानने की बड़ी प्रबल इच्छा हो रही थी पर
उसकी नई नवेली दुल्हन की उपस्थिति के कारण मैं उससे कुछ भी पूछने में संकोच कर
रहा था।
      ’यार सतीश एक शिकायत है तुमसे।’ राघवेन्द्र अब मेरी तरफ उन्मुख हो गया।
      ’वह क्या?’ मैंने आश्चर्य से पूछा।
      ’इतने दिन हो गए, न फोन न चिट्ठी। क्या नाराज हो मुझसे?’
      ’नहीं यार, मैं नाराज हो सकता भला और वह भी तुमसे’।
      ’तो फिर ....?’
     ’कुछ नहीं यार बस यूँ ही। बनारस से दिल्ली क्या आया, जैसे कुछ होश ही नहीं
रहता। तुम क्या मेरे घर वाले भी यही शिकायत करते हैं कि मैं उन्हें भूल गया। उन्हें क्या
पता कि मैं यहाँ, इस अजनवी शहर में किन कठिनाइयों में जी रहा हूँ।’
      अच्छा छोड़ भी, समय के साथ सब ठीक हो जाता है। अब यह बता कि तेरी
सिविल सर्विस की तैयारी कैसी चल रही है? कभी मेन्स वगैरह दिया या नहीं?’
        ’नहीं यार, पता नहीं क्यों मैं हर बार प्रिलिम्स में ही फेल हो जाता हूँ। जैसे मेरी
किस्मत ही रूठ गई है मुझसे।’
     ’देख अपनी किस्मत को दोष मत दे और समझदारी से काम ले। मेरी मान तो यह
व्यूरोक्रेट्स वगैरह बनने का भूत अपने दिमाग से निकाल दे और एकेडेमिक कैरियर की
ओर लौट आ।’
     ’क्यों?’
     ’क्योंकि ये व्यूरोक्रेट्स जैसी चीजें हम जैसे लोगों के लिए नहीं होती बल्कि उनके लिए
होती हैं जो बड़ी बाप की औलादें होती हैं जो धन-धान्य से पूर्ण चिन्ता मुक्त होतें हैं।’
    ’लेकिन...।’
    ’लेकिन क्या......आखिर कब तक तुम इस तरह की जिन्दगी जीते रहोगे? कब तक
तुम्हारे गरीब मां-बाप अपना पेट काटकर तुम्हें पैसा भेजते रहेंगे?’
      राघवेन्द्र बात तो पते कि कर रहा था लेकिन पता नहीं क्यों उसकी कोई भी बात मेरे
गले नहीं उतर रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे सतीश मुझसे मिलने नहीं बल्कि अपनी
पत्नी को मेरी असफलताएं दिखाकर अपनी महत्ता सिद्ध करने आया है।
       ’सतीश समझदार आदमी अपने आप को परिस्थितियों के अनुरूप ढ़ाल लेता है।
अब मुझे ही देखो, क्या मुझे व्यूरोक्रेट्स बनने की इच्छा नहीं थी? बिल्कुल थी पर मैं अपने
घर परिवार की स्थिति के बारे में अच्छी तरह जानता था इसलिए लाख इच्छा होने के
बावजूद भी इस क्षेत्र में नहीं उतरा। लेकिन रूका नहीं, अनवरत चलता रहा। आज देखो,
मेरे पास क्या नहीं है? अच्छी नौकरी है, पैसा है और सबसे बड़ी बात, अब तो मैंने अपनी
मनपसन्द लड़की से लव मैरिज भी कर ली है।’
     अन्तिम वाक्य राघवेन्द्र ने अपनी पत्नी शैलजा की तरफ देखकर चुटकी हुए कहा
जिससे वह शर्म से दोहरी हो गई और बगले झांकने लगी।
     ’कब हुई यह तुम्हारी लव मैरिज?’ मौका देखकर मैंने अपने मन के अन्दर चल रहे
प्रश्न को राघवेन्द्र के सामने रख दिया।
       ’यही कोई दो महीना पहले।’
      लेकिन राघवेन्द्र तुम्हारी एक शादी तुम्हारी मर्जी के खिलाफ बचपन में भी हुई थी न,
उसका क्या हुआ?’
       ’सतीश, वह शादी नहीं थी बल्कि बर्बादी थी मेरी। पर करता भी क्या बहुत छोटा
था मैं उस समय। उपर से घर परिवार और समाज का दबाव इतना कि ...मत पूछो.....।’
       ’तो क्या तुमने उस लड़की को छोड़ दिया?’
       ’सतीश अगर मैं उसे छोड़ भी देता तो क्या कर लेता कोई मेरा? लेकिन नहीं,
समाज और परिवार की तरह मैं निष्ठुर नहीं हूँ। इसलिए आज उसे जहाँ होना चाहिए वहीं
है।’
      ’यहीं तो मैं तुमसे कब से पूछ रहा हूँ कि वह इस समय कहाँ है?’
      ’गाँव में।’
         ’और तुम कहाँ रहते हो?’
    ’बनारस में, शैलजा को पास।’
    ’यह तो सरासर अन्याय है यार उसके साथ।’
   ’देखो सतीश, मैंने जो कुछ भी किया अपनी पहली पत्नी की  मर्जी से ही किया।’
    ’मर्जी से किया.....मतलब?’
    ’मतलब यह भाई साहब कि हमारी शादी बड़ी दीदी की रजामन्दी से ही हुई।’ अब
शैलजा भी अपने पति के पक्ष में खड़ी हो गई।
       ’यह कैसे हो सकता है......?और यदि ऐसा हुआ भी होगा तो मेरी समझ से इसमें
जरूर उसकी कोई मजबूरी रही होगी। क्योंकि दुनिया की कोई भी स्त्री अपना सबकुछ बांट
सकती है लेकिन अपने पति के प्यार को कभी भी नहीं बांट सकती।’
       ’सतीश, तुम चाहे इसे जो समझो, पर मैं तुम्हें बता दूँ कि मैं अपने मां-बाप और
समाज वालों की तरह अनपढ़ और गवांर नहीं हूँ कि उनकी की हुई गलतियों को दोहराता।
बल्कि मैं इस देश का एक पढ़ा-लिखा और जिम्मेदार नागरिक हूँ। समाज, परिवार और
संसार का गहरा ज्ञान है मेरे पास।  इसलिए किसी स्त्री की मजबूरी का फायदा उठाने के४
बारे में तो मैं कभी सोच भी नहीं सकता। वह भी उस दौर में जब दुनिया का हर कानून
और नियम स्त्री के पक्ष में ही खड़ा है।’
     ’अब छोड़ो भी यार ......हम लोग भी किस बेकार की बहस में उलझ गए।’ बात
अब गलत रूख ले रही थी इसलिए मैंने उसको दूसरी तरफ मोड़ने की गरज से बोला।
     ’बेकार की बहस नहीं है सतीश यह। बल्कि बिल्कुल सही बहस है। लोग समझते हैं
कि मैंने दूसरी शादी करके अपनी पहली पत्नी को धोखा दिया है, अन्याय किया है। पर
उन्हें क्या पता कि मेरी यह दुसरी शादी मेरी पहली पत्नी के जिद के कारण ही हुई। मैं तो इसके लिए बिल्कुल ही तैयार नहीं था। प्यार तो किसी से भी, कहीं भी हो सकता है
लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि प्यार करने वाले से शादी ही की जाय? मैंने ठीक
यही बात अपनी पहली पत्नी से भी कहा था। पर जानते हो उसने क्या कहा। कहा कि-
’देखिए जी आपने मेरे लिए अब तक बहुत कुछ किया है। मैं आपके योग्य नहीं थी फिर भी आपने मुझे अपनाकर मेरा मान बढ़ाया। दुनिया की वह हर खुशी दी आपने मुझे जिसकी मैं हकदार नहीं थी। पर इसके बदले अब तक मैं आपको क्या दे पाई ? कुछ भी तो नहीं।
बहुत चाहा कि मैं अपने आपको आपके अनुरूप ढ़ाल लूँ। पर अभागन थी वह भी नहीं
कर पाई। फिर भी आपने कभी बुरा नहीं माना। कभी अपनी इच्छा मुझपर जबरन नहीं
थोपी। मैं स्वार्थी थी। आप हमेशा देते रहे और मैं लेती रही। पर आज आपके लिए कुछ
करने का मौका हाथ आया है। आशा है आप इनकार नहीं करेंगे।’
      ’ध्यान से सुनना सतीश। जब मैंने उससे पूछा कि क्या चाहती तो उसने जवाब दिया-
आपकी खुशी। शैलजा से आपकी दूसरी शादी।’
      मैंने कहा-’ क्या कह रही हो, होश में तो हो?’
    उसने कहा-’ हाँ मैं बिल्कुल ही होशोहवाश में हूँ और जो कुछ भी कह रही हूँ बहुत
सोच समझकर कह रही हूँ।’
       मैंने कहा-’ पागल मत बनो...।’
     उसका जवाब था-’पागल बन नही रही हूँ बल्कि मैं पागल हू ँ क्योंकि मैं आपसे बहुत
प्यार करती हूँ।’
       मैंने आगे कहा-’यार प्यार भी करती हो और दूर भी जाना चाहती हो। यह बात
तर्क संगत नही है।’
     उसका जवाब था -’प्यार में दूरियों का कोई मोल नहीं होता साथी। वैसे भी मैं आपको
छोड़कर  जा कहाँ रही हूँ? मैं तो आपकी पहली पत्नी बनकर हमेशा पटरानी के पद पर ही
रहूँगी।’५
      मैंने कहा- ’नहीं यह सम्भव नहीं है......।’
      उसने कहा-’देखिए जी आपने वादा किया है... अब मुकर रहें हैं....।’
      मैंने कहा- ’चाहे जो समझो पर मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकता।’
      उसने कहा-’ तो क्या आप मेरा मरा मुँह देखना पसन्द करेगें?’
      ’अब तुम्हीं बताओ सतीश ऐसे में मैं भला क्या कर सकता था?’
    ’दूसरी शादी।’ अब मैं उस प्रकरण को वहीं समाप्त कर देना चाहता था। इसलिए बिना
कुछ सोचे समझे ही मैंने राघवेन्द्र द्वारा किए गए कार्य का समर्थन किया।
       ’यानी अब तुम भी मान गए न सतीश कि मैं गलत नहीं हूँ?’
       ’बिल्कुल’
      ’थैंक्स गाड’  राघवेन्द्र ने यह शब्द कुछ इस तरह प्रकार कहा मानों उसके सिर से
बहुत बड़ा बोझ हट गया हो।
      ’अच्छा सतीश अब तुम अपने बारे में बताओ। तुम कब शादी कर रहे हो?’  कुछ
देर रूककर राघवेन्द्र ने फिर पूछा।
      ’जब तुम्हारी तरह अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊँगा।’ मैने जवाब दिया।
      ’अरेंज मैरिज करोगे या लव मैरिज?’
       ’आफकोर्स लव मैरिज।’
       ’तो क्या है कोई ऐसी लड़की तुम्हारी नजर में?’
          ’अभी तक तो नहीं.....।’
       ’कहो तो हम कुछ तुम्हारी मदद करें।’
          ’अरे नहीं....नहीं..।’
         ’तो अब चला जाय राघवेन्द्र? शैलजा ने राघवेन्द्र का ध्यान दीवार पर लगी घड़ी की
तरफ ले जाते हुए कहा।
     ’चल रहें हैं .....बस थोड़ी देर और.....।’ राघवेन्द्र ने शैलजा को रोकते हुए कहा।
    ’लेकिन राघवेन्द्र तुमने यह तो बताया ही नहीं कि दिल्ली तुम केवल घुमने के लिए
आए हो या कोई और भी मकसद है?’ मैंने राघवेन्द्र से आगे पूछा।
   ’अब देखो इसकी, इतनी दूर कोई घुमने के लिए आता है भला।’  राघवेन्द्र ने अपनी
पत्नी की तरफ मुखातिब होते हुए कहा।
     ’क्यों, क्यों नहीं घुमने आ सकता इतनी दूर कोई?’
    ’आ सकता है, लेकिन मैं यहाँ एक बहुत ही जरूरी काम से आया हूँ।’
        ’किस जरूरी काम से आए हो?’
       ’देखो सतीश मेरी एक बहन है रागिनी। वह एक लड़के से प्यार करती है। जानते हो
वह लड़का यहीं तुम्हारे पड़ोस में रहता है।’
        ’तो क्या तुम उसका मर्डर करने आए हो?’
        ’नहीं यार मैं उससे अपनी बहन की शादी की बात करने आया हूँ।’
      ’कौन है वह लड़का ?’
      ’तुम जानते हो उसे और इत्तेफाक से वह भी तुम्हें जानता है।’
         ’बुझौवल मत बुझाओ यार ...नाम बताओ उसका।’
         ’प्रमोद यादव......... फ्राम जौनपुर।’
      ’वही प्रमोद यादव न जो प्रभात खबर में काम करता है?’
         ’हाँ वही।’
         ’अच्छा लड़का है।’
          ’तभी तो बात आगे बढ़ा रहा हूँ।’
       ’तुमने उससे बात की?’
          ’जब से दिल्ली में हूँ रात-दिन बात ही तो कर रहा हूँ।’
       ’वो, तुम ठहरे भी उसी के साथ हो।’
       ’क्यों, कोई बुराई है?’
           ’ बिल्कुल नहीं।’
       ’तो एक दिन समय निकालकर आओ मैं तुम्हें अपनी बहन रागिनी से मिलाता हूँ।’
           ’तुम्हारी बहन भी यहीं हैं?’
          ’हाँ, आखिर शादी तो उसे ही करनी है।’
           ’फिर उसे साथ क्यों नहीं लाए यहाँ?’
          ’अवश्य लाता लेकिन आज वह प्रमोद के साथ कहीं घुमने गई है।’
         कुछ ऐसे ही हममें देर तक बातें होती होती रहीं। राघवेन्द्र अगले दिन आने का वादा
करके ठीक रात के ग्यारह बजे गया।
      उसके दूसरे दिन राघवेन्द्र फिर आया। लेकिन उस दिन उसके साथ शैलजा नहीं
थी। पूछने पर वह टाल गया। जब मैंने थोड़ा जोर दिया तो बोला -’यार कभी-कभी मैं
बिल्कुल अकेले ही रहना चाहता हूँ।’
        ’क्यों, तुम्हारे बीच कोई खटपट हो गई ?’
        ’नहीं यार बस यूँ ही...।’
        ’ऐसा लगता है तुम मुझसे कुछ छुपा रहे हो।’
    ’तुमसे क्या छिपाना यार। बस यूँ समझ लो कि अब मैं भी महसूस करने लगा हूँ कि
दूसरी शादी मेरी सबसे बड़ी भूल थी।’
     ’बिल्कुल, तुम लोगों के जाने के बाद उस दिन मैं देर रात तक इस बारे में ही सोचता
रहा।’
        ’तो फिर किस निर्णय पर पहुँचे तुम?’
     ’इस निर्णय पर कि तुम्हारी पहली पत्नी दुनिया की सबसे विचित्र महिला है जिसने
अपनी खुशियों को तुम्हारी खुशी के लिए कुरबान कर दिया। वह तो साक्षात देवी है
यार..।’
      ’यार सतीश यही तो उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी कि वह सिर्फ और सिर्फ देवी थी
स्त्री नहीं। लेकिन शायद वह भूल गई कि उसका पति उसकी तरह देवता नहीं है। बल्कि
हाड़-मांस का साधारण सा मानव है जिसे किसी देवी का प्यार नहीं बल्कि किसी साधारण
स्त्री का प्यार चाहिए।’
         ’तो क्या भाभी के साथ तुम्हारे अन्तरंग सम्बन्ध अच्छे नहीं थे?’
          ’कुछ ऐसा ही समझ लो।’
          ’अरे मैं क्या समझ लूँ जी, खोलकर क्यों नहीं बताते?’
       ’देखो सतीश कुछ बातें ऐसी होती हैं जो किसी से बताई नहीं जाती।’
          ’नहीं, मुझसे तो तुम्हें बतानी ही होगी क्योंकि आज तक तुमने मुझसे कुछ भी नहीं
छिपाया।’
          जब मैं अड़ गया तो उसने कहा- ’तो तुम सुनना ही चाहते हो।’
          ’हाँ’
         ’ ठीक है लेकिन इससे पहले तुम्हें मुझे एक कप चाय पिलानी पड़ेगी।’
         ’हाँ ..हाँ क्यों नहीं।’
     इतना कहकर मैं किचेन के अन्दर चला गया। उसके ठीक पाँच मिनट बाद हमलोग
एक बार फिर चाय की प्याली के साथ एक दूसरे के आमने-सामने थे।
      ’हाँ अब बता।’ शुरूवात, मैंने ही की।
      ’देखो सतीश, तुम्हारी भाभी यानी मेरी पहली पत्नी सेक्स के मामले में बिल्कुल ही
दकियानूस विचार रखती थी। वह उसे दोयम दर्जे का कार्य समझती थी। पहले तो वह
इसके लिए तैयार नहीं होती थी। और यदि कभी तैयार हो भी जाती तो बिस्तर पर जाकर
ऐसे पड़ जाती जैसे कोई जिन्दा लाश हो।’
        ’राघवेन्द्र यह कोई नई बात नहीं है। गाँव की लगभग सभी लड़कियाँ सेक्स शिक्षा के अभाव में ऐसी ही हरक्कतें करती हैं। क्योंकि वे जिस वातावरण में बड़ी होती हैं वहाँ
सेक्स को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता बल्कि पाप माना जाता है। ऐसे में वहाँ एक
पुरूष की भूमिका थोड़ी बढ़ जाती है। उसे गुरू और पति की भूमिका एक साथ निभानी
पड़ती है। क्या तुमने ऐसा किया?’
     ’बिल्कुल किया लेकिन उसके दिलो-दिमाग में यह बात इतनी गहराई से बैठी हुई थी
कि वह कुछ भी सुनने के लिए तैयार ही नहीं थी। उसका मानना था कि सेक्स सम्बन्धों में
सारी की सारी भूमिका पुरूष की ही होती है। वह मानना ही नहीं चाहती थी कि ऐसे
सम्बन्धों में स्त्री और पुरूष दोनों की समान भूमिका होती है।
     ’ओ... तो यह कारण था जिसकी वजह से तुम्हारे सम्बन्ध धीरे-धीरे कटू हो गए और
तुम अपनी पत्नी से दूर होते गए।’
      ’नहीं यह बात सही नहीं है कि मैं अपनी पत्नी से दूर हो गया। बल्कि मेरी पत्नी ही
मुझसे दूर- दूर रहने लगी।’
     ’ठीक इसी समय तुम्हारे जीवन में शैलजाजी आई और तुम्हें उनसे प्यार हो गया। फिर
एक दिन दिन मौका देखकर तुमने उनके सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया होगा।’
      ’नहीं यह सही नहीं है। प्रस्ताव मेरे तरफ से नहीं बल्कि शैलजा के द्वारा रखा गया था
पहले। जिसका मेरी पत्नी ने सहर्ष अनुमोदन किया।’
     ’यानी तुम्हें बिन मांगे मुराद मिल गई। क्योंकि तुम शुरू से यही तो चाहते थे।’
      ’देखो सतीश यह अलग बात है कि शुरू-शुरू में मैं अपनी पहली पत्नी को पसंद नहीं
करता था। अक्सर मैं उसे छोड़ देने की की बात किया करता था लेकिन कालान्तर में मैं
इसे अपनी नियति समझकर स्वीकार कर लिया था। इसलिए तुम मुझपर यह आरोप नहीं
लगा सकते कि मैं अपनी पहली पत्नी को ऐसा करने के लिए किसी तरह से बाध्य किया।’
     ’अच्छा छोड़ो, अब तो तुम शैलजा भाभी के साथ खुश हो न?’ मैं बात को बदला।
       ’इस सम्बन्ध में हम फिर कभी बात करेंगे सतीश। फिलहाल तो मुझे अपने कुछ पुराने
मित्रों से मिलने के लिए जे.एन.यू. जाना है।’
      इतना कहकर राघवेन्द्र एक झटके के साथ उठा और कमरे का दरवाजा खोलकर
बाहर निकल गया। औपचारिकता बस मैं भी बाहर निकल आया।
    ’अरे हाँ सतीश, एक बात तो मैं तुमसे कहना ही भूल गया।’ आगे बढ़ता हुआ सतीश
एकाएक रूका और पीछे पलटकर बोला।
     ’वह क्या...?’
        ’यार तुम्हारी शैलजा भाभी ने आज शाम को तुम्हें खाने पर बुलाया है।’
      ’कोई विशेष आयोजन.......?’
     ’कुछ नहीं ...बस यूँ ही। वह चाह रही थी यहाँ से जाने से पहले हम सभी लोग
एकबार साथ मिलकर भोजन करें।’
         ’ठीक है। अगर मौका मिला तो देखूँगा।’
         ’देखूँगा नहीं, आना ही होगा।’
         ’अच्छा ठीक है बाबा, जरूर आउँगा।’
      ’ठीक आठ बजे।’
          ’ओके’
          ’थैक्स’
          ’बाय’
          ’बाय’
        उस दिन मैं अपने वादे के अनुरूप ठीक शाम के आठ बजे राघवेन्द्र राघवेन्द्र के
ठिकाने पर पहुँच गया। पर उस समय शैलजा भाभी के अलावा घर पर कोई नहीं था।
पूछने पर पता चला कि          
राघवेन्द्र तब के गए अभी तक जे.एन.यू. से नहीं लौटे। रागिनी और प्रमोद फिल्म देखने
गए हुए हैं और वे नौ बजे तक लौटेगें।
     ’आप उस कमरे में चलकर बैठिए भाई साहब, मैं आपके एक चाय बनाकर लाती हूँ।’
      शैलजा ने एक कमरे की तरफ इशारा किया और स्वयं किचेन की तरफ बढ़ गई।
      ’नही भाभी जी, अभी आप चाय रहने दीजिए जब सभी आ जाएंगे तो साथ मिलकर
पीएंगें।’
      ’जैसी आपकी मर्जी।’
      इतना कहकर शैलजा किचेन में घूस गई और मैं निर्देशित कमरें में आ गया।
     ’अरे वाह! तुम आ गए और वह भी इतनी जल्दी।’  मैं अभी उस अस्त-व्यस्त कमरे
में बैठने का उपक्रम ही कर रहा था कि तभी शैलजा की आवाज मुझे सुनाई दी।
      ’सारी शैलजा आने में थोड़ा लेट हो गया।’ दूसरी आवाज राघवेन्द्र की थी।
      ’शायद तुम काफी दूर निकल गए थे जो पहुँचने में इतनी देर हो गई।’
      ’नहीं...नहीं, यहीं जे.एन.यू. में ही था अपने कुछ पुराने दोस्तों के साथ।’
      ’लेकिन तुम्हें इतना तो सोचना चाहिए था कि मैं यहाँ अकेली हूँ। तुमको कुछ याद
भी रहता है या नहीं? तुमने आज मुझे जे.एन.यू. घुमाने का वादा किया था। जानते हो मैं
यहाँ शाम चार बजे से तैयार होकर तुम्हारा इन्तजार कर रही हूँ।’
      ’आई एम रीयली सारी शैलजा..... पर तुम्हें इतना इन्तजार करने की क्या
आवश्यकता थी? तुम प्रमोद या सारिका के साथ भी तो कहीं घुमने जा सकती थी। ’
      ’कैसे जा सकती थी, वे तो तुम्हारे जाने के कुछ देर बाद ही कोई फिल्म देखने के
लिए निकल गए थे।’
     ’तो अकेली कहीं घूम आती।’
    ’क्या बात कर रहे हो यार। अगर मुझे कहीं अकेले ही घूमना होता तो यहाँ इतनी दूर
तुम्हारे साथ कदापि नहीं आती। वहीं बनारस में तुम्हारी ही तरह अपने किसी दोस्त के
साथ गुलछर्रे उड़ाती।’
      ’तो तुम्हारा मतलब है मैं जे.एन.यू. गुलछर्रे उड़ाने गया था।’
      ’बिल्कुल’
      ’मगर किसके साथ गुलछर्रे उड़ा रहा था, तुम तो यहाँ थी?’
         ’मिल गई होगी कोई स्टूपिड लड़की।’
        ’ओह शैलजा, तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो?’
        ’क्यो, क्यों नहीं सोच सकती मैं?आखिर मैं तुम्हारी बीवी हूँ।’
        ’शैलजा मैं जानता हूँ कि तुम मेरी बीवी हो और मैं तुम्हारा पति। लेकिन इसका
मतलब यह तो नहीं कि मैं हमेंशा तुम्हारे पल्लू से ही बधा रहूँ।’
      ’मैंने कब कहा कि तुम हमेंशा मेरे पल्लू से बधे रहो।’
      ’तुम्हारे कहने का मन्तब्य तो कुछ ऐसा ही था।’
      ’देखो राघवेन्द्र अगर तुम इसी तरह मन्तव्य निकालते रहे न तो बात काफी आगे
तक जाएगी।’
      ’धमकी दे रही हो?’
     ’धमकी नहीं सलाह दे रही हूँ कि तुम मुझे अपनी पहली पत्नी समझने की भूल कभी
मत करना।’
    ’मैं ऐसा क्यों समझने लगा भला। यह जानते हुए भी कि तुम मेरी पहली पत्नी के पांवो
की धूल भी नहीं हो।’
    ’धूल नहीं थी इसलिए तुम कालेज में मेरे आगे पीछे जूते चटकाते फिरते थे? इनसे
उनसे घूम-घूमकर कहा थे कि मुझे शैलजा से बाते करवा दो। मैं उससे प्यार करता हूँ।
उससे शादी करना चाहता हूँ। लेकिन अब मैं यह अच्छी तरह जान गई हूँ कि कि तुमने
कभी मुझसे प्यार किया ही नहीं। तुम्हारी नजर तो मेरे बाप की सम्पति पर थी। तुम जानते
थे कि मैं अपने मां-बाप की एकलौती संतान हूँ और शादी के बाद इस सारी सम्पत्ति के
मालिक तुम हो जाओगे। हाँ, तुम एक नम्बर के लालची और धूर्त इंसान हो।’
         ’शैलजा -----------------------------।’ राघवेन्द्र चीखा।
         ’चिल्लाओ मत, चिल्लाना मुझे भी आता है।’ शैलजा भी चीखी।
     ’लेकिन मुझे तुम दोनो का ऐसे चीखना और चिल्लाना बिल्कुल ही अच्छा नहीं लग
रहा है।’        जब सुनते-सुनते मुझसे रहा नहीं गया तो मैं एकाएक कमरे से बाहर निकल
आया।
      ’अरे सतीश तुम,  तुम कब आए?’ एकाएक हुए मेरे इस पदार्पण से राघवेन्द्र के
आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
      ’मैं तो कब से यहाँ आकर तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूँ जनाब। लेकिन तुम्हें होश
कहाँ हैं।’
      ’क्या करूँ यार, इस औरत ने मेरा जीना हराम कर दिया है।’
      ’मैंने तुम्हारा जीना हराम किया है...... मैंने?’ शैलजा एकबार फिर उबली।
      ’हाँ तुने।’ राघवेन्द्र फिर चीखा।
          ’देखो राघवेन्द्र मेरे धैर्य की परीक्षा मत लो। नहीं तो अब मेरे मुँह से जहर ही
निकलेगा।’
         ’एक नागिन के मुँह से जहर नहीं निकलेगा तो क्या अमृत निकलेगा।’
         ’तुमने मुझे नागिन कहा, कुत्ते....।’ शैलजा एक कदम आगे बढ़ गई।
         ’हाँ रे कुतिया.....मैंने कहा ऐसा।’ राघवेन्द्र भी उसके कदम से कदम मिलाया।
      ’अगर मैं नागिन हूँ तो तू सिर्फ कुत्ता है  कुत्ता। जूठा पत्तल चाटने वाला कुत्ता।
लडकियों के आगे पीछे दूम हिलाने वाला कुत्ता।’ शैलजा अब दो कदम आगे बढ़ गई।
    ठीक उसी समय प्रमोद और रागिनी ने कमरे में प्रवेश किया। मुझे लगा अब वे दोनों
उनकी उपस्थिति के कारण चूप हो जाएगें पर शायद मैं गलत सोच रहा था।
     ’स्त्री होकर जबान चलाती है साली। अरे कुछ तो शरम कर साली रण्डी।’ राघवेन्द्र
उन दोनों को देखकर और चढ़ गया।
     ’किसे रण्डी बोल रहा है रे साले भड़ूवे। मुझे रण्डी बोलने से पहले अपने गिरहबान
में झांककर क्यों नहीं देख लेता। तेरी बहन रण्डी है जो शादी से पहले ही न जाने कितनों
के साथ सुहाग मनाती रही है। तेरी मां बेश्या है। बुढ़िया हो गई है, लेकिन आज भी न
जाने कितने भतार रखे हुए है। इस बात को तेरे गाँव का बच्चा-बच्चा जानता है।’  शैलजा
अब मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ गई।
     इतना सुनकर राघवेन्द्र आपे से बाहर हो गया और अचानक ही शैलजा के उपर
हमला बोल दिया। पर प्रतिद्वन्दी के रूप में शैलजा भी कम नहीं थी। वह राघवेन्द्र से ऐसे
गूथ गई जैसे कोई पहलवान अपने प्रतिद्वन्दी पहलवान से गूँथ जाता है।
      मैं किंकर्तव्यमूढ़ उनके बगल में खड़ा सब देख रहा था। अपने कानों से सून रहा
था। पर फिर भी मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि वहाँ जो कुछ भी हो रहा है वह सत्य ही
है।
     अगर उस पल प्रमोद और रागिनी आगे बढ़कर उन्हें न छुड़ाते तो पता नहीं क्या हो
जाता।
     मौका देखकर मैं वहाँ से भाग निकला।
    अब तक लव मैरिज का भूत मेरे दिलो-दिमाग से बिल्कुल ही निकल चुका था।
                                          -------------

shaym bhai

SHYAM NARAIN KUNDAN

311-MHC

UNIVERSITY OF HYDERABAD

GACHI BOWLI

HYDERABAD-500046

PH-09640375758

emai- shyam.kundan@gmail.com

      
 
 
       ’
 
 
 
१३

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. उत्तर
    1. आदरणीया ऋचा जी
      नमस्कार एवं धन्यवाद
      कहानी आपको अच्छी लगी इसके लिए बहुत -बहुत धन्यवाद. वैसे आपका ब्लॉग क्या है बताएं. shyam.kundan@gmail.com

      हटाएं

  2. Hindi Kavita Manch(हिन्दी कविता मंच)

    हिन्दी कविता मंच कविता का एक ऐसा मंच है. जहा आप न केवल साहित्य का लुफ्त उठा सकते है बल्कि आप युवा रचनाकार हमसे जुङकर अन्य लिखी हुयी कृतियां जैसे - कविता , दोहा , छंद यहां प्रकाशित कर सकते है. आप सभी युवा रचनाकारो का मै तहे दिल से हार्दिक अभिनन्दन तथा स्वागत करता हूं.
    hindikavitamanch.blogspot.in

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नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: श्याम नारायण 'कुन्दन' की कहानी - लव मैरिज
श्याम नारायण 'कुन्दन' की कहानी - लव मैरिज
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