खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की पैरवी प्रमोद भार्गव बजट के पहले की तैयारियां शुरू हो गई हैं। हाल ही में कंेद्रीय वित्त मंत्री प्रणव ...
खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की पैरवी
प्रमोद भार्गव
बजट के पहले की तैयारियां शुरू हो गई हैं। हाल ही में कंेद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल महासंघ (फिक्की) के बीच वार्ता संपन्न हुई। खुदरा क्षेत्र (रिटेल सेक्टर) के बडे़ खिलाड़ी न केवल मंशा जता रहे हैं बल्कि दबाव बना रहे हैं कि सरकार नए बजट प्रावधानों में बहु ब्रांड खुदरा कारोबार और रक्षा क्षेत्र विदेशी पूंजी निवेश के लिए खोल दे। सरकार को कारोबारियों ने आने वाले पांच सालों में 100 अरब डॉलर के निवेश का भरोसा भी जताया। सरकार की इस क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश की मंशा तो है क्योंकि कुछ माह पहले ही इस मुद्दे पर औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग द्वारा रायशुमारी के लिए एक परिपत्र जारी किया गया था, जिसमें दलील दी थी कि किसानों की बद्हाली, बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई जैसी समस्याओं के समाधान विदेश निवेश में अंतर्निहित है। निवेश मंत्र पर सरकार इसलिए भी बजट पूर्व माहौल बनाने की कोशिश में है क्योंकि बीते साल प्रत्यक्ष विदेश निवेश (एफडीआई) में 2009 की तुलना में कमी आई है। हालांकि इसकी मुख्य वजह वैश्विक अर्थव्यवस्था में धीमी गति से सुधार आना था। इस कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियां कोई नया जोखिम उठाना नहीं चाहती थी। दूसरी तरफ भारतीय कंपनियां वैश्विक हो रही हैं, इसलिए उनकी दलील है कि दूसरी कंपनियों को भी भारत में आने की खुली छूट दी जाए। बराक ओबामा भी भारत यात्रा के दौरान कह गए थे कि जिन देशों के साथ हम व्यापार करते हैं उनकी अर्थव्यवस्था भी हमारे लिए खुली होनी चाहिए।
पूंजीपतियों का दावा है कि मौजूदा हालातों में किसान को फसल का उपभोक्ता मूल्य के रूप में केवल एक तिहाई मूल्य ही मिल पाता है। यदि किसान हित साधना है तो खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष पूंजी निवेश को मंजूरी दी जाए। इससे किसान और उपभोक्ता दोनों का मंगल होगा। सरकार खुदरा व्यापार में निवेश को इस नजर से भी देख रही है कि यदि अतिरिक्त पूंजी आती है तो इस क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जा सकेगा। ढांचे की कमी के चलते देश में हर साल एक लाख करोड़ टन फल और सब्जी नष्ट हो जाते हैं। कई करोड़ टन अनाज सड़ जाता है। सरकार और पूंजीपतियों के ये तर्क अपना पक्ष मजबूत करने के नजरिए से उचित ठहराये जा सकते हैं। इनका दूसरा पहलू यह भी है देश भर में शीतालयों (कोल्ड स्टोरेज) की जो कतारें पिछले डेढ़ दशक में लगी हैं, इनमें ताजा फल और सब्जियों की जमाखोरी कृत्रिम रूप से कीमतों में उछाल लाने का आधार भी बन रही है। प्याज और टमाटर में कीमतों मंे बेतहाशा इजाफे की जड़ में ये शीतालय भी हैं। सरकार ने इनके निर्माण हेतु न केवल जमीनें लीज पर दीं, बल्कि बड़ी मात्रा में आर्थिक छूट भी दी। बिजली भी इन्हें सस्ती दरों में चौबीसों घंटे उपलब्ध कराई जा रही है। जबकि जो किसान मौसम की मार झेलते हुए फसल के उत्पादन में जी-जान लगा रहा है, उसे सिंचाई तक के लिए बिजली की कोई गारंटी नहीं है। यदि शीतालयों के विद्युत कनेक्शन काट दिए जाएं तो जमाखोरी कम होगी और कीमतों में बेवजह उछाल नहीं लाया जा सकेगा।
भारत हाट बाजारों और दुकानों को देश प्राचीन समय में ही रहा है। पटरी, ठेलों, साइकिल और इंसानों के सिर पर रखी डलिया में भी खुदरा सामान की दुकानें सजी मिल जाएंगी। हर गली नुक्कड़ पर मौजूद और चलती-फिरती ये दुकानें करोड़ों लोगों की गुजर-बसर का साधन तो हैं ही, असंगठित अथवा फैले हुए होने के बावजूद देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इनकी आठ से दस फीसदी भागीदारी है। करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी और सम्मान इसी कारोबार से जुड़ा है। प्रत्यक्ष पूंजी निवेश के बहाने सरकार यदि इस कारोबार में सेंध लगाताी है तो सरकार को पहले सोच लेना चाहिए कि इन अकुशल लोगों को रोजगार और रोटी किस स्रोत से मुहैया कराएगी ? तय है कुछ चुनिंदा कंपनियां खुदरा क्षेत्र को हथियाकर और चंद लोगों को रोजगार देकर करीब 20 करोड़ लोगों के पेट पर लात मार देंगी। हालांकि सिंगल ब्राण्ड रिटेल में 51 प्रतिशत और थोक कैश एण्ड कैरी में शत-प्रतिशत विदेशी निवेश की मंजूरी पहले ही दी जा चुकी है। लेकिन वालमार्ट, कैरफूर, रिलायंस और भारती जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने सरकार पर बजट पूर्व ही पर्याप्त दबाव बनाना शुरू कर दिया है कि खुदरा क्षेत्र पूरी तरह कार्पोरेट सेक्टर के लिए खोल दिया जाए। जिससे विदेशी पूंजी का प्रवाह बढ़े।
दरअसल जनवरी से अक्टूबर 2010 तक भारत में विदेशी पूंजी की आमद 17.37 अरब डॉलर की रही। जबकि 2009 की इसी अवधि में 23.8 अरब डॉलर का निवेश हुआ था। तुलनात्मक दृष्टि से निवेश में 27 फीसदी कमी दर्ज की गई। हालांकि इसके लिए न तो सरकार दोषी है और न ही अर्थव्यवस्था। 2008 में आए वैश्विक आर्थिक और वित्तीय संकट के जलजले ने कंपनियों के मुनाफे को प्रभावित किया। लिहाजा कंपनियों ने व्यापार विस्तार से हाथ खींच लिए। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अब वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है, पर इसकी गति में उत्साहजनक तेजी नहीं है। क्योंकि विकसित देशों में मंदी का असर ज्यादा था। इसलिए वे मंदी से पूरी तरह उबरने के लिए विकाशील देशों पर बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र में नीतिगत प्रत्यक्ष पूंजी निवेश को बढ़ावा देने पर जोर दे रहे हैं।
चंूकि अब भारतीय कंपनियां भी वैश्विक हो रही हैं, इसलिए सरकार पर दबाव है कि प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश एक पक्षीय नहीं हो सकता। बराबर की भागीदारी जरूरी है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में दर्शाया है कि दूसरे देशों में बीते वित्तीय साल की पहली तिमाही में ही 2.8 अरब डॉलर निवेश की वृद्धि दर्ज की गई थी। इस बिना पर दुनिया के दूसरे मुल्क भारत के रक्षा और खुदरा क्षेत्र में निवेश की पुरजोरी से वकालात कर रहे हैं। अमेरिका भी भारत पर लगातार दबाव बना रहा है कि व्यापारिक संबंधों में परस्पर समान लेने-देने होना चाहिए। तभी दोनों देशों के हित सधेंगे। इसलिए भारत अमेरिका को अपना माल बेचने की खुली छूट तो दे ही अमेरिकी कंपनियों को खुदरा क्षेत्र में कारोबार करने के लिए भी पूरे दरवाजे खोल दे। लेकिन भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश को यहां यह समझने की जरूरत है कि अमेरिका जैसे औद्योगिक व विश्व की सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था वाले देश में बेरोजगारी का संकट इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि उसने दूसरे देशों के हर तरह के उत्पाद अपने देश में बेचने की खुली छूट दे दी। लिहाजा अमेरिका में बेरोजगारी की दर तो 9.5 फीसदी है ही, वहां अब गरीबी के बादल भी मंडराने लगे हैं। नतीजतन अमेरिका से ही सबक लेते हुए भारत को अपना खुदरा कारोबार मौजूदा हाल में रहने देना चाहिए। अन्यथा विदेशी पूंजी निवेश का दखल भारत में खुदरा क्षेत्र में लगे लोगों का रोजगार छीनकर अराजकता के हालात पैदा कर देगा। नतीजतन देश के सामने एक और नया संकट खड़ा हो जाएंगा ?
प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49, श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी (म.प्र.) पिन-473-551
लेखक वरिष्ठ कथाकार एवं पत्रकार हैं।
प्रमोद भार्गव
बजट के पहले की तैयारियां शुरू हो गई हैं। हाल ही में कंेद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल महासंघ (फिक्की) के बीच वार्ता संपन्न हुई। खुदरा क्षेत्र (रिटेल सेक्टर) के बडे़ खिलाड़ी न केवल मंशा जता रहे हैं बल्कि दबाव बना रहे हैं कि सरकार नए बजट प्रावधानों में बहु ब्रांड खुदरा कारोबार और रक्षा क्षेत्र विदेशी पूंजी निवेश के लिए खोल दे। सरकार को कारोबारियों ने आने वाले पांच सालों में 100 अरब डॉलर के निवेश का भरोसा भी जताया। सरकार की इस क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश की मंशा तो है क्योंकि कुछ माह पहले ही इस मुद्दे पर औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग द्वारा रायशुमारी के लिए एक परिपत्र जारी किया गया था, जिसमें दलील दी थी कि किसानों की बद्हाली, बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई जैसी समस्याओं के समाधान विदेश निवेश में अंतर्निहित है। निवेश मंत्र पर सरकार इसलिए भी बजट पूर्व माहौल बनाने की कोशिश में है क्योंकि बीते साल प्रत्यक्ष विदेश निवेश (एफडीआई) में 2009 की तुलना में कमी आई है। हालांकि इसकी मुख्य वजह वैश्विक अर्थव्यवस्था में धीमी गति से सुधार आना था। इस कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियां कोई नया जोखिम उठाना नहीं चाहती थी। दूसरी तरफ भारतीय कंपनियां वैश्विक हो रही हैं, इसलिए उनकी दलील है कि दूसरी कंपनियों को भी भारत में आने की खुली छूट दी जाए। बराक ओबामा भी भारत यात्रा के दौरान कह गए थे कि जिन देशों के साथ हम व्यापार करते हैं उनकी अर्थव्यवस्था भी हमारे लिए खुली होनी चाहिए।
पूंजीपतियों का दावा है कि मौजूदा हालातों में किसान को फसल का उपभोक्ता मूल्य के रूप में केवल एक तिहाई मूल्य ही मिल पाता है। यदि किसान हित साधना है तो खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष पूंजी निवेश को मंजूरी दी जाए। इससे किसान और उपभोक्ता दोनों का मंगल होगा। सरकार खुदरा व्यापार में निवेश को इस नजर से भी देख रही है कि यदि अतिरिक्त पूंजी आती है तो इस क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जा सकेगा। ढांचे की कमी के चलते देश में हर साल एक लाख करोड़ टन फल और सब्जी नष्ट हो जाते हैं। कई करोड़ टन अनाज सड़ जाता है। सरकार और पूंजीपतियों के ये तर्क अपना पक्ष मजबूत करने के नजरिए से उचित ठहराये जा सकते हैं। इनका दूसरा पहलू यह भी है देश भर में शीतालयों (कोल्ड स्टोरेज) की जो कतारें पिछले डेढ़ दशक में लगी हैं, इनमें ताजा फल और सब्जियों की जमाखोरी कृत्रिम रूप से कीमतों में उछाल लाने का आधार भी बन रही है। प्याज और टमाटर में कीमतों मंे बेतहाशा इजाफे की जड़ में ये शीतालय भी हैं। सरकार ने इनके निर्माण हेतु न केवल जमीनें लीज पर दीं, बल्कि बड़ी मात्रा में आर्थिक छूट भी दी। बिजली भी इन्हें सस्ती दरों में चौबीसों घंटे उपलब्ध कराई जा रही है। जबकि जो किसान मौसम की मार झेलते हुए फसल के उत्पादन में जी-जान लगा रहा है, उसे सिंचाई तक के लिए बिजली की कोई गारंटी नहीं है। यदि शीतालयों के विद्युत कनेक्शन काट दिए जाएं तो जमाखोरी कम होगी और कीमतों में बेवजह उछाल नहीं लाया जा सकेगा।
भारत हाट बाजारों और दुकानों को देश प्राचीन समय में ही रहा है। पटरी, ठेलों, साइकिल और इंसानों के सिर पर रखी डलिया में भी खुदरा सामान की दुकानें सजी मिल जाएंगी। हर गली नुक्कड़ पर मौजूद और चलती-फिरती ये दुकानें करोड़ों लोगों की गुजर-बसर का साधन तो हैं ही, असंगठित अथवा फैले हुए होने के बावजूद देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इनकी आठ से दस फीसदी भागीदारी है। करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी और सम्मान इसी कारोबार से जुड़ा है। प्रत्यक्ष पूंजी निवेश के बहाने सरकार यदि इस कारोबार में सेंध लगाताी है तो सरकार को पहले सोच लेना चाहिए कि इन अकुशल लोगों को रोजगार और रोटी किस स्रोत से मुहैया कराएगी ? तय है कुछ चुनिंदा कंपनियां खुदरा क्षेत्र को हथियाकर और चंद लोगों को रोजगार देकर करीब 20 करोड़ लोगों के पेट पर लात मार देंगी। हालांकि सिंगल ब्राण्ड रिटेल में 51 प्रतिशत और थोक कैश एण्ड कैरी में शत-प्रतिशत विदेशी निवेश की मंजूरी पहले ही दी जा चुकी है। लेकिन वालमार्ट, कैरफूर, रिलायंस और भारती जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने सरकार पर बजट पूर्व ही पर्याप्त दबाव बनाना शुरू कर दिया है कि खुदरा क्षेत्र पूरी तरह कार्पोरेट सेक्टर के लिए खोल दिया जाए। जिससे विदेशी पूंजी का प्रवाह बढ़े।
दरअसल जनवरी से अक्टूबर 2010 तक भारत में विदेशी पूंजी की आमद 17.37 अरब डॉलर की रही। जबकि 2009 की इसी अवधि में 23.8 अरब डॉलर का निवेश हुआ था। तुलनात्मक दृष्टि से निवेश में 27 फीसदी कमी दर्ज की गई। हालांकि इसके लिए न तो सरकार दोषी है और न ही अर्थव्यवस्था। 2008 में आए वैश्विक आर्थिक और वित्तीय संकट के जलजले ने कंपनियों के मुनाफे को प्रभावित किया। लिहाजा कंपनियों ने व्यापार विस्तार से हाथ खींच लिए। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अब वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है, पर इसकी गति में उत्साहजनक तेजी नहीं है। क्योंकि विकसित देशों में मंदी का असर ज्यादा था। इसलिए वे मंदी से पूरी तरह उबरने के लिए विकाशील देशों पर बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र में नीतिगत प्रत्यक्ष पूंजी निवेश को बढ़ावा देने पर जोर दे रहे हैं।
चंूकि अब भारतीय कंपनियां भी वैश्विक हो रही हैं, इसलिए सरकार पर दबाव है कि प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश एक पक्षीय नहीं हो सकता। बराबर की भागीदारी जरूरी है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में दर्शाया है कि दूसरे देशों में बीते वित्तीय साल की पहली तिमाही में ही 2.8 अरब डॉलर निवेश की वृद्धि दर्ज की गई थी। इस बिना पर दुनिया के दूसरे मुल्क भारत के रक्षा और खुदरा क्षेत्र में निवेश की पुरजोरी से वकालात कर रहे हैं। अमेरिका भी भारत पर लगातार दबाव बना रहा है कि व्यापारिक संबंधों में परस्पर समान लेने-देने होना चाहिए। तभी दोनों देशों के हित सधेंगे। इसलिए भारत अमेरिका को अपना माल बेचने की खुली छूट तो दे ही अमेरिकी कंपनियों को खुदरा क्षेत्र में कारोबार करने के लिए भी पूरे दरवाजे खोल दे। लेकिन भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश को यहां यह समझने की जरूरत है कि अमेरिका जैसे औद्योगिक व विश्व की सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था वाले देश में बेरोजगारी का संकट इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि उसने दूसरे देशों के हर तरह के उत्पाद अपने देश में बेचने की खुली छूट दे दी। लिहाजा अमेरिका में बेरोजगारी की दर तो 9.5 फीसदी है ही, वहां अब गरीबी के बादल भी मंडराने लगे हैं। नतीजतन अमेरिका से ही सबक लेते हुए भारत को अपना खुदरा कारोबार मौजूदा हाल में रहने देना चाहिए। अन्यथा विदेशी पूंजी निवेश का दखल भारत में खुदरा क्षेत्र में लगे लोगों का रोजगार छीनकर अराजकता के हालात पैदा कर देगा। नतीजतन देश के सामने एक और नया संकट खड़ा हो जाएंगा ?
प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49, श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी (म.प्र.) पिन-473-551
लेखक वरिष्ठ कथाकार एवं पत्रकार हैं।
किसानों को बचाना ही पड़ेगा.. और खुदरा व्यापारियों को भी..
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