बड़े साहब में और ईश्वर में कोई खास फर्क नहीं है। बड़ा साहब भी ईश्वर की तरह ही सर्वशक्तिमान, अनन्त, अनादि और निर्विकार निर्गुण होता है। द...
बड़े साहब में और ईश्वर में कोई खास फर्क नहीं है। बड़ा साहब भी ईश्वर की तरह ही सर्वशक्तिमान, अनन्त, अनादि और निर्विकार निर्गुण होता है। दफ्तर के कण - कण में उसकी छवि दिखाई देती है जो नहीं देख पाते वे नास्तिक कहलाते हैं और ऐसे नास्तिक दफ्तर में ज्यादा दिन नहीं जी पाते। -- इसी व्यंग्य से.
जैसा कि आप जानते हैं, लोग जो हैं, वो वास्तव में बड़े होते हैं। कुछ लम्बाई में बड़े होते हैं, कुछ शरीर में और कुछ ओहदे में बड़े होते हैं। आज मैं उन लोगों का जिक्र करूंगा जो ओहदे में बड़े होते हैं, और सामान्य व्यक्ति उन्हें बड़े साहब या साहब कहकर पुकारता है। पद बढ़ने के साथ एक साधारण व्यक्ति में क्या-क्या परिवर्तन आते हैं, या आने चाहिए, इस संबंध में मैंने अत्यन्त महत्वपूर्ण शोध कार्य किया है और यह शोध कार्य आपकी सेवा में ज्ञानवर्द्धन हेतु सादर समर्पित है।
सबसे अहम बात ये है कि सरकार और सरकारी कार्यालय बिना साहब के नहीं चलते। यदि कहीं कोई सरकारी दफ्तर हैं तो उसके साहब या बड़े साहब भी होंगे यदि नहीं हैं तो साहब के बिना दफ्तर बिना मां-बाप के बच्चे की तरह है। कई बार एक ही साहब कई दफ्तर संभालते हैं, अतः वे अवैध बच्चों के भी बाप बन जाते हैं। मुझे आज तक ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं मिला जो साहब की शान में गुस्ताखी कर सके। बड़े साहब के बारे में मेरे एक मित्र का बयान है कि बड़े साहब में और ईश्वर में कोई खास फर्क नहीं है। बड़ा साहब भी ईश्वर की तरह ही सर्वशक्तिमान, अनन्त, अनादि और निर्विकार निर्गुण होता है। दफ्तर के कण - कण में उसकी छवि दिखाई देती है जो नहीं देख पाते वे नास्तिक कहलाते हैं और ऐसे नास्तिक दफ्तर में ज्यादा दिन नहीं जी पाते। अक्सर साहब लोग भी ट्रांसफर पर जाते हैं। सेवा निवृत्त्ा होते हैं और कभी-कभी मरते हैं। मरने से पूर्व साहब लोग कुत्ते पालते हैं, योगासन करते हैं, और अपने से छोटे साहब की बीबी से इश्क लड़ाते हैं इधर बड़े साहब के गुणों का अध्ययन करने के क्रम में मेरे दिमाग में निम्न महत्व पूर्ण बातें आई हैं।
सर्व प्रथम साहब को अपनी बीबी फूहड़, गंवार और अनावश्यक लगने लगती है। उसकी चाल ढ़ाल, सादगी और स्त्री की ऊब साहब को ऊबा देती है और साहब किसी नई बीबी की तलाश में चक्कर खाने लगते है। शुरू-शुरू में ऐसे साहबों हेतु गुणी बीबियों की विदेशों से आयात किया जाता था, लेकिन साहब लोगों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अब देशी बीबियां भी इस क्रम में उपयुक्त मानी जाने लगी हैं। गोरा रंग, बांकी चितवन और सिर पर छोटे बाल हो तो बड़े साहब की पत्नी, धर्मपत्नी या प्रेयसी बनना सम्भव है।
साहब बनने के दूसरे चरण में साहब लोग अपनी बीबी को छोड़ अन्य की बीवी को लेकर दफ्तर से बाहर सड़क और बाजार में घूमते हैं। घूमते-घामते अक्सर वे इस बात की फिक्र में रहते हैं कि कोई उन्हें देखे, नमस्कार कहे और वे अपनी नई पत्नी पर रोष गालिब कर सकें। मैं ऐसे साहबों को जानता हूं जो दफ्तर में चपरासियों को टिप देकर यह कार्य करवाते थें। उन्हें जो साहब नहीं कहते उनकी टांग खींच देते और जो एक बार साहब कह दे उसके सौ खून माफ। वास्तव में साहब बनते ही उनकी हालत प्यादे से फर्जी भयो - जैसी हो जाती है। वे दफ्तर को अपनी निजी सम्पति और सभी सदस्यों को निजी भेड़ बकरियां समझने लग जाते हैं। वे फाइलों के हलों को जोत-जात कर आंकड़ों की फसल उगाते हैं।
फाईलों के संबंध में हर साहब की अपनी निजी व्यवस्था होती है। कुछ साहबों के कमरे में जब फाइलें जाती थी तो वापस गर्भवती साहिबा-सी होकर लौटती थीं। एक साहब फाइल पर चिड़ियाँ बैठाकर ही वापस लौटा देते थे। और एक साहब थे जो फाइल को पढ़ने के बजाय डिक्टैशन देना ज्यादा आसान समझते थे। अक्सर डिक्टैशन का कारण उनकी सुन्दर स्टेनो होती थी। वे बोलते कम और देखते ज्यादा थे। इस कारण कई स्टैनो उन्हें छोड़ कर चली गयीं और साहब का दफ्तर बिन स्टैनो सून हो गया। एक और साहब हैं जो फाइल को पढ़ते तो थे, लेकिन उसे ऊपर या नीचे बिना हस्ताक्षरों के ही खिसका देते थे। अफसरों की बीबियों और फाइलों याने दोनों सौतनों पर चर्चा के बाद लाजिमी है कि हम आप साहब के अन्य क्रिया कलापों पर भी ध्यान दें।
अधिकांश साहब अक्सर सायं का समय क्लबों में गुजारते हैं और वहीं पर सियासत, राजनीति या दफ्तरों के अहम फैसले करते हैं। पांचवें पैग के बाद लिए गए निर्णय बहुत ही महत्वपूर्ण माने जाते हैं। हां, अब साहब लोग अपनी नई बीबियों पर अधिक ध्यान देने लगे हैं और बीबियां यह ध्यान रखने लगी हैं कि साहब दौरे पर कब जा रहे हैं और कब आयेंगे। और इस खाली वक्त का उपयोग कैसे किया जा सकता है। सच पूछो तो बड़ों की बात बड़ी और घड़े में पड़ी घड़ी है। आप चाहें तो इन साहबों की सूची में नेताओं, अफसरों, अभिनेताओं, व्यापारियों को भी जोड़ दें। सब कुछ एक साथ वैसे उन साहबों की हालत देखकर मुझे फिर एक नुक्ता याद आ रहा है, कौआ चला हंस की चाल। और ये कौए देश भर में कांव-कांव करते हुए देश का श्राद्ध कर रहे हैं। आप भी कुछ कीजिए।
कुल मिलाकर स्थिति ऐसी है कि आत्महत्या को जी चाहता है। वस्तु स्थिति यह है कि ये बड़े-बड़े शानदार दफ्तर, विभाग बड़े-बड़े ऊंचे दफ्तर और इन दफ्तरों में एक ऊंची कुर्सी पर एयर कंडीशन्ड कमरों में बैठे सबसे बड़े साहब। एयर कंडीशनर चलता है और साहब की कलम गरीबों के भाग्य का फैसला करती है।
प्रशासन का संसार बड़े साहबों के कमजोर कंधों पर टिका हुआ है और आज भी ऐसे साहब हैं जो पूर्ण ईमानदारी और निष्ठा से प्रशासन चलाते हैं, वास्तव में यह सब लिखने का एक कारण यह है कि मेरा भी काम बड़े साहब की टेबल पर रूका पड़ा है और मैं नहीं चाहता कि काम रूका रहे। शेष खैरियत है। बड़े साहब की कृपा है।
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यशवन्त कोठारी
86, लक्ष्मीनगर ब्रह्मपुरी बाहर
जयपुर 302002
फोन 2670596
कृपा बनी रहे..
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