आशा पाण्डे की कहानी - ममता

SHARE:

आज अम्मा बेहद खुश हैं। उनके बेटे की चिट्ठी आई है कि वह दादी बनने वाली हैं। कितने वर्षों से यह सुनने के लिए उनके कान तरस रहे थे। कितने पत्थर...

amma (Custom)

आज अम्मा बेहद खुश हैं। उनके बेटे की चिट्ठी आई है कि वह दादी बनने वाली हैं। कितने वर्षों से यह सुनने के लिए उनके कान तरस रहे थे। कितने पत्थर पूजे थे। कितनी मनौतियाँ मानी थीं, तब कहीं जाकर आज यह दिन आया है। अम्मा दौड़—द़ौड कर सबको यह समाचार सुना रही हैं— अरे बबुआ, अब तुम जल्दी ही चाचा बनने वाले हो। भतीजे को सुनाने के लिए कुछ कहानी—वहानी सीख लो और मुनिया, तू बुआ बनेगी तो भी क्या ऐसी ही नकचढ़ी जैसी रहेगी। अरे, थोड़ा शान्त स्वभाव की बन, नहीं तो बाबा, तू तो जरा—जरा सी बात पर भतीजे को मारेगी। अम्मा इतने विश्वास से भतीजे शब्द का प्रयोग कर रही हैं जैसे भगवान के यहाँ से सन्देशा आया हो कि बेटा ही होगा।

आज अम्मा को बहुत काम है। बबुआ की माँ से जिठानी का रिश्ता है, तो पीपल के पेड़ के पास वाली बूढ़ी अम्मा सास जैसी हैं। गांव में और भी कई घर हैं। जहां अम्मा की सास—ननद, जिठानी मौजूद हैं। सबके पैर छूने जाना है। न जाने किसके आशीर्वाद से आज यह दिन आया है। वैसे, गांव में अम्मा का सगा कोई भी नहीं हैं। उनका खुद का बेटा भी अपनी बीवी के साथ शहर में रहता है। बेटे के शहर जाने के बाद से अम्मा और रामनाथ बाबा दोनों अपने घर में अकेले ही रहते हैं, लेकिन अम्मा का दिल इतना बड़ा है कि पूरा गांव उसमें अपने नजदीकी रिश्ते के साथ समा सकता है। ममता की ऐसी मूरत कि गांव का हर बच्चा उन्हें अपनी औलाद लगता है। क्या मजाल कि अम्मा के रहते पड़ोस वाला रामू बिना खाए ही स्कूल चला जाए या फिर शंकर की बेटी बिना तेल—चोटी के गांव में घूमे। सबके लिए उनका दिल खुला है। बदले में किसी से कोई उम्मीद नहीं। किसी ने हंसकर बात की तो भी अपना, नहीं बात की तो भी अपना। वैमनस्य या विरोध शब्द का जैसे उन्हें ज्ञान ही नहीं है। अम्मा की इतनी भागदौड़, हर किसी की सेवा—सहायता रामनाथ बाबा को कम सुहाती है इसलिए रामनाथ बाबा हमेशा अम्मा को समझाते हैं। कभी—कभी तो दोनों में अच्छी कहा—सुनी भी हो जाती है। अभी कल ही तो बाबा अम्मा से कह रहे थे—”श्रीकान्त की अम्मा तुम पूरे गांव का जिम्मा क्यों लिए रहती हो ? अपने घर का काम करके कुछ देर आराम किया करो। इस उमर में इतनी भाग—दौड़ ठीक नहीं, लेकिन तुम्हें तो कभी किसी का पापड़ बनाना रहता है तो कभी किसी की बड़ी। किसी की बहू बीमार है तो किसी का बेटा परदेश से आया है। सारा भार तुम्हारे ही ऊपर है। बस, तुम से तो कोई प्यार से बोल भर दे कि तुम उंड़ेल देती हो अपनी ममता की गागर।”

अम्मा कहां सुनने वाली थीं। उनका दिल और दिमाग इतना संकरा नहीं था। अम्मा ने रामनाथ बाबा से कह दिया—”देखो जी, हम दो जन के लिए बनाने—खाने में समय ही कितना लगता है ? खाली पड़े—पड़े घर में कुढ़ते रहने या फिर गांव भर की बेटी—बहुओं की बुराई करने से तो अच्छा है कि सबको अपना समझ कर उनके बीच हंसते—हंसाते दिन बीत जाए। जिन्दगी में रखा ही क्या है ? अपना बेटा भी तो दूर है। वक्त—जरूरत यही लोग हमारे काम आएंगे। कल को जब मरेंगे तो रोने वालों की कमी नहीं रहेगी।”

वैसे जानने को तो रामनाथ बाबा भी जानते थे कि मेरे कहने—सुनने का कुछ असर उन पर नहीं पड़ेगा। अम्मा भीतर से जितनी भावुक हैं उतनी ही सख्त और सजग भी। किसी के कहने—सुनने से उनकी भावुकता में कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसा प्रेम, ऐसा अपनापन किस काम का कि रामनाथ बाबा कुछ बोल दें तो अम्मा पीछे हो जाएं। जब कदम बढ़ाया है तो सख्ती से, सजगता से अंत तक उसका निर्वहन भी करना है। गजब का दिल पाया है अम्मा ने। वैसे अपने घर को बिलखता छोड़ सिर्फ नाम के लिए समाज सेवा करने वाली समाज सेविकाओं जैसी नहीं हैं अम्मा। अपने घर को बड़े यत्न से संभाला है अम्मा ने। कोई कसर नहीं छोड़ी। इसलिए रामनाथ बाबा भी यद्यपि अम्मा को बाहरी झंझट में न पड़ने की हिदायत देते थे किन्तु मन ही मन पत्नी के विशाल हृदय को देख गर्वित होते थे। आज उन्हीं अम्मा के घर खुशी का इतना बड़ा पैगाम आया है।

इधर दस—पन्द्रह दिन से अम्मा कुछ कम दिख रही थीं। कल मैंने पूछ ही लिया— “अम्मा, आज कल आप कहां रहती हैं, बहुत कम दिखती हैं ? “ अम्मा तुरन्त धोती समेटते हुए मेरे पास बैठ गई थीं, जैसे उन्हें इन्तजार ही था कि कोई उनसे उनकी व्यस्तता का कारण पूछे और फिर पूरे पन्द्रह दिन का ब्यौरा दे डाला था उन्होंने— “क्या करती मुन्ना की बहू, अब ज्यादा समय ही कहां है कि बैठकर दिन बिताऊं ? बहू को बच्चा होने में सिर्फ दो महीने ही तो बचे हैं। अब जब इतने दिन पर हरियाली आई है तो ‘नेग’ वाले नेग मांगेंगे ही। उसकी व्यवस्था तो करनी ही पड़ेगी। नाऊन कह रही थी कि अम्मा, खाली धोती से काम नहीं चलेगा, एकाध सुनहली चीज पहनूंगी। अब नाऊन को दूंगी तो बनिया जो मेवे की थाल लाएगा वह भी तो ठनगन करेगा। भले ही हरखू नाड़ा नहीं काटेगी लेकिन नेग तो उसे भी चाहिए। अब नर्स और अस्पताल का फैशन हो गया तो उसमें हरखू का क्या दोष ?” एक सुलझे विचारक की मुद्रा में बोल गईं थीं अम्मा। फिर थोड़ा सा रुक कर सोचते हुए आगे बोलीं— “बहू के लिए सोंठ के लड्डू की व्यवस्था भी करनी है। कल गनपत के यहाँ गई थी। शुद्ध घी के लिए बोल आई हूँ। कह रहा था कि सबको सौ रुपए किलो देता हूं, तुम्हें सत्तर में लगा दूंगा। मैंने उससे कह दिया कि मैं पैसे की कोई कोर—कसर नहीं रखूंगी, हां, माल शुध्द होना चाहिए। अब का खाया—पिया ही काम आता है, नहीं तो शरीर टूट जाता है।”

“सो तो है अम्मा, अब आप हैं जो बहू की इतनी जतन कर रही हैं, हर सास ऐसी थोड़ी होती है। श्रीकान्त भइया की बहू किस्मत वाली है जो आपको सास के रूप में पाई है।”

अपनी प्रशंसा सुनकर अम्मा के चेहरे पर गुलाबी रंगत आ गई। फिर थोड़ा मुस्कराते हुए वह अपनी आगे की तैयारी बताने लर्गी— “मोती सुनार के यहाँ भी मैं गई थी। वह भी उधारी में दो—चार जोड़ चांदी की पायल देने को तैयार हो गया है। अब मुन्ना की बहू, सबको सुनहले की आशा है तो कम से कम चांदी का तो दे ही दूं। नाती के लिए सोने की चेन बनाने को भी बोल आई हूं। दो—चार जोड़ी कपड़े भी तो लेने पड़ेंगे। आखिर दादी हूं मैं।”

मैंने कहा— “अम्मा, इन सब कामों के लिए श्रीकान्त भइया पैसे देंगे ही, तुम क्यों इतनी चिन्ता कर रही हो, सब हो जाएगा।”

अम्मा अपने सिर से खिसकती हुई धोती को ऊपर खींचते हुए बोली थीं—”मैं श्रीकान्त के भरोसे थोड़े बैठूंगी बहू, उसकी भी कौन—सी बड़ी नौकरी है। शहर का खर्चा तो जानती ही हो, गांव जैसा कहां कि कोई आया तो गुड़—पानी देकर फुर्सत मिले। आखिर शहर में भी तो उसके यार दोस्त खाने—खिलाने को कहेंगे। दोनों जगह का खर्च वह कैसे कर सकेगा ? यहां का तो सब मैं ही संभालूंगी। अपने बाबा को तो जानती ही हो। दुनिया इधर की उधर हो जाए उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं सलाह—मशविरा करती हूं और वह हैं कि हां—हूं कह कर बात को टाल देते हैं।”

अचानक अम्मा का चेहरा कुछ दु;खी हो गया। नम आंखों को पोंछते हुए बताने लगी। “कल श्रीकान्त की चिट्ठी आई थी। बहू सौर के लिए मायके जाएगी, यहां उसकी देखभाल नहीं हो पाएगी।” फिर जैसे खुद को ही समझाते हुए बोलीं — “वहां उसकी मां है, देखभाल कुछ अधिक जतन से होगी। श्रीकान्त ने भी सोचा होगा कि हमारे अम्मा—बाबूजी क्यों परेशान हों। दौड़—धूप अलग से करनी पड़ेगी, पैसा अलग खर्च होगा, इसलिए वह भी उसके मायके जाने पर राज़ी हो गया होगा, और मुन्ना की बहू, ससुराल ससुराल ही होती है, मैं कितना भी उसे काम न करने को कहूंगी लेकिन वह मानेगी नहीं। मेरा ही लिहाज उसे आराम नहीं करने देगा। अच्छा हुआ जो श्रीकान्त ने उसे मायके भेजने को सोचा।” अम्मा के चेहरे पर संतोष झलक रहा था। अचानक अम्मा कुछ याद करते हुए जल्दी से उठ गई—”चलूं बहू, बहुत काम है। बच्चा भले ही उसके मायके में हो बरही तो यहीं होगी, उसका तो सब करना ही है।” कह कर तेज कदमों से अम्मा आगे की व्यवस्था करने चली गईं।

इंतजार की घड़ी बीती। श्रीकान्त को सचमुच बेटा ही हुआ। अम्मा के घर में बधाई देने वालों का तांता लग गया। हमेशा शान्त रहने वाले रामनाथ बाबा भी आज दौड़—दौड़ कर सबका स्वागत कर रहे थे। अम्मा के चेहरे पर तो खुशी के हजारों—हजार दीप जगमगा रहे थे। वह दौड़—दौड़ कर सबको मिठाई खिला रही थीं। कोई बुआ बनने का नेग मांग रही थी, तो कोई दीदी बनने का। अम्मा किसी को नेग देने की हामी भर रही थीं तो किसी को यह बता रही थीं कि उनका हक उस बच्चे पर अम्मा से पहले है। बगल वाली हीरा की काकी ने पूछा—”बरही कब कर रही हो ? क्या सवा महीने तक बहू मायके में ही रहेगी ?” अम्मा ने झट उत्तर दिया—”नहीं दीदी, सवा महीने वहां रहेगी तो मैं नाती को देखे बगैर कैसे रह पाऊंगी ? कल पहले श्रीकान्त के बाबूजी को भेजूंगी, फिर दस—पंद्रह दिन बाद कोई अच्छी—सी साइत देख कर उसे बुला लूंगी।”

रात हो गई थी, सब अपने—अपने घर जा चुके थे। अम्मा घर का काम निपटा कर सोने की तैयारी करने लगीं। बिस्तर पर लेटीं तो, लेकिन आज अम्मा को नींद नहीं आ रही थी। वर्षों से संजोया हुआ सपना आज साकार हो गया था। चेहरे पर इंतजार खत्म होने का तृप्ति भाव था और मन में बरही कार्ङ्मक्र म की उधेड़—बुन। दिल पोते के काल्पनिक चेहरे पर टिका हुआ था—कैसा दिखता होगा वह ? जरूर श्रीकान्त जैसा ही होगा। उन्हें अट्ठाइस साल पहले का नन्हा, प्यारा, गोलमटोल आंखों वाला श्रीकान्त याद आ गया। कितना प्यारा था श्रीकान्त, सफेद रूई के फाहे जैसा। वह तो लोहबान के धुंए से सेंकते—सेंकते उसका शरीर ललछर पड़ गया था। सिर में नरम—नरम काले बाल। साक्षात् कन्हैया दिखता था। अम्मा को लगा श्रीकान्त उनके बगल में लेटा हुआ किंहा—किंहा कर रहा है। ठीक अट्ठाइस साल पहले जैसा। समय इतनी जल्दी बीत गया। वही नन्हा श्रीकान्त आज बाप बन गया है—एक सुंदर से बेटे का बाप ! हां, सुंदर ही होगा उनका पोता, आखिर उनकी बहू भी तो लाखों में एक है। वह जिसको भी पड़ा होगा लेकिन होगा सुंदर ही, अम्मा को पूरा भरोसा है।

उस रोज अम्मा अपने घर के आंगन में कुछ उदास बैठी थीं। मुझे लगा, शायद तबीयत ठीक नहीं होगी इसलिए पास जाकर हाल—चाल पूछने लगी। बहुत यत्न से रोके गए उनके आंसू मुझे देखते ही लुढ़क पड़े। आंखों को पोंछते हुए बताने लगीं— “आज श्रीकान्त की चिट्ठी आई है। बहू के मायके वाले बरही अपने ही घर में करना चाहते हैं। लिखा है कि इतने दिन से सेवा—सहायता कर रहे हैं, अगर बरही के लिए अपने यहाँ बुला लूंगी तो उन लोगों का मन टूट जाएगा। सरोज की मां को नाती की बड़ी आस थी। अब जब वह पूरी हो गई तो उनसे बरही का हक मैं कैसे छीनूं ? उसने आगे लिखा है कि वह शहर से सीधे वहीं चला जाएगा और यहाँ से बाबूजी को भेज देना। श्रीकान्त के बाबूजी तो चिट्ठी पढ़ते ही नाराज हो गए लेकिन मैंने उन्हें समझाया। मन तो मेरा भी बहुत दु;खी हुआ लेकिन बहू, श्रीकान्त ने ठीक ही लिखा है कि आखिर परेशानी तो उन लोगों ने उठाई फिर खुशी मनाने का हक उनसे क्यों छीने ? तुम्हारे बाबा के हाथों बच्चे का कपड़ा और चेन भेज दूंगी। फिर बहू शहर जाने से पहले तो यहाँ आएगी ही, तब गाना बजाना करके मैं भी अपना शौक पूरा कर लूंगी।” अम्मा यंत्रवत् कह गई थीं। उनकी आवाज में न तो कोई जोश था न उत्साह। दिल की लाचारी तथा मुख पर पीड़ा के भाव स्पष्ट झलक रहे थे। मैं अम्मा के अब तक के उत्साह तथा इस हताशा का मन ही मन आकलन करने लगी। अम्मा की ममता धोखा खा गई।

कई दिनों से अम्मा को देखा नहीं, उनसे मिलने जाने की सोच ही रही थी कि रामनाथ बाबा आ गए। मुझे लगा, श्रीकान्त भइया की बहू घर आई हैं, यह संदेशा देने आए होंगे लेकिन आते ही वह क्षीण आवाज में बोले—”मुन्ना की बहू, अपनी अम्मा को समझाओ, कल से खाना नहीं खाई हैं।” मैंने कारण पूछा तो बाबा ने बताया—”कल श्रीकान्त ससुराल से ही अपनी बहू तथा बच्चे को लेकर शहर चला गया। कह रहा था कि छुट्टी नहीं है। यहाँ आने पर चार—पांच दिन बेकार चले जाते, सो फिर कभी लम्बी छुट्टी लेकर आराम से आएगा।”

मैं अम्मा के पास आ तो गई लेकिन समझ नहीं पा रही थी कि पेड़ से टूटे हुए सूखे पत्ते को भला मैं कैसे सहारा दे पाऊंगी। मैंने अम्मा की तरफ एक दर्द भरी दृष्टि डाली, उनके चेहरे पर की अव्यक्त पीड़ा मुझे साफ दिख रही थी। वह लगभग कराहती हुई आवाज में बोलीं— “श्रीकान्त दो—चार दिन के लिए आकर मुझे मोह में नहीं डालना चाहता था इसलिए फिर कभी लम्बी छुट्टी लेकर आएगा।. . . . . .बहुत प्यार करता है मुझे। वह तो बच्चे को देखने का बहुत मन था इसलिए मैं दुःखी हो गई थी।”

मैं हतप्रभ थी। ममता की इस मूरत को भला मैं क्या समझाऊं। समझना तो श्रीकान्त जैसे बेटों और सरोज जैसी बहू को चाहिए जो मां की निश्छल ममता को ठग लेते हैं। वैसे मन ही मन समझ अम्मा भी रही थीं बेटे के प्यार को और समझ मैं भी रही थी अम्मा की विवशता को।

----

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. --ह्रदय द्रवित है--कमेन्ट करने को दिल ही नहीं कर रहा...
    आज कल यही स्थिति है सब जगह,,,सब भौतिकता व अन्धी दौड का नतीज़ा है.

    जवाब देंहटाएं
  2. जीत हंकार की हुई आखिर !
    प्यार की, हार ही हुई आखिर !!

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: आशा पाण्डे की कहानी - ममता
आशा पाण्डे की कहानी - ममता
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7B3eZ7jYtkH5ZwHuqLEQvRay0xX-8eI39eWPqspy6_DoaQn8uHtqVrtWZz3AjrxtDMj3i7_re-xH-a5Ol-h-F2gEbo6q-9UUF9W3ykeGjSKzJlEVupLU2uQMxUiz-gGMlWQsL/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7B3eZ7jYtkH5ZwHuqLEQvRay0xX-8eI39eWPqspy6_DoaQn8uHtqVrtWZz3AjrxtDMj3i7_re-xH-a5Ol-h-F2gEbo6q-9UUF9W3ykeGjSKzJlEVupLU2uQMxUiz-gGMlWQsL/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2010/12/blog-post_6604.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2010/12/blog-post_6604.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content