उस समय सुबह के 10-11 बजे थे, मैं अपने घर की बालकनी में बैठी सड़क पर लोगों की आवाजाही देख रही थी। उस समय मेरी उम्र लगभग 10-11 वर्ष रही होगी।...
उस समय सुबह के 10-11 बजे थे, मैं अपने घर की बालकनी में बैठी सड़क पर लोगों की आवाजाही देख रही थी। उस समय मेरी उम्र लगभग 10-11 वर्ष रही होगी। अचानक ही एक मेटाडोर ने हमारे घर की गली में प्रवेश किया और घर के नीचे आकर खड़ी हो गई। उसमें किसी का घर-गृहस्थी का सामान भरा हुआ था। मैंने उसे देखकर अन्दाजा लगाया कि हमारे घर में कोई नए किराएदार आए हैं। हमारा घर काफी बड़ा होने के कारण उसमें अक्सर नए-पुराने किराएदारों का आना-जाना लगा रहता है। धीरे-धीरे उस मेटाडोर में से सामान अन्दर जाने लगा। मैं बालकनी से सामान की उठापटक बड़े रोमांच के साथ देख रही थी। पूरा सामान एक-एक कर उस मेटाडोर से कमरे में चला गया। अब मुझे यह जानने की बड़ी इच्छा हो रही थी कि इसमें रहने के लिए कौन लोग आए हुए है। मैं मन ही मन सोच रही थी कि काश! कोई मेरी उम्र की लड़की आ जाए और मुझे एक सहेली मिल जाए ? मैं यह सब सोच ही रही थी कि एक मेरी ही उम्र की लड़की अपनी मम्मी और अपनी छोटी बहन के साथ सामने से आती हुई उन्हीं कमरों के अन्दर चली गई जिसमें मेटाडोर से उतारा गया सामान रखा गया था। मेरे मन में एक खुशी की लहर दौड़ गई और मैं उस लड़की से बात करने को बेचैन होने लगी। मगर मेरा स्वभाव कुछ अलग ही किस्म का होने के कारण मैंने पहले उससे बात नहीं की। मेरी बड़ी बहन, जिनका नाम सलोनी है वे बड़ी ही मिलनसार हैं। वे बेझिझक किसी से भी बात कर लेती हैं और उसे अपना दोस्त बना लेती है।
इस सब में शाम कब हो गई पता ही नहीं चला और मैं अपने पापा के साथ घूमने बाजार चली गई जब मैं बाजार से लौटकर घर पहुंची तो मैंने देखा, वही लड़की जो हमारी नई किराएदार है वो मेरी बड़ी दीदी के साथ बैठी है और वे दोनों एक दूसरे से बातें कर रही हैं। यह देखकर मैं भी उन्हीं के पास जा पहुंची। सलोनी दीदी ने हम दोनों का परिचय कराया।
एक दिन मैं और रूपाली हमारी ही कॉलोनी के पार्क में खेलने के लिए गए थे। पार्क में एक ही झूला होने के कारण बहुत सारे बच्चों की भीड़ लगी हुई थी। सब अपनी बारी का इन्तजार कर रहे थे। हम दोनों को भी काफी देर हो गई थी वहाँ खड़े-खड़े। लेकिन हमें झूला झूलने का मौका नहीं मिल रहा था, तभी मेरी सहेली रूपाली की नजर एक लड़की पर पड़ी जो हमारी ही हम उम्र थी, वो भी हम दोनो को काफी देर से देख रही थी। रूपाली का स्वभाव भी दोस्ताना है, उसने इशारे से उस लड़की को अपने पास बुलाया, वो लड़की हंसती हुई हमारे पास आकर खड़ी हो गई।
रूपाली ने उससे नाम पूछा तो उसने बताया, ‘‘सपना‘‘!
उसने भी हमारे नाम जानने चाहे, तब रूपाली ने अपना नाम ‘रूपाली‘ बताया और मेरा नाम ‘महक‘। हमने एक -दूसरे के घर के पते भी जान लिये।
अगले दिन रविवार को छुट्टी होने के कारण मैं और रूपाली जल्दी सुबह उठकर पार्क में झूला झूलने के लिए चले गए। इस समय बच्चों की कम भीड़ होती है। हम जैसे ही पार्क के अन्दर घूसे, हमने देखा कि सपना अपनी छोटी बहन के साथ झूले पर झूले रही है। वह हमें देखकर हँसी भी हम दोनों यह देख कर मन ही मन बहुत खुश हुए कि आज तो हमें आराम से झूलने को मिल जाएगा। हम उसके पास पहुंचे तो उसने हमसे झूले पर बैठने को कहा, हमें देखकर उसकी छोटी बहन झूले पर से उतरकर अपने घर चली गई। मैंने और रूपाली ने सोचा कि ये हमारे कारण चली गई । लेकिन हमारा सोचना गलत था, सपना ने हमें बताया कि वह काफी देर से झूल रही थी इसलिये चली गई। हम तीनों खूब झूले। मन भर गया तब घरों को लौट गए। रोज किसी न किसी बहाने हमारी मुलाकात होने लगी। धीरे-धीरे घरों में आना-जाना भी शुरू हो गया। बस इसी तरह हममें बोलचाल बढ़ने लगा और हमारी दोस्ती भी।
जैसे हम बड़े होने लगे हमारी दोस्ती और भी ज्यादा गहरी होने लगी। हमें कहीं पर भी जाना होता एक साथ जाते। कुछ भी शरारत करनी होती एक साथ करते। हमारी शरारतों में से एक शरारत थी दुकानों से चीजें पार करना, लेकिन सपना इसमें हमारा साथ नहीं देती थी। पर मुझे और रूपाली को बड़ा मजा आता। यह बात हम अपने घरवालों से छुपाकर रखते थे। लेकिन सलोनी दीदी को एक-एक बात बताते थे, कि आज हमने क्या शरारत की वो भी हमारा उत्साहवर्धन करती और हमें नई-नई तकनीकें बताती कि वे भी किस प्रकार से यह शरारत अपनी सहेलियों के साथ करती थीं ?
मैं और रूपाली एक दीदी (टीचर) के यहां पढ़ने जाते थे, वह दीदी कम, दोस्त ज्यादा थीं। हम उनसे इतने घुल-मिल गए थे, कि उन्हें अपने मन की छोटी-बड़ी बात बता देते। जब हम उन्हें अपनी चोरी की शरारत के बारे में बताते तो वह पहले बहुत जोर से हंसती। फिर उन्होंने मुझसे कहा, ‘महक तुम एक ऐसे घर से हो जहां तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं है। रूपाली तुम्हें भी। फिर तुम ऐसी हरकत क्यों करती हो ?‘ हम दोनों ने मुस्कुराते हुए कहा, दीदी जो मजा चुराकर खाने में आता है, वह मजा पैसे देकर कहां आता है ? ये सब शरारतें मनोरंजन के लिए करते हैं। जिस दिन पकड़े जाएगें, उस दिन सोचेंगे कि अब क्या होगा ?‘ यह सब सुनकर वे दंग रह गईं कि ये कैसी निडर लड़कियां हैं ? इन्हें जरा भी भय नहीं है? फिर वह भी हमारी शरारतों को बचपना समझकर मजा उठाने लगीं।
इन शरारतों में हमारा बचपन छिपा था, कब चला गया पता ही नहीं चला। अब हम तीनों ने युवावस्था में प्रवेश किया, अब हम पहले से ज्यादा समझदार हो गये थे। युवा होने के कारण रूपाली और सपना के घरवालों ने उन पर बंदिशें लगाना शुरू कर दीं। अब उनके लिए पहले की तरह कहीं भी आना-जाना आसान नहीं रह गया। लेकिन मेरे घरवालों ने मुझ पर कोई बंदिश नहीं लगाई क्योंकि मैं शुरू से ही बाहर के कामों में अपने परिवार की मदद करती थी, और मेरे घरवालों की सोच आज के जमाने की तरह थी। रूपाली और सपना के घरवाले भी उन्हें सिर्फ मेरे साथ ही कहीं भी भेजने को तैयार हो जाते थे। क्योंकि वे मुझसे और मेरे परिवार से भलीभांति परिचित थे।
एक दिन मैं सपना के घर गई। उस समय उसके घर में आलू के परांठे बन रहे थे और सपना को यह पता था कि मुझे आलू के परांठे बहुत पसन्द हैं। उसने मुझे बिना खाए नहीं जाने दिया। जब मैं उसके यहां से लौटी तो मम्मी ने मुझसे खाने के लिए पूछा, मैंने उनसे कहा कि मैं सपना के यहां आलू के परांठे खा आई हूँ। मम्मी ने तो कुछ नहीं कहा, लेकिन वहीं पास में मेरी दादी बैठी हुई थीं, वे पुराने खयालात की होने के कारण रूढ़िवादी हैं । जैसे ही उन्होंने यह सुना कि मैं सपना के यहां , आलू के पराठे खाकर आई हूं तो वे बिना कुछ सोचे समझे अपने खयालात थोपने लगीं, ‘अरे! इस लड़की ने तो अपना धर्म ही भ्रष्ट कर लिया, निम्न जाति के यहां खा आई, जल्दी इस पर गंगा जल डालो नहीं तो ये सबको अपवित्र कर देगी।‘ जाने क्या-क्या उन्होंने कह डाला।
सपना अनुसूचित जाति से है इसलिए मेरी दादी जी को हमारी दोस्ती पसन्द न थी और वो शुरू से ही मुझे उससे दूर रहने को कहती रहती थीं। लेकिन मैंने कभी भी उनकी बात नहीं सुनी। मैं शुरू से ही काफी खुले विचारों वाली लड़की रही हूँ सो मेरे ऊपर उनकी बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था, लेकिन उस दिन तो उन्होंने अति ही कर दी थी, आलू के परांठे क्या खा लिए, घर सिर पर उठा लिया। मुझसे यह सब सहन नहीं हुआ और मैंने भी दादी को बहुत कुछ कह दिया और यह भी कह दिया की अब तो मैं रोज ही उसी के यहाँ खाकर आऊंगी, देखती हूँ उसके यहां खाने से क्या मुझ पर प्रभाव पर पड़ता है ? फिर मम्मी ने मुझे चुप कराकर अन्दर भेज दिया और दादी को समझाने लगीं। मैं पूरी दिन यही सोचती रही की कब हमारा देश इन सब चीजों से मुक्त हो पायेगा, क्या हमें दोस्ती जाति पूछकर करनी चाहिए ? क्या वे लोग इन्सान नहीं होते ? क्या इक्कीसवीं सदी में भी जातीय भेदभाव बरकरार रहेंगे ? जाने कैसे-कैसे विचार मेरे मन में उथल-पुथल हो रहे थे।
अगले दिन की सुबह मैं और रूपाली जैन मन्दिर दर्शन करने के लिए गए। रूपाली जैन धर्म से थी। लेकिन जैन धर्म का पालन न के बराबर ही करती थी, अपने पापा की डांट से बचने के लिए। सब कुछ अपनी जगह ठीक चल रहा था कि एक दिन तीनों को जिन्दगी में तूफान आया जब हमें पता चला कि सपना के घरवाले अब उसकी शादी करने वाले है और कहीं पर उसकी शादी की बात चल रही है, जो लगभग पक्की सी है। हम सोचने लगे कि इतनी सी उम्र में शादी ? अभी सपना की उम्र ही कितनी है 18-19 साल। अभी तो उसने केवल इन्टर ही पास किया है। अभी उसमें इतनी समझ नहीं है कि वह घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी उठा सके ? उस दिन से सपना काफी दुखी रहने लगी। उसने घर से बाहर निकलना भी बंद कर दिया। बस अपने में ही गुमसुम रहती। मैं और रूपाली भी उसके लिए बहुत परेशान थीं। हम समझ नहीं पा रहे थे कि हम उसके लिए क्या करें ? आज तक हमने एक-दूसरे की हर मुश्किल को आसान किया है तो इस विपदा में उसे अकेला कैसे छोड़ सकते थे ? सपना कॉलेज की पढ़ाई भी करना चाहती है। उसकी भी अपने पैरों पर खड़ी होने की इच्छा है। सपना ने वैसे भी इस साल अपनी कक्षा में टॉप किया था। हम दोनों उसके सपनों को यूँ चूर-चूर होते नहीं देख सकते थे।
एक दिन मैं और रूपाली उसी की मुश्किल को हल करने के बारे में सोच ही रहे थे कि तभी सपना हमारे पास आकर खड़ी हो गई। दो-पांच मिनट तक हम तीनों एक-दूसरे के चेहरे देखते रहे। मैंने और रूपाली ने एक साथ जब सपना की ओर देखा तो उसकी आंखों में आंसू थे और वह हमें देखकर रोते हुए कहन लगी, ‘मेरी किस्मत बहुत बेकार है जो मैंने दकियानूसी परिवार में जन्म लिया।‘
मैंने उसे धीरज बंधाते हुए कहा, ‘किस्मत किसी की बेकार नहीं होती, हमें ख्ुाद अपनी किस्मत बनानी पड़ती है ? ऐसे हिम्मत हारने से कुछ हासिल नहीं होगा ?‘ सपना ने हमें बताया कि उसकी सगाई पक्की हो गई है और लड़के वालों ने दहेज की भी बड़ी मांग की है। जिसके कारण पापा काफी परेशान हैं। अब रिश्ता तोड़ भी नहीं सकते
क्योंकि पूरे समाज को इस बात का पता चल चुका है। पापा को परेशान देखकर मां भी अपने गहने गिरवी रखने को तैयार हो गई हैं। पापा भी अपनी गांव वाली जमीन गिरवी रखने को तैयार हैं। सपना यह सोचकर परेशान थी कि उसकी शादी में अपना सब कुछ दांव पर लगा देने के बाद उसकी छोटी बहन का क्या होगा ? उसकी शादी कैसे होगी ? और भाई को भी कैसे पढ़ायेंगे ?
मेरी और रूपाली की समझ कुछ नहीं आ रहा था कि हम किस तरह से अपनी सहेली को इस मुश्किल से बाहर निकालें ? जैसे-जैसे सपना की शादी के दिन करीब आते जा रहे थे हमारी बैचेनी बढ़ती जा रही थी। हमने हिम्मत नहीं हारी थी। हम यह सब सोचने में उलझे हुए थे कि तभी हमारे घर में काम करने वाली मीरा मेरे पास आई और कहने लगी ‘आपकी मम्मी बुला रही है।‘ मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया क्योंकि वैसे ही तो मैं पहले से परेशान थी और अब जाने ये मम्मी क्या कहने वाली है ? मैं उठकर मम्मी के पास गई तो मम्मी का खिलखिलाता हुआ चेहरा देख कर मैंने उनसे पूछा ‘‘ मम्मी क्या कह रही हो ?‘‘ मम्मी ने हंसते हुए कहा कि तेरे जीजाजी का अभी फोन आया था उन्होने बताया कि सलोनी 11ः55 की ट्रेन से बैठी थी और वह शिवपुरी पहुंचने वाली होगी तो आप उसे रेलवे स्टेशन से पिकअप कर लें।‘‘ मैंने जब यह सब सुना तो मैं अपनी पूरी परेशानी भूल गयी और सोचने लगी कि हमारी किस्मत कितनी अच्छी है कि सलोनी दीदी बिलकुल सही मौके पर यहां आ रही हैं।
सलोनी दीदी महिला विकास अधिकारी के पद पर कार्यरत हो गई थीं और उनकी शादी भी एक पुलिस
अधिकारी से हुई थी। अब मुझे मुश्किल आसान होती नजर आ रही थी। मैं यह सब सोचने में इतनी खो गई कि मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि मम्मी मुझसे और भी कुछ कह रही हैं और मैं उनकी तरफ देख ही नहीं रही हूं। तभी मम्मी मुझे हिलाते हुए कहती है, ‘महक कहां खो गई ? दीदी को रेलवे स्टेशन लेने नहीं जाना क्या ? जल्दी कर बेटा ट्रेन आने ही वाली होगी।‘ जल्दी से तैयार होकर मैं और रूपाली कार से दीदी को लेने रेलवे स्टेशन गये, वहाँ हमें ज्यादा इन्तजार नहीं करना पड़ा 10-15 मिनट के भीतर ही ट्रेन आकर खड़ी हो गई। अब हमारी नजरें दीदी को ढूढ़ रही थीं। तभी दीदी ट्रेन से हाथ हिलाती हुईं उतरी शायद उन्होने हमें ट्रेन में से देख लिया था, हम दौड़कर दीदी के पास पहुंचे जब तक हमारे ड्राइवर ने दीदी का सामान उनके हाथ से ले लिया और वह कार की ओर चला गया।
बातें करते हुए हम भी घर पहुंच गये। मैंने दीदी को सपना के बारे में अभी बताना ठीक नहीं समझा, वे एक लम्बा सफर तय करके आयी थी और उन्हें आराम की जरूरत थी। लेकिन अनायास ही दीदी ने सपना के बारे में पूछ लिया। जैसे मेरी मुराद पूरी हो गई और मैंने अब तक का पूरा घटनाक्रम दीदी के सामने बयां कर दिया। दीदी ने अगले दिन सपना से सीधी बात करने को कहा और फिर हम सब लोग सो गए।
अगले दिन की सुबह जब मैं सो कर उठी तो मुझे ध्यान आया कि आज तो मुझे सपना को घर पर बुलाना है। मैं जल्दी से उठकर तैयार होकर नाश्ता कर सपना के घर पहुंची। वहां उसकी मम्मी नीचे आंगन में कपड़े
धो रही थीं। उन्होंने मुझे देखकर हंसते हुए कहा, ‘अरे महक बेटा कैसी हो ?‘ मैंने कहा, ‘ठीक हूं। फिर इसके आगे वो कुछ कहती, मैंने झट से उनसे पूछ लिया, ‘‘आंटी सपना कहां है ?‘‘ उन्होने कहा, ‘बेटा वो ऊपर है, किचिन में। और मैं जीने चढ़ गई। सपना किचिन में खाना बना रही थी। मुझे देखकर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई। मैं वहीं पास मैं बैठ गई। फिर मैंने सपना को बताया कि दीदी उससे मिलकर उसकी समस्या का निराकरण करना चाहती हैं। फिर क्या था, सपना उत्साह से भर गई। उसने जल्दी घर का काम निपटाया। बाल-सँवारे। फिर हम सीढ़ियां उतर गए। आंटी कुछ कहती, इससे पहले ही मैं बोल पड़ी, ‘आंटी कुछ देर के लिए मैं सपना को अपने घर ले जा रही हूं। सलोनी दीदी सपना को याद कर रही हैं। उन्होंने इजाजत दे दी।
हम घर पहुंच गए। सपना को देखते ही दीदी ने उसे अपने पास बुलाया, वहीं रूपाली भी बैठी हुई थी। दीदी ने सपना से कहा, ‘सपना तुम्हें इस परेशानी से निकालने के लिए मैं तुम्हारे साथ हूं। मैं तुम्हारी पूरी मदद करूंगी । क्या इस सब में तुम मेरी मदद करोगी ?‘ सपना ने पूछा, ‘मुझे क्या करना होगा ? मैं क्या कर सकती हूं ?‘ दीदी ने कहा ‘‘तुम ही हो जो सब कुछ कर सकती हो, आज महिलाओं को इतने अधिकार मिल गए हैं कि वो उनके साथ अन्याय करने वालों को धूल चटा सकती हैं। कानून के हिसाब से दहेज लेना एक अपराध है जिसके लिए सात वर्ष की सजा भी हो सकती है। अगर तुम चाहो तो उन लोगों को पुलिस के हवाले कर उन्हें जेल की हवा खिला सकती हो। सपना ने कहा, ‘दीदी इससे तो हमारे समाज की सोच के अनुसार हमारी बहुत बदनामी होगी ? मेेरे पापा मुझे इसकी इजाजत कभी नहीं देंगे।‘ तभी रूपाली बोल पड़ी, ‘देख सपना इसमें समाज का कुछ नहीं बिगड़ेगा ? तू समाज की परवाह मत कर, लोगों की मानसिकता को कोई नहीं बदल सकता। अगर तू समाज का भला सोचती रहेगी तो खुद अपना बुरा कर लेगी। समाज हमारे लिए क्या करता है ? जब हमारे घर पर कोई मुसीबत आती है तो ये समाज ही सबसे पहले मुंह फेर लेता है।‘ सपना ने दीदी से कहा, ‘‘दीदी आप एक बार मेरे पापा से बात कर लीजिए, क्या पता आपके समझाने से मेरे पापा समझ जाए ?‘ सलोनी दीदी ने कहा ‘‘ठीक है अगर तुम्हें लगता है कि मेरा तुम्हारे पापा से बात करना ठीक है तो मैं कल सुबह ही उनसे बात कर लूंगी।‘
अगले दिन सलोनी दीदी सपना के घर के उसके पापा से बात करने पहुंची। उसके पापा उस समय घर पर ही थे, उन्होंने जैसे ही सलोनी दीदी को देखा और देखकर उनका स्वागत करने लग, ‘अरे ! बेटा तुम हमारे घर ? हम तो धन्य हो गए, जो तुमने हमारे घर अपने कदम रखे। सपना की माँ देखो कौन आया है, अपने घर, कुछ चाय पानी तो लेकर आओ ?‘ सपना की मम्मी दीदी के लिए ट्रे में पानी लाती हुई बोलीं, ‘अरे बेटी तुम, कैसी हो! बड़े दिनों के बाद शहर आना हुआ ?‘
सलोनी दीदी ने ट्रे से पानी का गिलास उठाते हुए कहा, ‘ऑफिस से छुटटी कहां मिल पाती है। यहां आई थी सोचा आप लोगों से भी मिल लूं।
‘बड़ी कृपा की।‘ सपना के पापा बोले थे। दीदी बोलीं, ‘अच्छा मुझे महक ने बताया कि आपने सपना की शादी तय कर दी है।‘ सपना के पापा बोले‘, अरे हां, हम तो तुम्हें बताना ही भूल गए। जाओ सपना की मॉ, कुछ मिठाई-विठाई लेकर आओ बीटिया का मुंह मीठा करवाना है।‘ सलोनी दीदी ने सपना के पापा से पूछा, ‘‘ लड़के वालों ने दहेज की क्या मांग की है ?‘ सपना के पापा का चेहरा एकदम उतर गया। बोले, मांग तो उन्होंने बहुत ज्यादा रखी है, जिसके कारण हमें अपना सबकुछ गिरवी रखना पड़ रहा है। अब क्या करें, बेटी की शादी जो करनी है।‘
सलोनी दीदी ने पूछा ‘‘क्या आप यह सब ठीक कर रहे है ?‘
‘हम क्या करें, कहां से इतना दहेज चुकायेगें ? कब तक लड़की को घर में बिठा कर रखें ? अब उसकी उम्र शादी के लायक हो गई है। हमारे समाज में लड़की की ज्यादा उम्र नहीं बढ़ाते।‘
सलोनी दीदी यह सब सुनकर दंग रह गईं। उन्होंने कहा, ‘अभी शादी की कोई उम्र नहीं है। सपना की शादी कर कौन से आप मुक्त हो जायेगें ? सपना से दो साल छोटी उसकी बहन भी तो है ? और आपका लड़का उसे आप क्या करायेगें,? दो साल के अन्दर आप अपनी गिरवी रखी हुई चीजें क्या वापस ले लेंगे ? जरा सोचिए अंकल अभी आप चाहें तो सपना को और पढ़ा-लिखा सकते हैं ? सपना की भी पढ़ने में खासी रूचि है। क्या पता कल वह भी कोई अफसर बन जाए। जिस तरह आज मुझे देखकर आपको इतनी खुशी मिली, जरा सोचिए कल अपनी लाड़ली को अफसर देखकर कितनी खुशी होगी ?‘
तभी सपना की माँ बोल पड़ी, ‘‘नहीं-नहीं बेटी तुम हमें ये फालतू के सपने न दिखाओ। हमें नहीं पढ़ाना -लिखाना।‘ सपना के पापा ने कहा , ‘बेटी तुम्हारी बात अलग है। तुम्हारे पिता के पास पैसा है। अगर हमने यह रिश्ता तोड़ दिया तो हमारी भरी बिरादरी में नाक कट जायेगी ? फिर हमारी लड़कियों से कौन शादी करेगा ? गरीब के लिए तो इधर गिरो तो कुआं, उधर गिरो तो खाई।‘ सलोनी दीदी कुछ कह पाती, इससे पहले ही सपना के पापा बोले, ‘किरपा कर बेटी हमें हमारे हाल पर छोड़ दो और जो हो रहा है उसे होने दो।‘ दीदी बोलीं, ‘लेकिन अंकल आप इसमें सपना की जिन्दगी बर्बाद कर रहे हैं इससे न तो सपना खुश रह पायेगी और न आप। प्लीज मेरी मानिये ये शादी रोक दीजिए इसी में आपका भला होगा।‘ सपना की मां बोली, ‘तुम यह क्या कह रही हो बेटी ये रिश्ता तोड़ दें ? , अगर ये रिश्ता टूट गया तो क्या इज्जत रह जाएगी समाज में हमारी ?‘।
‘आप ऐसा क्यों सोच रही हैं ? क्या पता कल आपकी लड़की के लिए कोई अच्छा रिश्ता खुद चलकर आए।‘ ‘नहीं-नहीं हम ऐसा नहीं कर सकते! भगवान के लिए तुम ऐसी बातें न करो। हमें हमारे समाज में रहना हैं।‘ ‘सलोनी दीदी अपनी कोशिश कर चुकी थीं। लेकिन समाज के डर के कारण सपना के मां-बाप ने उनकी एक न सुनी। सलौनी दीदी को खाली हाथ घर वापस आना पड़ा। सपना यह सब कुछ छुपकर सुन रही थी। उसने अपने को किस्मत के भरोसे छोड़ दिया।
आखिर सपना की शादी का दिन आ ही गया। हमें दुख था कि हम अपनी सहेली के लिए कुछ नहीं कर पाए। बारात अब आने ही वाली थी। सपना दुल्हन की तरह सजी-धजी बैठ हुई थी और हम तीनों अपने बचपन की यादों को ताजा कर रहे थे। हम ऊपर से जितने खुश दिख रहे थे अन्दर से उतने ही दुखी थे। आखिरकार बारात घर पर आ ही गई । दूल्हा मण्डप में आ चुका था। तभी पण्डित जी ने कहा कन्या को बुलाइए। मैं और रूपाली सपना को लेकर आ गए। आगे कि रस्म शुरू की जाती इससे पहले लड़के के बाप ने मण्डप में खड़े होकर दहेज
की और मांग बढ़ा दी और मांग तत्काल पूरी करने की जिद करने लगे। अन्यथा बारात वापिस ले जाने की धमकी भी दे डाली।
यह सब सुनकर सबके चेहरों का रंग उड़ गया। सपना के मां-बाप अपनी इज्जत बचाने के लिए लड़के के और लड़के के बाप के कदमों में गिड़गिड़ाने लगे। यह देखकर सपना का सारा धैर्य टूट गया और वह अपने मां-बाप को उठाती हुई बोली, ‘ पापा आप ये क्या कर रहे हैं ? मैं यह सब कुछ सहन कर सकती। आपको यूं किसी के सामने झुकता हुआ मैं नहीं देख सकती। मुझे नहीं करनी यह शादी। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, ये लोग बारात लेकर वापस ही लौट जायेंगे न, तो लौट जाने दो।‘ तभी सपना की मां बोली, ‘तू पागल है ? ये क्या कह रही ?, अगर आज घर से बारात लौट गई तो कभी नहीं आएगी ?‘ तभी रूपाली भी सपना को साथ देते हुए बोली‘ अंकल आप इन राक्षसों के हाथों में अपनी बेटी को सौंपना चाहते हैं, जो दहेज के लालच में कभी भी बदल सकते हैं ? क्या आप अभी तक इनकी फितरत से वाकिफ नहीं हो पाए ? आप क्यों अपनी आंखों पर ये समाज की पट्टी चढ़ाए हुए हैं ? जिस तरह आज ये आपकी मजबूरी का लाभ उठा रहे है क्या पता शादी के बाद भी ये लोग सपना को परेशानियां देकर, हर रोज अपनी मांग आपके सामने रखें, तब आप क्या करेंगे ? ये दहेज लोभी हैं इनकी पैसे की प्यास कभी नहीं बूझेगी ?‘
मुझसे यह सब देखा नहीं गया और मैंने अपने मोबाइल से सलोनी दीदी को सब कुछ बता दिया। उन्होंने भरोसा जताया, ‘तुम चिन्ता मत करो महक ! अब सब कुछ मुझ पर छोड़ दो। मैं अभी पुलिस को लेकर आ रही हूं।‘
मैंने सपना से कहा, ‘सपना तू चिन्ता मत कर। इन लोगों को तो अब सबक मिल कर के ही रहेगा। मैंने सलोनी दीदी को फोन कर दिया है वो बस आती ही होंगी।‘ यह बात दूल्हे के पिता ने सुन ली। जिज्ञासावश कहने लगे, ‘कौन-कौन आ रही है सलौनी! वह जो महिला बाल विकास अधिकारी है ?‘ फिर वे सोचने लगे कि यह वही सलोनी तो नहीं जो बहुत से दहेज लोभियों को जेल की हवा खिला चुकी है ? अरे ये कहां फंस गए हम। यह सोचकर वे अपने बेटे से कहने लगे,‘ अरे भाग बेटा, हम गलत जगह फंस गये हैं। वह सलोनी नहीं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई है ? छोड़ेगी नहीं। आती ही होगी। भागो यहां से।‘
इससे पहले की वो दोनों वहां से भाग पाते, मैंने और रूपाली ने मिलकर दूल्हे को पकड़ लिया और सपना के भाई ने दूल्हे के पापा को। थोड़ी ही देर में पुलिस आ गई। सलोनी दीदी ने दहेज का मामला पुलिस में दर्ज कराकर उन दोनों को जेल के अन्दर बंद करवा दिया। उन्होंने कुछ टी.वी. चैनल और अखबारों के पत्रकारों को भी खबर कर दी थी, वे भी फुर्ती से मौके पर आ धमके। और लाइव टेलीकास्ट करने लगे।
सपना के पापा सलोनी दीदी के पास आए और बोले, ‘मुझे माफ कर दो बेटी जो मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी, आज मैं खुद अपनी ही नजरों में गिर गया।‘
‘कोई बात नहीं अंकल, आप यह सोचिए की आपकी लड़की की जिन्दगी बर्बाद होते-होते बच गई।‘
‘अब मैं समाज की कोई परवाह किए बिना सपना को पढ़ाऊंगा। मुझे अब उसकी शादी की कोई जल्दी नहीं है।‘
सपना की मां को भी अपनी गलती का अहसास हो गया। आज हम तीनों फिर बहुत खुश थे। अब हमारे जीवन में पहले की तरह खुशियाँ ही खुशियाँ आ गईं थीं। इस तरह से हमारी दोस्ती और भी पक्की हो गई।
e-mail: parulbhargava16@gmail.com
पारुल भार्गव
द्वाराः प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ, 49 श्रीराम कॉलानी,
शिवपुरी (म. प्र.)
जीवन-परिचय
नाम ः- कु. पारूल भार्गव
पिता का नाम ः- श्री प्रमोद भार्गव
माता का नाम ः- श्रीमती आभा भार्गव
जन्म तिथि ः- 16 दिसम्बर, 1988
जन्म स्थान ः- शिवपुरी (म.प्र.)
शिक्षा ः- विधि संकाय में द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत
रूचियां ः- खेल, लेखन, ड्राइविंग
प्रकाशित कृति ः- विज्ञान के नये प्रयोग
संपर्क ः- द्वारा- प्रमोद भार्गव,
पता ः- शब्दार्थ, 49, श्रीराम कॉलोनी शिवपुरी (म.प्र.)
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