तकनीक और मीडिया का अद्भुत तालमेल दुनिया की कूटनीतिक महाशक्तियों के खुफिया रहस्यों को बेपरदा कर इस तरह तार-तार कर देगा, विकीलीक्स के पहल...
तकनीक और मीडिया का अद्भुत तालमेल दुनिया की कूटनीतिक महाशक्तियों के खुफिया रहस्यों को बेपरदा कर इस तरह तार-तार कर देगा, विकीलीक्स के पहले इतनी बड़ी उम्मीद करना नामुमकिन बात थी। लेकिन अब तकनीक की ताकत ने उजागर कर दिया है कि तकनीक के क्षेत्र में दुनिया को इंटरनेट के जंजाल ने वाकई विश्वग्राम में तब्दील कर दिया है। गोपनीयता के संदर्भ में यहां यह कहावत भी बखूबी चरितार्थ हो रही है कि दीवारों के भी कान होते है और दीवारों के भीतर की गई गुफ्तगू कभी भी किसी भी देश की राष्ट्रीय सीमाओं को लांघकर अंतरराष्ट्रीय खबर बन सकती है। इंटरनेट के जरिये विश्व भर के कंप्यूटर स्क्रीन का हिस्सा बन कई देशों की नाक में दम कर सकती है। वेबसाइट विकीलीक्स के आस्ट्रेलियाई संस्थापक संपादक जूलियन अंसाज ने जो ढाई लाख सूचानाएं लीक की हैं, उनमें से बड़ी तादाद में फिलहाल अमेरिका की खुफियागिरी से जुड़ी सूचनाएं भले ही लग रही हैं लेकिन इन दस्तावेजों में दर्ज सूचनाओं को गोपनीय बनाए रखना वाकई जरूरी था अथवा नहीं यह अभी साबित होना है ? विकीलीक्स द्वारा जारी स्रोतों ने यह तो जग-जाहिर कर दिया है कि अमेरिका परमाणु व शांति समझौतों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के सिलसिले में न केवल दोहरी नीतियां अपनाता था, बलिक उसका आचरण भी दोमुंहा था। लेकिन इसके साथ कुछ ऐसे रहस्यों से भी परदा उठा दिया गया है, जिन्हें यदि आतंकवादी क्रूर हिंसा का हिस्सा बना लेते हैं तो दुनिया की मानवता को भी खतरा उत्पन्न हो सकता है ?
विकीलीक्स से जुड़े मानवीय पहलुओं पर इसलिए भी दृष्टि डालना जरूरी है क्योंकि बलात्कार के आरोप में हिरासत में लिए जाने से ठीक पहले जूलियन असांज ने धमकी दी थी कि उसके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाही की गई तो वह उपलब्ध सूचनाओं को परमाणु बम जैसे घातक हथियार की तरह इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकेगा ? हालांकि उसकी धमकी के परवाह किए बिना ब्रितानी हुकूमत ने अमेरिकी इशारे पर असांज को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करने वाले इस गिरफ्तारी को मीडिया के कर्तव्यों में दखलंदाजी कहकर सवाल उठा सकते हैं, लेकिन इसे आप विकसित देशों की कुटिल चतुराई भी कह सकते हैं क्योंकि जूलियन की गिरफ्तारी बोलने के अधिकार के ऐवज की बजाए एक यौन अपराध में की गई है। इसके बावजूद इस खुलासे को मीडिया के दायित्व पालन के दायरे में देखा जाए अथवा मीडिया को मिली आजादी की नैतिक मर्यादा के उल्लंघन के दायरे में यह अभी तय होना है। क्योंकि विकीलीक्स से वास्तव में किसी देश के संवैधानिक अधिकार का हनन हो भी रहा है अथवा नहीं, यह भी अभी तय होना बाकी है।
हालांकि असांज ने पहले ही झटके में अमेरिकी रहस्यों का इतना बड़ा पिटारा खोल दिया है कि जो अमेरिका के कूटनीतिक हितों को तो प्रभावित करता ही है, संबंधित देशों को सफाई पेश करते-करते भी अमेरिका थक जाएगा। विकीलीक्स के मुताबिक अमेरिका ने यूरोप के 200 चुनिंदा व सुरक्षित स्थलों पर आणविक हथियार युद्ध के लिए तैनात कर रखे हैं। लेकिन इस सुरक्षा संबंधी खुलासे से किसी और देश को नुकसान होने की बजाए अमेरिका की उस चाल को खमियाजा भुगतना पड़ेगा, जिसमें एक ओर तो वह भारत समेत अन्य विकासशील देशों पर परमाणु अप्रसार संधि करने का दबाव डालता है, लेकिन खुद दो सौ ठिकानों पर परमाणु हथियार जमा कर संधि की शर्तों की अवहेलना कर रहा है ?
पाकिस्तान के सिलसिले में भी अमेरिका की चालाक कुटिलता विकीलीक्स ने पेश की है। अमेरिका की मंशा थी कि किसी तरह वह पाकिस्तान खुफिया तंत्र की आंखों में धूल झोंककर पाकिस्तान के परमाणु संयंत्र से परिशोधित यूरेनियम गायब कर दे। हालांकि विकीलीक्स ने ही दलील दी है कि अमेरिका के मंसूबे मई 2009 तक इस यूरेनियम को हटाने में पूरे नहीं हो पाए थे। अमेरिका परमाणु हथियार में प्रयोग में लाए जाने वाले यूरेनियम को इसलिए हटाना चाहता था, जिससे यह आंतकवादियों के हाथ न लग जाए। पाकिस्तान के परमाणु संयंत्रों में यूरेनियम की बड़ी उपलब्धता इस बात का भी संकेत हैं कि पाकिस्तान लगातार आणविक हथियारों का निर्माण करने में लगा है। यह जखीरा यदि खुदा-न-खास्ता आतंकवादियों के हाथ लग जाता है तो वाकई दुनिया की मानवता खतरे में पड़ सकती है। क्योंकि अफगानिस्तान के बाद आतंकवादियों का बड़ा ठिकाना पाकिस्तान ही है। वहां की सेना और सरकार भी खासतौर से भारत के बरखिलाफ आतंकवादियों को उकसाती व प्रोत्साहित करती रहती है। लेकिन सही मायनों में खौफ की यह दुनिया तब ज्यादा भयावह थी, जब इसकी जानकारी गोपनीय थी। उजागर होने के बाद तो दूसरे देशों को अमेरिका के बराबर परमाणु ताकत हासिल करने में जुट जाना चाहिए अथवा अमेरिका को विवश किया जाना चाहिए कि जिन 200 ठिकानों पर उसने घातक हथियार जमा हैं, उन्हें समुद्र में नष्ट करे। अमेरिका से आगे के परमाणु व शांति समझौते इसी शर्त पर होंगे तो दुनिया परमाणु युद्ध के खौफ से मुक्त होगी ? दूसरी तरफ पाकिस्तानी आतंकवादियों से सुरक्षित रहने की चेतावनी भी विकीलीक्स के स्रोत देते हैं।
इराक और अफगानिस्तान से संबंधित अमेरिका की कूटनीतिक चालाकियों का भी भण्डाफोड़ विकीलीक्स ने किया है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर कई अरब देशों की नींद हराम है और वे अमेरिका पर ईरान को काबू में लेने का सामूहिक दबाव बना रहे हैं। अरब देशों के पर्याप्त दबाव के चलते ही अमेरिका ने ईराक को नेस्तनाबूद किया। इस तरह के संदेश यह भी जाहिर करते हैं कि नस्लीय दृष्टि से एक जैसे देशों के जब परस्पर हित टकराते हैं तो वे अपन ही नस्ल का वंशनाश करने से नहीं हिचकते ? विकीलीक्स द्वारा सार्वजनिक किए दस्तावेजों में दर्ज तथ्यों पर भरोसा करें तो यही नतीजा निकलता है। शायद इसीलिए जब अमेरिका ईराक पर हमला बोलता है तो कोई भी मुसलिम राष्ट्र अमेरिका के खिलाफ न तो आवाज बुलंद करता है और न ही आगे बढ़कर ईराक की सैन्य मदद करता है।
विकीलीक्स ने तिब्बत में चीन, तिब्बतियों का किस बेरहमी से दमन करने में लगा है यह भी खुलासा किया है। यही नहीं चीन अपने ही देश में अधिकारों की मांग करने वाले लोगों की मुहिम को किस तरह से कुचलता हुआ जापान के बाद विश्व की दूसरी महाशक्ति बन बैठा है, इन प्रमाणों का जखीरा भी विकीलीक्स में दर्ज है। विघटन के बाद भी रूस किस तेजी से आधुनिक परमाणु हथियारों व अन्य सामरिक तैयारियों में लगा है, ये ब्यौरे भी जूलियन असांज ने इस तहलका मचा देने वाली वेबसाइट में डाले हैं।
भारत के प्रति कमोबेश उदार व्यवहार प्रदर्शन करने वाला अमेरिका भारत की भी पीठ में छुरा भौंकने से नहीं चूका। मुंबई हमले के सिलसिले में जब अमेरिका भारत का पक्ष ले रहा था, उसी समय इस्लामाबाद में तैनात उसके राजनयिक ने वाशिंगटन मेल से एक संदेश भेजते हुए अमेरिका को चेताया कि पाकिस्तान की आतंकवादियों से जुड़ी गतिविधियां सार्वजनिक हुईं तो इसका पाकिस्तान की गुप्तचार संस्था आईएसआई की छवि धूमिल होने के साथ पाकिस्तान से संबंधों में खटास पैदा होगी। भारत से जुड़े कुल 3038 गोपनीय संदेश जग जाहिर हुए हैं, लेकिन इनमें खास बात यह कि भारत का न तो कहीं भी दुर्बल पक्ष सामने आया है और न ही दोहरी नीतियों से जुड़ी कूटिल चालाकियां।
इस वेबसाइट पर मानवीयता से जुड़े ऐसे पहलुओं को भी उजागर किया गया है जो मानवीय सरोकारों से जुड़े हैं। इनमें मधुमेह के रोग से उपचार और सांप का जहर उतारने वाली दवा कंननियों के निर्माण स्थलों के नाम भी दर्ज हैं। यहां अमेरिकी कंपनियां दवाएं बनाती हैं। भारत के कर्नाटक और ओडीसा में भी क्रोमाइट की ऐसी खदानों का उल्लेख है जहां कैंसर के उपचार से जुड़ी दवाएं बनाई जाती हैं। इन रहस्योद्घटनों के पीछे जूलियन असांज का क्या मकसद रहा है इसे समझना मुश्किल है। वैसे जीवन रक्षक दवाएं तो पूरे विश्व की मानव जाति के काम आती हैं। उनका इस्तेमाल केवल दवा निर्माता कंपनी या देश नहीं करते बल्कि दुनिया के पीड़ित जीवनदान पाते हैं।
यहां गौरतलब यह भी है कि वैश्विक महाशक्ति बना रहने वाला देश दुनिया के खबर लिए बिना, दुनिया के कमजोर देशों में हस्तक्षेप किया बिना, दुनिया के विकासशील देशों की प्राकृतिक संपदा हड़पे बिना और उन्हें बाजार के रूप में इस्तेमाल किए बिना कैसे और कब तक वैश्विक महाशक्ति बना रह सकता है ? साम्यवादी चीन भी तो ऐसी ही दमनकारी और दोगली नीतियों को अमल में लाकर ठीक अमेरिका के नीचे वाले पायदान पर पहुंच गया ? हिन्दी-चीनी भाई-भाई कहते हुए उसने हमारे साथ कौन सा सौहार्दपूर्ण रवैया अपनाया ? ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाकर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को बाढ़ की त्रासदी और सूखे की महामारी झेलने को मजबूर कर देने की चाबी उसके हाथ में पहुंचने वाली है और हम लाचारी में हाथ बांधे खड़े रहकर मुंह भी नहीं खोल पा रहे हैं ? वैसे भी अमेरिका के बाबत जो सूचनाएं लीक होकर सामने आई हैं उनकी जानकारियां तो संबंधित देशों को पहले भी थीं, विकीलीक्स की फेहरिश्त ने जानकारियों पर पुष्टि की मोहर भर लगाई है। इन सूचनाओं के खुलासे के बाद अमेरिकी राजनयिकों और दूतावासों को ऊंच-नीच का कुछ समय के लिए भले ही सामना करना पड़े, फिलहाल अमेरिका के मित्र देश से न तो कोई संबंध बिगड़ने वाले हैं और न ही अमेरिका अपनी दोगली नीतियों में बदलाव के लिए मजबूर होने वाला है।
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प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49, श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी (म.प्र.) पिन-473-551
असान्जे ने वेब पत्रकारिता का एक नया पैराडायिम रच दिया है ....उनका सूत्र वाक्य है कि घिनैने उद्येश्यों की खातिर छुपाई जाने वाली जानकारी अनुचित और अनैतिक है ,उसका पर्दाफ़ाश होना ही चाहिए !
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा काम किया है असांज ने... उनकी रिहाई के लिये जनांदोलन करना चाहिये..
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